Seminar Day 1, tricks of false gurus

London (England)

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डॉलिस हिल सेमिनार दिवस 1, “झूठे गुरुओं की युक्तियां”, लंदन (यूके) 27 मई 1979. ऑडियो (टीएम, झूठे गुरु, औद्योगिक क्रांति, मसीह)

श्रीमाताजी: आपके लिए यह कहना ठीक है, क्योंकि वह इसके लिए ही वहां आए थे। वह तो परिपक्व था ही। वह मेरे पास आया, और उसे प्राप्त हुआ। 

सहजयोगी: मैंने पाया कि उसे बहुत सरलता से प्राप्त हो गया। जिस क्षण मैंने आपके चित्र को देखा, मैंने। …. मेरा मतलब है, मैं था…. । ….. टीएम।

श्रीमाताजी: मैं इच्छा है कि उन सभी में कम से कम उतना हो जितना आपके पास है तो यह कार्यान्वित हो जायेगा।

सहजयोगी: ठीक है। … 

श्रीमाताजी: हाँ…. 

सहजयोगी: और चौबीस घंटे के भीतर ….. 

श्रीमाताजी: हाँ …. 

सहजयोगी: यह अकस्मात चैतन्य की लहर है। …. 

श्रीमाताजी: हमें उन्हें बचाना है। आप देखिए, टीएम पर…., मेरा ध्यान उस ओर बहुत अधिक है, बहुत अधिक।

पिछली बार हमने उस “दिव्य प्रकाश” की समस्या का समाधान किया था। “दिव्य प्रकाश” अब चला गया है। केवल उसका भाई….! आप देखते हैं?

मैं “जिनेवा” गयी थी। मैं टीएम से मिलना चाहती थी, किंतु, आप देखिये, यह वर्षा आरम्भ हुई और वह सब हुआ रात्रि में, हम नहीं गए। हम उस स्थान तक जा सकते थे, यह बेहतर होता, किंतु कोई बात नहीं। तो, उसका, उसका  भाई, मुझे जिनेवा में केंद्र तक ले गया, और कहा, “वह यही है, आपको पता है।” 

मैंने कहा, “ठीक है।”

मैंने बंधन डाल दिया। एक सप्ताह के भीतर ही…., वह अब जेल में है, और अब चौदह वर्ष के लिए! परमात्मा का धन्यवाद है।  

आरम्भ कर दिया। तो यह सब इस प्रकार कार्यान्वित हुआ। इसलिए मेरा ध्यान इन दिनों “टीएम” पर बहुत अधिक है, बहुत अधिक। और यदि यह कार्य कर जाये? इसलिए हम यहाँ हैं।

सहजयोगी: वह रहा होगा और आपके चित्त के साथ, यह कार्य करना चाहिए।

श्रीमाताजी: बहुत अधिक।

सहजयोगी: यहाँ कुछ हफ्ते पहले इसकी शुरुआत हुई थी।…. 

श्रीमाताजी: अच्छा है। यह जागरूकता के माध्यम से कार्य कर रहा है। यदि यह टूट जाता है तो यह पूर्णतया टूट जाएगा। आप देखेंगे। क्योंकि यह एक बुलबुला है, यह सिर्फ एक बुलबुला है, यह चला जाएगा। इसके लिये बहुत खुशी हुई! और ऐसा होना चाहिए।

वास्तव में, आप दीखिये इस “दिव्य जीवन केंद्र” व्यवसाय के होते हुए भी….मैं नहीं जानती कि उनमें से कितने सहज योग में आयेंगे। उस प्रकार से – अच्छा होगा कि यह आपकी जागरूकता के माध्यम से कार्य करे, ताकि आप मेरे पास आयें। 

अन्यथा आप देखते हैं, उस प्रकार, जिसे आप कहते हैं -एक व्यक्ति को बाहर निकाल देने से, यह नहीं हो सकता है। वह अभी भी सहजयोग में आ सकते हैं। मैं नहीं जानती।

क्योंकि ग्रेगोइरे कह रहा था कि वह “जिनेवा” में भी कुछ आरम्भ करने जा रहा है। चलिए, देखते हैं कि क्या यह कार्य करेगा।

सहजयोगी:  हमारे भविष्य के कार्य के माध्यम से…..क्या यह एक अत्यंत मजबूत स्थिति। ….. हमारे कार्य के माध्यम से, हम हैं … बहुत अधिक शक्तिशाल, जब हम एक निश्चित स्तर पर आ जाते हैं।

श्रीमाताजी: देवदूत स्तर।

सहजयोगी: हमारे कार्य में और हम एक दूसरे के साथ घुल-मिल जाते हैं “स्विट्जरलैंड” में। थोड़े-थोडे लोगों के साथ हम कार्य कर रहे हैं, हम उन्हें सहजयोग की ओर आकर्षित करते हैं- तथा हम में से हर एक। 

श्रीमाताजी: हाँ, मेरा मतलब है कि आप का जीवन यह प्रतिबिम्बित कर देगा कि देखिए आप भिन्न हैं। अब, डगलस, डगलस को ही देखिये। यदि डगलस ने आपको प्रभावित किया है, तो आप कल्पना कर सकते हैं। डगलस आपको बता सकता है कि जब वह आया तो उसकी हालत क्या थी। उसकी अवस्था बहुत गंभीर थी, क्योंकि इस बेचारे व्यक्ति को वाकई प्रताड़ित किया गया था और बहुत परेशान किया गया था।

उसका बहुत बुरा हाल था, पूरी तरह से फँसा था, जब वह मेरे पास आया। उससे पूछो, वह आपको बताएगा। और अब उसने इस शक्ति को पा लिया है जो दर्शाती है वह कितना महान है। देखो, वह पूर्णतया लाचार था, आप नहीं जानते। 

उस एक कारण से हमारे पति, डगलस से बहुत अधिक प्रभावित हैं। वह कहते हैं, आप उसे जो भी बताती हैं, वह सिर्फ आज्ञा का पालन करता है। वह कभी प्रश्न नहीं करता। 

मैंने कहा, “यह कुछ बात है।” 

वह कहते हैं, “उसे कभी बुरा नहीं लगता।”

तो आप देखिए, एक दिन वह काफी देर तक टीवी देख रहा था। मैंने कहा, “डगलस, आपकी आँखों के लिए अच्छा नहीं है। देखो तुम्हारी आँखें बहुत खराब हैं।” तुरंत उसने इसे बंद किया, चला गया। 

उन्होंने कहा, “उसने इस विषय में सोचने के लिए एक क्षण भी नहीं लिया और उसने बस इसे बंद किया और चला गया।“ 

तो, उन्होंने कहा, “किंतु क्या है जो उससे ऐसा करवाता है?” 

