नवरात्रि पूजा
हैम्पस्टेड, लंदन (यूके), 19 अक्टूबर 1980।
तो आपने जीवन में आज के दिन देवी के महत्व के बारे में तो सुना ही होगा। और आज रावण मारा गया और इस तरह जश्न मनाया गया। “इतिहास अपने आप को दोहराता है।”
जैसा कि आप अच्छी तरह जानते हैं कि उस समय जिन शैतानी ताकतों का सामना करना पड़ा था, वे सभी वापस रंगमंच पर वापस आ गई हैं और उन्हें पराजित होना है। आधुनिक समय की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इन शैतानी ताकतों ने बहुत सूक्ष्म रूप धारण कर लिया है और वे आपके मानस में और आपके अहंकार में प्रवेश कर गई हैं। और तुम संत हो, तुम भक्त हो, तुम देवी के भक्त हो। यह बहुत ही नाजुक स्थिति है।
जब भ्रम होता है, जब संतों पर हमला होता है, तो हमलावर को हटाया जा सकता है, लेकिन संत ही नकारात्मक शक्तियों से मेलजोल में हो जाता है या भ्रमित हो जाता है, इस वजह से उसे प्रकाश दिखाई देना बहुत मुश्किल होता है। और आपने इस स्थिति को बहुत अच्छे से देखा है। और आप जितने सूक्ष्म विकसित होते हो, वे भी उतने ही सूक्ष्म होते गए। और वे तुम्हें ऐसे विचार देने लगते हैं जो इतने नकारात्मक होते हैं, लेकिन तुम उन्हें देख नहीं पाते। इसलिए आज की समस्या बहुत नाजुक है। कोई पूर्ण संत नहीं हैं और कोई पूर्ण बुरे लोग नहीं हैं। ऐसा मिश्रण, एक भ्रम, यही कलियुग है, ये आधुनिक समय है।
इनसे छुटकारा पाने का एक ही उपाय है कि समर्पण कर दो। बस यही एक रास्ता है, कोई दूसरा रास्ता नहीं है। क्योंकि जब आप समर्पण करते हैं, तो प्रेतात्माएं, नकारात्मकताएं, शैतानी ताकतें गायब हो जाती हैं क्योंकि वे प्रभावी नहीं होतीं। उनके पास वहां रहने का कोई काम नहीं होता है। उन्हें उस व्यक्ति में कोई दिलचस्पी नहीं है जो ईश्वर के प्रति समर्पित है। वे समर्पण नहीं कर सकते। यदि वे समर्पण करते हैं तो वे भी संत बन जाएंगे।
हर समय ऐसा सोचते रहना कि: “मेरे कैच क्या हैं? मेरी नकारात्मकताएं क्या हैं?” इस से आपकी कोई मदद नहीं होने वाली है। बस उन सभी विचारों को त्याग दो जो तुम्हारे पास आ रहे हैं और तुम पाओगे कि सभी बेतुके विचार भाग जाएंगे। अपनी समस्याओं से छुटकारा पाने का यह सबसे आसान तरीका है, बस समर्पण करना है। आखिरकार, ये सभी भयानक लोग, सभी भयानक दानव, शत्रु, जो देवी से लड़ने के लिए आगे आए, तभी तक वहां हैं जब तक आप उनका पालन-पोषण करते हैं। जैसे ही आप आत्मसमर्पण करते हैं, वे पाते हैं की आप उन के लिए किसी काम के नहीं और वे दूसरे आधे-अधूरे लोगों के पास चले जाते हैं।
विकास तभी होगा जब समर्पण पूर्ण होगा। किसी व्यक्ति को यह समझना होगा कि शक्तियां जबरदस्त हैं। आप इसकी कल्पना नहीं कर सकते जैसा कि मार्कंडेय ने कहा है। तुम इसकी कल्पना नहीं कर सकते; यह तुम्हारी कल्पना से परे है। बाहर से तुम समझ नहीं सकते, तुम बस समझ नहीं सकते। ऐसी परिस्थितियों में सबसे अच्छा यही है कि आप स्वयं को समर्पित कर दें। अब समर्पण के साथ, आप क्या समर्पण करते हैं? आप क्या समर्पण करते हैं? यह आपका अहंकार और आपका प्रति-अहंकार है और यह पूरी तरह से साफ हो जाता है और आशीर्वाद में सराबोर हो जाता है। क्योंकि आप कुछ नहीं दे सकते, आपको आशीर्वाद प्राप्त करना होगा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपको केवल समर्पण करना होगा। यह बहुत आसान है। अपनी सभी समस्याओं को हल करने का सबसे आसान तरीका है समर्पण करना।
