सार्वजनिक कार्यक्रम, पेरिस (फ्रांस), 16 जून 1983।
॥आनंद में कोई पाखंड नही होता ॥
मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं।
मनुष्य सत्य की खोज प्राचीन काल से करता रहा है। उन्होंने सत्य की खोज विभिन्न प्रकार की खुशीयो में करने की कोशिश की और कई बार उन्होंने इसका त्याग किया क्योंकि उन्होंने पाया कि खुशी स्थायी नहीं है।
थोड़े समय के लिए उसे किसी चीज से खुशी प्राप्त हुई और फिर उसने पाया कि इससे उसे बड़ा दुख भी हुआ।
जैसे,एकऔरत जिसकी कोई संतान नहीं थी इसलिए वह रोती-बिलखती रहती थी; और उसको एक बच्चा हुआ था जिसने बाद में उसे ही अस्वीकार कर दिया।
फिर, मनुष्य सुख की तलाश, सत्ता में, अन्य पुरुषों पर अधिकार में, अन्य देशों पर शक्ति में खुशी पा कर करने लगे, फिर भी बहुत अधिक संतुष्ट नहीं थे। उनके बच्चे पूर्वजों ने जो किया उसके लिए खुद को दोषी महसूस करने लगे। फिर गतिविधी कुछ और सूक्ष्म की तलाश में शुरू की – जो की कला और संगीत में थी।
उसकी भी सीमाएँ थीं। यह लोगों को वह स्थायी आनंद नहीं दे सकी।
यह वादा किया जाता है कि एक दिन आप सभी को यह स्थायी आनंद प्राप्त करना होगा। और फिर उन्होंने ऐसे सभी लोगों को चुनौती देना शुरू कर दिया, जिन्होंने उपदेश किया था और जो वादा करते रहे हैं कि ऐसा दिन आएगा।
कई लोग इस नतीजे पर पहुंचे कि आनंद जैसा कुछ नहीं है, जीवन हर समय लहरों के दो चेहरों हैं। एक सिक्के के दो पहलू की तरह, उन्होंने सोचा कि खुशी हमेशा दुख के साथ मिलती है, जैसे दिन और रात।
इन सभी निष्कर्षों के बावजूद मनुष्य ने अपनी खोज नहीं छोड़ी।
वे अभी भी खोज रहे थे, वे सभी प्रकार के उद्यमों में लिप्त हुए, सभी प्रकार की खतरनाक चीजों में कूद गए, सभी प्रकार के पंथों और गुरुओं का पालन किया, लेकिन उन्हें वह आनंद नहीं मिला।
यह आनंद हमारे ही भीतर एक अन्य ही क्षेत्र में रहता है जिसके बारे में हम जागरुक नही हैं। मानवीय जागरूकता में हम उस आनंद को महसूस नहीं कर सकते।
केवल हमारे मानसिक अनुमानों से ही मानवीय जागरूकता का आंकलन किया जाता है।
हमारे सभी अनुभव हमारे अहंकार की संतुष्टि , या हमारी संस्कार बद्द्धता पर आधारित होते हैं।
हम अपने दिमाग को प्रक्षेपित करते हैं, कुछ कल्पना करते हैं और उसका अनुसरण करना शुरू करते हैं।
सभी मानव संस्थाएं मन के प्रक्षेपण के अलावा और कुछ नहीं हैं, जो एक सीमित साधन है।
हमारी पहचान विभिन्न प्रकार के विचारों, कल्पना, धर्मशास्त्रों से हैं, वे सभी मानसिक अनुमान हैं।
वे सब भी जो उच्च जागरूकता से आए थे, उन्हे भी हमने इन मानसिक कल्पनाओ में विसर्जित कर दिया। यहाँ तक की महान शास्त्रों का प्रतिलेखन भी इस मानसिक प्रक्षेपण के माध्यम से किया गया था।
लेकिन यह मन एक सीमित चीज है, जो उस सूक्ष्म में प्रवेश नहीं कर सकती जहां हमें आनंद का स्रोत, ‘आत्मा ‘ को खोजना है।
जैसा कि आप जानते हैं कि यदि आपको माइक्रोबायोलॉजी या हिस्टोलॉजी का अध्ययन करना है, तो आपको माइक्रोस्कोप का उपयोग करना होगा। उसी तरह, यदि आपको दिव्य शक्तियों और दिव्य प्रेम के बारे में जानना है कि वे कैसे कार्य करते हैं, तो आपको पहले आत्मा बनना होगा। कभी-कभी मानसिक प्रक्षेपण एक बहुत ही खतरनाक चीज होती है, क्योंकि यह वास्तविकता से दूर बहुत दूर एक बड़ी बाधा बन जाती है। इस बाधा को पार करने के लिए कुछ समय के लिए मन को भूला देना होगा।
लेकिन जो कुछ भी अज्ञात है वह सब परमात्मा नहीं है।
यदि कोई व्यक्ती पागल है तो उसने भी अपना मन खो दिया है लेकिन वह दिव्य नहीं है। या जो व्यक्ति भुत ग्रसित है वह भी दिव्य समझ वाला व्यक्ति नहीं है। तो किसी व्यक्ती यह समझना होगा कि, जब ऐसा कहा जाता है कि आपको ज्ञान पाना है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपको अपने दिमाग से जानना है – आपको अपनी आत्मा के माध्यम से जानना है।
इसलिए सबसे जरूरी है कि आपको अपने भीतर स्थित अपनी आत्मा को जगाना होगा।
अब हमारे पास इतने सारे कृत्रिम तरीके हैं जिनसे हम यह मानने लगते हैं कि हमारी आत्मा जाग्रत हो गई है। जैसे भारत में हमारे पास यज्ञोपवीत नामक एक प्रथा है जिसमे हम कहते हैं कि यह बच्चा अब ब्राह्मण बन गया है, जिसका अर्थ है एक आत्मज्ञानी आत्मा।
जैसा कि हमारे पास ईसाइयों के बीच बपतिस्मा है।
ये कोई वास्तव मे घटित घटना नहीं है। ये सिर्फ एक कृत्रिम नाटक है। उसी तरह से इस्लाम में उनके पास रीति-रिवाजों में है; उसी तरह यहूदियों में ।
हर धर्म की समस्या यह है कि वे कृत्रिम कर्मकांडों में लिप्त हैं। अब असली रस्म क्या है? अगर हमें आत्मा बनना है, तो यह निश्चित ही यह एक उत्क्रांति की प्रक्रिया है। यदि यह एक उत्क्रांति की प्रक्रिया है, तो इसे एक जीवंत प्रक्रिया होना चाहिए।
तार्किक रूप से यह वास्तविक उत्क्रांति की प्रक्रिया मनुष्य की क्षमता से परे है। हम अमीबा से प्रगती कर के कैसे इंसान बने? क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि हम सभी अमीबा थे, छोटे छोटे, एककोशिकीय जीव। और आज हम इंसान हैं।
इंसान बनने के लिए हमने क्या किया? कुछ नहीं, यह सब उपहार है। पूरी बात इतनी सहज और जीवंत थी।
तो जो कुछ तुम्हारे साथ होना है, वह स्वतःस्फूर्त ही होना है। सभी स्वतःस्फूर्त चीजें जीवंत होती हैं। निर्जीव कुछ भी स्वतःस्फूर्त नहीं है। तो हम उच्च व्यक्तित्व कैसे बनते हैं यह समझने का मानदंड क्या है ?