मैंने कहा, “वह केवल एक बात जानता है कि मैं यह उसकी अच्छाई, संपूर्ण भलाई के लिए करती हूँ।”

यही कारण है कि उन्होंने कहा, “तो उसे कभी बुरा नहीं लगता, आप उससे जो भी कहें।“ वह  इस से काफी आश्चर्यचकित हैं।

यह आत्मसमर्पण है, मैं कहूँगी। वह मार्ग जिस पर उसने उस शक्ति को पाया है। यही एक मात्र मार्ग है वास्तव में, स्पष्ट कहूँ तो। इसी प्रकार आप उसे पाते हैं। कोई और रास्ता नहीं है, इसके सिवा।

अब यह कौन हैं? आपका … क्या आप पहले से ठीक हैं? आपने कितने वर्ष दिए? पांच वर्ष या आठ वर्ष हठ योग के लिए? आठ वर्ष? 

सहजयोगी: 5 वर्ष।

श्रीमाताजी: पांच वर्ष? 

श्रीमाताजी: क्या, पांच वर्ष?

सहजयोगी: हाँ, पांच वर्ष।

श्रीमाताजी: यह एक और समस्या है, आप देखिए, यह हठयोग। बहुत गलत है।

सहजयोगी: हठ योग। 

श्रीमाताजी: हाँ, पूर्णतया गलत। आप जानते हैं, यह हठ योग नहीं है। इसमें “हा” कहाँ है और “ठा” कहाँ है? कुछ नहीं।

सहजयोगी: मैं शाकाहारी हूँ। ….

श्रीमाताजी: हे ईश्वर! अब मैं इसे पूर्णतया रोकने जा रही हूँ, कोई भी हो –

आप देखिए, कल, वह बूढ़ी औरत कह रही थी, “माँ, क्या अब शाकाहारी होना गलत है?”

 मैंने कहा, “मेरा मतलब यह नहीं है!” किन्तु जो शाकाहारी नहीं हैं, आप उन्हें शाकाहारी बनने के लिए मजबूर क्यों करें? मैं समझ सकती हूँ, आप देखें, कुछ माँस अच्छे नहीं हैं। जैसे, मैं कहूँगी -घोड़े का माँस, देखिए, अच्छा नहीं है। जब कोई बड़ी चीज़ होती है, आप जानते हैं, यहाँ तक कि गायों का माँस दांतों के लिए बहुत नुकसानदायक है, आप देखें। इस प्रकार आप यहाँ अपने दांत खो देते हैं। यदि मैं गलती से भी गाय का माँस खाती हूँ, तो तुरंत, मुझे सूजन आ जाती है। 

 पूर्ण चैतन्य यहाँ मेरे दांतों से बहने लगता है। मेरे सारे मसूड़े सूज जाते हैं। कई बार मेरे होंठ भी। जब मैं लेती हूँ। जब मैं सूप लेती हूँ, वैसे ही सूज जाते हैं।

तो इसका अर्थ है कि “फाइबर” में कुछ ऐसा होता है जो आपके दांतों के लिए सही नहीं है, जो खराब कर देता है या फिर चैतन्य के लिहाज से हो सकता है। मैं नहीं जानती यह जो कुछ भी है। किंतु इन सभी में घोड़े का माँस सर्वाधिक खराब है। अब वह लोग घोड़ों का माँस खाते हैं, “यूगोस्लाविया” में भी? 

सहजयोगी: हाँ, मैं “यूगोस्लाविया” में रहता हूँ।

श्रीमाताजी: हाँ। इसीलिए मैं आपको बताना चाहती हूँ कि “यूगोस्लाविया” में मैं गयी और एक सलामी खाई, और मैंने कहा, “यहाँ पर इस सलामी के साथ क्या बात है?” तो, उन्होंने मुझे बताया। 

“आप ने इसे किस से बनाया? 

उन्होंने कहा, “घोड़े। “  

“घोड़ों का माँस? ओह, मैं इसे समझ नहीं सकी। 

और वह कुछ भी खाते हैं। जैसे चीन में लोग सांप खाते हैं, आप देखिये। 

एक व्यक्ति थे, वैज्ञानिक, अनुसंधान संस्थान के प्रमुख, और उन्होंने कहा, “आपको पता है कि हम इतने बुद्धिमान क्यों हैं?”

 मैंने कहा, “क्यों”? 

उन्होंने कहा, “आप जानती हैं कि बचपन में मैंने कम से कम छप्पन सांप खाए होंगे।” 

मैंने कहा, “यही कारण है कि आप समझदार हैं?” 

उन्होंने कहा, “हाँ, सर्प बहुत तेज बुद्धि के होते हैं।”

मैंने कहा, “किंतु आप सर्प नहीं बनना चाहते।”

उन्होंने कहा, “किंतु, मैं बुद्धिमान बनना चाहता हूँ।”

श्रीमाताजी: साँपों को खाना अनुचित है। मेरा मतलब है, सब को यह समझना चाहिए, कि वह किस प्रकार के होते हैं। यह मैं आपको दक्षिण “कोरियाई” लोगों के विषय में बता रही हूँ। 

वह दक्षिण “कोरिया” से हैं। उनहोंने इतने सांप खाए हैं, आप देखिए। और उन्होंने कहा, “तो अमरीकी तभी ठीक हो सकते हैं, यदि वह सांप खाना आरम्भ करें!”

“देखिए, वह सब ठीक हैं, वह बुद्धिमान हैं, किंतु वह सांपों की तरह नहीं हैं। यही कारण है कि वह हर स्थान पर असफल हो रहे हैं। यदि वह सांप खा सकते हैं, तो वह ठीक हो जाएंगे!”

