अमेरिका के बारे में प्रश्नोत्तर, दिल्ली, भारत, 1983-02-10
Questions and Answers About America, Delhi, India 1983-02-10
सहजयोगियों से बातचीत 1983-02-10
योगी: हम काफी-कुछ वहीं प्रश्न पूछेंगे जो हमने उस दिन पुछे थे। हमें ऐसे उत्तरों की आवश्यकता होगी जो एक या दो मिनट लंबे हों।
श्री माताजी: सिर्फ दो मिनट? वह अमेरिका जैसा बड़ा देश है।
योगी: यदि यह बहुत लंबा हुआ तो हम इसे संपादित कर सकते है।
(श्री माताजी प्रश्नों को देखती हैं।)
. आत्मसाक्षात्कार का क्या महत्व है?
. आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना क्यों महत्वपूर्ण है?
. चैतन्य क्या है?
. पश्चिम भारतीयों से और भारतीय पश्चिम से क्या सीख सकते है?
श्री माताजी: यह भारत बनाम पश्चिम बहुत विवादास्पद है। भारत से कुछ नहीं सीखो और भारत को आपसे कुछ नहीं सीखना चाहिए। वे सभी एक ही नांव में सवार है। ब्रायन, क्या तुमने मुझे सुना? भारतीयों से स्थूल स्तर पर कुछ सीखने का नहीं और पश्चिम से कुछ सीखने का नहीं। दोनों एक ही नांव में सवार है। एक विकसित हो चुका है और एक विकसित हो रहा है। तुम क्या कहते हों?
योगी: आध्यात्मिक स्तर पर, तो, माँ?
श्री माताजी: आप भारतीयों के आध्यात्मिक स्तर के बारे में क्या सोचते हैं? शून्य है? यह क्या है?
योगी: लेकिन आकांक्षाएं, जो कि इस देश में अभी भी संरक्षित है?
श्री माताजी: अगर मुझे अमेरिकियों से बात करनी है, तो वे अहंकार उन्मुख हैं। उन्हें बुरा लगेगा। भारत उनसे अधिक महान है ऐसा ना कहना ही बेहतर होगा।
योगी: माँ, आप राजनयिकों की राजनयिक हो।
श्री माताजी: हमारा मुख्य उद्देश्य उन्हें सहज योग में लाना है, है न? ना कि उन्हें चोट पहुंचाना। तो हम उन विषयों से बचें जो उनके अहंकार को चुनौती देंगे। उनके अहंकार को चुनौती क्यों दें ताकि वे बाहर निकल जाएं…
योगी: हम जिसका उत्तर देने का प्रयास कर रहे हैं, माँ, वह प्रश्न है कि 130 पश्चिमी लोग भारत क्यों आते हैं और भारत की असुविधाओं से गुजरते हैं। ऐसा क्या है जिसकी वे तलाश कर रहे हैं और उन्हें लगता है कि वे उसे यहां पा सकते हैं, इस दृष्टिकोण से?
श्री माताजी: फिर सीखो मत लिखो। आप कह सकते हैं कि, “भारतीय साधक और पश्चिमी साधक में क्या अंतर है?” यह बेहतर रहेगा। जब तक वे खोज रहे हैं, वे स्थूल स्तर पर हैं। हम तुलना कर सकते हैं। दोनों के बीच क्या अंतर है? लेकिन अगर आप सूक्ष्म चीजों पर आते हैं तो कोई अंतर नहीं है।
योगी: यह आखिरी वाला, जो हमने सोचा था जैसा कि आपने हमें सुझाव दिया था कि आप भी गुरु के बारे में थोड़ी बात करें। हम जो पूछने जा रहे हैं, वह यह है कि इतने सारे रास्ते हैं। केवल सहज ही भगवान के पास क्यों जाता हैं और अन्य गुरुओं का उद्देश्य क्या है? यह सब बहुत विवादास्पद है|
माताजी: ओह! ठीक है। इसमें मैं क्या करूंगी मैं चुनूंगी। यह तरीका बेहतर होगा। यह गुरुओं के बारे में होगा। मैं इसे अलग से रखना चाहूंगी।
योगी: यह वास्तव में आप पर निर्भर है, माँ, जैसे भी यह काम करें।
श्री माताजी: यह काम करेगा। लेकिन आपने कहा कि चैतन्य क्या है यह आपने डाला?
योगी: वह है, हाँ, वह दूसरी बात है।
श्री माताजी: (मैं) क्या कहती हूँ। एक अमेरिकी को यह पूछने दें – एक अमेरिकी लहजे के साथ। ठीक है, देखते हैं कि आपको मुझसे क्या पूछना है? बेहतर होगा गणेश को हटा दें अन्यथा वे इस पर सवाल उठा सकते हैं। नहीं? ठीक है।
योगी: आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने का क्या महत्व है?
