Christmas Eve Talk: Christianity

पुणे (भारत)

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

क्रिसमस की पूर्व संध्या पर भाषण, पुणे (भारत), 24 दिसंबर 1982

इससे पहले कि हम यीशु मसीह के जन्म का उत्सव प्रारम्भ करें, हमें इसकी थोड़ी समीक्षा करनी होगी कि हमने उनके जन्म के उपरांत क्या किया, ताकि हम समझ सकें कि उनके साथ हम कहां खड़े हैं ।  वे एक कुंवारी कन्या के पुत्र थे। इसलिए उनके नाम पर लेशमात्र भी कलंक नहीं आना चाहिए। क्योंकि उन्हें हमारी आज्ञा में चेतना लाने का महानतम् कार्य करना था ,जो हमारे समस्त पापों, हमारी समस्त धारणाओं और हमारे समस्त अहंकार को नष्ट करने में हमारी मदद करेगा। 

और हमारे भीतर ऐसे महान कार्य के लिए ही इस महान व्यक्तित्व की निर्मिति हुई । परन्तु, दुर्भाग्यवश, हमने अपने भीतर की इन दोनों संस्थाओ को इस सीमा तक बिगाड़ दिया है कि ईसाइयों को आत्मसाक्षात्कार देना सबसे कठिन कार्य है।

एक ओर हमारे भीतर बहुत अधिक धारणाएं हैं, जैसा कि आप जानते हैं, कैथोलिक धर्म और ईसाइयत के विषय में अन्य विचारों के द्वारा , हमारे प्रतिअहंकार में एक भयानक धारणा निर्मित हो गई  है, जो कि, कभी-कभी मुझे लगता है , एक ठोस चट्टान की तरह है। और जो लोग कैथोलिक चर्च में गए हैं वे अभी तक इससे चिपके  हुए हैं। मेरा मतलब है कि अगर वे मेरे सामने हों, तो मुझे ऐसा लगता है कि उनकी आँखें झपक रही हैं और उनकी आज्ञा ठीक नहीं हैं।

यदि आप सचमुच में सहजयोग की गहराई प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको कंडीशनिंग पूरी तरह से छोड़नी पड़ेगी ।  हम इस मामले में इस हद तक बढ़ गए कि हमने संस्थाएँ बनाने की कोशिश की। इस बारे में कोई संदेह नहीं है कि हमने पैसा इकट्ठा किया, , बहुत सारा पैसा, सभी तरह के नाटक किये , पोप के आदेश, धर्माध्यक्षों के आदेश, और ऐसी तमाम तरह की बेवकूफियां । तमाम तरह के गधे लोग बनाए गए ।  उनका ईसा मसीह से कोई लेना-देना नहीं,  परमात्मा से कोई लेना-देना नहीं और दैवीय जीवन का उनको कुछ पता नहीं। उनके लिए धर्म का मतलब ही है, लोगों को कुछ करने से रोकना। और यह अंधकार पाश्चमात्य देशों पर ऐसा छा गया है कि सहजयोग को वहां बहुत तेजी से और व्यापक रूप से स्थापित करना पड़ेगा, अन्यथा आप उनके इन मुख्य धर्माध्यक्षों, धर्माध्यक्षों और पोप के भयानक विचारों से मुक्त नहीं हो सकते।

दूसरी ओर अहंकार है। फिर फ्रायड जैसे लोग आए और उन्होंने लोगों में बिल्कुल ही ईश्वर-विरोधी, मां-विरोधी और पुत्र-विरोधी विचार भर दिए, जो सरासर बेवकूफी है । ये ईश्वर-विरोधी शैतानी विचार लोगों के मस्तिष्क में प्रवेश कर गए और लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि, “इसमें क्या ग़लत है?”, यह सब कंडिशनिंग है, हमें अपनी कंडीशनिंग खत्म करनी चाहिए!  इस प्रकार, वे अहंकारोन्मुख हो गए, जोकि दूसरा पक्ष है जिस पर ईसा मसीह को काम करना था। तो मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि ईसा मसीह के पाश्चमात्य देशों में आने के बाद, आज्ञा चक्र किसी भी प्रकार से खुलने न पाये, उसके लिए उन्होंने इस धरा पर मौज़ूद यथासंभव सारी अड़चनें पैदा की । 

इसके बावजूद, मैं देखती हूं कि पश्चिमी देशों के  सभी सहजयोगी ईसा मसीह से नही बल्कि ईसाई धर्म से चिपके हुए हैं ।  आपके भीतर ईसाइयत अभी भी चिपकी हुई है जिसे छोड़ना होगा । हालांकि भारतीय, सभी निरर्थक विचार तुरंत छोड़ देते हैं, क्योंकि हमें इस देश में हर चीज़  के लिए बहुत अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है; कंडीशनिंग के मामले में हमने चुनौतियों का सामना किया है; हमारे समक्ष अहंकारोन्मुख लोगों का झेलने की भी चुनौतियां रही हैं। इसलिए लोगों को किसी भी चीज़ को इतनी आसानी से छोड़ देने की आदत है। लेकिन पश्चिम में,  ईसाई धर्म की मूर्खता से हम अभी भी चिपके हुए हैं। सच में, इसका मसीह से कोई लेना देना नहीं है! और यह कट्टरता, जो अभी भी आपके दिमाग में चल रही है, उसे छोड़ देना चाहिए अन्यथा आप ईसा मसीह के साथ किसी भी प्रकार से न्याय नहीं कर पायेंगे। इसका यह अर्थ नहीं है कि आप हिंदू धर्म, जैन धर्म, या ऐसी किसी और निरर्थक चीज़ को अपना लें।

