Birthday Puja

कोलकाता (भारत)

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Shri Mahakali Puja Date 1st April 1986: Place Kolkata Type Puja

२१ मार्च से हमारा जन्मदिवस आप लोग मना रहे हैं और बम्बई में भी बड़ी जोर-शोर से चार दिन तक जन्म दिवस मनाया गया और इसके बाद दिल्ली में जनम दिवस मनाया गया और आज भी लग रहा है फिर आप लोग हमारा जन्म दिवस मनाते रहे। इस कदर सुंदर सजाया हुआ है इस मंडप को, फूलों से और विविध रंगों से सारी शोभा इतनी बढ़ाई हुई है कि शब्द रुक जाते हैं, कलाकारों को देख कर कि उन्होंने किस तरह से अपने हृदय से यहाँ यह प्रतिभावान चीज़ बनाई इतने थोड़ी समय में। आज विशेष स्वरूप ऐसा है कि अधिकतर इन दिनों में जब कि ईस्टर होता है मैं लंदन में रहती हूैँ और हर ईस्टर की पूजा लंदन में ही होती है। तो उन लोगों ने यह खबर की, कि माँ कोई बात नहीं आप कहीं भी रहें जहाँ भी आपकी पूजा होगी वहाँ हमें याद कर लीजिएगा और हम यहाँ ईस्टर की पूजा करेंगे उस दिन। इतने जल्दी में पूजा का सारा इन्तजाम हुआ और इतनी सुंदरता से, यह सब परमात्मा की असीम कृपा है जो उन्होंने ऐसी व्यवस्था करवा दी। लेकिन यहाँ एक बड़ा कार्य आज से आरंभ हो रहा है। आज तक मैंने अगुरुओं के विषय के बारे में बहुत कुछ कहा और बहुत खुले तरीके से मैंने इनके बारे में ये कितने दुष्ट हैं, कितने राक्षसी हैं और किस तरीके से ये सच्चे साधकों का रास्ता रोकते हैं और उनको बताया; गलतफहमी में डाल के उनको एकदम उल्टे रास्ते पर ड़ाल देते हैं और इसके लिए बहुत लोगों ने जताया कि ऐसी बात करना ठीक नहीं इससे गुरु लोग आप पर आक्रमण करेंगे और आपको सताएंगे लेकिन हुआ उसके बिलकुल उल्टा किसी ने भी हमें कचहरी नहीं दिखाई, ना ही किसी ने हमारे बारे में बात कही, एक-एक करके हर एक दुष्ट सामने आया और दुनिया ने जाना कि जो कुछ हमने इनके बारे में कहा था वह बिलकुल सत्य है, आज धीरे-धीरे ये मिट रहे हैं। लेकिन तांत्रिक अभी भी काफी अपना जोर बँधाये हुए हैं और आपके कलकत्ते में इसका मेरे अगुरु खयाल से मुख्य स्रोत है। यहाँ पर वह पनपते हैं और यहीं से सारी दुनिया में छा जाते हैं। आज ही एक साहब से मुलाकात हुई, उनसे इतने तान्त्रिकों पर बातचीत हुई। उन्होंने बताया कौन-कौन उनके आश्रय में आये और कौन- कौन महात्मा बन गये। मुझे लगा ये अभियान अब शुरू हो गया | ये तान्त्रिकों को एक-एक करके ठीक करना जरूरी नहीं है। सबको एक साथ ही गंगाजी में धो ड़ालना चाहिए। तभी इनकी तबियत ठीक होगी। आज यह महिषासुर सब दूर फैल गया है। इसको खत्म करने का ही अभियान शुरू होना चाहिए। ये एक बड़ी भारी आत्मिक क्रान्ति है जिससे सारे संसार का कल्याण होने वाला है। सारा संसार इस क्रान्ति से