प्रश्न और उत्तर
दिल्ली 1973-1124-11
सहज योगी: यह कार्यक्रम २४ नवंबर १९७३ को दिल्ली में रिकॉर्ड किया गया है। यहाँ श्री माताजी दिल्ली में आयोजित दस दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला के दौरान “साधकों” के प्रश्नों का उत्तर दे रहे हैं।
श्री माताजी:…आपकी विषयवस्तु पर। मैं बस अपने विचारों को जारी रखने की कोशिश करूंगी। और बाद में, यदि आपको कोई समस्या है, तो मैं उनके बारे में उत्तर दूंगी। लेकिन जैसा कि मैंने तुमसे कहा, यह एक सागर है, ज्ञान का सागर है, और मैं पांच साल से ऐसे ही बोल रही हूं। और उनमें से कुछ लगभग पाँच वर्षों से मुझे सुन रहे हैं।
लेकिन फिर भी, मैं जो कुछ भी कहती हूं, वे इसे रिकॉर्ड करना चाहते हैं और इसे फिर से सुनना चाहते हैं और मुझे नहीं पता, इसलिए मुझे लगता है कि यह सब एक अथाह कुंड है।
अब, कुंडलिनी वास्तव में क्या है? आइए इस बिंदु से शुरू करते हैं, मैं एक-एक करके विभिन्न विषयों पर जाऊंगी। कुण्डलिनी से ठीक पहले आइए जानते हैं कि सृष्टि क्या है। क्योंकि सृष्टि के बिना आप कुंडलिनी के स्थान को नहीं समझ पाते हैं। जो मैं बहुत ही संक्षिप्त रूप में बताऊंगी।
पूरी सृष्टि, वृक्ष की ही तरह, एक बीज की अभिव्यक्ति है, जिसे हम “ब्रह्म बीज” कह सकते हैं। सृष्टि का बीज है। अब हर बीज में अंकुरण शक्ति होती है। उसी तरह ब्रह्म बीज में भी अंकुरण शक्ति होती है।
अब आपके लिए यह एक परिकल्पना है। सभी वैज्ञानिक समझ के लिए, यह एक परिकल्पना है। लेकिन हम इसे बाद में अपने प्रयोगों से स्थापित कर सकते हैं। तो, यह एक सिद्धांत और एक वैज्ञानिक तथ्य बन जाता है।
शुरुआत में, इस बीज,-( वास्तव में कोई आदि और अंत नहीं है, लेकिन आइए हम किसी एक चरण से शुरू करें जहां बीज से वृक्ष बन जाता है और वृक्ष बीज बन जाता है।)- पहली बार बीज में हलचल हुई, और दिव्य प्रेम के स्पंदन, जो कि ब्रह्मा के उस बीज की शक्ति है।
ईश्वरीय प्रेम स्वयं जागरूकता है और एक ऐसी शक्ति है जिसमें विद्युत, चुंबकत्व और सभी भौतिक शक्तियां हैं। साथ ही, एक शक्ति जो सोचती है, नियंत्रित करती है, योजना बनाती है और रचना करती है। आप ऐसी शक्ति की कल्पना नहीं कर सकते। क्योंकि भौतिक दुनिया में ऐसी शक्ति मौजूद नहीं है।
तो, बीज से, जागरूकता के स्पंदन शुरू हुए। (मुझे लगता है कि आपको अपने हाथ इस तरह रखना चाहिए ताकि मेरी वाणी के साथ आपकी जड़ स्थिति में भी परिवर्तन होता जाये।) तो, उस दिव्य प्रेम के स्पंदन बीज के चारों ओर फैल गए और सतह बन गए।
जिसे हम शक्ति कहते हैं, वह शक्ति है, दिव्य प्रेम है। या ईश्वरीय शक्ति।
तो, बीज अलग हो गया था। ब्रह्म का बीज, जो अमूर्त था, इस अर्थ में कि वह किसी भी भौतिक रूप में प्रकट अथवा अभिव्यक्त नहीं हो रहा था, बीज को शक्ति से अलग कर दिया गया था, और हमें दो कार्यरत शक्तियाँ प्राप्त थीं, एक, बीज के रूप में स्वयं ब्रह्म और दूसरे, इसकी शक्ति के रूप में, ‘शक्ति’ स्वरुप ।