ईसाई धर्म का सार- तत्व ईसामसीह हैं, और उन पर इन सभी निरर्थक चीजों का ऐसा घना आवरण पड़ा हुआ है कि आपको वास्तव में इस शब्द को अपनी शब्दावली से और अपने मस्तिष्क से पूरी तरह से बाहर निकालना होगा, अन्यथा आप कभी भी उस तत्व तक नहीं पहुंच सकते। यह एक सच्चाई है, इसे आप मुझसे ग्रहण कर लें। और अब भी सभी लोगों का ध्यान उन बातों पर है जो ईसामसीह ने या मदर मैरी ने कही हैं, जो इन भयानक व्यक्तियों के माध्यम से हम तक पहुंची हैं । तो अन्य देवी-देवताओं और अन्य महान अवतारों के बारे में जानने के लिए, आप पहले इसका प्रभाव खत्म करें ।इस चीज़ पर जो आपका इतना अधिक चित्त है, उसे खत्म करने के लिए आपको अन्य देवी-देवताओं, जैसेकि श्रीगणेश के बारे में जानना चाहिए । यदि आप श्री गणेश के बारे में बात करें तो वे ईसामसीह का ही सार हैं। आप इसे समझ लें। गणेश ईसामसीह का ही सार हैं, और ईसामसीह,  श्री गणेश की शक्तियों का प्रकटीकरण हैं। इस प्रकार, यदि आप उस सार पर जाते हैं, तो वो ठीक है। फिर, नि:संदेह, मसीह वहाँ है परन्तु हमें उन्हें उसी रूप में देखना चाहिए जैसे वे हैं ; जिसे बहुत कम लोगों ने पहले देखा है। परन्तु अब सहजयोग में आपको उन्हें वैसे ही देखना चाहिए, जैसे वे थे। वे सबसे पवित्र व्यक्ति थे, सबसे पहले आप इस स्थिति को स्वीकार कर लें। फिर इस फ्रायड नाम की बकवास का उनसे कोई लेना-देना नहीं | 

जो स्वयं को ईसाई कहते हैं ,वे पांच दिन फ्रायड की बकवास करते हैं और छठे दिन वे ईसाई धर्म की बात करते हैं, और सातवें दिन वे चर्च जाते हैं। वे कैसे जा सकते हैं? मेरा मतलब है, वे खुद को ईसाई कैसे कह सकते हैं? कौन से मानक से? आप मुझे बताएं! मेरा मतलब, आप ज़रा सोचिए! और भारतीयों ने उन्हें इससे बाहर निकलने के लिए कहा है, क्योंकि वे समझ ही नहीं पाएंगे कि यह है क्या! यह बेकार की चीज़ है,  गंदगी है। अपने फालतू के विचारों द्वारा हम पवित्र से पवित्रतम चीज़ को इतने निम्न स्तर पर ले आए हैं। 

तो आपको को यह समझना होगा कि कैथोलिक धर्म की इन कंडीशनिंग्स ने हमें स्वयं को अपने  लिए इतना खराब बना दिया कि हम दूसरी ओर खिंचे चले गए, जो इन कंडीशनिंग् से भी बुरी चीज़ है। और आप सुबह से शाम तक इन व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं । या तो वे फ्रायड मतावलंबी हैं या फिर तथाकथित ईसाई हैं; यहाँ तक कि आत्मसाक्षात्कार लेने  के बाद भी । परन्तु आपको पता होना चाहिए कि आप विशेष व्यक्ति हैं। आप उनसे ऊपर हैं। आप उनसे ऊपर उठ चुके हैं। ईसा मसीह आप में जागृत हो चुके हैं ।

इस तरह शुरूआत में अगर आपकी ईसाइयत संबंधी कोई कंडीशनिंग है तो ईसामसीह के साथ न्याय करें और उस कंडीशन से बाहर निकलें । अथवा अगर आप फ्रॉयड की विचारधारा को मानते हैं तो उस भयानक व्यक्ति से अपने आपको पूर्णतः मुक्त कर लें । वह ईसा विरोधी था -एकदम बीमार मानसिकता वाला आदमी! हमें फ्रायड के विचारों से कोई लेना-देना नहीं, इतना सा  भी नहीं..मेरा विश्वास करें। हम यहां किसी भी विषय पर उसकी किसी भी बात को उचित ठहराने के लिए नहीं बैठे हैं । कंडीशनिंग के चलते लोगों ने जो अपनी खराब दशा कर ली थी, उसका उसने  पूरा लाभ उठाया । और फिर उसने ये सारी कहानियां गढ़ लीं, क्योंकि वह स्वयं एक बहुत ही निम्न स्तर का व्यक्ति था; किसी भी दृष्टिकोण से उसे मनुष्य नहीं कहा जा सकता ।आपको मालूम है कि ईसा मसीह मनुष्यों के लिए आये थे, इन निम्न स्तर के लोगों के लिए नहीं। मैं सोचती हूँ , यहां तक ​​कि कुष्ठ रोगी भी उससे बेहतर थे। मुझे लगता है बहुत भयंकर है यह! यहां तक ​​कि यह सब सोचने से भी मुझे उल्टी आती है ; वह बहुत अपवित्र है।

इसलिए, सारे व्यावहारिक दृष्टिकोण से, हमें यह समझना होगा कि फ्रायड से हमारा कोई लेना-देना नहीं। वो कीचड़ है, गंदगी है और बिल्कुल निम्न स्तर का व्यक्ति है। हमें उससे या उसके विचारों से कुछ नहीं सीखना है।

अब, इसका दूसरा पक्ष गिरजाघरों संबंधी कंडीशन है। अभी भी कई सहजयोगी इससे भ्रमित हैं। निःसंदेह, यदि आपको इन तथाकथित ईसाइयों को बचाना चाहते हैं, तो आपको उन्हें कंडीशनिंग से बाहर निकालना होगा। सौभाग्य से, हमारे पास एक व्यक्ति है, जो इन चीज़ों के बारे में एक शोधग्रंथ लिख रहा है, कि कैसे ये चीजे़ं समाज के लिए भयंकर हैं। परन्तु अभी भी किसी को एहसास नहीं है कि ये ईसा मसीह विरोधी गतिविधि है। आपको शर्तों के अधीन करना ही एक ईसामसीह विरोधी गतिविधि है। ईसा मसीह इस पृथ्वी पर आये, जहाँ मूसा ने धर्म को स्थापित किया; अनेक वर्षों के बाद उन्होंने सोचा कि लोग संतुलन में आ गए होंगे, और अब उन्हें, उनके पुनर्जीवन और उत्थान का संदेश देना है। इस प्रकार, वह पृथ्वी पर आये। लेकिन फिर इन लोगों ने शरीयत से भी बदतर चीज़ों का निर्माण किया। शरीयत बाइबल में है। ये सभी नियम बाइबल में हैं, जहाँ वह कहते हैं कि: जो कोई जैसा करता है, उसे वैसी ही सज़ा दी जानी चाहिए, सर कलम करने के बदले, सर कलम किया जाना चाहिए । यह सब बाइबल में है । ये मुसलमान जो कुछ भी कर रहे हैं, वह सब बाइबल में है, सब बाइबल से आ रहा है। इसलिए, उस सबको निष्प्रभावी करने के लिए फ्रायड ने एक दूसरा तरीका निकाला ।