पुनीत हो जाएगा और आनन्द के सागर में परमात्मा के साम्राज्य में रहेगा। लेकिन उसके लिए सबको धीरज से कुछ न कुछ त्याग करना चाहिए और उसके लिए सबसे बड़ी चीज़ यह है कि हिम्मत रखनी चाहिए। हिम्मत से अगर काम लिया जाए तो कोई वह दिन दूर नहीं जब हमारा सारा संसार सुख से भरा हो जाएगा। किन्तु उसमें सबसे बड़ी अड़चन आती है। हमें जब तक कि सहजयोगी गहनता में उतरते नहीं, सहजयोगियों को चाहिए कि वे गहनता में उतरें। हर सहजयोगियों के लिए ये बड़ी जिम्मेदारी है कि उन्हें इस क्रान्ति में ऐसा कार्य करना चाहिए जो एक विशेष रूप धारण किए हो। अभी तक जो भी सहजयोगी मैं देखती हूँ उनमें यही बात होती है कि अभी हमारी यह पकड़ आ रही है, माँ, हमारे यह चक्र पकड़ रहे

हैं, हमारा यह हो रहा है, अभी हमारे अन्दर यह दोष है, ऐसा है, वैसा है। लेकिन जब आप देना शुरू करें। मगर हम जब दूसरों को देना शुरू करेंगे, जब दूसरों का उद्धार करना शुरू करेंगे तो अपने आप यह सब चीजें धीरे-धीरे कम होती जाएगी। चित्त अपना इधर ही रहना चाहिए कि हमने कितनों को दिया। कितनों को हमने पार कराया। कितनों को हमने सहजयोग में लाया है। जब तक हम इसे जोर से नहीं कर सकते तब तक सहजयोग का कार्य आगे नहीं बढ़ पाएगा और ये बढ़ना अत्यंत आवश्यक है। उसके लिए और भी बातें करनी चाहिए। जो कि हम लोग सोच रहे हैं कि एक साल के अन्दर घटित हो जाए उसमें से एक बात ऐसे सोच रहे हैं कि इस तरह का एक कोई आश्रम बना लें जहाँ पर सहजयोगी अलग-अलग जगह से आकर रहेंगे और उनको सहजयोग के मार्ग से पूर्ण, पूर्णतया परिचित किया जाएगा। इतना ही नहीं लेकिन उनकी जो कुण्डलिनी है उसकी जागृति भी पूर्णतया हो जाएगी और वे एक बड़े, भारी महान योगी के रूप में हमारे संसार में कार्यान्वित होंगे। इसकी व्यवस्था सोच रहे हैं और मेरे विचार से साल भर के अन्दर कोई न कोई ऐसी चीज़ बन जाएगी जहाँ पर आप लोग कम से कम एक महीना आकर रह सकते हैं। और वहाँ रह कर आप सहजयोग में पारंगत हो जाएं और एक निष्णात प्रवीण सहजयोगी बनकर इस सारे संसार में आप कार्य कर सकते हैं। पर सबसे पहले बड़ी बात यह है कि जो हमारे अन्दर एक तरह का अपने प्रति एक अविश्वास सा है जो डेफिडन्स है उससे हमें बाज़ आना चाहिए। हम आपसे बताते हैं यहाँ जो डॉ.वॉरेन है, ये जब सहजयोग में आए थे तो हमारे पास ज़्यादा से ज़्यादा एक-आठ दिन तक रहे। उसमें भी लड़ते झगड़ते रहे पूरे समय उनके पहले समझ नहीं आ रहा था किस तरह अपने को ठीक करें फिलहाल जो भी हो उसके बाद वो ठीक हो गये और वापस वे ऑस्ट्रेलिया चले गए और ऑस्ट्रेलिया जाने के बाद उन्होंने इतने लोगों को पार कर दिया। इतने लोगों को ठिकाने लगा दिया कि मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जिन्होंने