महिलाओं की भूमिका, द्वितीय सेमिनार दिवस

Shudy Camps Park, Shudy Camps (England)

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

महिलाओं की भूमिका, द्वितीय सेमिनार दिवस, 19 जून 1988, शूडी कैम्प, कैम्ब्रिजशायर, यू0के0

कल शाम हमने बहुत सुंदर ध्यान किया और हम सभी ने ठंडी-ठंडी चैतन्य लहरियों का अनुभव भी किया। जैसा कि मैंने आप लोगों को बताया कि ये हमारे इतिहास का सबसे महान दिन है, जिसमें आपका जन्म हुआ है और आप सभी परमात्मा का सर्वोच्च कार्य कर रहे हैं। आप सभी को विशेषकर इसी कार्य के लिये चुना गया है। आप सबको ये जानना होगा कि अब आप लोग संत हैं।

लेकिन, इन्ही आशीर्वादों के कारण कभी-कभी आप लोग भूल जाते हैं कि आप लोग अब संत हैं और आपको ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिये जो संतों को शोभा नहीं देता है।  

इस बार, कई वर्षों के बाद मैंने श्री एकादश रूद्र पूजा के लिये अपनी सहमति दी है, मुझे मालूम है कि इस पूजा को करना कितना कठिन काम है, क्योंकि अभी भी बहुत से सहजयोगी परिपक्व नहीं है और उनमें से कुछ तो सहजयोग का फायदा उठाकर पैसे कमा रहे हैं और कुछ इससे नाम, प्रसिद्धि, शक्ति या कुछ और प्राप्त करना चाह रहे हैं। वैसे तो इसको अब छोड़ दिया गया है। यह शक्ति, एक प्रकार से बहुत ही खतरनाक शक्ति है और आपको इस संबंध में बहुत ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। निसंदेह, यह उन लोगों और नकारात्मकताओं से आपकी रक्षा करती है जो आपको परेशान करना चाहते हैं और आपको नष्ट करना चाहते हैं। ये आपकी सुरक्षा के लिये हरसंभव प्रयास करना चाहती है, लेकिन यदि आप गलत व्यवहार करते हैं तो ये आप पर प्रहार भी कर सकती है।  

मैं आपको भारत में हाल ही में घटी एक कहानी के बारे में बताना चाहती हूँ। एक सहजयोगिनी, दूसरी सहजयोगिनी के घर गई, जिसके बगीचे में बहुत से कटहल के पेड़ थे। उसने उस सहजयोगिनी से कहा कि क्या आप मुझे सब्जी बनाने के लिये एक कटहल दे सकती हैं तो उस सहजयोगिनी ने कहा कि आज तो नहीं परंतु मैं आपको कल कटहल दे दूंगी, जबकि उसके पेड़ पर बहुत से कटहल थे। पहली सहजयोगिनी को इस बात से बड़ा बुरा लगा क्योंकि वे अपने घर आने वाले मेहमानों के लिये कटहल की सब्जी बनाना चाहतीं थीं। बाजार में कटहल की कोई ज्यादा कीमत भी नहीं हैं, परंतु उन्हें कटहल अच्छा लगता था तो उन्होंने अपनी पड़ौसी से ये मांग लिया।

अगले दिन कहीं और नहीं परंतु केवल उस योगिनी के बगीचे में काफी बड़ा तूफान आ गया और उनका कटहल का पेड़ और सारे कटहल जमीन पर गिर गये। ये सहजयोगिनी दूसरी सहजयोगिनी के पास आईं और कहने लगीं कि माफ करियेगा, कल मैंने आपको कटहल देने से मना किया, इसीलिये मेरे साथ ऐसा हुआ। कृपया आप मुझे आगे होने वाले नुकसान से भी बचा लीजिये, क्योंकि मेरे स्वार्थ के कारण ही ऐसा हुआ। दूसरी योगिनी ने कहा कि अरे मैंने तो श्रीमाताजी से आपके बारे में कुछ भी नहीं कहा। मैं तो आपके घर से आकर ये बात भूल भी गई। मेरे मन में आपके लिये कोई द्वेष भी नहीं है। मैंने आपको माफ भी कर दिया था, लेकिन फिर भी ऐसा कैसे हो गया? 

ये घटना एकादश रूद्र पूजा के बाद घटी। पहली सहजयोगिनी को डर था कि कहीं उनके पेड़ के सारे फल न गिर जाँये। उसने इस पूरी घटना के बारे में बताते हुये मुझको एक पत्र लिखा कि श्रीमाताजी मेरे साथ ऐसी घटना घटी है। मैंने अपनी पूर्व जन्मों की बुरी आदत के कारण एक कटहल बचाने के लिये ऐसा व्यवहार किया। इसके बाद उसको ये सभी कटहल भिखारियों और अपने नौकरों आदि को देने पड़े। उससे ये कटहल कोई भी खरीदने के लिये तैयार ही नहीं था। उसका सारा पैसा भी समाप्त हो गया। मुझे मालूम है ये बहुत ज्यादा खतरनाक है, लेकिन फिर भी नकारात्मकता को कैसे खतम किया जाय? आजकल तो ये निगेटिविटी सहजयोग और सहजयोगियों को भी अत्यंत सूक्ष्म तरीके से बहुत परेशान कर रही है। आपको तो मालूम ही होगा कि ऑस्ट्रेलिया में क्या हुआ था? एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी में सुधार करने के लिये उसे ऑस्ट्रेलिया भेजा। वहाँ पर एक अन्य योगिनी जो किसी लीडर की पत्नी थी और उसे काफी गुमान था कि वह किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की पत्नी है। उसने इस नकारात्मक सहजयोगिनी के साथ मिलकर ऐसी ही अन्य नकारात्मक महिलाओं का एक समूह बना लिया और वहाँ पर सहजयोग की सामूहिकता के सारे वाइब्रेशन ही समाप्त हो गये।

 

मेरे जन्मदिन पर ऑस्ट्रेलिया से एक भी सहजयोगी ने फूल नहीं भेजे। उन्होंने मेरी पूजा तो की। पूजा का कर्मकांड तो उन्होंने किया और कहा कि हम इसे अपनी फैमिली में ही कर रहे हैं। भई आपकी कौन सी फैमिली है? आश्रम वाली या आपका अपना परिवार। इससे सब कुछ बरबाद हो गया। सारे ऑस्ट्रेलियन्स के पूरे वाइब्रेशन्स ही खतम हो गये। इसके बाद मुझे उस लीडर को बॉम्बे बुलाना पड़ा। वह अपने स्वयं के वाइब्रेशन्स से भी बहुत परेशान हो गया क्योंकि मेरे सामने आकर वह थर-थर काँपने लगा। उसके हाथ मेरे सामने थर-थर कांपने लगे। वह कहने लगा कि मैं बहुत ज्यादा संवेदनशील हूँ। मैंने उससे कहा कि नहीं ये संवेदनशीलता तो बिल्कुल नहीं है, ये तो तुम्हारे अंदर का भूत है। यदि आपको अपने शरीर में दर्द या ऐसा ही कुछ और महसूस होता है तो इसका अर्थ है कि तुम्हारे अंदर भूत हैं। ये संवेदनशीलता नहीं है। इससे परेशान मत हो और अपने बारे में गलत मत सोचो। मैंने उससे कहा कि अब जरा मेरे सामने बैठ जाओ और फिर मैंने उसके अंदर से बुरी आत्माओं को निकाला। उसने स्वीकार किया कि उसके ऊपर स्कॉटिश लोगों का प्रहार हुआ। मैंने कहा पर क्यों। उसने बताया कि मेरी पत्नी स्कॉटलैण्ड से ऑस्ट्रेलिया गई थी। मैंने उसको बताया कि भूतों की न तो जाति और न ही कोई राष्ट्रीयता होती है। वे केवल भूत होते हैं, इसलिये उनको स्कॉटिश भूत मत कहो। वे रशियन, इटैलियन, भारतीय या फिर कहीं और के भी भूत हो सकते हैं। इन भूतों के कारण पूरे ऑस्ट्रेलिया और न्यूयॉर्क के लोगों में भी पकड़ आ गई।   

