Guru Tattwa

Caxton Hall, London (England)

1980-06-23 The Essence Within: Innocence, Caxton Hall, 46' Download subtitles: IT (1)View subtitles:
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1980-06-23 The Essence Within Innocence, Side B, London, 17'
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                                                                                                                                                                                                        अबोधिता में निहित सार 

कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 23 जून 1980। सार्वजनिक कार्यक्रम (लघु) और सहज योगियों से बात

यह एक तथ्य है। यह एक ऐसी चीज है जिसे आप देख सकते हैं। यह एक वास्तविकीकरण है। और हम अपनी कल्पनाओं में, अपने मतिभ्रम और पथभ्रष्टता में इस कदर खोए हुए हैं कि हम विश्वास नहीं कर सकते कि ईश्वर के बारे में कुछ तथ्यात्मक हो सकता है।

लेकिन अगर ईश्वर एक तथ्य है, तो यह घटना भी हमारे भीतर होनी ही है, अन्यथा उसका कोई अस्तित्व नहीं है।

अगर कोई नास्तिक है तो एक तरह से बेहतर है। क्योंकि उन्होंने आंखों पर पट्टी बांधकर कुछ भी स्वीकार नहीं किया है। लेकिन अगर किसी ने खुले दिमाग से ईश्वर को स्वीकार कर लिया है और किन्ही अटकलो का पालन नहीं किया है, तो यह और भी अच्छा है।

लेकिन अगर आप इस तरह की किसी भी अट्कल का पालन करते हैं, कि भगवान होना चाहिए – कुछ लोगों ने मुझसे कहा, “हां मां। भगवान मेरी बहुत मदद करते हैं।” मैंने कहा, “सच में? वह आपकी कैसे मदद करता है?” तो वह महिला मुझसे कहती है “मैं सुबह उठी और मैंने भगवान से प्रार्थना की, ‘हे भगवान, मेरे बेटे की देखभाल करो!”, वह बस इतना ही सोच सकती थी! कि भगवान केवल उसके बेटे की देखभाल में व्यस्त हो, जैसे उनके पास और कोई काम नहीं है! “तो फिर क्या हुआ?”

“तब मेरा बेटा हवाई जहाज से आ रहा था और विमान में कुछ परेशानी हुई, लेकिन वह बच गया। भगवान ने वहां मेरी मदद की! ईश्वर है।” लेकिन अगर लड़के को कुछ हो गया होता तो वह क्या कहती, मुझे नहीं पता।

तो यह कहना कि आपको भगवान से मदद मिल रही है, कि भगवान ने आपकी इस तरह से और इस तरह से मदद की है, यह मान लेना कुछअधिक ही है, ऐसा मुझे लगता है। ईश्वर हम सबका ख्याल रखता है। वह करुणा है, वह प्रेम है, उसने हमें बनाया है, उसने हम में से एक सुंदर इंसान बनाया है, उसने हमारे भीतर इन सभी चक्रो को रखा है, उसने कुंडलिनी को हमारे भीतर रखा है, और कुंडलिनी को उठना होगा, आपको बोध प्राप्त करना होगा, सब कुछ इस तरह है, इसमें कोई संदेह नहीं है।

यह सब कार्यांवित करना है। यही सच भी है। लेकिन फिर भी, किसी को पता होना चाहिए कि वह आपके हाथ में नहीं है, आप उसके हाथ में हैं।

बहुत से लोग हैं जो ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, “मुझे पदोन्नति दो। हे ईश्वर, आपको मुझे पदोन्नति देनी है”। और फिर अगर वह नहीं देता है, “यह भगवान मेरे सहायक नहीं है! उन्होने मुझे प्रमोशन क्यों नहीं दिया?”

आपको ईश्वर को इस तरह सस्ता नहीं करना चाहिए।

ईश्वर वह है जो सर्वशक्तिमान है, जिसने इस सारे ब्रह्मांड को बनाया है। उसने तुम्हें बनाया है, और उसने तुम्हें एक उद्देश्य के लिए बनाया है। और वह उद्देश्य कुछ सर्वोच्च है। यह कोई साधारण उद्देश्य नहीं है, जैसा आप उसे समझते हैं, वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। वह सर्वोच्च है और वह तुम्हें कुछ ऐसा देगा जो परम हो।

मान लीजिए कि आप किसी राजा को मिलने जाते हैं, तो वह आपको 1 पैसे नहीं देगा, है ना? वह तुम्हें हीरा दे सकता है।

लेकिन अगर आप ईश्वर से कुछ मांगना चाहते हैं तो आपको ईश्वर से परम मांगना चाहिए! और परम क्या है? परमात्मा को जानना ।

जब तक आप स्वयं को नहीं जान लेते, तब तक आप उसे नहीं जान पाएंगे। उसने तुम्हारे भीतर वह यंत्र रखा है जिससे तुम सबसे पहले अपने आप को जान सकते हो। एक बार जब आप अपने आप को जान लेते हैं, तो अपने स्व से आप उसे जान जाते हैं।

लेकिन पहली महत्वपूर्ण बात यह है कि आपका चित्त उस पर होना चाहिए। ईश्वर पर चित्त होना और ईश्वर में अंध विश्वास रखना बहुत अलग बात है। ये दोनों चीजें बिल्कुल अलग हैं।

ईश्वर में आस्था रखने का अर्थ है – विश्वास के नाम पर हम जो मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं, वह सब मैं आपको पहले ही बता चुका हूं। लेकिन ईश्वर पर आपका चित्त रखने का तात्पर्य है कि, “कब मैं अपनी आत्मा होने जा रहा हूँ? आप मुझे अपने राज्य के नागरिक के रूप में कब स्वीकार करने जा रहे हैं? हे प्रभु, आप मुझे अपने साधन के रूप में कब उपयोग करने जा रहे हैं?”
ऐसा ही आपका चित्त होना चाहिए।

यदि आपका चित्त इस तरह का है, और यदि आप वास्तव में इसके बारे में शुद्ध प्रकृति के हैं, तो यह कार्यांवित होगा, यह काम करेगा। केवल यही सहज योग मेंआवश्यक है, इस चाहत,प्रार्थना के लिये एक स्वच्छ हृदय।

जो उत्साहपुर्वक मांगते रहे हैं, वे भले ही पथभ्रष्ट हो गए हैं, गलत रास्ते पर चले गए हैं, उन्होंने गलतियां की हैं, उन्होंने पाप किये होगे, चाहे कुछ भी हो, लेकिन ईश्वर के नाम पर, ईश्वर की खोज में, यदि वे ईमानदार रहे है, उन्हें आत्म बोध प्राप्ति प्रदान की गई है। उन्हें आत्म-बोध होगा, इसमें कोई शक नहीं।

अन्यथा भी, आपको आत्म-बोध प्राप्ति होगी। क्योंकि कृपा इन दिनों इतनी उमड़ रही है। घोर पापी भी आत्म-बोध प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन इसे कैसे बनाए रखें, और कैसे उत्थान करे, यह आपकी जिम्मेदारी है।

तो यह आज के नवागंतुकों के लिए है, चुंकि सभी चक्रों और सभी केंद्रों पर चर्चा करना बहुत अधिक होने वाला है। इन सब बातों के बारे में ये लोग पहले ही छाप चुके हैं।

लेकिन आज चूँकि यहाँ अधिक सहजयोगी हैं, इसलिए मुझे उनके स्थपित होने के बारे में एक महत्वपूर्ण बात बतानी है।

बनने की बात तो मैं पहले ही कह चुकी हूँ। लेकिन आज, हमें एक बात समझनी होगी: कि हमारे भीतर का सार – उदाहरण के लिए अबोधिता – बिल्कुल शुद्ध है। हमारे भीतर यह बिल्कुल शुद्ध है। अपने स्वरूप में यह पूर्ण रूप से शुद्ध है। लेकिन, जब यह हमारे माध्यम से परावर्तित होता है, तो यह गंदा हो जाता है। आप जैसे हैं, जिस तरह से आप इसे व्यक्त करते हैं, वह मैला हो जाता है।

यदि आप एक चालाक व्यक्ति हैं, तो अबोधिता अभिव्यक्त नहीं की जा सकती, यह प्रकट नहीं की जा सकती। जो कुछ भी तुम्हारी अबोधिता, ईश्वर ने तुम्हारे भीतर रखी है, वह पूरी तरह से अंधकारमय हो जाती है क्योंकि तुम उसे वापस प्रतिबिंबित नहीं कर सकते। इसके बारे में कोई अभिव्यक्ती नहीं है। ऐसा क्यों होता है?

यदि आप शुद्ध हैं, यदि आप सही हैं, अबोधिता ठीक है, तो यह आपके द्वारा अभिव्यक्त क्यों नहीं होती? यह धूर्तता उस अबोधिता या आपके भीतर विभिन्न चक्रों पर मौजूद हैंअन्य किसी सार को क्यों रोक सकती है ?

हमें इसके बारे में सोचना चाहिए कि ऐसा क्यों होता है। कि आत्म-बोध के बाद भी, हम अपनी अबोधिता, अपनी मौलिक शक्तियों को ठीक से प्रकट नहीं कर पाते जो हमारे भीतर पूर्ण शुद्धतम रूप में हैं। क्यों? हमारे भीतर क्या होता है?