तो, लोगों का इस तरह का विश्लेषण है। तो, यह घोड़ों के माँस का आपको त्याग करना है। ठीक है? 

किंतु आपको माँस खाना है। अति पर जाने की आवश्यकता नहीं है। जैसे, एक ओर आप घोड़ों का माँस, बाघ का माँस, हर माँस खाएंगे और दूसरी ओर आप कुछ भी नहीं खाते। आप देखो, मैं मुर्गियों के साथ क्या करूँगी, आप मुझे बताएं? आप उन्हें क्यों बचाना चाहते हैं? क्या मैं उन्हें उनके दो टांगो के साथ आत्म-साक्षात्कार दे सकती हूँ? मुर्गियों को बचाने की क्या आवश्यकता है? मनुष्य को बचाओ। ….. 

श्रीमाताजी:  एक और शाकाहारी यहाँ हैं। आप अभी भी हैं?

सहजयोगिनी: नहीं, मैं कभी नहीं थी, सच में।

श्रीमाताजी: यह तो अच्छा है। आपको केवल करना है।

सहजयोगिनी: मैं इस विषय में सोच रही थी, जब मैं आपसे मिली थी। किंतु सच में, मैंने यह कभी नहीं किया।

श्रीमाताजी: मेरा मतलब है, उन्होंने कहा, “माँ, हम पशुओं के प्रति क्रूर हैं।” ऐसा ही कुछ, आप देखते हैं। मैंने कहा, अब जानवरों की चिंता मत करें। आप देखिये, कुछ भी नहीं मरता है।”

निसंदेह, आप इसे बेहतर तरीके से कर सकते हैं। क्रूर होकर नहीं, आप मशीन से कर सकते हैं, ऐसा कुछ। किंतु आपको उन पर जीना है। आप देखें, शरीर को उनके माँस पर जीना है। उसका कुछ हिस्सा होना चाहिए। 

अब शाकाहार का दूसरा चरम यह है, यदि आप देखेंगे, तो आपको पता चल जाएगा कि यह क्या है। जैसे वहाँ जैन धर्म है। मैं नहीं जानती कि क्या आपको भारत में जैनियों के विषय में जानकारी है? क्या आप उनसे कहीं मिले? 

नहीं? परमात्मा का धन्यवाद है!

देखिए, वह क्या करते हैं – वह एक झोपड़ी में गाँव के सभी खटमल जमा करते हैं। ठीक है? और वह एक ब्राह्मण को वहाँ रख देते हैं और उसे बहुत सारा धन देते हैं। कई बार वह उसे एक घर भी देते हैं, बाद में, यदि वह उस कठिन परीक्षा से जीवित बाहर आता है। 

और वह सब कुछ एक झोपड़ी में रख देते हैं, और ब्राह्मण को भी, और उसे बंद कर देते हैं। और खटमल, उस ब्राह्मण के खून पर पलते हैं। वह बेचारा ! आप देखिये। और फिर वह उसे एक घर या पैसा या कुछ और देते हैं। और यह सब बड़ा महान माना जाता है– कौन सा काम?– दान करना, आप देखिये !

और हर कोई ब्राह्मण को देने के लिए पैसे का ढेर लगा देगा, कि वह इन खटमलों को अपना खून दे। अब मैं इन खटमलों ….  के साथ क्या करूँ? यह सभी जैन लोग खटमल के अलावा कुछ भी नहीं बनेंगे, मैं आपको बता सकती हूँ, अगले जीवन में! यही उनके लिए देनदारी है। ऐसे मूर्ख लोग। वह क्यों नहीं समझते?

विकास की प्रक्रिया में एक व्यक्ति, मनुष्य, सबसे उच्च है। परमात्मा ने उन्हें कीड़े की अवस्था से इस अवस्था तक लाने में कितना कार्य किया है? और अब एक ब्राह्मण को एक खटमल बनाने के लिए… देखिए, आपको उनमें से कम से कम अरबों की आवश्यकता होगी। तो, यह बात है! उन्हें अनुपात की कोई समझ नहीं है, यह शाकाहारी … !

मैं यह नहीं कहती कि आप को लालची होना चाहिए। मेरा मतलब है, आप देखें , मुझे इसके सभी पक्षों को बता देना चाहिए क्योंकि लोग दूसरी सीमा तक जाने लगते हैं। जैसे, आप देखेंगे, कुछ भूखे मर रहे थे और उपवास कर रहे थे। तो मैंने कहा, “सहजयोग में कोई उपवास की अनुमति नहीं है। आप उपवास करने के लिए नहीं हैं”। इसमें भी मनुष्य ने बहुत सी विचित्र बातें की हैं। 

आप जानते हैं, यह सब तांत्रिकवाद है। यह वास्तव में आश्चर्य की बात है, उपवास। यदि कोई आपको व्रत रखने के लिए कहता है तो उसके मुख पर वास्तव में एक मुक्का मारें। वह इसी के लायक हैं। यह तो उसका वास्तव में एक शैतान होने का संकेत है- जो आपको उपवास के लिए कहता है। 

आप देखिये, उसे स्वयं उपवास करना चाहिए, हर किसी को उपवास बताने की स्थान पर! यह बहुत बुरी   बात है, इस प्रकार से उपवास करना। निसंदेह, आप अपने स्वास्थ्य या कुछ और के लिए उपवास कर सकते हैं, किंतु परमात्मा के नाम पर उपवास करना, इतना निरार्थक है। 

मैं आपको बताती हूँ कि यह कैसे कार्य करता है। मेरा तात्पर्य है कि यह न केवल मूर्खता है, किन्तु यह क्रूर भी है। लोगों को भूखा मारना और उनसे उपवास करवाना, यह बहुत ही क्रूरतापूर्ण है, आप देखिये कि जब वह भूखे पेट हैं। मैं आपको बताऊँगी कि वह ऐसे ही भारत में उपवास कैसे करते हैं।

जैसे यह भयानक ब्राह्मण भारत में है। यह सभी तथाकथित ब्राह्मण, आप देखिए यह सभी असुर हैं। वह सभी राक्षस, ब्राह्मण के रूप में जन्में हैं, इन मंदिरों से होने वाली आय पर जीवन-यापन करते हैं, आप देखिए।