अतः देखिये किस प्रकार से नकारात्मकता सामूहिता में प्रवेश करके जेम्स जैसे संत व्यक्ति को परेशान कर सकती है? इन्होंने न केवल उसको परेशान किया बल्कि वह पूरी तरह से बरबाद हो गया। उसने स्वयं ये स्वीकार किया कि माँ मुझे मालूम है कि हुआ क्या है? मुझे पता चला कि उसकी पत्नी जो इस सबके लिये दोषी है। उसका बीता हुआ समय काफी खराब रहा। उसको कई चीजों से एलर्जी और कई और चीजें भी थी। मैंने उसकी पत्नी से कहा कि तुम ऑस्ट्रेलिया से बाहर चली जाओ।

अतः हमें महापूजा को स्थगित करना पड़ा, हालांकि मैं चाहूंगी कि ये पूजा हो जाय। हो सकता है कि इस पूजा में उस आश्रम से कोई सहजयोगी न आये।

 

इसके बाद मैं ये देख कर हैरान रह गई कि इन छः की छह समूह बनाने वाली महिलाओं ने मुझे एक पत्र लिखा कि उन्होंने हमारा उत्थान किया है। उनके वाइब्रेशन्स इतने खराब थे कि सारे वाइब्रेशन्स अत्यंत तीव्रता से बहने लगे और उन्हीं से लड़ने लगे। मैं तो उनका पत्र भी नहीं पढ़ पाई और उनको लग रहा था कि उनका उत्थान हो गया। 

सहजयोग में आप कई चीजों से गुमराह हो सकते हैं, लेकिन अब आपको सावधान रहना पड़ेगा। स्वयं को धोखा न दें। आपको अपना मूल्य पहचानना होगा। जैसा कि आपको मैंने कल बताया कि आप लोग योगी हैं, संत हैं, इसलिये आपको किसी भी ऐसी चीज के सामने नहीं झुकना चाहिये जो घटिया और मूर्खतापूर्ण हो। जो कोई भी ऐसा करने का प्रयास करता है आपको उनको बताना चाहिये कि आप संत हैं। जैसा कि मैंने आपको कल ही बताया था कि उदार चरितानां वसुधैव कुटुम्बकम अर्थात् संतों के लिये तो पूरा विश्व ही उनका अपना परिवार है। 

खासकर यूरोप में ऐसा बहुत अधिक है। मैंने देखा है कि इग्लैण्ड और अमेरिका में महिलायें बहुत ज्यादा दबंग हो गई हैं। उनको पता है कि उन्हें पुरूषों को किस प्रकार कहानियाँ बनाकर नियन्त्रित करना है कि पुरूषों को अपने परिवार और बच्चों की देखभाल किस प्रकार से करनी चाहिये? कई बार ये बड़ा हैरान करने वाला होता है और आप इसमें खोकर रह जाते हैं। मैंने ऐसी कई महिलाओं को देखा है और उनके कारण कई समस्यायें भी पैदा हुई हैं।  

मैं उन औरतों से अनुरोध करती हूँ कि उनको अपने व्यवहार को सुधारना चाहिये और समझना चाहिये कि वे पत्नियाँ हैं और यदि उन्होंने गलत व्यवहार किया तो सहजयोग के कारण उनको जितने भी आशीर्वाद प्राप्त हुये हैं, वे सब समाप्त हो सकते हैं। उनको कई और परेशानियाँ भी हो सकती हैं, मेरे कारण नहीं परंतु एकादश रूद्र के कारण। जिस प्रकार से आप सब कुछ भूतों पर डाल देते हैं, उसी तरह से मैं भी सब कुछ देवी-देवताओं पर डाल दूंगी। मैं इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लूंगी क्योंकि यदि आप गैर-जिम्मेदार हैं तो वे आप पर जबरदस्त प्रहार करेंगे और आपको कैंसर या कोई और गंभीर बीमारी हो सकती है और फिर आप मुझे बिल्कुल भी दोष नहीं दे सकते।  

यही आज की स्थिति है। मैं कुछ ऐसी सहजयोगिनियों को जानती हूँ, जिन्होंने माना कि वे   ऐसा ही कुछ कर रही थीं। वे अपने परिवारों की बुराई कर रहीं थीं और फिर उन पर ऐसी ही कई मुसीबतें आईं। इसको समझा जाना चाहिये क्योंकि मुझे लगता है कि पश्चिमी महिलायें समझदार नहीं होती हैं। वे बिल्कुल समझदार नहीं हैं। मैं इसी सीधे-साधे निष्कर्ष पर पहुँची हूँ। वैसे कुछ तो थोड़ी बहुत समझदार भी हैं, यहाँ तक कि वे यदि पकड़ी हुई भी हो तो भी चल जाता हैं, लेकिन यहाँ की औरतें आक्रामक तो बहुत हैं परंतु समझदार नहीं।

समझदार औरतें तो भारत में होती हैं। वे बातों को समझती हैं। वे जानती हैं कि ये (माँ) आदिशक्ति हैं। यदि उनके पति कोई गलत कार्य करते हैं, तो वे कहती हैं कि अगर आप सुधरेंगे नहीं तो मैं दस दिन तक खाना नहीं खाऊंगी और यदि आप फिर भी नहीं सुधरे तो मैं घर छोड़कर ही चली जाऊंगी। भारतीय औरतों ने ही सहजयोग को भारत में सफल बनाया है। वे बेहद समझदार हैं।

यहाँ की औरतों में समझदारी की कमी है क्योंकि वे अत्यंत आक्रामक होती हैं। वे बातों को समझती ही नहीं हैं। उन्हें मालूम ही नहीं है कि मैं कौन हूँ। वे समझती ही नहीं है कि हमारी कीमत क्या है? उनके लिये तो सभी बेकार की बातें मह्त्वपूर्ण हैं…. आपमें से भी सारे लोग तो नहीं परंतु कुछ ही लोग उनके लिये महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि आप लोगों में समझदारी की कमी है, इसीलिये आप लोग ऐसी बेवकूफ महिलाओं की बातों में जल्दी आ जाते हैं। वे आपको बहुत सी बातें बताती हैं। वे बहुत अच्छी तरह से बातें करती हैं। मैंने देखा है, यहाँ पर केवल औरतें ही बोलती हैं, पुरूष नहीं। यदि आप टेलिविज़न देखें तो वहाँ पर भी केवल औरतें ही बातें करती हैं। यदि कोई बच्चा मर गया है, तो भी उसकी माँ ही बात करती है। मुझे समझ नहीं आता कि जब उसका बच्चा मर गया है, तो वह किस तरह से इतनी बातें कर सकती है। उसका पति चूहे की तरह से दुखी होकर चुपचाप बैठा रहता है। कई बार मैंने इंग्लैण्ड और अन्य स्थानों के सहजयोगियों से कहा है कि आप लोग किसी काम के नहीं हैं। यदि आप लोग ऐसे ही रहे तो एक दिन ये औरतें आपका सर्वनाश कर देंगी। 

औरतों को समझना होगा कि अपने प्रेम, करूणा और सहनशीलता के कारण ही वे महिलायें हैं। वे धरती माँ की तरह से हैं। यहाँ की औरतें बहुत अहंकारी हैं। इसलिये आप सावधान हो जाँय। अमेरिका वहाँ की औरतों के कारण ही बरबाद हुआ। 

मैं आपको भारतीय लड़कियों के कई उदाहरण दे सकती हूँ, जिनकी शादी यहाँ के लड़कों से हुई। उन्होंने अपने पतियों को सुधार दिया है। उन्होंने अपने पतियों को सहजयोग में भी ठीक से जमा दिया है।