हमारे लिए दैवीय कानून अनिवार्य हैं क्योंकि हम जानते हैं कि केवल यही एक मार्ग है जिससे कोई उत्थान कर सकता है। यह बाध्यकारी नहीं, बल्कि स्वैच्छिक स्वीकृति है कि हमें उत्थान करना है ,हमें ठीक होना है। सहजयोग में कोई कंडीशनिंग नहीं है परन्तु इसी तरह हम सुधरते हैं, इसी प्रकार हम आगे बढ़ते हैं, इसलिए हम इस स्थिति को स्वीकार करते हैं, और इसके साथ आगे बढ़ते रहते हैं। इसलिए आत्मसाक्षात्कार से आपको वो शक्ति मिलनी चाहिए जिससे आप अपने मस्तिष्क की ईसा मसीह विरोधी गतिविधियों से लड़ सकें । आपको स्वयं का सामना करना होगा, यह बात मैं कह रही हूं। न केवल आपको स्वयं का सामना करना होगा , बल्कि आपको उस तथाकथित समाज का भी सामना करना होगा जो आपके आस-पास है और स्वयं देखें कि ये कंडीशनिंग और ये ईसा मसीह विरोधी गतिविधियाँ, जिसमें आप लिप्त हैं,वे आपके विकास और उत्थान के लिए पूरी तरह से हानिकारक हैं । और क्योंकि आप विशेष व्यक्ति हैं, जिन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ है, इसलिए आपको अपने आप से तर्क करना है और उचित निष्कर्ष पर पहुंचना है। दूसरों के साथ तर्क करने से कोई लाभ नहीं है ।

जैसा कि आप जानते हैं, कंडीशनिंग से लोग शांत हो जाते हैं, वे बात नहीं करते हैं, परंतु कंडीशनिंग भीतर बढ़ रही होती है। अहंकारी व्यक्तियों के साथ वे बहुत अधिक बात करते हैं, और वे अपनी बात के माध्यम से ही दूसरों पर हावी होने का प्रयास करते हैं और उनका अहंकार बहुत बढ़ रहा होता है। तो व्यक्ति को साक्षी अवस्था में रहना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि जहाँ आपको बोलना है, वहां आपको बोलना होगा, और जहाँ आपको शांत रहना है, आपको शांत रहना होगा। विशुद्धि के स्तर पर यह चीज़ आती है।

आज्ञा स्तर पर, आपको जो भी कुरूप है, अपवित्र है और अशुद्ध है, उस सबका तिरस्कार करना होगा । क्योंकि अब आपके भीतर एक नई संवेदनशीलता विकसित हो गई है, , पवित्रता के प्रति ,शुभता के प्रति, एक नई संवेदनशीलता । अपने भीतर इस शुभता को बढ़ाने का प्रयास करें। मैं देखती हूँ कि लोग नकारात्मक व्यक्तियों से बहुत सरलता से जुड़ जाते हैं, वे नकारात्मक लोगों के साथ पहचान बना लेते हैं। यह बहुत आम बात है। और उन्हें लगता है कि वे औरों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण हो गए हैं। इस सहानुभूति के वशीभूत वे कार्य कर रहे हैं। वह आपकी बहन हो सकती है, भाई हो सकता है, माँ हो सकती है, या आपकी पत्नी अथवा  आपका बच्चा भी हो सकता है। कोई भी हो सकता है। 

लेकिन ऐसे व्यक्तियों से जुड़कर, आप वास्तव में उस व्यक्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं, क्योंकि वह व्यक्ति नरक में जाएगा, और आप भी नरक में जाएंगे। इसलिए यदि आप किसी व्यक्ति का भला करना चाहते हैं, तो सबसे अच्छी बात यह है कि उस व्यक्ति के साथ न जुड़ें और उस व्यक्ति को बताएं कि ये ईसा मसीह विरोधी गतिविधियाँ हैं। और उस समूह से जुड़ जाएं जो सकारात्मक है, जो शुभ कार्य कर रहा है, जो पवित्र कार्य कर रहा है। और यह समझें कि सामर्थ्य इस समूह से जुड़ने में निहित है, न कि उससे जोकि बिल्कुल अलग-थलग और नकारात्मक व्यक्तित्व है ।

अब, आप में से प्रत्येक को इसका कुछ न कुछ अनुभव हो चुका है। मैं आपको वॉरेन की पत्नी का एक उदाहरण दूंगी। ना ही वो यहाँ है  और न ही वॉरेन । परन्तु उनके मामले में क्या हुआ, यह समझना ठीक रहेगा। उनका, उनके साथ बहुत लगाव था। उन्होंने उनसे विवाह किया। उन्होंने मुझसे पूछा। मैं तो वास्तव में हैरान थी कि वे इतने असंवेदनशील क्योंकर हैं, ” वह उसे क्यों नहीं देख पा रहा ? वह उसे समझ क्यों नहीं पा रहा ?” परन्तु मुझे नहीं पता था कि अब क्या कहना है। मैंने कहा, यदि मैं कहती हूं, “विवाह मत करो,” तो वह सोचेगा, कि माँ उस पर दबाव डाल रहीं हैं,या कुछ और। 

मैं जानती थी कि मुझे क्या कहना है, परन्तु मैं वास्तव में, लगभग दो मिनट तक क्षुब्ध रही, मैंने कुछ नहीं कहा। और उसने अपने पत्ते भी खूब खेले। और मैंने कहा, “ठीक है, अगर तुम्हें खुशी मिलती है तो तुम इससे विवाह कर सकते हो,  अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हें खुशी मिलेगी” बस इतना ही। मैंने ‘आनंद’ नहीं कहा। “अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हे खुशी मिल सकती है, तो उससे विवाह करो।” अब उसने उससे विवाह कर लिया। तब उसने कहा कि उसे तो उसके साथ इंग्लैंड आना चाहिए । वह उसे ले आया। उसने उससे बचने की कोशिश की। मैंने उससे कहा “वॉरेन सावधान रहना।” फिर उनके पासपोर्ट खो गये । उसे तो अपना पासपोर्ट मिल गया पर उस लड़की को नहीं मिला । पर वह मेरे पीछे पड़ गया कि “आप कृपया श्रीवास्तव जी को कहें। किसी तरह उसका पासपोर्ट दिलवा दीजिए । पासपोर्ट होना चाहिए।” मैंने कहा, “ठीक है।” फिर उन्होंने उसका पासपोर्ट बनवाया। फिर वो मेरे साथ आई। अभी भी वो मेरे साथ ही थी। मैंने कहा कि, “कृपया इस महिला को मुझसे दूर रखें । मैं नहीं चाहती कि वह मेरे साथ रहे। वो एक सिरदर्द है। पूरे 24 घंटे से वह मेरे साथ है। मुझे अपने आसपास इन भयावह भूतों से हटकर कुछ समय चाहिए। कृपया उससे छुटकारा पा लें, वह बुरी है। ” परन्तु वो उसे समझ नहीं सका। अभी भी वह उसकी होड़ ले रहा था । फिर एक दिन ऐसा हुआ कि उसने मेरे हृदय पर हमला कर दिया। मेरा हृदय बुरी तरह हिलने लग गया। 

