Shri Krishna Puja: The Six Enemies And False Enemies

Hostellerie am Schwarzsee, Plaffeien (Switzerland)

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श्री कृष्णा पुजा
श्वार्जसी (स्विट्जरलैंड), 23 अगस्त 1986।

श्री कृष्ण हमारे विशुद्धि चक्र में निवास करते हैं।

इस चक्र में वे श्रीकृष्ण के रूप में विराजमान हैं।

बाईं ओर, उनकी शक्ति, विष्णुमाया, उनकी बहन, निवास करती हैं। वहाँ वे गोपाल के रूप में निवास करते हैं, जैसे वे गोकुल में रहने वाले बालक के रूप में खेलते थे।

दाहिनी ओर वे द्वारिका में शासन करने वाले राजा श्री कृष्ण के रूप में निवास करते हैं।

ये हमारे विशुद्धि चक्र के तीन पहलू हैं।

जो लोग अपने दाहिने पक्ष का इस्तेमाल दूसरों पर हावी होने के लिए करते हैं, अपनी आवाज का इस्तेमाल लोगों को नीचा दिखाने के लिए करते हैं, अपना अधिकार दिखाने के लिए, लोगों पर चिल्लाते हैं, ये वही लोग हैं जो दाहिने पक्ष से प्रभावित होते हैं। जब दाहिना भाग पकड़ा जाता है, भौतिक पक्ष पर, आपको एक बहुत बड़ी समस्या होती है क्योंकि दायां हृदय अपने प्रवाह को ठीक से नहीं कर पाता है। परिणाम में आपको दमा और ऐसी ही सभी बीमारी कहते हैं, लेकिन विशेष रूप से जब दाहिना ह्रदय पिता की समस्या से प्रभावित होता है।

बाईं ओर विष्णुमाया है, बहन का रिश्ता है। जब बहन, जो आपका शुद्ध संबंध है, उसे बहन के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है, जब किसी व्यक्ति का महिलाओं के प्रति रवैया भोग और वासना का होता है, तो वह बायीं विशुद्धि विकसित करता है।

जब वह बायीं विशुद्धि की समस्या को बहुत दृढ़ता से विकसित करता है, और यदि उसके पास खराब आज्ञा है, या यदि उसकी आंखें घूम रही हैं, तो यह बायीं विशुद्धि बहुत परेशानी का कारण बनती है। बायीं विशुद्धि का एक कारण ऐसा भी हो सकता है, जैसा कि आप जानते हैं, अकारण चीजों के बारे में दोषी भाव रखने से।

ये सारी समस्याएं विशुद्धि से उत्पन्न होती हैं। लेकिन विशुद्धि चक्र की एक विशेषता है। जब मानव ने अपना सिर ऊपर उठाया, धरती माता से आकाश की ओर – आकाश या, ईथर श्रीकृष्ण का स्वभाव है – जब मानव ने अपना सिर आकाश की ओर, ईथर की ओर उठाया, तो यह विशुद्धि चक्र एक अलग आयाम में विकसित हुआ और शुरुआत हुई लोगों के अहंकार और प्रति-अहंकार के विकास करने की। प्रति-अहंकार पहले ही विकसित हो चुका था, लेकिन अहंकार इस तरह विकसित हुआ कि वह प्रति-अहंकार को दबाने लगा। इस तरह आपको विशुद्धि के एक तरफ संस्कार मिले हैं और दूसरी तरफ अहंकार।

जब मैंने एक अन्य दिन तुमसे कहा था कि तुम अपनी स्वतंत्र इच्छा का त्याग कर दो, इस अर्थ में कि जब तुमने अपना सिर उठाया, तो ऐसा तुमने अपनी स्वतंत्र इच्छा के माध्यम से किया, अपनी विकास की शक्ति के साथ जो आपके पास जानवरों के रूप में थी। उसके बाद, अब आप मानव स्तर पर पहुंच गए हैं और मानवीय स्तर से ऊपर उठने के लिए, अब जो आपको अपनी पूर्ण स्वतंत्रता की तलाश करनी है और उसके लिए विशुद्धि चक्र आपकी बहुत मदद करने वाला है।

इस विशुद्धि चक्र पर, वास्तव में हमें पूरा चित्त देना होता है। यह इतना जटिल चक्र है। यह अपने मे देवनागरी लिपि के सभी स्वर रखता हैं जो इससे गुजरने वाली कुंडलिनी शक्ति की आवाज से निकलते हैं। तो इन चक्रों पर सभी स्वर सुने जाते हैं। जैसा कि आप जानते हैं, ये स्वर 16 संख्या में हैं।

देवनागरी में स्वर के बिना आप कुछ भी नहीं लिख सकते। स्वर आधार हैं, हर व्यंजन को सहारा देने वाली शक्ति हैं। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हमारे स्वरों का पूर्ण पोषण और सम्मान किया जाए।

गर्दन की गति, जैसा कि आपने देखा है, पूरे अंतरराष्ट्रीय जीवन में, यदि आप देखें, तो हर किसी का व्यवहार व्यावहारिक रूप से एक जैसा होता है। यहां तक की जो सुन नहीं सकते, जो आपकी भाषा नहीं समझते, वे भी इस तरह सिर हिला सकते हैं, इस तरह गर्दन हिला कर “ना” कह सकते हैं, हर कोई समझता है कि यह ‘हां’ या ‘नहीं’ है। किन्ही विशेष क्षेत्रों में, निश्चित रूप से, उनके यहां थोड़ा अलग प्रकार का सिर हिलाना है।
लेकिन बहुत ज्यादा सिर हिलाना बहुत अच्छा संकेत नहीं है। मैंने पश्चिम में लोगों को देखा है, अगर आप उन्हें कुछ बताते हैं, यह प्रदर्शित करने के लिए कि उन्होंने इसकी सराहना की है, तो वे काफी समय तक सिर हिलाते हैं। ऐस करना जरूरी नहीं है। बस इतना ही कहना उचित है कि, “ठीक है” या “मैंने इसे समझ लिया है”, बस। आपको हर समय इस तरह सिर हिलाने के बजाय अपनी आवाज का इस्तेमाल करना होगा। अन्यथा यह विशुद्धि चक्र के लिए बहुत बुरा, बहुत, बहुत बुरा है।

या उनमें से कुछ दूसरी तरह के हैं। कि जो कुछ भी है, वे इस तरह अपना सिर रखेंगे … और वे ठीक से बात नहीं करेंगे, वे एक शब्द भी नहीं कहेंगे, वे बस चुप रहेंगे। आप उन्हें चुटकी बजाते चले जा सकते हैं, कुछ भी करते हुए, वे हिलेंगे नहीं। इस तरह का व्यक्तित्व भी उनके उत्क्रांती के विकास के लिए बहुत हानिकारक है। इसके अलावा उनकी विशुद्धि एक बहुत बड़ी समस्या बन जाती है।