पश्चिम की ये एक बहुत बड़ी कमी है। मुझे नहीं मालूम यहाँ के पुरूषों को क्या हो गया है? वे हर समय अपने को दोषी समझते रहते हैं और औरतों के दास बन जाते हैं।

भारत में बिल्कुल उल्टा है, खासकर उत्तरी भारत में औरतों को काफी दबा कर रखा जाता है। वहाँ पर एक सहजयोगिनी थी, उसका पति डॉक्टर था। उसके पति को लकवा मार गया। उसको लकवा मारने के बाद उसकी पत्नी ने बाहर काम करना शुरू कर दिया, इससे उसके पति को बहुत बुरा लगने लगा और वह अपनी पत्नी को बहुत ज्यादा सताने लगा। वह मेरे पास आकर कहने लगी कि माँ पहले अच्छा था जब मैं कमाती नहीं थी तो उनका व्यवहार मेरे प्रति बहुत अच्छा था। अब मैं कमाती हूँ तो अपनी कमाई का एक-एक पैसा उनको दे देती हूँ, लेकिन फिर भी वो मुझको सारे समय बहुत परेशान करते हैं। वो कहते हैं कि तुमने ऐसा क्यों नहीं किया वैसा क्यों नहीं किया?  पहले तो वो ऐसे नहीं थे। उसने कहा जैसे ही वे ठीक हो जायेंगे मैं अपनी नौकरी छोड दूंगी क्योंकि मेरे पति को मेरा पैसा कमाना सहन ही नहीं हो पाता। 

इसलिये मैं आप सबसे अनुराध करती हूँ कि सभी सहजयोगिनियों को सहजयोगियों की तरह से ही सहजयोग की जानकारी होनी चाहिये। केवल सजना-धजना और मुस्कुराना ही जरूरी नहीं है। सहजयोग में आपको बाकी सहजयोगियों की तरह से ही जानकारी होनी चाहिये। अगर आपने बच्चे पैदा कर लिये तो इसका अर्थ ये नहीं है कि आपने बहुत बड़ा काम कर लिया है। बच्चे तो कुत्ते बिल्ली और कोई भी पैदा कर सकता हैं। इसमें आपके पतियों की भी थोड़ी बहुत जिम्मेदारी बनती है।

आपमें से बहुतों के अंदर अभी बहुत सारी समस्यायें हैं। जैसा कि मैंने देखा है, जैसे ही आप किसी की ओर हाथ फैलाते हैं तो आपको लगता है कि मुझे तो यहाँ पकड़ आ रही है, वहाँ पकड़ आ रही है। ये आपके अंदर भूत होने का संकेत है।

मैंने लोगों को ये कहते हुये सुना है कि वे बहुत संवेदनशील हैं। ये बहुत ही भ्रामक चीज है कि मैं बहुत ही ज्यादा संवेदनशील हूँ। मैं सहजयोग में बहुत ऊँचा हूँ। ऐसा करके आप बिल्कुल भी ऊँचा नहीं उठने वाले हैं। आपको बहुत परफैक्ट होना पड़ेगा। सहजयोग में आपकी तंदुरूस्ती ठीक होनी चाहिये और आपको सहजयोग का भी पूरा ज्ञान होना चाहिये।

आप लोगों में से कितनों ने एडवॅन्ट किताब पढ़ी है? कितनों ने एडवॅन्ट को पूरा पढ़ा है? चलिये ठीक है, ईमानदारी से बताइये कि कितनी इग्लिश लड़कियों ने एडवॅन्ट पढ़ी है? ओह चलो अच्छा है।

मैं आपसे क्या कहना चाह रही हूँ कि आपको पता करना पड़ेगा कि सहजयोग क्या है? आपकी गुरू एक महिला हैं जो सारे ज्ञान का स्त्रोत हैं, सारे ज्ञान का महासागर हैं। फिर हमें ज्ञान के मामलों में पुरूषों से पीछे क्यों रहना चाहिये, जबकि हम वेषभूषा व अन्य चीजों के बारे में हर बात में पुरूषों की बराबरी करना चाहते हैं, तो फिर सहजयोग के ज्ञान के बारे में हमें क्यों पीछे रहना चाहिये? आपमें से कितनों ने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया है? अपने हाथ खड़े करिये। केवल महिलायें ही हाथ उठायें। चलिये अब ठीक है। 

इस बारे में आप सभी को गर्व होना चाहिये। आपको मालूम होना चाहिये कि आपमें से कितनों को सहजयोग की जानकारी है? 

आपमें से कितनी लड़कियाँ अपने पतियों पर हावी रहती हैं?

तो फिर आप सावधान हो जाइये। मेरे खयाल से एक वही ईमानदार लड़की है, (जिसने हाथ उठाया)। मैं आप सबको जानती हूँ जो अपने पतियों पर हावी रहती हैं और कभी-कभी उन्हें दबाने की कोशिश भी करती हैं।  

मैं आप सबसे अनुरोध कर रही हूँ क्योंकि आप सब शक्ति हैं। आप ही पुरूषों की शक्ति हैं। आप ही उनको महान बना सकती हैं। आप ही सहजयोग को एक संभावित ऊर्जा बना सकती हैं। आप लोग धरती माँ के समान हैं, जिसे सारी सुंदर चीजें देनी हैं। ये सुंदर फूल, ये कहाँ से आते हैं और ये सारे पेड़?  ये धरती माँ कितनी साधारण लगती हैं, लेकिन जो कुछ भी वे देती हैं, जरा उसकी तरफ देखिये, उन सुंदर चीजों की ओर देखिये।

अतः आपको समझना होगा कि एक अच्छी सहजयोगिनी बनने के लिये सबसे पहले आपको एक उत्कृष्ट पत्नी बनना होगा न कि एक दबंग पत्नी जो हर समय स्वयं को आगे की ओर बढ़ाती रहती है। अब मुझे ये बात अच्छी तरह से समझ आ गई है। अभी हाल ही में मेरे पास कुछ 3-4 ऐसे मामले आये हैं, जिनको जानकर मैं बहुत हैरान हो गई हूँ।

ये या तो मुझ पर या लीडर्स में से किसी पर मुसीबत ला सकता है, क्योंकि भूतों को पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं पर पकड़ बनाना अच्छा लगता है। ये तथ्य है। जब आप बहुत ज्यादा दाँई ओर को चले जाते हैं, तो आप बाँई ओर से पकड़ जाते हैं क्योंकि आप झूले की तरह से गति करते रहते हैं और आप बाँई ओर का ही व्यक्तित्व बन जाते हैं। आपको दूसरे लोगों से ज्यादा भूत पकड़ लेते हैं। 

आपको जानकर हैरानी होगी कि जिन औरतों ने बहुत ज्यादा यौन विकृत जीवन बिताया है, वे पुरूषों से भी ज्यादा बुरी हो जाती हैं। शादी के बाद पुरूष तो ठीक हो जाते हैं परंतु औरतें नहीं। उनको मानसिक समस्यायें हो जाती हैं। आप जानती हैं कि आप भावनापूर्ण हैं, और पूरे विश्व की इच्छशक्ति भी हैं। आप इतनी महत्वपूर्ण हैं कि आपके बिना कुछ भी नहीं हो सकता है।  

यदि मैं इस धरती पर नहीं आती तो सदाशिव और श्रीगणेश मिलकर भी कुछ नहीं कर पाते। यही सत्य है। ये तो मैंने एक औरत, एक माँ, एक पत्नी और एक दम्पत्ति के रूप में इसको प्राप्त किया है। आपके लिये भी ऐसा करना बहुत सरल होना चाहिये क्योंकि मैं भी तो एक औरत हूँ और मैं औरतों की ही तरह रही हूँ। मैंने अपने विश्व भर के सभी बच्चों की देखभाल की है। इस पूरे शो को चलाया है, अपने परिवार की भी अच्छी तरह से देखभाल की है। मैंने इस कार्य में बहुत अच्छा संतुलन बनाये रखा है। अब तो ये सिद्ध भी किया जा चुका है कि एक महिला न केवल पुजारी या प्रीस्ट बन सकती है बल्कि वह गुरूओं की गुरू भी बन सकती है। मैंने आप सबको उस मंच पर खड़ा कर दिया है।