बस कहें: “मैं आत्मसमर्पण करता हूँ”। सिद्ध आत्माओं के लिए यह उनका मंत्र होना चाहिए। और आप हैरान रह जाएंगे कि कैसे आपकी सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी। क्योंकि न केवल यह शक्तियाँ जबरदस्त हैं, बल्कि जैसा कि आप आत्मसाक्षात्कारी आत्माएँ हैं, सभी दिव्य शक्तियाँ, सभी दिव्य देवता, सभी शाश्वत प्राणी, चिरंजीव, सभी देवदूत और गण, वे सभी आपकी देखभाल कर रहे हैं। लेकिन वे एक बात जानते हैं, कौन समर्पित हैं और कौन समर्पित नहीं हैं। आप बस समस्या को समर्पित कर दें, और आप हैरान होंगे कि इतने चमत्कारी ढंग से उत्तर आ जाएगा। बस समर्पण करो। अपने ऊपर कोई जिम्मेदारी न लें। बस समर्पण करो। क्योंकि आप समाधान करने में कहाँ तक जा सकते हैं? अधिक से अधिक आपकी तार्किकता तक। आपकी आत्मा इससे परे हैं, और आत्मा परमात्मा से जुड़ी हुई है। तो सबसे अच्छा है समर्पण करना और पूरी चीज ऐसा प्रकाश और इतना सौंदर्य और ऐसा अर्थ दिखाएगी।
अब आधुनिक समय में कार्य वैसा नहीं है जैसा कि पूर्व में वर्णित है, जब रौद्ररूपा या जो चंद्ररूपा आप वहां देखते हैं, वह पूर्व में था।
यह मेरा काम है, यह एक माँ है, यह एक सरल, प्यारी, दयालु है। आपकी रक्षा के लिए अब यह रूप है, लेकिन आप इसे नहीं देखते हैं। आप पूरी तरह से सुरक्षित हैं, इसके बारे में सुनिश्चित रहें।
और कुंडलिनी जागरण देने की, या लोगों को चंगा करने की, या सहज योग की बात करने की, या इसे प्रसारित करने की, कोई भी, किसी भी प्रकार की चीज जो आप चाहते हैं, वह सभी प्रदान की जाती है, सभी के माध्यम से प्रवाहित हो रही है।
और जैसा कि आप जानते हैं, कि कई संत हैं, जिन्होंने कहा है, “इन सहजयोगियों को यह महान वरदान क्यों दिया जाना चाहिए?” तो कोई कह सकता है कि यह एक सनक है, ठीक है।
एक बात और है। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि इस देश के महान कवि ब्लेक ने मेरे बारे में भविष्यवाणी की थी। और यह इतनी खूबसूरती से की गयी है, कि उन्होंने कहा कि इंग्लैंड जेरूसलम बनने जा रहा है। यह तीर्थ होने वाला है। स्थल बदल गया है। और फिर उन्होंने बहुत खूबसूरती से कहा है- क्या यह चीज़ आपको पढ़ने के लिए प्राप्त हुई है? अरे नहीं लाये। लेकिन क्या पढ़ा है, कि उन्होंने कहा है कि पहले सरे हिल्स में भट्टी जल रही होगी, जहां मैं पहले आयी थी, और फिर उन्होंने लेम्बेथ वेल का उल्लेख किया है, जहां हमें अपना आश्रम मिला है,
जहां नींव रखी जाएगी, वहां हम ने नींव रखी है। और वह यरूशलेम इंग्लैंड में होने जा रहा है, भारत में नहीं। और तुम लोग इस यरूशलेम के उत्तरदायी हो।
आज वह दिन है जिसके लिए भारत में हर कोई पूजा कर रहा है। और सभी सहजयोगी आज, हर केंद्र में आज पूजा है। और वे सब तुम लोगों के बारे में सोच रहे हैं। तो आपको आज परम आनंद, परम आनंद, समर्पण से ही प्राप्त करना है। आज जबरदस्त चैतन्य हैं। अपनी सभी शंकाओं और अपनी सभी निरर्थक बातों को बाहर ही रखें। बस इसे प्राप्त करें और इसे प्राप्त करें। ये चीजें आपकी मदद करने वाली हैं, और कुछ नहीं। चूँकि आपको मुझे कुछ भी देना नहीं है, बल्कि इसे स्वयं प्राप्त करना है। जितना हो सके इसे ग्रहण करें।
यह हवन आप जानते हैं देवी के नाम के जाप के लिए बहुत अच्छी चीज है। उनकी आंखें अग्नि द्वारा दी गई हैं, [अग्नि] जैसा कि वे कहते हैं, और उस प्रकाश में, उस अग्नि में, देवी के नाम पर, हम अपने भीतर अपने देवताओं को जगाते हैं और इन विशेष चक्रों में जो गलत है उसे जला देते हैं जो उन शक्तियों का आह्वान करते हैं . तो भक्ति और समझ के साथ आपको इसे करना है। क्योंकि आप वास्तव में विशेषाधिकार प्राप्त लोग हैं, आज अत्यंत विशेषाधिकार प्राप्त हैं। उस पर गर्व करो, और उस भक्ति के साथ ये सब करो।
आज का समय बहुत ही बेहतर है क्योंकि इस समय दशहरा और नवरात्रि दोनों संयुक्त हैं। और इसलिए इसने बहुत अच्छा काम किया है। हमें इसे पूरी निष्ठा के साथ करना चाहिए। मुझे लगता है कि बहुत कम लोग आग में आहुति दे पायेंगे हैं, लेकिन हम सब प्रतीकात्मक रूप से ऐसा कर सकते हैं और ऐसा कह सकते हैं। और आप कितने नाम लेना चाहते हैं? एक सौ आठ?