वे इसे कहते हैं, शैव इसे शिव और शक्ति कहते हैं। वैष्णव इसे विष्णु, कृष्ण और राधा कहते हैं। आप इसे जो भी कहें, वह बात नहीं है। दरअसल, केवल हम इंसान ही उन्हें नाम दे कर और अलग-अलग करते हैं।
लेकिन, वास्तव में, केवल दो चीजें थीं जो अस्तित्व में थीं। पहला, ईश्वर, साक्षी, नियामक, पर्यवेक्षक, जो अपनी शक्ति और उस शक्ति के खेल को देख रहा था।
शक्ति स्वयं को अभिव्यक्त करने लगी। लेकिन, ईश्वर पर्यवेक्षक है; वह साक्षी है और वह मौन है।
शक्ति के पास तीन शक्तियाँ थीं। वह कैसे प्रकट हुईं, वे कैसे अस्तित्व में आईं, यह एक और विषय है। उसने इसे कैसे प्रबंधित किया यह एक और ही विषय है।
लेकिन उसे तीन शक्तियां मिली हैं। पहली शक्ति है, उसके अहंकार के माध्यम से, जो एक देहधारण शक्ति है। दूसरी शक्ति उसकी दिव्य शक्ति है, और तीसरी शक्ति उसकी भौतिक शक्ति है।
दैवीय शक्ति ने सम्पूर्ण विनियमन किया, पूरे ब्रह्मांड का निर्माण किया। शक्ति ने एक अन्य गतिविधि द्वारा तीन प्रकार की मनोदशाओं का निर्माण किया। तीन मनोदशाएँ उसने उस तरह की गति से बनाई। तीन बार वह इस तरह घूमी, अपने अहंकार के इर्द-गिर्द घूमी और ये तीन मनोदशाएँ, एक माँ की तरह थी, उसे बच्चा पैदा करने की इच्छा थी। इच्छा!
इस के लिए, उसने “तमो गुण” बनाया। तब उसे उस पर कार्य करना पड़ा , इस के लिए, उन्होंने सक्रिय करने वाली शक्ति “रजो गुण” का निर्माण किया। और एक बार जब उसने अपनी रचना बना ली, तो वह अपने प्रेम को प्रकट करना चाहती थी। तो, “सत्व गुण” बनाया गया था, प्रकटीकरण।
वह माँ है। आप सोच सकते हैं, वह सभी माँ की माँ है। जैसे एक माँ अपने बच्चे को देखती है, उसी तरह वह अपनी रचना को देखती है।
सबसे पहले, वह दैवीय शक्ति के माध्यम से, भौतिक शक्ति पर कार्य करते हुए, सारी सृष्टि की रचना करती है।
और फिर, वह बार-बार आती है, बार-बार, तीन अलग-अलग रूपों में। वह खुद मां बनकर आती हैं। तब वह सबसे शक्तिशाली और अभिव्यक्तिपूर्ण है।
जैसा कि वह आई हैं आप जानते हैं कि नव-दुर्गा के रूप में वह आई है, मदर मैरी के रूप में वह आई है, क्वान यिन के रूप में वह आई है। वह दुनिया के कई हिस्सों में कई रूपों में आ चुकी हैं। वह मुहम्मद की बेटी के रूप में आई, वह नानक की बहन के रूप में आई, वह जनक की बेटी के रूप में आई।
हर समय केवल एक ही व्यक्ति इस दुनिया में विभिन्न रूपों में आ रहा है। जब वह केवल एक माँ के रूप में आती है, तो वह बहुत अलग होती है, और वह बहुत गतिशील होती है। लेकिन, कभी वह एक पत्नी के रूप में आती है और कभी एक माँ के रूप में, तो वह गूढ होती है।
वह कार्यशील होती है, लेकिन उसे महसूस नहीं किया जाता है। जैसे, कृष्ण की राधा। वही माँ बार-बार आती है, लोगों को इस भावसागर, अर्थात शून्य से बाहर निकलने में मदद करने के लिए अवतार लेती है। वह माया बनाती है, वह भ्रम पैदा करती है। एक माँ की तरह, एक माँ चिड़िया की तरह जो खुद को छुपा कर अपने बच्चों (छोटी चिड़िया) को पुकारती है। ताकि, छोटी चिड़िया मां को खोजने के लिए अपने पंख फैला सके।