गणपति भी क्या उसे जाना नहीं था । जिन्होंने किसी देवता को कभी जाना नहीं था। जिन्होंने कभी कुण्डलिनी के बारे में जाना नहीं था। वो आठ दिन के अन्दर इतने बढ़िया होकर और सारे ऑस्ट्रेलिया पर छा गये। तो यह सोचना कि हम इसे नहीं कर सकते हैं या कैसे करें ? इसमें यह उलझन है लोग क्या समझेंगे इस तरह की आप अगर आपने विचार धारणा रखी तो सहजयोग बढ़ नहीं सकता। परमात्मा आपके साथ में है, शक्ति आपके साथ में है। स्वयं आप योगी है और सब योगियों के ऊपर ये जिम्मेदारी है इस कार्य को पूरी तरह से करें। जब तक आप संगठित रूप से नहीं रहेंगे तब तक यह कार्य नहीं हो सकता। संगठित होना पड़ेगा। संगठित होने का मतलब यह है कि, आप एक ही शरीर के अंग-प्रत्यंग है। एक सहजयोगी को दूसरे सहजयोगी से कभी भी विलग समझना नहीं चाहिए। जैसे कि मैं देखती हूँ कि शुरुआत में सहजयोगी जो इन्सान सहजयोगी नहीं है उसकी ओर ज़्यादा मुड़ता है बजाय इसके कि जो सहजयोगी है हमारे दूसरे भाई-बहन जो सहजयोगी हैं, उनके आगे बाकी सब पराये हैं। कोई कुछ भी बात कहें उनके साथ हमको किसी तरह से भी एकमत नहीं होना क्योंकि वो आपको चक्कर में ड्राल देंगे और आपके अन्दर फूट पड़ जाएगी। | तो पहली तो बात यह होनी चाहिए कि जो इस आसुरी विद्या से अगर बचना है तो आपको यह समझ लेना चाहिए कि आप योगी जन हैं और आप परमात्मा के साम्राज्य में हैं। हर आसुरी विद्या का एक-एक एजेंट है। समझ लीजिए वह आपको खींचना चाहता है कि आप इस विद्या से हट जाएं और उनके विद्या में आ जाएं। और उनकी चालाकियाँ इतनी सुन्दर हैं कि आपकी समझ में में नहीं जाएंगे और कोई ग्रुप हम नहीं आएगी । इसलिय पहली चीज़ यह है कि हम सहजयोगी, सहजयोगी के विरोध 3 ৮

न बनाये और कहीं ग्रुप जरा सा भी बनने लग जाता है सहजयोग का तो मैं उसको तोड़ देती हूँ और ऐसा तोड़ा है। अब जैसे ग्रुप बन गये, दिल्ली वाले हो गए, फिर दिल्ली में कोई हो गए तो कोई करोल बाग के हो गए। तो कोई कहीं के हो गए। तो कोई बम्बई के हो गए। तो बम्बई वाले तो उनमें भी कोई नागपाड़ा के हो गये, तो कोई दादर के हो गए, तो कोई कहां के हो गए। अब करते-करते फिर आप ऐसी छोटी जगह पर आप पहुँच जाएंगे जहाँ आप सिर्फ अकेले बैठे रहेंगे और आप कहेंगे कि सहजयोगी कहाँ गायब हो गए। तो इसमें से कोई भी चीज़ का ग्रुप नहीं होना चाहिए। जब इन्सान में कैन्सर सैट होता है तब वह ग्रुप बना के रहता है। एक आदमी में अगर ‘डीएनए’ जिसे कहते हैं एक आदमी में अगर खराब हो जाए, एक सेल में अगर खराबी आ जाए एक ही सेल में अगर खराबी आ जाए तो वह दूसरे सेल पर जोर करेगा और दूसरा सेल तीसरे सेल पर जोर करेगा और ऐसा उनका एक गुट बनता जाएगा । वह चाहेगा हमारा जो एक ग्रुप है वह सब पर हावी हो