सहज योगी: हजार।
श्री माताजी: “यह क्या है?
[हँसी]
श्री माताजी: आप हजार करना चाहेंगे? यह एक अच्छा विचार है। अगर आपके पास इतनी भक्ति है तो यह सबसे अच्छा होगा क्योंकि इसमें ज्यादा से ज्यादा दो घंटे लगेंगे, ज्यादा से ज्यादा। दो घंटे नहीं, मुझे लगता है कि अगर हम तेजी से चलते हैं तो एक घंटा। क्या आप वह सब कह पाएंगे?
क्या आपको लगता है कि यह आसान है?”
सहज योगी: “हाँ।”
श्री माताजी: “एक हजार नाम। वरना आप बच्चों को खाना दे सकते हैं। वे थक गए होंगे। आप क्या कहते हैं? आप क्या सोचते हैं?
चलो यह कोशिश करते हैं। भारत में वे एक हजार करेंगे।
सहज योगी: तो हम हजार करेंगे।
[हँसी।
12 :21 पहले ट्रैक का अंत]
[वे हवन की तैयारी करने लगते हैं। योगी श्री माताजी के 108 नामों का पाठ करते हैं।]
सहज योगी: लंदन के सभी बाधाएँ। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: भारत के सभी बाधाएँ। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: ब्रिटेन के सभी बाधाएँ। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: लंदन के सभी बाधाएँ। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: लंदन सहज योगियों के सभी बाधा। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: आश्रम। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: ब्राइटन। ब्राइटन के बाधा।
सहज योगी: ब्राइटन के सभी बाधाएँ। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: अन्य सभी केंद्रों को हमें कहना चाहिए।
सहज योगी: कैम्ब्रिज के सभी बाधाएँ। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: बर्मिंघम के सभी बाधाएँ। ॐ स्वाहा!
[अश्रव्य]
सहज योगी: बाह्य के सभी बाधा। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: लीड्स के सभी बाधाएँ। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: नॉर्थम्प्टन। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: यॉर्क। ॐ स्वाहा!
[अश्रव्य]
[अश्रव्य]
सहज योगी: प्रेस्टन, तीन बार। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: लिवरपूल। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: एडिनबर्ग। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: डबलिन। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: स्कॉटलैंड। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: नोरलैंड। ॐ स्वाहा!
सहज योगिनी: शेफ़ील्ड। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: नॉर्विच। ॐ स्वाहा!
[अश्रव्य]
सहज योगिनी: हैम्पटन। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: लैम्बेथ की घाटी। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: सरे हिल्स। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: फ्रांस। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: स्विट्जरलैंड। ॐ स्वाहा!
सहज योगिनी: ग्रीस। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: इटली। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: वेटिकन। ॐ स्वाहा!
[अश्रव्य]
श्री माताजी: कैथोलिक। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: और प्रोटेस्टेंट। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: यहूदी। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: नास्तिक। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: अरब। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: हिन्दू।
श्री माताजी: हिंदुओं। ॐ स्वाहा!
सहज योगिनी: सभी पुजारी,
श्री माताजी: सभी पुजारी। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: सभी मुल्ला। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: सभी सिख। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: सभी साधक। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: सभी गुरु। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: सभी नकली गुरु। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: सभी अमेरिकी। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: आस्ट्रेलियाई। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: अफ्रीकी। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: मलेशियाई। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: मॉरीशस। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: भारतीयों। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: सभी ब्रिटिश भारतीय। ॐ स्वाहा!
सहज योगिनी: दक्षिण अफ्रीका।
श्री माताजी: दक्षिण अफ्रीका। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: दक्षिण अमेरिकी।
श्री माताजी: दक्षिण अमेरिकी। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: रूसी।
श्री माताजी: रूसी। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: हमारे परिवार,
श्री माताजी: आपके सभी परिवार। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: चीनी। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: साम्यवाद। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: पूंजीवाद। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: उदारवाद। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: तथाकथित लोकतंत्र। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: समाजवाद। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: [अश्रव्य]। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: [अश्रव्य]। ॐ स्वाहा!
