Christmas Eve Talk: Christianity पुणे (भारत)

क्रिसमस की पूर्व संध्या पर भाषण, पुणे (भारत), 24 दिसंबर 1982 इससे पहले कि हम यीशु मसीह के जन्म का उत्सव प्रारम्भ करें, हमें इसकी थोड़ी समीक्षा करनी होगी कि हमने उनके जन्म के उपरांत क्या किया, ताकि हम समझ सकें कि उनके साथ हम कहां खड़े हैं ।  वे एक कुंवारी कन्या के पुत्र थे। इसलिए उनके नाम पर लेशमात्र भी कलंक नहीं आना चाहिए। क्योंकि उन्हें हमारी आज्ञा में चेतना लाने का महानतम् कार्य करना था ,जो हमारे समस्त पापों, हमारी समस्त धारणाओं और हमारे समस्त अहंकार को नष्ट करने में हमारी मदद करेगा।  और हमारे भीतर ऐसे महान कार्य के लिए ही इस महान व्यक्तित्व की निर्मिति हुई । परन्तु, दुर्भाग्यवश, हमने अपने भीतर की इन दोनों संस्थाओ को इस सीमा तक बिगाड़ दिया है कि ईसाइयों को आत्मसाक्षात्कार देना सबसे कठिन कार्य है। एक ओर हमारे भीतर बहुत अधिक धारणाएं हैं, जैसा कि आप जानते हैं, कैथोलिक धर्म और ईसाइयत के विषय में अन्य विचारों के द्वारा , हमारे प्रतिअहंकार में एक भयानक धारणा निर्मित हो गई  है, जो कि, कभी-कभी मुझे लगता है , एक ठोस चट्टान की तरह है। और जो लोग कैथोलिक चर्च में गए हैं वे अभी तक इससे चिपके  हुए हैं। मेरा मतलब है कि अगर वे मेरे सामने हों, तो मुझे ऐसा लगता है कि उनकी आँखें झपक रही हैं और उनकी आज्ञा ठीक नहीं हैं। यदि आप सचमुच में सहजयोग की गहराई प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको कंडीशनिंग पूरी तरह से छोड़नी पड़ेगी ।  हम इस मामले में इस Read More …