अर्धमात्रा वॉल्यूम ५
कथावाचक : अनादिकाल से मानव सत्य की खोज में पर्वतो की बर्फीली चोटियों से ले कर [unclear] कठिन परिश्रम करता रहा| भारत की पावन भूमि सत्य साधको की योगभूमि रही है| उन्होंने पाया की सारे ब्रह्माण्ड को चलने वाले अनगिनत शक्तियाँ एक परा शक्ति का अंश है, इस पराशक्ति को उन्होंने आदिशक्ति का नाम दिया |आदिशक्ति प्रभु के प्रेम की असीम शक्ति है जिसे मानव आपने जीवन में हर पल मह्सूस करता है|
प्रभु के प्रेम में आत्मविभोर होकर मानव प्रभु के प्रति पूर्णता समर्पित हो जाता है, प्रभु के साथ एकाकारिता को ही योग कहते है|
नचिकेता तथा मर्कंद्ये ने कठिन तप कर इस दिव्यज्ञान को बाल्यकाल में प्राप्त किया | योग की हर विधा पर दिया गया भगवान श्री कृष्ण का ज्ञान, आज भी मानव को सत्य की साधना को करने को प्रेरित करता है | मानव जिस आनन्द एवं शांति की खोज में लगा है वह सत्य उसे केवल तार्किक श्रद्धा से प्राप्त हो सकता है, इस बात से कदापि इंकार नही किया जा सकता कीपृथ्वी पर जितने भी अवतरण हुए, जितने भी धर्मं बने , पंथ बने, जितने भी संत-पीर हुए वे मात्र सात्विक श्रद्धा के आविष्कार थे| कर्म-कांड से परे, रिती-रिवाजों से हट कर एवं रुढियों से उठकर [unclear] जिस शक्ति की ओर संकेत करती है वह शक्ति केवल मानवता का प्रतीक है |
महाराष्ट्र के महान संत ज्ञानेश्वरजी ने ज्ञानेश्वरी का छ्ठे अध्याय में दिव्य ज्ञान को सरल एवं सुन्दर मराठी भाषा में व्याख्या कर के जन-जन तक पहुँचने का महान कार्य किया |
श्रीमाताजी: अब मै ये जो आपसे बात बता रही हूँ, ये हमारा धरोहर[unclear] है, हेरिटेज और ये बातें हमारे देश में अनेक वर्षो से होती रही है ये कोई आज की बात नही है, लेकिन बात ये है की पहले ये एकाद दो को ही आत्म-साक्षात्कार मिलता था और उनके अंदर बसी हुई सूक्ष्म शक्ति जिसे कुण्डलिनी कहते है, वो एक ही दो लोगो की जागृत होती थी | लेकिन अब इस आधुनिककाल में हजारो लोगो की कुण्डलिनी एक साथ जागृत होती है | जब ये कुण्डलिनी शक्ति जो हमारे त्रिकोणाकार अस्थि में बसी हुई है, ये जब इन चक्रों में से गुज़रती है तो एक तो उन्हें ये संतुलन में लाती है, बैलेंस में लाती है ,उनको पलावित करती है, नॉरिश करती है और फिर बाद में अपने ब्रह्मरंद्र जिसे कहते है, जिसे फोंटेनल ब़ोन एरिया कहते है वह से गुजर कर के उसको छेद कर सर्व-व्यापी परमात्मा की जो प्रेम शक्ति है जिसे हम लोग परमचैतन्य कहते है उससे एकाकारिता प्राप्त करती है|