सहज योगिनी: जातिवाद।
श्री माताजी: जातिवाद। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: सभी गलत पहचान। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: सभी बाधाएँ अपने आप में।
श्री माताजी: ठीक है। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: दुनिया में हमारे सभी भाई और बहनें। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: दुनिया भर में सभी सहज योग केंद्र। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: भारतीय केंद्र। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: पतियों और पत्नियों में सभी बाधाएँ। ॐ स्वाहा!
सहज योगी और श्री माताजी: वे सभी बाधाएँ जो हमें एक दूसरे के दोषों को देखने पर मजबूर करती हैं। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: वे जो हमें एक दूसरे के प्रति करुणामय होने से रोकते हैं। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: अहंकार। योगी: हाँ। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: ईसा मसीह। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: फिर से। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: प्रति अहंकार। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: बाईं ओर। ॐ स्वाहा! ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: समर्पण। बाधा जो हमें आत्मसमर्पण करने से रोक रहे हैं। ॐ स्वाहा! ॐ स्वाहा! ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: सभी सुस्ती। ॐ स्वाहा! योगी: हमें सात करना चाहिए। ॐ स्वाहा! ॐ स्वाहा! ॐ स्वाहा! ॐ स्वाहा! ॐ स्वाहा! ॐ स्वाहा!
सहज योगी: सभी बाधाएँ हमारे नए आश्रम को समय पर बनने से रोक रही हैं। ॐ स्वाहा! ॐ स्वाहा! ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: कुड़कुड़ाने वाली आत्माओं के सभी बुरा। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: माध्यमों के सभी बाधा। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: प्रचार। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: सभी राजा और राज्यों के प्रमुख। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: सभी युद्धप्रवर्तक। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: जो हमें मजबूत योद्धा बनने से रोकता है। ॐ स्वाहा!
सहज योगी: जो हमें नम्र और सौम्य होने से रोक रहा है। योगी: हाँ, श्री माताजी: हाँ। ॐ स्वाहा!
[अश्रव्य]। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: सहज योग को [अश्रव्य] से दूर रखना। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: पूरी मानव जाति की मुक्ति। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: परमात्मा और उनकी पूजा की महिमा करना। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: वे सब जो तुम्हारी माँ को परेशान कर रहे हैं। ॐ स्वाहा! ॐ स्वाहा! ॐ स्वाहा! ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: अब हर किसी को आज यह तय करना है कि मेरे वापस आने तक आप में से हर एक को कम से कम दस लोगों को आत्मसाक्षात्कार देना होगा। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: कृपया प्रयास करें। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: एक बार और। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: मुझे वचन दो कि कम से कम दस लोगों में से प्रत्येक को आत्मसाक्षात्कार होने वाला है और तुम सहजयोगी बनाने जा रहे हो। शादी के सभी बाधाओं और सभी रोमांस पर काबू पाना। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: पारिवारिक समस्याएं। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: सामाजिक समस्याएं। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: राजनीतिक समस्याएं। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: आर्थिक समस्याएं। ॐ स्वाहा!
श्री माताजी: तो अब अंतिम, लेकिन महत्वपूर्ण वह बाधा है जो आपके अपने अस्तित्व – आपके स्व की प्रगति में आती है।
परमात्मा आप पर कृपा करे।
बोलो जय श्री भगवती माताजी श्री निर्मला देवी की जय!
श्री माताजी: “यह कहाँ से आया है? आपको कहना चाहिए कि यह पवित्र हवा है, यह पवित्र आत्मा (होली घोस्ट)से पवित्र हवा है। ठीक है? अच्छा। बायीं विशुद्धि। अब करते जाओ, उसने किससे बात की?
सहज योगी: “[अश्रव्य] हमने उन्हें इसके बारे में बताने की कोशिश की और।”
श्री माताजी: “कौन से लोग?”
सहज योगी: “ये लोग ध्यान शिविर में थे।”
श्री माताजी: “कौन सा ध्यान पाठ्यक्रम?”
सहज योगी: जो कि उसने एक सप्ताहंत में किया था| दो हफ्ते पहले जब वह लंदन में था।
श्री माताजी: “किसने किया है, योगी महाजन ने?”
सहज योगी: “हाँ।”
श्री माताजी: “उन्होंने एक ध्यान पाठ्यक्रम लिया था?
सहज योगी: “हाँ, माँ।”
श्री माताजी: “और उन्होंने क्या कहा?”
सहज योगी: “अहम, उनमें से कुछ लोग काफी दिलचस्पी लेते लग रहे थे, लेकिन आह बहुत अधिक नहीं, और उनमें से कुछ जो बहुत अप्रिय बातें कह रहे थे।”
श्री माताजी: “लेकिन क्यों, योगी महाजन वहाँ क्या कर रहे थे?”