जब हम जानवरों से ऊंचे हो इंसान बन जाते हैं, तो हमारे पास बेहतर, सूक्ष्म जागरूकता होती है।
यानी हमारे मध्य नाडीतंत्र में हम कई ऐसी चीजें महसूस कर सकते हैं, जो जानवर महसूस नहीं कर सकते।
यदि आप घोड़े को पेरिस या लंदन या किसी गंदी जगह पर लाते हैं, तो बेचारे घोड़े को कोई फर्क नहीं पड़ता। यदि आप उसे गंदी गली से ले जाते हैं, तो भी वह राजा की तरह बहुत अच्छा चलेगा।
लेकिन मनुष्य ऐसी गली में बस एक कदम, एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता।
तो मनुष्य की जागरूकता को और ऊंचा उठना होगा, कि जो तुम हो उससे कहीं ज्यादा तुम्हें कुछ हो जाना है। वही आत्म-साक्षात्कार है।
जब आप अपने आप को जानते हैं तो आपको कम से कम यह ज्ञान होना चाहिए कि अंदरआप क्या हैं।
अन्यथा, आप स्वयं को नहीं जानते हैं। जब हम कहते हैं: “मुझे यह पसंद है”, “मुझे वह पसंद है” यह हमारा अहंकार है, श्रीमान अहंकार जो इसे पसंद करते हैं, या शायद हमारेसंस्कार इसे पसंद करते है। हम नहीं जानते कि हम किसी चीज़ को पसंद करने के लिए क्या उपयोग कर रहे हैं।
यहां तक कि जब हम कहते हैं: “मुझे विश्वास है”, ज्यादातर राजनेता “मुझे विश्वास है” शब्द का प्रयोग करते हैं।
अब उनका अहंकार, या उनके संस्कार जनित उनके अनुभव क्या मानते हैं।
लेकिन इसका कोई निरपेक्ष मूल्य नहीं है।
जैसे अगर कोई गंदी चीज है तो हर कोई उसे सूंघेगा और कहेगा: “यह गंदी है”।
जैसा कि हर कोई जिसके पास आंखें हैं, वह कह सकेगा कि इस पर्दे का रंग क्या है।
लेकिन जब हम इन चीजों के बारे में बात करते हैं, तो हम निरपेक्ष चीजों की बात ही नहीं कर रहे हैं, क्योंकि इतनी मत विभीन्नता है।
तो तार्किक रूप से फिर से हमें कुछ ऐसा ज्ञान पाना होगा जो परम हो, और जो इसे जानते हैं, उस बिंदु पर वे सभी चौंकाते हैं।
संसार की सारी अराज़कताएं और मनुष्य की सारी समस्याएं बहुत साधारण हैं, और इसलिये हैं क्योंकी, वे स्वयं को नहीं जानते। एक दिमाग दूसरे दिमाग से लड़ रहा है। राष्ट्रवार भी कुछ दिमाग दूसरे दिमागों से लड़ते हैं। और यह दिमाग आश्चर्यजनक रूप से इतना अजीब है, यह केवल लड़ने के तौर-तरीके खोजने की कोशिश करता है।
तो अवश्य ही कुछ ऐसा होगा जो ईश्वर ने हमारे भीतर बनाया होगा, या प्रकृति ने हमारे भीतर ही बनाया होगा, ताकि हम इस संक्रमण काल में नहीं रह जाये।
यदि आप ऐसा देख सके की हम वास्तव में अधर मे लट्के होने की स्थिति में हैं। यह एक ऐसी समस्या है कि लोगों को यह भी समझ नहीं आता कि सही होने के लिए क्या करना चाहिए। मानसिक अनुमानों के कारण हमारा जीवन बिल्कुल सापेक्ष है।
[महिला अनुवादक: “पुर्णतया?” श्री माताजी: “सापेक्ष”। महिला अनुवादक: “सापेक्ष”।]
हम “सापेक्षता” में जीते हैं। और हमेशा हम चीजों पर सापेक्षाकृत चर्चा करते हैं, यह कितने गुना है ऐसा कहने के लिए कोई परम चीज़ उपलब्ध नहीं है।
जैसे,बचपन में मैंने जाना था कि पेरिस में माप का एक मीटर है, जो एक परम सही मीटर है और उससे लोग यहआंक सकते हैं कि अन्य दूसरे मीटर उसके तुलना कितने गुना हैं। और यह सोने का बना होता है, जिसका विस्तार बहुत ही कम होता है क्योंकि गुणांक बहुत कम होता है। [महिला अनुवादक: “प्लैटिनम, असल में”।]प्लैटिनम, सॉरी, प्लेटिनम, सॉरी! [श्री माताजी हंसते हैं] प्लेटिनम, हा। उसका बहुत कम गुणांक है। लेकिन निरपेक्ष तो उसे ही होना है जो न तो फैलने वाला है और न ही छोटा होने वाला है, वह निरपेक्ष है!
अब विज्ञान से आप जानेंगे कि हम तापमान में परम शून्य तक नहीं पहुंच सकते।
हम पूर्ण शून्यता प्राप्त नहीं कर सकते।
अब हम अपने परम को कैसे प्राप्त करें, जबकि सामान्य भौतिक चीजों के साथ ऐसी स्थिति है? तो पहले हमें यह भूला देना होगा कि हम इसे हासिल कर सकते हैं।
अब ऐसा कहना भी संभव नहीं है कि: “हमें ईश्वर में विश्वास है”, अब “हमें ईश्वर में विश्वास है और ऐसा कि वही इसे कार्यांवित करेगा” ।
ईश्वर में विश्वास भी एक मानसिक कल्पना है। यदि आप किसी नास्तिक से पूछेंगे तो वह आपको बताएगा कि केवल इसलिए कि,आप एक ऐसे परिवार में पैदा हुए हैं जो धार्मिक था, इसलिए आप ऐसे हो गए हैं, अन्यथा कोई भगवान नहीं है।
जब भगवान बुद्ध इस धरती पर आए तो उन्होंने ईश्वर के बारे में समस्या को बहुत जटिल पाया। सब बोल रहे थे कि वे ईश्वर को जानते हैं। और सबका परमेश्वर अलग था, और परमेश्वर के नाम पर वे युद्ध कर रहे थे।
इसलिए उन्होने फैसला किया कि “अब ईश्वर के बारे मे बात मत करो”। क्योंकि हर कोई उसे अपनी जेब में डालना चाहता है।
“इस समय ईश्वर के बारे में बात न करना बेहतर है जब कि वे अपनी आत्मा के बारे में भी नहीं जानते हैं।”
तो उन्होने सिर्फ खुद के, आत्मा के बारे में बात की। उन्होंने क्या कहा: “बुद्धम शरणं गच्छामि” – “बुद्धम शरणं गच्छामि”, मैं खुद को बुद्ध के सामने आत्मसमर्पण करता हूं।
बुद्ध का अर्थ है जो जानता है, जिसके पास ज्ञान है, उसका अर्थ है बोध प्राप्त आत्मा।
सहज योग में भी हम कदम दर कदम चलते हैं।
सबसे पहले हमें अपनी आत्मा को मानसिक प्रक्षेपण के माध्यम से नहीं बल्कि एक स्वतःस्फूर्त घटना के साथ जानना होगा, जो की एक जीवंत घटना है। ऐसा काम मनुष्य नहीं कर सकता।
अब वह जीवंत प्रक्रिया क्या है? मैं जो कुछ भी तुमसे कह रही हूं, वह फिर से मन का मानसिक कल्पना हो सकती है। तो आपको मेरे शब्दों को एक खुले दिमाग के साथ,जैसे एक वैज्ञानिक के लिए एक परिकल्पना हो इस रूप में लेना चाहिए। और अगर ऐसाआपके साथ घटित होता है तो आपको इसे सिद्धांत की तरह अपनाना होगा।