जाए। जब वह सब पर हावी होने लगता है जैसे कि आप समझ लीजिए कि आपके नाक का सेल है वो अगर बढ़ने लगा तो उन्होंने एक ग्रुप बना लिया तो एक बड़ा सा यहाँ पर लम्पसा हो गया और उसने जाकर के आक्रमण किया आँख के ऊपर , फिर आँख को ढ़क लिया और वहाँ से गए कान को ढ़क लिया। इस तरह से कैन्सर जो होता है वह अपनी अपेक्षा दूसरों को नीचे समझता है। और एक ग्रुप बनाकर के उनके जो दूसरे लोग है जो कि सहजयोगी हैं उनको दबाता है। ऐसी बीमारी अगर सहजयोग में अगर फैल जाए तो उसका ठिकाना मैं खूब लगाती हूँ। चाहे मैं कहीं भी हूँ, मैं चाहे लंदन में रहूँ चाहे मैं अमेरिका में रहूँ चाहे कहीं भी रहँ उसका ठिकाना अपने आप हो जाता है | इसलिए किसी को भी कोई ग्रुपबाज़ी नहीं करनी चाहिए । किसी को भी यह नहीं सोचना चाहिए हम एक ग्रुप के हैं। अगर दस आदमी एक साथ रहते हैं और बार-बार एक ही साथ दस आदमी रहते हैं तो समझ लेना चाहिए कि ग्रुप बन रहा है। सहजयोगियों को कभी भी एक साथ दस आदमी हर समय नहीं रहना चाहिए। जब आज इनके साथ बैठे तो कल उनके साथ, तो कल इनके साथ। जैसे कि हमारे अन्दर रक्त की छोटी-छोटी पेशियाँ हैं जिनको हम सेल्स कहते हैं । वो अगर समझ लीजिए कि एक जगह बैठ गये तो दस सेल्स ने यह सोचा कि हम यहीं बैठ जाए तो उस आदमी की मृत्यु हो जाएगी । सहजयोग की मृत्यु हो जाएगी। इसलिए हम दस आदमी एक साथ क्योंकि हम एक ग्रुप के हैं, ये एक ग्रुप के हैं, वे एक ग्रुप के हैं, रक्ताभिसरण जिसे कहते हैं कि ब्लड का जो सरक्युलेशन है वह हमारे अन्दर खुले आम से होना चाहिए, तो कोई सा भी ग्रुप नहीं बनना चाहिए। जहाँ ग्रुप आपने देखा बन रहा है उस ग्रुप को छोड़कर दूसरे ग्रुप में चले जाए। उस ग्रुप को तोडिए। उसे कहना इस ग्रुप के साथ आ जाए और वह उस ग्रुप के साथ आ जाएगा। इस तरह से आप जब तक नहीं करेंगे तब तक आपकी कलेक्टिविटी में निगेटिविटी बनती जाएगी। जैसे कि मैं कहती हैँ कि आपने अगर मंथन करके मख्खन निकाला। मख्खन के कण चारों तरफ है मगर उसमें बड़ा सा एक मख्खन का ढ़ेला ड्रालना पड़ता है फिर उसके आस-पास सारे जो कण हैं वो जुड़ते जाते हैं। मगर चार, पाँच, छ: कण मिलकर अलग से अगर बैठ जाएं तो जिसने मथा है वह कहता है जाने दीजिए। बेकार ही है, यह मख्खन बेकार ही है। इसे छोड़ दीजिए। जो बड़ा है उसे उठा लीजिए। तो सबको मिल-मिल करके एक बड़ा सा मख्खन के ठेला स्वरूप बनना है। इसी तरह से आपको भी एक बड़ा सा ग्रुप बनना चाहिए। करते-करते फिर एक बड़े सागर में विलीन होना चाहिए। तो एक बूँद को अगर आपको सागर में विलीन करना है तो आप चार-पाँच बूँद बना के सिर्फ बबुला आप जानते है कि दो 4 १०