सहज योगी: “अहम, मूल रूप से उन्होंने उन्हें एक प्रकार का ध्यान दिया जो उन्हें अंतर अवलोकन (introspection) के लिए प्रेरित करता है।”
श्री माताजी: “वास्तव में? जब तक कि आत्म-साक्षात्कार न हो जाए। देखिये यही वह बात है कि, वे सभी बाधा ग्रसित होंगे। आप कोई प्रयास करने की कोशिश करें, देखिए योगी महाजन सहज योग का सार नहीं समझ पाए हैं। यदि आप कोई प्रयास करने का प्रयत्न करते हैं तो आप बाएँ और दाएँ जाते हैं और स्वाभाविक रूप से वे बदल जाएँगे। क्योंकि वे उन शैतानों के कब्जे में होंगे, आप जानते हैं। और यही वह फिर से कर रहा है। मुझे सब कुछ ठीक करना होगा। काश मैं उससे बात कर पाती। वह नहीं समझता है। यह बहुत ही खतरनाक है। वह खुद संकट में पड़ जाएगा। जब स्व प्रकाशित ना हो तो आप स्वयं को कैसे देख सकते हैं? जो मैं कह रही हूं कि, जब आप जुड़े नहीं हैं तो आप अपने आप को कैसे देख सकते हैं? वे किस स्व को देख रहे होंगे? इसके अलावा, क्या अब उसने उन्हें एक धार्मिक जीवन जीने के लिए कहा है?”
योगी: “हाँ माँ।”
श्री माताजी: “उसने उन्हें कहा। तो क्या वे लोग ऐसा कर रहे हैं?”
योगी: “आह, उनमें से कुछ। [अश्रव्य]”
श्री माताजी: “वे किस बारे में बात कर रहे हैं? मुझे समझ नहीं आता। क्योंकि मैं तुम से कहती हूँ, कि उन में से कुछ मेरे कार्यक्रम में आए थे, और वे मूर्छित हो गए। वे कांपने और कूदने लगे। भयंकर। ग्रेगोइरे वहां थे। और कौन था? तुम वहाँ थे। तुम्हे याद है? नहीं, नहीं, नहीं! दिल्ली में।दिल्ली में, आपको याद है? उनके साथ भयानक बातें हुईं। स्वाभाविक रूप से वे कहेंगे। वे उछल-कूद कर तरह-तरह की हरकतें करने लगे। वे रजनीश के यहाँ से थे और भयानक थे। और वे सचमुच वहीं मूर्छित हो गए। वे अधिक नहीं सह सकते थे। तो मैंने योगी महाजन से कहा कि आप इन लोगों के साथ मत खेलो. क्या फायदा? वे पहले से कमजोर लोग हैं। और उसे किस लिए कमजोर लोगों में दिलचस्पी है; समस्या हो रही है? वह परेशानी में पड़ेगा। उसने कहा कि वह चाहता हैं कि पहले वे लोग रजनीश शैली में जाएं और फिर उन्हें सहज योग में लाया जाए। और यह है वो ?
योगी: “मुझे लगता है कि उनका विचार ऐसा है, आह।”
श्री माताजी: “पहले उन्हें शुद्ध किया जाए।”
योगी: “हाँ।”
श्री माताजी: “यह उन्होंने मुझे बताया कि ऐसा तरीका पश्चिम में है |वहां पूरी ही बात बहुत ही [अश्रव्य] है,वगैरह। लेकिन इन में से सहज योग सबसे अच्छा तरीका है। आप खुद देखिये। क्योंकि आपके वायब्रेशन खुद ही आपको बताएँगे। सफाई के लिए हमें अभी और कितना समय इंतजार करना होगा? उस तरह। सहज योग; यह इस तरह काम करता है कि आप आत्म-बोध प्रदान किए जाते हैं और आप ही खुद को अपने आप साफ करना शुरू कर देते हैं। वे वहां बहुत अधिक समय लेते हैं। और शायद वे इस बात को लेकर हर तरफ घूमेंगे। वे अपने अहंकार को कैसे नियंत्रित करेंगे? जो की पश्चिम में यही समस्या सबसे पहले है, अहंकार। अब बिना बोध के वह इसका मुकाबला कैसे करेगा? क्या आपने उससे बात की है? क्या वह वापस आ रहा है?
योगी: “हाँ, वह दस दिन पहले आया था। उसने कहा कि वह आपको मिलना चाहता है।
श्री माताजी: “फिर मुझे उससे बात करने में खुशी होगी। मैं उसे बता दूँगी।
हाँ उसने मुझसे यह कहा था कि माँ आप मेरे पास आने वाले लोगों को नहीं जानती। लेकिन मुझे लगता है कि सभी पागल उसी के पास जाते हैं।”
योगी: [अश्रव्य]
श्री माताजी: “आह, मैं सच में तुमसे कहती हूँ। वह मुझसे कह रहे थे कि वे इसे कभी नहीं समझ सकते, सहज योग। उन्हें घुमाकर लाना होगा और असल में वह बड़ा अजीब ढंग बता रहे थे। तो वे सहज योग में आने के बारे में क्या कह रहे थे?”