वह सारा भ्रम पैदा करती है। और केवल वही है जो आपको एहसास भी कराती है कि यह सब एक भ्रम है। वह आपको महसूस कराती है कि आप उससे अलग हैं। आप में “मैं” वह स्वयं विकसित करती है। और फिर वे तुमसे अपेक्षा करती है कि तुम पता लगाओ उस माध्यम का, माँ, सर्वव्यापी चैतन्य का जो तुम्हारी माँ है।
और इसके द्वारा, ऐसा कर के वह आपको परिपक्व बनाती है और एक इंसान से एक सुंदर यंत्र बनाती है। और फिर वह अपने प्रेम को प्रकट करती है और अपने आप को और, अपने प्यार को आपके अस्तित्व में उजागर करती है।
सबसे पहले, भौतिक विकास हुआ जैसा कि आप अच्छी तरह से जानते हैं। मैंने उस पर भी बात की है। मैं अब इसे छूना नहीं चाहूंगी। फिर, मानवीय स्तर तक पहुँच कर यह रुक गया है। अब इंसानों ने शरीर का उत्थान पा लिया है। जानवरों ने नहीं।
लेकिन इंसानों ने अपने शरीर को उन्नत किया है और उसका दिमाग शंक्वाकार रूप से विकसित होने लगता है। वह शंक्वाकार संरचना इसे एक प्रिज्म जैसा गुण प्रदान करती है, जिससे चैतन्य, प्रकाश, मस्तिष्क में डालने पर, refraction अपवर्तन में चला जाता है। मुझे आशा है कि आप refraction अपवर्तन शब्द को समझ गए होंगे। इसका मतलब है कि यह प्रिज्म से होकर गुजरता है, जैसा कि आपने देखा है, “विकेंद्रीकरण” वे इसे कहते हैं।
किरणें अलग हो जाती हैं। केवल मनुष्य में चैतन्य की किरणें विभक्त हो जाती हैं, पशुओं में नहीं। और यहाँ स्थित फॉन्टानेल हड्डी के मध्य (जिसे आप “तालु” कहते हैं,) से गुजरने वाली किरणें, एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात है।
यह मस्तिष्क के शीर्ष से होकर गुजरती है और सीधे नीचे मेडुला ऑबोंगटा तक जाती है और त्रिकोणीय हड्डी के पीछे कोक्सीक्स नामक स्थान पर स्थापित हो जाती है। यह अपने कार्य में पूरी तरह से परानुकंपी है, यानी यह आपको पूरी तरह से भर देती है और अतिशेष चेतना के रूप में वहीं रहती है। वही कुंडलिनी है।
डॉक्टर आज भले न मानें लेकिन एक दिन उन्हें राजी होना ही पड़ेगा. मैं आपको कोक्सीक्स में कुंडलिनी की श्वास दिखा सकती हूं।
[माँ सहजयोगियों से अलग से बात कर रही हैं]।
तो, इसके केंद्र में, आपके सिर के केंद्र में, टेलबोन में, वहां से टेलबोन तक, एक लाइन है जो मेडुला ऑबोंगटा से नीचे जाती है और “सुषुम्ना” के चैनल के रूप में जानी जाती है। दो अन्य चीजें जो इस तरह से गुजरती हैं, स्वभाव से अनुकंपी हैं क्योंकि वे आपकी ऊर्जा को समाप्त (व्यय)करने के लिए हैं, उन्हें अनुकंपी तंत्रिका तंत्र के रूप में जाना जाता है। लेकिन उनके चैनलों को “इड़ा” और “पिंगला” के नाम से जाना जाता है।
तो, माँ कुंडलिनी अवशिष्ट चेतना के रूप में कोक्सीक्स में बस जाती है। वह वहां बहुत अच्छी तरह से बस गई है,उत्थान के अवसर की प्रतीक्षा कर रही है। और अवसर है, जब उसका बच्चा, उसका केवल एक ही बच्चा है। और उसके पूरे जन्म के दौरान, वह उसका पीछा कर रही है। वह हर समय वहीं रहती है। जब बच्चा मरता है, तो उसका शून्य पैदा हो जाता है। और (जब बच्चा फिर से पैदा होता है) तो वह फिर से उसी बच्चे में वापस आ जाती है। और वह बच्चे की सभी समस्याओं को जानती है।