विशुद्धि के कारण बहुत सारी समस्याएं हैं। जैसे एनजाइना, जिसे आप विशुद्धि के कारण विकसित पाते हैं। विशुद्धि के कारण आपको स्पॉन्डिलाइटिस हो जाता है। कभी-कभी लोग अपनी आवाज पूरी तरह से खो देते हैं। कभी-कभी, उन्हें हर समय खांसी रहती है। और विशुद्धि से बहुत सारी शारीरिक समस्याएं होती हैं, क्योंकि जैसा कि मैंने कहा, यह एक बहुत ही जटिल केंद्र है, जो आपके कान, नाक, गले की देखभाल करता है, सभी सोलह उप-जाल हैं, जिनकी देखभाल इस चक्र द्वारा की जाती है। .

लेकिन सबसे बढ़कर, भेद करने के विवेक का केंद्र है। भेद करने का विवेक तभी आता है जब आप आजाद लोग हों। जब तक आप पक्षपाती हैं, जब तक आपकी अपनी हीअवधारणाएं हैं, तब तक आप विवेकशील नहीं हो सकते। और यही वह बिंदु है जहां, किसी व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि अपनी पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए, आपको अपने विशुद्धि चक्र को साफ करना होगा।

सबसे पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें मधुर बोलना चाहिए। किसी से भी मधुर तरीके से बात करें, कृत्रिम रूप से नहीं, बल्कि मधुर तरीके से। इस तरह से बोलें कि दूसरा व्यक्ति इसे पसंद करे। ‘सत्यं वदेत प्रियं वदेत’ (अर्थ: सत्य बोलो, जो अच्छा लगे वही बोलो)। सच्चाई बयां करो। झूठ मत बोलो। यदि तुम झूठ बोलते रहोगे तो कुछ समय बाद यदि तुम सच भी बोलोगे तो वह झूठ बन जाएगा। लेकिन अगर आप सच कहते रहे हैं, तब यदि आप झूठ भी बोलें, तो वह सच हो जाता है।

अब, कुछ लोग सोचते हैं कि वे चालाक हो सकते हैं, अपनी बातों से वे लोगों को धोखा दे सकते हैं, लेकिन वास्तव में, वे खुद को धोखा दे रहे हैं। ऐसे सभी लोग जो मीठी-मीठी बातों से, बनावटी बातों से, या किसी चाल-चलन से दूसरों को धोखा देते हैं, ऐसी भयानक स्थिति में जाते हैं, और इस कलियुग में, विशेष रूप से, उन्हें शाप दिया जाता है और वे बेनकाब हो जाते हैं और लोगों को उनके बारे में पता चलता है, कि ये हैं अब तक के सबसे बड़ा झूठे हैं। अब समय आ रहा है जब ऐसे सभी लोग पहले से कहीं अधिक उजागर होंगे। इसलिए सावधान रहें, ऐसा न सोचें कि आप धोखा दे सकते हैं। सहज योग में, विशेष रूप से, आप धोखा नहीं दे सकते। जो लोग धोखा देने की कोशिश करते हैं, वे कभी-कभी सोचते हैं कि, “हम माँ को मूर्ख बना सकते हैं, हम किसी न किसी तरह आगे बढ़ सकते हैं। अगर हम माँ के सामने बैठेंगे, तो उन्हें पता नहीं चलेगा कि हम क्या कर रहे हैं।” एसा नहीँ है। मैं नहीं भी कहुं, मैं अपने विवेक का उपयोग कुछ ना कहने के लिए कर सकती हूं। मैं आपको एक लंबा समय ढिल दे सकती हूं। लेकिन सावधान रहें, मेरे भ्रम में न आएं। मैं बहुत मायावी हूं, और जब मैं अपने भ्रम को खेलती हूं, तो आप अचानक अपने आप को एक बहुत ही कठिन परिस्थिति में पाएंगे, और फिर आप कहेंगे “माँ, मैं इस स्थिति में क्यों आ गया हूँ?”

तो यह श्री कृष्ण के गुणों में से एक है। वे ऐसे है जो मायावी हो जाते है। अपनी माया में – चालाकी नहीं, बल्कि मायावी – अपनी माया में, वह लोगों को खुद ही के सामने में उजागर करता है। श्री कृष्ण की बहुत सी कहानियाँ हैं जिनमें उन्होंने कुछ लोगों को अधिक आनंद देने के लिए, कुछ लोगों को अच्छी शिक्षा देने के लिए, और कभी-कभी आपको दंडित करने के लिए मायावी रूप से कार्य किया है।

हमारे लिए महत्वपूर्ण यह है कि हम सहज योगी हैं। इस जीवनकाल में, हमारे पास एक मौका है – हमारी कुंडलिनी उठी है – कि हम खुद का सामना कर सकते हैं, कि हम अपने चक्रों को ठीक कर सकते हैं, कि हम अपने बारे में जानते हैं, कि हम जानते हैं कि समस्या कहां है।

मैं ऐसे लोगों के बारे में जानती हूं जो बायीं विशुद्धियों के जाल में फंस गए थे और शैतानी,स्वभाव से शैतानी हो गए थे। वे सहज योग से बाहर चले गए हैं, उन्होंने सहज योग की आलोचना की है, उन्होंने मुझे बहुत परेशान करने की कोशिश की है।

तो ऐसा मत सोचो कि विशुद्धि खराब हो गई है, इसमें कुछ खास नहीं है। यह बहुत खतरनाक चक्र हो सकता है। निःसंदेह, हृदय, आज्ञा और विशुद्धि, इन तीन केंद्रों से सावधान रहना होगा, क्योंकि उन चक्रों में से ये तीन आपको बुराई की पहचान के साथ एकाकार होने की अनुमति दे सकते हैं, या आपको मजबूर कर सकते हैं। आप को शायद ऐसा लगे कि दुष्ट होना अच्छा है। आप शायद ऐसा महसूस करने लगें कि दुष्ट होने में बहुत मज़ा आता है, और आप दुष्ट बन सकते हैं। तो, विशुद्धि चक्र में, व्यक्ति को बेहद सावधान रहना पड़ता है।

