Birthday Puja: Our maryadas

Kew Ashram, Melbourne (Australia)

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जन्मदिन पूजा
मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया), 17 मार्च 1985।

आज आप सभी को मेरा जन्मदिन मनाते हुए और साथ ही उसी दिन राष्ट्रीय कार्यक्रम करते हुए देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। मार्च के महीने में हमारे पास यह एक अच्छा संयोजन है। इसे भारत में वसंत ऋतु के रूप में माना जाता है – मधुमास। यही तुम गाते हो, मधुमास। और जैसा कि आप जानते हैं कि 21 मार्च विषुव है, इसलिए यह एक संतुलन है और कुंडली में सभी राशियों का केंद्र भी है।

मुझे इतने सारे केंद्र हासिल करने थे और मैं भी कर्क रेखा पर पैदा हुई थी उसी तरह जैसे कि आप मकर रेखा पर हैं, और आयर्स रॉक मकर रेखा पर है – ठीक मध्य में। इसलिए, इतने सारे संयोजनों पर काम करना पड़ा।

तो उत्क्रांति का सिद्धांत है मध्य में होना, संतुलन में होना, मध्य की मर्यादा में होना, केंद्र की सीमाओं में होना, यही सिद्धांत है।

तो क्या होता है जब हम मर्यादाओं की सीमाओं को बनाये नही रखते? फिर हम पकड़े जाते हैं। अगर हम मर्यादा में रहते हैं तो हम कभी पकड़े नहीं जा सकते। बहुत से लोग कहते हैं, “मर्यादा क्यों?” मान लीजिए कि हमारे पास मर्यादा है, इस सुंदर आश्रम की सीमाएं हैं और कोई आप पर हर तरफ से,भवसागर पर हर तरफ से हमला कर रहा है, तो अगर आप भवसागर की मर्यादा से बाहर जाते हैं तो आप पकड़े जाते हैं। इसलिए आपको मर्यादा में रहना होगा। और मर्यादाओं पर टिके रहना कठिन होता है जब आपके सामने दो समस्याएं हों, एक अहंकार है, दूसरा प्रति-अहंकार है।

अब, जैसा कि पश्चिम में, प्रति-अहंकार की इतनी कोई समस्या नहीं है। अहंकार समस्या है। और अब इसके बहुत, बहुत सूक्ष्म निहितार्थ हैं। मैं हमारे पास मौजूद अहं की जटिल शैलियों को देख पाती हूं। एक प्रकार स्थूल है, खोमैनी शैली की तरह, जो शुष्क है, यह स्पष्ट है, प्रत्यक्ष है; जिसकी हर कोई निंदा कर सकता है। वह ऐसी है जिसे वह या तो सुधार कर लेता है या पूरी तरह से नष्ट हो जाता है। लेकिन अगर अहंकार, किसी एक मूर्ख व्यक्ति का है, तो वह बस वह इस तरह से व्यवहार करता है कि वह अपने अहंकार को परिष्कार sophisticate में छिपाना नहीं जानता। लेकिन पश्चिमी अहंकार अत्यंत परिष्कृत है। भाषा, सब कुछ, बहुत परिष्कृत है। जैसे अंग्रेजी भाषा में हम कहेंगे, “मुझे डर है कि मुझे तुम्हें थप्पड़ मारना पड़ेगा!” (हंसते हुए) “मुझे खेद है कि मुझे तुम्हें मारना पड़ा!” यह कितनी कुटिल बात है, आप देखिए। एक बार जब आपने “आई एम सॉरी” कहा, तो इसका मतलब हो जाता है कि आपने उसके ऊपर एक चॉकलेट डाल दी है, है ना? यह एक ऐसा छलावा है। तुम्हें समझना चाहिए! आप देखिए, हम जैसे हैं वैसे ही हमें खुद का सामना करना चाहिए, हम किसी और चीज का सामना नहीं कर सकते। लेकिन परिष्कार के साथ ठीक ऐसा ही होता है – कि हम खुद का सामना करने से बचते हैं।

आज का दिन भले ही उत्सव का हो, इसलिए हंसी-मज़ाक में हमें यह समझना चाहिए कि अहंकार नाम की यह बेवकूफी क्या है, हास्य में, गंभीरता से नहीं, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि आप फिर से दोषी महसूस करें! (हँसी)

अब जैसा कि सुबह-सुबह मैं समझा रही थी कि, अहंकार किस प्रकार बायीं विशुद्धि बन जाता है। मेरा मतलब है, हॉल में जाने से पहले, हॉल पर मेरा चित्त था और मुझे यहाँ एक बड़ी गांठ हुई है, बस, दर्दनाक भयानक, कष्टदायी! मेरा मतलब है कि जब से मैं पश्चिम में रह रही हूं, यह हर समय हो रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं? यह कभी खत्म नहीं हुआ। तो यह चक्र हर समय काम कर रहा है, बेचारा इतना थक गया है, विष्णुमाया का चक्र।

तो क्या होता है, वास्तव में, हमें इसका भौतिक पक्ष समझना चाहिए। इसे समझना बहुत जरूरी है। आप देखिए, ऐसे समाज में, जहां आप बहिर्मुखी हैं, अगर बचपन से ही हमें यह पढ़ाया जाता है कि, आपको कुछ हासिल करना है, कुछ सफलता या यह और वह है, तो आपको ताकत हासिल करने का विचार दिया जाता है, अर्थात, कुछ सहना, यह कमजोरी है।

कल्पना कीजिए, इसका सबसे अच्छा स्वरूप ईसाई देशों में है! “मुझे खेद है कि मैं तुम्हें मार डालूंगा!” इस प्रकार की चीज। ईसाई राष्ट्र में, आप देखिये, उनके यह सिद्धांत है कि यदि आप कुछ भी सहन करते हैं, तो यह एक कमजोरी है।यदि आप पर कोई हावी हो जाता हैं तो यह कमजोरी है। अगर आप ऐसा करते हैं तो आप कभी सफल नहीं हो सकते। इसलिए जब तक आप शासित नहीं हो जाते, तब तक आप कभी भी आज्ञाकारी नहीं हो सकते। यही है।

किसी को आप पर शासन करना है, आप तभीआज्ञाकारी हो सकते हैं जब हिटलर की तरह कोईआपको पूरी तरह से अपने शासन में रखे, ; अन्यथा तो सबका बड़ा अहंकार होता है। जैसा कि मैंने आपको कचरा साफ करने वाले की कहानी सुनाई थी। तो हर किसी के पास एक बहुत, बहुत बड़ा अहंकार होता है। हर कोई चाहता है कि उसका अपना तरीका हो। और बचपन से ही तुम अपने बच्चों को बहुत बिगाड़ते हो। आप उन्हें खराब करते हैं, उन्हें पूरी तरह से खराब कर देते हैं। हर समय आप उन्हें गले लगाएंगे, आप उन्हें पकड़ रखेंगे, आप बहुत कुछ करेंगे ताकि बच्चे खराब हो जाएं, खुद का कोई पार न सोचें। और फिर उसके ऊपर, यदि आप उनसे कहते हैं कि आपको कुछ भी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए, तो वे अवज्ञाकारी हो जाते हैं। इसलिए किसी भी तरह आप नहीं जानते कि दूसरों की बात कैसे मानी जाए। अहंकार किसी अन्य की बात मानना नहीं जानता, क्योंकि वह कमजोरी की निशानी माना जाता है, आज्ञाकारिता कमजोरी है।
तो अब, इस बेचारे अहंकार के पास एक सीमित, सीमित चीज है। यानी इस अहंकार के पास एक गुब्बारा है, जो सीमित है। लेकिन जब आपको लकवा और वह सब कुछ हो जाता है तो यह फट जाता है, यह फट जाता है, लेकिन यह लचीला भी होता है। तो जब अहंकार प्रति-अहंकार के भी बहुत ऊपर होने लगता है, तब प्रति अहंकार भी एक बिंदु तक ही जा सकता है; ऐसा वहाँ भी है। तो अहंकार से छुटकारा पाने के लिए लोग शराब पीते हैं, ड्रग्स लेते हैं, बस उसे पीछे धकेलने के लिए; तो प्रति-अहंकार को बढ़ाओ ताकि अहंकार नीचे आए। तो आप बीच में खेल रहे हैं। तब आपको हैंगओवर होता है! फिर यह इस तरह चलता है, आप देखते हैं, काम करता है। यही वह आधुनिक समाधान है जो वे अहंकार के लिए खोजते हैं अन्यथा अहंकार बहुत अधिक है।

तो जब कोई आपसे कुछ कहता है, तो उसका सामना करने के बजाय – मान लीजिए कि आप पाते हैं कि आप मेरे लिए एक गिलास नहीं ढूंढ पाए हैं, एक साधारण सी बात, तब आप उदास-कुपित हो जाते हैं। क्यों? आपको उसके लिए क्यों शर्माना चाहिए? चुंकि एक अन्य जगह भी है जहां यह अहंकार जा सकता है, वह इस प्र्कार है कि जब आप घुम कर देखें, तो आप पाते हैं कि यहां यह विशुद्धि पर पार हो जाता है, तो जब इस पर दूसरी तरफ से दबाव पड़ता है तो यह उस विशुद्ध वाले भाग में चला जाता है। तो फिर आपको बायीं विशुद्धि की पकड़ मिलती है। यह शुद्ध अहंकार के अलावा और कुछ नहीं है, मेरा विश्वास करो, यह शुद्ध अहंकार है। चुंकि उसके पास निकलने का और कोई रास्ता नहीं है, वह वहीं जाता है। और इसी तरह आप चिढ़ते और सोचते हैं। सोचने से आपको अधिक अहंकार आता है। आप अपना लेफ्ट साइड भर लेते हैं और आप चिढ़्ते हैं। आप कभी इसका सामना नहीं करते।

अब। व्यावहारिक रास्ता, मध्य मार्ग, वास्तविकता में होने से स्थापित होता है। अब आपको आदत के तौर पर इसे विकसित करना होगा। मान लें कि कुछ गलत हो गया है, तो अपने आप से कहें, “हां, यह गलत हो गया है, क्योंकि मैंने गलती की है। ठीक है, मैंने गलती क्यों की? इस कारण से। तो अगली बार ऐसा नहीं करूंगा।” लेकिन हर बात से बचना बहुत आसान है, यदि इस पर आ जाएं और दुखी महसूस कर के अपने अहंकार का मज़ा लें। यह एक प्रकार की लिप्तता है। और दूसरों को भी लगता है, “ओह, उसे अहसास है कि, ‘मुझे खेद है कि मैंने तुम्हें मार डाला!’,” आप देखिए। उसे इसका मलाल है।