परेशानी हमारे चित्त में है। जब आप इंसान बने, तो आपको अपनी मनचाही चीज पर अपना चित्त लगाने की पूरी आजादी दी गई। जैसे, आप चाहें तो अपना चित्त किसी भी विषय पर लगा सकते हैं।

जैसे कि, मुझे एक टेलीफोन कॉल प्राप्त होता है। इसलिए मैंने इस पर चित्त डाला। अब, मैं इसके साथ तादात्म्य किए जा सकती हूं, इसके बारे में सोचती रह सकती हूं; मेरा सारा चित्त उसी पर छा जाएगा अन्य जो कुछ हो रहा है उस पर मैं ध्यान नहीं दूंगी।

चित्त इतना गतिशील होता है, उसका कोई आधार नहीं है, मानो पूरी चीज, शहद की तरह, जाती है और किसी भी चीज से चिपक जाती है।

मेरा मतलब है, आज मुझे मनीला से एक पत्र मिला है। और यह मेरे लिए एक अजीब पत्र है, मुझे कहना होगा। वह महिला मुझे लिखती है कि, “मेरी समस्या मिस्टर फलाने से आती है”। “ठीक है, तुम्हारी समस्या क्या है?” “ऐसा है, मुझे उससे प्यार हो गया है, लेकिन उसे दूसरी औरत से प्यार हो गया है”। वह मुझे ऐसा यह पत्र भेजती है! और, “मैं बहुत दुखी हूँ, माँ, मैं क्या करूँ? मेरा सारा जीवन बर्बाद हो गया है, मुझे नहीं पता कि खुद के साथ क्या करना है, मैं बस खो गयी हूं, उसने मुझे छोड़ दिया है, उस महिला ने एक चाल खेली है, “और ऐसी सभी बाते, वगैरह, वगैरह।

ठीक है। तो मैंने सोचा – इस महिला को देखो। उसका चित्त कहाँ है? क्या यही उसके जीवन का अर्थ है कि, किसी ऐसे पुरुष के लिए बर्बाद करना है जो उसकी परवाह नहीं करता है? उसका कोई स्वाभिमान नहीं है!

वह क्यों नहीं समझती कि ईश्वर ने उसे इस हेतु नही बनाया कि अपनी ऊर्जा इन बेकार चीजों पर बर्बाद करे? उसने उसे जीवन का आनंद लेने के लिए, खुद का आनंद लेने के लिए बनाया है। वह खुद को जानने के बजाय चिंतित क्यों है? अगर वह ऐसे मनहूस आदमी से शादी कर ले जो दूसरी औरत के साथ भाग गया है, तो क्या वह उससे प्यार करेगा? मेरा मतलब है, यह तर्कसंगतता आपको यह भी बता सकती है कि यह चित्त जो वह बर्बाद कर रही है, वह रो रही है, रो रही है, उसने कहा, “मुझे T.B.तपेदिक हो जाएगा।” उसे वह हो जायेगा!

मेरा मतलब है कि अगर आप अपना ध्यान मूर्खतापूर्ण और बेतुकी बातों पर लगाते हैं, तो और क्या होने वाला है?
तो इस तरह हम अपना चित्त बिल्कुल बेकार की बातों पर लगाते हैं; कभी-कभी बहुत भ्रष्ट चीजों पर भी। हम अपना चित्त किसी भी चीज़ पर लगा सकते हैं, हमें लगता है कि जिस पर भी हमारे ध्यान की आवश्यकता है। लेकिन क्या आपके पास अपना स्वाभिमान है? यदि आपके पास है, तो आपका चित्त कहाँ होना चाहिए?

इसे आपके स्व पर होना चाहिए। अब आपका स्व कहाँ हैं? यह सर्वशक्तिमान ईश्वर है। उस महान आदिम अस्तित्व का एक हिस्सा है। आपका चित्त उस पर होना चाहिए।

आत्म-बोध के बाद, आपका चित आपके हृदय में, आपकी आत्मा पर होना चाहिए, जो कि सर्वशक्तिमान ईश्वर का अंश है। यदि आपका चित्त आपकी आत्मा पर है, तो आप चकित होंगे कि किस प्रकार आपका चित्त कार्यांवित होगा।

आप देखिये, शहद की तरह किसी भी बिंदु से जुड जाता है। यह थोड़ा परेशान हो सकता है, फिर से स्थिर हो जाएगा। फिर, यह थोड़ा परेशान होगा, फिर स्थिर हो जाएगा। यह किसी भी बिंदु पर नहीं टिकेगा, और आपको परेशान नहीं करेगा।

इसलिए अपने सभी सार को ठीक से रखने के लिए, सबसे पहले, अपना चित्तअपने ह्रदय और अपनी आत्मा पर लगाएं, क्योंकि यही आपका परम बिंदु है जिसे आपने खोजा है।

लेकिन बहुत से लोगों के साथ ऐसा नहीं होता है।
समस्या यह है कि जब कुंडलिनी उठती है, तो वह दो तरह की अनुभुति देती है। एक को शाम्भवी, दूसरे को शक्ति कहा जाता है।

शाम्भवी शंभू की भावना है, जो की हृदय में स्थित शिव है, अर्थात सर्वशक्तिमान ईश्वर।

लेकिन दूसरी शक्ति है। अब पश्चिमी लोगों के मामले मे यह दूसरी वाली है, क्योंकि आप अपनी समस्याओं को जानते हैं? आपने अपनी शक्तियों का उपयोग सभी प्रकार के भटकाव के मानसिक प्रयासों के लिए किया है। हर बात, हर कोई, बैठ जाएंगे कि, “ठीक है, आइए हम आत्म-बोध प्राप्ति पर चर्चा करें!”

आप चर्चा क्या करने जा रहे हैं? आप आत्म-बोध प्राप्ति के बारे में क्या चर्चा करने जा रहे हैं? क्या आपको अपना आत्म-बोध चर्चा से मिला?

आपको ध्यान करना होगा! आपको अपने भीतर जाना होगा। अपनी उन्नती सुनिश्चित करे, अपने भीतर काम करें!

आप इसके बारे में बात नहीं कर सकते, आप इसकी चर्चा नहीं कर सकते, आप इसके बारे में बहस नहीं कर सकते – यह आप के अंदर स्थित है!

इन भटकाव के कारण हम शक्ति बिंदु तक पहुंच जाते हैं। लेकिन हम शाम्भवी तक नहीं पहुंचते।

लेकिन पूरब में जहां लोग इतने बुद्धिमान, सुशिक्षित और परिष्कृत नहीं हैं, मैं कहूंगी – साधारण लोग, यह वहीं पहुंचता है। और वे बस आनंद लेते हैं।

यदि आप उन्हें सहज योग के बारे में लिखी गई कोई पुस्तक दिखाते हैं – उदाहरण के लिए ग्रेगोइरे की पुस्तक (द एडवेंट बाय ग्रेगोइरे डी कलबरमैटन) – तो वे कहेंगे, “माँ, हम इसे पढ़ना नहीं चाहते हैं, हम इसे नहीं समझते हैं। ” वे बस वहीं हैं! वे अब वहां हैं। अब उसमें क्या है? यह तो हमारे शरीर से बह रहा है, हर बात हम जानते हैं यह वहीं है। हम इन बातों और सभी विवादों और हठधर्मिता के बारे में परवाह क्यों करे, और सभी चर्चों ने आपको क्या बताया है, और क्यों वे विफल हुए हैं और यह धर्म क्यों विफल हुआ है? कौन परवाह करता है? तो ये समस्याएं सामने आती हैं।

चुंकि उनका चित्त केवल आत्मा पर रहा है। साधारण लोगों में भी वह क्षमता होती है।

तो अब सब कुछ भूल जाओ, अपनी सारी बुद्धि, अपनी सारी किताबें और शिक्षा और जो कुछ आपके पास है – उसे भूल जाओ। और बस अपना चित्त अपने हृदय पर लगाएं, जहां सर्वशक्तिमान परमेश्वर के साथ जुडाव है।

अगर आपका चित्त वहां है, तो आपको आश्चर्य होगा कि आपका चित्त स्थिर हो जाएगा। इतना ही नहीं कि, यह स्थिर हो जाएगा, बल्कि आनंद का स्रोत वह है और आप उस आनंद को महसूस करने लगेंगे।

सार-तत्व में, यहां तक ​​कि आदि गुरु का सार, जिसे ‘गुरु तत्व’ कहा जाता है, बिल्कुल शुद्ध है।

अब अधिकांश सहजयोगी जो यहाँ हैं, वे बहुत महान सहजयोगी हैं और मैं उन्हें नमन करती हूँ। लेकिन उन्हें अपने गुरु तत्व को बिल्कुल सुधारने की कोशिश करनी चाहिए: इसका मतलब है कि उनके गुरु तत्व की उनकी अभिव्यक्ति हमेशा उनके खुद के भटकाव से प्रभावित होगी।

इसलिए शुरुआत में इसे ठीक करने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ती है। हा! यदि आप उस स्तर का नहीं होना चाहते हैं तो कोई बात नहीं, आप आगे बढ़ सकते हैं। सब ठीक है।

लेकिन अगर आप वास्तव में इसे ठीक करना चाहते हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि आत्म-बोध के बाद आपको कड़ी मेहनत करनी होगी, आप के आत्म-बोध से पहले मैं कड़ी मेहनत करूंगी।

मुझे मेहनत करना होगी इसके बावजुद भी। क्या करें?