विशुद्धि चक्र बहुत सी चीजों की देखभाल करता है, विशेष रूप से आपकी त्वचा, आपकी आंखों की। अब त्वचा काहै, मैंने देखा है कि जिन लोगों की विशुद्धि खराब होती है, उनकी खाल के साथ हर तरह की अजीब परेशानी हो सकती है। बेशक इसका संबंध आपके लीवर से है, लेकिन त्वचा, जिस तरह से चमकती है, जिस तरह से दमकती है, वह इस बात पर निर्भर करती है कि आप कैसे मुस्कुराते हैं, आप दुनिया को किस तरह देखते हैं। बहुत से लोगों को अकारण मुस्कुराने की आदत होती है, खासकर मैने महिलाओं को देखा है, जिन महिलाओं को मैंने देखा है, वे बस मूर्खतापुर्ण तरह से मुस्कुराती हैं। यह उचित नहीं है।व्यक्ति को मूर्ख नहीं होना चाहिए।

मूर्खता श्रीकृष्ण के सिद्धांत के विरुद्ध है। जैसे, आपने मूर्ख लोगों को देखा है, वे कैसे होते हैं। उनकी जीभ हमेशा आधी बाहर रहती है। अगर तुमने किसी मूर्ख व्यक्ति को देखा है, तो उसका चेहरा ऐसा होता है कि उसकी जीभ हमेशा बाहर रहती है, मुंह आधा खुला रहता है और वह एक गूंगे मूर्ख की तरह दिखता है। अब इसमें विशुद्धि ही कारण होती है।
दूसरा वह है जहां आपको विशुद्धि का तनाव मिलता हैं। तो ऐसे व्यक्ति के होंठ बहुत रूखे होते हैं, क्रोधी होंठ होते हैं, और वह बात नहीं करता है। दूसरे की अभिव्यक्ति बेवकूफ की तरह भी मिल सकती है, बल्कि वह सिर्फ उस तरह का चेहरा बना सकता है। क्योंकि, अगर वह चालाक है, तो मैं कह सकती हूं कि वह एक प्रकार का रूप, अपने चेहरे पर एक ऐसा मुखौटा चढा सकता है, कि वह एक बेवकूफ है और आपको धोखा देने की कोशिश कर सकता है।

तो विशुद्धि के बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है। किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति कुछ भी हो – एक व्यक्ति बहुत मासूम लग सकता है, क्योंकि यही ऐसी चीज है जो आप अपनी विशुद्धि से कर सकते हैं। आप स्वतंत्र हैं क्योंकि आपने अपना सिर उठाया है, इस बिंदु पर आपने इस तरह की विशेष कौशल हासिल किया है, कि आप खुद को धोखा दे सकते हैं और आप दूसरों को धोखा दे सकते हैं। कुछ लोग चेहरे से बेहद मासूम लगते हैं। वे देखने में भले ही बहुत साधारण लोग हों, लेकिन वे भयानक भी बन सकते हैं। कुछ लोग लग बेवकूफ सकते हैं लेकिन हो बहुत बुद्धिमान सकते हैं।

तो यह है कि आप अपनी विशुद्धि के साथ किस प्र्कार खेलते हैं, जो जिम्मेदार है, लेकिन मुख्य बात जो मैं आपको बताने की कोशिश कर रही हूं, वह यह है कि आप अपनी विशुद्धि को संचालित कर सकते हैं। जिस तरह से आप अपनी अभिव्यक्ति करना चाहते हैं, जिस तरह से आप अपना चेहरा बनाना चाहते हैं, जिस तरह से आप कुछ सुझाव देना चाहते हैं – इस सब को आप संचालित कर सकते हैं और अपने ह्रदय को आप इससे दूर रख सकते हैं। ह्रदय में किसी के लिए जहर हो सकता है, लेकिन बाहर से आप उस इंसान से बहुत ही मीठे अंदाज में कुछ ऐसा कह सकते हैं, जिससे वह प्रभावित हो जाए।
लेकिन इसमें, यह सब व्यवहार, बर्ताव का सिलसिला, आप अपने आप को धोखा दे रहे हैं, दूसरे व्यक्ति को धोखा नहीं दे रहे हैं, क्योंकि आपका स्व आत्मा है जो आपको अच्छी तरह से जानता है। और यह आपके आगामी सभी जन्मों के लिए जारी रहेगा। इसलिए किसी भी तरह से आपकी अभिव्यक्ति में कृत्रिमता होने की कोई जरूरत नहीं है। आपकी अभिव्यक्ति में कुछ भी छिपाने की जरूरत नहीं है। बेशक, मेरा मतलब है, अगर आप किसी को पसंद नहीं करते हैं, तो आपको सीधे-सीधे ऐसा कहने की ज़रूरत नहीं है कि, “मैं आपको पसंद नहीं करता”। लेकिन, उस स्थिति में, आपको उस व्यक्ति की इतनी सराहना भी नहीं करनी चाहिए कि वह आपकी प्रशंसा में बहक जाए।

अब, आंखें बहुत महत्वपूर्ण हैं, और आंखो की, एक तरह से, विशुद्धि द्वारा बहुत अधिक देखभाल की जाती हैं क्योंकि आंखों की मांसपेशियों की देखभाल विशुद्धि द्वारा की जाती है। अब हमारे पास जिस तरह की मांसपेशियां हैं, जो हमारी आंखों को खींचती हैं, जो हमारी पलकें बंद करती हैं और उसकी यह सारी गतिविधि बहुत ही सूचक है। आपने देखा होगा कि कुछ लोग हैं जो मेरे पास आते हैं, उनकी आंखें इस तरह झपकती हैं, जब वे अपनी आंखें बंद करते हैं, तो भी वे इसे बंद नहीं रख सकते। कुछ लोग ऐसे होते हैं कि, जब वे मेरी ओर आंखें खोलते हैं, तो वे बस आंखें खुली रखते हैं, वे इसे बंद नहीं कर पाते। दोनों मुसीबत में हैं। जो हर समय सिर्फ आंखें खुली रखते हैं, वे ऐसे लोग हैं जिन्हें अतिचेतन समस्या है। और जिनकी आंखें टिमटिमा रही हैं, उन्हें अवचेतन की समस्या हो रही है।

कुछ लोगों की ऐसी भी आदत होती है कि हर समय आंखें एक कोण में रखते हैं, वे आपको कभी सीधा नहीं देखते हैं लेकिन एक कोण में वे आपको देखेंगे (हंसते हुए)। उन्हें लगता है कि यह कभी-कभी, यह बहुत फैशनेबल होता है, कभी-कभी। महिलाओं को लगता है कि यह लोगों को देखने का एक बहुत अच्छा तरीका है। और उनमें से कुछ की आंखें ऐसी हैं कि वे घुरते रहेंगे, आप जानते हैं, दूसरों पर अपनी लालची दृष्टि उंडेलते हैं, या उनकी कामुक दृष्टि दूसरों पर डालते हैं। यह सबसे बुरी बात है जो आप अपनी आंखों के साथ कर सकते हैं क्योंकि ऐसे व्यक्ति अंधे हो सकते हैं, ऐसे लोगों को आंखों की परेशानी हो सकती है, विशेष रूप से आंखों का लाल होना ऐसे लोगों को बहुत जल्दी आ सकता है।