एक दिन यह मंदिर उन पर गिरने वाले हैं और इन्हीं मंदिरों के नीचे वह मारे जायेंगे- जहाँ उन्होंने लोगों से पैसा कमाया है। किंतु इसके अलावा – जो कुछ वह करते हैं, यह उन्होंने लोगों पर आक्रमण करने का एक नया तरीका आरम्भ कर दिया है। जैसे, उनके पास उपवास की प्रथा है।

अब व्रत की प्रथा में ऐसा होता है- जिस दिन किसी देवता का जन्म हो, उस दिन वह कहते हैं, उपवास अवश्य करें।  

जरा सोचिए। अब मान लीजिए कि किसी भी भारतीय घर में, या किसी भी अंग्रेजी घर, या कहीं भी, परिवार में एक नवजात शिशु का जन्म हुआ। तो कैसा उल्लास! देखिये हर कोई इसका उत्सव मनाता है और जश्न मनाता है। कल्पना कीजिए कि जिस दिन ईसा मसीह का जन्म होता है, आपको उपवास करने के लिए कहा जाए। मेरा तात्पर्य है कि वह तो आनंद का दिवस है। निसंदेह, यहाँ एक और अति है किअंत में वह सभी शराब खाने में होते हैं, आप देखते हैं!

इसलिए मैं चाहती हूँ कि आप सभी अतिशयता से बचें। क्योंकि यह उचित बात नहीं है! मैं कहना चाह रही हूँ कि जिस दिन, जैसे कि गणेश जी का जन्मदिन हो, उस दिन वह उपवास करेंगे! ठीक? तो आप उपवास आरम्भ कर देते हैं। तो क्या होता है, गणेशजी आपे से बाहर हो जाते हैं। 

यह पागलपन है। अब पूर्णतया एक यथार्थ पूर्ण कहानी, मैं आपसे कहूँगी। पूना से एक महान सहजयोगी थे और उन्हें “प्रोस्टेट” ग्रंथि की समस्या हो गई और वह श्रीगणेश के महान उपासक थे। वह मुझसे मिलने आये। और मेरा प्रसाद चना है। 

आपने देखा होगा कि मैं चने को प्रसाद के रूप में देती हूँ। आप नहीं जानते? क्या आज आपके पास थोड़ा चना है? नहीं? क्या आप….. ठीक है? चलो लेते हैं। तो चना, मैंने आज आपके लिए भी चना तैयार किया है। तो इस चने को मैंने बाहर निकाला और मैंने कहा कि “मेरा प्रसाद लीजिये”। उन्होंने इधर-उधर देखा, क्योंकि उस दिन आपको कोई अनाज नहीं खाना चाहिए। तो- अनाज के रूप में नहीं बल्कि चना, प्रसाद के लिए उपयोग की जाने वाली वस्तुओं में से एक नहीं है? 

तो दूसरे साथी ने कहा, “माँ, आज के दिन वह कुछ नहीं खाते।”

श्रीमाताजी: “क्यों?” 

उन्होंने कहा, “क्योंकि आज चतुर्थी है, गणेशजी का जन्म है।

 मैंने कहा, “क्यों? गणेश के जन्म पर क्यों नहीं”?” 

“क्योंकि ब्राह्मणों ने ऐसा कहा है।”

 मैंने कहा, “सच में? इन असुरों को देखो! यह गणेश जी का अपमान करने का सबसे अच्छा तरीका है। 

तो मैंने कहा, “आप आज इसे खाइये, क्योंकि मैं आपसे कहती हूँ।” और, कल्पना कीजिए कि उनका “प्रोसटेट” निकल गया। वह पूर्णतया ठीक हो गए। गणेशजी उनमें जागृत हो गए। इस बात पर गणेशजी क्रोधित थे कि उनके जन्मदिवस को मनाने के स्थान पर वह उपवास कर रहे हैं। 

तो इसलिए मैं कहती हूँ कि यह असुर हैं। उन्होंने इतने सारे तरीके खोज लिए हैं! आप देखिए, इन सभी असुरों ने हिंदू धर्म के अनुष्ठानों में प्रवेश कर लिया है। और ऐसी अनेकों अनेक धार्मिक क्रियायें हैं, जिनमें उन्होंने यह चीजें डाल दी हैं।

सहजयोगी: ईसाई धर्म… 

श्रीमाताजी: ईसाई धर्म में भी, उन्होंने ऐसा किया है। किंतु, आप देखें, ईसाई धर्म की एक बात यह है कि उन्होंने इतना जान-बूझकर ऐसा नहीं किया, क्योंकि शायद वह भूत-ग्रस्त थे। किंतु भारतीय असल में हैं, आप जानते हैं। वह ऐसे ही लोग हैं। वह ग्रसित नहीं हैं। वह असुर हैं। यहाँ ईसाई लोग असुरों के अधीन हैं। इसलिए उनके लिए थोड़ी बहुत क्षमा है।

किन्तु उदाहरण के लिए, जैसा कि मैंने आपको बताया, “वेस्टमिंस्टर” में। 

मैं “कैथेड्रल” के सामने रहती थी। और दोपहर में एक ही गतिविधि होती थी, “बियर” के पीपे अंदर आ रहे हैं और बाहर जा रहे हैं। आप देखिये। मैं आश्चर्यचकित थी। यह गतिविधि गिरजाघर में चल रही है, आप देखिये। सुबह के समय चर्च के लिए सभी का जाना और दोपहर में ,वह सब, पीपा! आप देखिए, ट्रक में आ रहे हैं, उतर रहे हैं और ट्रक में भरे जा रह हैं। मैंने कहा, यह लोग कितने पीपों  का उपभोग करते है? यह पादरी हैं। वह सिर्फ “बीय”र पीते हैं, मुझे लगता है कि वह पानी नहीं पीते!

सहजयोगी: क्या आपने चाय पी?

श्रीमाताजी:  मैं ले चुकी। मैं “कॉफी” ले चुकी। बहुत-बहुत धन्यवाद। नहीं, मैं उसे नहीं पीती। धन्यवाद। …..

सहजयोगी: ….. “बाइबिल” का सार।

श्रीमाताजी: हूँ? 