हाँ! मैंने देखा है! पश्चिमी लोगों के दिमाग में यह बात इतनी अंदर तक पेठ गई है कि ऐसे भी कानून हैं जो वास्तव में ऐसे लोगों को भी माफ कर देते हैं जिन्हें कभी माफ नहीं किया जाना चाहिए। वे लोगों को क्षमा करने का भी प्रयास करते हैं। इस बेतुकी बायीं विशुद्धि के कारण जो आप को बायें पक्ष मे लिप्त कर देती है,आप ऐसे लोगों के प्रति सहानुभूति महसूस करते हैं, जिन्हें माफ नहीं किया जाना चाहिए था! जैसे कोई एक व्यक्ति है जिसने इतने लोगों की हत्या की है, उन्हें गैस चैंबरों में डाल दिया। उसे अब गिरफ्तार कर लिया गया है। वह अब एक दायित्व है, एक कैदी के रूप में बड़ा दायित्व,उसे कहीं रखा गया क्योंकि उन्हें सब कुछ बहुत गुप्त रखना था, और यह और वह, वहां ऐसे कुत्ते को पाले रखना अंग्रेजों के लिए बहुत मुश्किल था। लेकिन वे इस एक कैदी को पाल रहे हैं। मैं उसका नाम भूल गयी हूँ; भयानक साथी कोई भी हो। “अब वह वहाँ था। वह वृद्ध है।” उसे वहीं मरने दो! दया करने का क्या है? बस उसे लटकाओ और खत्म करो। उसने इतने लोगों को मार डाला है। “नहीं, लेकिन आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?” आपको इस कुत्ते को वहीं बनाये रखना होगा! हालांकि वह सभी लोगों के पैसे का उपभोग कर रहा है, हालांकि उसने गैस चैंबर में हजारों और हजारों और हजारों लोगों को मार डाला है, वह इतना भयानक व्यक्ति रहा है। ऐसी सहानुभूति नहीं होनी चाहिए। दैवीय नियमों में वह कुछ ही समय में समाप्त हो जाएगा। वह हर दिन विलुप्त हो रहा है, लेकिन अब भी मैं उसके प्रति सहानुभूति के लेख देखती हूं। “अब वह क्या गलत करेगा? उसे अकेला क्यों नहीं छोड़ देते?” इसी तरह सबसे पहले आप ही अपनी बायीं विशुद्धि की पकड़ द्वारा भयानक लोगों के हाथों में खेलते हैं।

तो यह बायीं विशुद्धि और कुछ नहीं बल्कि विशुद्ध, विशुद्ध अहंकार है और फिर तुम उस तरह अपना सिर झुकाते हो, तुम ऐसे चलते हो। अब इस बायीं विशुद्धि पकड़ के साथ, आपको कई, कई शारीरिक समस्याएं हैं। लेकिन सबसे बुरा होगा पागलपन। दूसरे दिन किसी ने मुझसे कहा कि चालीस साल की उम्र में, अब, अमेरिका में, लोग अचानक पागल हो रहे हैं और यह एक बहुत बड़ी बीमारी है, उसी तरह की जैसे उन्हें एड्स नामक भयानक बीमारी प्राप्त है; वैसे ही यह फैल रहा है।

अब मैं आपको आपकी माता के रूप में स्पष्ट रूप से बता दूं कि यह भयानक बायी विशुद्धि की भूमिका है। इसमें लिप्त न हों। चुंकि आपके पास अहंकार है, इसलिए आप इस बायीं विशुद्धि से ग्रसित है इसलिए अपने आप का सामना करें!

जैसे आज वारेन का विचार था, कि उन्होंने आकर मुझसे कहा कि “जब भी हम भारत में जाते हैं, तो हम सोचते हैं कि लोग, जो कुछ भी हम सुझाव देते हैं वे लोग शुरुआत ही पहले ‘नहीं, नहीं’ से करते है।” तो, वास्तव में “नहीं, नहीं!” इसलिए है क्योंकि हमें इसका सामना करने के लिए एक अलग तरीके से पाला गया है। हमें इसी तरह से पाला जाता है। इसलिए भारतीय कभी दोषी महसूस नहीं करते। यदि वे दोषी महसूस करें तो जान लें कि वे पश्चिमीकृत हैं। वे कभी दोषी महसूस नहीं करते। तो अब, उस समय जब वे किसी चीज़ के लिए कहते हैं, “नहीं” … निन्यानबे प्रतिशत, वे लोग शहरवासी नहीं हैं, शहरवासी के सोचने की शैली आप के ही जैसी हैं, क्योंकि आपने उन्हें अच्छी तरह से आशीर्वाद दिया है, लेकिन गांवों में, आप देखिए, वे खुद को ही कहते हैं, “नहीं, नहीं! मैंने ऐसा कैसे कर दिया था? ठीक है, अगर मैंने ऐसा किया है तो बेहतर है कि, मैं ही इसे ठीक करुंगा।” “नहीं, नहीं!” यह “नहीं, नहीं!” से शुरू होता है।

लेकिन एक पश्चिमी व्यक्ति इस “नहीं, नहीं” को सुन कर यह समझ सकता है कि वह सोचेगा, “वह बस मेरे अहंकार को चोट कर रहा है!” क्योंकि वहां अभी भी वह अहंकार दूसरों पर हावी होने के लिए आतुर है। अभी भी यह अहंकार सोचता है कि वे बहुत बेहतर संगठनकर्ता हैं। अभी भी यह सोचता है कि वे दूसरों की तुलना में साफ-सुथरे लोग हैं, वे दूसरों की तुलना में उच्च लोग हैं। यह सारा अहंकार ऐसा ही सोचता है और आपको बनाता है और तुम सतही बने रहते हो; जैसे एक फूला हुआ गुब्बारा या भंवर का सहारा जो आप को सतह पर बनाये रखता हैं, और इसलिए नही चाहते की हवा बाहर निकल जाये क्योंकि आप जानते हैं, आप अपने आप में डूब जाएंगे। तो कोई उस पर निर्भर रहता है और आप सोचने लगते हैं कि आप इसे बेहतर जानते हैं। कोई भी तुमसे कुछ कहता है तो तुम्हे चोट ग्रस्त महसुस होता है–फिर बायीं विशुद्धि। माँ कुछ कहती हैं – फिर बायीं विशुद्धि।

तो पश्चिम में होने के कारण आपने वहां एक थैली तैयार कर ली है। हम जैसे हैं वैसे ही उसका सामना करना चाहिए। चुंकिअब वह थैली है तो मैं जो कुछ भी कहूं – अब भले ही अभी मैं कुछ भी कह रही हूं – आपको दोषी महसूस नहीं करना चाहिए। आइए देखते हैं! दोषी महसूस नहीं करें। अपनी आत्मा पर बने रहो ताकि तुम स्वयं को देख सको और तुम बाहर निकल सको। यदि आप अपनी आत्मा के कोण से देखें, तो आप उसे निकाल बाहर कर देंगे जो आपने लंबे समय से जमा किया है।
बायीं विशुद्धि आज पश्चिम की समस्या है, मैं आपको बताती हूं। ये सभी समस्याएं बायीं विशुद्धि से आ रही हैं, लेकिन यह ऐसा नही है कि वे किसी भी तरह से किसी केअधीन हैं। इसके विपरीत किसी भी क्षण यह वाम विशुद्धि फिर से अहंकार में घुस सकती है। आप देखिए, मैंने इसे पश्चिम में देखा है – बहुत सामान्य। लोग सीधे आगे बढ़ रहे हैं सब ठीक है। भारत के शहरों में भी हमने इसे देखा है। तुम उन्हें ट्रस्टी बना देते हो, अचानक वे घोड़े पर सवार हो जाते हैं। मैंने कहा, “कहां से वे घोड़े पर सवार हो गये? यह अहंकार कहाँ से आया है?” वह सब यहाँ संग्रहीत किया गया था आप देख रहे हैं। ट्रस्टी बनते ही सब कुछ वापस आ जाता है! और वे जॉन गिलपिन की तरह घोड़े पर सवार तेजी से जा रहे हैं और मैं उन्हें देखने लगी कि वे जा कहाँ रहे हैं? वे वहीं थे; गायब हुआ! लुप्त होने की तरकीबें।

मैं बस समझ नहीं पा रही हूं कि ऐसा क्यों होता है। लेकिन समस्याओं में घुसने के बाद। क्योंकि मैं देखती हूं कि बस हॉल में पहुंचते ही से आपको बायीं विशुद्धि मिलती है।

लेकिन बच्चों को देखो। देखिये, आप बचपन से, उन्हें हर समय यह कहना न सिखाएं, “आई एम सॉरी, आई एम सॉरी।” भारत में हमारे पारसियों पर आप का बहुत अधिक प्रभाव है। इसलिए सुबह-सुबह हम कभी पारसी को नहीं देखना चाहते क्योंकि सुबह-सुबह जल्दी आकर वह कहने लगेंगे, “आई एम सॉरी, आई एम सॉरी।” यह अशुभ है! “माफ करो, माफ करो,” लोग कहते हैं, “बाबा! तुम दोपहर में आओ! यह समय नहीं है। सुबह के समय की शुरुआत इसके साथ न करें!” (हँसी) हम ऐसा नहीं कहते। यह अशुभ है। तुम दरवाजा खोलते हो और कोई खड़ा हो कर कहता है “माफ करो!” “किसलिए? मैने क्या किया?”

आपने ऐसा क्या किया है कि आप हर समय क्षमाप्रार्थी मूड में ऐसा कह रहे हैं? किसलिए? आप सुबह के समय क्षमाप्रार्थी चेहरा नहीं देखना चाहते हैं ना? आपका स्वागत करने के लिए कुछ सुखद, अच्छा आ रहा है। और यहाँ वे कहते हैं “माफ़ करो, माफ़ करो, आई एम सॉरी, आई एम सॉरी, आई एम सॉरी।” यह एक बहुत ही सामान्य बात है कि हम सुबह किसी पारसी को नहीं देखना चाहते हैं। इसका कारण यह है: यदि आप उन्हें सुबह देखते हैं तो आप पूरे दिन खराब स्थिति में होंगे क्योंकि आपने किसी को क्षमाप्रार्थी देखा है। लेकिन यह माफी नहीं है। वे बेहद अहंकारी लोग हैं। यदि आप उनके चरित्र का अध्ययन करें, तो पायेंगे कि वे बहुत अहंकारी हैं।

तो इसे समझना होगा: कि जब हम अपने अहंकार से निपटना शुरू करते हैं, तो हमें सीधे उससे निपटना चाहिए। हम अहंकार नहीं हैं, हम आत्मा हैं। सीधे! “ओह मैं समझा। तो यह गलत था। तो यह मेरे द्वारा नहीं, इस शरीर द्वारा किया गया था । अब, साथ आओ। नहीं, नहीं! बेहतर हो सुधर जाओ!” आप अपने आप से कहें कि, “नहीं, नहीं! बेहतर हो सुधर जाओ!” हम इस तरह से इससे निपटने जा रहे हैं। क्योंकि यही मुझे डरा रहा है- यही बायीं विशुद्धि है। क्योंकि जब मैंने इस बीमारी के बारे में सोचा तो मेरा ध्यान बायीं विशुद्धि पर गया। कल्पना कीजिए कि लोग पागल हो रहे हैं! और मुझे लगता है, अधिकांश अहंकारी लोग, इसके कारण मूर्ख बन जाते हैं। वे मूर्ख हैं। वे मूर्खतापूर्ण व्यवहार करते हैं।

और केवलअहंकारी लोग, , इतना अधिक ड्रग्स और पीने को अपनाते हैं क्योंकि वे ही इसे बर्दाश्त कर सकते हैं। मान लीजिए कि एक व्यक्ति जो बहुत ही प्रति-अहंकारी है, मान लीजिए कि एक व्यक्ति जो बाधा ग्रसित है अगर वह शराब की लत पालता है – वह बहुत जल्द मर जाएगा, वह जीवित नहीं रहेगा; क्योंकि वह उस तरफ अधिक फिंकाता है। लेकिन अहंकारी लोग बर्दाश्त कर सकते हैं। मेरा मतलब है, एक व्यक्ति जो अहंकारी नहीं है, एक भारतीय की तरह, अगर वह वोदका लेता है तो उसे किनारे से उड़ा दिया जाएगा! बिल्कुल कहीं नहीं मिलेगा, गायब! खोये-पाये में भी वह नहीं मिलेगा! (हँसी)