श्री माताजी : विकास की प्रक्रिया में, एक मनुष्य का जन्म अमीबा नामक एक छोटे से एककोशीय प्राणी से हुआ है। मनुष्य बनने का उद्देश्य क्या है? उद्देश्य यह है कि उसे आत्मा बनना है। मनुष्य शरीर और मन का यह वाहन भीतर की आत्मा को व्यक्त करने के लिए है।
आत्म-साक्षात्कार हमारे उत्थान का प्रतीक है, इसलिए हम सभी को आत्म-साक्षात्कारी होना चाहिए। स्व के बिना, हम अंधेरे में हैं। हम उस सर्वव्यापी शक्ति से अवगत नहीं हैं जो सभी जीवित कार्यों को कर रही है जो हम नहीं कर सकते। हम जो करते हैं वह मृत कार्य या मानसिक प्रक्षेपण है जो हम पर पलट कर आता है और हमें गुलाम बनाता है। हमें आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ना चाहिए। अमीबा से इस चरण तक मनुष्य की प्रगति का यही लक्ष्य है।
योगी: चैतन्य क्या हैं?
श्री माताजी: चैतन्य आपके भीतर आपके केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर सर्वव्याप्त दिव्य शक्ति की अनुभूति है। आप अपने केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर आत्म-साक्षात्कार के बाद पहली बार दैवीय शक्ति को महसूस कर सकते हैं, जो कि आपकी उंगलियों के पोरों तक समाप्त होती है जहां अनुकम्पी केंद्र स्थित है। तो आप अपने हाथ पर हाथों से बोली जाने वाली सार्वभौमिक भाषा, विभिन्न केंद्रों को महसूस करना शुरू कर देते हैं और इस प्रकार आप जानते हैं कि आत्मा और आपके बीच एक संबंध स्थापित हो गया है क्योंकि जब आप किसी मौलिक समस्या के बारे में प्रश्न पूछते हैं, तो आप या तो ठंडी हवा को अपने हाथों में बहता हुआ पाते है या आप इसे रुका हुआ। कभी-कभी आपको कुछ छाले हो सकते हैं। साथ ही यदि व्यक्ति किसी प्रकार के बहुत बड़े कुसमायोजन से पीड़ित है। यदि व्यक्ति मृत्यु की ओर जा रहा है तो आपको सुन्नता लग सकती है या बर्फ़ की तरह ठंडा लग सकता है। तो हाथ बोलने लगते हैं जैसा कि मोहम्मद साहब ने कहां था, कि कियामा का समय आने पर तुम्हारे हाथ बोलेंगे। यह पुनरुत्थान का समय है क्योंकि कुण्डलिनी त्रिकास्थि (त्रिकोणाकार अस्थी) में निवास करती है जो कुम्भ है। यह कुंभ राशि का युग है। यह कुण्डलिनी का युग है।
योगी: तो यह दोहरा प्रश्न है। पश्चिम ने भारत से बहुत सारे गुरु प्राप्त किए हैं और प्रत्येक का एक अलग मार्ग है और पश्चिम में यह माना जाता है कि सभी मार्ग ईश्वर की ओर ले जाते हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कैसे जाते हैं लेकिन आप वहां पहुंचने वाले हैं। क्या यही योगदान भारत पश्चिम को, अमेरिका के साधकों को देता है?
श्री माताजी : भारत को जड़ों का ज्ञान देना है, जबकि पश्चिम के पास वृक्ष का ज्ञान है। लेकिन जिन्हें (धर्मगुरु) यहां से निर्यात किया जाता है, मुझे आश्चर्य होता है कि उनमें से कितने वास्तव में असली हैं या यदि वे जड़ों के बारे में कुछ जानते भी हैं? इसलिए मैं यह नहीं कह सकती कि जो लोग वहां जा रहे हैं वे ऐसे लोग हैं जो उस ज्ञान को प्रदान कर सकते हैं जो अभी तक पश्चिम को ज्ञात नहीं है। जो कुछ भी अज्ञात है वह परमात्मा नहीं है। भारत और पश्चिम के बीच के अंतर को तार्किक रूप से समझें तो यह है: कि भारत ने अभी भी जीवन के लक्ष्य के रूप में मूल बातों को बरकरार रखा है और मूल बात यह है कि व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करना चाहिए, कि संतुलन से, धर्म से जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि इस देश में जड़ों का इतना ज्ञान है, लोग बहुत पाखंडी हो सकते हैं, वे बहुत बेईमान हो सकते हैं और उस ज्ञान का दुरुपयोग पश्चिमी लोगों का शोषण करने के लिए कर सकते हैं जो ( पश्चिमी लोग) इस ज्ञान के बारे में भोले हैं।