मिनट के लिए आते हैं और नष्ट हो जाते हैं। अपने आप ही प्रकृति से ही होते हैं। उसको कोई कुछ करने की जरूरत नहीं है। इसलिए कोई सा भी ग्रुप आपको बनाना नहीं है। सबके साथ एक जैसा मिलना – जुलना, सबको एक साथ जाना। सबसे एक साथ प्रेम रखना और सबको एक साथ समझने की कोशिश करनी है। एक दूसरों को किसी भी तरीके से क्रिटीसाइज़ (निंदा) कभी नहीं करना चाहिए। आप आपस में भाई – बहन नहीं हैं लेकिन आप मेरे शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं। अगर समझ लीजिए मेरी एक अंगुली ने दूसरी अंगुली को क्रिटीसाइज़ कर दिया तो क्या फायदा होगा? इससे तो नुकसान ही होने वाला है। इसलिए ठीक यही है कि मनुष्य को, इसलिए बहुत उचित बात है कि, हम लोगों को यह सोचना चाहिए कि अब हम मनुष्य नहीं हैं। हम अति मानव हैं और अति मानव की जो स्थिति है उसमें हमें सब दूर घूम-फिर कर के अपना चित्त परमात्मा पर रखना चाहिए। यह बड़ी भारी एक कठिनाई आ जाती है सहजयोग में। शुरुआत में कलेक्टिविटी, पता नहीं आदमी क्यों तोड़ देता है। यह भी एक आसुरी विद्या है । जहाँ कलेक्टिविटी टूट जाती है। अब जैसे हम कहे कि बम्बई में यह काम कम है। पर दिल्ली में अभी नहीं मगर | कलकत्ता में मुझे मालूम नहीं हाल। लेकिन मैं यही कहँगी कि ये बीमारियाँ फैलने मत दीजिए। आप सब लोग मेरे बेटे हैं और मेरी बेटियाँ हैं। आपस में कोई सा भी अगर आपमें मतभेद हो जाए तो उसमें कोई ऐसी बात नहीं लेकिन यह है कि आपस में आप कोई ग्रुपबाज़ी मत कीजिए | फिर एक ग्रुप बन गया फिर वह ग्रुप वाले कहेंगे हमारे आदमी को आप सामने कीजिए। वह ग्रुप कहेगा हमारे आदमी को सामने कीजिए और फिर दूसरा ग्रुप कहेगा हमारे आदमी को सामने कीजिए और उसका फिर असर क्या होगा? आप देखते हैं कि ऐसे लोग सहजयोग से पराङ्मुख हो जाते हैं, हट जाते हैं। उनका स्थान खत्म हो जाता है। जैसे गुरुओं को खत्म किया है। वैसे इस तरह के लोगों को भी खत्म किया जाता है। तो मैं नहीं करूं तो आपकी प्रकृति ही कर देती है। इसलिए आपको खास करके मुझे कहना है कि, कृपया आप लोग अपनी ओर चित्त दें और दूसरों की ओर प्रेम दें । दूसरों को प्रेम दीजिए और अपनी ओर चित्त रखें। अपनी ओर देखें। अपनी ओर देखिए और कहिए कि हम कैसे हैं? क्या हम ठीक हैं? क्या हमारे चक्र ठीक हैं? क्या हम में कोई दोष है? अगर आप सोचते हैं कि कोई समझता है तो उससे जाकर पूछिए कि, अगर कोई चक्र पकड़ रहा है तो बता दीजिए, हमारे समझ में नहीं आ रहा । जिस दिन आप इस चीज़ को अपना लेंगे कि हम माँ के अंग -प्रत्यंग में बैठे हैं आप समझ जाएंगे कि आपका कितना महत्त्व है। आप चाहे जैसे भी हैं हमने आपको स्वीकार कर लिया है। अब आपको भी हमें स्वीकार करना होगा और जानना होगा कि अब अत्यंत शुद्ध और पवित्र भाव से रहने से ही हमारी माँ को सुख और आनन्द मिल सकता है। आज की एक