Going from Swaha to Swadha

Brompton Square House, London (England)

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                “स्वाहा से स्वधा पर जाना,” 

श्री माताजी का निवास, 48 ब्रॉम्प्टन स्क्वायर, लंदन (इंग्लैंड), 3 मार्च 1986।

यही आखिरी चीज़, मैंने, दिल्ली में अपने व्याख्यानों में इस्तेमाल की थी कि;  श्री कृष्ण ने कहा है कि मानव जागरूकता नीचे की ओर जाती है और मानव जागरूकता की जड़ें मस्तिष्क में हैं। और जब मनुष्य नीचे की ओर जाने लगते हैं तो वे परमात्मा के विपरीत दिशा में चले जाते हैं। इतना ही उन्होंने कहा है। उन्होंने इससे ज्यादा कुछ नहीं कहा है।

अब देखिए, ऐसा होता है कि, उस समय, आप भवसागर में पैदा हुए हैं। अब, जब मानव चेतना विकसित होने लगती है, भवसागर का सार स्वाहा है और उद्देश्य स्वधा है।

स्वाहा का अर्थ है उपभोग: सारे विष का क्षय, हर चीज का सेवन।

और स्वधा वह है अर्थात: स्व आत्मा है और धा का अर्थ है जो धारण करता है। तो आत्मा का धर्म जब आप में आता है, तो आप गुरु बन जाते हैं।

तो भवसागर में यह स्वाहा और स्वधा है। तो स्वाहा से आपको स्वाधा में जाना होगा।

यदि आप स्वधा अवस्था में आ जाते हैं तो आपके भीतर महालक्ष्मी जागृत हो जाती है और आप ऊपर उठने लगते हैं। तो इसे ‘उर्ध्वगति’ कहा जाता है: उत्थान की ओर जाना।

अवरोही पक्ष को ‘अधोगति’ कहा जाता है। अब अधोगति शुरू होती है क्योंकि नीचे जाना बहुत आसान है, सबसे पहले। दूसरी बात जब आप सीढ़ियों पर होते हैं, सबसे ऊपर, आप सीढ़ियों को बहुत अच्छे से देखते हैं, नीचे जाने के लिए अच्छी तरह सुसज्जित मंच के साथ , लेकिन आप ऊंचाई नहीं देखते हैं। तुम बस आसानी से नीचे आते हो।

तो आप जिस पहले चरण पर आते हैं, वह है स्वाधिष्ठान। लेकिन उससे पहले नाभी का चरण, जो स्वाहा है, उपभोग है: वह चेतना में कार्यरत होना शुरू कर देता है। तब आप उपभोग करना शुरू करते हैं: दूसरे देशों पर हमला करना, उन देशों को हस्तगत करना और उनके पास जाना और उन पर वर्चस्व करना और दूसरों को हासिल करना। तो जैसा कि आप कहते हैं साम्राज्यवाद, उस तरह की बात शुरू होती है। भगवान का शुक्र है कि कोलंबस उस तरफ चला गया! जैसा कि मैंने कई बार कहा है।

अब, जब आपने ऐसा कर लिया है, तो आप अपनी धरती मां को भी खोदना शुरू कर देते हैं और उसकी चीजों का उपभोग करना शुरू कर देते हैं और अपनी मशीनरी के माध्यम से और वह सब करना शुरू कर देते हैं।

फिर दूसरी बात यह है कि, जब आप थोड़ा नीचे जाते हैं, तो आप स्वाधिष्ठान में जाते हैं जो कि अन्तरिक्ष है, जिसे भूर्व कहा जाता है। अन्तरिक्ष का अर्थ है समस्त ब्रह्मांड, ब्रह्मांड। तो तुम सितारों के पास जाना शुरू करते हो; तुम उस पर जाना शुरू करते हो। मेरा मतलब है, यह किसी काम का नहीं है, अनावश्यक है। तुम्हें अपने भीतर जाना है। आपको और ऊपर जाना है। आपको उर्ध्वगति जाना है। लेकिन आप इन पर जाने लगते हैं और बहुत प्रसन्नता का अनुभव करते हैं, “ओह, हम चाँद पर जा रहे हैं!” तुम सूर्य पर जा रहे हो, अमुक जगह जा रहे हो… तुम इससे क्या प्राप्त करने वाले हो, ईश्वर ही जाने!