तो, आंखों को बहुत शुद्ध रखने के लिए व्यक्ति को सावधान रहना होगा, एक योगेश्वर की आंखें, जो श्री कृष्ण थे।

वह साक्षी थे। वह इस धरती पर थे, वे राधा के साथ खेले उन्होंने पांच महिलाओं से शादी की, वे पांच तत्व थे। उन्होंने सोलह हजार स्त्रियों से विवाह किया- वे उनकी सोलह हजार शक्तियाँ थीं। लेकिन वे योगेश्वर थे, वे योगेश्वर थे। उसकी आँखों में, उनके मन में उनके प्रति बिल्कुल भी लालसा नहीं थी। वह इससे परे थे। योगेश्वर थे। यह उसकी परीक्षा का बिंदु था, कि उनकी आँखों में इन महिलाओं के सम्बंध में कोई वासना नहीं थी।

योगेश्वर ऐसे है। बेशक, मैं आपसे श्री कृष्ण होने की उम्मीद नहीं करती। लेकिन तुम्हारे पास तुम्हारी पत्नी है, जिनके पास पत्नी नहीं है उन्हें पत्नी की प्रतीक्षा करनी चाहिए। वह, “हमें पत्नियां मिलेंगी और हमारी एक पत्नी होगी,” और एक ऐसी पत्नी के बारे में विचार रखें जो आपकी अपनी होगी, ताकि आपकी नजर हर महिला पर न पड़े, जो उस तरह की चीज के साथ आती है।

मैंने लोगों को देखा है कि, यहां तक ​​कि तस्वीरें या कुछ भी जो वे देखते हैं, यह आश्चर्यजनक है! मेरा मतलब है कि तस्वीर में कुछ भी नहीं है, तस्वीर में क्या है? लेकिन एक तस्वीर भी उनका ध्यान खींच सकती है। मेरा मतलब है, मुझे नहीं पता कि क्या चीज़ उनके चित्त को इस तरह आकर्षित कर सकती है लेकिन वे इतने कमजोर हैं और उनका अपनी दृष्टि पर कोई नियंत्रण नहीं है, कोई नियंत्रण नहीं है। वे बिल्कुल खो जाते हैं और उनका कोई नियंत्रण नहीं होता है। इससे पता चलता है कि उनमें कोई शक्ति नहीं है और वे उनकी प्रतिक्रियाओं के गुलाम हैं। इसलिए आंखें बहुत महत्वपुर्ण हैं। जैसा कि ईसामसीह ने कहा है, “तू व्यभिचारी आंखें न रखना।” आखों में व्यभिचार नहीं होना चाहिए।

कुछ लोगों को आंखों से गुस्सा प्रदर्शित करने की आदत होती है। तुम देखो, अगर उन्हें क्रोध दिखाना है तो वे इस प्र्कार से देखते रहेंगे और क्रोध दिखाएंगे। मुझे तुम्हारे साथ ऐसा करने की हिम्मत की जरूरत नही है, लेकिन फिर भी। (हँसी) और गुस्सेलआँखें, आप देखिये, आपकी आँखों से करने वाला एक अन्य खतरनाक काम है, क्योंकि तब वे मंत्रमुग्ध करने वाली हो सकती हैं।

अगर आप किसी चीज पर अपनी नजरें जमाने लगें और उस पर एकाग्र हो जाएं, तो हो सकता है कि आपकी आंखें मंत्रमुग्ध करने वाली हो जाएं, यानी आपकी आंखों से भूत निकलने शुरु हो जायेंगे। पहले तो आप आंखों में भूत पकड़ोगे, वे वहीं बस जायेंगे और फिर भूत बनकर दूसरों पर गिरेंगे। किसी चीज को लगातार एकाग्रता से देखते रहना बहुत, बहुत खतरनाक चीज है।

एक और तरह की बेवकूफी है, या हो सकता है कि एक भूतिया बात, कि लोग आपको यहां (आज्ञा चक्र में) ध्यान करने के लिए कहें, यह बिल्कुल गलत है। [भले ही] गीता में लिखा है, फिर भी गलत है। यहां किसी को चित्त नहीं लगाना चाहिए। अगर उन्हें चित्त देना है, तो दरवाजे पर चित्त लगाएं। खिड़की को देखने से क्या फायदा? आप इससे बाहर नहीं निकल सकते, है ना? अगर आपको कुछ भी देखना है, तो दरवाजे की तलाश में रहें। और दरवाजा यहाँ है। सहस्रार के द्वार को खोलना है, इसलिए आपको इस (आज्ञा चक्र में) हिस्से पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

बहुत से लोग जिन्होंने इस हिस्से (आज्ञा चक्र में)पर ध्यान केंद्रित किया है, वे पागल हो गए हैं। जब वे पागल हो जाते हैं, तो लोग कहते हैं, “वह योगी है, लेकिन उन्मनीताशा है” – कि वह पागल की तरह चलता है। योगी पागल कैसे हो सकता है? इसका मतलब है कि वह ईश्वर से जुड़ा हुआ है, क्या वह पागल है? ऐसे सभी पागल लोग सचमुच पागल होते हैं! उनका परमात्मा से कोई लेना-देना नहीं है, निश्चित रूप से। लेकिन, ऐसे लोग हैं जो ऐसी बातों में विश्वास करते हैं – “ओह, वह भगवान से प्यार करता है, इसलिए वह मंच पर कूद जाता है और परमानंद में चला जाता है, पागलों की तरह नाचता है।” परमात्मा पागल कैसे हो सकते हैं? पहली स्थिति यह है, कि सबसे पवित्र व्यक्तित्व ईश्वर है। होना ही पड़ेगा। विवेक कहाँ से आता है?