आप जानते हैं कि, मैं बहुत मेहनत कर रही हूं, आप के आत्म-बोध के बाद भी।
लेकिन अगर आप सहयोग करना चाहते हैं और खुद की मदद करना चाहते हैं, तो आपको अपना चित्त इस तरह से लगाना होगा कि – हर समस्या जब आती है – आप अपने ह्रदय में जाते हैं, दिमाग पर नहीं। कोई भी सवाल आए, ह्रदय तक जाइए, वहां ईश्वर की कृपा रहती है। और आपको आश्चर्य होगा कि किस प्रकार यह हल होगा। इसलिए मैंने कहा, “निर्विचार जागरूकता में जाओ।” यह हृदय का गुण है, क्योंकि हृदय सोचता नहीं।

आप अपने ह्रदय में जाते हैं, इसका मतलब है कि आप अपना चित्त अपनी आत्मा पर लगाते हैं।

अब, यदि आप एक गुरु बनते हैं, उदाहरण के लिए, एक सहज योगी के रूप में भी। मान लीजिए आप सहज योग के गुरु हैं। आप में से अधिकांश हैं, क्योंकि कुंडलिनी आपके हाथों के इशारे पर चलती है, आपके पास इतनी शक्तियां हैं, आप दूसरों की कुंडलिनी बढ़ा सकते हैं, आप लोगों को आत्म-बोध दे सकते हैं और आप अन्य लोगों की समस्याओं का पता लगा सकते हैं, आपने कई लोगों को निरोग किया है .

मैं सहमत हूं, आप महान लोग हैं, निस्संदेह, महान संत।

लेकिन आगे बढ़ने के लिए, अपने आप को माहिर करने के लिए, हमें कुछ बिंदुओं को समझना होगा, कि यदि गुरु स्वयं गुरु होने की जिम्मेदारी को महसूस करता है तब ही सबसे अच्छा गुरु तत्व अभिव्यक्त होता है।

उदाहरण के लिए, एक गुरु अभी भी धूम्रपान कर रहा है। यहाँ तक की वह आत्म-बोध के बाद भी गुरु नहीं बन सकता। क्योंकि उसका शिष्य भी धूम्रपान करेगा। तो विशुद्धि कभी ठीक नहीं होगी।

मान लीजिए कि यह गुरु चिंतित है, अभी भी पैसे के मामलों के बारे में।

कहो कि चित्त अभी भी अटका हुआ है, क्योंकि जैसा मैंने कहा, यह चित्त एक जेली की तरह है, अभी भी पैसे के मामलों में कुछ अटकाव हैं। तो उनके शिष्य भी हमेशा पैसे के मामलों के बारे में चिंतित रहेंगे। मैंने ऐसा पाया है!

एक बहुत अच्छे सहज योगी थे, जिन्होंने कम से कम एक हजार लोगों को, कम से कम एक हजार लोगों को आत्म-बोध दिया। और उन्हें तंबाकू लेने का बहुत शौक था। मुझे पता था कि वह तंबाकू का सेवन करता है, लेकिन मैंने उसे कभी नहीं बताया, आप देखिए; जब भी हम एक सेंटर से दूसरे सेंटर जाते थे तो वह वापस चला जाता था और मुझे पता था कि वह वह तंबाकू ले रहा है (हंसी), मैंने उससे कुछ नहीं कहा। मैंने कहा, “चलो अब देखते हैं”।

लेकिन सहज योग एक अद्भुत चीज है, यह एक महान सुधारक है। तो एक दिन खुद उसी ने आकर मुझसे कहा – मैंने विचार रखा कि अगर मैं उससे कहूं कि, “तम्बाकू मत लो!” वह सोचेगा कि किसी ने मुझे बताया है और एक बड़ा अंदाजा लगाने का काम चल रहा होगा – “माँ को किसने सूचना दी? ऐसा क्यों हुआ, ऐसा क्यों हुआ, ”तो मैं चुप रही।

एक दिन उसने आकर मुझसे कहा कि, “माँ, मुझे नहीं पता कि क्या हुआ है। जब मैं आपके फोटो के सामने बैठता हूं, तो मेरा चेहरा हनुमाना जैसा होने लगता है। मुझे लगता है कि यह बड़ा हो रहा है, बड़ा हो रहा है, बड़ा हो रहा है और विस्तार हो रहा है, इस तरह विस्तार हो रहा है। यह क्या है?” मैंने कहा, “सच में? चौंका देने वाला! (हँसी) अब कोई कारण रहा होगा, क्या आप कुछ गलत कर रहे होंगे।” “नहीं, ऐसा कुछ नहीं!” “विशुद्धि!” मैंने कहा, “यह विशुद्धि है। आप विराट के खिलाफ जा रहे हैं, इसलिए वह आपको अपना स्टाइल दिखा रहे हैं!”

उसने कहा, “नहीं माँ, मैं कुछ भी गलत नहीं कर रहा हूँ।
तुम्हें पता है, मुझे इस पर यकीन है!” “क्या आपको यकीन है?”

उन्होंने कहा, “अब मुझे आपके सामने स्वीकार करना चाहिए माँ, मैं यह तम्बाकू लेता हूँ”। मैंने कहा, “मुझे पता था। अब इसे छोडने की कोशिश करो ”। उन्होंने कहा, “कैसे?”

मैंने कहा, “यह बहुत आसान है! आप बस इसे आजमाएं: जब भी आपका धूम्रपान करने या तंबाकू लेने का मन करता है, तो आप अपने ह्रदय की ओर देखिये, आप निर्विचार हो जाते हैं। आखिरकार, सभी आदतों को विचार के माध्यम से आप तक पहुँचाया जाता है। अगर आप सिर्फ अपनी आदतों की तरफ देखें – इतना ही याद रखें! कि अपने ह्रदय को देखो, अपनी आत्मा को देखो, या मेरे बारे में सोचो या जो कुछ सहज योग आपको बताता है वह करो। एक सेकंड के लिए भी अगर आप इसे करते हैं, तो आप इसके बारे में भूल जाएंगे।”

और उन्होंने इससे छुटकारा पा लिया!

क्योंकि आपको उस स्थिरता पर निर्भर रहना पड़ता है जो आपके भीतर है। एक बार जब आप स्थिरता महसूस करते हैं, तो आप बस इसके बारे में भूल जाते हैं।

चुंकि आप अस्थिर महसूस करते हैं, इसलिए आप इन चीजों को अपनाते हैं। लेकिन अगर आप अपनी स्थिरता महसूस कर सकते हैं तो आप कहेंगे, “भाड में जाओ! मुझे इन सब बातों की परवाह नहीं है, मैं क्यों परेशान होऊं? मैं खुद को इन चीजों का गुलाम बनाने नहीं जा रहा हूं।” और उन्होंने इससे छुटकारा पा लिया।

तो किसी व्यक्तिकूइसे कार्यांवित करना होगा। सभी सहजयोगियों के लिए इसे करना बहुत जरूरी है। अब मैंने कई सहजयोगियों को देखा है जो मेरे पास आए थे, मुझे कहना चाहिए, वे किसी भी काम में विश्वास नहीं करते थे। वे संस्कृति विरोधी लोग थे।

मैं सिर्फ उदाहरण के लिए इतना ऐसा कह रही हूं, वे संस्कृति विरोधी थे। तो उन्होंने कभी काम करने में विश्वास नहीं किया, उन्होंने कहा, “नहीं, कुछ नहीं कर रहे हैं, हम कोई काम नहीं करने जा रहे हैं, हम कोई पैसा जमा नहीं करने जा रहे हैं”। ठीक है। फिर जब वे सहज योग में आए, तो मैंने कहा, ‘सहज योग में, तुम्हें काम करना है। आप खाली नहीं बैठ सकते, आपको काम करना होगा। आपको मध्य में रहना होगा। आपको अपने लिए काम करना होगा। कोई भी गुरु इस से कोई पैसा नहीं कमा सकता है और इसलिए आपको काम करना होगा। सभी को काम करना है”।

इसलिए जब उन्होंने काम करना शुरू किया, तो उनमें से कुछ अपने काम के प्रति इतने निष्ठापूर्वक लिप्त हो गए कि उनके पास ध्यान के लिए समय नहीं था। उनके पास इसके बारे में सोचने का समय नहीं था। फिर वे ऐसे ही पागल हो गए। फिर उसने प्रतिक्रिया देना शुरू कर दिया और वे मेरे पास आए, उन्होंने कहा, “माँ, ऐसा क्यों हो रहा है?” मैंने कहा, “मैंने तुमसे काम करने के लिए कहा था, लेकिन मैंने तुमसे यह नहीं कहा कि तुम एक कामगार बनो! आप पुर्णतया एक सहज योगी हैं। आपको काम अपनी आजीविका के लिए करना है। उस काम की गति को कम रखें”।

अब अगर किसी को अपनी आजीविका के लिए काम करना है, तो आपको सोचना चाहिए कि आपको तृप्त होना चाहिए। पैसे जमा करने केआपके काम का कोई अंत नहीं है। और पैसे से लोगो को क्या मिला है? ये तो आप जानते ही थे, जब आपने पैसे के बारे में ये सभी बेतुके विचार छोड़ दिए थे, तभी आप ये जान गए थे। फिर अचानक तुमने इसे फिर से क्यों उठाया?
कोई भी जो सहज योग में है, उसे पता होना चाहिए कि आपको संयमी होना चाहिए। यही आधार है, यही सहज योग की परम मौलिक बात है। सहज योग में अति किसी तरह की नही करना चाहिये। आपको बिल्कुल सन्यमित रहना होगा।

उदाहरण के लिए, अगर मैं किसी से कहती हूं, “आप बहुत पतले हैं, आपको अधिक खाना है, और आप को थोड़ा वजन होना चाहिये है।” तो फिर तुम हाथी की तरह खाने लगोगे और हाथी की तरह जीओगे।

अगर मैं उनसे कहूं, “तुम बहुत मोटे हो, थोड़ा सा तुम अपने खाने की आदतों को कम कर सकते हो, अपने वजन को आप थोड़ा कम कर सकते हो,” तो वह टीबी के रोगी की तरह सामने आएगा।

मेरा मतलब है, मुझे आपको बताना है कि चरम पर ना जाना केवल तभी संभव होना चाहिए जब आप किसी चीज से लिप्त न हों। लेकिन अब आप अपनी आत्मा से जुड़े हुए हैं! आप अपने परमात्मा से जुड़े हुए हैं! और तुम किसी भी अति पर कैसे जा सकते हो?