और जब ऐसा होता है तो उसके बाद आप मूलाधार में आ जाते हैं। चेतना को विकसित करना होगा| और एक बार तुम मूलाधार में आ जाते हो तो तुम बिलकुल भ्रष्ट होने लगते हो, या तुम विकृत हो जाते हो। आप सेक्स को लेकर तरह-तरह के अजीबो-गरीब सोच शुरू करते हैं। मेरा मतलब है, आप नहीं जानते कि सेक्स के साथ क्या करना है: इसे खाएं या इसे डंप करें या जो आपको पसंद है वह करें। और ऐसे हम बन जाते हैं। और एक अगला कदम आगे और तुम नरक में होते हो – सीधे!

तो इन सभी का इस तरह पतन होता है। मेरा मतलब है, अगर आप टेलीविजन या कुछ भी देखते हैं तो आप नहीं जानते कि ये लोग क्या कर रहे हैं! यह क्या है? बद से बदतर होते जा रहे है! बेवकूफ, मैं तुमसे कहती हूँ! मूर्खतापूर्ण ! जैसे पल्शाम अपने सचिव से शादी कर रहा है: यह सब बकवास, मूर्खतापूर्ण है। यह मूढ़ता इसी नीचे की तरफ गति के कारण आती है। तो तुम निम्नता की तरफ जाओ और नरक में जाओ और समाप्त हो।

अब जब मानव चेतना महालक्ष्मी की प्रक्रिया से गुजरे बिना भी ऊपर की ओर जाने की थोड़ी कोशिश करती है, तो वह हृदय में आती है जहां वह मन है – हृदय है। और फिर आप अपना दिल इस व्यक्ति को और दिल उस व्यक्ति को देना रोमांस वगैरह शुरू करते हैं। तो तुम इस तरह चलते हो और फिर नीचे आ जाते हो|

लेकिन, जब आप उत्थान को नीचे से शुरू करते हैं, तो पहला कदम जब आप शुरू करते हैं, तो आप उस ऊंचाई को देखते हैं जहाँ तक आपको उठना है। किसकी ऊंचाई ? अपनी अबोधिता की, आपकी मासूमियत की। और आप उस पर उत्थान करें। फिर ऊपर की ओर उन्नत होने पर आप अन्य चीजें देखते हैं। नीचे जाते समय आप दूसरी ही चीजें देखते हैं।

अब फिर, वहाँ से, आप भूर्व के दूसरे उच्च स्तर पर जाते हैं, यह सृष्टि है। तब आप रचनात्मक हो जाते हैं। आप सौंदर्य बोध को देखते हैं। इसलिए उनको सौंदर्य बोध नहीं हैं। मुझे आश्चर्य नहीं है! उनका सौंदर्यशास्त्र नीरस, निरर्थक, अजीब होता जा रहा है। बिल्कुल यह निरर्थक है। इसका किसी भी रचनात्मकता से संबंध नहीं है। मानव रचनात्मकता कम हो गई है। यह सब मशीनी रचनात्मकता है। आप प्लास्टिक में जाते हैं, यह, वह, और हम उस सब की सराहना करने लगते हैं जो आधुनिक है। आप किसी ऐसी चीज की सराहना नहीं कर सकते जो पहले हो चुकी है और जो बेहतर हो सकती है।

इसके बजाय आप किसी अति तुच्छ और अति भयावह को स्वीकार करने लग रहे हैं। भूर्व के कारण आप पृथ्वी तत्व में आ जाते हैं और आप भौतिकवादी होने लगते हैं; आप नाभी चक्र पर भौतिकवादी, धन-उन्मुख हो जाते हैं। बिल्कुल धन-उन्मुख, कोई धर्म नहीं, कुछ भी नहीं। कोई धर्म नहीं; क्योंकि स्वधा वहां नहीं है। लेकिन, ऊपर जाते समय आपको सौंदर्य बोध होने लगता है; आप सौंदर्य की दृष्टि से समृद्ध हो जाते हैं। चूँकि आप वस्तु के चैतन्य को महसूस करते हैं इसलिए आपको सौन्दर्यबोध होता है। किसी भी चीज़ को आप सराहते हैं।

