The Culture of Universal Religion Bordi (भारत)

“विश्व निर्मल धर्म की संस्कृति” बोर्डी (भारत), 7 फरवरी 1985। युद्ध के मैदान में हमारी नई यात्रा का आज दूसरा दिन है। हमें लोगों को प्यार, करुणा, स्नेह और आत्मसम्मान से जीतना है। जब हम कहते हैं कि यह एक विश्व धर्म है, यह एक सार्वभौमिक धर्म है जिससे हम संबंधित हैं, सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात, इसका सार शांति है। शांति भीतर होनी चाहिए, शुरुआत करने के लिए। आपको अपने भीतर शांत रहना होगा। यदि आप शांत नहीं हैं, यदि आप अहंकारयुक्त छल कर रहे हैं, यदि आप केवल यह कहकर स्वयं को संतुष्ट कर रहे हैं कि आप शांतिपूर्ण हैं, तो कहना दुखद है किआप गलत हैं। शांति स्वयं के अंदर आनंद प्राप्ति के लिये है। यह अपने भीतर महसूस करने के लिये है। इसलिए स्वयं को गलत सन्तुष्टि न दें, स्वयं को झूठी धारणाएं न दें। अपने आप को धोखा मत दो। शांति को अपने ही भीतर महसूस करना होगा, और यदि आप ऐसा महसूस नहीं कर रहे हैं, तो आपको आकर मुझसे यह नहीं पूछना चाहिए, “माँ, मुझे यह महसुस क्यों नहीं हो रही है।” क्योंकि मैं आपको यह नहीं बताने वाली हूं कि आपके साथ कुछ गलत है। आपको इसे कार्यंवित करना होगा कि आप अपने भीतर शांति महसूस करें। ऐसा नहीं है कि बाहर बहुत अधिक सन्नाटा हो तब आप शांति का अनुभव करते हैं। शांति अपने भीतर होनी चाहिए। यह तुम्हारे ही पास है। आपकी आत्मा पुर्णत: शांत है – अव्यग्र, बिना बेचैनी के। आपकी आत्मा में कोई बेचैनी नहीं है। बिल्कुल Read More …