अगर मैं उन्हें बता दूं, ठीक है, ध्यान करते हुए भी, कि, “ध्यान करो!” फिर पूरी रात वे ध्यान के लिए बैठेंगे। मैंने ऐसा कभी नहीं कहा! (हंसी) मैंने कहा था कि आपको अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए! लेकिन सुबह उठो, ध्यान करो, ईश्वर के बारे में विचार करो। आप हर समय जितना हो सके ईश्वर के बारे में सोचते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप पूरी रात जागते रहें। शुरुआत मे आपको संयमित रहना होगा। धीरे-धीरे विवेक इतना शक्तिशाली और इतना ज्ञानवर्धक होगा कि आप स्वयं देखेंगे कि क्या सही है, क्या गलत है, आप कितनी दूर जा रहे हैं।

यह इतना जरूरी है। क्योंकि, मेरे लिए सहज योग का फल यह है कि आपको आनंद का अनुभव करना चाहिए। मेरे लिए यह है – बस इतना ही! – कि आप बिल्कुल स्वर्ग के राज्य में महसूस करें। कि आप महसूस करें कि अब आप पूरी तरह से सुरक्षित हैं और कोई भी आपको परेशान नहीं कर सकता है। तुम्हारे भीतर सारी शक्ति है। आगे देखने के लिए कुछ भी नहीं है। उदाहरण के लिए, जब तक यह प्रकाश जलता है, यह हिल रहा है, यह हर तरह की चीजें कर रहा है। एक बार जब यह जल जाता है तो यह प्रकाश देता है। यह अपनी जिम्मेदारी जानता है। यह प्रकाश देता है। उसी तरह, मैं चाहती हूं कि आप अपने भीतर पूरी तरह से तृप्त हों ताकि आप उस प्रकाश को बाहर अभिव्यक्त करें।

बिना किसी प्रयास के दूसरों को प्रकाश दो। यह उत्सर्जित करेगा, यह उत्सर्जित करेगा।

जब तक ऐसा नहीं होता, सहज योग में गुरु बनने का कोई फायदा नहीं है। और मैंने लोगों के साथ देखा है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बहुत उत्साही, अत्यंत उत्साही होते हैं और उन्हें सहज योग के बारे में बहुत अधिक लगता है कि उन्होंने सत्य को खोज लिया है, कि पूरी दुनिया को मिलनी चाहिए, उन्हें यह पाना चाहिए और पूरी दुनिया को इसे अभिव्यक्त करना चाहिए, पूरी दुनिया बचाया जाना चाहिए।

लेकिन मैं आपको बहुत स्पष्ट रूप से बता दूं, पूरी दुनिया को बचाया नहीं जा रहा है। इसमें से अधिकांश को किया जायेगा। लेकिन आप कैसे उम्मीद करते हैं कि हिटलर बच जाएगा? हमें उस हिस्से को स्वीकार करना चाहिए कि पूरी दुनिया को नही बचाया जा रहा है।

जब फूल फल बन जाता है, तो उसका बहुत कुछ हिस्सा अस्तित्व से बाहर हो जाता है। ऐसा होना भी विकास प्र्क्रिया का अंग है।

इसलिए इसमें घबराने की जरूरत नहीं है।

लेकिन आपको वास्तविकता का सामना करना होगा और आपको समस्या को सबसे मौलिक, व्यावहारिक रूप से हल करना होगा, न कि केवल इसके बारे में उन्मत्त होने और परेशान होने के लिए।

जैसा कि मैंने आपको पिछली बार कहा था, कि अगर दूसरे कमरे में कोई समस्या है, तो बेहतर है कि आप खुद जाकर देखें, उसका सामना करें और उसका समाधान करें। यहाँ बैठे हुए, कूदने से क्या फायदा, ” समस्या दूसरे कमरे में है”? (हँसी)
मनुष्यों का यह बच निकलने का एक विशिष्ट तरीका है, कि वे इस कमरे में कूद रहे होंगे, या चिंतित होंगे, या अपनी आराम कुर्सियों पर लेट जाएंगे और कहेंगे “ओह! हम बर्बाद हो गये हैं क्योंकि दूसरे कमरे में समस्या है।” (हंसी) तो सबसे अच्छी बात यह है कि दूसरे कमरे में जाओ, खुद देख लो कि समस्या क्या है, और इंसान की तरह उसका सामना करो, और फिर उसको सुलझाओ।

इसी तरह आपको चीजों को देखना होता है। एक बार जब आप स्वयं इसका सामना करना शुरू कर देंगे, तो आपको आश्चर्य होगा कि आप कितने शक्तिशाली हैं, क्योंकि आपने अभी तक अपनी शक्तियों का उपयोग नहीं किया है।

कोई भी समस्या आती है, उसका स्वयं सामना करें। जब तक जहाज की समुद्र में परीक्षा न हो जाए, तब तक तुम कैसे जानेंगे कि वह कितनी दूर समुद्र के योग्य है या नहीं? उसी तरह सहज योग के बाद आप खुद को परखें, “देखते हैं क्या होता है। चलिए देखते हैं क्या होता है।” और आप अपनी शक्तियों पर चकित होंगे।

वास्तव में लोगों की सहज योग में आस्था है, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन उन्हें खुद पर विश्वास नहीं है।

यही मैं आपको बता रही हूं कि आपको खुद पर विश्वास होना चाहिए। आपको आत्म-बोध हो गया है, इसमें कोई शक नहीं। आप साक्षात् आत्मा हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। मैं कहती हूँ तुम हो। यहां तक ​​कि अगर राजा मेरे पास आये और कहे “मुझे आत्म-बोध हुआ है”, तो मैं उसके चेहरे पर बता सकती हूं “नहीं, तुम नहीं हो।” लेकिन आप साक्षात्कारी आत्मा हैं, और पूरी दिव्य शक्ति, सर्वव्यापी शक्ति, ईश्वर की सभी शक्तियाँ और दुनिया के सभी देवदूत आपकी देखभाल कर रहे हैं क्योंकि आप जागरूक हैं।

आप परमात्मा के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज हैं। पूरी चीज, यह सब, सबऔर कुछ भी नहीं बेकार है , ईश्वर के लिए किसी काम का नहीं है। आप वे लोग हैं जिनका उत्थान किया जाना है। तो पता होना चाहिए कि हमें खुद पर विश्वास रखना होगा।
कुछ भी करने के लिए, आपको पता होना चाहिए कि आपको खुद पर विश्वास होना चाहिए, ताकि आप उसके सामने खड़े हो सकें। और हर बार आपको आश्चर्य होगा, कोई लहर उठती है, आप उस पर सवार हो जाते हैं। हर लहर ऊपर आती है आप उस पर सवार हो जाते हैं। लेकिन बस जरा महसूस तो करें कि आपके पास शक्तियां कौन सी हैं।

ये शक्तियां आपके भीतर पहले से ही अंतर्निहित हैं। जैसे कि,अब हम गुरु तत्व का प्रश्न लेंगे क्योंकि आज मैं गुरु तत्व पर अधिक हूँ। एक लड़का था, एक सिख लड़का जो मुझसे मिलने आया था। वह बहुत अच्छा लड़का था। वह मुझसे मिलने आया और उसने कहा कि, “माँ, हम सभी गुरु नानक के अनुयायी हैं, लेकिन जिस तरह से सिख धर्म चल रहा है, उससे मैं आश्वस्त नहीं हूँ।

और हमारे ग्रंथ साहिब में कबीर ने कहा है कि, तुम्हें अपना आत्म-बोध मिलना चाहिए और मुझे नहीं मिला। फिर हम कब तक ईश्वर का नाम लेते रहेंगे?” और मैं चीजों के बारे में उनकी सतर्कता पर हैरान थी – कि आपको भगवान का अनुभव होना चाहिए। मैंने कहा, “ठीक है, यह बहुत अच्छा विचार है।” और उसे उसका आत्म-बोध हुआ। और वह एक छोटा लड़का है, बहुत छोटा लड़का है। लेकिन जब उसे प्राप्ति हुई, जैसे, “यूरेका! यूरेका!” करते हुए वह अपने लोगों के पास गया।

उसने सभी सिख लोगों से कहा, “यहाँ तुम कर क्या रहे हो? चलो, नानक ने जो कहा है, उसके बारे में एक रास्ता है। इसे पाने का एक तरीका है। आप यह सब क्यों नहीं प्राप्त करते?”