चूँकि आपके पास चैतन्य है इसलिए आप इस घर की सराहना करते हैं। चैतन्य के अभाव में आप किसी ऐसी चीज़ को चाहते हैं, जिसे आप एक नीरस जगह कहते हैं, कुछ अजीब दिखने वाली, भद्दी, बेहूदा डिस्को जैसी जगह। मेरा मतलब है, यही इसकी मंजिल है: एक डिस्को जैसी जगह। कल्पना करें! इस घर की तुलना में एक डिस्को की कल्पना करो!

फिर तुम ऊपर जाते हो, तुम नाभी पर जाते हो। फिर नाभी बिंदु पर जो हो जाता है वह धर्म है। आप अपने गुणों का आनंद लेते हैं। आप इसका आनंद लें: सदाचारी होने का आनंद लें। और फिर तुम स्वधा बन जाते हो, और इस तरह वह गुरु बन जाता है।

तुम हृदय में जाते हो, तब तुम करुणामय हो जाते हो। यह फैलता है! यह प्रसारित होता है। जबकि नीचे की ओर गति आपको छोटा, घटिया, निम्न बनाती है, जब तक कि आप एक सेक्स पॉइंट नहीं बन जाते और फिर अंततः नरक में।

फिर यह आपके दिल का विस्तार करता है। जब यह आपके हृदय का विस्तार करता है तो आप करुणा और प्रेम और उदारता बन जाते हैं।

फिर जनः, जन: उच्च है। अब वही चेतना, मानव चेतना, जब वह मनमानी हो जाती है, तो वह राजनीतिक वक्ता बन जाती है, राजनीतिक यह, राजनीतिक वह; जन;, जनता के बीच जाना है।

जन: यहाँ विशुद्धि में है क्योंकि वह विराट है। तो आप उन चीजों में लिप्त हो जाते हैं जहां आपकी लोकप्रियता है। यह बहुत घटिया प्रकार है, इसमें कुछ भी गहनता नहीं है। जैसे श्रीमती थैचर अभी आ रही हैं। और अब वे उसे ‘थैचराईट’ कहेंगे, फिर ‘थैचरिज्म’ और तरह-तरह के विचार सामने आ रहे हैं। फिर एक अन्य यह ‘हीथ’ है! मेरा मतलब है,  केवल इस देश में ही नहीं बल्कि रीगन, यह, वह, वे सभी भयानक हैं!

तो ऐसा होता है। वह कुछ मुद्दों को हल करने की कोशिश कर रहा है। ऐसा नहीं किया जाना चाहिए; वैसा नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन कोई शांति नहीं है। शांति स्थापित करनी होगी। जो इस तरह से स्थापित नहीं हो सकती। इसलिए ऐसा भी कि, ऐसे लोग भी जो राजनीति से प्रेरित होते हैं, वे भी नीचे चले जाते हैं। विशुद्धि चक्र तक।

फिर यहाँ, जब आप उत्थान करते हैं, वे ऐसे लोग हैं जो कहते हैं, “ओह, हमें यह बलिदान करना चाहिए। हमें यह करना चाहिए और हमें बलिदानों के माध्यम से इसे हासिल करना चाहिए!” तपस, तपस वे करते हैं। जैसे युद्धों में जाना, ऐसा वैसा, वे भी गिर जाते हैं।

लेकिन यहाँ [आज्ञा में] तपस्या परमात्मा के लिए है।

और फिर हम सहस्रार पर आते हैं। सहस्रार सत्य है, सत्य है। आप सत्य का ज्ञान पाते हैं। आपको यहां सत्य जानना होगा, क्योंकि यही जड़ें हैं। और यही आपने पाया है। आपको सत्य मिल गया है, अब आपके साथ।