योगी: “हाँ, उनमें से कुछ ने ऐसा कहा था। लेकिन उनमें से कुछ [अश्रव्य] आपसे [अश्रव्य] मिले थे।
श्री माताजी: “उन्हें क्या हुआ?”
योगी: “मैंने उनसे इस बारे में बहुत कुछ नहीं पूछा।”
श्री माताजी: उन में से कुछ ऐसे थे जो रजनीश के यहाँ से थे। उसने उन्हें इसके बारे में बताया। उसे बताना पड़ा, क्योंकि इन लोगों ने कहा कि, वह इन सभी चीजों को निकाल दें अन्यथा उन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं मिल सकता। और इनमें से कुछ लोग बहुत अजीब थे और वे बहस करने लगे और यह और वह। और फिर हमें उन्हें जाने के लिए कहना पड़ा। और एक साथी यार्क था, इंसब्रुक से कुछ, वह अंदर आया। क्या आपको हुली याद है? लगभग पाँच, सात उनमें से यार्क के, कुछ साथी यार्क के। और वे अपना बोध नहीं लेंगे। उन्होंने कहा कि कुंडलिनी के अलावा कोई और रास्ता भी होना चाहिए। मैंने कहा कुछ भी नहीं है। उन्होंने कहा, “नहीं, मैं इस तरह से करना चाहता हूँ।” फिर मैंने कहा, “तुम यहाँ क्यों आए हो? अगर आप यहां आते हैं तो आपको सहज योग को स्वीकार करना होगा। नहीं तो तुम अपने गुरु के पास जाओ, यहाँ क्यों आते हो?” वे काफी बदतमीज थे। क्या आपको उनका तरीका याद है? वे बहुत असभ्य थे और वे सिर्फ झगड़ा करने आए थे। मैंने कहा, “हम आपके गुरु के पास विध्वंसक होने नहीं जाते। तुम्हें यहाँ क्यों आना चाहिए?” फिर भी करते चले गए। मैंने कहा, “यह आसान नहीं है।” मैंने कहा, “हमने इस हॉल के लिए भुगतान किया है और आप अपने हॉल के लिए भुगतान कर के और वहां जो चाहे कर सकते हैं जो विनाशकारी आप करना चाहते हैं। यह आप पर निर्भर करता है।”
देखिये, यदि आप उनसे एक सरल प्रश्न पूछें कि, क्या आप जानते हैं कि कुंडलिनी कहाँ है? आप जानते हैं जो हो रहा है? क्या आप जानते हैं कि दूसरे व्यक्ति के साथ क्या हो रहा है?” वे कहते हैं, “नहीं।” उनको समझ नहीं आता। मेरा मतलब है कि आपको कोई जानकारी नहीं है। आप कैसे आंकने जा रहे हैं कि आप सही हैं या नहीं? कोई तरीका ही नहीं है। लेकिन भारतीयों के लिए यह आंतरिक है। देखिए क्योंकि हर कोई कुंडलिनी की बात करता है। लेकिन कल मैं एक और अजीब शख्स से मिली। उन्होंने मुझे बताया कि यहीं से कुंडलिनी शुरू होती है। मैंने कहा, “बहुत अच्छा काम है।” उन्होंने कहा, “मेरे गुरु ने मुझे यहां ध्यान शुरू करने के लिए कहा है।” मैंने कहा, “सचमुच?” उसने कुछ ऐसा कहा जो मैं नहीं समझ पाता, “आपको सारा ध्यान यहीं लगाना होगा।” मैंने कहा, “यह टूट जाएगा और मैं इसे वापस सुधार नहीं पाउंगी।” मैं काफी चकित थी। और उसने बताया, “मेरे गुरु ने मुझे यहाँ ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा है, कुंडलिनी यहाँ है।” मैंने कहा, “सचमुच? यह मेरे लिए कुछ समाचार है कि कुंडलिनी यहाँ है।” तो ये सब बकवास चल रहा है। तो इनका क्या करें ऐसे लोगों का?
और अब अगर आप कहते हैं कि वे तैयार नहीं हैं, तो आप उन्हें कुछ और बतायें और इसे मैनेज करें। वे हकीकत से दूर जा रहे हैं। आपको उन्हें यह बताना होगा कि समय बर्बाद करने के कई तरीके हैं। अंतिम न्याय शुरू हो गया है, बर्बाद करने का समय नहीं है। और आप इस साथी, महाजन को बता दें कि वे जिम्मेदार व्यवहार करें। यह उसे समझना चाहिए। कि उन्हें सहज योग के अलावा और कुछ नहीं कहना चाहिए। सहज योग में आएं और हम बात करेंगे। अपना आत्मज्ञान प्राप्त करें, फिर हम बात करेंगे। उसे यही करना है, अन्यथा उसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा, क्योंकि उसे अपना आत्मसाक्षात्कार मिल चुका है।
क्या हम कहते हैं कि आप सबसे उपयुक्त [अश्रव्य] का उपयोग नहीं कर सकते। लेकिन उन्हें लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने का प्रयास करना चाहिए। वे इसे प्राप्त करते हैं या नहीं, देखते हैं। क्या हुआ डॉक्टर को?”