यह कुंडलिनी आपको पुनर्जन्म देती है।आपने “द्विजः” के बारे में सुना है जो दो बार पैदा हुआ है। हर धर्म, हर धर्म, मेरा मतलब है धर्म; मेरा मतलब जो अधर्म हो उससे नहीं है – हर धर्म ने उपदेश दिया है कि तुम्हें पुनर्जन्म लेना है। जिन्होंने ऐसा नहीं कहा है, वे कोई धर्म नहीं हैं।
संस्कृत भाषा में रिलिजन “धर्म” है। धर्म का अर्थ है “धरैतीचा धर्म”, जिसे आप थामे रखते हैं। आप जो कुछ भी धारण करते हैं वह धर्म है। फिर भी, सस्टेनेबल का अर्थ ऐसा नहीं है, लेकिन फिर भी, आप कह सकते हैं कि सस्टेनेबल। चूँकि कानून मंत्रालय वगैरह में, आप यह शब्द अधिकतर सस्ते ढंग से सुनते हैं।
लेकिन जो धारण करता है वह धर्म है। क्या बनाये रखता है? सर्वव्यापी का मिलन कायम रखता है। “जादूगर का काम” नहीं है, जिस तरह से वे “जादु द्वारा, चीज़ों को यहाँ से निकाला दिया, वहां से निकाला दिया” (चीजों को कहीं से भी प्रकट करना) पर चलते हैं, यह सब कुछ धर्म नहीं है। एक बात याद रखें कि ये सभी चीजें धर्म नहीं हैं।
धर्म केवल वही है जो परमात्मा (सर्वशक्तिमान ईश्वर) के साथ आत्मा (आत्मा) के मिलन को बनाए रखता है।
मनुष्य में, उसके हृदय में, प्रत्येक मनुष्य में, सभी जीवों के हृदय में, जो प्रतिबिंबित है वह आत्मा है, वो परमात्मा का, ईश्वर का प्रतिबिब है, जिसके बारे में मैंने आपको बताया है, वह प्रतिबिंबित है। और एक लौ की झिलमिलाहट की तरह, आपके अंगूठे की तरह, यह आपके दिल में है।
वास्तव में आप, आपकी सारी वृद्धि, सृजन, सब कुछ, आपके हृदय द्वारा प्रबंधित किया जाता है – आपके मस्तिष्क द्वारा नहीं। हृदय के केंद्र में, हृदय के केंद्र में।
[अश्रव्य/कोई प्रश्न पूछता है]।
नहीं, नहीं, मैं आपको बताऊंगी कि क्या। आपकी बात ठीक है। डॉक्टर कहते हैं कि दिल यहाँ है। हृदय अंग है। हृदय वह अंग है, जिसकी देखभाल cardiac plexus हृदय स्नायु जाल द्वारा की जाती है। तो, cardiac plexus हृदय स्नायु जाल का हिस्सा हृदय की देखभाल कर रहा है। चूँकि cardiac plexus हृदय स्नायु जाल में कई सब-प्लेक्सस होते हैं। जिनमें से चार को छोड़कर बाकी, यानी हृदय को बारह उप-जाल मिले हैं। जिनमें से आठ दिल की देखभाल कर रहे हैं। शेष चार, अन्य चीजों की, मेरा मतलब है, इन सभी चीजों का मिश्रण है, उनमें से कुछ दिल की देखभाल कर रहे हैं और उनमें से कुछ दिमाग की देखभाल कर रहे हैं।
लेकिन यह ज्योत तुम्हारे हृदय में है, हृदय के अंग में है-जाल में नहीं। स्नायु जाल कुंडलिनी के कार्य क्षेत्र के लिए है। लेकिन कुंडलिनी इस तरह चलती है कि वह बाद में हृदय तक जाती है और बोध घटित हो जाता है। चिंगारी वहीं से शुरू होती है।
और जब हम आपकी कुंडलिनी को सहज योग के माध्यम से ऊपर उठाते हैं, तो इस तरह से प्रणाली का पालन किया जाता है, एक निश्चित शर्त पूरी होने के कारण कुंडलिनी उठती है। आपकी सुषुम्ना में एक जगह रिक्तता है, जो बाहर भी प्रदर्शित है कि, हृदय के नीचे वेगस तंत्रिका अचानक समाप्त हो जाती है। और महाधमनी जाल तक, एक शून्य है। यदि कोई डॉक्टर है तो