पश्चिम के कुछ सहज योगियों को भारत लाने, भारत के गांवों में लाने का मेरा विचार उन्हें यह समझाना था कि आराम जीवन का लक्ष्य नहीं है। क्योंकि हमारे पास ग्रामीण हैं जो आत्मसाक्षात्कारी हैं, जिनके पास कोई आराम नहीं है जो कि पश्चिमी लोगों के लिए इतना महत्वपूर्ण है, लेकिन वे बहुत खुश, संतुष्ट और शांतिपूर्ण लोग हैं और बेहद अच्छे योगी हैं।
इसका मतलब यह नहीं है कि आप अपने आराम को छोड़ दें और आप ईश्वरीय हो जाएं। यह सब एक मानसिक व्यवहार है यदि आप सोचते हैं कि उपेक्षा से आप ईश्वरीय बन सकते हैं। यह (सही) तरीका नहीं है। लेकिन जब आप भारत आते हैं तो आप समझ पाते हैं कि आराम पाने की इस आदत को छोड़ देना चाहिए। यदि आपके पास कोई (आदत) है तो ठीक है लेकिन आराम को अपने सिर पर न बैठने दें। अपनी आत्मा को आप पर शासन करने दें, न कि इस विचार को कि आपको आरामदायक या समृद्ध होना चाहिए। वह विचार आप पर शासन नहीं करना चाहिए।
योगी: दूसरी बात जो हम आपसे पूछना चाहते थे, वह अमेरिकी प्रेस, छोटे अमेरिकी प्रेस के लिए 1 या 2 प्रश्न हैं।
श्री माताजी: लेकिन मैंने अभी तक गुरु के बारे में कुछ नहीं कहा है। जैसा कि मैंने बताया है कि बहुत से नकली लोग अमेरिका गए हैं क्योंकि वे जानते हैं कि आप सभी भोले हैं और कुछ भी आडंबरपूर्ण आपको बहुत प्रभावित करता है क्योंकि अमेरिकी जीवन अब बहुत पैसा और अहंकार उन्मुख हो गया है। इसलिए उन्होंने आपके अहंकार को बढ़ावा देने के और आपसे पैसे निकालने के सभी तरीके विकसित कर लिए हैं ताकि आपको लगे कि आप गुरु को खरीद सकते हैं। मैं सबसे पहले अमेरिका गयी थी और फिर वे सभी गए और इतने सारे अमेरिकियों ने मुझे सुझाव दिया कि, “माँ, आप अपने लिए कुछ पैसे क्यों नहीं लेतीं और आप इन लोगों के लिए जो कर रही हैं उसके लिए पैसे क्यों नहीं माँगतीं क्योंकि आप असली काम कर रही हैं।”
क्योंकि अमेरिकी जो कुछ भी मुफ़्त है और अनमोल है उसे नहीं समझेंगे लेकिन मैंने कहा कि पैसा केवल वही खरीद सकता है जो आपसे कम है। यह कोई ऐसी चीज नहीं खरीद सकता जो आपसे ऊंची हो। उन्होंने कहा, “आप अमेरिका में कभी सफल नहीं होंगे। आपको कुछ पैसे लेने होंगे। मैंने कहा, “मुझे यह सफलता नहीं चाहिए। मुझे सहजयोगी चाहिए। मैं चाहती हूं कि योग काम करे। एक दिन ऐसा आएगा कि उन्हें एहसास होगा कि जिन गुरुओं को उन्होंने खरीदा, उन्होंने उनका पूरा शोषण किया और उन्हें अपने उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया और भाग गए। उन्हें एहसास होने दें क्योंकि अगर मैं उन्हें बताऊंगी तो उन्हें इसका एहसास नहीं होगा। आपको पता होना चाहिए कि जीवन के लिए जो कुछ भी महत्वपूर्ण है उसे आप खरीद नहीं सकते। पूरी विनम्रता के साथ इंसानों को भी यह एहसास होना चाहिए कि आपने इंसान बनने के लिए कुछ नहीं किया है। भगवान ने सब कुछ किया है। आपने उन्हें कितना भुगतान किया है?
लेकिन फिर भी उन्हें सबक सीखना है और एक बार जब आप इन गुरुओं के चंगुल में फंस जाते हैं, तो बाहर निकलना बहुत मुश्किल होता है, जब तक कि आप दिल के दौरे या पागलपन, मिर्गी, इन सभी चीजों जैसी बड़ी समस्याओं में न पड़ जाएं। लेकिन अगर आपको मिल भी जाए तो भी आप उसे इससे नहीं जोड़ सकते। आपको यह समझना चाहिए कि यदि आपके गुरु के रूप में आपके पास एक वास्तविक गुरु है तो कम से कम आपका स्वास्थ्य ठीक होना चाहिए, आपकी संपत्ति बरकरार होनी चाहिए जबकि वे केवल बटुए में रुचि रखते हैं। अमेरिकियों के पास बहुत पैसा है और मुझे लगता है कि वे अमेरिकियों में भारतीयों की तुलना में अधिक रुचि रखते हैं क्योंकि भारतीयों के पास कोई पैसा नहीं है। यह बहुत ही सीधी सी बात है।
योगी: माँ, क्या कोई अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकता है?