योगिनी उत्तर देती है। [अश्रव्य]
श्री माताजी: “लेकिन अब हमें भारत में एक बहुत अच्छे डॉक्टर मिले हैं और वह एक पेपर लिखने जा रहे हैं। इसे यहां प्रकाशित किया जाएगा। क्योंकि उनकी उपस्थिति में मैंने छह लोगों को ठीक किया। मैंने एक कैंसर के रोगी को ठीक किया, मैंने एक लकवे के रोगी को, और एक गठिया के रोगी को, और एक [अश्रव्य] को ठीक किया। इसलिए उन्होंने इसे लिख लिया है और वह वह सब प्रकाशित करने जा रहे हैं और वह [अश्रव्य] उन उपचारों पर काम करने जा रहे हैं जो हमने भारत में किए हैं। अब देखिए ल्यूकेमिया का एक मामला। बस इस तरह से आता है। [अश्रव्य] ”
[अभी भी बात चल रही है, लेकिन इसका विषय सामान्य है और यह बहुत [अश्रव्य]]
[छुटा हुआ]
[एक किताब के बारे में बात कर रहे जिसे ग्रेगोइरे लिख रहे हैं]
श्री माताजी: मेरे जाने से पहले मुझे आशा है कि आपकी पुस्तक तैयार हो जाएगी ताकि मेरे पास आपसे लेने के लिए प्रतियां हों। यह बहुत अच्छी तरह से निकली है, लेकिन यह सिद्ध आत्माओं के लिए भी है। आप देखिए कि आत्मसाक्षात्कार के बाद आप भूल ही जाएंगे कि कभी आप आत्मसाक्षात्कारी नहीं थे और जिन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं हुआ है वे अज्ञानी (अंधे) हैं। आपको उनसे समझदारी से बात करनी होगी। आपको बहुत अलग तरीके से बात करनी होगी। तो मैं भी एक छोटा सा सीधा बयान देने की कोशिश कर रही हूं, जिससे लोगों को पता चले कि उन्हें सावधानी से क्या देखना चाहिए, उन्हें क्या उम्मीद करनी चाहिए, उनके साथ क्या होना चाहिए। ताकि वास्तव में भारत में लोग जान सकें कि क्या उम्मीद करनी है, आप देखें। लेकिन यहां लोगों को पता नहीं है, इसलिए हमें इस तरह लिखना होगा कि अगर आप इस्तेमाल करेंगे तो वे तैयार हो जाएंगे।
आप देखिए कि ये छोटे-छोटे पैम्फलेट जिन्हें हम अभी लिखने जा रहे हैं, उन्हें वास्तव में लिपि बद्ध किया जाना चाहिए और उन्हें हर जगह भेजा जाना चाहिए। मेरा मतलब है कि यह अब जड़ें जमा रहा है। क्योंकि देखिए फ्रांस में जिस तरह से चीजें घटी हैं। आप देखिए यह जबरदस्त था। क्योंकि अब लोगों को पता चल रहा है कि यह सब बकवास चल रहा है, और उन्हें कैंसर के लिए कुछ खोजना है।
और जैसे कि फ्रांस में अब तीन जगहों पर मैं हर जगह गयी, वहां सत्रह [सुनाई नहीं दिया] से लोग हर जगह थे! और फिर मैं जर्मनी गयी, हर जगह पंद्रह से पच्चीस तक लोग थे। और फिर मैं जर्मनी गयी, आयी भी। तो हर जगह मैंने पाया कि एक जागृति है और लोग यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि कुछ वास्तविक ज्ञान होना चाहिए और वे उसका सम्मान करते हैं। कुछ लोग जो अन्य गुरुओं के पास गए हैं वे और भी बेहतर हैं क्योंकि वे किसी न किसी तरह तुलनात्मक रूप से सहज योग के मूल्य को समझते हैं। देखतें है कि वे कितना पैसा दे रहे हैं और कितना कर रहे हैं और कितने वर्षों से वे अपने उत्थान के लिए काम कर रहे हैं।
[छुट गया]
योगिनी: “माँ, मैंने लगभग बारह टेपों को लिपिबद्ध किया है।”
श्री माताजी: “वास्तव में? तो वे कहाँ हैं?”
