Seminar for the new Sahaja yogis Day 1 Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)

सहज योगियों के लिए सेमिनार  बोर्डी शिबिर, महाराष्ट्र, भारत, 28 जनवरी 1980, मुझे बताया गया था कि, मुझे संबोधित करना चाहिए, जनसमूह को, अंग्रेजी भाषा में। मैं आशा करती हूँ, यह संतोषजनक होगा, कुछ लोगों के लिए, यदि मै संबोधित करूँ, आपको अंग्रेज़ी में। मैं सोचती हूँ की, समय हो गया है, हमारे लिए, कि सोचें, क्यों परमात्मा ने सृजन किया है, इस सुंदर मानव का, मनुष्य का। क्यों उन्होंने इतना कष्ट उठाया, कि विकास करें हमारा, अमीबा से इस स्तर तक। हमने सब कुछ, महत्वहीन समझा है। यहाँ तक की, बात करना परमात्मा के बारे में, ऐसे आधुनिक समय में, यह असंभव है। क्योंकि बुद्धिजीवियों के अनुसार, वे अस्तित्व में नहीं हैं। वे कदाचित कुछ भी कह सकते हैं, जो चाहे, परन्तु वह हैं, और बिलकुल हैं। अब समय आ गया है, सर्वप्रथम, हमारा यह जानने के लिए, हम यहाँ क्यों है? हमारी सिद्धि किस में है? क्या हम आए हैं, इस संसार में, केवल पैदा होने के लिए, अपना भोजन करें, बच्चे पैदा करें, उनके लिए धन उपार्जित करें, और इसके बाद मर जाएँ? अथवा कोई विशेष कारण है, कि परमात्मा हमसे इतना प्रेम करते हैं, और उन्होंने सृजन किया, एक नवीन संसार, मनुष्य का?  साथ ही, समय आ गया है, हमारे जानने के लिए, कि परमात्मा विद्यमान हैं। और यह कि उनके प्रेम की शक्ति विद्यमान है। और केवल यह नहीं, परन्तु यह व्यवस्थित करती है, समायोजित करती है, यह गतिशील है। कि वे प्रेम करते हैं, और उनके प्रेम में, वे चाहते हैं, हमें प्रदान करना, Read More …

Joy Dhule (भारत)

[Hindi translation from English]                        आनंद  धुले, भारत 1980-01-28 … और उनकी खुशी। इसलिए, वास्तविक अर्थों में आत्मा के साथ कोई तालमेल, जो सिर्फ एक आनंद देने वाला गुण है स्थापित नहीं किया जा सकता है,। तो इस प्रकार आत्मा की आनंद प्रदान करने वाली गुणवत्ता को इतना कम कर दिया गया है, इतना कम कर दिया गया है, कि बुद्धिजीवियों का आनंदित हो पाना असंभव है। आपको यह प्रमाणित करना होगा कि, “अब खुश रहो!” आप समझ सकते हैं। भले ही आप प्रमाणित करें, भले ही पूरी दुनिया प्रमाणित करे, कि यह हर्षित होने का तरीका है, वे स्वीकार नहीं करेंगे। और वे सोचते हैं कि ऐसा स्वीकार कर लेने का अर्थ है, जैसे कि वे स्वर्ग छोड़ रहे हैं, वे अपनी सभी जायदाद को छोड़ रहे हैं, वे अपना सब कुछ छोड़ रहे हैं! वे इस हद तक उस पर टिके रहेंगे! मेरा मतलब है, अगर आपको तैराकी सीखनी है, और अगर आपको तैराकी का आनंद लेना है, तो आपको उस बाहर की रिंग पर जो आप की पकड़ है उसको छोड़ना होगा। लेकिन आप रिंग को पकड़ेंगे, और कहेंगे, “नहीं, यह रिंग है, मैं नहीं छोड़ सकता! “इसलिए बुद्धिजीवियों का इस तरह का रवैया उनकी खुशी को मार देता है, और इसीलिए वे हर्षोल्लास का आनंद नहीं उठा पाते हैं। और इसी वजह से सब कुछ किसी न किसी बहाने, या किसी तरह का डर, या शायद किसी तरह के वर्चस्व से कार्यान्वित होती है। तो पूरी चीज को इतने कृत्रिम रूप से प्रबंधित किया जाता है की, Read More …