अब मैं कहती हूं कि, हमारे भीतर ये सात सूक्ष्म केंद्र हैं। कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसा इस पुस्तक या उस पुस्तक में नहीं कहा गया है; अभी सब कुछ भूल जाओ।
ये सात केंद्र हैं, जो हमारे भीतर रहते हैं, कुछ मेडुला ऑबोंगटा में, और कुछ मस्तिष्क में।
अब ये केंद्र,ये सूक्ष्म केंद्र, स्थूल जाल plexuses जिनके बारे में डॉक्टर जानते हैं अभिव्यक्त बाहर होते हैं। ये केंद्र हमारे एंडोक्राइन सिस्टम को भी नियंत्रित करते हैं। प्लेक्सस की तुलना में उनका बहुत गहरा महत्व है, जो केवल भौतिक स्तर पर प्रकट हो रहे हैं।
ये केंद्र हमारे भावनात्मक अस्तित्व की आवश्यकता को भी पूरा करते हैं। वे हमारे मानसिक अस्तित्व की आवश्यकता को भी पूरा करते हैं, और वे हमारे आध्यात्मिक अस्तित्व की आवश्यकता को भी पूरा करते हैं। तो हम जिस भी स्थिति में हैं, वह हमारे भीतर इन सूक्ष्म केंद्रों की स्थिति के कारण है ।
ये सूक्ष्म केंद्र जो हमारे भीतर स्थित हैं, इन्हे आप नंगी आंखों से या किसी मानव मशीनरी के माध्यम से नहीं देख सकते हैं। वे ऊर्जा केंद्र हैं और हमारे भीतर तीन प्रकार की ऊर्जा से बने हैं, जिनके बारे में मैं आपको कल बताऊंगी।
लेकिन आज हमें यह जानना होगा कि हमारे भीतर ऐसे केंद्र हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे भीतर एक और तीसरी शक्ति निहित है, जिसे हम संस्कृत भाषा में कुंडलिनी कहते हैं। अब इस कुण्डलिनी का इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि आप किस जगह से आते हैं, किस देश से आते हैं या किसी भी भाषा का उपयोग करते हैं।
इसे कुंडलिनी कहा जाता है क्योंकि कुंडल का अर्थ है ‘कुंडल’ ‘coil’। यह हमारे भीतर एक ऊर्जा है। यह इच्छा की ऊर्जा है, इच्छा जो शुद्ध इच्छा है।
हमारी बहुत सारी इच्छाएँ हैं। हमें एक घर चाहिए, फिर जब हम बाहर निकलते हैं तो हमारे पास एक कार होती है, जब हमारे पास एक कार होती है तो हम एक हेलीकॉप्टर रखना चाहते हैं। [हँसी]
तो जैसा कि आप अर्थशास्त्र को समझते हैं कि, चाहत सामान्य रूप से तृप्त होने योग्य नहीं होती है।
अब वास्तव में जब यह ऐसी इच्छा, जो कि शुद्ध इच्छा है, जाग्रत होती है, तो आप अपनी परम इच्छा की पुर्ति करते हैं, और पूर्ण इच्छा संपूर्ण के साथ एकाकार हो जाती है। यह इच्छा परमात्मा के साथ एकाकार हो जाने की है।
यह दिव्य शक्ति, मैं इसे दिव्य कहती हूं, आप इसे दिव्य नहीं भी कहे, लेकिन यह एक सर्वव्यापी शक्ति है। हम बगीचे में आते हैं, कितने फूल देखते हैं। हम इसे सामान्य मान लेते हैं।
और जब हम फूलों को फल बनते देखते हैं तो हम इसे हल्के में लेते हैं। वे कैसे फल बन गए हैं? क्या हम एक फूल को फल में बदल सकते हैं? हम नहीं कर सकते।
लेकिन किसी ने, किसी ऊर्जा ने यह किया है। वह ऊर्जा सर्वत्र व्याप्त होनी चाहिए। और उल्लेखनीय रूप से इसमें इतना अच्छा विवेक है, उदाहरण के लिए एक आम का पेड़ केवल आम पैदा करेगा, सेब नहीं।
तो यह ऊर्जा जो दुनिया के सभी जीवंत कार्य कर रही है, हमारे शरीर के भीतर ही सभी स्व चालित कार्य, जिसने हमें अमीबा से मनुष्य बनाया है, इस शक्ति को हमने पहले कभी महसूस नहीं किया है।
तो जब आप अपना आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करते हैं, तो पहली बार आप उस शक्ति, दिव्य प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति को महसूस करते हैं। इसे अन्यथा आप महसूस नहीं कर पाते।
किसी असत्य पर विश्वास करना बहुत आसान है। हम वास्तविकता से अधिक असत्य में विश्वास करते हैं [श्री माताजी हंसते हैं]। यह हमें और भी अधिक आकर्षित करता है। लेकिन वास्तविकता वह है जिसे हमें प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। अगर हमें इस हवा को, या पवित्र आत्मा की इस हवा को (जैसा कि वे इसे कहते हैं), महसूस करना है, तो हमें क्या करना चाहिये?
कुछ लोग सोचते हैं कि हमें उपवास या शाकाहारी भोजन अपनाना चाहिए या खुद को भूखा रखना चाहिए, या खुद को मारना चाहिए। ऐसे लोग केवल दुबले-पतले हो सकते हैं और मर सकते हैं, या ज्यादा से ज्यादा पागल हो सकते हैं।
खुद को प्रताड़ित करने की कोई जरूरत नहीं है। यह मानव शरीर बड़ी समझ से बना है। यह खूबसूरती से, नाजुक ढंग से बनाया गया है। यह बहुत सावधानी से, एक बहुत ही विशेष उद्देश्य के साथ बनाया गया है, कि आपको आत्मा का मंदिर बनना है, कि आत्मा का प्रकाश तुम्हारे भीतर चमके। मनुष्य जो सभी प्रकार की अज़ीब चीज़े कर रहे हैं,यहआपके लिए नहीं है कि इस में आप उद्यम करें ।
मुझे नहीं पता कि क्या आपने अमेरिका में एड्स नामक एक भयानक बीमारी के बारे में सुना है जो आ गई है। यह बहुत तेजी से फैल रहा है और ऐसा इस बात का परिणाम है जब कि मनुष्य ने कहा कि: “इसमे क्या गलत है?” “अगर मैं अपनी नाक काट दूं, तो इसमे क्या गलत है?”
लेकिन क्या आप अपनी नाक की एक कोशिका भी बना सकते हैं? ईश्वर ने हमें जो सुंदर तंत्र दिया है, हमे उसे भंग करने का कोई अधिकार नहीं है।
हमें खुद का सम्मान करना होगा, क्योंकि आप इस सृष्टि का सार हैं। केवल तुम ही साकार आत्मा वाले हो, मुर्गियां नहीं।
हम अन्य जानवरों और चीजों की तुलना में खुद पर,और अन्य मनुष्यों के लिए दयालूता करें । यह बहुत अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह वह बहुमूल्य फूल है जिसे ईश्वर ने फल बनने के लिए बनाया है।
बहुत से लोग मुझसे एक प्रश्न पूछते हैं: “ऐसा कैसे कि प्राचीन काल में लोगों को बहुत मेहनत करनी पड़ती थी और केवल एक ही व्य्कती साक्षात्कार प्राप्त कर सकता था?”