श्री माताजी: हाँ, आप में से अधिकांश प्राप्त कर सकते हैं। मैं यह नहीं कहूंगी कि मैं हिटलर को साक्षात्कार दे सकती हूं। उस “कोई भी” का अर्थ है कि हिटलर भी मेरे सामने खड़ा होगा और कहेगा कि मैं अपनी मूंछें मुंडवा लूंगा, अब मुझे दो। मेरे लिए यह बहुत ज्यादा है। आपको सच्चाई से, ईमानदारी से देखना चाहिए कि क्या आपके पास अपने बारे में अपने पूर्वकल्पित विचार हैं। फिर भगवान कहते हैं ठीक है, आगे बढ़ो, अपनी किस्मत आजमाओ। लेकिन अगर आपको लगता है कि आपने अभी तक इसका पता नहीं लगाया है और आपको यह देखना है तो अगर आप इसके बारे में विनम्र हैं तो यह काम करता है, यह होता है। मुझे लगता है कि पश्चिम में मेरे पास आने वाले सभी लोगों को आत्मसाक्षात्कार मिला है, सिवाय एक के जो शादीशुदा नहीं है, जो शादी में विश्वास नहीं करता, जो यह नहीं सोचता कि महिलाएं वैसे भी अच्छी होती हैं या ऐसा ही कुछ। लेकिन वह भी शादी करेगा और अपना आत्मसाक्षात्कार हासिल करेगा।
योगी: तंत्र-मंत्र में प्रयोग करना खतरनाक क्यों है, माँ? जब हम उन प्रयोगों को करते हैं तो क्या हम कुछ सीखते नहीं हैं?
श्री माताजी: क्योंकि यह आपके लिए अज्ञात है। आप नहीं जानते कि आप क्या कर रहे हैं। हम इस गूढ़ विद्या को 2 पक्षों में विभाजित कर सकते हैं: एक दाहिना पक्ष और दूसरा बायां पक्ष। चक्रों में मौजूद कई अवरोधों से आपके चित्त कि दाहिनी या बाईं ओर गति हो जाती है। क्योंकि अगर रुकावट हो तो चित्त ऊपर की ओर नहीं जा सकता। यह एक तरफा गति से चलना शुरू कर देता है और यह आपके नाभि चक्र या आज्ञा चक्र, उनमें से किसी एक को अवरुद्ध कर सकता हैं और आपकी स्थिति का लाभ उठा सकता हैं जब आप मध्य में नहीं बल्कि दाईं या बाईं ओर हों। यदि आप बाईं ओर जाते हैं तो आप अवचेतन कहे जाने वाले क्षेत्र में जाते हैं और फिर सामूहिक अवचेतन में जाते हैं जहाँ सृष्टि से जो कुछ भी मृत है वह होता है।
अब यह कहा जाता है कि कैंसर प्रोटीन के कारण होता है या ट्रिगर होता है। वे मृत आत्माएं नहीं कहते जैसा हम कहते हैं। प्रोटीन 58 और 52 कैंसर को ट्रिगर कर सकते हैं, और ये उस क्षेत्र से आते हैं जो हमारे निर्माण के बाद से हमारे भीतर बना है, जिसका अर्थ है सामूहिक अवचेतन। इनमें से सभी प्रकार की बीमारियाँ जैसे मायलाइटिस और ल्यूकेमिया बाईं ओर से आती हैं।
दाहिनी ओर की गति में केवल शारीरिक समस्याएँ ही मैंने देखी हैं। यदि आप दाहिनी ओर बढ़ते हैं, तो आप अत्यधिक अहंकार उन्मुख हो जाते हैं और आप ऐसे लोगों से मिलते हैं जो अतिचेतन में हैं और फिर सामूहिक अतिचेतन में जाते हैं, जहां सभी महत्वाकांक्षी लोग जो मर चुके हैं और अभी भी आसपास मंडरा रहे हैं।