वह समझेगा।
इस शून्य को उसी ईश्वरीय प्रेम से भरना है। यदि कोई व्यक्ति, जिसने स्वयं या अपने अस्तित्व के माध्यम से दिव्य प्रेम का प्रवाह पाया है, तो ऐसा व्यक्ति आपकी खोज यात्रा के लिए उस प्रेम, उस प्रेम के जल को बहा सकता है।
सहज योग की यही शर्त है। इसलिए ऐसा व्यक्ति जिसे बोध प्राप्त नहीं है वह ऐसा नहीं कर सकता। यहाँ तक की एक आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति भी ऐसा करने में सक्षम नहीं हो सकता है। क्योंकि उसे उस दिव्य प्रेम की एक विशिष्ट अवस्था में होना चाहिए ताकि वह आत्मसाक्षात्कार दे सके।
उदाहरण के लिए, हमने यहां और विदेशों में हजारों लोगों को जाग्रति और आत्मसाक्षात्कार दिया है इतनों को कि मुझे नहीं पता कि कितने हजारों हैं। लेकिन उनमें से अभी तक केवल ग्यारह लोग ही आत्मसाक्षात्कार दे पाते हैं। और वे आत्मसाक्षात्कार देने की तकनीक जानते हैं और लोगों को बताते हैं कि इसे कैसे बनाए रखना है।
इन पांच वर्षों में केवल ग्यारह। जिस दिन मेरे पास तुम जैसे हजार हो, कोई समस्या नहीं।
मुझे धर्म और अधर्म के बीच युद्ध लड़ने के लिए एक हजार हाथ चाहिए। धर्म की स्थापना की जा सकती है। लेकिन सहज योग की एकमात्र समस्या यह है कि आपको पूरी तरह से मुक्त और स्वतंत्र होना चाहिए। और यह कि आपको इसे अपनी इच्छा से चुनना होगा। आपकी इच्छा का अंत तक सम्मान किया जाएगा। यदि आपके पास इसे पाने की कोई इच्छा नहीं है, तो आप इसे पा नहीं सकते।
यह कोई प्रलोभन या मंत्रमुग्धता नहीं है जिसके द्वारा मैं इसे कर पाती। तो स्वाभाविक रूप से, इसे आपकी इच्छा के अनुसार क्रमानुसार, धीरे-धीरे काम करना होगा। यदि आपमें इच्छाशक्ति नहीं है तो भी मैं आपका सम्मान करने जा रही हूं क्योंकि एक मां अपने बड़े हो चुके बेटे का सम्मान करती है। इसे पाने का फैसला आपको करना है। यह आपकी इच्छा पर निर्भर है, आपको अनुभव मिलता है और आप इसके बारे में आश्वस्त हो जाते हैं। और एक बार जब आप इसे प्राप्त कर लेते हैं, तो आपके मन में कोई संदेह नहीं रह जाता है। आप जानते हैं कि।
क्षमा करें? [अश्रव्य/विधि के बारे में प्रश्न]।
श्री माताजी: अब, इसमें? भिन्न-भिन्न तरह के लोग हैं और अलग-अलग तरह की चीजें उन्होंने अपनी कुंडलिनी के साथ की हैं। मुद्दा यह है कि आपने अपनी कुंडलिनी को किस स्थिति तक ठीक रखा है। यह बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह कई जगहों पर गिरती है। हमने देखा है, हम इसे ऊपर खींचने की कोशिश कर रहे हैं और यह नीचे जा रही है।
लेकिन आपको कुछ नहीं होगा। आपको कुछ पता नहीं चलेगा। अब जो तरीका अपनाना है, बाद में मैं आपको बताती हूं कि उस क्रम में मैं आपको बताऊंगी।
अब, कौन सी विधि का पालन किया जाना है यह आपका काम नहीं है। आपका काम नहीं है। यह ईश्वरीय प्रेम द्वारा स्वयं ही किया जाना है। आपको चिंता क्यों करनी चाहिए? आपने कभी रचना करने की मांग नहीं की थी। आपने यह सब सिरदर्द कभी नहीं माँगा था। आपको इन बातों की चिंता क्यों करनी चाहिए? परमात्मा को खुद इसकी देखभाल करने दो।