मैंने कहा, “अब तुम मेरे हृदय पर हाथ रख कर देखो,” हृदय तेजी से धड़क रहा था। वह अपना हाथ उस पर नहीं रख सका और न ही अपना हाथ नजदीक ला सका । मैंने कहा, “अब कृपया उसे नीचे जाने के लिए कहें।” फिर वह नीचे चली गयी , और यह धड़कना बन्द हो गया। तब उसने अनुभव किया कि यह बात है। परन्तु फिर भी उसने उसे नहीं छोड़ा, उसने उसे नहीं छोड़ा। मैं लॉस एंजेल्स गई , हर जगह वह मेरे पीछे-पीछे रही ।आप देखिए, बस ये  सहानुभूति थी । वह दूर तो जा सकती थी, पर वह काफी कठोर महिला थी और कोई बात नहीं।

लेकिन लॉस एंजेल्स में, फिर उसने धीरे-धीरे उसे अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए। और फिर, अंततः, वह मुसीबत में पड़ गया। उसे दर्द होने लगे। लेकिन जैसे ही मैंने लॉस एंजेल्स छोड़ा, उसे मिर्गी की बीमारी हो गई। और उसने अनुभव किया कि हर समय उसे मेरे साथ रखना कितना भयानक था। अब वह उसे दूर नहीं भेज सकता था क्योंकि उसे मिर्गी हो गई थी, इसलिए वह उसे वापस ले गया। उसने अपनी सहानुभूति की कहानी सुनाकर समस्त आश्रम को बाधित करने का प्रयास किया, “अरे, तुम जानते हो, मेरे पति, वे मुझे छोड़ना चाहते हैं,” वगैरह..वगैरह.. और तमाम तरह की  बकवास – और उन सभी ने उस पर विश्वास कर लिया।

अब, वो एक भूत है ,और एक भूत से दूसरा भूत और ये भूत बढ़ते चले गए । सहानुभूति से एक और भूत जुड़ गया, जितनी सहानुभूति उसे देते गए ,और भूत जुड़ते चले गए । एक बार जब आप उसे सहानुभूति देते हैं,एक और भूत जुड़ जाता है। और वह समस्याएँ पैदा कर रही थी, “यह अच्छा नहीं है, वह अच्छा नहीं है, वह मेरे विरुद्ध है। यह परिवार मेरे विरुद्ध है। वह मेरे विरुद्ध है। ” फिर उसे हृदयाघात हुआ, टैरेन्स को हृदयाघात हुआ – बस।  तब उसने उसे विदा किया और कहा कि अब तुम वह सारी बकवास नहीं दोहराओगी ।

नकारात्मकता को न तो सहन करना है, न ही साथ रखना है। विवेकपूर्ण होना, वीरता का ही एक उचित हिस्सा है। किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु वीरता के साथ विवेक का होना ठीक रहता है। ठीक है? यदि आपके आसपास नकारात्मकता है, तो उचित तो यही है उससे छुटकारा पाएं। अगर कोई व्यक्ति इतना नकारात्मक है, तो उचित यही होगा कि उस व्यक्ति के साथ आप  कोई सम्बन्ध न रखें , चाहे उसके साथ कोई भी संबंध क्यों न हो।  बस उनके साथ कोई भी सम्बन्ध न रखें। क्योंकि पतन की तरफ जाने का कोई लाभ नहीं। यदि आप एक जिज्ञासु हैं, आप एक जिम्मेदार ज्ञान पिपासु और सहजयोगी हैं, तो आपको सतर्क रहना होगा।

आज क्रिसमस के दिन मुझे यही कहना है, क्योंकि आज्ञा चक्र पर ही लड़ाई शुरू होती है – क्योंकि जब आप ईसा मसीह के सिद्धांत से हटते हैं तो आप नकारात्मकता के समर्थन में तर्क देना शुरू कर देते  हैं – हमेशा ही – विपरीत दिशा में। ठीक है?

और आपके सारे तर्क ईसामसीह के विरोध में बैठते हैं। वही आज्ञा चक्र, जब हास्यास्पद हो जाता है, तो आप पूरी तरह से अनुचित और असत्य चीजों को सही मानने लगते हैं। इसलिए हमें सतर्क रहना होगा।

हमें ईसा मसीह के साथ रहना है |  चैतन्य लहरियाँ प्राप्त होने के बारे में भी ये लोग कहेंगे ,“माँ, ठीक है। हमें भी तो चैतन्य आता है । यह सच है, हमने चैतन्य लहरियां देखी हैं । “हो कुछ भी नहीं रहा! मैं लज्जित महसूस कर रही हूँ। कभी-कभी मैं बताती नहीं पर मुझे लज्जा महसूस होती है। और कभी-कभी तो लोग मेरे विरूद्ध चालें चलकर, पैंतरेबाज़ी करने का प्रयास भी करते हैं, इसलिए कभी-कभी मैं चिंतित हो जाती हूँ,  लोगों को कैसे बताऊं। क्योंकि मैंने देखा है कि अहंकारी व्यक्ति बहुत संवेदनशील होते हैं। 

अब वे घमंडी नहीं हैं, उस पर काम हो रहा है, परन्तु वे बहुत संवेदनशील हैं। और यदि आप उन्हें कुछ भी बताएंगे तो वे स्वीकार नहीं करेंगे।जैसे कल, मैंने पूना के समस्त लोगों को फटकारा, उन्होंने कहा,”यह हमारे भले के लिए था”। किसी ने यह नहीं कहा कि, “माँ आपने ऐसी बातें क्यों कहीं ?” नहीं, एक शब्द भी नहीं। हर किसी ने कहा, “यह हमारे भले के लिए था।” परन्तु पश्चिम में यदि आप उन्हें लताड़ेंगे तो वे आपको लताड़ेंगे । कोई भी उसे इस तरह से नहीं लेगा।