इनके बारे में डॉक्टरों को ज्यादा जानकारी नहीं है| लेकिन ये लोग इन आध्यात्मिक केंद्रों पर काम कर सकते हैं जहां वे इन मृत आत्माओं के माध्यम से लोगों को ठीक कर सकते हैं, ऑपरेशन कर सकते हैं और सभी प्रकार की चीजें कर सकते हैं। वे भी हिटलर की तरह कार्य कर सकते हैं क्योंकि उन्होंने लामाओं की अतिचेतन शक्तियों का उपयोग किया था। उन्होंने यह सब तिब्बती लामाओं से सीखा और उन्होंने इसका उपयोग लोगों को श्रेष्ठ नस्ल के विचार से लुभाने के लिए किया और उन्होंने कई यहूदियों को मार डाला।
तो अतिचेतन या सामूहिक अतिचेतन में ऐसी शक्तियां होती हैं जो अत्यधिक प्रभावशाली होती हैं और वे आपको आपके दिल से दूर ले जाती हैं और आपको अपने बारे में एक बहुत ही फूला हुआ विचार देती हैं। ऐसा आंदोलन बहुत हिंसक और पूरे समाज के लिए हानिकारक हो सकता है|
ऐसे लोग अत्यधिक सक्रियता के कारण दिल के दौरे से पीड़ित होते हैं। फिर वे मधुमेह, लीवर और उन सभी बीमारियों से भी पीड़ित हो सकते हैं जो लीवर सिरोसिस जैसी बहुत साधारण दिखती हैं।
लेकिन सबसे बुरी बात यह है कि ये बेहद हानिकारक होते हैं। वे ऐसे अहंकारी लोगों को इकट्ठा करके बहुत शक्तिशाली बन जाते हैं और बहुत आक्रामक विचारधारा रखने की कोशिश करते हैं। वे अधिकतर प्रशासन के शीर्ष पर होते हैं। उनकी एकमात्र महत्वाकांक्षा ऐसे शीर्ष पर पहुंचना है जहां वे देशों को आपदाओं में ले जा सकें।
इसलिए कुछ भी संभव है यदि वे सामूहिक अतिचेतन अवस्था में हैं, जहां ये मृत आत्माएं उन पर कार्य करती हैं और उन्हें भयावह विचार देती हैं और इससे सभी प्रकार की गंदी राजनीति या राजनीतिक समस्याएं सामने आ सकती हैं, जहां उनका खुद पर कोई नियंत्रण नहीं होता। और वे उसमें खो जाते हैं और उन लोगों को नुकसान होता है जो इसे नियंत्रित नहीं कर सकते। वह शक्ति उन पर कार्य करने लगती है जैसा की जर्मनी में जो कुछ हुआ वह एक बहुत अच्छा उदाहरण है।
फिर कट्टरता भी आपको उसी क्षेत्र में ले जा सकती है, इसलिए यह न केवल तंत्र-मंत्र है जो आपको अतिचेतन क्षेत्र में ले जाता है बल्कि कट्टरता या किसी प्रकार का अतिशयोक्तिपूर्ण विचार “राष्ट्र मेरा है और मैं किसी पर भी हावी हो सकता हूं” जैसा कि अमेरिकी निश्चित रूप से मानते हैं आज़ादी में| उन्हें पता होना चाहिए कि इन आत्माओं ने उन्हें बिल्कुल गुलाम बना दिया है जो उन पर बाईं या दाईं ओर से हमला करती हैं।
इसे समझाने के लिए मुझे आपको एक घटना बतानी होगी। अमेरिका से कुछ लोग मुझसे मिलने आये, वे तीन थे। उन्होंने मुझे बताया कि वे वैज्ञानिक थे – मैं उनके नाम नहीं जानती, यह लगभग 10 साल पहले की बात है – और उन्होंने मुझसे पूछा कि वे हवा में उड़ना सीखने के लिए मेरे पास आए हैं। मैंने कहा, “तुम्हें यहाँ, सभी स्थानों में से किसने भेजा?”
उन्होंने कहा, “क्या आप कृपया हमें बताएंगी कि हवा में कैसे उड़ना है?”