सहजयोगी: बाइबिल का सार, “पोप” ने ‘बाइबिल” को पुनः लिखा।

श्रीमाताजी: सौ प्रतिशत।

सहजयोगी: हर एक “पोप” ने “बाइबिल” को पुनः लिखा …..।

श्रीमाताजी: काफ़ी हद तक यही है। देखिये, मैंने उसे कभी नहीं पढ़ा, किंतु मैं जानती हूँ। और जो कुछ भी…. , अब उदाहरण के लिए पिछले दिन,  उन्होंने मुझे बताया कि……मैंने कहा, “ यह परोपकारी कार्य क्यों करते थे वह लोग? यह गिरजे … , प्रचार का कार्य?” 

तो, किसी ने मुझे बताया, “उन्होंने किया, माँ, क्योंकि एक बार जब ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाने से पहले, वह लोग कोई तेल लाये थे। कोई बहुत कीमती तेल से उनकी मालिश करनी थी। तो, जूडास ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा, “आप इस तेल को क्यों व्यर्थ करना चाहते हैं? क्यों न इसे बेचकर गरीबों को दे दिया जाए?“

आप समझ सकते हैं। तो, ईसा मसीह ने कहा, “गरीब हर समय आपके साथ हैं, किंतु मैं थोड़े समय के लिए आपके साथ हूँ।”

आप देखिये।  

अब उसमें उन्होंने परोपकारी कार्य आरम्भ किया। मैंने कहा कि, यदि दिव्यता महत्वपूर्ण है और वहीं न हो……   

तो मैंने कहा, “उन्होंने इसका पालन क्यों किया?”

मेरा मतलब है, उन्होंने जो कहा वह यह था कि देवत्व, दिव्य जीवन इन निर्धनों की देखभाल से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। किंतु उन्होंने इसका पालन विपरीत दिशा में किया है। मुझे नहीं पता। मैंने इसे पूरा नहीं पढ़ा है। किंतु कुछ किताबों में अवश्य उन्होंने यह रखा होगा।

सहजयोगी: माँ, उसमें कुछ बहुत डरावना था और जब मैंने इसे पढ़ा, …. 

सहजयोगी :  क़यामत !

श्रीमाताजी: हाँ

सहजयोगी: और अचानक जब मैंने कुछ पढ़ा तो हथेली के बीच में मुझे इतना तीव्र दर्द हुआ।

श्रीमाताजी: वह क्या था? 

सहजयोगी: मैं नहीं जानता, यह ब्रह्मांड के विनाश का वर्णन था। और उस विवरण का प्रतीम एक स्त्री थी। उससे मुझे बहुत दर्द हुआ। मै नहीं जानता क्यों।

श्रीमाताजी: विनाश करने वाली एक महिला थी? 

सहजयोगी: हाँ. 

श्रीमाताजी: देखते हैं कि यह क्या है। मैं इसे देखना चाहूँगी।

सहजयोगी: बाइबिल में, कयामत में, मैं आपको वह अंश दिखा सकता हूँ, मेरे पास है – उसे व्यभिचार का प्रतीक कहा जाता था और वह एक महिला और वेश्या का प्रतीक था। और पहले के दो पन्ने में वह महिला को देवी बता रहे थे।

एक और सहजयोगी: नहीं, बल्कि ….. 

सहजयोगी: हाँ, बिल्कुल। लेकिन मैंने इसे स्वयं देखा है कि उसी वर्णन में दो पृष्ठों के बाद, मुझे इतनी तकलीफ दी कि मुझे यहाँ एक दर्द हुआ। क्योंकि मैं नहीं जानता, शायद उन्होंने बातों को मिला दिया हो। 

श्रीमाताजी: आप देखिए, वह इसे किसी सर्प या वैसे ही किसी के साथ प्रतीकत्व करते तो उचित होता। किंतु एक महिला या किसी और के रूप में नहीं। आप देखिए। क्योंकि स्त्री … , यह बहुत क्रूर है।  परंतु विनाश, कल्कि के माध्यम से आने वाला है।

सहजयोगी: कितनी जल्दी? 

श्रीमाताजी: क्षमा चाहूंगी?

सहजयोगी: कितनी जल्दी? 

श्रीमाताजी: नहीं, इतनी शीघ्र नहीं, यह मत पूछो! क्योंकि तब कोई मुक्ति नहीं होगी! देखिये, यह अंतिम अवस्था होगी, हम उसे अभी नहीं चाहते। चलिए, आप सभी को बचाने के लिए अभी और अधिक समय मिले, ठीक है? तो हम उन्हें अभी नहीं चाहते।

श्रीमाताजी: और कौन है? आपने उसे दे दिया है ?

हमें उससे पहले बहुत कुछ करना है। 

संभवतः, बाइबल में भी, उनके द्वारा प्रस्तावित बहुत सारी चीजें हैं। हाँ, हमें पता लगाना होगा। देखिये, जैसे वह महिलाओं का दमन करना चाहते थे, हो सकता है, हो सकता है, डाल दिया हो। ….  

उन्होंने सभी प्रकार के कार्य किए हैं। इसमें मरियम हैं, और फिर वह उन्हें नीचा दिखाना चाहते हैं। और फिर यह प्रोटेस्टेंट”  सम्प्रदा, आप देखते हैं, उन्होंने मरियम को संत के रूप में स्वीकार नहीं किया। इसमें सभी प्रकार की बातें हैं। और मरियम के विषय में भी बहुत कम लिखा गया है। और यहां – मुझे लगता है कि यह सब बदल देने के कारण, भाषाएँ बहुत रहस्यमयी हो गई है, लोगों के समझने के लिए भी, जिससे भ्रम उत्पन्न होता है।

सहजयोगी: ….. 

श्रीमाताजी: हाँ। मुझे लगता है कि। … 

जूलियो ने मुझे इसे दिया है, क्योंकि सभी ले रहे हैं तो मुझे भी थोड़ा लेना चाहिए।

सहजयोगी: ….. 