लेकिन यह आपका अहंकार है जिसमें प्रति-अहंकार के प्रति प्रतिरोध है और इस तरह आप इसे प्रबंधित करते हैं। इसलिए लोग पी सकते हैं। इसका ठंड के मौसम या किसी भी चीज से कोई लेना-देना नहीं है, ज्यादातर यह आपका अहंकार है।

अब जब आप खुद को भी ‘बायें पक्ष वाला’ (लेफ्ट साईडेड) कहते हैं तो कभी-कभी आप एक बड़ी गलती करते हैं। तुम नहीं हो! बस तुम उस मिथक के साथ जीते हो क्योंकि तुम अपने अहंकार को इसी तरह क्षमा कर सकते हो। चुंकि मूल रूप से पश्चिमी लोग अहंकारी हैं – हमें इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए। हम पश्चिमी लोग नहीं हैं, हम ईश्वर के राज्य से संबंधित हैं, इसलिए दोषी महसूस न करें! (हँसी) तुम अब पश्चिमी नहीं हो। मेरे लिए तुम न भारतीय हो, न अंग्रेज हो, न आस्ट्रेलियाई हो, तुम मेरे बच्चे हो।

लेकिन इनमें से कुछ चीजें अब भी लटकी हुई हैं, इसलिए आप सावधान रहें। जो मैं आपको बता रही हूं कि ऐसा आप सभी के साथ होगा, थोड़े से तरीके से लेकिन ज्यादा नहीं। तो सावधान रहना, यह बाहर है, मर्यादाओं के बाहर, जहां से आप थोड़ा सा भी बाहर निकल जाते हैं, यह आपको मिल जाता है। तो जो लोग सोचते हैं कि वे लेफ्ट साईडेड हैं, वे केवल बाधा ग्रसित लोग हैं। चुंकि वे आविष्ट हैं इसलिए वे लेफ्ट साईडेड हो जाते हैं; अन्यथा वे नहीं हैं, स्वभाव से वे नहीं हैं। चुंकि कोई परंपरा नहीं है, कोई संस्कारबद्ध्ता स्वीकार नहीं है, कुछ भी नहीं है। उन पर किसी तरह का कोई संस्कारिता नहीं की गई है। इसलिए पश्चिम में शायद ही कोई तामसिक पाया जाए, शायद ही कोई मिले। तो हमारे पास कौन है ऐसे वे लोग जो अहंकारी हैं लेकिन आविष्ट हो जाते हैं।

तो ये बाधायें आपके अहंकार पर अधिकार कर लेती हैं और ये आपके अहंकार के माध्यम से काम करती हैं, इसलिए ये सामान्य तामसिकों की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक हैं। एक साधारण तामसिक जो आविष्ट भी हो जाये तो, वह शीघ्र ही मर जाता है। नहीं तो वह बस अपने आप को परेशान करता है: उसे शरीर में दर्द होता है, वह खुद ही सभी कष्टों को जुटा लेता है। लेकिन जब अहंकारी व्यक्ति आविष्ट भी हो जाता है तो वह दुखदायी व्यक्ति बन जाता है।

भारत में अगर लोग पीते हैं, तो आपको आश्चर्य होगा, वे बहुत अच्छे लोग बन जाते हैं: अत्यंत सौम्य, बहुत शांत, बहुत अच्छे। मेरा मतलब है कि कुछ महिलाओं ने मुझसे कहा, “हम चाहते हैं कि वे पीएं क्योंकि वे बेहतर हो जाते हैं।” लेकिन यहाँ ऐसा नहीं है। वे हिंसक हो जाते हैं। ऐसा क्यों? क्योंकि अहंकार का आधार तो पहले से मौजुद है और ये साथी जो लेफ्ट साइड या राइट साइड से कूदते हैं, जो भी हो, अहंकार को अपना लेते हैं। और तब वे अहंकार के माध्यम से काम करते हैं। तो ऐसे लोग क्रूर, दबंग हो जाते हैं।

मेरा मतलब है, सभी जर्मनों के साथ ऐसा ही व्यवहार किया गया। वे सब अतिचेतन भूतों से ग्रसित थे और वे सब इस घोर अत्याचारी ढंग का व्यवहार करते थे। कल्पना कीजिए कि कोई भी इंसान, इंसान, लाखों लोगों को गैस चैंबर से मार रहा है !! क्या आप इसके बारे में सोच भी सकते हैं? मेरा मतलब है, आप अपनी उपस्थिति में एक छोटे से चिकन को काटते हुए नहीं देख सकते। आप इतने सारे लोगों को कैसे देख सकते हैं, जो आपके सामने गैस से भरे हुए हैं, गैस चैंबर्स से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं? और वे सभी पारदर्शी थे ताकि आप उन्हें देख सकें! उस क्रूरता को देखें जिसके लिए वे जा सकते थे। कैसे? वे आविष्ट थे, औरअहंकारी स्वभाव से आविष्ट थे। तो इन भूतों ने उनकेअहंकार का भी इस्तेमाल कर यह किया।
तो मध्य में हम हैं, हम वे लोग हैं जिन्होने परमात्मा के स्तर तक उत्थान किया हैं इसलिए हमारे पास किसी भी स्थिति में बायीं विशुद्धि रखने का कोई काम नहीं है। हमें कोई अहंकार नहीं है। अहंकार कहाँ है? यह समाप्त हो गया। प्रति-अहंकार कहाँ है? खत्म।

तो अगर उसमें कोई गुप्त बात भी है, तो आप उसका सामना करें। आप दोषी क्यों महसूस करें? किसलिए? बकवास!

और इस तरह आप इससे छुटकारा पाते हैं। क्योंकि मैंने सहजयोगियों के मामले मे भी देखा है कि अचानक उनकी नाक फूल जाएगी, उनकी आंखें निकल आएंगी, अचानक वे इस तरह बात करने लगेंगे और मुझे डर लगता है। मैंने कहा, “क्या बात है? वह एक सामान्य व्यक्ति था, अब वह इस तरह क्यों बात कर रहा है?” कारण ऐसा है कि छिपा हुआ अहंकार अचानक उछलकर प्रकट हो जाता है। ऐसा कई भारतीयों के साथ भी है, जो शहरों के निवासी हैं वे बहुत अहंकारी हैं और आपने भी उन्हें आशीर्वाद दिया है, जैसा कि मैंने आपको बताया था। इसलिए वे भी वैसा ही व्यवहार करते हैं।

लेकिन चुंकि किसी भी देश में मध्य में रहने की परंपरा है – जैसे चीन में ऐसा ही है, मैंने देखा है, चीन में वही है। मैंने उन्हें कभी कहते नहीं देखा, “आई एम सॉरी, आई एम सॉरी, आई एम सॉरी।” और वे चर्चा भी नहीं करते। रूसियों ने उनके लिए बहुत बुरा किया है। “ठीक है,”। हमने उनसे पूछा, “तुमने रूसियों से क्यों नाता तोड़ लिया?” उन्होंने कहा, “इसे भूल जाओ!” वे कभी भी आलोचना नहीं करते, बैठ कर आलोचना नहीं करते, “उन्हें यह पसंद आया,” या इसके बारे में नाराज़ हों या इसके बारे में सोचते हों – बिल्कुल भी नहीं!

जैसे भारतीय, अब, आप भी हैरान होंगे: हमारे यहां एक कानून है कि हमें अंग्रेजों के खिलाफ कोई फिल्म नहीं बनानी चाहिए। आप कल्पना कर सकते हैं? क्योंकि उन्होंने हमारे देश को अनुग्रह पुर्वक छोड़ दिया। यहां तक ​​कि शिवाजी की फिल्मों की भी अनुमति नहीं है क्योंकि शायद यह दिखाएगा कि मुसलमान बुरे हैं। उस हद तक हम जाते हैं। क्योंकि भूल जाओ, भूल जाओ, भूल जाओ। जब आप उस व्यक्ति के बारे में सोचना शुरू करते हैं तो आपके अहंकार पर चोट लगती है। यह एक अहंकार है जिसे चोट लगी है।

अब आप इस गुब्बारे को दो तरीकों से फोड़ सकते हैं, शायद आप जानते हैं कि, इसमें फूंक मारकर या बाहर से सारी हवा निकालकर, या चोट मार कर भी।

तो आहत अहंकार वह है जहां बाहर का स्थान खाली हो रहा है और गुब्बारा बढ़ रहा है। और दूसरी तरह काअहंकार, जो फुलाया हुआअहंकार, वह है जबकि गुब्बारा उस हवा से भर जाता है। दोनों चीजें बस एक जैसी हैं। मेरा मतलब है, परिणाम वही है चाहे आप इसे इस तरह से करें या उस तरह से करें।

इसलिए, एक बार जब आप इसकी शारीरिक अभिव्यक्ति के अंतर्गत आ जाते हैं, तो न केवल आप इन सभी बीमारियों को विकसित कर लेते हैं, बल्कि बहुत ही कम उम्र में पागलपन नामक एक चीज भी विकसित कर लेते हैं, क्योंकि आप नहीं जानते कि खुद से कैसे निपटें।

तो सबसे अच्छा तरीका यह है कि, यदि आपने कुछ किया है, तो उस समय स्वयं को क्षमा करें: “मैं इस समय स्वयं को क्षमा करता हूँ, ठीक है। और यह इस वजह से किया गया था – ठीक है, तो मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। मैं ऐसा फिर कभी नहीं करने जा रहा हूँ!” बस ऐसे ही कहो। बस इसे बिल्कुल बेअसर करें। जब तक और जब तक आप इसे बेअसर नहीं करते, आप इसे फिर से वहीं जमा करते हैं: यही बात है।

दूसरी बात, मुझे आपको बताना होगा कि पश्चिम में महिलाओं ने अपनी शैली बदल दी है, जो उनके समाज के लिए बहुत खतरनाक है, क्योंकि उन्होंने भी पुरुषों के अहंकारी तरीकों को अपनाया है। सो यदि पुरुष दस फुट चले गए हैं, तो फिर वे भी उनके पीछे दौड़ी हैं, लगभग आठ फुट, और पुरुषों को पीछे खींच लिया ताकि वे उनसे भी आगे निकल जाएं।
अब यह आपके अहंकार को पूरी तरह से पार कर रहा है, क्योंकि सामान्य रूप से महिलाओं में अहंकार की ऐसी संभावना नहीं होती है। तो अहंकार में पुरुषों के साथ प्रतिस्पर्धा, तुमने क्या किया, तुमने एक महिला की अपनी पूरी मर्यादा खो दी है। स्त्री की कोई मर्यादा नहीं रही।

आदमी के पास आदमी की मर्यादा है। अगर कोई पुरुष एक महिला की तरह व्यवहार करना शुरू कर देता है, तो वह पुरुष नहीं है।

उसी तरह, महिलाएं, यदि वे पुरुषों की तरह व्यवहार करना शुरू कर दें, तो वे महिला नहीं हैं। उन्होंने अपनी मर्यादा खो दी है। वे बाहर हैं। तो वे ग्रसित हो जातीहैं। और इसलिए महिलाएं, जब वे अहंकारी होती हैं तो वे भयानक हो जाती हैं: उनके चेहरे भयानक हो जाते हैं, वे भयानक दिखती हैं, उनका पूरा व्यवहार भयानक होता है। वे सेम की छड़ियों की तरह शुष्क हो सकती हैं और लोहे की छड़ से आपको मारने जितना कठोर हो सकती हैं।
और वे कहते हैं, “वह स्त्री जिसके हाथ में लोहे का डण्डा है।”

यह सब इसलिए होता है क्योंकि हमारे पास मर्यादा है, हमारी शैली वैसी ही होती है जैसे हम हैं। यदि यह गुलाब है तो गुलाब होगा। खुश रहो कि तुम गुलाब के फूल हो। अब गुलाब काँटा बनना चाहता है! तो हम अपनी सारी मर्यादा खो देते हैं।