मैंने कहा, “मैं आपको यह नहीं बताना चाहती। यह उचित नहीं है क्योंकि यह केवल उन आत्माओं के माध्यम से किया जाता है जो मर चुकी हैं, महत्वाकांक्षी हैं, जो आपको यह एहसास दिलाने की कोशिश करती हैं कि वे आपकी आत्माओं को बाहर निकाल रहे हैं और यह बहुत खतरनाक बात है। कल वे किसी बच्चे की आत्मा ले जायेंगे, बच्चे से बात करेंगे और उसे लगेगा कि बच्चे के साथ उसका कैसा संवाद था। अगले दिन माता-पिता को पता चलेगा कि बच्चा मर गया है क्योंकि आत्मा बच्चे के पास वापस नहीं लौट सकी। यह आजकल एक बहुत ही सामान्य घटना है। लोग अचानक पाते हैं कि सोते समय बच्चा मर गया है। इन तरकीबों के कारण ही लोग इतनी सारी आत्माओं पर प्रयास कर रहे हैं कि वे आत्माओं को बाहर निकालकर उनका उपयोग करने की कोशिश करते हैं और फिर आत्माएं वापस नहीं लौट पाती हैं, इसलिए बच्चा मर जाता है।
लेकिन जब मैंने उनसे कहा कि वे इससे गुलाम बन जायेंगे तो उन्हें यकीन नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने कहा कि रूस भी ऐसा ही कर रहा है। मैंने कहा, “अगर रूस कुछ गलत कर रहा है तो आप ऐसा क्यों करना चाहते हैं? तुम्हें गुलाम बना लिया जाएगा| आप स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं तो आप ऐसा क्यों करना चाहते हैं? “उन्होंने कहा, “नहीं, क्योंकि रूसी ऐसा कर रहे हैं और हमें उन्हें हराना होगा।”
मैंने कहा, “यह बहुत ही अदूरदर्शी नीति है। आपको उस तरह से नहीं सोचना चाहिए क्योंकि यह उनके लिए बहुत खतरनाक है। वे बाधित हो जायेंगे और आप भी बाधित हो जायेंगे। हमारे पास दो बाधित राष्ट्र होंगे। इस दुनिया का क्या होगा? तो आप ऐसा क्यों करना चाहते हैं?” लेकिन फिर मैंने उनसे पूछा, “आपको मुझे बताना होगा कि आपको यहां किसने भेजा है।”
उन्होंने मुझे एक का नाम बताया, पतंजलि। वह बंबई में एक पत्रकार है जो मुझसे मिलने आया था क्योंकि वह इस तरह की बीमारी से पीड़ित था। उसका शरीर बाहर चला जाता था और उसकी आत्मा बाहर निकल कर उड़ने लगती थी और उसकी पत्नी बहुत चिंतित थी। उसने(पत्नी ने) मुझे बहुत सारे सबूत दिए कि वह जो बात कर रहा था वह सच था। फिर उस समस्या से छुटकारा पाने के लिए मुझे एक महीने तक नियमित रूप से हर रोज उसका इलाज करना पड़ा। मैंने कहा, “वह तुम्हें यहाँ आने के लिए नहीं कह सकता लेकिन अगर उसने कहा है तो मुझे समझ नहीं आता। यदि मैं बीमारी को दूर नहीं कर सकती, तो क्या मैं बीमारी को वापस आपके अंदर डाल सकती हूँ?”
लेकिन वे मुझसे खुश नहीं होंगे क्योंकि अगर मैंने उनसे कहा कि मैं तुम्हें उड़ना सिखा सकती हूं, तो मुझे यकीन है कि वे बहुत खुश होते। लेकिन मेरे लिए झूठ बोलना काफी कठिन है, भले ही मैं आपको खुश करना चाहती हूँ। मैं आपसे झूठ नहीं बोलना चाहती क्योंकि अंततः यह एक भयानक बात बन जाती है।
अब तंत्र-मंत्र करने वाले इंसानों के लिए सबसे बुरी बात यह हो सकती है कि उन्हें मिर्गी हो जाती है। सभी मानसिक रोग गुप्त क्रियाओं से होते हैं। लोग आत्महत्या कर सकते हैं, लोग हिंसक हो सकते हैं। आप पूरी भीड़ को बहुत हिंसक भीड़ बना सकते हैं, जैसे कि आप जानते हैं कि आनंद मार्ग नामक एक संगठन ने लोगों को मारने की कोशिश की थी। हमारे पास आनंद मार्ग से कई शिष्य हैं जो हमारे पास आ रहे हैं और जो आप पाते हैं, उन्होंने भी, अपने भीतर एक तरह की प्रणाली बनाई है कि हिंसा ही वह तरीका है जिससे आप भगवान की पूजा करते हैं।
तंत्र-मंत्र में आप लोगों को इतनी बुरी स्थिति में ले जा सकते हैं कि आप लोगों को यह सिखा सकते हैं कि सेक्स आपको ईश्वर तक ले जा सकता है। कल्पना कीजिए, मसीह ने कहा था, “तुम व्यभिचारी आँखें न रखोगे।” जो लोग आपको यह सिखाने लगते हैं कि सेक्स आपको ईश्वर तक ले जाएगा, आपको स्वीकार करना होगा। यह ईसा मसीह के ख़िलाफ़ है, जो ईश्वर विरोधी है। लोग ऐसी बेतुकी बात को कैसे स्वीकार कर सकते हैं जो धर्म नहीं है| यदि वे ईश्वर के बारे में कोई पारंपरिक किताब पढ़ेंगे तो उन्हें पता चल जाएगा कि यह धर्म नहीं है।