लेकिन, हमारी अज्ञानता में, जैसे की मनुष्य हैं, उनमें से अधिकांश बहुत ही अज्ञानी लोग हैं। वे बहुत पढ़े-लिखे हो सकते हैं। हमें लगता है कि हम दुनिया का बोझ अपने सिर पर ढो रहे हैं। एक अन्य दिन, जैसा कि मैंने आपको एक चुटकुला सुनाया, कि कुछ ग्रामीण जो विमान से जा रहे थे। उन्हें कहा गया था कि इतना अधिक सामान न ले जाएं। जब उन्होंने अपनी सीट ली, तो उन्होंने सारा सामान अपने सिर पर रख लिया। और जब उनसे पूछा गया, “आप अपने सिर पर सामान क्यों रख रहे हैं?”, उन्होंने कहा, “ओह, हम हवाई जहाज का वजन कम करने की कोशिश कर रहे हैं”।
जिसने तुम्हें बनाया है, जो सब कुछ कर रहा है, वो जो तुम्हारे हृदय को धड़कन दे रहा है, वह हर पल हर मिनट तुम्हारी सांसों की देखभाल कर रहा है। तुम क्या कर सकते हो? एक बीज से एक पौधा उत्पन्न करने के लिए आपके पास कौन सी विधि है? कोई एक? मैं कहती हूँ, कोई एक। मनुष्य के पास कुछ भी जीवंत करने का कोई विधि\तरीका नहीं है।
लेकिन, हमारी अज्ञानता में, हम सोचते हैं कि हम कुछ कर रहे हैं। जो भी हो, हम कुछ भी नहीं कर रहे हैं। हमें परमात्मा का साधन\उपकरण बनना है। इसलिए हम पृथ्वी पर पैदा हुए हैं। और खुद सहज योग का अर्थ यही है कि सहज, अर्थात, आपके साथ जन्म लेना।
अब, क्या आप जानते हैं कि आप अपने भोजन को पचाने के लिए क्या करते हैं? कुछ भी तो नहीं। हम अपने दिल को धड्काने के लिए क्या करते हैं? कुछ भी तो नहीं। उसी तरह आप बोध प्राप्त करने के लिए भी कुछ नहीं करते हैं। दरअसल, यह एक सच्चाई है।
और मैं क्या करती हूँ? मैं सिर्फ तुमसे प्रेम करती हूँ। बस इतना ही। अगर मैं कहूं कि मैं तुमसे प्रेम करती हूं, तो आप सोच सकते हैं कि यह एक सापेक्ष शब्द है, लेकिन ऐसा नहीं है। यह धूप की तरह है। जैसे आपके उपर सूरज चमकता है उसी तरह|
मेरा प्यार तुम पर चमकता है। और तुम्हारे अस्तित्व में प्रेम उंडेलता है, तुम्हें जड़ताओं से मुक्त करता है, और वह शून्य भर जाता है, और कुंडलिनी उसकी महिमा में उठती है।
लेकिन अभी तक, अन्य सभी तरह के कुंडलिनी जागृति के बारे में आपने सुना होगा, आप बस उन्हें भूल जाईये |
[अश्रव्य/कोई पूछता या टिप्पणी करता है]।
ओह, बस भूल जाओ। वे इतने भ्रमित हैं, इस हद तक। आपने शायद बहुत, बहुत बड़ी-बड़ी किताबें पढ़ी होंगी, मुझे पता है। कितने लोगों ने लिखा है, और मैं उन पर हंसती थी।
अब, कुछ, वे इतने भ्रमित हैं कि उन्हें पता नहीं है कि मूलाधार- मूलाधार चक्र से बहुत अलग है। बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु आपने सामने रखा है। काश मैं आपको बता पाती क्योंकि आप सभी परिपक्व लोग हैं।
मूलाधार वह coccyx पुच्छास्थि है जहां कुंडलिनी मां बैठी है; तुम्हारी पवित्र माँ बैठी है। माँ पवित्र वस्तु है। आप पहले से ही उत्कृष्ट हैं। आपको विशिष्ट नहीं होना है। जो लोग कामवासना से विशिष्टता प्राप्ति की बात करते हैं, वे मूर्ख लोग हैं, उन्हें पता नहीं है। वहां बैठी माता आपको पहले से ही प्राप्त हैं, बस इस छोटी सी घटना की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
