The Guru Principle Caxton Hall, London (England)

“द गुरु प्रिंसिपल”, कॉक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 28 जुलाई 1980 कल मैंने आपको भवसागर, धर्म के बारे में बताया था जिसे मनुष्य को स्थापित करना है। आधुनिक समय में लोगों ने अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग उस सीमा तक किया है, वो बहुत आगे चले गए हैं, इस अति तक या उस अति तक। उन्होंने अपने केंद्रीय मार्ग को त्याग दिया है और स्वयं को स्वीकार और पहचान लिया है इस प्रकार के, प्रत्येक चीज़ के बारे में अतिशय विचारों के साथ, कि लोगों को यह समझाना कठिन है कि उन्होंने अपना मार्ग खो दिया है। कोई भी अतिशयता अनुचित हैं। संतुलन वह मार्ग है जिससे हम वास्तव में समस्या का समाधान करते हैं। किन्तु मानव जाति इस प्रकार की है कि प्रत्येक बहुत तेज़ी से दौड़ना आरंभ कर देता है, आप देखें और इसमें एक प्रतियोगिता निर्धारित है: कौन पहले नरक में जाता है।  यह मात्र एक दिशा में नही है, आप किसी भी दिशा को ले सकते हैं, किन्तु ये सभी दिशाएं रैखिक हैं। वो सीधे जाते है और घूम जाते हैं और नीचे जाते हैं – उस प्रकार का कोई भी संचलन। उदाहरण के लिए मानो, हमारा औद्योगिक विकास। हमने अपने औद्योगिक विकास का आरंभ सम्पूर्ण को समझे बिना किया है, सम्पूर्ण संसार, कि सम्पूर्ण संसार ईश्वर द्वारा बनाया गया था, एक भाग नहीं, एक राष्ट्र। संपूर्ण के साथ संबंध को समझे बिना, जब हम औद्योगिक रूप से आगे बढ़ना आरंभ करते हैं, तब हमने उद्योगों का निर्माण किया और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए हमें अन्य उद्योगों Read More …