तो तंत्र-मंत्र आपको इन चीजों तक ले जा सकता है, लेकिन सबसे बुरी बात यह है कि यह अमेरिका में लोगों के लिए खतरनाक है, उनका मानना है कि हमें परंपराएं प्राप्त करनी चाहिए और यदि वे परंपरा के सूक्ष्म पक्ष को नहीं देखते हैं तो बहुत अधिक संभावना है कि वे ऐसा कर सकते हैं। तंत्र-मंत्र के शिकार हो जाते हैं क्योंकि जाहिर तौर पर तंत्र-मंत्र उन्हें परंपरा लगता है। या कभी-कभी यह कुछ गुरुओं पर निर्भर करता है जो लगभग 50 साल पहले यहां थे जिन्होंने उपनिषदों के बारे में, गीता के बारे में, इसके बारे में, उसके बारे में बात की थी। उन्होंने बात की लेकिन वे आत्मसाक्षात्कारी नहीं थे और उन्होंने खुद को स्थापित कर लिया। उनमें से कुछ ने तो अमेरिका जाकर इन बड़ी-बड़ी बातों के बारे में बड़े-बड़े मुंह से बात की और लोग मानते हैं कि ये पारंपरिक हैं। यह सच नहीं है।
भारतीय जीवन की परंपरा आत्मबोध प्राप्त करने की रही है, जो कुंडलिनी जागरण है। यही बात आदि शंकराचार्य ने छठी शताब्दी में दोहराई थी और मैं इसे फिर से दोहरा रही हूं। तो इस देश की परंपरा यह रही है कि एक व्यक्ति को अपना दूसरा जन्म अवश्य लेना चाहिए जो कि ईसाई धर्म की परंपरा है, इस्लाम की परंपरा है, बौद्ध धर्म की परंपरा है, जैन धर्म की परंपरा है, ताओ और ज़ेन की परंपरा है। मैं ऐसे किसी पारंपरिक, वास्तविक धर्म के बारे में नहीं सोच सकती जिसने आत्म-साक्षात्कार की बात न की हो और यहां तक कि जब वे कुंडलिनी की बात करते हैं, तो वे कुंडलिनी के बारे में इतनी भयानक बातें कहते हैं कि कोई विश्वास नहीं कर सकता कि इसका दैवीय चीजों से कोई लेना-देना है। यदि यह कुंडलिनी है जो आपको आत्म-साक्षात्कार देती है, तो ईसा उस कुंडलिनी के बारे में कैसे बात कर सकते हैं जो हानिकारक थी, जो कष्टकारी थी। क्योंकि ये लोग रास्ता या विधि नहीं जानते और इन्हें कुण्डलिनी पर कोई अधिकार नहीं है। वे कुछ और कर रहे हैं जो गुप्त(तंत्र-मंत्र) है।
तंत्र-मंत्र सबसे खतरनाक चीज़ है क्योंकि यह शैतानी ताकतों से आ रहा है। जब कोई व्यक्ति मरता है, यदि वह एक सामान्य व्यक्ति है तो वह बस मर जाता है और तब तक दूसरी दुनिया में रहता है जब तक उसे दूसरा जन्म नहीं लेना पड़ता। लेकिन यदि कोई व्यक्ति मर जाता है और यदि उसके भीतर शैतानी ताकतें हैं, परपीड़न में से एक, तो वह अतिचेतन क्षेत्र में वापस आ जाता है और जो एक माचोइस्ट है वह इस सामूहिक अवचेतन क्षेत्र में रहता है।
तो शैतानी ताकतें होती हैं, इसलिए किसी पंथ में जाना अपने आप को शैतानी ताकतों का गुलाम बनाना है। एक गुरु थे जो अमेरिका गए थे, जिनकी वहीं मृत्यु हो गई, और वे परामनोविज्ञान तथा अन्य सभी विषयों में बहुत प्रभावशाली थे। अगर मैं परामनोविज्ञान को बताऊं कि वे शैतानी हैं तो वे विश्वास नहीं करेंगे।
ईसाई धर्म में आत्माओं से सम्बन्ध रखने की बिल्कुल भी अनुमति नहीं है। यह सही है, न केवल ईसाई धर्म में बल्कि किसी भी धर्म में। यदि आप कबीर दास को पढ़ेंगे तो उन्होंने इसके बारे में पन्ने दर पन्ने लिखे हैं। लेकिन इस गुरु ने 6 करोड़ के हीरे इकट्ठे कर लिए और उसके लिए दोनों शिष्य लड़ रहे हैं|
एक और गुरु ने यह कहकर 6 हजार करोड़ इकट्ठा कर लिए कि वह तुम्हें उड़ा सकता है। आपको अपने दिमाग का इस्तेमाल करना चाहिए| माना जाता है कि अमेरिकियों के पास दिमाग होता है लेकिन मैं नहीं जानती कि जब मानव मशीनरी की बात आती है तो क्या हो जाता है। वे नहीं समझते और यह वही है: यदि आप स्वयं को बर्बाद करना चाहते हैं आप जादू-टोने में चले जाइये। शुरुआत में यह शानदार लगता है। वहां जाना बहुत अच्छा लगता है लेकिन यह सब नरक का विज्ञापन विभाग है।
योगी: हम उनसे ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर जाने के लिए कहेंगे, इसलिए हम उन्हें अलग-अलग सेटिंग में रखेंगे।
श्री माताजी: ऑस्ट्रेलियाई मुझसे पूछें?