प्राचीन समय में अगर आपको पेरिस से लंदन जाना होता तो आप कभी नहीं पहुंच पाते। लेकिन आज कितना आसान है कि हम चाँद पर भी जा रहे हैं! जो इतना बाहर बड़ा हुआ है, उसे भीतर भी बढ़ना होगा ।
और जो पेड़ इतना बड़ा हो गया है कि अगर उसकी जड़ों कीदेखभाल नहीं कीगई तो वह गिरकर नष्ट हो जाएगा। हमारी आधुनिक सभ्यता के साथ भी ऐसा ही होने जा रहा है अगर वह अपनी जड़ों की जिन पर यह पेड़ खड़ा है परवाह नहीं करती और उन जड़ों को विकसित करने की कोशिश नही करती है । [महिला अनुवादक: “क्षमा करें, माँ?” श्री माताजी: “उन जड़ों को विकसित करने का प्रयास करें जिन पर पेड़ खड़ा है”।]
मुझे आपको अवश्य ही यह भी बताना होगा कि जब फूल खिलते हैं तो हजारों और हजारों फूल होते हैं, लेकिन जब पेड़ लगाया जाता है तो आपको एक या दो मिल सकते हैं। आज कितनी ही महान आत्माओं ने जन्म लिया है, फल बनने के लिए।
यही कारण है कि हमें सामूहिक बोध हो रहा है। हजारों लोग साकार आत्मा हो रहे हैं और उसमें स्थापित हो रहे हैं।
सहज योग के परिचय के रूप में आज मैंने आपको बताया है कि – सहज का अर्थ है, सह का अर्थ है ‘साथ’, ज का अर्थ है ‘जन्म’। यह तुम्हारे भीतर पैदा हुआ है। और योग का अर्थ है ‘ईश्वर के साथ मिलन’।
तो यह हर इंसान का अधिकार है क्योंकि यह उसी के भीतर पैदा हुआ है, सहज योग पाना। यह कोई नया तरीका नहीं है।
जैसे एक बीज़अंकुरित होता है उसी तरह आपकी कुंडलिनी भी जागृत हो जाती है। लेकिन पुराने दिनों में यह बहुत कम लोगों के लिए उपलब्ध था। लेकिन अब समय आ गया है कि आप सभी इसे पाये।
कल मैं आपको हमारे भीतर के तीन चैनलों और तीन शक्तियों के बारे में और हमारे ह्रदय में रहने वाली आत्मा के बारे में बताऊंगी।
मुझे आशा है कि इन तीन दिनों के भीतर आप सभी को अपनी बोध प्राप्ति हो जाएगी।
लेकिन समस्या यह है कि लोग फिर से सहज योग पर भी मानसिक अनुमान करने लगते हैं। या वे खुद से बचना चाहते हैं। वे वास्तविकता से डरते हैं, वे स्वयं से डरते हैं।
मुझे आपको बताना होगा कि आप सबसे खूबसूरत चीज हैं। बस आपको अपनी महिमा अपने ही भीतर खोजनी है। एक बार जब आप इसे खोज लेंगे, तो आप उन सभी विचारों को भूल जाएंगे जो आपको इतना निराशाजनक बनाते हैं।
आखिरकार हमें यह जानना होगा कि अगर ईश्वर ने हमें बनाया है, तो उसे हमारी देखभाल भी अच्छी तरह से करनी होगी। और यदि वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर है, तो हम सभी को बचाने वाला भी वही है। नहीं तो उसकी सृष्टि नष्ट हो जाएगी।
सहज योग ने अद्भुत काम किया है और मुझे उम्मीद है कि पेरिस में, अगर यह काम करता है, तो यह पूरे यूरोप के लिए बहुत अच्छी बात होगी। पेरिस के आसपास हमारे पास कई सहज योगी हैं, लेकिन , मुझे लगता है, जो पेरिस में रहते हैं वे दूसरी ही दुनिया में रहते हैं वे मेरे व्याख्यान में आते हैं, शायद वे यहाँ भी कुछ मानसिक अनुमान लगाना चाहते हैं।
लेकिन मैं आपसे अनुरोध करती हूं, बेहतर होगा कि आपको अपनी बोध प्राप्ति हो। चाहे पेरिस में हो या कहीं भी ,बेहतर होगा आप इसे पाये। और इसके साथ स्थापितहो जाओ। आप अपनी शक्तियों और ईश्वर की शक्तियों का आनंद लेंगे। आप अपने भीतर अभिव्यक्त होने वाले सभी ईश्वरीय नियमों को जानेंगे।
तब आपको पता चलेगा कि दुनिया के सारे शास्त्र का सच होना साबित किया जा सकता हैं।
अगर कोई अंधा व्यक्ति रंगों को समझने की कोशिश करे तो उसे समझाना कितना मुश्किल है। उसी तरह जब तक आपको आत्मबोध नहीं होगा, तब तक आप किसी भी शास्त्र को नहीं समझ सकते हैं।
परमात्मा आप को आशिर्वादित करे।
आज रात परमात्मा आप सभी को आशीर्वाद दें, और मुझे आशा है कि आज रात हम उस आत्मबोध को प्राप्त करने का प्रयास करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं है कि एक बार जब आप इसे प्राप्त कर लेते हैं तो आप स्थायी रूप से वहां होते हैं, क्योंकि आप देखते हैं, आधुनिक समय में लोग बहुत डगमगाते हैं।
और इतनी सारी बातें उनके दिमाग में चली गई हैं कि वे खो गये हैं। इसलिए बेहतर है कि आप अपने स्व को ठीक से खोज लें। और एक बदलाव के लिए अपने आप को कुछ समय दें।
परमात्मा आप सबको आशीर्वाद दें।
यदि आपके कोई प्रश्न हैं, तो आज पहला दिन होने के नाते, यदि आपके पास हैं तो, मैं प्रश्न आमंत्रित करूंगी, लेकिन समझदारी के प्रश्न पूछें, ऐसे नही जैसे कि: “इस पुस्तक में यह लिखा है”, और “वह ऐसा कहते हैं”, और…। अब ऐसा कोई झगड़ा नहीं।
बस खुद से एक ईमानदार प्रश्न पूछें: “क्या मुझे मेरी आत्मा प्राप्त हुई है? यदि नहीं, तो मुझे उसे खोजने दो।”
जानते हैं,आप यह भी आप कहते हैं कि: “मैं पता लगा रहा हूं, और पता लगा रहा हूं” लेकिन अगर मैं कहती हूं कि: “यह बस यहीं है, तो फिरअपनी तलाश के साथ भट्कना क्यो ? यह आपके साथ एक सेकंड के भी विभाजन में ही घटित हो जायेगा। इसमें घबराने की कोई बात नहीं है।
यह एक सुंदर घटना है क्योंकि यह तुम्हारी माँ है। वह कोई समस्या पैदा नहीं करती, बल्कि आपकी सभी समस्याओं को हल करती है, शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक। सहज योग ने कैंसर, मायलाइटिस, सभी प्रकार के असाध्य रोगों को ठीक कर दिया है।
और मुझे यकीन है कि यह इस भयानक बीमारी, एड्स को भी ठीक कर सकता है। एक बार जब आपको आत्मबोध हो जाता है तो आप दूसरों को भी ठीक कर सकते हैं, और दूसरों को भी आत्माबोध दे सकते हैं।
आज मैं कई ऐसे लोगों से मिली हूं जो पेरिस के आसपास के हैं, जिनसे मैं पहले कभी नहीं मिली जो , सहज योग में आत्माबोध पाये और सहज योग के माहिर के रूप में अच्छी तरह से स्थापित हैं। यह मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी की बात थी।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
[महिला अनुवादक से: “क्या आप…”]
[तालियाँ]
[महिला अनुवादक से: “… लोगों के लिए बहुत गर्म। लोगों के लिए बहुत गर्म, क्योंकि वे सभी पसीने से तर हैं। ”]
[कोई आदमी फुसफुसाता है: माँ…]
श्री माताजी [महिला अनुवादक से]: उनसे प्रश्न पूछने को कहे
अनुवादक: माँ?
श्री माताजी : यदि संभव हो तो 5-10 मिनट के लिए उन्हें प्रश्न पूछने दें।
निक? कृपया माइक्रोफ़ोन के लिए जाएं।
उसने क्या कहा?
अनुवादक: वह जानना चाहेंगे कि,सहज योग का स्रोत क्या है ।
श्री माताजी: [श्री माताजी हंसते हैं, हँसी] आह, यह कुछ ऐसा है जिसका कोई स्रोत नहीं है। यह स्रोत रहित है।
जी बोलिये?
लेडी: क्या जागृति कभी भय के साथ होती है?
महिला अनुवादक: क्षमा करें?
दूसरी महिला: क्या जागृति कभी भय के साथ होती है?
लेडी: क्या यह कभी साथ है, मैंने कहा।
दूसरी महिला: कभी।
महिला अनुवादक: क्या जागृति कभी भय के साथ होती है?