तो, यह एक बात समझनी होगी कि, ऐसा कोई भी अभ्यास आपको पागलपन की ओर ले जा सकता है, और किसी को ऐसा नहीं करना चाहिए।

तीसरा, किसी अच्छे दिल वाले, अच्छे व्यक्ति मे स्थित विवेकहीनता उनमे ऐसे लोगों से आती है जब वे दूसरों की मुस्कान या उनके चेहरे पर दिखाई देने वाली कृत्रिम अच्छाई से मोहित हो जाते हैं। मैंने कुछ लोगों को जाना है, उनके पास हमेशा एक ऐसा चेहरा होता है, जैसे कि वे हर समय मुस्कुराते रहते हैं। (श्री माताजी प्रदर्शित करने की कोशिश करते हैं) मेरा मतलब है, मैं ऐसा नहीं कर सकती। हर समय, यदि आप किसी को इस तरह देखते हैं, तो आप देखिये, इसका मतलब है कि आप उस व्यक्ति का मज़ाक उड़ा रहे हैं। और ऐसे लोग हैं जिन्हें मैंने देखा है जो हर बार ऐसे ही होते हैं (एक छोटा बच्चा हंसता है), और फिर ऐसे! (माँ हंसती हैं)।

इसलिए व्यक्ति को हमेशा एक मुद्रा में नहीं रहना चाहिए। कभी-कभी ये मांसपेशियां बहुत कमजोर हो सकती हैं और यदि आप एक ही मुद्रा अपना लेते हैं तो दर्द होने लगता है।

कुछ अन्य लोग हैं जो हमेशा यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वे बहुत दुखी हैं। मुझे नहीं पता, वे क्या आकर्षित करना चाहते हैं? दूसरों का ध्यान आकर्षित करना? भूतों को अपने आप में आकर्षित करना या, मुझे नहीं पता, वे क्या कर रहे हैं? वे एक सामान्य चेहरा क्यों नहीं रख सकते?

यहां तक की ध्यान में बैठे हुए, या ध्यान में, मैंने उन्हें देखा है, मुझे दिखाने की कोशिश कर रहा है, या जो कुछ भी है, क्योंकि मेरी आंखें ज्यादातर बंद होती हैं, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता। जब मैं अपनी आंखें खोलती हूं, तो मुझे कुछ ऐसे लोग मिलते हैं, जैसे (उनकी मुस्कान को देखकर)। क्यों? क्याज़रुरत है? (हँसी)
आपके पास एक संतुलित चेहरा होना चाहिए। यही श्री कृष्ण ने स्थिति प्रज्ञ का वर्णन किया है, जो संतुलित है: जो मूर्ख की तरह हंसता नहीं है। जो हंसता है, लेकिन किसी बेवकूफ की तरह नहीं! न ही वह किसी, दूसरे प्रकार के मूर्ख की तरह गंभीर है! तो, दोनों चीजें आपके आंतरिक अस्तित्व की अभिव्यक्ति नहीं हैं।

ऐसा व्यक्ति, जैसा कि मैंने आज आपको बताया, तुच्छ नहीं है, लेकिन गंभीर भी नहीं है। लेकिन अपने भीतर आनंद से भरा हुआ। वह नहीं चाहता कि आप दुखी हों, कभी नहीं चाहेंगे कि आप दुखी लोग हों। लेकिन मनुष्य, अगर दुखी होना चाहते हैं, तो कोई क्या मदद कर सकता है, क्योंकि उनके पास दुखी होने की स्वतंत्र इच्छा है। उनके पास स्वतंत्र इच्छा है, अपनी नाक काट लेने की, उनके पास स्वतंत्र इच्छा हैअपने कान काट लेने की , उन्हें स्वतंत्र इच्छा है आत्महत्या करने की । उनके पास यह तथाकथित स्वतंत्र इच्छा है।

अब, सबसे बड़ी स्वतंत्र इच्छा विशुद्धि चक्र से आती है, जैसा कि मैंने आपको बताया था। और इसलिए हम उन्हें योगेश्वर कहते हैं। वे योग के ईश्वर हैं। योग की स्थापना तभी संभव है जब आप स्वयं को श्री कृष्ण को समर्पित कर दें। श्रीकृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण कर दें [तब] आपका योग स्थापित हो जाएगा। मतलब क्या? इसका मतलब है कि आपके सभी संतुलन स्थापित हो जाएंगे। आप पूर्ण संतुलन में चले जाते हैं, और वह संतुलन पूर्ण हो जाता है क्योंकि विष्णु, जो अवतार हैं, धर्म को बनाए रखने के लिए, जो आपको संतुलन देने के लिए जिम्मेदार हैं, श्री कृष्ण के रूप में पूर्ण हो जाते हैं।

इसलिए कहा जाता है कि आप सभी धर्मों को छोड़ दें – “सर्व धर्मनं परित्याज, ममेकम शरणं व्रज”। इसलिए “उन सभी को मुझे समर्पित कर दो”। तो सभी धर्म, यदि आप इन्हे श्री कृष्ण के चरण कमलों में रख देते हैं, अर्थात, यदि आप उनके आदर्शों का पालन करते हैं, तो आपके सभी धर्म संतुलित हैं। लेकिन, आत्मबोध के बाद, आप धर्म से परे चले जाते हैं।

जब भी आप धर्म में गलत होते हैं – धर्मच्युत, जैसा कि वे इसे कहते हैं – जब आप धर्म में गलत होते हैं, तो यही समय है कि आपको अपने आप को श्री कृष्ण के सामने समर्पित करना होगा, ताकि वे आपके धर्म की स्थापना करें।

इतने सारे धर्म हैं। पति धर्म है – पति का धर्म है, पत्नी धर्म है – पत्नी का धर्म है, पिता का धर्म है, माता का धर्म है, पुत्र का धर्म है, तो ‘राष्ट्र धर्म’ का अर्थ है ‘देश का धर्म’। फिर आपके पास सभी प्रकार के धर्म भी हैं, हम कह सकते हैं, जहां जीवन की उच्च चीजों के प्रति नत मस्तक होना पड़ता है।

लेकिन फिर वे कहते हैं ‘सर्व धर्मनं परित्याज’ – ‘सभी धर्मों को छोड दो’, ‘मामेकम शरणं व्रज’ – ‘बस अपने धर्मों को मुझे समर्पित कर दो’। यानी विशुद्धि में।

विशुद्धि चक्र पर आप अपने अन्य सभी धर्मों का समर्पण कर देते हैं। इसका मतलब है कि यह सब उच्चीकृत हो जाता है। यह सब पुर्ण हो जाता है। संपूर्णता प्राप्त होती है क्योंकि वह सामूहिक सत्ता है, वह विराट है, क्योंकि वह सभी धर्मों का एकीकृत रूप है और वह हमारे मस्तिष्क में विराट है, वह हमारे मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करता है।

और जब यह विराट हममें पूर्ण रूप से जाग्रत हो जाता है, तब हमारे साथ सारे धर्म स्वाभाविक हो जाते हैं। हमें कोई धर्म नहीं करना है। हमें किसी धर्म के प्रति सचेत होने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन हम स्वतः ही स्वयं धर्म बन जाते हैं।