मुझे आपको एक बात यह बतानी है कि आप अपने अहंकार की समस्याओं को सुलझाएं, सर्वप्रथम यह देखें कि आप अपने अहंकार से तो नहीं खेल रहे हैं। और साथ ही आप अपनी कंडीशनिंग को देखें, जो अब भूत हैं, यह समस्त धारणाएं अब आपके अंदर भूत बन गईं हैं। चर्च के सभी भूत आपके सिर में घुस गए हैं। वे सब वहाँ बैठे हैं। तो आपको यह देखना चाहिये कि ये भूत हमारे अंदर न घुसें क्योंकि हमें पवित्र होना है, हमें स्वच्छ होना है, हमारा पुनर्जन्म होना है। 

हम पुनर्जीवित लोग हैं, ईसा मसीह ने हमें पुनर्जीवित किया है। परन्तु आपको यह सोचना होगा कि उन्हें हमारे लिए कितना कार्य करना है। जितना अधिक आप नकारात्मकता के साथ जुड़ने का प्रयास करते हैं, हम उन्हें और अधिक नुकसान पहुंचाते हैं,  और अधिक यातना देते हैं,  और अधिक परेशान करते हैं। वे जो सबसे कठिन परिस्थितियों में एक नांद में पैदा हुए थे। जहां हर किसी को आराम की आवश्यकता होती है, वहां  वे जीवन की शुरूआत से लेकर अपनी मृत्यु तक कठिन परिस्थितियों से गुजरे ।

उनका जन्म स्वयं,  आप देख सकते हैं,  एक गाय के तबैले में हुआ था। आप में से किसी का भी जन्म गाय के तबैले में नहीं हुआ । सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह है कि हालांकि ईसा मसीह एक तबैले में पैदा हुए थे, वहीं ये ईसाई अपने आराम का इतना अधिक ख्याल रखते हैं ।  एक बहुत ही सर्द रात में, ईसा मसीह का जन्म हुआ। ढांपने के लिए भी ज्यादा कुछ नहीं था : एक चमकता हुआ सौंदर्य था वह ।

अब हमें उन्हें अपने भीतर, आराम से रखना होगा । हम उन्हें हमारे आज्ञा चक्र में वह नांद नहीं देने जा रहे हैं। विचारों का मुकुट और विचारों का नांद- हम उन्हें देने नहीं जा रहे हैं। नकारात्मकता के प्रति सहानुभूति न दर्शाकर हम उन्हें आराम पहुचायेंगे । 

आपको अपनी शुभता और पवित्रता के प्रति सजग रहना है ताकि ईसा मसीह आपके आज्ञा में रहने का आनंद लें – न कि अपने बेकार विचारों,  असुविधाजनक व्यवहार, अशुभ दिखावे और अशुभ विचारों की अपवित्र स्वीकारोक्ति से उन्हें प्रताड़ित करें।

उनका सम्मान करने का प्रयास करें। वहां वे खड़े हैं, उन्हें बहुत आराम पहुंचाने का प्रयास करें। काश, मैं ऐसा कर पाती ,लेकिन वे हरेक के आज्ञा चक्र में निवास करते हैं। यदि वे केवल मेरे आज्ञा में होते तो मैं उन्हें सबसे ज्यादा आराम देती। परन्तु वे सभी के आज्ञा में प्रकट होना चाहते हैं। इसलिए मुझे आपसे एक माँ के रूप में निवेदन करना है कि आप उनकी देखभाल करें। उन्हें एक अच्छा पालना दें,  उन्हें आरामदायक पल दें क्योंकि वे आपको आपका पुनरुत्थान देने के लिए जन्मे हैं । उन्होंने आपकी सारी कंडीशनिंग और आपके सारे अहंकार को सोखने का इतना बड़ा उत्तरदायित्व लिया है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि आप उनके ऊपर पत्थर रख दें ।

पश्चिम के कुछ लोगों की कंडीशनिंग इतनी अधिक है कि कभी-कभी मुझे लगता है कि इस छोटे से बच्चे पर एक बड़ा पहाड़ गिरा जा  रहा है। और कभी-कभी मैं पाती हूं,  एक बुरी हवा, अहंकार से भरी एक भयानक हवा,  जो बदबू मारती है,  उनकी ओर आंधी की तरह बह रही है, और इस भयानक अहंकार से भयानक दुर्गंध आ रही है, जो किसी भी प्रकार से उस राजाओं के राजा, जो आपके भीतर जन्में हैं,  से पेश आने के लिए उचित नहीं है। आप जो इतने सम्मानित हैं, वह इसलिए हैं क्योंकि ईसा मसीह आपकी आज्ञा पर जन्में हैं,  परन्तु आपको अपने आज्ञा चक्र का सम्मान करना चाहिए। आपका चित्त मध्य में होना चाहिए, ताकि उसमें कोई विचलन न हो। कल्पना कीजिए – एक बच्चे को हवाओं पर कैसे स्थापित करना है.. कल्पना कीजिए । 

अतः इस आज्ञा चक्र को बहुत स्वच्छ, स्वस्थ और पवित्र रखना है। चित्त पवित्र होना चाहिए। बहिर्मुखी चित्त अभी भी बहुत पवित्र नहीं है, चित्त निर्लिप्त होना चाहिए। यदि आप अपने आज्ञा के माध्यम से देखना प्रारंभ करें, तो उससे पवित्रता की शक्ति का प्रसारण होना चाहिए , ताकि जो भी आपकी आंखों को देखे, उसे पता चले कि इन आंखों से शांति बह रही है, न कि वासना और लालच और आक्रामकता। यह सब हम प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि हमारे आज्ञा के भीतर ईसा मसीह विराजमान हैं। उन्हें वहाँ स्वीकारें । वे वहां जन्में हैं – उन्हें विकसित होने दें। मुझे विश्वास है कि सहजयोगी आज्ञा के महत्व को समझेंगे।