श्री माताजी: नहीं, कभी नहीं। मेरा मतलब है, लोगों ने आपको कुंडलिनी के बारे में ऐसी भयानक किताबें दी हैं, मैं खुद हैरान हूं। जब मैंने इसके बारे में पढ़ा, तो मुझे समझ में नहीं आया कि वे क्या कर रहे हैं।
लेकिन मान लीजिए, आप प्लग में अपनी उंगलियां डालते हैं और फिर आप कहते हैं कि “मुझे झटका लगा”, कोई ऐसा कहेगा कि, ऐसा हुआ, इसका मतलब है कि आप नहीं जानते हैं कि,बिजली को कैसे नियंत्रित \प्रबंध करना चाहिये।
लोकिन यह उससे कहीं अधिक है। यदि कोई व्यक्ति जो कुंडलिनी को ऊपर उठाता है, वह ईश्वर से अधिकार प्राप्त है, तो वह कभी भी नुकसान नहीं पहुंचाएगी, चाहे वह किसी भी तरह का प्रयास करे।
लेकिन ऐसे व्यक्ति को स्वयं शुद्ध व्यक्ति होना चाहिए। अगर ऐसा व्यक्ति आपके पैसे और आपके बटुए में दिलचस्पी रखता है, तो इसका ईश्वर से कोई लेना-देना नहीं है। आप इसे खरीद नहीं सकते, आप भगवान या ईश्वर को नहीं खरीद सकते, आप इसके लिए भुगतान नहीं कर सकते। तो मुझे लगता है कि जिन लोगों ने ऐसी कोशिश की है, मेरा मतलब है कि, लोगों को इस तरह का नुकसान करने के लिए वे वास्तव में पापी हैं।
बेशक कुछ लोगों में यह इतनी तेजी से नहीं उठती। यदि आपको समस्या है, मान लीजिए कि आपको जिगर की समस्या है, तो कुंडलिनी उस बिंदु पर जाकर धड़कन दिखाएगी।
और कुछ लोग जो गलत प्रकार के गुरुओं, या गलत प्रकार के पंथों में रहे हैं, वे कभी-कभी ऐसा व्यवहार कर सकते हैं जो बहुत अज़ीब होता है।
जैसे कि,हमारे पास टीएम के लोगो के साथ बहुत ही मजेदार अनुभव हैं। अगर वे मेरे सामने बैठे हो और मैं उनकी कुंडलिनी जगाने की कोशिश करती हूं तो वे अपनी सीटों पर कूदने लगते हैं। [हँसी]
सभी नहीं बल्कि कुछ ने कुछ समय के लिए ऐसा किया, लेकिन फिर वे स्थिर हो गए। और कुछ लोग जिन्हें ओरंज लोग कहा जाता है, वे भी थोड़ा-सा उछलने लगते हैं [हँसी]। ऐसा होता है, कुछ लोगों पर थोड़ा रिएक्शन आ जाता है। लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता, जब तक आप चौकस हैं, यह काम करता है, यह शांत करता है।
कभी-कभी लोगों को हाथों पर हल्की गर्मी महसूस होती है, खासकर अगर आपको लीवर की समस्या है।
और जब कुंडलिनी बाहर आती है, तो वह सबसे पहले आपके सिर से थोड़ी गर्मी फेंकती है, ज्यादा नहीं, लेकिन थोड़ी गर्मी। लेकिन अंत में आपके सिर से ठंडी हवा निकलने लगती है, और आपको लगता है कि आपके हाथ से भी ठंडी हवा चल रही है।
लेकिन आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, हम इन जटिलताओं के सभी क्रमपरिवर्तन और संयोजनों को जानते हैं।
हां।
प्रश्न [महिला अनुवादक द्वारा अनूदित]: किस तरह से… इसका साधन क्या है…
श्री माताजी : किस तरह…
महिला अनुवादक:… कुंडलिनी जगाने की?
श्री माताजी : यह तो अच्छी बात है। हम शुरू करने के बाद ही आपको बताएंगे। एह? [हँसी]
प्रश्न [अनुवादक द्वारा अनुवादित]: मैं इसे छोटा करने का प्रयास करूंगी। ऐसा है कि, एक बार जब आप आत्माबोध पा लेते हैं,एक बार यह, यह शक्ति, तो आप में वह ऊर्जा जागृत हो जाती है,
मसीह के शब्दों की व्याख्या कैसे करें: ‘अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो, एक दूसरे से प्रेम करो’? क्या इसका मतलब यह है कि हम एक दूसरे को पूरी तरह से प्यार कर सकते हैं?
श्री माताजी: हा, यही है, यही असली सवाल है, मुझे कहना होगा। इसी तरह आप अपने पड़ोसियों से प्यार करते हैं, है ना?
चुंकि आप सामूहिक रूप से जगरुक हो जाते हैं, फिर से मानसिक विचारो के प्रक्षेपण के माध्यम से नहीं, बल्कि आप सामूहिक रूप से सचेत हो जाते हैं।
तो मान लीजिए कि, सज्जन ने मुझसे एक प्रश्न पूछा, उनके गले में समस्या है। मैं इसे अपने हाथों पर महसूस कर सकती हूं कि उन्हें समस्या है [श्री माताजी दाहिनी तर्जनी दिखाते हैं]। मेरी उंगलियों पर मैं इसे महसूस कर सकती हूं, उंगलियों पर जैसा वे कहते हैं। और ऐसा भी कि,अगर मुझे पता है कि उस समस्या का इलाज कैसे किया जाता है तो मैं आपको ठीक कर देती हूं।
ठीक यही मसीह ने कहा है, कि तुम सामूहिक रूप से सचेत हो जाओ। वे इन मछुआरों को कैसे बता पाते कि, सामूहिक चेतना क्या है?तो प्रतीकात्मक रूप से उन्होंने कहा कि: “आप अपने पड़ोसी से अपने समान प्यार करे”, जो बिल्कुल असंभव बात है, क्योंकि यह एक मानसिक प्रक्षेपण है।
आप एक हद तक प्यार कर सकते हैं, लेकिन पुर्ण्तया नहीं।
लेकिन जब आप मेरे अंग-प्रत्यंग बन जाते हैं, तो मान लीजिए कि यह उंगली मुझे [दाहिनी तर्जनी] परेशान कर रही है, तो मुझे इस उंगली को सहलाना चाहिए, अन्यथा मुझे ठीक नहीं लगता। और अगर मैं अपनी ही उंगली रगड़ रही हूं तो मुझे ऐसा कुछ भी नहीं लगता है कि मैं इस पर कोई अहसान कर रही हूं, या इस का भला करने की कोशिश कर रही हूं। क्योंकि मैं अपनी उंगली को अपने जैसा प्यार करता हूं। [हँसी]
ईसा-मसीह ने जो कहा है उसे बोध के बाद ही आप समझ पाएंगे। आप तो जानते ही हैं कि कैसा प्यार एक-दूसरे से हम करते रहे हैं और कैसा प्यार हर देश एक-दूसरे से करता रहा है। और ये ईसाई राष्ट्र एक दूसरे के साथ क्या व्य्वहार कर रहे हैं। आप साफ देख सकते हैं कि उन्हें इसका मतलब समझ में ही नहीं आया।
हम ईसा-मसीह का अनुसरण तब तक नहीं कर सकते जब तक कि हम दो बार जन्मेनाहो जाये। हम किसी का अनुसरण इसलिये नहीं कर सकते क्योंकि यह फिर से वही मानसिक प्रक्षेपण होगा।
प्रश्न [महिला अनुवादक द्वारा अनुवादित]: आप बोध की इस सामूहिक घटना और साथ ही मानव पीड़ा के विस्तार की व्याख्या कैसे कर सकते हैं?
श्री माताजी: विस्तार?
महिला अनुवादक: मानव पीड़ा की।
श्री माताजी: विस्तार?
महिला अनुवादक: तथ्य यह है कि मानव पीड़ा अधिक से अधिक बडी होती जा रही है।
श्री माताजी : जब तक कुछ ऐसा हो नहीं जाता, तब तक लोग कुछ उच्च्तर बात को अपनाने नहीं वाले हैं। आप देखिए, मनुष्य अपने ही कारण पीड़ित हैं। जब वे पीड़ित होते हैं तो वे केवल उपाय के बारे में सोचने लगते हैं, या वे इसे हल्के में लेते हैं। इसलिए क्राइस्ट ने कहा है कि एक धनी व्यक्ति ईश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता, क्योंकि एक व्यक्ति जो भौतिक रूप से बहुत, बहुत सुसज्जित है, वह अपने आप से इतना संतुष्ट है कि उसे अपनी खोज की परवाह नहीं है।
ठीक है?