उदाहरण के लिए, ऐसे लोग हैं, जैसे कहें क्राइस्ट – हम क्राइस्ट का उदाहरण ले सकते हैं। वह व्यक्तित्व से ही धर्म थे। वह किसी से पैसे नहीं चुराएगा, है ना? क्या वह किसी की पत्नी के साथ भाग जाएगा? क्या वह? क्या वह कुछ गलत करेगा? नहीं वह नहीं कर सकता। क्यों? क्योंकि वह स्वयं धर्म थे।

तो अब तुम धर्मातीत हो गये हो अर्थात् ईश्वर के राज्य में प्रवेश कर गये हो। विराट की स्थिति में। और वहाँ तुम्हारी दशा ऐसी है, कि तुम्हारी दशा ऐसी है, तुम्हारी दशा ऐसी है, कि तुम धर्म ही हो। यदि आप अधर्म करने की कोशिश करते हैं, तो आपको नुकसान होगा। यदि आप गलत करने की कोशिश करते हैं, तो आपको नुकसान होगा।

यहाँ, मुझे आपको धार्मिक होने के लिए कहने की आवश्यकता नहीं है। मुझे आपको बताने की जरूरत नहीं है, इसकी कोई जरूरत नहीं है। मुझे आपको यह बताने की जरूरत नहीं है कि आप सत्य कहें। मुझे आपको यह बताने की जरूरत नहीं है कि चोरी मत करो। मुझे ये सब काम नहीं करना है। केवल एक चीज जो मैं आपको बता सकती हूं, कि अपने अहंकार और प्रति-अहंकार से छुटकारा पाएं, बस। एक बहुत ही सामान्य शब्दावली में। लेकिन आप स्वचालित रूप से ईसामसीह का अनुसरण करेंगे। आप स्वतः कृष्ण का अनुसरण करेंगे – सहज।

क्योंकि अब तुम धर्म के पार चले गए हो, तुम धर्म की उस सीमा को पार कर चुके हो जहां तुम्हें धर्म का पालन करना था। अब तुम खुद धर्म बन गए हो।

आप जहां खड़े होंगे, जहां भी होंगे, धर्म आपके साथ खड़ा होगा। लोग आपकी ओर देखेंगे और कहेंगे, “यहाँ एक धर्म खड़ा है। वह पूजा करने योग्य धर्म है।” किसी चीज के कारण नहीं, बल्कि इसलिए कि आपकी अवस्था धर्म की है, [और] आप उससे आगे निकल गए हैं।

मान लीजिए यह लाउडस्पीकर है जिसका उपयोग मैं आज आपसे बात करने के लिए कर रही हूं। लेकिन यह माना कि यह लाउडस्पीकर मेरा अभिन्न अंग बन जाता है, फिर मुझे इसका उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है (माँ माइक्रोफोन को टैप करती है), मैं इससे परे चली जाती हूँ। इसी तरह आप सबसे पहले खुद को स्थापित करने के लिए धर्म का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन जब आप इस विराट अवस्था में धर्म से परे जाते हैं, तो आपको किसी धर्म की आवश्यकता नहीं होती है। आप विराट के धर्म बन जाते हैं।

अब विराट का धर्म क्या है? श्रीकृष्ण का धर्म क्या है? यह है सामूहिकता।

कृष्ण मस्तिष्क हैं। शिव हृदय है। और ब्रह्मदेव यकृत (लिवर) हैं। अब, इस मस्तिष्क की क्षमता यह है कि यह जीवन का, विकास का वृक्ष है, जो नीचे की ओर बढ़ता है, जैसा वह कहते हैं। और यह वृक्ष नीचे की ओर विकसित हो रहा है, मस्तिष्क की चेतना से। लेकिन, अगर आपको जड़ों तक जाना है, तो आपको उत्थन करना होगा। और ऐसा उत्थान आपने हासिल कर लिया है, अब आप अपने मस्तिष्क की जड़ों में चले गए हैं, जहां आपकी सभी जड़ें प्रबुद्ध हैं, आपकी सभी नसें प्रबुद्ध हैं, आपका मस्तिष्क प्रबुद्ध है, आप एक प्रबुद्ध व्यक्ति हैं।

जब आप अंधेरे में होते हैं, तो आप सांप को रस्सी के रूप में पकड़ सकते हैं, लेकिन जब आप प्रकाश में होते हैं, तो आप उसे छोड़ देते हैं। उसी तरह, जब आप प्रबुद्ध हो जाते हैं, तो आपका धर्म प्रकाश में होता है।

आपको किसी गुरु या किसी पुस्तक या किसी के पास ले जाने की आवश्यकता नहीं है – आप स्वयं को, अपने प्रकाश में जानते हैं, कि यह गलत है।

अब इसका सामूहिकता वाला भाग बहुत महत्वपूर्ण है। कोई भी व्यक्ति जो सामूहिक नहीं हो सकता, वह अभी तक सहजयोगी नहीं है। अभी तक एक सहज योगी बिल्कुल नहीं है। सामूहिक इस अर्थ में कि, जो अन्य सहजयोगियों के साथ नहीं रह सकता, जो हर समय किसी के दोष खोजने की कोशिश करता है, जो अपनी पत्नी के साथ या अपने पति के साथ, भाग जाना चाहता है और कहीं और रहना चाहता है जो बाहर निकलना चाहता है, वह है ऐसा व्यक्ति नहीं जो सामूहिक हो।

ऐसा कहने की कोई आवश्यकता नहीं है कि, “मैं उन परिस्थितियों में नहीं रह सकता जिनमें सहज योगी रह सकते हैं।” यदि आप एक सहज योगी हैं, यदि आप एक योगी हैं, तो आप रह सकते हैं। मुझे देखो, मैं इतनी बूढ़ी औरत हूं, मैं कहीं भी रह सकती हूं। तुम मुझे किसी गांव में ले चलो, तुम मुझे किसी भी जगह ले चलो, मुझे किसी भी भौतिक सुख-सुविधा की बिल्कुल भी परवाह नहीं है, क्योंकि मैं अपने भीतर सहज हूं। मेरे आराम मेरे भीतर ही हैं।

उसी तरह, एक व्यक्ति जो सामूहिक नहीं है … जैसे बहुत से लोग सिर्फ पूजा करने आते हैं, बस इतना ही। यह क्रिसमस में केवल एक बार चर्च जाने जैसा है, और वे कहेंगे, “ईसामसीह हमारी देखभाल नहीं करते है।” बेशक, हम चर्च नहीं जा रहे हैं, और आप क्राइस्ट से नहीं मिल रहे हैं, लेकिन मेरे कहने का मतलब यह है कि, सहज योग के प्रति बस एक चलताऊ रवैया अपनाने से, आप लाभांवित नहीं हो सकते।