पूर्व में  कोई समस्या नहीं है क्योंकि उनके लिए वे केवल गणेश हैं। गणेश एक बालक हैं और वे निश्चित रूप से जानते हैं  बालपन  में कोई मलिनता नहीं है, कोई समस्या नहीं है, कुछ भी नहीं। इसलिए, जहाँ तक पाप का संबंध है, वे अभी भी बालक हैं । एक कहानी है: एक पादरी एक गांव में गया, और उसने उनको एक बड़ा व्याख्यान दिया, और ग्रामीणों को धन्यवाद देना पड़ा। इतने में, एक ग्रामीण उठा और बोला, “हम सभी को इसके बारे में बताने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, हम तो जानते ही नहीं थे कि पाप क्या चीज़ होती है और आपने हमें बताया कि पाप भी होता  है!” इसके लिए परमात्मा का धन्यवाद। तो यह पाप की धारणा, उनके मस्तिष्क में ही नहीं है, वे इसे समझते ही नहीं हैं। आपको आश्चर्य होगा,  आप इस मामले में भारतीयों से आगे नहीँ जा सकते। उन्हें पाप का अर्थ ही नहीं मालूम। वे यह बता सकते हैं कि यह फ्रायड है, या कोई और पर उन्हें पता ही नहीं, क्योंकि यह चीज़ इतनी अधिक ईश्वर विरोधी है। वास्तव में मुझे भी तब तक पता नहीं था, जब तक रुस्तम ने, बड़ी हिचकिचाहट के साथ मुझे बताया नहीं कि सच में इसका अर्थ क्या है ।  तो यह बात है,  और हमें इसे समझना होगा ।

आज पवित्रता का महान दिवस है। आइए हम अपने आज्ञा चक्र पर ईसा मसीह का जन्मदिवस मनायें। और हम उनकी स्तुति गाएँ, ताकि वे अपने शुद्ध भाव में, अपने पवित्र शरीर में,  वहाँ रह सकें। कोई ईसाइयत या कोई फ्रायडियन बकवास नहीं । ईसाइयत भी उतनी ही बुरी है, जितना कि फ्रायड। मुझे कोई अंतर नहीं लगता है। चाहे आप उस बालक को उसपर पहाड़ गिराकर मारें या उस पर कोई भयानक बदबूदार हवा छोड़कर मारें, दोनों बातें एक ही है। तो कृपया दोनों ही विचारों से छुटकारा पाएं – पूर्णतया । और पवित्रता में आप उनका सम्मान करें । पूरी तरह से पवित्रता में, क्योंकि वे पवित्रता ही हैं।

अब आप कह सकते हैं कि, “माँ यदि वे पवित्रता है ..” –  कुछ मूर्ख व्यक्ति हैं जो मुझसे पूछते हैं – “.. अगर वे पवित्रता है, तो हम उन्हें अपवित्र कैसे कर सकते हैं?”  पर मेरा तात्पर्य यह है कि  यदि आप उनका सम्मान नहीं करेंगे, तो वे वहाँ क्यों रहेंगे ? वे वहाँ से लुप्त हो जाएंगे। उन्हें पवित्रता पसंद है। वे वहां से लुप्त हो जाएंगे ! यह आपके लिए अच्छा नहीं है। तो बेहतर यही होगा कि आप अपनी संपूर्ण मिठास, दयालुता और आश्वासन के भाव से परिपूर्ण प्रेम का, सत्यता का, एक पालना, एक सुंदर सा पालना, तैयार करें, जैसाकि उनकी माँ ने उनके लिए तैयार किया और यह कि आप मसीह की सुंदरता और शुभता का पोषण करेंगे।

परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करें ।

आप गा सकते हैं । भोजन के उपरांत हम यहाँ अलाव जलायेंगे और फिर हम बारह बजे तक कुछ अच्छे क्रिसमस गीत गा सकते हैं, और फिर हमारे  बड़े अच्छे  मित्र  मेहरोत्रा जी यहां हैं, उन्होंने आपको केक और चाय देने का निश्चय किया है – हम कुछ केक और चाय लेंगे, और फिर आप सो सकते हैं। और कल सुबह, जैसा कि मैंने आपको बताया, उनके जन्म का उत्सव है – पूरे जोर-शोर से – सभी के द्वारा मनाया जाएगा | केवल आपके द्वारा ही नहीं, बल्कि भारतीयों और अन्य व्यक्तियों द्वारा भी जो यहां मौजूद हैं। हम सभी को मनाना है। बड़ी महान बात है। और जब तक आपमें पवित्रता और शुभता के लक्षण नहीं दिखेंगे, तब तक भारतीय आपसे प्रभावित नहीं होंगे, मैं आपको यह बता सकती हूं, कि वे प्रभावित होने वाले नहीं हैं । वे यहाँ आने वाले इन पादरियों को नहीं समझ सकते और ये पादरी उन्हें ईसा मसीह के बारे में बता रहे हैं – वे इस पर विश्वास नहीं कर सकते कि वे ऐसे कैसे हो सकते हैं ।

एक और रोचक कथा है: एक बार एक गाँव का एक व्यक्ति था: उसका नाम भूरा था, जिसका अर्थ है गोरा, और वह आया और उन्होंने कहा, “तुम ईसाई बन जाओ,” तो उसने कहा, “अच्छा, मैं एक ईसाई बन जाऊंगा।” उन्होंने उसे ईसाई बना दिया। उन्होंने कहा, “हमें नाम बदलना होगा,” उसने कहा, “लेकिन मेरा नाम ब्लॉंडी है।” उन्होंने कहा, “ठीक है, हम आपको एक दूसरा नाम देंगे।” उन्होंने उसे अलेक्जेंडर कहा। तो उसका नाम श्री ब्लोंडी अलेक्जेंडर, भूरा सिकंदर था। अब यह भूरा अलेक्जेंडर इलाहाबाद आया करता था, जहाँ वह सदैव जाकर गंगा नदी में स्नान करता था। इसलिए पादरी ने कहा, “अब तुम यह नहीं कर सकते। अब तुम एक ईसाई हो , तो तुम गंगा नदी में स्नान नहीं कर  सकते।” उसने कहा, “क्यों? मैं साहब बन गया हूं, मैं अब अंग्रेज बन गया हूं, लेकिन मैंने अपना धर्म नहीं छोड़ा है। ” उसने अपनी भाषा में कहा, “मैंने अपना धर्म नहीं छोड़ा है। ठीक है, मुझे पता है कि गंगा नदी मेरी माता है और उनमें चैतन्य है । मैं उन्हें त्यागने वाला नहीं हूं। ठीक है, मैं अब ‘साहब’ बन गया हूं, अंग्रेज बन गया हूं। ” तो ये उनके विचार थे, ईसाई धर्म के बारे में।