और वह कई लोगो को लाया! और वह भाषण देता रहता था ! लोगों ने कहा, “माँ, हमें विश्वास नहीं हो रहा था कि यह लड़का भाषण दे सकता है”।

उन्होंने कहा कि वह कितना अच्छा बोलते थे और जो कुछ उसने सुना था वह आप जानते हैं, उसने कहा कि वास्तव में, वे उन्हें ग्रंथ साहिब पढ़ते थे। “तब” – उसने कहा – “मैं आधा सोता रहता था, मैं थक जाता था, वे लगातार ढाई दिन पढ़ते थे मैं थक जाता था। लेकिन किसी तरह ये सब बातें जो उन्होंने पढ़ीं, वे मेरे अंदर आईं। और वह इन सभी कविताओं और सब कुछ का पाठ करता था, और वह इस बारे मे बता रहा था कि नानक सहज योग के बारे में क्या कह रहे थे।

लोग उसकी बातों से चकित थे और उसके कारण बहुत से सिख लोग मेरे पास आए। सब, उसके अपने पिता, माँ, सब।

किसी भी व्यक्ती को यही करना चाहिये! यदि आप वास्तव में अन्य लोगों की भी परवाह करते हैं, तो आपको जाकर उन्हें बताना होगा, “यह रास्ता नहीं है, सत्य को खोजो, वास्तविक को खोजो।” अब अगर ऐसा समय आ गया है हमारे लिये कुछ हासिल करने का – हम प्रार्थना करते रहे हैं, हम चर्च जाते रहे हैं, हम मंदिरों में जाते रहे हैं, हम यह सब करते रहे हैं – अब क्यों, हम ऐसा क्यों कर रहे हैं? लेकिन उन्हें इसकी इतनी आदत हो जाती है कि [अगर] आप उनसे कहते हैं, “अब रुको, तुमने बहुत कुछ किया है, अब तुम अपनी खुद की चीज़ हासिल करो”, वे कहेंगे, “नहीं, हम अभी भी वही चीज़ करेंगे। ” आदत की बात है।

एक गुरु के लिए महत्वपूर्ण है, अन्य लोगों से ऊंचा होना । अगर वह नहीं है, तो वह काम नहीं कर सकता। आप सहजयोगी लोगो की बाहरी अभिव्यक्ति उत्कृष्ट होना चाहिए।

तुम भीतर हो, लेकिन बाहरी अभिव्यक्ति उत्कृष्ट होनी चाहिए। आपको विनम्र लोग, दयालु लोग, मधुर लोग, प्यार करने वाले, दयालु, समझदार, ऐसे होना होगा कि आप वहां थे, जहां वे आज हैं; खुशमिजाज लोग और आनंदित लोग। अन्यथा कोई भी विश्वास नहीं करेगा कि अंदर कुंडलिनी में क्या हो रहा है, क्योंकि जो कुछ हो रहा है वह हो रहा है, आप उसे नहीं देख सकते।
यह महत्वपूर्ण है कि यह आपके चेहरे पर, आपके व्यवहार में, हर चीज में झलके। उसके लिए आपको यह समझना होगा कि आपको अपना चित्त परमात्मा के चरण कमलों पर स्थिर करना है।

इसे ‘शरणागति’ कहा जाता है – समर्पण। समर्पण करके, पूजा करके, भक्ति से, गीत गाकर, स्वयं को सर्वशक्तिमान ईश्वर के चरण कमलों में स्थापित करके, यही एकमात्र तरीका है जिससे आप इसे प्राप्त करने जा रहे हैं।

आत्म-बोध के बाद ही, आपका प्रवेश ईश्वर के राज्य में होता है। इससे पहले आप जो भी कोशिश करें उसका कोई मतलब नहीं है। मुसलमान करते हैं सारी नमाज, सुबह से शाम तक- कुछ नहीं मिलता!

लेकिन हमारे पास कुछ मुसलमान थे, आप जानते हैं। आत्म-बोध के बाद एक बार जब उन्होंने नमाज़ की शुरुआत की, तो उन्होंने बताया कि, “हर बार जब मैं झुकता हूं तो मुझे चैतन्य मिलता है। हर बार जब मैं अल्लाह का नाम लेता हूं तो मुझे वायब्रेशन होता है।” यह उन सभी के साथ हुआ है। चुंकि ईश्वर मौजूद है, वह है, यह एक सच्चाई है। और समय आ गया है कि हम सब उसे महसूस करें और उसे जानें।

वैसे मैं रूस गयी थी और रूस के अनुभव, पूरी बात, मैं अभी आपको नहीं बता पाऊंगी, लेकिन एक बात मैं आपको इसके बारे में बताऊंगी, कि जब मैं वहां गयी तो उन्होंने कहा “हम लोगों को पूजा करने की पूरी आजादी भी दे रहे है।”

इसलिए मैं वहां स्थित एक चर्च देखने गयी, एक बहुत प्रसिद्ध चर्च उन्हें प्राप्त है, वहां एक ग्रीक सज्जन थे जिन्होंने चर्च शुरू किया था, और वह सब, ओर्थोडोक्स का – जो यहां रहता है (हंसते हुए) – रूढ़िवादी ईसाई चर्च। और, वास्तव में, मैं काफी चकित थी क्योंकि वह व्यक्ति, मुख्य व्यक्ति बिशप वगैरहा था , वह हमें मिलने और हमारा स्वागत करने आया था – उसकी कुंडलिनी बिल्कुल जमी हुई थी! (हँसी)

और मैं वह सब देख रही थी। और बहुत ही साधारण रूसी लोग, सभी पुरुष और महिलाएं, वहां थे और प्रार्थना कर रहे थे कि आप जानते हैं, और कुछ मोम्बत्तीया वगैरा थी जो उन्होंने लगाई थी।

तो मैंने भी वहां एक मोमबत्ती जलाई- अब उससे सारी लाइटें कांपने लगीं (हंसी)।

तब मेरे पति ने पुछा, “जब तुम इन पर विश्वास नहीं करती तो तुमने मोम्बत्ती क्यों जलाई?”। मैंने कहा, “मैं उस सज्जन पर विश्वास नहीं करती थी, लेकिन प्रकाश, मैं उस पर विश्वास करती हूं”। (हँसी, हँसी)

और तुम देखो, मैं चकित थी कि यह आदमी इस तरह से बात कर रहा था जैसे कि वह भगवान था! वास्तव में! तुम्हे पता हैं? (हँसी) इस तरह वह मुझसे बात कर रहा था! और उन्होंने कहा कि, “हमारी सरकार ने हमें इस पथ पर चलने की अनुमति दी है” और यह और वह।

अब जब मैं बाहर आयी, तो एक सज्जन जिन्होंने हमें आमंत्रित किया था, उन्होंने हमसे कहा, “श्रीमती श्रीवास्तव, आप इसके बारे में क्या सोचते हैं?” मैंने कहा, “मैं इसके बारे में कुछ भी कहने वाली नहीं हूं, लेकिन आप इसके बारे में क्या सोचते हैं?”। उन्होंने कहा, “क्या आपको नहीं लगता कि ये सब मूर्ख लोग हैं? वे कोई काम नहीं कर रहे हैं। वे अस्सी साधु हैं। वे काले रंग के होते हैं, वे काले और सफेद होते हैं। गोरे को काम करना चाहिए और काले कोई काम नहीं करते। और ये लोग कोई काम नहीं करते, ये परजीवी हैं, ये यहाँ बैठे हैं, ये कोई काम नहीं कर रहे हैं! और ये गरीब रूसी जो वहां हैं – मेरा मतलब है, रूसी उतने गरीब नहीं हैं जितना हम उन्हें समझते हैं। वे अपनी पॉकेट मनी बचाकर इस संस्था को चलाने के लिए दे देते हैं, और ये अस्सी व्यक्ति कह रहे हैं कि ‘हम प्रार्थना कर रहे हैं, हम यह कर रहे हैं’, और वे बस कोई काम नहीं करते हैं और यन्हा बैठे हैं। हमने इसकी अनुमति दी है। लेकिन क्या आपको लगता है कि इस जगह पर परमात्मा हैं?”।

मैंने कहा, “परमात्मा हर जगह है”। उन्होंने कहा, “क्या आप वास्तव में परमात्मा में विश्वास करते हैं?” मैंने कहा, “अब यह तुम्हारी गलती है। अगर कोई भगवान के नाम का दुरुपयोग करता है, अगर वह बाइबिल या क्राइस्ट का दुरुपयोग करता है या अगर वह किसी मंदिर या चर्च का दुरुपयोग करता है…”

भारत में भी ये सभी ब्राह्मण प्रथम श्रेणी के ठग हैं! बिल्कुल ठग! क्या आप जानते हैं कि वे आजकल क्या कर रहे हैं? क्योंकि अब लोगों ने उन के बारे मे जान लिया है।

गांजा बेच रहे हैं! ये सभी लोग ठग हैं और इन धर्म का प्रचार करने वालो में से ज्यादातर लोग अब राजनीति में आ गए हैं।

एक बड़ी राजनीति चल रही है, आप देखिए!

हिंदुओं में आपस मे बड़ी लड़ाई है, सिखों में परस्पर बड़ी लड़ाई है, मुसलमानों में आपस मे बड़ी लड़ाई है। में कह रही हूँ,परस्पर ! राजनीतिक आधार पर। ईश्वर राजनीतिक कैसे हो सकता है?

और स्वाभाविक रूप से, मुझे लगता है, यह सब देखकर, आप देखते हैं, यहां तक ​​​​कि लंदन में भी, हालांकि, मेरा मतलब है, मुझे कहना होगा, यहां तक ​​​​कि लंदन में भी, जहां हम ईश्वर में विश्वास करते हैं, मुझे आश्चर्य हुआ कि केवल 26% लोग ईश्वर में विश्वास करते हैं। देश! जिसमें से उन्होंने कहा कि लगभग 16% बाहर के लोग हैं और 10% केवल ब्रिटिश हैं जो ईश्वर को मानते हैं।

कल्पना कीजिए, यह स्थिति है!