अतः मुझे आप सबको यह बताना है कि आपको सहजयोग के लिये ऊँचा उठना होगा। आप लोग बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि एक खराब औरत और एक खराब पत्नी एक खराब पुरूष की अपेक्षा काफी हानिकारक होती है। ऐसा मैंने ऑस्ट्रेलिया में होता देख लिया है। एक औरत ने पूरे ऑस्ट्रेलिया को खराब कर दिया है और एक महिला ही संपूर्ण ऑस्ट्रेलिया को महान बना सकती है और वो मैं हूँ।

पुरूष होने की अपेक्षा मुझे अपने औरत होने पर गर्व है। जरा श्रीकृष्ण को देखिये, उनको 16,000 स्त्रियों से विवाह करना पड़ा। वे उनको अपनी शिष्यायें नहीं बना सकते थे। वे शक्ति थीं, वे उनकी शक्तियाँ थीं। उनको स्त्रियाँ ही बनना था। लोग कहते हैं कि वे स्त्रीगामी पुरूष थे। लेकिन मेरे लिये कोई भी ये बात नहीं कह सकता है, क्योंकि मैं एक स्त्री हूँ और एक माँ को कोई भी चुनौती नहीं दे सकता है। पिता को तो चुनौती दी जा सकती है, परंतु माँ को नहीं। 

एक महिला के रूप में आप कई चीजों को हासिल कर सकती हैं। इसके लिये आपको कुछ चीजें जाननी जरूरी हैः- दूसरों के लिये अपने शुद्ध प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करना है, दूसरों को अपनी असलियत की अभिव्यक्ति कैसे करे; अपने पति की आप सहजयोग में कैसे मदद कर सकती हैं? 

सहजयोग में विवाह करते समय आपने मुझे वचन दिया था कि आप सहजयोग के लिये कार्य करेंगी और आप अपने पति को भी सहजयोग के कार्यों में मदद करेंगी। जब आपके पति दूसरे सहजयोगियों की देखभाल कर रहे हों तो आप उनकी सहायता करेंगी और आप भी उन सहजयोगियों की सहायता करेंगी जो आपके घर आते हैं। आप अपने घर को सहजयोग सेंटर बनायेंगी, अन्य लोगों को अपने घर बुलायेंगी और सामूहिकता को विकसित होने में मदद करेंगी। 

आपने इन्हीं वादों के साथ विवाह किया था। आप लोग ही अब ये दिखा सकते हैं। औरतें बड़ी आसानी से अदूरदर्शी, दंभी और मतलबी हो सकती है। पुरूषों को ऐसा बनने में कुछ समय लग सकता है। लेकिन इन सभी संभावनाओं के साथ यदि पुरूष अहंवादी भी हो जांय तो आप न इधर की रहेंगी और न उधर की। आप तब न स्त्री रहेंगी और न पुरूष। मेरा मतलब है कि ऐसे लोगों को आप क्या कहेंगी? बेहतर होगा कि आप उनको वो नाम देंगी जो न स्त्री है न पुरूष। 

आइये हम स्त्रियाँ बने और इस बात पर गर्व भी करें। इसी तरह से हम एक बहुत अच्छे संसार की रचना कर सकते हैं।

अब विश्व की मुख्य समस्याओं पर आँये, आपने देखा है कि आजकल मैं राजनीति पर बहुत ज्यादा बात कर रही हूँ। हो सकता है, जब सही समय आयेगा तो एक दिन आप सबको भी राजनीति में उतरना पड़े। मैं अमेरिका में मि0 जैक्सन से मिलने जा रही हूँ। देखिये ये कैसे कार्यान्वित होता है। इसके अलावा हम इसे इंग्लैण्ड में भी कार्यान्वित कर रहे हैं। मैं 2 वर्षों के अंदर इन सभी लीडर्स को मिलने जा रही हूँ। हम इसे समझदारी और गरिमामय तरीके से  कार्यान्वित करेंगे। आप लोगों को ही अब ये दिखाना है कि आप लोग बेहद संतुलित और अच्छे परिवार हैं।

श्रीमाताजी(एक बच्चे से)- हैलो, क्या तुम चुप रहोगे? ये कौन है? विशना, तुम्हारा बच्चा बड़ा शैतान है। क्या इसे तुम बाहर ले जाओगी? तुम्हें उसको सिखाना पड़ेगा कि माँ के सामने उसे कैसे रहना चाहिये? जरा उनको सिखाओ।

एक बच्चा दूसरे बच्चों को भी बिगाड़ सकता है। बच्चे कभी भी ठीक से नहीं रह सकते। उनके बाँये स्वाधिष्ठान पर दो हाथ मारिये और वे बिल्कुल ठीक हो जायेंगे।  

हमें सही ट्रेनिंग देकर और समझदारी से समाज और परिवारों को बनाना है। हमें अपने बच्चों के साथ भी इतनी ही समझदारी से पेश आना पड़ेगा।  

जैसा कि मैंने आपको बताया कि आप 5 साल तक उनको थप्पड़ मार सकती हैं। 5 से 10 साल तक आप उनको शिक्षा दे सकती हैं। 16 साल के बाद उनसे दोस्त की तरह पेश आ सकती हैं। लेकिन यदि आप इन दो बिंदुओं से चूक गये तो आप फिर उनको कभी नहीं सुधार सकतीं हैं। फिर तो वे आपके सिर पर ही बैठ जायेंगे। इस देश के बच्चों की भी यही समस्या है।  

आज तो समस्या आपकी सोच से भी काफी बड़ी है। नकारात्मकता, सभी देशों की औरतों के माध्यम से हिटलर की सेना की तरह सिर उठा रही है। औरतों के माध्यम से यह भयानक हिटलर और सारे मरे हुये जर्मन फिर से जन्म ले रहे हैं। वे अब नाज़ियों की तरह बन रहे हैं। 

अतः औरतों को हमारे अंदर पनपती नकारात्मक शक्तियों से बहुत सावधान रहने की जरूरत है। उनको बहुत नम्र, मधुर और बलिदानी बनने की जरूरत है, क्योंकि उनके अंदर ऐसा करने की शक्तियाँ हैं। केवल औरतें ही ऐसा कर सकती हैं, पुरूष नहीं। पुरूष ऐसा बिल्कुल नहीं कर सकते। उनके अंदर कुछ अलग ही माधुर्य होता हैं, लेकिन औरतों के अंदर समझदारी होती है, जो पूरे विश्व को एक सुंदर संसार में बदल सकती हैं। 

श्रीमाताजीः (एक बच्चे से) तुम क्या रहे हो? चुपचाप बैठो। क्या तुम थोड़ी देर चुप बैठोगे? हैलो, अगर तुम चुप नहीं बैठ सकते तो बाहर चले जाओ। अक्षय चुप हो जाओ। कल तुम यहाँ नहीं थे तो सब एकदम चुप थे। अब सब ठीक से बैठो। आप सबको ठीक से बैठना सीखना होगा। ठीक है? आप लोगों को अपने बच्चों को यहाँ लाने से पहले सिखाना होगा कि उन्हें यहाँ आकर ठीक से बैठना चाहिये। आपको उन्हें ये बात बतानी होगी। बच्चों को ये सीखना होगा।