श्रीमाताजी: आप देखिए, बाइबिल, पहली बाइबिल जो लिखी गई थी, उसे बदल दिया गया है। वास्तव में, यह बाइबल, ईसा मसीह की मृत्यु के पांच सौ वर्ष उपरांत लिखी गई है। मुझे नहीं लगता कि यह मूलरूप है। यह अचेतन मन के माध्यम से है। यह निर्देशित की गयी है। इन सभी शास्त्रों को अचेतन मन के माध्यम से निर्देशित किया गया है। अचेतन मन अनेक बार प्रकट होता है। लेकिन अब भी किसी प्रकार से वह ऐसा प्रयास करते हैं। 

जैसे इस्लाम में मोहम्मद साहब ने कहा, “अब मैं अंतिम पैगंबर हूँ। अब कोई भी आकर आपको बताने वाला नहीं है”।

आप समझ सकते हैं? वह मात्र लोगों को भयभीत करना चाहते थे कि वह धर्म को अपनाएँ। इसलिए, उन्होंने ऐसा कहा। अब यह इस्लामिक लोग इसका उपयोग ऐसे एक……।”

 पर, कल्पना कीजिए कि कोई व्यक्ति, जो कहता है, “मैं कभी आपके पास नहीं आऊँगा,” और, “मैं ऐसा कभी नहीं करूँगा”, एक पिता के जैसे। आप देखिये, यह भयानक लोग पुनः एक अलग प्रकार से कार्य कर रहे हैं। 

इसलिए उन्हें पुनःआना होगा। मेरा मतलब है कि अवतार हठी नहीं होते। 

महोम्मद ने इस समझ के साथ ही यह कहा होगा कि यह लोग ऐसा करेंगे, क्योंकि यदि मैं उन्हें बताता हूँ तो वह धर्म को ठीक से स्वीकार करेंगे। किंतु वह उन सभी को नशा करते हुए, सभी को गर्त में जाते हुए, परमेश्वर के नाम पर सभी प्रकार के गलत कार्य करते हुए देखते हैं। इसलिए उन्हें वापस आना ही होगा। 

आप हठी कैसे हो सकते हैं? मैं ही दिन में अनेक बार ऐसा करती और कहती हूँ, ’’मैं कभी भी आपसे नहीं मिलूँगी !”

पर मैं चली जाती हूँ। क्योंकि यह प्रेम है। तो आप क्या कर सकते हैं? आप क्षमा कर देते हैं।

…. 

श्रीमाताजी: उन्होंने कहा, “ओह, उनके चैतन्य को देखिए। उनका .. आह, अभी केवल देखिये। 

उनका दाँया ह्रदय पकड़ा है। 

आपको चैतन्य आ रहा है, ठीक से? आपको शीतल लहरियाँ आ रही हैं?

सहजयोगी: हाँ.

श्रीमाताजी: बहुत अच्छा। किंतु वास्तव में ….  हर दिन आप बहुत तेजी से बदल रहे हैं।

सहजयोगी:

श्रीमाताजी: पूर्णतया। मुझे आशा है कि मैं यॉर्कशायर से आपके मित्र को पहचान सकूँगी। अच्छा होगा आप मुझे बता दें। ठीक है? नहीं तो उसे बुरा लग सकता है। किंतु जिस प्रकार से लोगों में परिवर्तन आता है, मैं वास्तव में पहचान नहीं पाती, तो।

श्रीमाताजी:  ….. आप वापस आ गए हैं? वह चले गए? 

सहजयोगिनी:  ,,,, 

श्रीमाताजी:  वही जिन्हें कैंब्रिज जाना था? 

सहजयोगिनी: हाँ, वही।  ……. चली गयी।….

श्रीमाताजी: तो, उन्होंने जल्दी जाने का निर्णय किया। उन्होंने कहा, उनका धूम्रपान कम हो गया, अचानक ही। उन्होंने बहुत कम सिगरेट पी।

किसी ने एक दिन मुझसे पूछा, “इस बार देवत्व की शक्ति इतनी अधिक क्यों है? इतनी कि लोग इसे प्राप्त कर रहे हैं।” 

मैंने कहा, किंतु अन्य ताकतें भी इतनी शक्तिशाली हैं कि आपको इस शक्ति को बढ़ाना होगा, आप देखें। अन्य ताकतें भी इतनी ही मजबूत हैं। आप देखेंगे धूम्रपान, फिर शराब पीना और यह सब, आप देखते हैं, आपके व्यक्तित्व को खराब करती हैं। 

सभी ओर से आप देखते हैं कि कितना अधिक। सोलह भयानक असुरों ने जन्म लिया है, सोलह और छह महिलाएँ जो विख्यात व्यक्ति हैं। भयानक! उन्होंने जन्म ले लिया है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं? कितनी शक्ति की आवश्यकता है? एक राक्षस को मारना एक जीवन में पर्याप्त था। किंतु यहाँ, जरा इसके विषय में सोचिए। और उन्होंने आपके अपने ही अस्तित्व में प्रवेश कर लिया है। तो, भीतर बाहर कितने बल की आवश्यकता है?

श्रीमाताजी: क्या उन्होंने इस मंत्र का उपयोग किया, नरकासुरमर्दिनी, या कुछ और?

सहजयोगी: माफ कीजिए? 

श्रीमाताजी :क्या उन्होंने इसके लिए कोई मंत्र बताया था, इस महेशयोगी के लिए? क्या रुस्तम ने आपको इस महेशयोगी के लिए कोई मंत्र दिया था? 

सहजयोगी: हाँ

श्रीमाताजी: उन्होंने क्या कहा? 

सहजयोगी: हूँ

श्रीमाताजी: नरकासुरमर्दिनी? 

सहजयोगी: हाँ, और, हम्म, सर्वमंत्र। 

श्रीमाताजी: सर्वमंत्रसिद्धि, सर्वमंत्रसिद्धि और नरकासुरमर्दिनी। मुझे लगता है कि यह नरकासुरमर्दिनी मंत्र कहीं भी बहुत अच्छे से कार्य करता है। यही कारण है कि आपने उन्हें शांत कर दिया है। मुझे आशा है कि आप अपने मित्रों को यहाँ लाएंगे।

सहजयोगी: हाँ, माँ. 