योगिनी: “वे अभी भी ब्राइटन में हैं।”
श्री माताजी: “क्या आप उन्हें मेरे पास भेजेंगे मैं उन्हें अपने साथ भारत ले जाना चाहूंगी। यह अच्छा है। इससे बहुत मदद मिलेगी। क्योंकि वे उसमें से छोटी-छोटी पुस्तिकाएं प्रकाशित करना चाहते हैं। अच्छा विचार होगा। तब आप अनुवाद कर सकते हैं। क्योंकि ग्रेगोइरे अब एडवेंट पर आधारित एक और किताब लिख रहे हैं, लेकिन फ्रेंच में। क्योंकि वह कहते हैं कि अब मैं बहुत अलग व्यक्ति हूं, पहले मैं बहुत अधिक स्थापित नहीं था क्योंकि [अश्रव्य]। अब मैं जो कुछ भी कहूंगा, उस प्रामाणिकता के साथ कहूंगा। मैंने कहा ठीक है तुम करो।
[छुट गया]
अबू ने एक बहुत अच्छा टेप रिकॉर्डर खरीदा है। मुझे लगता है कि आप सभी को एक टेप रिकॉर्डर खरीदना चाहिए, क्योंकि आप देखिए कि विकास करने का यह एक और तरीका है। क्योंकि अबु ने मुझे बताया कि जब उसने उन्हें पढ़ना और सुनना शुरू किया तो उसकी अंग्रेजी में जबरदस्त सुधार हुआ। बेशक आप वास्तव में अंग्रेजी नहीं सीख सकते। लेकिन उन्होंने कहा की, “उस में से चैतन्य आ रहे हैं और मैं उन्नति करने लगा!” यह एक बहुत अच्छा विचार है कि आपके पास टेप हों और अपने खाली समय में उन्हें लगा कर सुनें। और यह एक बहुत अच्छी बात है – इससे बहुत मदद मिलती है। यह वास्तव में आपको बहुत अच्छी तरह से परिपक्व करेगा। यह एक बहुत अच्छा विचार है।
योगी महाजन किसी विदेशी व्यक्ति को आपसे मिलवाने नहीं लाए। [अश्रव्य] आप ही पहले व्यक्ति हैं जिसे उन्होंने भेजा और वह केवल भारतीय लोगों को ही मुझसे मिलाने लाए।
योगी: “मैं कुछ [अश्रव्य] भारतीय से मिला और वे ऐसी बातें कह रहे थे कि सहज योग बहुत कठिन है, यह मेरे लिए नहीं है। ऐसा कुछ मूर्खतापूर्ण।
श्री माताजी: “क्योंकि वे बेहोश हो रहे थे, ना? वे बेहोश हो रहे थे। वास्तव में वे दो लोग जो यहां [अश्रव्य] आए थे। वे इतनी बुरी हालत में थे। और फिर वास्तव में सचमुच शारीरिक रूप से हमें उन्हें यहाँ से बाहर निकालना पड़ा। वे ऐसे अवस्था में थे। आपको याद है? आपको वे दोनों याद नहीं हैं? तुम वहाँ थे। भयानक काम। उनके लिए सबसे बड़ी अक्लमंदी यही है कि रजनीश का अनुसरण करें, मुझे लगता है। उनके साथ यही सबसे बुद्धिमानी है।”
लेकिन अब सौभाग्य से रजनीश को पुणे से बाहर कर दिया गया है। उसे वहां से हटा दिया गया है और उसने एक जगह ले ली है। वहां भी उन्हें एक जमीन मिली है लेकिन सरकार ने उसे रद्द कर दिया तो अब दूसरी जगह पकड़ेंगे। वहां से ऐसे तमाम लोग अभी हड़ताल पर जा रहे हैं। क्योंकि आप देखते हैं कि वह ज्यादा यात्रा नहीं कर सकता है, वह इनमें से किसी एक आह से पीड़ित है।
योगी: “गंध बर्दाश्त नहीं कर सकता।”
योगी: “अस्थमा।”
योगी: “वह राक्षस होने से पीड़ित है।”
श्री माताजी: “मेरा मतलब है कि वह यात्रा नहीं कर सकता है, वह ट्रेन या किसी भी चीज पर, यहां तक कि बाहर भी नहीं जा सकता है। वह लोगों के बगल में नहीं बैठ सकता है और वह फूलों या अच्छी सुगंध जैसी किसी भी अच्छी चीज को सूंघ नहीं सकता है या जो कुछ भी वह सूंघ नहीं सकता है वह इस ऐंठन में पड़ जाता है और उसे अस्थमा होने लगता है जिसे आप दमा कहते हैं। इन सब अच्छी चीजों से उसे एलर्जी हो गई है। वह केवल किसी गंदी चीज के पास जा सकता है, वहां वह आराम से बैठ सकता है।
[वे कार्यक्रम आयोजित करने और कार्यक्रमों की तिथियों के बारे में बात करना शुरू करते हैं। वे यह भी उल्लेख करते हैं कि अगली रात कैक्सटन हॉल में एक कार्यक्रम होगा, जो कि भाषण है