चलिये अब हम विश्व की कुछ गहन समस्याओं पर आते हैं। आप सब मेरे साथ रहें। समझने का प्रयास करें कि ये समस्या बड़ी गंभीर है। जैस ही आप दाँये या बाँये जाने का प्रयास करते हैं तो आप अति में चले जाते हैं, समस्याओं में पड़ जाते हैं और फिर आप समस्यायें ही पैदा करने लगते हैं। अतः हमें प्रत्येक को मध्य में रखना है और मध्य में रहने के लिये हमें उत्थान मार्ग पर अग्रसर होना है।

अब समस्या ये है कि बहुत से लोग सहजयोग में आ चुके हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, कभी नहीं। इसका मुख्य कारण था कि पहले लोगों के मस्तिष्क का भेदन करना और उनको बताना कि क्या करना है, एकदम असंभव था। लोगों ने इसके लिये हरसंभव प्रयास किये। आज ही मैं उनको श्रीबुद्ध के बारे में बता रही थी कि बुद्ध ने लोगों को ये बताने का बहुत प्रयास किया कि कर्मकांड से बाहर निकल आइये और मोक्ष प्राप्त करें। उन्होंने हर संभव प्रयास किये।

जब बुद्ध की मृत्यु हुई तो लोगों ने कहा कि उन्होंने कहा था कि मूर्तियाँ मत बनाइये, हम लोग स्तूप बनायेंगे तो लोगों ने स्तूप बना लिये और वहाँ पूजा करने लगे। ये उनके द्वारा बताई गई बात से एकदम उलट था। उन्होंने कहा था कि आप निर्वाण, अंदर की सफाई व आत्मनिरीक्षण और मध्य मार्ग को प्राप्त करें। उन्होंने यहाँ तक कहा कि परिवारों की भी कोई जरूरत नहीं है क्योंकि परिवार का अर्थ है मूर्खता। अपने अंदर त्याग की भावना लाइये, ताकि आप इन चीजों को देख सकें। लेकिन लोग हमेशा की तरह मूर्खतापूर्ण बातों को अपना कर बड़े-बड़े स्तूपों को निर्माण करके पूजा आदि करने लगे।

ईसामसीह के जीवन में भी देखिये, महावीर के जीवन में देखिये, सभी महान अवतरणों और पैगम्बरों के, जीवन और इस्लाम में देखिये, यही हुआ है कि उन्होंने इसको विकृत कर दिया है। लेकिन किसने इनको विकृत किया है?  हरेक अवतरण की शिक्षा के सार को किसने बिगाड़ा? ऐसा उनके ही शिष्यों ने किया क्योंकि वे लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं थे। । 

सबसे गंभीर समस्या जो मुझे लगती है, वह है औरतें, जो मेरी ही शिष्यायें हैं, वही सहजयोग को खराब कर देंगी। ये मैं एकदम साफ-साफ देख सकती हूँ। वे सहजयोग को इसलिये खराब करेंगी, क्योंकि वे अत्यंत दबंग हो गईं हैं। वे समझती हैं कि वे सहजयोग को जानती हैं, क्योंकि उनको लगता है कि वे बहुत महान बन गई हैं। एक लीडर की पत्नी खुद को लीडर ही समझती है। यदि आप किसी को कुछ काम करने को बोलें, तो पत्नी समझती है कि उसका अपने पति पर श्रीमाताजी से ज्यादा अधिकार है।

आज ये औरतें ही हैं जो गलत हैं और इसीलिये मैं आपको चेतावनी देना चाहती हूँ। ये मैंने देख लिया है। ये मैं आपको बता सकती हूँ कि इस तरह की कम से कम 10 औरतें हैं, जिन्होंने ऐसे काम किये हैं और अब 11 वीं भी यही करने जा रही है, जो यहीं हैं।

ये ऐसा ही है। मुझे आपसे अनुरोध करना है कि आप लोग समझ जाँय कि इसकी जिम्मेदारी आपकी ही होगी।  

जब रामायण की तरह इतिहास लिखा जायेगा, जहाँ श्रीराम की सौतेली माँ कैकेयी की दासी (मंथरा)पर रामायण की हर घटना का दायित्व है। उसको तो होना ही था। लेकिन आज वह मंथरा दासी कहाँ है और कहाँ वह कैकेयी है?  भारतीय तो उनका नाम तक लेना नहीं चाहते। यदि कोई उनका नाम भी ले लेता है, तो वे उन पर थूकते हैं। आज वे लोग कहाँ चले गये हैं? उस समय उन्होंने सोचा होगा कि उन्होंने बहुत कुछ पा लिया है। 

मुझे आपको यही बताना है। क्या आपको भी इतिहास में अपना नाम वैसे ही दर्ज कराना है,  क्योंकि हम बहुत ही खराब समय में रह रहे हैं और हमें बहुत ही ज्यादा सावधान रहना है? आखिर हम कर क्या रहे हैं?   

मैं वर्तमान क्षण और वर्तमान समय में रहती हूँ तो मैं ये नहीं बता सकती कि भविष्य में आपका क्या होगा?  यदि आपको नर्क में जाना है तो आप जा सकते हैं। मैं ये बिल्कुल नहीं कहूंगी कि कौन नर्क में और कौन स्वर्ग में जाना चाहता है? आप लोगों को ही इसके बारे में अपने आत्मनिराक्षण के माध्यम से निर्णय लेना है कि भविष्य में क्या होने वाला है?

मुझे खासकर औरतों से एक महत्वपूर्ण अनुरोध करना है कि इस आधुनिक समय में पुरूषों को नहीं बल्कि उन्हीं को इस संसार की रक्षा करनी है। पुरूष तो अपना कार्य पहले ही कर चुके हैं। अब अपनी समझदारी, करूणा, बलिदान, अपने विवेक और आंतरिक प्रेम से न केवल अपने छोटे बच्चों, अपने पतियों, अपने परिवारों को बल्कि समूचे विश्व को बचाने की आपकी बारी है। आप सबके लिये ये बहुत सुंदर अवसर है कि इस कार्य में अपना योगदान दें।  

हमारा अपनी कुछ बहुत महान सहजयोगिनियों के साथ बहुत सुंदर अनुभव रहा है कि उनमें से कुछ ने परमानंद की स्थाई स्थिति को प्राप्त कर लिया है। सचमुच। उनमें से कुछ स्थाई रूप से परमानंद को प्राप्त कर चुकी हैं। यहाँ तक कि जब वे आती हैं, तो तुरंत मुझे पता चल जाता है कि वे आ रही हैं। पूरा वातावरण उनका इंतज़ार करता है। पूरा ब्रह्मांड, भी बड़े सम्मान से उनके आगमन की प्रतीक्षा करता है। वे इतनी गुणवत्तावान महिलायें हैं। हमें उनको अपना आदर्श बनाना है न कि मूर्ख, निकम्मी और अहंकारी महिलाओं को। हमें उनको बहुत महान समझना है।

मुझे आपसे बस यही कहना है कि आपके अंदर बहुत ज्यादा क्षमता है। सहजयोग केवल आप और आपके बच्चों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिये।

श्रीमाताजीः (एक बच्चे से) हेलो एन, क्या तुम ठीक से बैठ जाओगी वरना तुमको यहाँ से वापस जाना पड़ेगा। 

आप अपनी गहराई से आप हमारे दिल को छूती हैं। आज की समस्या है कि औरतों ने अपने मूल्यों और अपनी गहराई को खो दिया है। यही आज का मूलभूत समस्या है। आजकल वे प्रतिस्पर्धी, पैसे, सफलता और बेकार की चीजों के पीछे भागने वाली बन गई हैं। वे अपना उत्थान नहीं चाहती हैं।

अतः आपको बहुत ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। मूलरूप से आपकी समस्या यही है और मैं सभी सहजयोगियों को इसी के प्रति सावधान रहने का अनुरोध करती हूँ। यही औरतें स्वर्ग की सीढ़ी भी बन सकती हैं और आपको नरक की ओर भी ढकेल सकती हैं। पता नहीं कैसे परंतु किसी तरह से उन्होंने ऐसी स्थिति पा ली है कि वे चाहें तो हिटलर की तरह से हुकम चला सकती है। इनको ऐसा बनने में मात्र 11 वर्ष लगे। वैसे मुझे मालूम नहीं कि उनको कितने वर्ष लगे पर मैं अब उनको ही इस परिदृश्य में देख पा रही हूँ। 