योगी: सब ठीक है| प्रश्नावली फ़िल्म पर नहीं होगी, केवल आपके उत्तर और टिप्पणी शीर्ष पर होगी। हम फिल्म को अमेरिका में एक साथ प्रदर्शित करेंगे।
श्री माताजी: ठीक है। हो गया अभी? खुश?
मुझे खेद है कि मुझे सच बोलना पड़ रहा है। एक माँ के रूप में, मैं पहले से ही देख रही हूँ कि लोग खुद को परेशानियों में डुबा रहे हैं – बर्बरता, गुंडागर्दी, नशीली दवाओं और आपके द्वारा ली जाने वाली चीजों की, हिंसा की, ख़राब शादियों की सभी समस्याएँ। आपकी सभी सामाजिक समस्याएं इसलिए आती हैं क्योंकि आपने वहां जादू-टोने को बढ़ने दिया है, और अंततः यह सत्ता में भी आया है। इसलिए इसे लेकर सावधान रहें|
योगी: माँ, मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ श्री कृष्ण के बारे में, भक्ति गीतों के बारे में और जब हम स्तुति गाते हैं और यह हमारी विशुद्धि को खोलता है। भक्ति करने का सही तरीका क्या है और अपनी विशुद्धि का उपयोग करके, ताकि यह अमेरिका से सम्बंधित हो?
श्री माताजी: आपको पता होना चाहिए कि यह विराट है। एक बार जब आप विराट के साथ एक हो जाते हैं, तो यदि आप उनकी कोई स्तुति गाते हैं तो वह सीधे उनके पास जाती है। कोई भी स्तुति पर्याप्त है, लेकिन आपको एक तरफा नहीं होना चाहिए – हर समय स्तुति गाते रहने से व्यक्ति थक जाता है। तो आपको क्या करना है की ध्यान भी करना है कभी-कभी जब दिल भरा हो तो गाना जरूर चाहिए। लेकिन सहज योग में हमारे पास विशेषज्ञता जैसा कुछ नहीं है। मेरा सुझाव है कि कुछ लोग सचमुच बहुत बुरा गाते हैं, इसलिए उन्हें नहीं गाना चाहिए। उन्हें अपनी विशुद्धि में सुधार करने का प्रयास करना चाहिए और बेहतर आवाज पाने का प्रयास करना चाहिए।
क्रिस्टीन की आवाज़ बहुत ख़राब थी और आत्मसाक्षात्कार के बाद उसकी आवाज़ बहुत मधुर हो गई। इसलिए कृपया अपनी विशुद्धि को बेहतर बनाने का प्रयास करें ताकि आप जो भी गाएं वह कम से कम कानों के लिए मधुर हो। यह सबसे अच्छा तरीका है| आप ठीक हैं, आप सुरीले हैं, लेकिन आपकी आवाज भगवान के प्रति आक्रामकता वाली नहीं बल्कि समर्पण वाली होनी चाहिए। आप देखिए कभी-कभी यह संगीत ऐसे गाया जाता है कि आप अंदर ही डूब जाते हैं और पता ही नहीं चलता कि आपके ऊपर कितने लोग सवार हैं। इसे इस तरह से गाया जाना चाहिए कि संगीत की कोई आक्रामकता न हो बल्कि एक प्रकार का सुखदायक प्रभाव हो, हर किसी के लिए, और हर शैली में गाया जाना चाहिए, हर शैली अच्छी है, और यदि संभव हो तो बेहतर शैलियों को खोजने का प्रयास करें। यह आपको प्रसन्न करने वाला नहीं बल्कि देवताओं को प्रसन्न करने वाला होना चाहिए। और सबसे अच्छा निर्णय चैतन्य के माध्यम से आता है।
अब हमारे साथ एक अमेरिकी महिला है, मैं चाहती हूं कि आप उन्हें आत्मसाक्षात्कार दें। क्या वह वहाँ है?
योगी: वह चली गई, उसे 12 बजे जाना था।
श्री माताजी: तो वह चली गई। ठीक है, वह वापस आएगी। वह भारत की महिलाओं के बारे में चिंतित हैं।
योगी: माँ, टोकई से एक प्रश्न। आदिगुरु के रूप में मूसा की रोम में माइकलएंजेलो की मूर्ति… के दो छोटे सींग हैं…
श्री माताजी: [अस्पष्ट इसका मतलब यह है कि] खुला सहस्रार और एक गुरु हमेशा बाएं और दाएं को साफ़ करने के लिए शिष्यों को मारने के लिए इन सींगों का उपयोग करता है। इसलिए गुरु माता एक साधारण बात है। वह 10 मिनट से ज्यादा गुस्सा नहीं कर सकतीं| उनके पास 2 सींग हैं और वे धकेलते रहते है आपके…
[श्री माताजी यात्रा व्यवस्था के बारे में बात करना शुरू करती हैं।]