तो तुम नास्तिक हो गए हो! और वे चर्च बेच रहे हैं, और लोग चर्च खरीद रहे हैं और उन्हें डिस्कोथेक बना रहे हैं (हँसी)। चर्च में अब भी, मुझे बताया गया था, हमारे चर्च के सामने वे वहां एक डिस्कोथेक लगाने जा रहे हैं (हँसी)। तो मैंने पूछा, मैंने कहा, “ऐसा क्यों?” “क्योंकि वे लोगों को आकर्षित करना चाहते हैं”। यानी उस धर्म में कुछ भी जीवंतता नहीं रह गयी है। कुछ प्रस्तुत करने योग्य भी नहीं है।

ईश्वर या क्राइस्ट या इन शुद्ध बिल्कुल शुद्ध सार तत्वो में से किसी मे भी कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन गलती उन लोगों से होती है जो उस धर्म का पालन करने वाले होते हैं, जो उस धर्म को बर्बाद करने वाले माने जाते हैं।

और फिर जब लोग इसे देखते हैं, तो प्रतिक्रिया ऐसी होती है कि “ईश्वर नहीं है”। मेरा मतलब है, यह सबसे बड़ी मूर्खता और मूर्खता है जहां, मैं कहती हूं कि, यह समझने के लिए लोगों ने अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया कि किसी भी चीज का दुरुपयोग कर और गुमराह किया जा सकता है; लेकिन यह जानने के लिये की ईश्वर है या नहीं क्यों न खुद के दिमाग को खुला रखें?

और वहां वह है! यह एक तथ्य है! यह एकमात्र सत्य है। वही एकमात्र सत्य है, बाकी सब माया है। यह समझना होगा कि ऐसा ही है।

उसके नाम पर जो पैसा कमाते हैं वे पहले तो मूर्ख और दूसरी बात की चालाक भी हैं – दोनों ही बात है।

मूर्ख, क्योंकि वे नहीं जानते कि यह पैसा वे अपने साथ नहीं ले जा सकते हैं, और इसके लिए उन्हें दंडित किया जाएगा; और चालाक, इसलिये क्योंकी सांसारिक तरीके से वे सोचते हैं कि वे बहुत चतुर-चालाक हैं। नरक में तेजी से जाने के लिए बहुत चालाक! यही वे करते रहे हैं।

तो ऐसे सभी लोगों से आपको इस तरह या उस तरह से गुमराह नहीं होना चाहिए।

उदाहरण के लिए, उन से आपको इस कथन से गुमराह नहीं होना चाहिए कि, “चुंकि ये भयानक लोग ईश्वर की बात कर रहे हैं, वे ईश्वर के बारे में बता रहे हैं, मतलब कि कोई ईश्वर नहीं है और कैसे ईश्वर हो सकते हैं? अगर ये लोग ईश्वर के अनुयायी हैं तो ईश्वर हो ही नहीं सकते। देखने का यह भी एक तरीका है।

दूसरा तरीका यह है कि इन भयानक लोगों का आँख बंद करके अनुसरण किया जाए और यह न देखा जाए कि वे भयानक हैं, वे ईश्वरीय कैसे हो सकते हैं?
मुझे लगता है कि इन दोनों बातों के बीच भ्रमित होना बुद्धिमानी नहीं है। बल्कि यह सुनिश्चित करना की ईश्वर है और ऐसा किआप को ही ईश्वर का अनुभव अवश्य ही प्राप्त करना है, और आपको इसकी अभीप्सा करनी होगी और इसके लिए मांगना होगा, जिसके लिए वह ईश्वर स्वयं कार्यरत है!

वह आपसे कहीं अधिक इसे कार्यांवित करने के लिए उत्सुक है। आपका थोडा सा सहयोग, थोड़ा सा हाथ सिर्फ उसके जो आपको बाहर निकालने के लिए नाव में खड़ा है,हाथ में डालने के लिए। बस थोड़ा सा सहयोग और अपने साथ थोड़ा धैर्य और अपने आप में विश्वास हो कि ईश्वर ने आपको अपनी ही छवि जैसा बनाया है ताकि आप उनकी करुणा और उनके प्रेम में उनका पूरा आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

ईश्वर आप को आशिर्वदित करे।

अब जो लोग पहली बार आए हैं, मैं उनसे पहली या दूसरी पंक्ति में आने का अनुरोध करूंगी ताकि हम उनकी देखभाल कर सकें और बाकी आप कृपया अपना ध्यान अपने ह्रदय पर लगाएं। यह सब ठीक है। तुम बैठ जाओ। जो [नए] आए हैं वे आगे आ सकते हैं।

श्री माताजी: डेविड, आप कैसे हैं?

डेविड: यहां आकर खुशी हुई।

श्री माताजी: हम्म?

डेविड: यहां आकर खुशी हुई।

श्री माताजी : उन्होंने क्या कहा?

योगी: यहां आकर खुशी हुई।

श्री माताजी : मैं भी बहुत खुश हूँ।

योगिनी: माँ, जब आपने कहा था ‘अपना ध्यान अपने ह्रदय पर लगाओ’ तो क्या आपका मतलब हृदय चक्र से है? “

श्री माताजी : आप ह्रदय को महसूस नहीं कर सकते। आप हृदय चक्र को नहीं जान सकते, कुछ नहीं!

जब मैं ऐसा कहती हूं, तो बस इतना कहती हूं, “मैं अपना चित्त अपनी आत्मा पर लगा रहा हूं,” बस इतना ही। आपका ऐसा कहना ही एक मंत्र है।

अब तुम जानते हो की आप साक्षात्कारी-आत्मा हैं।

आप एक प्रबुद्ध व्यक्ति हैं, आपकी इच्छा प्रबुद्ध है। और यदि आप केवल ऐसा भी कहते हैं कि ‘मेरा चित्त मेरे हृदय में स्थित आत्मा पर है, हृदय के अंग में मेरी आत्मा पर है…’

आप देखिए, अबआप जो भी कहते हैं उसका एक अर्थ होता है। क्या आप समझे? आप जो कुछ भी कहते हैं वह अब प्रबुद्ध है, उसमें एक प्रकाश है। केवल एक चीज है, अगर आपका चित्त अभी भी ठीक नहीं है, तो प्रकाश अभी भी मंद है। अगर मंद रोशनी में आप अधुरी चीजें देख पाते हैं, लेकिन आप देखते हैं। लेकिन अगर यह एक तेज रोशनी है तो आप इसे बहुत स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। तो प्रकाश को चमकीला करने के लिए, आप बस इतना कहे, “मुझे अपने ह्रदय में ही रहने दे।” यह कार्यांवित होता है, स्थापित करता है, आप देखिये? जैसे कि आप अपना चित्त को वहां रहने का आदेश देते हैं।

देखिये, यह ठीक एक प्यारे छोटे बच्चे की तरह, उसी तरह से ही चलता है। वहाँ स्थापित हो जाता है, “ठीक है, माँ, जैसा भी आप कहे।” बस ऐसे ही कहो। बस अपनी शक्तियों को महसूस करने की कोशिश करो। आप क्या कहते हैं, यह उसी तरह काम करता है। यहां तक ​​कि जब आप मंत्र कहते हैं, तब ये मंत्र भी प्रबुद्ध होते हैं। कोई अन्य प्रश्न?

मुझसे सवाल पूछना चाहिए, तुम्हें पता है। मुझे नहीं पता कि क्या कहना है, आप क्या सोच रहे हैं। अब मुझसे सवाल पूछो।”

प्रश्‍न : क्‍या रूस भी तैयार हैं…

श्री माताजी: हम्म?

प्रश्नकर्ता : रूसी भी ईश्वर आराधना को तैयार हैं?

श्री माताजी : मशीनें?

प्रश्नकर्ता : रूसी।

योगिनी : क्या रूस के लोग तैयार हैं…

श्री माताजी: रूसियों? मैंने उनमें से बारह को आत्म-बोध दिया है। अब आप देखिए, वह एक चीज है, भले ही वे मानें या न मानें, इसका कोई अर्थ नहीं है, है ना? आपने देखा है कि ईश्वर में विश्वास करने का क्या फायदा है।

योगी: हाँ।

श्री माताजी : लेकिन मैंने केवल एक बात उनके सिस्टम में देखी है, उसका एक फायदा और नुकसान भी है। जैसा कि यहां एक नुकसान है जो अज़ीब तरीके से कार्य करता है।

उदाहरण के लिए, मैंने पाया है कि, उनकी प्रणाली में, चाहे लोग कुछ भी कहे, प्रचार करते हैं, आप देखिये, मैंने जो कुछ भी देखा है वह यह है कि उनकी भौतिक समस्याएं बहुत हल हो गई हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। आप समझ सकते हैं? कोई संदेह नही।

उन्हें महंगाई की कोई समस्या नहीं है, कुछ भी नहीं।

उन्हें किसी भी तरह के कराधान, किसी भी चीज का भुगतान करने की चिंता नहीं है। मेरा मतलब…

योगी: कोई बेरोजगारी नहीं, आप जानते हैं।

श्री माताजी: हम्म?