बिना धर्म, बिना पवित्रता व नम्रता के कोई भी औरत, औरत ही नहीं है। करूणा उनकी सज्जा है। काश कि मैं विलियम ब्लेक की तरह से लिख पाती। काश कि वे पश्चिमी औरतों और उनकी सुंदरता के बारे में लिख पाते कि उनको कैसी औरतें बनना चाहिये? एक बार औरतों को अपनी शक्तियों के बारे में पता चल जाय, तो वे इस विश्व को बहुत सुंदर बना सकती हैं। इतना मुझे मालूम है। उन्हें पुरूषों की तरह नहीं बनना चाहिये, यही उनकी कमजोरी है।  

तो इस कार्यक्रम में हमें दो चीजों का पता चला। कल मैंने आपको आत्म निरीक्षण के बारे में बताया और आज ये बताया कि समस्या कहाँ है?  

अगर आप समुद्र के लिये एक बड़ी से बड़ी नाव बना लें और उसमें एक बड़ा सा छेद कर दें तो वह बड़ी नाव भी डूब जायेगी। भले ही आपकी आँखे बेहद चमकदार हों, लेकिन उनमें भी अगर छोटा सा छेद कर दिया जाय तो आप आकाश को देख नहीं पायेंगी। अपने सूक्ष्म तरीकों से ये औरतें आपके आँखों में ऐसा ही कुछ करने की क्षमता रखती हैं। उनमें सौंदर्य के प्रति आपकी दृष्टि को खोलने का कौशल भी होता है।

मुझे ये बताते हुये बड़ी खुशी हो रही है कि भारत में अधिकांश पुरूष मेरे पास आकर बताते हैं कि मेरी पत्नी मुझे सहजयोग में लेकर के आई। उसने ही मुझे सहजयोग के बारे मे बताया। मेरी पत्नी ने ही सहजयोग और मेरे लिये बहुत कुछ किया है। औरतों के लिये उनके मन में बहुत ज्यादा सम्मान है। मैंने देखा है कि उनमें से काफी औरतें धीरे-धीरे ही अपने पतियों को सहजयोग में लाईं है। निसंदेह कुछ भारतीय औरतें भी बड़ी दुष्ट होती हैं और जब वे विदेश आती हैं तो यदि वे पश्चिमी विचारधारा वाली होती हैं और जब वे पश्चिमी जीवन शैली जीने लगती हैं, तो वे भी काफी दुष्ट बन जाती हैं।  

स्वाभाविक रूप से भारत में एक औरत का दृष्टिकोण काफी अलग होता है। वे अपने घर में धर्म की स्थापना करती  है। अपने घर में वे परमात्मा के प्रेम की सुंदरता की स्थापना करती हैं। वे अपने बच्चों को धार्मिक शिक्षा देती हैं। वे नम्र भी होती हैं। वे कभी भी ऊँची आवाज में बात नहीं करती हैं। वे जानती हैं कि ऊँची आवाज में बात करने से उनके बच्चे बिगड़ सकते हैं। वे अपने पतियों की बात मानती हैं, ताकि उनके बच्चे भी उनकी बात सुने। ये सचमुच फायदेमंद होता है, क्योंकि वहाँ का समाज यहाँ की अपेक्षा काफी अच्छा है।  

अब जो महिला मुक्ति का ये नया आंदोलन चल पड़ा है, वह आजकल के एक गुप्त आंदोलन का प्रतीक है। चूँकि औरतें बाईं नाड़ी प्रधान होती हैं, तो वे थोड़ी धूर्त होती हैं और इस कार्य को बड़ी चालाकी और चतुराई से कर लेती हैं। 

लेकिन आप लोग मेरी तरह से बन सकते हैं। यदि आप चाहें तो आप पुरूषों से ज्यादा अच्छी तरह मेरी सभी शक्तियों को प्राप्त कर सकती हैं, लेकिन इसके लिये आपको स्वयं को महिमामंडित करने वाले अपने क्षुद्र विचारों और दृष्टिकोण से बाहर आना पड़ेगा। मुझे पूर्ण विश्वास है कि ये अवश्य कार्यान्वित होगा, यदि आप ठान लें कि आज जो कुछ भी हमारी माँ कर सकती हैं, हम लोग भी वैसा ही कर सकते हैं।   

सबसे पहली चीज तो आपको खाना बनाना सीखना पड़ेगा। पुरूषों को घरेलू काम न करने दें। इससे वे आप पर पूरी तरह से निर्भर हो जायेंगे। अच्छे से अच्छा खाना बनाइये और अच्छी कुक बन जाइये। आपके पति अपने आप घर आ जायेंगे(माँ जोर से हँसती हैं)। 

अपने पति को एक साक्षी भाव में समझने का प्रयास करें। कभी-कभी वे बिना बात के गुस्सा हो जाते हैं। साक्षी भाव से इसको देखते रहें। वे आपके एक दूसरे बच्चे की तरह हैं। आपको अब एक बड़े बच्चे की देखभाल भी करनी है(श्रीमाताजी हँसती हैं)। उनके लिये दयालु बने और उन पर ध्यान दें। 

ये बड़ी हैरानी की बात है कि आपने अभी तक ये ट्रिक्स सीखी ही नहीं है। शायद आपकी माँ ने आपको ये बात बताई ही नहीं।

श्रीमाताजीः (एक बच्चे के बारे में) मेरे खयाल से इसको बाहर भेज देना चाहिये। अक्षय? अक्षय को बाहर भेज दो। ये दोनों बच्चे बहुत शैतान हैं और इसको क्या हुआ? इसको भी बाहर भेज दो। 

निसंदेह हम लोग एक आदर्श नस्ल, आदर्श परिवार और हर मामले में आदर्श बनने जा रहे हैं। हम दुनिया को दिखा देंगे, कि चाहे लोग हमारे साथ कितनी भी ट्रिक्स क्यों न खेल लें हमें उनकी जरा भी परवाह नहीं है। हमें श्रीगणेश की तरह से आगे ही बढ़ते जाना है। हम कह सकते हैं कि एक बड़े हाथी को चाहे रस्सों और जंजीरों से क्यों न बाँध लें, वो आगे ही बढ़ता जायेगा। हम सहजयोगी जन भी इसी तरह से आगे बढ़ते जायेंगे।

लेकिन सहजयोग की महिलाओं को इसे कार्यान्वित करना होगा। उन्हें अपने पुरूषों को ये शक्ति देनी होगी। यदि मुझे कोई पति कमजोर दिखता है, तो मुझे पता है कि इसके पीछे उसकी पत्नी ही होगी जो उस पर हावी होगी और वो खुद को कुछ ज्यादा ही समझती होगी। यदि मैं किसी पुरूष को अत्यंत शक्तिशाली देखती हूँ, तब भी मैं समझ जाती हूँ कि उसके पीछे भी जरूर कोई स्त्री है। ये बिजली, उसके प्रकाश और लैम्प की तरह से है। यदि बिजली ठीक से आ रही है, तो लैम्प भी ठीक से ही जलेगा। बिलकुल वैसा ही। लेकिन यदि आपने इन मूर्ख औरतों की नकल की तो आपकी खैर नहीं है।   

यदि आपको मालूम हो जाय कि मैं क्या हूँ, कौन हूँ और कहना क्या चाह रही हूँ तो यदि आप उसका अनुसरण करना चाहें तो आप तुरंत समझ जायेंगे, कि माँ हमारी ही जड़ों को मजबूत करना चाह रही हैं।   