आज मैं आपसे बात करूंगी। हम यहां इसे शुरू करें इससे पहले , जबकि लोग आ रहे हैं उससे पहले, महिलाओं से बात करूंगीऔर उन्हें बताउंगी कि उनके साथ क्या गलत हुआ है। और इसी तरह आपको पता होना चाहिए कि पश्चिम की दुर्दशा पुरुषों द्वारा नहीं, बल्कि महिलाओं द्वारा की जाती है।

महिलाओं ने पश्चिम, पश्चिमी समाज के समाज को बर्बाद कर दिया है। भारतीय महिलाओं ने ही समाज को अक्षुण्ण रखा है। वास्तव में, जीवन के प्रति उनके ठोस व्यवहार के लिए मेरे सभी धन्यवाद। इस देश की महिलाओं ने सब कुछ बर्बाद कर दिया है जो इतना नाजुक, भावनात्मक, सुंदर था: प्यार, स्नेह, करुणा।

महिलाएं पूरे समाज को आनंदऔर खुशी और भावनात्मक सुरक्षा देने के लिए हैं। जबकि वे हावी हो जाती हैं, “यह करो! वह दें! वो करें! इस!” पति भी घर में नौकरों के समान हो गए हैं। “आपने सफाई ठीक से नहीं की है! आपने रसोई की ठीक से सफाई नहीं की!” मैं इंग्लैंड गयी और मुझे आश्चर्य हुआ – रसोई की सारी सफाई और वह सब जो इंग्लैंड में इतनी अच्छी तरह से किया जाता है। देखिए, आपके पास यह और वह साफ करने, सफाई करने के सब साधन है। मैंने पुछा, “ऐसा किस तरह हुआ है?” आप देखते हैं, चुंकि पुरुष को यह करना पड़ा था इसलिए उन्होंने सभी तरीकों और विधियों का पता लगाया! (हँसी)

“चमकदार होना चाहिये? ठीक है, स्पार्कलिंग आप चाहते हैं? मैं तुम्हारे लिए ऐसी वस्तु लाऊंगा कि हाथ में डालोगे तो हाथ जल जाएगा!” सभी एसिड हर जगह डालते हैं; हाथ में एक बड़ा दस्ताना लेकर इसे हर जगह डाल देते हैं। और सब ठीक हो जाता है।

तब बच्चों को तकलीफ होती है, क्योंकि यह माली का काम है। खूबसूरत चीजें जो उस दयालुता से देखभाल करने के लिए उत्पन्न हुई हैं। लेकिन आप शुरुआत में अपने बच्चों में अधिक लिप्त हो जाते हैं। एक माँ माली की तरह होती है, उसे भी काटना पड़ता है, उसे कभी-कभी छंटाई भी करना पड़ती है ताकि विकास ठीक हो। अगर आपका बच्चा खराब हो गया है तो आप अच्छी माँ नहीं हैं, आप बेकार हैं! लेकिन आप अपने बच्चों की बजायअपने पति की चौकसी करने लगती हैं जो की – बिल्कुल विपरीत तरीका हैं – क्योंकिआपके पति के प्रति अहंकार हर समय तैयार रहता है,हर समय चौकस। “यहाँ पर बैठो! वहाँ जाओ! यह क्या है?” पैसे का मामला, “मुझे सारे पैसे दो! मैं सारे पैसे रखुंगी!” हर चीज़।

अब कोई कह सकता है कि कानून ही ऐसा है। यदि कानून मूर्ख है, तो सहज योगिनियों को ऐसे कानून को नहीं अपनाना चाहिए। उस कानून ने तुम सब को बर्बाद कर दिया, मैं तुमसे कहती हूं। क्योंकि यह जीवन का इतना महत्वपूर्ण हिस्सा है, यह जीवन का इतना महत्वपूर्ण क्षेत्र है कि इसे नुकसान होना नहीं चाहिए था। जहां स्नेह, प्रेम, दया, वह सब जो आवश्यक है, गायब है, तो आप अर्थहीन लोग बन जाते हैं। जीवन लक्ष्यहीन है। क्या करना है,आप को नही मालूम। इसलिए बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं। और फिर प्यार ऐसा होना चाहिए कि उनका सुधार होना चाहिये। उसके लिए आपके पास विवेक होना चाहिए, जिसका भी विकास नहीं होता है, क्योंकि यदि आप अपने मूलाधार चक्र के पीछे दौड़ते हैं तो आपको विवेक कैसे मिल सकता है?

यहाँ पुरुषों ने तुम्हें पूरी तरह से धोखा दिया है। पूरी तरह से उन्होंने तुम्हें धोखा दिया है, इसे मुझसे ले लो। अपनी विवेकबुद्धि को अक्षुण्ण रखना चाहिए। और केवल ऐसा ही नहीं कि उन्होंने तुम्हें धोखा दिया है, वरन तुम्हे मुर्ख बनाने के लिये वे खुद झुक गये हैं। तो उनके पास अपने कुटिल तरीके हैं। तब वे सीधे-सादे नहीं हैं।

तो, सहजयोगियों के रूप में हम इन सभी चीजों से ऊपर हैं। हम उस स्थिति में पहुंच गए हैं जहां हम ऊपर हैं। हम यहां उन सभी चीजों को सुधारने के लिए हैं जो समाज में गलत हो गई हैं, क्योंकि सहज योग समाजोन्मुख होता है, केवल अपने प्रति नहीं। तो इस स्तर पर हमें समझना होगा कि हमें क्या करना है: सबसे पहले हमारी अपनी समझ ऐसी होनी चाहिए। सहज योग समझ की इन सभी गतिविधिओं के बावजूद, महिलाओं को यह एहसास नहीं है कि उन्हें महिलाओं की तरह बनना है। मैंने उन्हें देखा है। वे अभी भी, “क्या गलत है?” अब भी ऐसा ही चलता जा रहा है। और पुरुष यह नहीं समझते कि उन्हें पुरुषों की तरह बनना है। इतने दिनों के बाद भी। और अगर वे वास्तव में पुरुषों की तरह बन जाते हैं, तो महिलाएं उनकी सराहना करेंगी। और अगर आप वास्तव में महिलाओं की तरह बन जाती हैं, तो पुरुष आपकी सराहना करेंगे। आप देखिए, यही परस्पर विपरीत चीजें हैं जो एक दूसरे को आकर्षित करती हैं, यह सामान्य होना चाहिए। लेकिन हम असामान्य तरीके से जीते हैं कि पुरुष महिलाएं हैं और महिलाएं पुरुष हैं। अब आप क्या करें?

तो पुरुषों के लिए अब यह समझना बहुत जरूरी है – (हंसते हुए)(चुंकि महिलाओं से मैं बाद में बात करने जा रही हूं ) – कि उन्हें पुरुषों की तरह बनना चाहिए। उन्हें चीजों को सुधारना चाहिए, उन्हें निर्णय लेना चाहिए, शासन करने वाला उन्हें ही होना चाहिए। लेकिन वह बाहर की तरफ है। असल में जो स्रोत है वह स्त्री है। स्त्री क्षमता है और पुरुष गतिज है। उदाहरण के लिए, एक पंखा चल रहा है। पंखे की गति गतिज बल है, लेकिन हमारे भीतर जो संभावित बल है वह वह है जो बिजली है, जो स्रोत से आ रही है। कौन उच्च्तर है? पंखा जो चलता है या स्रोत? चलिये इस बात पर महिलाओं को निर्णय लेने देते हैं और पुरुषों को समझने देते हैं।

लेकिन अगर वह शक्ति का स्त्रोत सूख जाता है और पंखा बनना चाहता है, तो कोई पंखा काम नहीं करेगा: उल्टी स्थिति। यदि आपको को अहसास हो जाये किआप स्रोत हैं, तो आप ही हैं जो पुरुषों को सारी शक्ति देने वाली हैं, आप पुरुषों की तरह व्यवहार करना बंद कर देंगी।
इसका मतलब यह नहीं है कि आप काम पर नहीं जा सकती, आप नहीं कर सकती; लेकिन वह काम अपनाएं जो महिलाओं के लिए अधिक उपयुक्त हो। जैसे मैं नहीं चाहती कि कोई महिला बस ड्राइवर की नौकरी करे या ट्रक ड्राइवर या पहलवान!(हँसी) नहीं। मैं ऐसा नहीं कह रही हूँ, मैं अनुभव से कह रही हूँ:

एक बार जब मैं यात्रा कर रही थी, मैं उस समय लाहौर में एक छात्र थी, आप देखिये, और मैं ट्रेन से यात्रा कर रही थी और किसी स्टेशन पर, रात में ट्रेन रुक गई और एक महिला आई और उसने कहा, “मेरे लिए दरवाजा खोलें !” तो मैंने कहा, “लेकिन इतनी भीड़ है, ठीक है, मैं कोशिश करती हूँ, मैं कोशिश करती हूँ।”

और उसने कहा। “यदि आप नहीं खोलते हैं तो मैं इसे तोड़ सकती हूं।” मैंने कहा, “आप कैसे कर सकती हैं?” उसने कहा, “तुम नहीं जानती कि मैं कौन हूँ?” मैंने कहा, “कौन?” उसने कहा, “मैं हमीदा बानो हूँ!” मैंने कहा, ‘हमीदा बानो कौन?’ ” महिला पहलवान !” “ओह, बाबा!” मैंने कहा, “भगवान का शुक्र है! मैं इसे खोलूंगी!” (हँसी) मैंने कहा, “अगर आप महिला पहलवान हैं तो महिला विभाग में क्यों आ रही हैं? तुम पुरुषों वाले के लिए क्यों नहीं जाती?” और उसने दरवाजे को इतनी जोर से धक्का दिया! वह ऊपर आई; मैंने उसकी तरफ देखा; मैंने कहा, “वाह! क्या इंसान है!” (हँसी) और वह अपने पूरे चेहरे और रौब-दाब के साथ बैठ गई, उसकी चाल और बैठने की स्थिति, सब कुछ इतना मर्दाना था, जि तरह वह बैठ गई। उसने कहा, “अब, अब आगे आओ! जो लोग यह कहना चाहते हैं कि मुझे यहां नहीं बैठना चाहिए।” मैंने कहा, “कोई नहीं चाहता कि अब मैडम आप आराम से बैठिए। लेकिन हमें कुश्ती के लिए दूसरे डिब्बे से किसी को लाना होगा!” और फिर वह चुप थी। और वह वास्तव में थी, मैंने उसकी सारी मांसपेशियों को इतना अतिविकसित देखा और वह वास्तव में ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं कहुंगी एक पश्चिमी गाय, हम कह सकते हैं। (हँसी) यहाँ गायें भी भैंस की तरह दिखती हैं, गायों की तरह नहीं। कुछ बहुत ही मजेदार बात है जिसे मैं भूल नहीं सकती, आप उस अनुभव को देखें। मैं बहुत छोटी थी और हंसने का मन करता था लेकिन हंस भी नहीं पाती थी। मैंने सोचा कि वह मेरे चेहरे पर मुक्का मार देगी! (हँसी)। तो यह ऐसा है, कि हम वहीं बर्बाद हो रहे हैं! आपको यह पता होना चाहिए। हम कितनी दूर जा रहे हैं? क्या हम पहलवान बनने जा रहे हैं?