अब, क्या हमें आत्म-बोध लेना चाहिए?
हाँ, एक और।
प्रश्न [अनुवादित महिला अनुवादक]: क्या आपके बहुत सारे शिष्य भारत में हैं या केवल यूरोप में हैं?
श्री माताजी : ओह, मेरे पास भारत में बहुत हैं, बहुत हैं, हजारों हैं, लेकिन वे गांवों में हैं। हमारे शहर अभी भी अन्य गुरुओं के पास अटके हैं जिन्हें पैसे की जरूरत है। जब तक उनके पास पैसा होगा, वे गुरु को खरीदना चाहेंगे [हँसी], और वे मुझे खरीद नहीं सकते।
अभी भी हमारे पास बंबई में कम से कम पांच, छह हजार सहज योगी हैं, कम से कम, और दिल्ली में लगभग तीन हजार या शायद अधिक, मैं नहीं कह सकती। क्योंकि हम संगठित नहीं हैं। हमारे पास कोई लिखित नाम या सदस्यता या ऐसा ही कुछ भी नहीं है। यह एक जीवंत संगट्न है, बस इतना ही।
प्रश्न [महिला अनुवादक द्वारा अनुवादित]: क्या वे सभी साक्षातकारी प्राणी हैं, आपके शिष्य?
श्री माताजी: आह, हाँ, बिल्कुल, [हँसी]। वे केवल साकार आत्मा ही नहीं होते हैं, वे अधिकतर गुरु होते हैं, अन्यथा हम उन्हें सहजयोगी नहीं कहते। जो लोग केवल साक्षात्कार प्राप्त करते हैं वे सहजयोगी नहीं हैं, लेकिन जो सहज योग के ज्ञान को जानते हैं वे सहजयोगी हैं। वे छोटे छोटे बच्चे भी हो सकते हैं।
प्रश्न [महिला अनुवादक द्वारा अनुवादित]: क्या आपको आत्मसाक्षातकारी बनने के लिये श्रीमाताजी के शिष्य बनने की आवश्यकता है?
श्री माताजी : नहीं, नहीं, तुम बस मेरे बच्चे बनो। [हँसी] मैं कोई गुरु नहीं हूँ। वास्तव में मुझे आपकी देखभाल करनी है, और एक माँ के रूप में आप जानते हैं कि यह एक धन्यवादहीन काम है।
इसलिए मां बनना अच्छा है और मां ही हमेशा बच्चों का मार्गदर्शन करती है। वह उन्हें नरक या स्वर्ग में ले जा सकती है। [श्री माताजी हंसते हैं]
आपको कोई शिष्य या कुछ भी नहीं बनना है। यह आप हैं, यह आपकी अपनी इच्छा है, यह आपका अपना विकास है जो आपको सहज योग को समझाता है। इसका किसी औपचारिक प्रकार के आवेदन या औपचारिक प्रकार के नामांकन से कोई लेना-देना नहीं है।
[एक प्रश्न पूछा जाता है। महिला अनुवादक उत्तर देती है: “सटीकता”, बिल्कुल। हँसी]
श्री माताजी : वह क्या कहती है?
लेडी ट्रांसलेटर [प्रश्न का अनुवाद करती है]: बस आपके सामने होने पर किसी को आत्म-बोध हो सकता है?
श्री माताजी : बेशक, लेकिन सहजयोगी बनने के लिए आपको मेहनत करनी होगी। यह सच है।
प्रश्न: श्री माताजी, आपने हमें बताया कि सभी मानव संस्थाएं मानसिक प्रक्षेपण हैं।
श्री माताजी: हाँ।
प्रश्न: क्या आप कहेंगे कि ये लोग जो एक और दुनिया, एक बेहतर दुनिया या ऐसा कुछ बनाने की कोशिश कर रहे हैं, बस उसी का उपयोग कैसे कर रहे हैं… [अस्पष्ट]?
श्री माताजी : हाँ, ऐसा है, मैं आपको बताती हूँ। हर चीज़।
साधक: [अस्पष्ट]।
श्री माताजी: हाँ, कुछ, आप देखिये, यह कुछ अच्छा कर रहा है, लेकिन यह इस अर्थ में एक मानसिक प्रक्षेपण है कि जो लोग अच्छा करने की कोशिश कर रहे हैं, आप देखिये, दूसरों का… अब, जैसा कि मैंने तुमसे कहा था कि मैं अपनी उंगली की देखभाल करतीत हूँ, तुम देखो, मैं कोई इसका कुछ भी भला नहीं कर रही हूं, कुछ भी नहीं; यह मेरी अपनी उंगली है। यही आपके साथ ऐसा होना चाहिए।
आप देखिए ये सब, मुझे लगता है, आप देखिए, शुरुआती दिनों में मैं इन लोगों को देखती थी कि ये कैसे हैं। वे इतने जागरूक हैं कि वे महान काम कर रहे हैं, आप देखिये, वे बहुत महान लोग हैं, उनके दिमाग में हर तरह की बकवास मौजूद है, आप जानते हैं?
वे ऐसे लोग नहीं हैं जो वास्तव में इस अर्थ में प्यार करते हैं कि वे इसे सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि प्यार बहता है, आपको ऐसा कहने की जरूरत नहीं है, यह सिर्फ बहता है। आपको कुछ करने की जरूरत नहीं है, यह सिर्फ बह रहा है।
यह एक ऐसा मानसिक प्रक्षेपण है, मैं आपको बताती हूँ कि यह कैसा है – उदाहरण के लिए अब पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच एक बड़ी समस्या है।
अब मैं कहूंगी कि मैं एक महान पूंजीपति हूं, क्योंकि मेरे पास ये सभी शक्तियां उपलब्ध हैं, और मैं सबसे बड़ा साम्यवादी हूं क्योंकि मैं उनका मज़ा नहीं ले सकती, मुझे उन्हें [हँसी] वितरित करना होगा।
जिनके पास पैसा नहीं है वे खुद को पूंजीपति कहते हैं और जो वास्तव में बांटते नहीं हैं वे खुद को कम्युनिस्ट कहते हैं। [हँसी]
इसके अलावा, एक बार जब आप कहते हैं कि आप पूंजीपति हैं तो आप कुछ क्यों मांगते हैं? तब आप दुनिया के शीर्ष पर हैं, आप एक राजा की तरह हैं!
उदाहरण के लिए, यदि आप मुझसे पूछें, तो मैं जाकर सड़क पर सो सकती हूं, मैं कहीं भी रह सकती हूं। मुझे कोई आराम नहीं चाहिए। ज्ञानी आत्मा सदा के लिए राजा है, उसे किसी चीज की जरूरत नहीं है। वह किसी चीज का भिखारी नहीं है।
ये असंतुष्ट लोग पूंजीवादी कैसे हो सकते हैं? तो वे सभी नाम मिथ्या हैं। मैंने कई राजाओं के बारे में सुना है जो कंजूस थे, क्या आप सोच सकते हैं? और कुछ चोरी करने की बीमारी से ग्रसित थे। आप उन्हें राजा कैसे कह सकते हैं?
सब स्वाभिमानी, स्वनियुक्त व्यवसाय है। एक सिद्ध आत्मा के लिए [श्री माताजी हंसते हैं] वे राजा बिल्कुल नहीं हैं।
ठीक है।
अब चलो हम इसे पाते है।
अब, हम इसे कैसे करते हैं?