क्योंकि आप ही पेड़ों की जड़ें हैं, आपको ही पेड़ को सारा पोषण देना है। आपको सभी सहजयोगियों के लिये माँ और बहन के समान होना है। आपको उनसे लड़ना, झगड़ना और कड़वी बातें नहीं करनी हैं। ऐसा करना औरतों का काम नहीं है। उनको बहस नहीं करनी चाहिये, बल्कि शांत रह कर देखना चाहिये। चाहे उनके चक्र पकड़ रहे हों तो भी पत्नियों के रूप में आप उनको भली-भाँति स्वच्छ कर सकती हैं। ऐसा आप गुप्त रूप से भी कर सकती हैं, क्योंकि समस्या भले ही काफी बड़ी, विनाशकारी और चौंकाने वाली ही क्यों न हो, इसकी चाबी आज की महिलाओं के ही हाथ में है। यदि वे अपनी महिमा व कीमत जान लें और खुद को सस्ता व सस्ती लोकप्रियता के पीछे भागने वाली न बनायें तो वे समस्याओं को चुटकियों में ही हल कर सकती हैं।

अगर मैं इतनी बड़ी समस्या को शुरूआत में ही समाप्त कर सकी हूँ, तो यदि आप भी समस्या की ज़ड़ तक चले जाँय, तो मुझे विश्वास है कि हम सहजयोग को भी ठीक से चला लेंगे। हम पूरे विश्व एवं मानवता को भी पूर्णतया बचा लेंगे, क्योंकि ये आपकी ही इच्छा होगी।

परमात्मा आपको धन्य करें। 

श्रीमाताजी: (सामने बैठे एक बच्चे से) विलियम तुम तो इतने अच्छे बच्चे हो। है न? तुम बहुत अच्छे बच्चे हो, क्या हुआ?  नॅन तुम भी बहुत अच्छी लड़की हो। हो कि नहीं? हाँ। फिर तुम्हे ऐसे लोगों के साथ नहीं रहना चाहिये, जो तुम्हारे दिमाग को खराब करते हैं, ठीक है? क्योंकि तुम इतनी अच्छी हो तुमको उन्हें ओलम्पिया की तरह से बताना चाहिये कि अभी माँ कुछ बात कर रही हैं (तो आप शांति से बैठे)। आपको समझदार बनना है। है कि नहीं? तुमको बहुत बड़ा बनना है। है कि नहीं? इसलिये तुम्हें उन लोगों की बातें नहीं सुननी चाहिये जो तुम्हारा दिमाग खराब करने की कोशिश करते हैं। जब भी माँ बोलती हैं तो उस समय भी वाइब्रेशन्स बहते रहते हैं। है कि नहीं? क्या तुम मेरे वाइब्रेशन्स का अनुभव कर सकती हो? तो फिर तुमको किसी से भी बातें नहीं करनी चाहिये और न ही किसी पर ध्यान देना चाहिये, क्योंकि मैं चाहती हूँ कि तुम लोग खूब महान बनो। तुम सब बहुत महान बनने वाले हो। है कि नहीं? हाँ। तुम लोग मेरी भी मदद करने वाले हो, है कि नहीं? चलो ठीक है।

परमात्मा आपको धन्य करें।

 

                                  —–

पूजा के बाद का प्रवचन

श्रीमाताजी: आज धूप में कौन-कौन बैठने वाला है? अपने हाथ उठाइये. हाँ और कौन? वहाँ, वो कौन है? चलो आप लोगों के लिये अच्छा है। इस तरफ ये कौन है? ये आप लोगों के लिये ही अच्छा है। और कौन है? ठीक है, नहीं तुम्हारे लिये नहीं।

तुम्हारी पत्नी धूप में बैठ सकती है, लेकिन तुम मत बैठना। तुम्हारी पत्नी तो बहुत ही प्यारी है। उसने ही सबसे पहले हाथ उठाया कि वो अपने पति पर हावी रहती है, जिसका अर्थ है कि वो तुम पर हावी नहीं रहती। जो भी पुरूष ये कहता है कि वह बाधित है, इसका अर्थ है कि वह नहीं है, वर्ना वो ये कह कैसे पाता ? 

पता नहीं कैसे पर आज के वाइब्रेशन्स बहुत ज्यादा आनंददाई हैं, जिनको मैं अपने अंदर समा ही नहीं सकी। इसका कारण क्या है, मुझे नहीं मालूम। शायद कहीं कुछ अच्छा हो रहा है। जरूर ऐसा ही है, वर्ना मुझे आज ऐसा क्यों लग रहा है? आज मुझे बेहद खुशी और आनंद का अनुभव हो रहा है। मुझे कहना है कि आज किसी को भी पीछे नहीं रहना चाहिये। मैं चाहती हूँ, जिस आनंद का मुझे अनुभव हो रहा है, बिल्कुल वैसा ही अनुभव आप सबको भी हो।

यदि आप के मन में कोई शंका हो तो आप मुझसे पूछें। क्या आप लोग मुझसे प्रश्न पूछ सकते हैं? ये बड़ा अच्छा विचार है। सहजयोगियों के अलावा मुझसे हर कोई प्रश्न पूछता है, जो ठीक नहीं है। इसका अर्थ है कि मैं आप लोगों को सोचने का मौका ही नहीं देती हूँ। बेशक मैं ऐसा करती भी हूँ क्योंकि ऐसा करने से आप निर्विचार समाधि में चले जाते हैं, परंतु यदि आप निर्विचारिता से बाहर आ पायें तो आप मुझसे प्रश्न पूछ सकते हैं। ऐसा करना बड़ा अच्छा रहेगा। आप लोग प्रश्न पूछें।

हाँ, हाँ, हाँ? 

सहजयोगी: माँ मैं और गहन होना चाहता हूँ, परंतु हो नहीं पाता। मुझे नहीं मालूम ऐसा कैसे हो पायेगा?

श्रीमाताजी:  अच्छा अब बैठ जाओ।

अब हमारी गहनता के बारे में कुछ अवधारणायें होती हैं। जब हम कहते हैं कि हम गहनतम होना चाहते हैं तो इसका क्या अर्थ है?

सहजयोगी: गहनता का अर्थ है वह स्थिति पाना, जिससे हमें आनंद की प्राप्ति हो।  

श्रीमाताजी: यही आनंद है। यदि आपको आनंद की अनुभूति नहीं होती तो आपको अपने अंदर ही इसका उत्तर खोजना चाहिये। क्या आपने अपनी माँ के अलावा किसी अन्य को तो अपने हृदय में नहीं बिठाया है?   

जैसे ही आप किसी गुरू के पास जाते हैं तो वह आपसे पूछता है कि क्या आप मेरे लिये अपने जीवन का बलिदान देंगे? निसंदेह मैं तो ऐसा नहीं चाहती, लेकिन वे आपसे यही प्रश्न पूछते हैं कि क्या आप मेरे लिये अपना जीवन बलिदान करेंगे?

ये कुछ ऐसा है कि आप थोड़ा सा अपने हृदय को खोलिये और मुझे अपने हृदय में बिठाइये। मैं हर समय आपकी सेवा में हूँ। जब भी आप कहेंगे मैं आपके हृदय में बैठ जाऊंगी। यदि आप चाहें तो आप मुझे अपने मस्तिष्क में बिठा लें या चाहे तो अपने हृदय में बिठा लीजिये। आप चाहे मुझे जाने को भी कहेंगे तो भी मैं वहीं रहूंगी, लेकिन बेहतर होगा कि आप मुझे अपने हृदय में रखें, क्योंकि मस्तिष्क में मेरे पास बहुत ज्यादा ज्ञान है, हो सकता है ये आपके लिये बहुत ज्यादा हो। लेकिन यदि आपका मस्तिष्क बहुत ज्यादा हो तो आप मुझे अपने हृदय और मस्तिष्क दोनों में बिठा लीजिये।

यदि आपका लिवर काफी सोच विचार करने वाला है, तो मुझे अपने हृदय, मस्तिष्क और अपने लिवर में बिठा लीजिये। मैं सूक्ष्म से सूक्ष्मतर हो जाऊंगी। क्या आप विश्वास कर सकते हैं? आपके हृदय में मैं किस प्रकार से जा सकती हूँ? मैं जा सकती हूँ। ठीक है? चलो अच्छा है।

अच्छा अब और क्या? इसी तरह के कुछ और प्रश्न पूछिये।

(अस्पष्ट प्रश्न) हमारा अहंकार व प्रतिअहंकार क्यों होता है?