तो यह वही है, जो किसी को यह सीखना होगा कि यह सदियों से है; सदियों से ऐसा वहाँ रहा है। मैंने किताबें पढ़ी हैं, कुछ किताबें, पुरानी किताबें; मैंने कुछ फिल्में भी देखी हैं, जहां पुराने समय में भी उन्होंने दिखाया है कि महिलाएं अपने हाथों में झाड़ू लेकर अपने पति को मारती थीं।

हमारे पास भारत में भी, उनमें से कुछ, ‘धन्य’ हैं। लेकिन वे बहुत, बहुत कम हैं। बहुत कम ऐसी महिलाएं हैं, बड़ी संख्या में नहीं। लेकिन यह बढ़ सकता है, भगवान जाने, इसलिए आशा बनाए रखिये! लेकिन मैं कहूंगी कि यही सब हो रहा है।

तो पुरुषों के बहुत अधिक अहंकार के साथ जो बायीं विशुद्धि में जाते हैं, वे कहते हैं, “अब, महिलाओं को आगे आने दो! यह ठीक है, उन्हें संतुष्ट होने दो। अब उनकी आक्रामकता नहीं। उनका अपना होने दो। ” इसलिए वे वही करती हैं जो उन्हें पसंद है। पुरुषों को कोई परवाह नहीं और वे इस अपनी बायीं विशुद्धि में चले जाते हैं। शादी या प्यार का कोई आनंद नहीं रहता है।

तो अब कल हमारे यहां दूसरी शादी थी: अपने बच्चों के लाभ के लिए, उनकी भलाई के लिए, महिलाओं और पुरुषों के रूप में अपनी भूमिका निभाएं। आपकी भूमिका महिलाओं और पुरुषों के रूप में है और आप देखेंगे कि आप इसका आनंद लेंगे। झगड़ा उसी भूमिका के लिये होना चाहिए। पुरुष आपके लिए कुछ करना चाहता है, आपको कहना चाहिए, “नहीं, नहीं, नहीं! आप कैसे कर सकते हैं? यह मेरे लिए बहुत ज्यादा है। यह काम मुझे ही करने दो।” जैसा कि मैंने आपको कई बार बताया है कि कैसे मेरे पति को गुस्सा आने पर वह अपनी अंडरशर्ट धोना चाहते है ताकि वह गुस्से में दिखे। या जब वह बहुत गुस्से में होंगे तो वह बाथरूम साफ कर देंगे! लेकिन वह इसे इतनी बुरी तरह से करते है कि मुझे पता चल जाता है कि उन्होने यह किया है। मेरा मन हंसने का करता है लेकिन मेरी हिम्मत नहीं है क्योंकि मुझे उनकी उच्च भावना सम्मान बनाए रखना है! और फिर वह सभी से बहुत सम्मानजनक तरीके से बात करना शुरू कर देते है – ‘आप’। सबको ‘आप’ कहते हैं। वह कहते है, “आप ऐसे हो, आप ऐसे हो,” तो मुझे पता हो जाता है कि अब वह वास्तव में किसी चीज के लिए गुस्से में हैं। लेकिन वह ऐसा कहेंगे नही कि वह किस बात से नाराज है! फिर हमें यह पता लगाना होगा कि वह किस बात से नाराज़ है, और यदि ऐसा है, तो दोषी महसूस न करें – इसे सुधारें।

आप देखिये कि क्रोध को शांत करने के कई तरीके हैं। अहंकार के साथ जो पहली चीज होती है, वह है क्रोध। जैसे कल तुम्हारी शादी हुई, तुम्हें पता होना चाहिए कि इसे कैसे बेअसर किया जाए, क्योंकि अभी भी अहंकार है। अब यह पता लगाना कि दूसरे व्यक्ति के गुस्से को कैसे बेअसर किया जाए, यह एक बहुत ही खूबसूरत चीज है जिसे मैंने कभी भी आपके लेखकों को संभालते नहीं देखा, लेकिन भारत में हमारे पास ऐसे कई लेखक हैं जिन्होंने ऐसी स्थिति को संभालना बताया है।

अब सबसे पहले, आपको यह पता लगाना चाहिए कि आपके पति, और आपकी पत्नी की कमजोरियां क्या हैं। वह किस बात पर परेशान हो जाते\जाती है। अब रवैया ऐसा होना चाहिए कि हम उन्हे परेशान न करें, हमें उन्हे नाराज न करें, और पत्नी का पति के प्रति वैसा ही रवैया उसी तरह, और भी अधिक।

तो अब वो कौन सा सॉफ्ट प्वॉइंट्स हैं जिन पर वो वाकई में परेशान हो जाते हैं? सिर्फ समझो! यह बहुत सरल है। और उस पर हंसो। इसे गंभीरता से न लें, लेकिन इसे टालने के प्रति सावधान रहें। अब यह भी पता करें कि उन्हे खुशी किस बात से होती है। जैसे अगर मैं सच में कभी-कभी होती हूँ – मुझे कभी गुस्सा नहीं आता, जैसा कि आप जानते हैं, मुझे कभी गुस्सा नहीं आता, लेकिन अगर सिर्फ मैं अपना गुस्सा प्रदर्शित कर रही हूँ …

(एक छोटा बच्चा खुशी से चिल्लाता है)

उसे रहने दो उसे रहने दो। ठीक है। बैठ जाओ! वह सहज योग को समझता है!

ठीक है!
तो, अब, यह इसे कैसे प्रदर्शित किया जाए, किसी व्यक्ति के क्रोध को कैसे बेअसर किया जाए?

अब जैसे, मानो मैं क्रोध दिखाने की कोशिश कर रही हूँ: अगर तुम मेरी गोद में एक बच्चे को रख दोगे – समाप्त! क्रोध चला गया। मैं अपनी गोद में एक बच्चे के साथ गुस्सा नहीं दिखा सकती! यह आसान है।

तो आपको पता लगाना चाहिए। मेरे पति की तरह, अगर वह गुस्से में है, तो जैसे मैं उसे जानती हूं। फिर अगर मैं उनसे कहूं कि “मुझे एक अच्छी साड़ी दिलाने मे क्या ख्याल है।” आह, समाप्त! तो वह बहुत खुश हो जाते है। वह कहता है, “आह, मैंने उन पर सबसे बड़ा उपकार किया है!” आप समझ सकते हैं। इस तरह, आप देखिए, आपको यह पता लगाना चाहिए कि आपके पति को कौन सी चीज पसंद है, कौन सी चीज आपकी पत्नी को प्रसन्न करती है, और इसे बेअसर कर दें।

और, आप देखिए, ऐसी छोटी-छोटी चीजें जो आपको सीखनी चाहिए। यही जीने की कला है, यही सहजयोगी जीवन जीने की कला है। यह जीने की कला है: कैसे कम, कुछ चीजों के साथ, आप कैसे प्रबंधन करते हैं।

अब आपने देखा होगा कि कैसे मैं अपने व्याख्यान में काफी गंभीर बातें कहती हूं, लेकिन आपकी हंसी के बुलबुले में यह बस आपके दिमाग में बस जाता है, आपको इसे कैसे करना चाहिए। क्योंकि हास्य सबसे बड़ी चीजों में से एक है जो बात को आगे बढ़ाता है, व्यक्ति को समझाता है, और यह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता है। इस तरह चीजें सुधरती हैं।

और जब आप देखते हैं कि आप शांति में स्थापित हो गए हैं – एक पति और पत्नी को सबसे पहले जो करना चाहिए वह है शांति से रहना – बच्चों को अच्छा लगता है, सभी को अच्छा लगता है। और फिर धीरे-धीरे इसे सुधरने दें। एक दूसरे को ठीक करने की आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। लेकिन अगर आपने किसी ऐसे व्यक्ति से शादी की है जो सहज योगिनी नहीं है, जो भयानक है और वह सब कुछ है, तो सवाल बहुत अलग है। लेकिन दोनों मेरे सामने विवाहित सहजयोगी हैं, सबसे आसान काम होना चाहिए।

और एक दूसरे की रक्षा करें, एक दूसरे की देखभाल करें। पूरा भरोसा होना चाहिए। और यह हमारे देश में है, वास्तव में मुझे कहना होगा। हमारी विवाह प्रणाली में कुछ खास है।

क्या हुआ, एक बार जब मैं सिंगापुर गयी, आपको आश्चर्य होगा, शुरुआती दिनों में, मैं अमेरिका जा रही थी: और एक राजनयिक की भयानक पत्नी थी, वह कार्यक्रम में नशे में आई थी और उसे बाहर निकलने के लिए कहा गया था क्योंकि वह नशे में थी। तो उसने हमारी प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को बताया कि, “यह महिला (श्री माताजी) इस तरह का काम कर रही है और उसे ऐसा नहीं करना चाहिए। वह एक राजनयिक की पत्नी हैं और वह बहुत उच्च पद पर हैं और यह और वह। ” तो इंदिरा गांधी ने बिना कुछ समझे एक साथी से कहा जो हक्सर था, जो उनका मुख्य कारिंदा था कि, “आप जाकर श्री श्रीवास्तव से कहें कि ऐसा नहीं किया जाना चाहिए और उसे वापस लाया जाना चाहिए।” तो एक मंत्री के लिये, आप देखिए, इंदिरा गांधी से संदेश मिलने का मतलब है कि मंत्री को उस समय मौत की चेतावनी हुई है। इसलिए उसने मेरे पति को बुलवाया। और उसने उन्हे बुलाया और उसने कहा कि, “हमें लगता है कि आपकी पत्नी को वापस बुलाया जाना चाहिए और ऐसा ऐसा हुआ है।” और उन्होने कहा, “क्यों? आप उन्हे क्यों बुलाना चाहते हैं? वह पीती नही, वह धूम्रपान नहीं करती। वह कुछ भी गलत नहीं करती है। वह सबसे सभ्य महिला है, वह बहुत सम्मानित है और वह जानती है कि वह क्या कर रही है। वह नि:शुल्क अच्छा काम कर रही है। वह कुछ भी गलत नहीं कर रही है और अगर आप चाहें तो मैं इस्तीफा दे दूंगा लेकिन मैं उसे फोन नहीं करूंगा। और उन्हें अपने जीवन का डर लग गया, क्योंकि अगर वह इस्तीफा दे देंगे तो नौकरी कौन करेगा? इतना सक्षम! उन्होंने बस इतना कहा, “मैं इस्तीफा दे दूंगा।” और जिस तरह से वह आश्वस्त थे, वे सभी उस पर हैरान थे। और यह सब मुझे किसी और के माध्यम से पता चला, खुद – वह मंत्री जो मरा हुआ था, अध-मरा था, प्रधान मंत्री के संदेश से! आप समझ सकते हैं? और फिर उसने वापस उत्तर भेज दिया – उसे भी शक्ति मिली, आप देखिए, अपने भीतर! उसने कहा, “मैं उस महिला को अच्छी तरह जानता हूं, वह बहुत गरिमापूर्ण है। वह बहुत ही सभ्य महिला है। वह बहुत धार्मिक है। हमें उसे परेशान नहीं करना चाहिए।” जबकि मेसेज भेजने वाले साथी हक्सर को भी झटका लगा और उसने वापस झटका इंदिरा गांधी को भेज दिया! तब से उसने कभी मेरे काम में दखल देने की कोशिश नहीं की। आप हैरान हो जाएंगे। उसने कभी दखल देने की कोशिश नहीं की। यह मेरे काम और समझ में मेरे पति का विश्वास है। ऐसा ही आपके पास होना चाहिए। आपको अपनी पत्नी को जानना चाहिए और अपने पति को जानना चाहिए कि: वे ऐसा और ऐसा कुछ नहीं कर सकते।