आपके कोई प्रश्न हैं, तो आप मुझसे पूछ सकते हैं और हॉं, खाना तैयार है, आप जाकर खाना खा सकते हैं ।

अलेक्जेंडर: जब मैं निर्विचार चेतना में होता हूं, तो मैं स्पष्ट रूप से नहीं देख सकता।

श्री माताजी: मुझे लगता है कि आप  सामान्य रूप से जो देखते हैं, उससे कहीं अधिक आप देख रहे होंगे! अलेक्जेंडर सही है। जब आप निर्विचार चेतना में होते हैं तो आपकी आंखें, पुतलियां फैल जाती हैं। यह सही है। परन्तु आपको इसे और ऊपर ले जाना चाहिए- कुंडलिनी को- थोड़ा ऊपर । इसे ऊपर धकेलें, ठीक है? यदि कुंडलिनी निर्विचार चेतना में ठहरती है तो इसका अर्थ है कि यह थोड़ा फैल जाती है, व आँखें काली हो सकती हैं, परन्तु उनमें कोई चमक नहीं होती। परन्तु जब यह बाहर निकलती है, तो आप आंखों में एक चमक पाते हैं; यदि आप देखें तो आंखों में एक अंतर होता है। आंखें फैल जाती हैं, पुतलियां फैल जाती हैं, जब आज्ञा चक्र को भेदा जाता है, और यह अभी भी यहां है – तो आप स्पष्ट नहीं देख सकते, ठीक। परन्तु निर्विचार चेतना में आप इस भाग में रहते हैं | इस प्रकार, यदि आप इसे थोड़ा सा ऊपर धकेलते हैं – आप जानते हैं कि कुंडलिनी को अपने चित्त से कैसे धकेलना है – या आप यहां देखें या आप मेरे बारे में सोचें – तो कुंडलिनी ऊपर उठेगी। ठीक है?

 तो निर्विचार चेतना सिर्फ शुरूआत है। और यह एक महान क्षेत्र है, इस बिंदु तक, श्री कृष्ण के पाइन्ट तक, जहां आप साक्षी बन जाते हैं। साक्षी भाव में, जब आप आ जाते हैं,  तब आपकी आंखों में एक चमक होती है, आपकी आंखें चमकती हैं। और आंखों में चमक इस बात का संकेत है कि कुंडलिनी ठीक से प्रवाहित हो रही है। उस समय आपको सामान्य की तुलना में अधिक दिखाई देने लगता है। मेरा मतलब यह है कि सितारे आपको बड़े दिखने लगते हैं, सब कुछ अधिक स्पष्ट दिखने लगता है। ठीक है? अब पहले से ठीक है। यह सही है, पुतली का फैलाव होता है। उस समय वास्तव में कुछ लोगों ने अपनी आँखें खोलीं और उन्होंने कहा, “हम अंधे हो गए हैं।” यह सत्य है। यह होता है। यह सही है। ठीक है, अब और क्या पूछना है? यह एक अच्छा प्रश्न है … 

योगी: माँ, क्या 888 और क्राइस्ट के बीच कोई संबंध है?

श्री माताजी:888 ? हां, हो सकता था। पर आपको क्या संबंध पता चला?

योगी: कई वर्ष पूर्व मैं हिब्रू कब्बालाह को देख रहा था और उनकी अलग-अलग संख्याओं की एक प्रणाली थी जिसे वे मिलाते थे।

श्री माताजी: वह ठीक है। उनके पास ये 888 की संख्या होगी, ठीक है। क्योंकि, आप देखिए कि उनके चक्र 6 के रूप में नहीं चलते हैं। उन्हें उस प्रकार से चलना चाहिए, परन्तु वे 888 में चलते हैं क्योंकि  हमारे पास 8 वां कोई चक्र नहीं है, इसलिए वे बगल में हैं। वे बायीं ओर पर हैं, कब्बालाह बांये भाग में है, इसलिए वे इसे 8 से क्रियान्वित करते हैं – मतलब बाहर से। 7, 3, 4 मध्य में हैं। अब 6 वें बिंदु पर, यदि आपके पास 666 है – मतलब पूरी तरह से दोनों तरफ के दोनों स्वाधिष्ठान पर आपका कब्जा है। और मध्य में भी, इसलिए आपने इन तीनों पर चोट करते हैं,यही कारण है कि यह संख्या अच्छी नहीं है। और 888, आप बांये स्वाधिष्ठान पर अधिक जाते हैं और अपने मूलाधार का उपयोग करते हैं, यह मूलाधार के साथ कार्य करता है। यह एक अजीब बात है, क्योंकि 4 गुणित 2,  8 है, ठीक है? और 4 गुणित 2 वहाँ आता है, जहाँ आपका 4 मूलाधार है। स्वाधिष्ठान में जाने के बजाय, आप केवल आज्ञा और मूलाधार को इस तरह जोड़ते हैं, कि आप बाहर चले जाते हैं। ठीक है? तो आप अपना आज्ञा रखें, यह 2 है, 2 से आप इस तरफ चले जाते हैं। यह ऐसा ही है। कब्बालाह बहुत भयानक वस्तु है, किसी को कभी भी इसका प्रयास नहीं करना चाहिए। फिर आप भविष्य और वह सब चीज़ें देखना प्रारम्भ कर देते हैं,  है ना? यह बिलकुल भी अच्छी बात नहीं है। तो, हमारे लिए, संख्या 7, 3 है, जो सबसे अच्छी संख्या है – 7 और 3 की संख्या।

और क्या पूछना है?

योगी: मैं सिकंदर के प्रश्न पर पुनः चर्चा करना चाहूंगा। मैं जितना दूर देख सकता था अब उससे कहीं अधिक दूर तक देख सकता हूं, क्या इसका आज्ञा के साथ कुछ सम्बन्ध है?