मूलाधार चक्र ही एकमात्र ऐसा चक्र है जो मेडुला ऑबोंगटा के बाहर है और एक ऐसे बिंदु पर बैठा है जहां से यह आपके यौन क्रिया को भी नियंत्रित करता है। यौन क्रिया कुछ इस प्रकार की है जैसे हमारे घर में एक आउटलेट है, “मोरी” (अर्थ सिंक)। उस ऊर्जा का थोड़ा सा भाग वहां प्रवाहित होता है और यह मूलाधार चक्र में बस जाता है। बस। जब हम पानी पीना चाहते हैं, तो क्या हम उस मोरी से पानी निकाल कर लेते हैं और उस पानी को वहीं रख देते हैं – भले ही हमारे पास पीने के लिए पानी न हो? आप सेक्स के माध्यम से इस तरह से उत्थान कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
सेक्स का कुंडलिनी से कोई लेना-देना नहीं है, मैं आपको आश्वस्त कर सकती हूं। इसके विपरीत, जो लोग ये हथकंडे अपनाते हैं, वे अपनी माँ के साथ सेक्स करके वे अपनी माँ का इस हद तक अपमान कर रहे हैं कि वह नाराज़ और क्रोधित हो जाती है। और उसका गुस्सा जो आपके अनुकंपी तंत्रिका तंत्र पर रेंगता है, आपको चिल्लाने, चीखने, कूदने और हर तरह की चीजें करने के ये सभी भयानक अनुभव देता है।
वो तुम्हारी माँ है। एक भारतीय के रूप में, आप समझ सकते हैं कि एक माँ क्या है अब जबकि फ्रायड एक अन्य राक्षस था जिसने मनुष्यों के बारे में इन सभी निरर्थक बातों का प्रचार किया। वह केवल कामेच्छा के बारे में जानता था, उसे मनुष्य के बारे में पूरा ज्ञान नहीं था। उन्होंने सिर्फ कामेच्छा पर चर्चा की। और उसने कुंडलिनी को कामेच्छा के साथ, भ्रमित किया, और वह इन सभी दबी हुई भावनाओं के बारे में बात कर रहा है जो कि कामेच्छा प्रकट करने और अभिव्यक्ति के अलावा और कुछ नहीं हैं। कामेच्छा उस तरफ का एक हिस्सा है जिसे हम पिंगला नाड़ी कहते हैं।
उन्होंने इस बारे में बात कर अमेरिकी दिमाग को बर्बाद कर दिया है. और बेचारी अमेरिकी माताएं इसके नीचे पूरी तरह से कुचली जाती हैं। कम से कम भारत में, भगवान का शुक्र है, हमें यह समस्या नहीं है। हमारे पास कई अन्य समस्याएँ हैं लेकिन, यह नहीं है।
अमेरिकियों ने अपनी बहुत सी समस्याओं का समाधान कर लिया है और अब वे बोध प्राप्ति के कगार पर हैं। लेकिन एकमात्र समस्या यह श्री फ्रायड है जिन्होंने अपनी मां के बारे में गलत विचार उनके दिमाग में डाल दिए हैं। अगर वह नहीं होता, तो यह एक अद्भुत जगह है और खूबसूरत लोग सिर्फ आत्मसाक्षात्कार की तलाश में हैं। बोध प्राप्ति करने के बारे में।
तो, हम भारतीय के रूप में समझते हैं कि हमारी मां क्या है और उस पर सेक्स डालने का क्या तात्पर्य हैं। युंग को छोड़कर, जो सही शिष्य था, जिसने कई बार उसके कई दावों का खंडन किया है और इस तरह के रवैये फ्रायड के एकतरफा रवैया के खिलाफ किताबें लिखी हैं। लेकिन युंग को कम ही लोगों ने पढ़ा है। यही त्रासदी है।