अपने बच्चों के बारे में भी। आपको उन पर पूरा भरोसा होना चाहिए। आपको पता होना चाहिए कि वे क्या हैं, वे क्या कर रहे हैं, वे कहां तक जा सकते हैं। और फिर यह आत्मविश्वास, एक आंतरिक समझ शांति, प्रेम और स्नेह का एकमात्र मार्ग है। एक दूसरे पर पूरा भरोसा। वे जहां भी हो सकते हैं। मैं विश्वास के साथ कह सकती हूं, आप मेरी बेटियों को कहीं भी भेज दें, वे कभी अधार्मिक जीवन नहीं अपनाएंगी, न ही मेरे दामाद, लेकिन अपनी बेटियों के बारे में मैं आपको बता सकती हूं। वे अधार्मिक जीवन के बारे में कभी नहीं सोच सकती, चाहे आप कुछ भी प्रयास करें। अपने बच्चों के प्रति आपके अंदर यह आत्मविश्वास होना चाहिए।

जैसे वे छोटे थे, बहुत छोटे थे और पड़ोसियों ने आकर कहा कि, “तुम्हारी बेटियाँ आई थीं और इसे, हमारे बगीचे, सुबह शौच के लिए इस्तेमाल कर रही थीं।” मैंने कहा। “क्या?” मैंने कहा, “मेरे बच्चे, भले ही वे आपके स्नानागार में जा सकते हों, आप उन्हें ले जा कर बताइए। मैं तुम्हें अभी दो हजार रुपये दूंगी, अभी! आप बस उन्हें अपने बाथरूम में जाने के लिए कहें, बस।” मैं उन्हें भी अच्छी तरह जानती हूं। अगर कोई कहेगा कि तुम्हारी बेटी ने कुछ लिया है, तो मैं उन्हें अच्छी तरह जानती हूं, वे कभी किसी की चीजों को छू नहीं सकते। में उन्हें अच्छी तरह जानती हुं। वे कभी भी ऐसे किसी से कोई उपकार नहीं लेंगे। मैं उन्हें भी अच्छी तरह जानती हूं।

तो यह ऐसा है: आपको अपने बच्चों को भी अच्छी तरह से जानना चाहिए। दूसरों की उपस्थिति में उनका अपमान न करें। यह कहकर उनके चरित्र और गरीमा का निर्माण करें कि, “आओ, तुम एक सहज योगी हो। तुम महान हो, तुम यह हो, वह हो, ”और उन्हें सही रास्ते पर डाल दो। उन्हें वहीं रखें। उनका सम्मान करें। लेकिन उन्हें खराब मत करो। उन्हें खराब मत करो। हम सामान्य रूप से बिगाड़्ते हैं। या तो हम अति-लिप्त हैं या आप उन्हें अति-लिप्त बनाते हैं, दोनों बातें गलत हैं; फिर से अहंकार है।

उन्हें बताएं कि चीजों को कैसे साझा किया जाए। उन्हें बताएं कि कैसे साझा करें। और अगर शेयर करते हैं तो पसंद करें। अगर वे इसे किसी और को देते हैं तो आपको खुश होना चाहिए, यह दूसरों को दिया जाता है। “इसे दूसरों को दो, दूसरों को खेलने दो।” आप उस बात पर अपनी खुशी दिखाएं। आप स्वयं दूसरों को देते हैं, तब बच्चे यह सब सीखते हैं।

तो सहज योग के लिए विवाह एक बहुत बड़ा बंधन है। विवाह के माध्यम से हम सब एक साथ बंधे हैं। यह सब बहुत खुशहाल शादीशुदा लोगों का समाज है। अब, अगर किसी कीअच्छी शादी होना सम्भव नहीं हुई है, तो इसके बारे में भूल जाओ! रहने भी दो! देखिए, आखिर मैंने अपनी उम्र की साठ साल की महिलाओं को शादी की मांग करते देखा है। हाँ! महिला और पुरुष हैं और वे साठ साल के हैं, “माँ, मैं केवल साठ का हूँ और मैं शादी करना चाहता हूँ।” मैंने कहा, क्या??” साठ साल की उम्र में मेरे हजारों बच्चे हैं, आप ऐसी बात कैसे कह सकते हैं? मेरा मतलब है, आपको जीवन भर दुल्हन के रूप मे नहीं रहना चाहिए। आपको एक माँ और एक दादी बनना चाहिए।

मुझे लगता है कि पैंतालीस के बाद किसी को भी शादी के बारे में नहीं सोचना चाहिए – यह बकवास है। ये बकवास है। पैंतालीस के बाद सभी, यहां तक ​​कि, विवाहित महिलाओं को भी पता होना चाहिए कि वे मां हैं और वे दादी बनने जा रही हैं। वे हमेशा दुल्हन के रूप मे हो। यही कारण है, कि विवाह विफल होने के कारणों में से एक है। क्योंकि आप तीस साल या पैंतीस साल की उम्र के बाद दुल्हन नहीं हैं, आप एक मां हैं, पूर्ण मां हैं। और तुम एक पिता हो, और इसी तरह तुम बच्चों के पिता और माता के रूप में रहते हो। हमारे देश में हमें ऐसे ही कहा जाता है। तीस, तीस वर्ष की आयु तक हम दुल्हन (दुल्हन-दुल्हन) जैसी दुल्हन कहलाते हैं। लेकिन एक बार जब आप बड़े हो जाते हैं – मुझे कभी किसी ने नाम से नहीं पुकारा है। वे कहते हैं “कल्पना की माँ” या “साधना की माँ।” या मेरे पति को भी “कल्पना का पिता” कहा जाता है, उन्हें उनके नाम से कभी नहीं पुकारा जाता है, क्योंकि आप एक पिता और माता बन जाते हैं। उस पद को स्वीकार करो! लेकिन नहीं, आप उस उम्र में भी दुल्हन बनना चाहती हैं। तो आप चाहते हैं कि एक दुल्हन की तरह बिस्तर सभी चीज़ें हों, एक दुल्हन की तरह सभी शयनकक्ष की चीज हो, और शयनकक्ष चीज हो और यह कार्यंवित नहीं होता है। क्योंकि तुम अब दुल्हन नहीं रही। और तब तुम सोचते हो, “ओह, यह आदमी मूढ़ हो गया है,” “यह औरत ढीठ हो गई है,” तब तुम दूसरी स्त्री के पास जाते हो, दूसरे पुरुष के पास। ऐसा चलता रहता है। फिर तुम बच्चों के पास जाते हो लोगों की मासूमियत खराब करते हो। लेकिन अगर आप स्वीकार करते हैं तो, ठीक से विकसित होते हैं, सहज योगियों की तरह परिपक्व होते हैं, पिता और माता के रूप में, प्रतिष्ठित लोगों के रूप में।
केवल यह पति या पत्नी के रिश्ते ही प्यार का स्रोत नहीं है, ऐसे कई रिश्ते हैं, जो और भी बड़े स्रोत हैं। लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस स्थिति पर हैं। जब तुम एक छोटी सी नदी होते हो, तब ठीक है; लेकिन अब तुम सागर हो गए हो, तो सागर बन जाओ। जब तुम समुद्र बन जाते हो, तो समुद्र बन जाओ। जब तुम सागर बन जाते हो तो तुम सागर बन जाते हो। एक समुद्र एक छोटी, छोटी-मोटी सी शुरुआत की तरह नहीं रह सकता, है ना? उसी तरह सभी को पता होना चाहिए कि उन्हें इस रिश्ते से विकसित हो बाहर निकलना चाहिए और हर समय उस पति-पत्नी के लिए लालायित नहीं रहना चाहिए। जैसे पैंतालीस साल की उम्र पर भी वे अभी भी अपने पतियों का पता लगा रही हैं! क्या वे पागल हैं? यह अब हमारे सहज योग में रुक जाना चाहिए। उन सभी को जो एक निश्चित उम्र से आगे निकल गए हैं, मुझे विवाह के बारे में परेशान करना बंद कर देना चाहिए-मां बनना चाहिए। बहुत सारे बच्चों की देखभाल की जानी है, हमारे पास नर्सरी होगी, बेहतर होगा कि वहां रहें। यह क्या है, सहचर क्या है? साहचर्य बच्चों के साथ, पोते के साथ, परपोते के साथ है। यही बात है जिसे पुरुषों और महिलाओं दोनों को समझना होगा,।

पुरुष भी ऐसे ही होते हैं। पुरुष भी कोशिश करते हैं कि कभी पिता ना बने। यदि आप पूर्णतया पिता हैं, तो आपके पास विवाह के ऐसे विचार नहीं होते हैं – इसे भूल जाइए! अगर यह एक महिला के साथ काम नहीं करता है, तो इसे भूल जाओ! उसके बाद भूल जाओ। कोई ज़रुरत नहीं है। पहले हीआपने इसे पर्याप्त पाया है।

तो इस तरह की बात बिल्कुल भी जरूरी नहीं है, और इसने ऐसे समाज में काम किया है जो सहजयोगी समाज नहीं है। तो यह आप में काम करना चाहिए। तो सामाजिक तौर पर भारतीय काफी अच्छे हैं, लेकिन वे अर्थशास्त्र और राजनीति में बुरे हैं। उनकी राजनीति का कभी पालन न करें – भयानक! भयानक! मेरा मतलब है, मैं भारतीय राजनीति से बदतर राजनीति के बारे में सोच भी नही सकती। यह सबसे खराब है। अगर आप इसे सुनेंगे तो आपको पता नहीं चलेगा कि रोना है या हंसना है! ऐसे बेवकूफ हैं! सारे गधे राजनीति में चले गए हैं! बिल्कुल गधे! उससे भी बुरा। वे गधों की तरह रेंकते हैं, वे गधों की तरह व्यवहार करते हैं, वे एक दूसरे को लात मारते हैं, वे हर तरह की हरकतें करते हैं। आप कल्पना कर सकते हैं? यह बहुत भयावह है। मेरा मतलब है, अगर आप मजाक करना चाहते हैं तो आप इसे मजाक के नजरिए से देख सकते हैं: गधों का व्यवहार, बिल्कुल, जैसे कि वे हमारे महान देश के प्रभारी हैं। तो उनमें से ज्यादातर गधे हैं। मैं ऐसे कई लोगों से नहीं मिली जो समझदार हों। और जो समझदार हैं वे भी गधा बनना चाहते हैं। क्या करें? यही उनकी सबसे बड़ी इच्छा है! कल्पना कीजिए कि एक संत गधा बनना चाहता हो!

