
Devi Puja: The Duties of a Guru Ganapatipule (भारत)
देवी पूजा गणपतिपुले (भारत), 3 जनवरी 1987। आज चंद्रमा का तीसरा दिन है। चंद्रमा का तीसरा दिन तृतीया, कुंवारीयों के लिए विशेष दिन है। कुंडलिनी शुद्ध इच्छा है। यह कुंवारी है क्योंकि इसने अभी तक स्वयं को अभिव्यक्त नहीं किया है। और यह भी कि, तीसरे केंद्र नाभी पर, पवित्रता गुरु की शक्तियों के रूप में प्रकट होती हैं। जैसा कि हमें दस गुरु प्राप्त हैं, जिनका हम मूल गुरु के रूप में आदर करते हैं, वे सभी उनकी बहन या बेटी को अपनी शक्ति के स्वरुप में रखते थे। बाइबिल के पुराने संस्करण में यह कहा गया है कि, जो आने वाला है वह कुंवारी से पैदा होगा। और तब चूँकि यहूदी ईसा-मसीह को स्वीकार नहीं करेंगे, इसलिए उन लोगों ने ऐसा कहा कि “यह लिखा हुआ शब्द ‘कुंवारी’ नहीं है अपितु, यह ‘लड़की’ लिखा है”। अब संस्कृत भाषा में ‘लड़की’ और ‘कुँवारी’ एक ही शब्द है। हमारे पास आजकल की तरह 80 साल की लड़कियां नहीं थीं। तो एक महिला के कौमार्य का मतलब था कि वह एक ऐसी लड़की थी जिसकी अभी तक शादी नहीं हुई थी या जो अब तक अपने पति से नहीं मिली है। वह पवित्रता का सार है, जो गुरु सिद्धांत की शक्ति थी। तो, एक गुरु जो बोध प्राप्ति हेतु दूसरों का नेतृत्व करने का प्रभारी है, उसे यह जानना होगा कि उसकी शक्ति का उपयोग शुद्ध शक्ति की एक कुंवारी शक्ति के रूप में किया जाना है। एक गुरु इस शक्ति का उपयोग उस तरह से नहीं कर सकता जैसे एक Read More …