और इसीलिए यहाँ के लोगों की पतनोन्मुखता को समझा जा सकता है। आप जानते हैं, वे उन्हें रंग की समझ नहीं है। यहाँ तक की जैसे, उन्होंने मेरे बाथरूम के लिए भी कहा कि, (ऐसी बात है कि, वे बाथरूम के बारे में भी बहुत खास हैं) इसे: “सफेद होना चाहिए!” “यह हाथीदांत रंग का है।” अब हाथीदांत के रंग में क्या गलत है? यहां तक ​​कि, यह भी उनके पास होगा नहीं।

और अब वे चेहरे सफेद रंग से पोत रहे हैं, पीला दिखने की कोशिश कर रहे हैं। ज़रा कल्पना करें! मौत की तरह। जैसे, मौत की तरह चलना। उन्हें रंग पसंद नहीं हैं: उनके पास फूल कैसे होंगे? प्रकृति रंगों से भरी है। वे नहीं करते, उन्हें कोई रंग पसंद नहीं है। यहां तक ​​​​कि उन्हें पारदर्शी चीजें पसंद नहीं हैं, वे चाहते हैं कि यह सफेद रंग का हो, भयानक रूप से। वे वीभत्स दिखते हैं, है ना? और क्यों, ये लोग इसकी सराहना करते हैं, क्योंकि पतन शीलता है। कोई रंग नहीं, कुछ भी नहीं, बस नीरस। कोई डिजाइन नहीं। यह भयानक है। ऐसी भयानक चीजें हो रही हैं!

उसमें से आप सब बाहर आ गए हैं। इसके लिए मुझे आपको धन्यवाद देना चाहिए। जिस तरह से आप उस निचले स्तर के माहौल से उठे हैं। इतना निम्न-स्तर का माहौल: इसके बारे में सोचो। वे मर जाएंगे। जैसे हिप्पी आए, वे मर गए, वे समाप्त हो गए। दूसरे आएगा; वे मर जाएंगे। लेकिन जो उत्थान कर रहे हैं वे हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं।

मेरा मतलब है, कल्पना कीजिए, आप हिप्पी के बारे में सोचें, वे कहाँ होंगे? पूर्ण पूर्ण पतन, पूर्ण, समाप्त लोग! चीथड़े पहने हुए, यह, वह।

एक हॉन्ग कॉन्ग का बंदा है जो जींस बेच रहा है। तो मैंने कहा, “तुम्हारी जींस में क्या खासियत है?” उसने कहा, “देखिये, ये ऐसी कपड़े धोने की मशीन में धोए जाते हैं, जिसमें पत्थर होते हैं।” तो मैंने कहा, “फिर क्या होता है?” “तब ऐसा होता है कि ते थोड़ी पुरानी जैसी लगने लगती हैं, आप जानते हैं|” वे पत्थर डालते हैं और पत्थर से धुली हुई जीन्स बाजार में बिकती हैं। ऐसी मूर्खता, मैं आपको बताती हूँ! और वे सबसे महंगी जींस हैं! ऐसा पतन, ऐसा पतन।

आप अपने सिर के माध्यम से सहस्रार पर कब जा रहे हैं?

तो सहज योग में, यह कुंडलिनी के माध्यम से संभव है; कोई दूसरा रास्ता नहीं है। कृष्ण ने इसके बारे में नहीं कहा क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि अर्जुन समझेंगे या नहीं। लेकिन एक तरह से उन्होंने किया।

क्या आपको “प्रबुद्ध गीता” नामक अंग्रेज़ी पुस्तक मिली? यह अच्छा है।

सहज योगी: नहीं, मैंने नहीं देखा। क्या यह योगी (योगी महाजन) लिखित है?

श्री माताजी: हा. मैं तुम्हें दे दूँगी। हमने इसका विमोचन किया। मैं तुम्हें एक दूंगी। यह बहुत अच्छी निकली है, मैं आपको देती हूँ। ऊपर मेरे अपने कमरे में मेरे पास है।