तो आइए जानें कि जो भी हमारी अच्छी गुणवत्ता हैं वही हमारे अच्छे अंक हैं जिन्हें हमें खोना नहीं चाहिए। हमारे जो भी बुरे गुण हैं, हमें उन्हें सुधारना चाहिए। यह स्वयं के प्रति एक बहुत ही संतुलित दृष्टिकोण है। क्योंकि हम लाभार्थी हैं। अन्य किसी को कुछ नहीं मिलने वाला। और सहजयोगियों को इसके बारे में स्वार्थी होना होगा। हम लाभार्थी हैं। अगर हम हासिल करते हैं, तो पूरे शरीर को लाभ होता है; संपूर्ण सहज योग लाभांवित होता है।

तो यही मैं आपको आपके सामाजिक जीवन के बारे में बता रही हूं जो बहुत महत्वपूर्ण है, और आपके अहंकार के बारे में। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एक बार जब आप सहस्रार में होते हैं तो आप मेरा दिमाग बन जाते हैं, आप वास्तव में मेरा दिमाग बन जाते हैं। और इसलिए आपको बहुत सावधान रहना होगा क्योंकि आप अपने परिवार, अपने बच्चों, अपने घर के बारे में नहीं सोच रहे हैं। आप मेलबर्न आश्रम या सिडनी आश्रम या ऑस्ट्रेलिया के बारे में नहीं सोच रहे हैं, बल्कि आप पूरी दुनिया और पूरे ब्रह्मांड के बारे में सोच रहे हैं, और इसकी बेहतरी के बारे में सोच रहे हैं। जब आप उस स्थिति में उन्नत हो जाते हैं तो आप वास्तव में मेरे मस्तिष्क के अंग-प्रत्यंग बन जाते हैं, जिसका संबंध बहुत व्यापक दृष्टि, उच्च चीजों से होता है। यह निचले स्तरों पर भी काम करता है, इसके बारे में यही कुछ अच्छा है लेकिन यह आपके व्यक्तिगत स्तरों पर काम कर सकता है। मैं आपकी व्यक्तिगत समस्याओं पर, आपके व्यक्तिगत सुझावों पर, आप जो कुछ भी कहते हैं, उस पर ध्यान देती हूं, लेकिन प्रकाश पूरे ब्रह्मांड के लिए है। तो हम सार्वभौमिक धर्म के दायरे में प्रवेश करते हैं, जिसे हमें जाग्रत करना है, जिसे हमें कार्यांवित करना है।

जब तक आप उस अवस्था को प्राप्त नहीं कर लेते, तब तक आपको पूर्ण सहजयोगी नहीं कहा जाएगा। तो, इसे प्राप्त करने के लिए आपको कड़ी मेहनत करनी होगी।

या हम कह सकते हैं: अब तुम सहजयोगी हो, तुम महायोगी बनोगे। तो हमें उस महायोग की अवस्था को प्राप्त करना है। इस से वहां तक पहुंचना यह बहुत आसान है, काम करता है। कल्पना कीजिए कि चार साल पहले मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं आप में से बहुतों को यहां अपने बच्चों के रूप में स्थापित कर पाऊंगी और आज ऐसा ही हुआ है। यह इतनी बड़ी बात है कि चार वर्षों में हम इतने सुंदर परिणाम प्राप्त करने में सफल रहे हैं। और अगला साल और भी बड़ा होगा। जिस तरह के लोग थे मैं उसे देख सकती हूं।

तो, सहज योग में यह समझना होगा कि माँ जो कहती है उसका पालन करना ठीक है। लेकिन कुछ लोगों को इसे इस तरह लेने की बुरी आदत होती है कि, “माँ के लिए करो। मां के लिए।” वह व्यक्ति कौन है? किसी को ऐसा क्यों कहना चाहिए, “माँ के लिए करो”? या “माँ ऐसा कहती है!” नहीं! जब आप आत्मा होते हैं तो आप समझते हैं कि माता क्या कहती है। इसलिए अपनी आत्मा को समझने की कोशिश करें: यह सबसे अच्छा तरीका है जिससे आप इसे कार्यांवित कर सकते हैं और आप अच्छे हो सकते हैं।

मैं चाहती हूं कि हमारे सभी बच्चे उस ऊंचाई से आगे बढ़ें। उन्हें बेहतर मानकों के साथ शुरू करने दें, बेहतर स्तरों से, चुंकि हमने निचले स्तरों से शुरुआत की थी, हमें समस्याएं थीं। लेकिन हमारे बच्चों को उच्च स्तर से शुरू करने दें। और मेलबर्न वह जगह है जिसे हमारे बच्चों के उत्थान के लिए मैंने चुना है।

इसलिए मुझे उम्मीद है कि महिलाएं अपनी भूमिकाएं निभाएंगी, पुरुष अपनी भूमिकाएं निभाएंगे और यह यहां बनी एक अच्छी परिवार व्यवस्था, एक अच्छा समाज निर्मित होगा और यह अच्छा समाज होगा।

यह क्या बात है?इसे बंद कर दें तो।

मैं जानता हूँ! (तालियाँ)

मैं दीप को अच्छी तरह जानती हूं। मुझे पता है कि वे कैसे कार्य करते हैं। विष्णुमाया। यह विष्णुमाया है। हमने विष्णुमाया का दोहन किया है। हमें प्रकाश कहाँ से मिला? विष्णुमाया। कहाँ छिपा है?

विष्णुमाया वह है जिसकी हमें आज आवश्यकता है, और इसे सूक्ष्म रूप से समझना कि विष्णुमाया कैसे आती है। अब देखें कितना सहज! यह बात वहाँ आई ताकि मैं विष्णुमाया पर बोल सकती थी। क्योंकि विषय को विष्णुमाया पर शिफ्ट करना आसान नहीं है! (हँसी)

देखना! आपको नाटक देखना चाहिए। आपको नाटक देखना चाहिए।

अब यह विष्णुमाया, कैसे आती है? यह कैसे कार्य करती है? मेरे माध्यम से, हाँ। तो कहॉ? कैसे, क्या होता है? यह कहाँ से आता है? जलविद्युत! हाइड्रोइलेक्ट्रिक कैसे काम करता है? पानी में! यह पानी में है, गुरु तत्व में। लेकिन जब? जब यह नीचे आता है! जब गुरु तत्व आपके पास आ गया है। उस स्तर पर विष्णुमाया कार्य करती है, जो मुक्त करती है और कार्य करती है। किसलिए? प्रकाशित करने के लिए। जो स्थूल में होता है वह सूक्ष्म में होता है। तो अवतार लेना ही पड़ता है। तो गुरु तत्व को अवतार लेना पड़ता है; इस धरती पर आने के लिए। तो, विष्णुमाया कार्य करती है और लोगों को प्रबुद्ध करती है।

और यही है। और इसी तरह पूरी चीज़ चलती है।

अब आप देख चुके हैं कि कैसे मैं विषय को अचानक उस और बदल सकी! और आपने इसे महसूस नहीं किया। लेकिन मैं चाहती थी कि आप देखें कि माता कैसे विषयों को बदलती हैं, क्योंकि कुछ घटनाएं होती हैं, कहीं कुछ होता है, जो मुझे पता है, और यह बदल जाता है। और ऐसा लगता है जैसे यह एक सहज, वही विषय चल रहा लगता है।

एक और बात मुझे आपको बतानी है कि आप सभी सहज योग को पुरा अच्छी तरह से जानते होंगे। कुंडलिनी के बारे में वास्तव में बहुत कम लोग जानते हैं, वास्तव में वायब्रेशन के बारे में जानते हैं। वे नहीं जानते कि शून्य कहाँ है – वयस्क सहजयोगियों के लिए भी एक नियमित अभ्यास की कक्षा होना चाहिए – पैरों में भवसागर का स्थान कहाँ है, पैरों पर चक्र कहाँ हैं। जब मैं उन्हें मेरे पैर रगड़ने के लिए कहती हूं तो वे नहीं जानते कि ये कहां है।
आप अशिक्षित हो सकते हैं, कोई बात नहीं, लेकिन सहज योग में आपको शिक्षित होना चाहिए। आपको सहज योग की पूरी शिक्षा लेनी चाहिए। आपको पता होना चाहिए कि यह बीमारी कहां से आ रही है, इसका इलाज कैसे किया जाता है। आप में से प्रत्येक को इसमें शिक्षित होना चाहिए।

तो जब आपकी ध्यान कक्षा भी हो तो सहज योग के बारे में खुद को शिक्षित करने के लिए आपके पास एक कक्षा होनी चाहिए – क्या करना है।

अब एक किताब है, बेशक मैंने देखा, यह एक अच्छी किताब है जो उन्होंने बच्चों के बारे में लिखी है, लेकिन कोई सहजता नहीं है। तो मुझे इस पर काम करना होगा। लेकिन यह सिर्फ किताबें ही नहीं बल्कि मेरे टेप हैं।

जब आप मेरे टेप को सुन रहे हों, तो उन बातों को नोट कर लें जो माताजी ने कही हैं, और खुद देखें। तो सहज योग में शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है, अन्यथा आपकी बुद्धि समाप्त हो जाएगी। आपके पास सहज योग की पूरी शिक्षा होनी चाहिए। केवल आत्म साक्षात्कार देना ही काम नहीं है। आपके पास शिक्षा होना चाहिए, ताकि दूसरों को पता होना चाहिए कि आप जानकार हैं।

जितनी शिक्षा तुमने ली है, उतनी पहले किसी को नहीं मिली, किसी संत को नहीं मिली। तो अब पूरा फायदा उठाएं। आपकी उम्र जो भी हो, शेक्षणिक योग्यता हो सकती है, कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन आप सभी को पता होना चाहिए कि सहज योग क्या है, इसका क्या अर्थ है, यह कैसे काम करता है। स्वयं प्रश्न पूछें और उत्तर खोजें।

आप सब अभी भी सहज योग के विद्यार्थी हैं – यह आपको अवश्य पता होना चाहिए। आप अभी भी सहज योग के छात्र हैं और आपको इसमें महारत हासिल करनी चाहिए, आपको इसे जानना चाहिए, इसके हर शब्द को जानना चाहिए। केवल सहज योग का आनंद लेने की बात नहीं है, आपको ज्ञान भी होना चाहिए। जैसे, यदि आप किसी के द्वारा पकाए गए केक का आनंद लेते हैं, तो आपको यह भी पता होना चाहिए कि इसे कैसे पकाया जाता है क्योंकि तब आप दूसरों के लिए पका सकते हैं। लेकिन अगर आप नहीं जानते कि खाना कैसे बनाना है तो लोग आप पर विश्वास नहीं करेंगे। मैंने यही देखा है।

तब मैंने देखा है कि कुछ सहजयोगी हर समय काम करते हैं, वे सक्रिय हैं क्योंकि वे पहले भी सक्रिय रहे हैं। लेकिन कुछ सुस्त हैं। आप देख सकते हैं कि दो भारतीय लोगों में भी आप वही अंतर पाएंगे, हालांकि वे यहां हैं या वे वहां हो सकते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। सभी को एक ही तरह का उत्साह और गतिशीलता पैदा करने की कोशिश करनी चाहिए: एक व्यक्ति नहीं। अगर एक व्यक्ति ऐसा करता है, तो इसका कोई फायदा नहीं है। कभी-कभी ऐसा एक व्यक्ति बहुत हावी भी हो सकता है। सभी को काम करना चाहिए, पूरे शरीर को काम करना चाहिए। अगर हम ऐसी बात विकसित कर सकते हैं, तो यह पूर्ण विकास, उत्थान में मदद करेगा। ठीक है?