योगी: कोई बेरोजगारी नहीं।

श्री माताजी : कोई बेरोजगारी नहीं, कोई समस्या नहीं। बुढ़ापा सुलझा हुआ है, जवानी सुलझी हुई है।

वह चित्त उचित जगह पर है । यह एक फायदा है। लेकिन नुकसान यह है कि – उस चीज़ को बनाये रखने के लिए, उन्होंने लोगों की स्वतंत्रता छीन ली है, आप देखिये? उसके कारण, क्या होता है, ईश्वर के बारे में सोचने की स्वतंत्रता मौजूद नहीं है। हालांकि चित्त ज्यादा ढीला है।

यहां ईश्वर के बारे में सोचने की आजादी तो है। लेकिन चित्त इस बात पर है – रोटी कैसे प्राप्त करें? कल रोटी है पर 1पैसा बढ़ रहा है।

क्या करें? अपनी दरों का भुगतान कैसे करें? इसका भुगतान कैसे करें? ये सभी समस्याएं। इसलिए चित्त इन बातों पर ज्यादा जाता है।

इसके अलावा एक और चीज जो वहां इतनी आम नहीं है, जो यहां है वह है अनैतिकता। अनैतिकता, एक तरह से। मेरा मतलब है, यहाँ सभी प्रकार की अनैतिकताएँ हैं। वहां उस पर एक प्रतिबंध है, आप देखिए। वहां मैंने ऐसा कुछ भी नहीं देखा, नग्नता वगैरह, वे सभी चीजें वहां नहीं थीं। तो उससे हमारा चित्त भी खराब हो जाता है, आप देखिए।

और मैंने पुरुषों, महिलाओं को हर समय इसे, उस तरह से देखते हुए नहीं देखा। मैंने उनकी आंखें कुछ तलाशते हुए नही देखीं। उनकी आंखें काफी स्थिर थीं। यहां आप किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं ढूंढ पाते। आप जिस किसी को भी सड़क पर देखेंगे, वह हर तरफ देख रहा होगा। मेरा मतलब है, मैं एक संग्रहालय की चीज़ की तरह हो गई थी क्योंकि इसके (बिंदिया के)साथ, एक साड़ी पहने हुए (हंसते हुए, हँसी) तो स्वाभाविक रूप से वे मुझे देख रहे थे और एक तरह से यह अच्छा था, क्योंकि वे मेरी आज्ञा को देख रहे थे, इसलिए यह अच्छा था उन्हें! (हँसी)

लेकिन कुल मिलाकर, कुल मिलाकर, उनका चित्त वैसा भी नहीं था जो गुजरती हुई हर महिला को देखे। अगर आपकी गर्दन टूट भी जाए, तो देखिए, वे देखते ही रह जाएंगे,।
ऐसी सब मूर्खता जैसा कि एक पुरुष और महिलाएं यहां करते हैं, वहाँ नहीं थी। यह बिल्कुल सामान्य बात थी , आप देखिये, और महिलाओं को अपना शरीर सोष्टव रखने, और आकर्षक होने में इतनी दिलचस्पी नहीं थी, और वह ऐसा सब कुछ नहीं था। कोई भी असाधारण रूप से उस तरह का पहनावा नहीं था। बहुत ही सरल लोग, मुझे कहना होगा: बहुत सरल, निर्दोष। और इसके अलावा, जो कुछ उनके पास था, उनमें से अधिकांश संतुष्ट थे।

बहुत सस्ती जगह, हर चीज़ के बहुत सस्ती थी। उनके पास वैसी भौतिकता की समस्याएँ नहीं हैं जैसे हमारे पास हैं। लेकिन इन सब पर काबू पाने के लिए उन्हें ये वर्जना मिली है.

फिर, उनकी विदेश नीतियों के कारण, लोग जिन्हे कहते हैं, सब गलत है और जो कुछ वे थे, मैंने उस पर चर्चा नहीं की है।

लेकिन जो कुछ भी है, वह भी उन पर एक दोष हो सकता है।

शायद। लेकिन मुख्य बात यह है कि आपको बेतुका होने की स्वतंत्रता है और उन्हें समझदार होने की भी कोई स्वतंत्रता नहीं है। कौन एक बेहतर है? अब तुम मुझे बताओ। सैंडोर, आपको क्या लगता है?

कौन सा पक्ष बेहतर है?

सैंडोर एल्स (एक हंगेरियन अभिनेता): मैं कहता हूं कि यह सबसे शानदार सत्र है जो मैं अनुभव कर पा रहा हूं!

श्री माताजी : यह वही है, मैं सच में तुमसे कहती हूँ।

सहज योगी : बहुत अच्छा विश्लेषण, बहुत अच्छा विश्लेषण।

श्री माताजी: तो मुझे नहीं पता कि किसे चुनना है। हो सकता है कि पूरा रूस एक दिन सहजयोगी बन जाए, जब यह स्थापित हो जाएगा, आप देखिए। वे यह जानते हैं। मैंने उनके राष्ट्रपति को निरोग कर दिया है। यह वे जानते हैं और करीब दस लोग मुझसे मिलने आए। उन्हें ह्रदय रोग की परेशानी थी, यह और मैं इसे अपने तरीके से प्रबंधित करने जा रही हूं, लेकिन हमें यह समझना होगा कि हम प्रतिबंधों से लड़ते हैं। हमें प्रतिबंध पसंद नहीं है। लेकिन, क्या हममें अपनी आजादी का इस्तेमाल करने की समझ है? क्या हमारे पास है?”

सहज योगी: हमारे अंदर पशु है।

श्री माताजी : आप देखिये, हमारे अंदर स्थित पशु।

वास्तव में एक जानवर है। होना चाहिए। जिस तरह से इधर-उधर देखते है। मैं बस नहीं समझ सकता।

इसके अलावा, आप जानते हैं कि हर कोई मुस्कुराता था, मुझ पर मुस्कुराना। लेकिन जब मैं पहली बार लंदन आई थी, तो मैं आपको बता दूं कि वे मेरा मजाक उड़ाते थे और मैं कई भारतीय महिलाओं से मिली, जिन्होंने इसे कभी नहीं पहना। मैंने कहा, “तुम क्यों नहीं पहन रही हो?” उन्होंने कहा, “हम इसलिए नहीं पहनते क्योंकि हर कोई हम पर हंसता है।” वहां [रूस में] उन्होंने सराहना की। वे जानना चाहते थे कि मैंने भिन्न पोशाक] क्यों पहनी है। लेकिन यहां हर कोई इसे नगण्य कर देता है।

देखिए यहा हर कोई सोचता है कि वे सबसे बुद्धिमान हैं, आप देखिए। वे जो पोशाक पहनते हैं वह सबसे समझ्दारीपुर्ण है, उनका जो चेहरा है वह सबसे अच्छा है, उनके पास जो कुछ भी है वह सबसे अच्छा है। वे [रूस में] ऐसे नहीं हैं।

लेकिन फिर भी, आपको चुनने की स्वतंत्रता है। यह कितनी अच्छी बात है? और नर्क को भी चुनने की स्वतंत्रता है।

मुझे लगता है कि आप पर बहुत अधिक जिम्मेदारी है। मुझे आश्चर्य है कि क्या आप इसे महसूस करते हैं, जैसे कि आप बड़े हो गए हैं। बहुत बुद्धिमान। क्या हम उस आजादी के लायक हैं? हमें खुद से पूछना होगा। हम अपनी आजादी का क्या करें?

उन्होंने उन पर बहुत बड़ा टैक्स लगाकर शराब जैसी कई चीजों को प्रतिबंधित कर दिया है।

इसलिए वे ज्यादा नहीं पी सकते। प्रत्येक, उन सभी पर भारी कर लगाया जाता है। सिगरेट, सब कुछ, तंबाकू पर इतना भारी कर लगाया जाता है कि वे इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं, लेकिन आप चकित होंगे, एक ट्यूब मेट्रो मे पांच मील जाने के लिए आपको चार पैसे खर्च होते हैं, एक ट्यूब में पांच मील और कितनी भी बार वापस आना। एक बार जब आप टिकट खरीद लेते हैं तो आप ट्यूब में होते हैं, आप एक तरफ, किसी भी दूरी पर जा सकते हैं और यदि आप ट्यूब स्टेशनों को देखते हैं, तो यह महलों की तरह है, बिल्कुल महलों की तरह, आप चकित रह जाएंगे।

हर मेट्रो ट्यूब स्टेशन, मैंने कम से कम चार, पांच देखे और लेनिनग्राद सबसे साफ बंदरगाह है जितने भी मैंने कभी देखे है। मैंने अब हजारों देखे है आप जानते हैं। मैंने इतना लंबा सफर तय किया है।

देखिए, हमारी आज़ादी का अंदाज़ भी बड़ा अजीब है। उदाहरण के लिए, हम लड़ेंगे कि आपको लाल साड़ी पहननी चाहिए या काली साड़ी। मेरा मतलब कुछ ऐसा है जिसे आप जानते हैं, वास्तव में बिल्कुल फालतु।

इसलिए यदि आप अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करना नहीं जानते हैं, तो यह बहुत अधिक है। देखो, गधे पर हाथी का बोझ डालोगे तो क्या होगा? यह ऐसा ही है।

या तो हमें हाथी बनना होगा या फिर अपना वजन कम करना होगा। यह जिम्मेदारी बहुत ज्यादा है।

लेकिन सहज योग के द्वाराआप इसे कर सकते हैं। अब सहज योग पश्चिम में अधिक फैल रहा है, स्वाभाविक रूप से रूस में नहीं। लेकिन एक बार जब रूसी आएंगे तो मैं उन्हे प्रतिस्पर्धा में देखूंगी।

वह आदर्श दिन होगा जब हम डर और झगड़ों वगैरह की इन सभी समस्याओं को समाप्त कर देंगे, जब मैं अपने रूसी बच्चों और अंग्रेजी और अमेरिकियों को, उन सभी को एक-दूसरे को चैतन्य देते हुए देखूंगी, वह सबसे महान दिन होगा। मेरी जिंदगी का।

यह सभी समस्याओं, अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं और राजनीति की इन समस्याओं और इन सभी बकवासों का समाधान करेगा। और हमारी राजनीति भी ऐसी ही है, आप देखिए, हमारी आजादी भी ऐसी ही है जोकि हम सिर्फ एक दूसरे से [के लिए] लड़ रहे हैं। हमने इससे भी क्या हासिल किया है? हम अपनी बहुत सारी ऊर्जा लड़ाई-झगड़ों में बर्बाद कर देते हैं।

राजनीति तभी तक ठीक है जब तक आप एक दूसरे को सुधार करते हैं और कुछ प्रगतिशील करते हैं।

लेकिन अगर इसका मतलब स्थिर अवस्था है तो आप सभी को एक ही बिंदु को खींचते हुए देखते हैं। यह एक स्थिर बिंदु पर है। ऐसी राजनीति का भी क्या फायदा?