जब आपका मिलन उस परमचैतन्य से हो जाता है,जिसे हम योग कहते है तब आपके अंदर ये शक्ति दोड़ने लग जाती है और आपके शारीरिक दोषों को दूर कर के,और आपके चक्रों को पूरे तरीके से साफ़ करती है| उसके बाद आप स्वयं अपना संरक्षण कर सकते है क्योंकि आपकी शक्ति इतनी बढ़ जाती है की कोई भी बीमारी आप के अंदर आ नही सकती | अनेक लोगो की अनेक देशो में बीमारियाँ ठीक हो गयी | हमारे अंदर एक तो शारीरिक बीमारियाँ होती है, एक मानसिक होती है और उन दोनों को मिलकर के जिसे स्य्कोसोमाटिक कहते है वो होती है | यहाँ तक की कैंसर वगेरह यह भी स्य्कोसोमाटिक बीमारियाँ, ये तक लोगो की ठीक हो गयी और इसे बहुत से लोग है जो इसका प्रमाण दे सकते है उनके पास डॉक्टरों के सर्टिफिकेट्स है की ये बहुत बीमार है और ये थोड़े दिन ही जीयेंगे और इस तरह की बात, अभी तक 6-6-7-7 साल हो गये उनकी हालत ठीक है और ये तो बात सही है की इससे सब बीमारियाँ ठीक हो सकती है और हो सकता है की कभी कभी किसी की ठीक न भी हो और ऐसी हालत है वो की वो ठीक नही हो सकती तो उसमे कोई गलत नहीं कर सकता पर हमने अधिकतर देखा है की लोग सहजयोग में आते है उनकी सबकी बीमारियाँ ठीक हो जाती है और जो पहले से ही ठीक है उनको कभी भी कोई बीमारी नहीं होती|
कथावाचक : दुनिया के अनेक देशो मे डॉक्टर इस ज्ञान का प्रयोग आसाध्य रोगों के उपचार में कर रहे है|
डॉक्टर: (अंग्रेजी का हिंदी अनुवाद) मैं सहजयोग में श्री माताजी का कार्य, लगभग पिछले १० वर्षो से कर रहा हूँ| [unclear] बहुत सारे लोगो को अलग अलग बीमारियाँ थी, उनमे से बहुत सी स्य्कोसोमेटिक थी [unclear] हम पूर्णतः ये नहीं कह सकते की वो शारीरिक थी और मैंने उनमें से बहुत लोगो को ठीक होते देखा [unclear] कुल मिलकर ये कहे की जो लोग भी सहजयोग [unclear] बढ़ते हुए दर्द में कमी हुई है|
साक्षात्कारकर्ता : स्वयं अपने देश में अनेक डॉक्टर इस ज्ञान स्तोत्र का सदुपयोग कर रहे है|
श्रीमाताजी : ऐसी कोई बात नहीं, हांगकांग में हमने किया था| हांगकांग गये थे तो वहां के जो कोई थे टेलीविज़न वाले बेचारे ,उन्होंने ऐसा किया था, तो बहुत लोगो ने चिट्ठियां भेजी पर फिर उनको, फिर से सामूहिक तोर से इकठठा किसी ने नहीं किया, ये नहीं किया और उस तरह वह,अब वह हांगकांग में वो लोग फिर से जुड़ गए | तो बिलकुल हो सकता ऐसा…
साक्षात्कारकर्ता: आप अभी कर सकती है ?