तो आज मेरे जन्मदिन के दिन, मैं आपको बहुत आशीर्वाद देना चाहती हूं, लेकिन हर जन्मदिन मेरी उम्र कम कर रहा है, आपको यह पता होना चाहिए, और इसलिए आपको इसे संभालने के लिए अभी विकसित होना चाहिए, यह महत्वपूर्ण है। आपका विकसित होना बहुत जरूरी है। मेरी यह तथाकथित उम्र, हालांकि यह दिखाई नहीं दे रही है लेकिन घट रही है, आपको यह पता होना चाहिए। और इसलिए अब आपको अपनी गतिविधियों को तेज करना होगा, इसे प्राप्त करें, इसे कार्यंवित करें। जब दूसरे लोगआयें, तो उनसे अच्छी तरह बात करें, उन्हें आनंद दें, उन्हें सिरदर्द न दें। उन्हें प्रसन्नता दें, उनकी देखभाल करें, उन पर दयालू हों। तब यह उससे आकर्षक होने वाला है, तुरंत कोई कहता है,”तुम एक भूत हो तुम बाहर निकलो!”
जब वे सहज योग में होते हैं, जब वे वहां होंगे, तो मैं उन्हें विदा कर दूंगी। अभी भी हैं, मुझे पता है कि उनमें से कुछ अभी भी यहाँ हैं। हमें उन्हें बताना होगा कि, “आपको एक समस्या है, बेहतर होगा कि आप निकल जाएं।” ठीक है, उन्हें कुछ देर के लिए आश्रम से बाहर निकलना होगा और फिर वापस आना होगा। ऐसा ही होना चाहिए, अन्यथा उन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है। और ऐसे लोगों को यह सहर्ष स्वीकार करना चाहिए ताकि वे ठीक हों, उन्हें बदलना चाहिए, उनके अहंकार के कारण उनके साथ जो कुछ भी है उसी को जारी रखने से बेहतर बन जाना चाहिए।

इसलिए अपने स्व के साथ सहयोग करने का प्रयास करें क्योंकि वह बेहतर, और बेहतर और बेहतर बनना चाहता है। तो वे सभी लोग जिनसे मैं पूछ रही हूँ, मैं वारेन को बता दूँगी, जिन लोगों को मैं ठीक नहीं पाती, उन्हें आश्रम से बाहर निकल जाना चाहिए! आश्रम कोई ऐसी जगह नहीं है जहां हर तरह के लोग रहें। यहाँ एक बिंदु तक उन्हे केवल शुद्ध होना चाहिए। उनके पास कुछ न्यूनतम मानक स्तर होने चाहिए। यदि उनके पास वह मानक स्तर नहीं है, तो वे बाहर हो जाते हैं। यहां तक ​​कि अगर कोई महिला दबंग है, या कोई एक पुरुष जो एक महिला की तरह है, उसे बाहर निकलना होगा। आपको सामान्य लोग होना चाहिये, अन्यथा जो दुसरे लोग आते हैं और वे एक आदमी को यहाँ गर्दन से कटे हुए मुर्गे की तरह खड़े देखते हैं, आप देखिये, वे प्रभावित नहीं होते हैं! (हंसते हुए) मैं आपको बताती हूँ! एक दुखी मसीह की तरह आप देख रहे हैं जैसा कि मैंने आपको दिखाया है, वहां खड़े होकर वैसे ही खड़े हैं। मुझे नहीं पता कि इससे कौन प्रभावित होता है? आपके पास कोई व्यक्ति ऐसा होना चाहिए जैसे आपके पास सिस्टिन चैपल में क्राइस्ट है, एक (अश्रव्य) की तरह खड़ा है कि पुरुषों को कैसा होना चाहिए, लेकिन गरिमामय, सम्मानजनक, दयालु, राजसी ठीक है।

और महिलाओं को बहुत प्यारी और भली होनी चाहिए। यह एक बहुत, बहुत लंबा और एक महान लाभांश देता है। बहुत, बहुत, लंबा! आप नहीं जानते कि इसने मुझे कितना लाभ का भुगतान किया है। यह आज मेरे बहुत काम आ रहा है। जब मैं सहज योग नही कर रही थी, मैं अपने स्वभाव से लोगों के प्रति दयालु रही हूं, और वही है जो कुछ भी कामआया है। एक उदाहरण मैं आपको देती हूं: लंदन में एक शख्सआये, उनका काम पुणे के आयुक्त का है, वह अब पुणे का आयुक्त है। वह हमसे मिलने आये थे, हमारे पास मेरे पति के कार्यालय की बैठक थी या कुछ और। सीपी ने कहा, “मैं उन्हें रात के खाने के लिए बुलाऊंगा।” मैंने कहा, “ठीक है।” रात का खाना मैंने घर पर बनाया था; वे लगभग पच्चीस लोग थे जो भोजन करने आए थे। उन्होंने रात का खाना खा लिया, मैंने उनकी देखभाल जरूर की होगी, चाहे वह जैसे भी हो। इसलिए जब मैं पुणे गयी, तो मेहरोत्रा ​​ने मुझसे कहा कि इस आयुक्त को बहुत परवाह है कि वह अध्यक्ष या चेयरमेंन या स्वागत समिति के रूप में आ जाए। उसे मेरा स्वागत अवश्य करना है। मैंने कहा, “मुझे याद नहीं है कि यह सज्जन कौन हैं? मुझे इसी नाम का कोई अन्य एक व्यक्ति ध्यान में है।”

उसने कहा, “नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, यह कोई अन्य है।” अब यह उन लोगों में से एक है जो डिनर परआया था और उसने मेरी बहुत प्रशंसा की! मैं हैरान थी कि उसने यह सब कैसे देखा। उन्होंने कहा कि, “यह महिला जिसका पति जीवन में इतना ऊंचा है, वह बहुत विनम्र है। वह बहुत दयालु है, इतनी ममतामयी है।” और जब वह अपने घर गया और अपनी पत्नी से कहा, “कि मैंने पहले कभी ऐसी महिला नहीं देखी, इतनी आदर्श महिला।” लेकिन मैंने ऐसा क्या किया मुझे नहीं पता। मैंने अच्छी तरह से पकाया होगा, बेशक मैं करती हूँ! (तालियाँ) लेकिन मैंने उसकी अच्छी तरह से देखभाल की होगी, मैं उन पर, उन सभी के प्रति दयालु रही हुंगी। मैं ने खुद ही कुछ न खाया होगा, उनकी देखभाल की होगी; कुछ किया होगा, मुझे याद नहीं कि मैंने क्या किया था। लेकिन मैं अपने स्वभाव से आपको बता रही हूं। और ऐसा यह केवल आज नहीं है लेकिन मैंने देखा है कि उनमें से बहुत से लोग इतने काम आते हैं, केवल मेरे इस स्वभाव के कारण; मेरे इस स्वभाव के कारण ही।

आप यूके में हमारे उच्चायुक्त को जानते हैं, दोनों उच्चायुक्त पहले और दूसरे उच्चायुक्त, बी.के.नेहरू, और दूसरे, मेरे लिए उनके मन में इतना बड़ा सम्मान था, मेरे लिए सम्मान, आप कल्पना नहीं कर सकते।

क्योंकि आपको दयालु और विचारशील और अच्छा होना है। जिस प्रकार तुम यहाँ मेरी देखभाल करते हो, तो मैं उनकी देखभाल करती थी। और इस तरह! उनके पास ऐसे इंप्रेशन हैं। मैं आपको बताती हुं,अपने पति के सभी दोस्तों और अन्य सभी की मेरे प्रति ऐसी भावना और सम्मान है। हम किसी ऐसे व्यक्ति को मिलने गए जो कानून का मुखिया है, जो भारत में इंटेलिजेंस का प्रमुख है; उसने हमें एक पुर्ण शाही बर्ताव पेश किया! सीमा शुल्क कलेक्टर को सूचना दी गई कि मां के बच्चे आ रहे हैं, वह खुद एयरपोर्ट आए थे. क्या आप जानते हैं कि? वह वहाँ बैठे थे, मुझे नहीं पता क्यों शायद वह यह सुनिश्चित करने के लिए आया था कि तुम सब ठीक से बाहर हो। उनके प्रति सिर्फ मेरा यह निजी जीवन बर्ताव है वरना किसी की पत्नी की परवाह किसे है? मेरे पति के बाद कितने ही आए, किसी ने उनकी पत्नियों की परवाह नहीं की! कहीं भी! मैं इस बार अपने पति के साथ चीन जाने के लिए आई थी और उनके एजेंट जो जापान और अन्य जगहों पर पदस्थ थे, होनोलूलू और सभी जगह, वे सभी मुझसे मिलने आए, अन्यथा जब वह आते है तो कोई भी उन्हे मिलने नहीं आता है। उन्होने कहा, “अब, तुम आई हो तो, वे मुझे मिलने आए हैं!” क्या आप इस बात पर विश्वास कर सकते हैं? उनके लिए यह सिर्फ एक महिला होने के अलावा और कुछ नहीं है। यह इतनी शक्तिशाली चीज है। यह इतनी शक्तिशाली चीज है।

और महिलाओं को पता होना चाहिए कि कैसे खाना बनाना है, यह महत्वपूर्ण है। अगर वे खाना बनाना नहीं जानती हैं तो वे महिलाएं नहीं हैं, मुझे नहीं लगता कि वे महिलाएं हैं। उन सभी को ज्ञान होना चाहिए कि कैसे खाना बनाना है। आपको खाना बनाना सीखना चाहिए और हर कोई इसे सीख सकता है, यह बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसा हई कि, एक औरत की छुपी हुई ताकत उसके खाना बनाने में होती है। आप देखिए हमारे पुरूष और कहीं नहीं जा सकते क्योंकि हम इतना अच्छा खाना बनाते हैं कि उन्हें घर वापस आना पड़ता है। उन्हें खाना याद है।तालीयां)
तो यह शक्ति है जोआपके पास है।

आज हम एक बहुत छोटी पूजा करने जा रहे हैं क्योंकि आज मेरा जन्मदिन है और इसलिए जन्मदिन पर पूजा ऐसी होनी चाहिए कि यहअनुष्ठान मय सेअधिक गहन, अधिक हार्दिक, अधिक आनंदमय हो। अधिक अनुष्ठान करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हम अपनी माँ का जन्मदिन मनाने के लिए एक खुशी के मूड में हैं। हम उस अवस्था में पहले से ही हैं। आपके उस अवस्था में पहुंचने के लिए जो कुछ भी आवश्यक है, उसकीअब आवश्यक्ता नहीं है क्योंकि आप उसी आनंदमय मूड में हैं, ठीक है?

तो, केवल एक चीज – मैंने उनसे कहा है, एक बहुत ही छोटी पूजा, – आज की जानी है; एक जन्मदिन है। एक विशाल, बड़ी पूजा करने की आवश्यकता नहीं है, सभी देवताओं को बाहर लाने के लिए जो कुछ भी आवश्यक है, वे पहले से ही हैं, ऊपर हैं। जरा देखिए वह चैतन्य जो वे उत्सर्जित कर रहे हैं! वे बहुत खुश हैं कि आप मेरा जन्मदिन मना रहे हैं।

तो हर पूजा में हमें क्या करना है कि उन्हें जगाना है, उन्हें आप पर कृपा करने के लिए कहना है, यह, वह। हालाँकि वे मुझमें जागृत हैं, आप चाहते हैं कि वे हों। लेकिन वे सभी अब आप में जाग गए हैं, हमें कोई बड़ी पूजा करने की जरूरत नहीं है। बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। और यही मैंने मोदी से कहा है कि आप बहुत, बहुत छोटी पूजा करें। और एक बहुत ही छोटी पूजा होना ही ठीक होगा।

तो आज की बात एक पूजा की तरह थी। याद रखें कि यह आपके लिए तब है जब आप सहजयोगी नहीं थे। आज यह आपके लिए नहीं है। तो आप दोषी महसूस नहीं करेंगे! (हँसी)

पहले याद रखो कि तुम सहजयोगी हो, तुम मेरे बच्चे हो और मैं तुमसे बहुत, बहुत, बहुत प्यार करती हूं। इसलिए कृपया खुद पर भरोसा रखें, खुद पर पूरा भरोसा रखें। ठीक है? वह सबसे बड़ी चीज है जो आप आज मुझे उपहार के रूप में दे सकते हैं।

परमात्मा आपको आशिर्वादित करे!

तो इसके लिए आपको पांच मिनट तक मेरे पैर धोने होंगे और करीब दस मिनट तक मेरे हाथ धोने होंगे, बस इतना ही आसान है। अब हमें उसके लिए ज्यादा लोगों की जरूरत नहीं है, बस उस चीज को यहां रख दें, वो एक, बस। ठीक है। अब इसे हटा दें।जन्मदिन पूजा। मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया), 17 मार्च 1985।