तो अगर आपको आजादी दी गई है तो आपको पता होना चाहिए कि इसकी कोई न कोई वजह जरूर रही होगी और हम किस तरह से अपनी आजादी का इस्तेमाल कर रहे हैं?

और कुछ? वे सभी एक दिन परमात्मा में विश्वास करेंगे क्योंकि उनके पास अनुभुति होगी। मैंने इसे पहले ही शुरू कर दिया है।
सहज योगी:…बीज पर..

श्री माताजी : मैंने उनकी कुण्डलिनियाँ उठाई हैं। बहुत अधिक मेहनत की। कोई शक नहीं, यह कार्यांवित होगा। मनुष्य जाति कठिन प्र्कृति की है यहआप जानते हैं। बिना इस प्र्कार के प्रतिबंधों केआप किसी समस्या को हल करना चाहते हैं, हल नहीं किया जा सकता है। पश्चिम के लिए सहज योग ही एकमात्र उपाय है। यही एकमात्र तरीका है, है ना?

और कोई रास्ता नहीं बचा है, क्योंकि अब वे भौतिकवाद की चुभन महसूस कर रहे हैं, वे समझ रहे हैं कि पदार्थ उन्हें आनंद नहीं देता है और वे अब इससे छुटकारा पा रहे हैं और उन्हें लग रहा है कि उन्हें कुछ और गहरा खोजना है।

यही इसका फायदा है और ऐसा वहां भी हो सकता है। यह एक अलग तरीके से संभव है, ऐसा हो सकता है। लेकिन अब यह आपके साथ पहले ही हो चुका है, यह हो रहा है। अब, हम इसके बारे में क्या कर रहे हैं? ईश्वर की दृष्टि मे आप सभी एक जैसे हैं चाहे रूसी, अंग्रेजी या अमेरिकी कोई फर्क नहीं पड़ता। सभी एक ईश्वर द्वारा बनाए गए थे। उसने बस एक सुंदर नक्शा रचाया है। वह नहीं चाहता था कि आप अलग-अलग देश और राष्ट्र बनाएं और अपराधियों की तरह काम करें; यह सब तुम्हारा कृत्य है। आपने ऐसा किया है। अब इस की तरफ देखो!

उसने ऐसा नहीं रचाया है।

कोई अन्य प्रश्न?

सहज योगी : परमात्मा नर है या नारी?

श्री माताजी : अब परमात्मा दोनों हैं। वह एक कैसे हो सकता है? ठीक है? ईश्वर पुरुष के रूप में एक है और जब वह नर और नारी हो जाता है तो नारी उसकी शक्ति होती है और ईश्वर उसकी शक्ति का साक्षी होता है। ठीक है? पहले वे एक साथ हैं। अलग होने पर वे दो हो जाते हैं। एक है सर्वशक्तिमान ईश्वर जो साक्षी है और उसकी शक्ति है, जो रचना करती है। और वह उसके खेल का साक्षी है। आप मेरा रचना पर लेख पढ़ें और रचना पर एक लेक्चर भी है। उसके पास होना चाहिए, आप उसे वह देने के लिए कहें। मैं इसके बारे में बहुत समय पहले बोलती थी।

डगलस [फ्राई] के पास एक टेप उपलब्ध है। उसके पास बहुत सारे टेप हैं और यदि आप उसे एक खाली टेप देते हैं तो वह आपके लिए भर देगा और आपको दे देगा। आप देखिए, उसके पास कुछ व्यवस्था है। पता नहीं उसके पास क्या इंतजाम हैं। लेकिन आप मेरा टेप रचना (क्रिएशन) पर प्राप्त कर सकते हैं।

होली घोस्ट एक स्त्री है।

तो परमेश्वर, पवित्र आत्मा और उसका पुत्र।

उस लेख मे यह सब चर्चा मैंने की है। और जब मैं ईश्वर में आस्था के बारे में बता रही थी, तो मेरा मतलब यह था कि जब तक योग नहीं होगा, तब तक आप अपना क्षेम [कल्याण] प्राप्त नहीं कर सकते।

तो वे लोग जो आपसे सिर्फ यह कहते हैं कि, “हाँ हाँ मुझे ईश्वर में विश्वास है, ईश्वर ने मेरी बहुत मदद की है, उसने मेरे लिए यह किया है और मेरे लिए।” तब आपको पता होना चाहिए कि यह सिर्फ एक काल्पनिक मिथक है। वे एक निश्चित मिथक के साथ जी रहे हैं। जब तक योग न हो, परमात्मा से मिलन न हो, तब तक तुम्हारा कल्याण [क्षेम] नहीं हो सकता। जो कुछ कल्याण आपके होते है, वह महज एक संयोग है। लेकिन स्व-स्फुर्त जब यह आप पर काम करता है, ऐसा तब यह होने लगता है जब आपको अपना आत्म-बोध मिल जाता है।

ठीक है, चलो हम नए लोग और आप सभी को लेते हैं। कृपया अपने जूते निकाल लें और अपने दोनों पैरों को अच्छी तरह से जमीन पर रख दें। अब जैसा कि मैंने आपको बताया है कि यह एक घटना है। यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे कोई प्रमाणित कर सकता है कि, “हां हां, आपको आत्म-बोध हो गया है।” मैं अपने बच्चों को प्रमाणित भी नहीं कर सकती। इसे घटित होना ही होगा। फिर दूसरी बात यह है कि एक बार इसके घटित हो जाने के बाद, आपको इसका पोषण करना होगा, आपको इसकी देखभाल करनी होगी।

आपको इसे स्थापित करना होगा, जिसके लिए सहज योग बिल्कुल सक्षम है और मैं भी बहुत मेहनत कर रही हूं। मैंने सिर्फ अंग्रेज लोगों और यूरोप पर भी काम करने के लिएअमेरिका का अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया है, ।

तो आइए देखें कि यह कैसे काम करता है। कृपया अपने हाथ…

आपको हर चीज का डटकर सामना करना पड़ता है। डरने की कोई बात नहीं है, हर किसी को परिवर्तित किया जा सकता है। आप में से प्रत्येक को रूपांतरित किया जा सकता है। इसलिए किसी भी बात से निराश न हों। इसका बुरा न मानना।

अपने आप की निंदा करना नहीं क्योंकि यह शरीर परमात्मा द्वारा बनाया गया मंदिर है। अब आंखें बंद कर लो।…

सबसे पहले आप निर्विचार जागरूक महसूस करेंगे। यानी आपके दिमाग में कोई विचार न हो। लेकिन तुम जागरूक हो, भीतर से।

क्या आपको महसूस हो रहा है? स्पष्टवादी? विचार, अब, अपनी आँखें बंद करो। क्योंकि यदि आप अपनी आंखें बंद नहीं करते हैं, तो कुंडलिनी आज्ञा से ऊपर नहीं उठेगी।

आज्ञा से ऊपर उठे बिना तुम्हारे विचारों को रोका नहीं जा सकता। तो आपको अपनी आंखें बंद करनी होगी। यदि आप समझे, इसमे कोई मंत्रमुग्धता नहीं है। खुद के प्रति थोड़ा धैर्य रखें, यह कार्यांवित होगा।

अब दूसरी बात यह है कि जब कुंडलिनी इस फॉन्टनेल हड्डी क्षेत्र को छेदती है, तो आपके हाथों में ठंडी हवा आने लगती है। आप इसे अभी प्राप्त कर रहे हैं?

अपनी आँखें बंद करो, अपनी आँखें बंद करो, इसे काम करने दो, इसे काम करने दो। डेविड, मेरी आज्ञा को देखो… जरा महसूस करो, तुम्हारे हाथ में आ रहा है।

श्री माताजी : महसूस नहीं हो रहा? आप इसे महसूस करेंगे। धैर्य रखें, धैर्य रखें, महसूस करेंगे। अपनी आँखें बंद करो, मैं इसे आप सभी के लिए कार्यांवित कर रही हूँ। बस एक पल। हो जाएगा। नहीं आ रहा है तो आ जाएगा। देखिए यह सिर्फ आपकी कुंडलिनी का एक अंकुरण है। है न?

यह अपना समय लेगा। क्या आप इसे प्राप्त कर रहे हैं? हाथ में ठंडी हवा? ठीक है, अपनी आँखें बंद करो, अपनी आँखें बंद करो, बस इसे जाने दो।

जाने दो। अपना चित्त बिल्कुल मुक्त रखें। इसे किसी भी बिंदु पर केंद्रित न करें।