श्रीमाताजी: हाँ। यह अच्छा होगा। तो मैं यॉर्कशायर आ जाऊँगी। हाँ, मैं आऊंगी, मैं आ सकती हूँ। हमारे पास जाने का समय है। दो जुलाई, तीन जुलाई को यह सब पुनः। अन्य सभी कार्यक्रमों के अलावा। अब बर्मिंघम का निश्चय हो गया है,  डेविड से यह सब बातें। …  ।

सहजयोगी: …. 

श्रीमाताजी: ऐसा है? 

सहजयोगी: हाँ.

श्रीमाताजी: आप डेविड को कहें कि माताजी ने आपको बुलाया है। आप आकर मुझे इन में से किसी एक दिन मिल सकते हो। ठीक है? डेविड और- उसने कहा, “मैं खाली हूँ. माँ” दूसरा साथी।

सहजयोगी: फिलिप  

श्रीमाताजी: फिलिप। मैंने कहा, “किंतु आप पहले ठीक हो जायें.” तो, डेविड और फिलिप दोनों आ सकते हैं, जैसा कि मैंने कहा, आपको मदद करने के लिए। 

मैंने कहा, “जूलियो आप मुझे थोड़ी चाय दे सकती हैं, यदि सभी ले रहे हैं तो, मुझे भी लेनी चाहिये, थोड़ी सी।

सहजयोगी: हाँ. 

श्रीमाताजी: यदि ऐसा है तो … ।

सहजयोगी: …. 

श्रीमाताजी: मैं आपको परेशान नहीं करना चाहती।

सहजयोगी: क्या मैं आपसे प्रश्न कर सकता हूँ माँ? 

श्रीमाताजी:  हाँ, आपको मुझसे प्रश्न पूछने चाहिए, बिल्कुल पूछना चाहिए.

सहजयोगी: मेरी रुचि। …. 

श्रीमाताजी:  आपको किस में रुचि है? 

सहजयोगी: ….. 

श्रीमाताजी: हाँ, एक ही प्रकार के ब्बत पूछ रहे हैं। ।

सहजयोगी: और कौन है, पूर्व योगी। … 

श्रीमाताजी: मैं इस विषय में बात करने जा रही हूँ। यही कारण है।

सहजयोगी: योगानंद क्या कह रहे थे? 

श्रीमाताजी: “न वह, न उन के गुरु, न उन दोनों के गुरु”।

सहजयोगी: ….. 

श्रीमाताजी: सभी बाबाजी… 

सहजयोगी: बाबाजी 

श्रीमाताजी: ओह, वह भयानक है। भयानक था, वह बाबाजी।

सहजयोगी: उन्हें होना चाहिए। … 

श्रीमाताजी: होगा ही, जब यह सभी राक्षस। … मैं नहीं जानती। वह बाबाजी शैतानों का भी शैतान है। उनका और इस योगानंद का गुरु लहरी था और लाहिरी का गुरु यह भयानक बाबाजी था। 

अब इस लाहिरी का पोता बंबई में है, और वह मुझे मिलने आया था, उसने मुझसे कहा, “क्योंकि मैं उनका पोता था, माँ, मैं एक क्रियायोगी बन गया और सब बकवास की, अपनी जीभ बाहर निकालना और ऐसा ही यह सब। और मैंने सब कुछ किया। फिर उसकी एक और किसी से मुलाकात हुई, यह था, कौन है वह? कृष्णमूर्ति!

वह उसके व्यक्तित्व और जिस प्रकार से वह बात करता है और उस सबसे बहुत प्रभावित था, आप देखिये। वह वही तरकीबें खेलता है। और उसने कहा कि “यह व्यक्ति बहुत अच्छा है। आप देखिए, वह उसके पास गया।

इसके बाद वह कृष्णमूर्ति का प्रशंसक बन गया, आप देखिए। तो, वह बाद में मेरे पास आया।

उसने कहा, “अब माँ आप मेरा इलाज नहीं कर सकते। 

मैंने कहा, “क्यों?”

 उसने कहा, एक ओर मैं क्रियायोगी हूँ, हमेशा के लिए बिगड़े गया हूँ। फिर मैं एक और भयानक व्यक्ति के पास गया, जो कृष्णमूर्ति था। मैं कृष्णमूर्ति से बेहतर भाषण दे सकता हूँ, उन चीजों, विषयों पर, जिन पर वह बात करते हैं। 

अब उसने अपने दादा, लाहिरी बाबा के विषय में बताया। और उसने कहा, “जो मुझे विचलित करता है, कि वह किस प्रकार के व्यक्ति थे। वह बहुत ही भौतिकवादी व्यक्ति थे, बहुत कठोर, बेहद क्रूर। उन्हें अपने बच्चों के लिए कोई प्यार नहीं था, ना ही अपने नाती-पोतों के लिए। अत्यंत हास्यास्पद प्रकार के व्यक्ति।”

और फिर वह सोचने लगा, ‘यह इंसान इतने बड़े योगी क्यों हैं जब उन्हें किसी के लिए प्रेम ही नहीं है? और उन्होंने किसी का भी अच्छा नहीं किया है। वह क्यों है? और इसलिए, मैं उस दूसरे के पास चला गया। और वहाँ मैं एक विशेषज्ञ वक्ता बन गया। मैं बहुत अच्छा वक्ता हूँ। मैं उनके विषय में बड़े-बड़े लेक्चर देता हूँ। मैं बात करता हूँ, बात करता हूँ, बात करता हूँ, बात करता हूँ, बात करता हूँ और मेरे साथ कुछ नहीं होता। अब, क्या आप मुझे बचा सकती हैं, माँ? 

वह मेरे पास आया। आपको आश्चर्य होगा। आज तक हम उनकी कुंडलिनी की जागृति को थाम नहीं पाए। वह ऊपर उठती है और नीचे चली जाती है, क्योंकि उसमें बहुत अधिक खिचाव है। बेचारा! हर बार जब मैं भारत जाती हूँ तो वह आता है, चुपचाप बैठ जाता है। अभी तक हम इसे ठीक नहीं कर पाए हैं। 

इसलिए, मोदी, मेरे एक शिष्य, उनसे इतना तंग आ गए। उन्होंने कहा, “अब मैं उनके सिर पर लगाने के लिए एक कील लेने जा रहा हूँ ताकि उससे उनकी कुंडलिनी वहाँ स्थिर हो। बेचारा इंसान!