विशेष तिथि है, इस तिथि पर अभियान शुरू हो रहा है कि सारी दुनिया के जितने भी तांत्रिक हैं उनके पीछे मैं अब लगने वाली हूँ। और मैं चाहती हूँ कि आप भी सबके पीछे हाथ धो कर लगें । और जहाँ भी कोई तांत्रिक दिखाई दें तो उसके पास जाने वाले लोगों के लिए कुछ आप चाहे तो उसके लिए हैण्ड बिल्स वरगैरे छपवा कर वहाँ पर भेज दीजिए कि ये तांत्रिक हैं और आप तांत्रिक से भाग निकले । जो आदमी तांत्रिक के पास जाता है, उसके घर अगर तांत्रिक आ जाए तो सात पुश्तों तक वह पनप नहीं सकता। उसके बच्चे नहीं पनप सकते। सात पुश्तों तक उसके यहाँ हालत खराब होगी। बड़े बड़े नुकसान होंगे। उसका घर जल जाएगा और हो सकता है उसकी बीबी कहीं आत्महत्या कर ले , उसके घर में हमेशा तकलीफें, दु: ख और परेशानी बनी रहेगी। इसलिए यह जो अभियान है इसका आज दिन ऐसा है कि सब लोग मज़ाक में अप्रेल फूल का दिन कहते हैं। तो इनको बेवकूफ

बना-बना कर ही पटका जाएगा। उनको बेवकूफ बनाकर ही पटका जाएगा क्योंकि ये अपने को बहुत अकलमन्द समझते हैं। तो इनकी जो बेवकूफियाँ हैं उनको उनका पूर्णतया उद्घाटन करना आप लोगों का कार्य है। आप सबके से वाकई मैं अभिभूत हँ। इतना आप लोगों ने खर्च किया, इतनी शोभा बढ़ाई है, प्यार और दुलार और इस शोभा सो यही कहना है कि बहुत ज़्यादा खरर्चा करने की जरूरत नहीं है। आपकी माँ तो इतनी सीधी-साधी है। उसको कोई भी चीज़ की जरूरत नहीं। आप लोग जो भी हैं, जो कुछ भी हमें दे दें। वही बहुत हैं। हमें तो कुछ चाहिए भी नहीं । जो कुछ हमसे लेना है वह आप लोग ले लीजिए लेकिन अब आप लोगों के सन्तोष के लिए हम कहते हैं कि, ‘अच्छा भाई, अगर आप लोगों को साड़ी देना है तो दे दें। अब क्या करें?’ लेकिन वो भी क्या है चार साल पहले दी हुई साड़ियाँ अब भी ताले-चाबी में बन्द हैं वो तो हमारी समझ में आता है कि बाद में अगर कोई म्युझियम वगैरे बनेगा तो उसमें आप लोग लगा दीजिएगा। तो यह सब चीजें आपके शौक के लिए जो भी आप कहें मेरे पास कुछ धरोहर रखी हुई हैं और इसकी कोई जरूरत नहीं पर आपका प्रेम ऐसा है कि उसके आगे मैं बोल भी नहीं कुछ सकती और कुछ कह भी नहीं सकती। जो भी कुछ प्रेम से दीजिएगा चाहे वो शबरी के बेर हो और चाहे आप लोगों | की कीमती साड़ियाँ हो सब मेरे लिए मान्य है। तो अब हम लोगों का पूजा का समय हो गया है। आज जैसे मैंने कहा था जन्मदिवस की बात है बराबर बारह बजे मैंने मेरा भाषण शुरू किया और बराबर बारह बजे मेरा जन्म हुआ था इसलिए इतना समय लग गया फूलों में समय लग गया इसमें कोई घबराने की बात नहीं क्योंकि संजोग ऐसा है। बारह ही बजे आज का जन्म दिन मनाने का था। तो इस में सब चीज़ अपने समय पर ठीक-ठाक बैठती है। तो इसमें किसी को भी दोष नहीं मानना नहीं | चाहिए।