जैसा कि आप यहां देख सकते हैं, ये उंगलियां हमारे सात केंद्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं, पांच, छह और सात – जिस हाथ पर आप दिखाते हैं।
वही दाईं ओर, हमारे पास पांच, छह और सात हैं।
बेशक चिकित्सा विज्ञान स्वीकार करता है कि ये अनुकम्पी नाडी के छोर हैं
[अनुवादक: “सहानुभूतिपूर्ण?”।
श्री माताजी: “अंत”।
अनुवादक: “अंत”]।
वे ईमानदार हैं, क्योंकि वे आगे कुछ नहीं जानते।
तो बाएँ और दाएँ दोनों इस तरह एक साथ जुड़ते हैं और इस तरह एक केंद्र बनाते हैं, जैसा कि आप मेरे हाथों को देखते हैं। अब इसमें से तीसरी शक्ति प्रवाहित होती है और आपको बोध कराती है।
लेकिन जब वह चलती है, अगर ये ठीक से सेट नहीं हैं, या कोई समस्या है, तो यह केंद्र के उस हिस्से को शांत करती है, उसका पोषण करती है, उसे सुधारती है और उसे फैलाती है। और फिर ऊँची उठ कर जाती है।
तो, जब कुंडलिनी जागृत हो जाती है, तो वास्तव में आप को जो करना होता हैं वह इस तरह अपने हाथों को मेरी ओर फैलाना है। और इन सभी केंद्रों को सुचना जा सकती हैं। और वे कुंडलिनी को सूचित करते हैं कि, कोई है जो अधिकृत है यहाँ है। और फिर कुंडलिनी उठती है।
अंत में वह इस क्षेत्र को छेदती है, जिसे ब्रह्मरंध्र कहा जाता है। यह फॉन्टानेल हड्डी का वह क्षेत्र है जहां बचपन में आपकी कोमल हड्डी थी। बेशक एक बड़ा तंत्र है जो इसे कार्यांवित करता है। इसके बारे में मैं आपको कल बताऊंगी। और फिर आप अपने हाथों में कुंडलिनी की ठंडी हवा को महसूस करने लगते हैं।
अब, कुंडलिनी पवित्र आत्मा है जिसका वर्णन बाइबल में किया गया है।
तो आप अपने सिर से निकलने वाली कुंडलिनी की हवा, ठंडी हवा को महसूस करना शुरू कर देते हैं। तो अगर आप थोड़ा सा भी सहयोग करते हैं और मुझे समझते हैं, तो आपको अपना बायां हाथ मेरी तरफ रखना होगा और दाहिने हाथ को मेरी तरफ रखना होगा, और तब तक अपनी आंखें बंद रखना होगा, जब तक कि मैं आपको खोलने के लिए न कहूं। कृपया अपना चश्मा भी निकाल लें।
अगर आपके शरीर में कहीं भी कोई कसी हुई चीज है, तो उसे थोड़ा ढीला कर दें।
इस तरह अपने हाथ मेरी ओर रखो, सीधे बैठो लेकिन आराम से, अपनी गर्दन को पीछे या आगे नहीं खींचो, बस केंद्र में। अपने विचारों से लड़ने की कोशिश मत करो।
जो भी विचार आ रहे हैं उन्हें आने दो। अचानक तुम पाओगे कि तुम निर्विचार हो गए हो। इसके अलावा, आप स्वयं अपने जागरण को स्थापित कर सकते हैं जब मैं आपको बताऊंगी कि अपने दाहिने हाथ का उपयोग कैसे करें।
अपना बायाँ हाथ मेरी ओर, और दोनों हाथ अभी मेरी ओर रखें; बाद में मैं आपको बताऊंगी कि अपने दाहिने हाथ को अपने शरीर के विभिन्न केंद्रों पर कैसे रखा जाए।
[श्री माताजी अपनी बायीं बाजु को उठा कर दायीं ओर डालती हैं]
अब कृपया अपनी आँखें बंद रखें। जैसे आपकी आत्मा आपके हृदय में निवास करती है, वैसे ही आपको अपना दाहिना हाथ अपने हृदय पर रखना है।
अब आप अपने दिल में कह कर मुझसे एक प्रश्न पूछ सकते हैं: “श्री माताजी, क्या मैं आत्मा हूँ?”
यदि आप श्री माताजी नहीं कह सकते हैं, तो आप माता कह सकते हैं।
तुम बस सवाल पूछो।
अब इस दाहिने हाथ को बायीं ओर पेट के ऊपर नीचे लाएं। और इसे दबाएं जहां आपकी गुरुत्व का केंद्र है, या आपके गुरु का। मेरा मतलब है, आप में गुरु सिद्धांत को सबसे पहले जगाना होगा।
क्योंकि आप आत्मा हैं, आप स्वयं के मार्गदर्शक, गुरु भी हैं। तो अब आप यह प्रश्न पूछें: “श्री माताजी, क्या मैं अपना गुरु हूँ?”, या फिर “माँ, क्या मैं अपना गुरु हूँ?”
कृपया दस बार पूछें।
दस बार क्योंकि सौर जाल में दस उप-जाल होते हैं, और केंद्र में उतनी ही पंखुड़ियाँ होती हैं, सूक्ष्म केंद्र को नाभि चक्र कहा जाता है। मतलब नाभि केंद्र।
तो कृपया दस बार पूछें: “माँ, क्या मैं आत्मा हूँ? क्या मैं अपना गुरु हूँ?”
पूरे विश्वास के साथ पूछना चाहिए।
कृपया अपनी आंखें बंद रखें।
क्योंकि अगर आप अपनी आंखें बंद नहीं रखते हैं, तो आपकी कुंडलिनी नहीं उठेगी।
अब, कृपया अपनी आँखें न खोलें, और अपना दाहिना हाथ फिर से अपने दिल पर रखें। और इसे पूरी समझ और पूरे विश्वास के साथ कहें: “माँ, मैं आत्मा हूँ। श्री माताजी, मैं आत्मा हूँ। कृपया इसे बारह बार कहें।
[अनुवादक के लिए:] जोर से: “कृपया इसे बारह बार कहें”। पूरे आत्मविश्वास के साथ। आप आत्मा हैं, निस्संदेह, आप आत्मा हैं। आपको बस इस अवस्था को मानना होगा।
आपकी आत्मा, जो इस नाटक की साक्षी है, आपके चित्त में, आपके केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में आनी है। इसे आपके केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के माध्यम से प्रकट करना है, अपनी उंगलियों को प्रबुद्ध करना।
सारा अस्तित्व प्रबुद्ध है।
अब, जैसा कि आप जानते हैं, आत्मा निर्दोष है। यह दोषरहित, बेदाग, बेदाग है। तो आपको कोई दोष भाव नहीं होना चाहिए। यह एक बहुत ही सामान्य बीमारी है, विशेष रूप से फ्रांसीसी के साथ कि वे अकारण दोषी महसूस करते हैं। वे गलत काम करते हैं, फिर दोषी महसूस करते हैं, और एक दुष्चक्र बन जाता है।
जैसे प्यार का एक बड़ा सागर है, ठीक है?
और कोई है जो कृत्रिम रूप से आपको सांत्वना देने की कोशिश कर रहा है। मेरा मतलब है, उसे समुद्र में डाल दो और उसे [हंसते हुए] आनंद लेने दो, साधारण बात!
अब दुष्चक्र को तोड़ने के लिए हमें बस इतना कहना है: “माँ, मैं आत्मा हूँ और मैं बिल्कुल भी दोषी नहीं हूँ।”
“मैं बिल्कुल भी दोषी नहीं हूँ” “मैं निर्दोष हूँ।”
बेहतर हो यह आप सोलह बार कहेंगे।
और अगर आपको खुद की निंदा करने की आदत है, तो सजा के रूप में इसे बत्तीस बार कहें [हँसी]। इसके लिए ऐसा कहते हुए आप अपना दाहिना हाथ उठाएं , इसे अपनी गर्दन के बाईं ओर, अपनी गर्दन के आधार पर रखें।
और अब कृपया सोलह बार कहें: “माँ, मैं दोषी नहीं हूँ।” मैं प्रेम के सागर, करुणा के सागर, क्षमा के सागर की बात कर रही हूं। तो अब, आपके पास कौन सा अपराध बोध हो सकता है, जिसे उस महान महासागर द्वारा नहीं धोया जा सकता है?