श्री माताजी: हां, हां बिल्कुल। मेरा आशय यह है कि, आज्ञा बहुत महत्वपूर्ण है और अपनी कुंडलिनी को ऊपर ले जाने का उत्तम मार्ग है। आज्ञा में मत भटकना – यह बात बहुत भयानक है। आपको फेंका जा सकता है 4, 4, 4 की ओर, जैसा कि उसने कहा था, या आप इस ओर जा सकते हैं 6, 6, 6, 6 पर। यह 6, 6, 6, 6 इस ओर और 4, 4, 4, 4 उस ओर से कार्य करता है  – यह भयानक है। कभी न जाएं। आज्ञा पर आपको बहुत सावधान रहना चाहिए। आपको आज्ञा में कभी नहीं भटकना चाहिए क्योंकि इससे बाहर फेंक दिया जाता है, चित्त को बाहर फेंक दिया जाता है । आप सभी समस्याग्रस्त, बहुत समस्याग्रस्त चीजें देखने लगते हैं ।

अपनी कुंडलिनी को हर समय बाहर निकालने का प्रयास करें। देखें कि यह बाहर आ रही है। अपना चित्त वहां लगाएं। और सबसे अच्छा, अब अपना चित्त मुझ पर लगाएं, क्योंकि मैं सहस्रार पर हूं। और अपनी कुंडलिनी को आज्ञा क्षेत्र में रहने की अनुमति न दें; यह खतरनाक है, इसमें कोई सन्देह नहीं। आप सूक्ष्म बन गए हैं और आप प्रयास करें तो आप बाएं और दाएं जा सकते हैं ।  

कोई और प्रश्न?

रॉबर्ट रुइग्रोक: मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही: वह है कुछ किताबों में वर्णित छवियों और हमारी निर्विचार अवस्था की छवियों में समानता ।

श्री माताजी: ठीक है, मैं आपको बताती हूँ। यदि आप अपनी आँखें बंद करना प्रारंभ करें और कहें कि आप नींद में हैं तो उस समय आप छवियों को देखना प्रारम्भ करते हैं। इसका अर्थ है कि आप बायीं ओर को जा रहे हैं – वे मृत शरीर हैं, आप उनके चेहरे देखना प्रारम्भ करते हैं, वगैरह,वगैरह – आप बायीं ओर को जा रहे हैं। अब मान लीजिए कि आप प्रकाश और सितारों को देखना शुरू कर देते हैं और वगैरह, वगैरह.. सभी प्रकार की चीज़ें, मेरा मतलब और अधिक रंग…तो  हमें कहना चाहिए – आप दाहिनी ओर बढ़ रहे हैं।तो इससे बचने का प्रयास करें। आपको कहना चाहिए “बस मुझे यह नहीं चाहिए,” और आप अपनी आज्ञा को  – यदि यह बायीं ओर हैं, तो आप इसे अपनी दाईं ओर करने का प्रयास करें और यदि यह दायीं ओर है ,तो बायीं ओर, केवल इसे धकेलकर। बस ऐसे और ऐसे । परन्तु क्या होता है, कुछ समय बाद, जब आप उच्च चेतना की एक निश्चित अवस्था प्राप्त कर लेते हैं, तब यदि आप चाहें, तो इन क्षेत्रों में प्रवेश कर सकते हैं, आप इन सभी वस्तुओं को देख सकते हैं। परन्तु तब कुछ अलग प्रकार की वस्तुएं आप देख सकते हैं, उदाहरण के लिए, आप मेरे सहस्रार से – बड़े, विशाल वलय बाहर आते हुए देख सकते हैं, या ऐसा ही कुछ और। यह पूर्णतः अलग पाइन्ट है। और कभी-कभी आप एक छोटी लौ देख सकते हैं, यह एक अच्छा संकेत है, जिसका अर्थ है कि कोई आपका मार्गदर्शन कर रहा है। परन्तु आपको सावधान रहना होगा इन बातों में न उलझें, क्योंकि यह आपके लिए एक मार्गदर्शन है और आप सभी का महान देवताओं द्वारा अनुगमन किया जा रहा है, निःसंदेह यह चीज है, परन्तु आपको उनके पीछे लालायित नहीं होना चाहिए। यदि वे वहाँ हैं, तो रहने दें, क्योंकि आपका आज्ञा बहुत महत्वपूर्ण है। आपको अपने आज्ञा को इन चीजों से आकर्षित नहीं होने देना चाहिए। आप उसी तरह की एक लौ पा सकते हैं। कभी- कभी आपको छोटा  सा बिंदु दिख सकता है: स्थिर बिंदु। वे सभी वास्तव में देवदूत हैं जो आपके साथ हैं, और आपको आश्वस्त करने का प्रयास कर रहे हैं। परन्तु यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि आप अपने मार्ग पर आगे बढ़ें,  इस ओर या उस ओर न जाएं ।

परन्तु यदि आप हर रोज उन छवियों को देख रहे हैं, तो इन्हें जैसे तैसे करके किसी भी प्रकार से  पीछे धकेलने की कोशिश करें, समाप्त करने का प्रयास करें, ताकि आप आगे बढ़ें। इसका अर्थ यह है कि आप एक ही बिंदु पर चिपके हुए हैं या आप दूसरी ओर अन्य दिशाओं में जा रहे हैं। आपको आगे, और आगे ही आगे बढ़ते जाना है । 

और कुछ?

अलेक्जेंडर: हमें अपने अवचेतन की रक्षा कैसे करनी चाहिए क्योंकि हम इसके बारे में सचेत नहीं हो सकते?

श्री माताजी: आपको आवश्यकता नहीं है,  मैं करुँगी। आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है! आप केवल सचेत रहें । ठीक है? आप किसी भी वस्तु की रक्षा नहीं करते हैं, वास्तव में आप कुछ भी नहीं करते हैं अगर आप देखें अलेक्जेंडर! वास्तव में,  यह देखिए कि आप करते क्या हैं?

अलेक्जेंडर: हम केवल आनंद ले रहे हैं!

श्री माताजी: हाँ, केवल आनंद लें। वही उत्तम है। केवल आनंदित हों! बस मैं चाहती हूं कि आप आनंद लें । अपने आप के लिए समस्याएं उत्पन्न न करें,  केवल इतना ही, और केवल आनंद लें। ठीक है? बस अपने लिए समस्याएं उत्पन्न न करें।

महत्वाकांक्षी न बनें। आक्रामक न बनें। और न ही दूसरों के प्रति बहुत अधिक विनम्र न बनें, जो शायद कभी-कभार ही होता होगा। शायद ही ऐसा हो। लेकिन सहजयोग के प्रति विनम्र रहें। सहजयोग के प्रति समर्पित रहें।

मैं जानना चाहूंगी  कि पर्थ से  कौन लोग हैं,  वे मुझे अपना नाम दें।