श्रीमाताजी : अभी
अच्छा जितने भी लोग देख रहे है वो अपने जूते उतर ले और अपना चश्मा उतर ले | जूते इसलिए कि जो जमींन है, पृथ्वीतत्व है ये हमारी सब गड़बड़ियाँ जो है हमारे अंदर जो विकृति है उसे खीच लेती है | अब चश्मा उतरना भी इसलिए है की चश्मा उतरने के बाद आँखे भी शायद से,आँखों में भी इसे फायदा हो सकता है| अब सबको अपने दोनों हाथ मेरी ओर करने चाहिए | इस तरह से करे जैसे की कुछ मांग रहे है |
अब पहले आप राईट हैण्ड मेरी ओर करे और सर झुका ले और लेफ्ट हैण्ड तालू के ऊपर ,ऊपर पकडे, ऊपर और सिर झुका के आप देखिये की कुछ ठंडी या गर्म हवा आप के तालू से आ रही है क्या? शंका मत करिए | देखिये इसी बीच आप सबको क्षमा करे मतलब ये की आप किसी को क्षमा करते है या नहीं करते है आप कुछ नहीं करते | पर जब आप क्षमा नहीं करते है तो आप गलत हाथो में खेलते है| इसलिए आप सबको एक साथ क्षमा करिए, किसी को याद भी करने की जरुरत नहीं | अब सिर झुका लीजिये और क्षमा करिए | ऐसा कहिये “माँ मैंने सबको क्षमा कर दिया सबको एक साथ” | अब लेफ्ट हैण्ड हमारी तरफ कीजिये और सिर झुका ले और यह पर फिर से राईट हैण्ड से तालू के उपर देखिये कुछ ठंडी या गर्म हवा सी आ रही है क्या? अब यह पर एक बात याद रख लीजिये की मै दोषी हूँ , मैंने ये गलत काम किया, वो गलत काम किया अगर ऐसा आप यदि सोचते हो तो जान लीजिये की ये चीज़े जो है इनसे बड़ा नुकसान होता है |
ये परमचैतन्य जो है ये दया के और क्षमा के सागर है तो आपने कोई भी गलती करी हो तो उसको ये एकदम क्षमा कर सकते है | इसिलए आप अभी मन में ये कहिये की “ माँ मैं बिलकुल दोषी नही हूँ, मैंने कोई दोष नहीं किया, मैंने कोई पाप नहीं किया” | इस तरह से आपकी जो ग्लानि है विमुक्त हो जायेगी| सिर झुका के देखिये| एक बार फिर राईट हैण्ड मेरी ओर और लेफ्ट हैण्ड से देखिये| अगर आपने क्षमा नहीं किया हो तो, तो गर्म गर्म आयेगा और क्षमा कर दिया तो ठंडा आने लग जायेगा |
अब दोनों हाथ आकाश की ओर कर के आप सिर पीछे की ओर कर लीजिये| दोनों पैर जमींन पर अलग अलग रखे और एक सवाल तीन बार पूछें, मन में पूछिए की “माँ क्या ये परमचैतन्य है ?”, “क्या यही परमात्मा की प्रेम शक्ति है?” तीन बार ऐसा सवाल पूछे| अब आप हाथ नीचे कर लीजिये और दोनों हाथ मेरी और करे और निर्विचार हो जाईये, विचार नहीं करिए | अब आप लोगो में से जिनके हाथ में ठंडा या गर्म ऐसा स्पंदन आ रहो,वाइब्रेशनस आ रहे हो या सिर से भी ठंडी – गरम या उंगलियों में, तो आप सब लोग हाथ उपर करे, जिन जिन को आ रहा है| देखिये सब लोगो के करीबन आ गया, आया है न? महसूस हुआ है न? इसी प्रकार अब चीज़ हो गयी, लेकिन अब भी ये जान लेना चाहिए की ये सिर्फ अंकुरित हुई है कुण्डलिनी इस के वृक्ष बनाने है और उस के लिए आपको थोड़ी सी मेहनत करनी है यानि की ये आपको हमारे सेंटरर्स पर आना होगा, जहाँ जहाँ सेंटरर्स है और इसको लगन से करनी चाहिए | जब आपकी यह पूरी तरह से जम जाएगी तो आपको एक नयी स्थिति प्राप्त होगी जिसे कहते है निर्विकल्प समाधी, निर्विचार समाधी हो गयी और अब निर्विकल्प समधी हो जाएगी और इंग्लिश में कहे डाउटलेस अवेयरनेस और फिर आप जब चाहें किसी की भी कुण्डलिनी जागृत कर सकते है, आप में शक्ति आ जाती है|
कथावाचक : आज यह ज्ञान देश ,धर्म, शास्त्र एवं जाति की सीमा को लाँघ कर, विश्व के छपन देशो में अपनी सुरभि फैला रहा है |