तो अपना दिल खोलो और कहो कि: “माँ, मैं बिल्कुल भी दोषी नहीं हूँ।” खुशियाँ बरसने लगेंगी।
[श्री माताजी अपने बाएं हाथ पर वार करती हैं]
आप सभी अभी भी दोषी महसूस कर रहे हैं। आखिर तुम्हारा क्या कसूर है? कृपया इसे सोलह बार पूरी ईमानदारी, और विश्वास, और विश्वास के साथ कहें।
बहुत ज्यादा, अभी भी। [श्री माताजी माइक्रोफोन में फूंकते हैं] मुझे लगता है कि यह माइक्रोफोन भी दोषी महसूस कर रहा है [हँसी]।
[श्री माताजी माइक्रोफोन में फूंकते हैं]
अब बेहतर हैं। [श्री माताजी माइक्रोफोन में फूंकते हैं] अब बेहतर है। [श्री माताजी माइक्रोफोन में फूंकते हैं]
अब दाहिना हाथ – बायां हाथ मेरी ओर, और दाहिना हाथ बिना आंखें खोले अपने माथे पर रखें।
इस समय इस केंद्र के लिए कहना है कि हम सभी को क्षमा करते हैं। माँ, मैं सभी को क्षमा करता हूँ। श्री माताजी, मैं सभी को क्षमा करता हूँ।”
अब कुछ लोग सोच सकते हैं कि यह मुश्किल है, लेकिन मुश्किल क्या है? आखिर यह एक मिथक है। यदि आप किसी को क्षमा नहीं करते हैं, तो आप बिना किसी कारण के स्वयं को प्रताड़ित कर रहे हैं। लेकिन अगर आप किसी को माफ कर देते हैं, तो इसका मतलब है कि आप कम से कम दूसरे व्यक्ति के हाथों में नहीं खेल रहे हैं। तो बस इतना कहो: “माँ, मैं सभी को क्षमा करता हूँ”।
सहज योग में हम जो कुछ भी करते हैं वह खुला है, कोई रहस्य नहीं है। तो खुले तौर पर किया जाना है क्योंकि आपको जो कहना है, वह यह है कि “मैं सभी को क्षमा करता हूं”।
अब उसी दाहिने हाथ को अपने सिर के ऊपर रखें। अपनी हथेली के साथ अपने फॉन्टानेल हड्डी क्षेत्र को दबाएं, जहां आपकी नरम हड्डी थी, और इसे दक्षिणावर्त घुमाएं – जहां आपकी नरम हड्डी थी, घडी की सुई की दिशा में। और इसे दक्षिणावर्त घुमाएं।
अब, इस समय मैं आपकी स्वतंत्रता को पार नहीं कर सकती। यदि आप अपना बोध नहीं चाहते हैं तो मैं आपको बाध्य नहीं कर सकती।
इस बिंदु पर आपको कहना है: “माँ, मुझे मेरी बोध-प्राप्ति चाहिए, कृपया मुझे दे दो।”
या: “श्री माताजी, कृपया मुझे मेरी बोध-प्राप्ती दें।” [श्री माताजी अपने दाहिने हाथ पर वार करती हैं] इसे सात बार कहें।
[श्री माताजी अपने सहस्रार की मालिश करती हैं]
अब देखें कि आप इसे अपने दिल से कहे, क्योंकि उस समय आपका हृदय केंद्र वहां प्रतिनिधित्व करता है।
[बहुत धीमी आवाज में: “अब”]
अब आप अपना हाथ लगभग चार इंच ऊपर उठा सकते हैं और देख सकते हैं कि ठंडी हवा आ रही है या गर्म हवा। यदि नहीं तो आप मेरा दाहिना हाथ मेरी ओर रखकर और बायां हाथ वहीं रखकर दूसरा हाथ आजमाएं। अब अपने बाएं हाथ से प्रयास करें।
अपने सिर पर दाहिना हाथ रखो [श्री माताजी अपने सहस्रार की मालिश करती हैं] फिर बायां हाथ अपने सिर पर रख कर, मेरी ओर वैकल्पिक हाथ रखें।
सबसे पहले आप महसूस करेंगे कि कुछ गर्मी निकल रही है।
इसे अपना हाथ उठाएं, इसे थोड़ा ऊपर उठाएं और फिर आप इसे महसूस कर सकते हैं।
बेहतर।
आप अपना हाथ बदल सकते हैं और देख सकते हैं। गर्म। बहुत गर्म। सोचना बहुत है, लेकिन सब ठीक हो जाएगा। आज्ञा वहाँ है।
आपको क्षमा करना है, क्षमा करना, क्षमा करना बहुत महत्वपूर्ण है। आप ईसा-मसीह के केंद्र को पकड़ रहे हैं।
अब बेहतर। यह बाहर आ रहा है।
महिला अनुवादक: थोड़ी खुजली है, लेकिन…
श्री माताजी : बहुत बारीक है। [श्री माताजी हाथ मलते हैं और उन पर वार करते हैं]
तो, अब आप अपने हाथों को नीचे रखें और देखें कि क्या आप हाथों में ठंडी हवा महसूस कर रहे हैं। आप अपनी आँखें खोल सकते हैं।
आप पाएंगे कि आपके मन में कोई विचार नहीं है। तो निर्विचार आप देख सकते हैं।
आप अपने हाथ ऊपर करें और देखें कि क्या आपको ठंडी हवा का अनुभव होता है।
अब एक प्रश्न पूछें: “क्या यह (होली-घोस्ट)पवित्र आत्मा की ठंडी हवा है?” यह प्रश्न तीन बार पूछें। [श्री माताजी कई बार दोहराते हैं: “अहं साक्षात आदि शक्ति, अहम् साक्षात आदि शक्ति, अहम् साक्षात आदि शक्ति”]
क्या आप इसे अभी महसूस कर रहे हैं? अच्छा।
अब इसे नीचे ले आएं, हाथों पर भी आप इसे महसूस करेंगे। अब अपनी आँखें बंद करो। और यह बहुत सूक्ष्म है। यह पहली बार है जब आप सूक्ष्म हवा को महसूस कर रहे हैं और आप सूक्ष्म हो रहे हैं,आप तनावमुक्त हैं और कोई विचार नहीं है जैसा कि आप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।
अपनी आँखें बंद करो और मत सोचो और आनंद लो। [महिला अनुवादक से “देखा? बहुतों को अब मिल गया है”] मत सोचो। [महिला अनुवादक से ठीक है। अच्छा।” महिला अनुवादक: “यह बेहतर” श्री माताजी: “काम कर रहा है”।]
यह निश्चित ही होगा लेकिन आपको इसे स्थापित करना होगा। फिर से कल और परसों मैं इसे कर्यानवित करुंगी। और फिर आपको यह सीखना होगा कि कैसे अपनी कुंडलिनी और दूसरों की कुंडलिनी को ऊपर उठाया जाए।
हमारे पास हमारे केंद्र हैं। आपके लिए वहां आना बिल्कुल फ्री है। कृपया उन लोगों से संपर्क करें जो केंद्र में हैं और अपनी आत्मा की शक्तियों को विकसित करें।
जो आनंद ले रहे हैं उन्हें इसका आनंद लेना चाहिए।
[इसके अलावा: “उनमें से बहुत से लोग इसे महसूस कर रहे हैं। आज जबरदस्त है। (श्री माताजी अपने सहस्रार को छूती हैं) अच्छा, यह बेहतर है। अच्छा! यह अच्छा है”]
अब संदेह मत करो, संदेह मत करो। यह बहुत सूक्ष्म बात है और संदेह करना फिर से तुम्हें स्थूल बना देगा।
बस इसे महसूस करने की कोशिश करो। साथ ही खुद पर शक न करें। वहीं सहस्रार पर्।[श्री माताजी अपने सहस्रार पर बंधन बनाती हैं, फिर: “हं”। फिर वह अपने सहस्रार की मालिश करती है, फिर: “हं”।]
कुछ लोगों के साथ यह आता है और चला जाता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कुछ लोगों के पास यह दाईं बाजु है, कुछ के पास बाईं ओर है – इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। तीन दिनों में आप बिल्कुल ठीक हो जाएंगे। अपने दोस्तों को भी लाओ। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।