लेकिन जैसा है, अब यह गलत प्रकार की कुंडलिनी साधना है, जैसा कि वे इसे कहते हैं। वे कभी क्रोधित नहीं होती। आप नहीं जानते कि वह कितना प्यार करती है। वह तुम्हे मुझसे ज्यादा प्यार करती है। जब मैं आपकी कुंडलिनी को ऊपर उठाने की कोशिश करती हूं, तो वह कहती है कि पहले मेरे बच्चे को ठीक करो। यह मेरे बच्चे की पिछले जन्म की समस्या है। यह मेरे बच्चे की इस जन्म की समस्या है। शारीरिक रूप से यह समस्या है। क्या आप कृपया पहले बच्चे का इलाज करेंगी? तो, मुझे खुशी-खुशी तुम्हारा इलाज करना पड़ता है, नहीं तो वह सामने नहीं आएगी।
[अश्रव्य/कुंडलिनी की स्थिति के बारे में प्रश्न]।
अब, मेडुला ऑबोंगटा में उसकी स्थिति त्रिकोणीय हड्डी में coccyx पुच्छास्थि है, जहां वह साढ़े तीन कुंडलियों में बैठती है। जिसे बाद में, जब आपको आत्मसाक्षात्कार हो जाता है और एक निश्चित अवस्था में चले जाते हैं, आप भी देख सकते हैं। और जब अपने परानुकंपी के माध्यम से आपको यह प्राप्त हो जाए तब , आप अपनी अनुकंपी पर जा सकते हैं और इन सभी चीजों को देख सकते हैं।
वे इतने भ्रमित हैं, यदि आप उनकी पुस्तकें पढ़ते हैं, तो क्या आपको नहीं लगता कि वे बहुत अधिक भ्रमित हैं? उनके स्थान निरूपण और उन सभी चीजों के बारे में जिनके बारे में वे बात करते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि मूलाधार चक्र यहाँ है और कुछ कहते हैं कि यह वहाँ है। ऐसे कैसे हो सकता है? सत्य केवल एक है।
[अश्रव्य/तांत्रिक?]
तांत्रिक दूसरे प्रकार के हैं, मुझे नहीं पता कि उन्हें क्या कहा जाए। वे खुद को और पूरी दुनिया को नुकसान पहुंचा रहे हैं। और उन्हें बोध प्राप्त होने में युगों लग जायेंगे। युग। यह एक पाप है जो वे कर रहे हैं। सभी तांत्रिक।
प्रेम के बिना शक्ति क्या है? प्रेम के बिना कोई शक्ति नहीं है। तांत्रिकों को नहीं पता कि वे कहां हैं, क्या कर रहे हैं। वे बस यह कर रहे हैं। अब, जहां तक कुंडलिनी का संबंध है, मैंने उस विषय को कवर कर लिया है। अब, तांत्रिकों के बारे में, जैसा कि वे आए हैं, मुझे कामेच्छा के बारे में बात करने दो क्योंकि वह रुचि रखते हैं। लेकिन फिर ध्यान का क्या? क्या हमें तांत्रिकों के बारे में बात कल करनी चाहिए?
सभी: कल।
श्री माताजी : कामेच्छा पर चूँकि हमारे पास अनुभव होना चाहिए, यही मुख्य बात है। चूँकि ध्यान सबसे महत्वपूर्ण है। आत्मसाक्षात्कारी, जिन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त है, वे बोध के महत्व को समझते हैं। चूँकि बातचीत बातचीत है, पढ़ना पढ़ना है और परमात्मा दिव्य है। आप अपने विचारों या पढ़ने से वहां नहीं पहुंच सकते। इसके विपरीत, जिन्होंने बहुत अधिक पढ़ा है, मेरे लिए उन्हें यह समझाना बहुत कठिन है कि यह सब “अविद्या” (झूठा ज्ञान) है।
आप अपनी माँ को शब्दों में कैसे बयां करते हैं? आपके पास मौजूद भौतिक मां का वर्णन करने के लिए भी क्या आपके पास पर्याप्त शब्द हैं ? फिर तुम उस परमात्मा को कैसे समझ सकते हो, जो सभी माताओं की माता है। उस प्रेम को महसूस करना और उस प्रेम के सागर में कूदना जो ज्ञान है, पूर्ण ज्ञान और सौन्दर्य यह आप पर निर्भर है।