आपको सामूहिक होना है, और सामूहिक का मतलब है कि हर सामूहिक कार्यक्रम में आप मौजूद रहें। आपको हमेशा सामूहिक रूप से मिलना चाहिए, सामूहिक रूप से ध्यान करना चाहिए, सामूहिक रूप से रहना चाहिए और सामूहिक होने के तरीके और तरीके खोजने का प्रयास करना चाहिए।

बहुत सारी बुरी ताकतें हैं, जो हर समय सामूहिकता पर हमला करने की कोशिश कर रही हैं। पहले वे नेताओं पर हमला करेंगे। वह पहली बात है। कोई भी नेता किसी से कहता है, “आपको ऐसा नहीं करना चाहिए,” तुरंत वह व्यक्ति उस नेता के खिलाफ कहानियां फैलाना शुरू कर देगा: “वह बहुत बुरा है। वह ऐसा है, वह बहुत कठोर है। उसने मुझे माला नहीं पहनाई, उसने मुझे यह नहीं दिया, वह…” तुम एक भूत को कैसे माला पहना सकते हो? क्या आप कर सकते हैं?

फिर, अगर ऐसा तरीका काम नहीं करता है, तो उनके पास घूमने और कानों में इधर-उधर कुछ बात करने के अपने धूर्त तरीके हैं, किसी तरह की राजनीति बनाने के लिए। ऐसे सभी लोगों को सहज योग से बाहर कर दिया जाएगा, क्योंकि एक केन्द्रापसारक और एक केन्द्राभिमुख बल है – दोनों समान और विपरीत कार्य कर रहे हैं।

जो कोई सामूहिकता के विरुद्ध जाता है, जो अपने भूतों पर अडिग रहता है, अपनी नकारात्मकता पर अडिग रहता है, उसे सहज योग से बाहर निकलना ही होगा। और यह याद रखना है कि सामूहिक होना आनंदमय होना है, प्रगतिशील होना है, और आगे जाना है।

जब लोग हिमालय में ध्यान कर रहे थे तब तक सब ठीक था, उस समय सब ठीक था, वे अकेले थे, सामूहिकता के लिए कुछ हासिल करने के लिए अकेले ही ध्यान कर रहे थे। लेकिन उन्हें भी उनका आत्मबोध नहीं हुआ। जब आपको अपना आत्मबोध प्राप्त हो गया है – इसे याद रखें – अब आप ईश्वर के राज्य में प्रवेश कर चुके हैं, विराट के राज्य में, जहाँ आप एक सामूहिक अस्तित्व का अंग-प्रत्यंग हैं। तुम अकेले नही हो। आपको अलग नहीं किया जा सकता, आप खुद को अलग नहीं कर सकते। अब आप विराट के शरीर में जाग्रत हो गए हैं और आप इससे बाहर नहीं निकल सकते।

अगर आप इससे बाहर निकलने की कोशिश करते हैं, तो आपको पोषण नहीं मिल सकता। मान लीजिए मैं अपने शरीर का एक हिस्सा निकाल लेती हूं, तो क्या इस शरीर से उसका पोषण होगा? यह नहीं होगा! उसी तरह, अब आप उस सामूहिकता का अंग-प्रत्यंग बन गए हैं, और वह सामूहिकता, वह विराट, आपकी देखभाल करने वाला है, आपका पोषण करने वाला है, वह सब कुछ करने जा रहा है जो आपके आध्यात्मिक, शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, यहां तक ​​कि वित्तीय विकास भी। लेकिन, यदि आप इसे काट कर छोटा करते हैं, यदि आप सामूहिकता को अवरुद्ध करने का प्रयास करते हैं, यदि आप सामूहिकता के लिए समस्याएँ बनाने का प्रयास करते हैं या यदि आप केवल सामूहिकता से बाहर निकलने का प्रयास करते हैं, तो यह हमारे हित में नहीं है, यह हमारा काम नहीं है।

इसे पूरी तरह से, हर संभव तरीके से समझना है, और जब यह समझ में आ जाए, तो आपको उचित तरीके से पता होना चाहिए कि सामूहिकता केवल आपकी उन्नति नहीं है, केवल आपका विकास नहीं है, केवल आपकी उपलब्धियां नहीं हैं, पूरी मानवता की उपलब्धि है । तुम्हारी सृजन प्रयोजन इसी से पूरा होता है।

जो लोग आश्रम में रहते हैं, वे हमेशा अकेले रहने वालों की तुलना में बेहतर उपलब्धि पाते हैं। हमेशा। अकेले रहने वाले लोगों की तुलना में उनके पास हमेशा बेहतर परिणाम होंगे। हो सकता है कि वे अकेले रहते हों क्योंकि वे थोड़ा निजी जीवन या गोपनीयता चाहते हैं, लेकिन उनकी निजता उनकी मदद नहीं करने वाली है। इससे उन्हें बिल्कुल भी मदद नहीं मिलने वाली है।

जितना अधिक आप एक जीते हैं, जितना अधिक आप एक साथ रहते हैं, उतना ही अधिकआप एक साथ आनंद लेते हैं – आपकी उन्नति की संभावना अधिक होगी। जितना अधिक आप अपने आप को निजी बनाने की कोशिश करेंगे, उतना ही आप इससे बाहर निकलने की कोशिश करेंगे – आप जो भी स्पष्टीकरण दें – ईश्वर आपको बहुत अच्छी तरह से समझते हैं।

तो ऐसी तमाम चीजें जहां आप अपने आप को मुख्यधारा से काट लेते हैं, आप मुख्यधारा से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं, तो आपके लिए एक बड़ी समस्या होती है। बेशक, कुछ सुविधाओं के लिए, आप कर सकते हैं। आपकी निश्चित समझ के लिए, आप कर सकते हैं। लेकिन, आपको अपने संदिग्ध कमरे में अपनी निजी कंपनी की तुलना में सहज योगियों की संगति का अधिक आनंद लेना चाहिए।

यह एक ऐसी चीज है जिस के आधार पर आप स्वयं का आंकलन कर सकते हैं कि]: क्या आप को सहज योगियों की संगति में आनंद होता हैं या आप अपने परिवार के तीन, चार लोगों की संगति का सर्कस मेंआनंद लेते हैं? फैसला आपका है।

ग्रेगोइरे डी कलबरमैटन: “मुश्किल नहीं श्री माताजी”