वह बहुत दुखी है! बहुत दुखी है, किंतु क्या करें? उन्होंने कहा, इन सभी लोगों को एक साथ रख दो, तो भी मैं उनसे भी अच्छा भाषण दे सकता हूँ। पर क्या करें?” 

उन्होंने कहा, ”मैं दिखावा करता था कि मैं बहुत सूक्ष्म हूँ, मैं बहुत संवेदनशील हूँ। मैं यह समझता हूँ, मैं वह सब करता था। अब मुझे पता है कि यह सब आडम्बर है”।

सहजयोगी: तो, निर्विकल्प में कुछ समय के लिए कैसे रह सकते हैं? वास्तव में वह कैसे …?

श्रीमाताजी: निर्विकल्प

सहजयोगी: हाँ. 

श्रीमाताजी: नहीं, बिल्कुल नहीं।

सहजयोगी: क्योंकि। ….  हर समय…. 

श्रीमाताजी: वह कहते हैं, “वह निर्विकल्प में हैं”। एक प्रकार से वह हैं। क्योंकि विकल्प का अर्थ है संदेह। उन्हें स्वयं पर कोई संदेह नहीं है कि वह सब से बड़े बदमाश हैं, आप देखिए। इसलिए वह निर्विकल्प में हैं। तो, इस प्रकार आप कह सकते हैं कि वह निर्विकल्प में हैं!

अब हमारे देश में महान संत हुए हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। यहाँ तक कि ज्ञानेश्वर जैसे व्यक्ति। क्या महान संत हुए हमारे यहाँ! और वह मछींदरनाथ, गोरखनाथ, फिर ज्ञानीनाथ की ही पंक्ति में थे और उनके पिता गुरुजीनाथ थे, और इन्होंने उनकी पहल की और उस नाथपंथी में हमारी गुरुसंस्कृति में, हमारी गुरुपरम्परा महान थी। 

यहाँ तक कि ज्ञानेश्वर, जो एक साक्षात्कारी आत्मा थे, इसमें कोई संदेह नहीं। और उनके भाई वास्तव में एक बहुत महान संत थे। वह भी जब कुंडलिनी जागरण के विषय में लिखते हैं, वह उसका वर्णन वैसे नहीं कर पाते हैं, जैसा आप सहजयोगी करते हैं। काश, आप मराठी पढ़ पाते, मैं आपको समझा सकती थी। और उन्होंने कुंडलिनी कैसे उठाई? क्या हुआ? वह अपने जीवन  काल में दो लोगों को साक्षात्कार दे सके। आप देखिये।

तो आप कल्पना कर सकते हैं कि यह असुर, वह लोग देवत्व की बात करते हैं। उनके जैसे लोगों के लिए भी ऐसा नहीं था। तो, यह लोग किस विषय पर बात कर रहे हैं? मेरा मतलब है कि यह उस महासागर का कण भी नहीं है, कण भी नहीं है। किंतु वह सिर्फ बात कर रहे हैं। आप इसे प्राप्त ही नहीं कर सकते, किसी भी प्रकार से। वह इसके आस पास भी नहीं पहुँच सकते।

सहजयोगी:  महर्षि… 

श्रीमाताजी: हाँ, वह इन विषयों पर बात कर सकते हैं, आप देखिए। किंतु, यदि परमेश्वर ऐसे हैं , तो आप देखिए, वह आप में अपनी शक्तियाँ प्रदान करेंगे। आपको एक प्रकार से सर्वशक्तिमान भी होना होगा यदि आप उनके साथ एककार होते हैं। और आपको हमेशा सर्व-व्यापी होना होगा। और आपको सर्वकार्य कर्ता होना होगा।

किंतु यह उल्टा है। इस के बजाय आपने स्वयं को सीमित कर लिया, और आप नहीं जानते कि आप कहाँ पहुंचेंगे और हवा में लटके हुए, आप स्वयं को नियंत्रित नहीं कर सकते। जबकि सहजयोग में आप प्रत्येक चीज को नियंत्रित करते हैं। यहाँ बैठे हुए आप अपनी माँ को, अपने पिता को, किसी को भी चैतन्य दे सकते हैं । 

आप देखिये, यदि आप सभी, सब कुछ कर रहे हैं, तो आपको ऐसा करने में भी सक्षम होना चाहिए। किंतु आप अपनी गतिविधियों को भी वहाँ नियंत्रित नहीं कर सकते। वह आपको ऊपर उठाता है, आप हवा में लटक जाते हैं, आप नीचे गिर जाते हैं। अब, आप को इन चीजों की आवश्यकता क्यों है? मैं यह नहीं समझ सकती।

सहजयोगी: जवाब, …. नुकसान  ….।

श्रीमाताजी: आप देखिए, मेरा तात्पर्य है, इसके अलावा, यह इतना स्पष्ट है कि आपको आवश्यकता नहीं है, यह इतना प्रत्यक्ष है कि आप लोगों को इन चीजों की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि पहले से ही आप अपने विमानों द्वारा इस पृथ्वी से ऊपर उठाये जा चुके हैं, आप अब चंद्रमा पर जा चुके हैं। अब आप और क्या चाहते हैं? यह इतना स्पष्ट है। क्योंकि, आप देखिए, यदि आप समझते हैं कि यह मूर्खता है। इसी प्रकार से आप इसे हल कर सकेंगे। यह सिर्फ आपको ठग रहे हैं। बस इतना ही है।

यदि आप सर्वव्यापी हैं, ठीक है, इसका तात्पर्य है कि आप हर किसी में उपस्थित हैं, ठीक है? आप हैं।

आप हर किसी के चैतन्य की अनुभूति कर सकते हैं। जब मैं अपने हाथ को इस प्रकार से हिला रही हूँ, तो अपने हाथों पर देखें, आप अपने दाहिने हाथ या बायें हाथ पर ठंडी हवा की अनुभूति करते हैं। मैं आपके हाथ पर शीतल हवा दूँगी। मैं हाथ हिला रही हूँ, स्वयं का हाथ, मैं यह दे रही हूँ, आप अपने बायें हाथ पर अनुभव कर रहे हैं। आप समझ रहे हैं? अब, अपने दाहिने हाथ पर।