Devi Puja (भारत)
देवी पूजा धर्मशाला, ३०.३.१९८५ आज के शुभ अवसर पर यहाँ आए हैं। आज देवी का सप्तमी का दिन हैं। सप्तमी के दिन देवी ने अनेक राक्षसों को मारा, अनेक दुष्टों का नाश किया, विध्वंस कर डाला। क्योंकि संत -साधु जो यहाँ पर बैठे हुए तपस्या में संलग्न हैं उनको ये लोग सताते थे। हम लोग सोचते हैं कि माँ ये क्यों, क्यों इन्होंने इतनी तपस्या की। इनको क्या जरूरत थी इतना तप करने की, इतनी तपस्या करने की। वजह ये कि तब मनुष्य का तपका बहुत नीचा था। लेकिन आँख बहुत उन्नत थी। वो सोचते थे कि हम इस शरीर से उस आत्मा को प्राप्त कर लें। इसलिए उन्होंने इतनी मेहनत की और इस स्थान में बैठ करके इतनी तपस्विता की। आज उन्हीं की कृपा से हम लोग आज इतने ऊँचे स्थान पर बैठे हुए हैं। उन्हीं की कृपा से हमने पाया। इसका मतलब ये नहीं कि हम लोग इस सहजयोग को समझ लें कि हमारे लिए एक बड़ी भारी देन हो गयी , कोई हमे बड़े महान लोग हैं जिनको कि भगवान ने वरण कर लिया, हम लोग चुने हुए मनुष्य हैं और इस तरह की बातें सोचने वाले लोगों को मैं बताती हूँ बड़ा धक्का बैठेगा। ये देखेंगे की जो लोग यहाँ स्वभाव से अत्यन्त सुन्दर हैं, वे सबसे पहले आकाश की ओर उठेंगे और बाकी सब यही धरातल पर बैठे रहेंगे। जितनी जड़ वस्तु है सब यहीं रह जाएगी। इसलिए सिर्फ आपका साक्षात्कार होना पूरी बात नहीं है। मैं यही बात अंग्रेजी में कह रही थी, वही Read More …