श्री माताजी : सहज योग में कुछ भी कठिन नहीं है। सहजयोगी होना सबसे सरल बात है और सामूहिक होना और भी सरल। गैरसामूहिक होने के लिए, आपको कुछ करना होगा। जैसे मैंने कहा कि, नहीं पीना बहुत आसान है, मेरा मतलब है कि कुछ वाइन और ऐसी ही चीजें, क्योंकि अगर आप पीना नहीं चाहते हैं, तो आप घर बैठे हैं – ठीक है, कुछ भी नहीं करना है। लेकिन मान लीजिए आपको पीना है, तो आपको पब जाना होगा, या आपको किसी के पास जाना है, बोतल खोलना है, एक विशेष प्रकार का गिलास लेना है, इसे उंडेलना है, यह, वह। भारत में, उदाहरण के लिए, जहां भी शराबबंदी है, आप डर के साथ बैठे हैं। लेकिन जो व्यक्ति सिर्फ पानी पीता है, उसे कुछ करने की जरूरत नहीं है।

तो, कुछ भी गलत करने के लिए, कुछ करना पड़ता है, लेकिन अच्छा होने के लिए, आपको बहुत कुछ नहीं करना पड़ता है – बिल्कुल श्रम की बचत करने वाला, ऊर्जा बचाने वाला व्यक्ति। (हँसना)

आप देखिये, बुरा करने के लिए, मान लीजिए, आप देखिये, मैं किसी को नुकसान पहुंचाना चाहता हूं, मुझे तरीके खोजने के लिए सामान्य तरीके से अलग जाना होगा। अगर मुझे झूठ बोलना है, तो मुझे उस एक झूठ को ढकने के लिए दस झूठों के बारे में सोचना होगा। लेकिन अगर मैं सच कहूं, तो समाप्त! मैंने सच कहा , समाप्त! कुछ शब्दों के साथ, यह हो गया।

इसलिए, सामूहिक होना कहीं अधिक आसान है। बेशक, कुटिल लोगों के लिए नहीं, क्योंकि कुटिल लोग, जहाँ भी वे चलते हैं, उनका नुकीलापन दूसरों को परेशान करता है, आप देखिये, जैसे कांटों का चुभना। लेकिन जो फूल हैं, वे कहीं भी फिट हो जाते हैं, लोग उन्हें पसंद करते हैं, उन्हें उनकी सुगंध पसंद आती है, वे उन्हें देखते हैं, उनका आनंद लेते हैं। सुंदर चीजें।

अब देखो, आज वे कमल के समान दिख रहे हैं। ऐसा कैसा है? बिना कुछ किए वे कमल बन गए हैं। कैसे? वे कमल के समान कैसे हो गए हैं? चाहे वे कमल हों या वे डेज़ी हों, भगवान ही जाने। लेकिन वे कमल बन गए हैं – सहज। कैसे? क्योंकि वे परमात्मा के साथ एकाकार हैं।

जब हम अपने तरीके से खड़े होते हैं, जब हम निजी तौर पर कुछ करने की कोशिश करते हैं, तो ईश्वर कहते हैं, “ठीक है, निजी हो जाओ!” (हंसी) लेकिन जब हम सार्वजनिक होते हैं, तो वह हमारी देखभाल करता है।

और फिर, सहज योग में, जैसा कि आप जानते हैं, सामूहिक विकास ही एकमात्र तरीका है जिससे हम सहज योग को समझते हैं। कोई कुछ जानता है, कोई कुछ और जानता है, कोई कुछ और जानता है। जब हम सामूहिक होते हैं तब हम सहज योग के हर पहलू को वास्तव में समझते हैं। मान लीजिए कोई है, कोई वैज्ञानिक है, कोई संगीतकार है, कोई कुछ और चीज़ है। हम सब कुछ नहीं जान सकते। तो आप इससे कुछ जानते हैं, उस से कुछ, वहां से कुछ। तो सभी नदियाँ, जैसे वे उस सामूहिकता में बहती हैं और आप इन सभी अन्य चीजों के समुद्र का आनंद लेते हैं। आपको भारत की सभी नदियों में जाने की ज़रूरत नहीं है – जैसे आप गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी के लिये हजारों मील दूर जाते हैं – समुद्र में जाने पर, वे सभी हैं! (हंसी) ऐसे ही, आपको समुद्र का आनंद लेना है, जहां सब कुछ है। वहां हर तरह की खूबसूरत चीजें हैं और आप उसका आनंद लेते हैं।

मुझे उम्मीद है कि यह पूजा – जो एक बहुत ही उल्लेखनीय पूजा है … सबसे पहले, इतनी सारी चीजें सहज हैं। सबसे पहले उन्होंने मुझे बताया कि इस जगह का टेलीफोन नंबर ’32 16 32’ है। और उनके साथ 64 योगिनियाँ हैं – श्रीकृष्ण, तो 32 इस तरफ और 32 उनके साथ, उनके साथ [बीच में] बैठी हैं।

इस जगह को ‘ब्लैक लेक’ कहा जाता है। कृष्ण काले हैं। यह जगह उन्हें अचानक मिल गई, और स्विट्जरलैंड के इस तथाकथित सैन्य शासन में यही एकमात्र जगह है जहां लोग जमीन पर सो सकते हैं। यहां माना जाता है कि आपको जमीन पर नहीं सोना चाहिए। यदि कोई खाट नहीं है, तो आप हवा में लटके रहें लेकिन आप जमीन को नहीं छू सकते। इस तरह का बेवकूफ सैन्य व्यवसाय यहाँ है!

उन्हें आपके लिए इतनी समझदारीपुर्ण, व्यावहारिक, इतनी सस्ती जगह ढूंढनी थी, यह परमात्मा द्वारा भेजी गई लगती है। हमारे चारों तरफ यहां खूबसूरत चीज़ें हैं। गायों के साथ – इतनी गायें, उस समय जब कृष्ण का जन्मदिन है। इतनी गायें, इतना गायों से लगाव। और गायें, जब उनकी घंटियाँ चलती हैं – सुबह, मैंने सुना, शाम को – कितनी सुंदर। और जब वे शाम को घर जा रही थी, तो कैसे – जिसे वे गोरज कहते हैं, उनके पैरों की धूल है – आकाश को भर रही थी। बस गोकुल यहाँ है, मुझे लगा।

आज भी एक बात और कहनी है, वह है कि, यह16वीं श्री कृष्ण पूजा है।
क्योंकि अवश्य ही तुम लोगों में भी कुछ तो होगा।

परमात्मा आप को आशिर्वादित करे।
तो, इतने तरीकों से, यह एक बहुत बड़ी पूजा है जिसमें आप शामिल हो रहे हैं, जिसके लिए लोगों को हजारों और हजारों जन्म (जन्म) लेने पड़ते हैं, इतने सारे पुण्य करने पड़ते हैं, जो आपको इतने सहजता से मिली हैं,