श्रीमाताजी: उसने क्या कहा?

सहजयोगी उसी बात को दोहराता है।

श्रीमाताजीः आह. ये तो आपके साथ काफी गंभीर बात है। देखिये पहले तो आपके इडा और पिंगला नाम की दो नाड़ियाँ हैं। आपके अंदर बाँया और दाँया सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम है, क्योंकि आपको उनका उपयोग करना है। आपको उनका उपयोग करना है, क्योंकि आपको  स्वतंत्रता क्या है इसके बारे में पता होना चाहिये। क्या सही है और क्या गलत, ये जानने के लिये आपको स्वतंत्रता होना चाहिये। पूर्ण स्वतंत्रता तक पहुँचने के लिये आपकी ट्रेनिंग होनी चाहिये। अब तुम ठीक हो?

श्रीमाताजीः कोई और प्रश्न है? हाँ?

(एक सहजयोगी पूछता है कि यदि कोई औरत दबंग हो तो फिर क्या करना चाहिये)

श्रीमाताजीः इधऱ आओ मुझे तुम्हारी बात सुनाई नहीं दी।

सहजयोगीः माँ मैं दबंग औरतों के बारे में पूछ रहा हूँ।

श्रीमाताजीः किस बारे में पूछ रहे हो? 

सहजयोगीः माँ नैं दबंग औरतों के बारे में पूछ रहा हूँ।

सहजयोगीः दबंग औरतों के बारे में पूछ रहा हूँ। उनके लिये शूबीटिंग और बंधन के अलावा   क्या कोई और तकनीक है? 

श्रीमाताजीः शूबीट करो, कभी-कभी थोड़ा ज्यादा किया करो।(श्रीमाताजी जोर से हँसती हैं) देखिये वैसे शूबीटिंग के बाद आपके हाथ थक जाते होंगे। मैंने शूबीटिंग के बाद और क्या करना चाहिये, इसके बारे में आपको कभी बताया ही नहीं क्योंकि आपके हाथ सचमुच थक जाते होंगे। 

यदि कोई आपके ऊपर हावी होने की कोशिश करता है तो आप कई और चीजें कर सकते हैं। बेशक शूबीटिंग उन चीजों में से एक है। इसके बाद सामूहिक शूबीटिंग कीजिये आपको लोगों से कहना है कि कृपया XYZ को शूबीट कर दीजिये। आप उस व्यक्ति का नाम कागज पर लिख सकते हैं, उसके नाम को बंधन देकर जला सकते हैं या कागज पर नाम लिख कर आप कागज को मिट्टी में दबा भी सकते हैं। अपने हाथ में एक नींबू लेकर उस व्यक्ति का नाम 11 बार लेकर नींबू को काट लीजिये।

एक और भी तरीका है, जिसको आप सरलता से कर सकते हैं। इसमें अपनी माँ के पावन चरणों पर उस व्यक्ति को डाल दीजिये। लेकिन ये काफी खतरनाक हो सकता है। यदि आप ये खतरा नहीं मोल लेना चाहते, तो फिर उस व्यक्ति को श्रीसदाशिव के पावन चरण कमलों पर डाल दीजिये। ये कुछ कम खतरनाक होगा। 

यदि कोई व्यक्ति सुधर नहीं रहा, तो उस व्यक्ति को सुधारने के लिये सबसे अच्छा तो ये रहेगा कि आप उसको उसके जीवन का मूल्य समझायें।

उससे बात करिये, क्योंकि अब आप जो कुछ भी बोलेंगे, वो मंत्र के समान है। मैं आपको ये बता ही चुकी हूँ कि आप लोग अब संत हैं। जो कुछ भी आप बोलेंगे वो मंत्र है, जो कुछ भी आप करेंगे वो आशीर्वाद स्वरूप है। कोई आपको छू भी नहीं सकता है। यदि कोई ऐसा करने की कोशिश भी करता है तो उसको इसका परिणाम भुगतना होगा।

मैं एक व्यक्ति को जानती हूँ, जो एयरपोर्ट पर काम करता है और उसे मेरी शक्तियों के बारे में पता है। एक दिन किसी ने उसे परेशान करने की कोशिश की तो उसने कहा तुम सब होशियार रहो, मेरी माँ अत्यंत शक्तिशाली हैं। जो लोग उसे परेशान कर रहे थे, उनमें से एक को तो हार्ट अटैक आ गया, दूसरे को कैंसर हो गया और तीसरे का एक्सीडेंट हो गया। मैंने कहा, मुझे तो इस बारे में कुछ भी पता नहीं है। उसने उन लोगों से कहा, मेरी माँ अत्यंत शक्तिशाली हैं तो आप लोग मेरे साथ ज्यादा छेड़छाड़ न करें। मैं उनका बेटा हूँ। ये व्यक्ति नियमित रूप से सहजयोग भी नहीं करता है, वो हमारे कार्यक्रमों में भी नहीं आ पाता है, लेकिन उसको सहजयोग और मुझ पर पूरा विश्वास है। 

इसके अलावा कुछ लोग एक धागा लेकर, उस व्यक्ति का 11 बार नाम लेकर, उसमें गाँठे लगा देते हैं और फिर उस धागे को जला देते हैं।

अगर आप अपनी माँ का बंधन उस व्यक्ति पर डाल दें तो फिर इन कर्मकांडों की भी कोई जरूरत नहीं है। लेकिन ये आपके अपने समर्पण पर निर्भर करता है। 

और कुछ?

(जरा मेरा स्वेटर उतारने में मेरी मदद करें)। 

कोई और समस्या? अगर है तो पूछ लीजिये। आह हैलो?

सहजयोगीः कुछ पूछता है।

श्रीमाताजीः ये क्या कह रहा है?

सहजयोगीः श्रीमाताजी वह फोटोग्राफ्स और लोगों के सिर के ऊपर दिखाई देने वाले प्रकाश के बारे में पूछ रहा है। 

श्रीमाताजीः ओह? इसका अर्थ है कि अब आप लोग योगीजन और संत है और आपके सिर से प्रकाश निकल रहा है। इसका अर्थ ये भी है कि आपकी कुंडलिनी अब जागृत हो चुकी है और वो (आपके सिर पर) मेरा नाम लिख रही है। 

अभी कुछ दिन पहले मैंने स्पेन में एल ग्रीको की एक बहुत सुंदर पेंटिंग देखी, जिसमें दिखाया गया था कि संतो के सिर व हाथों से प्रकाश निकल रहा है। मैं उस पेंटिंग को खरीदना चाह रही थी, परंतु उस समय काफी अँधेरा हो चुका था तो मैंने सोचा चलो मैं इस पेंटिंग की कॉपी बनवा लूंगी। ये बहुत ही सुंदर पेंटिंग है। इसमें एकदम साफ दिख रहा है कि संतो के सिर व हाथों से प्रकाश निकल रहा है।  

आप जानते हैं कि आप लोग योगी है, परंतु अभी भी आप इसे स्वीकार नहीं कर पाते और समस्या यही है। आपको तो सारे आशीर्वाद प्राप्त हो रहे हैं। क्यों?

लेकिन सावधान रहें, कई लोगों को ये चमत्कार दिखाई दे रहे हैं। हैरी के साथ भी ऐसा ही चमत्कार घटा कि उसने कुछ ऐसी चीज ढूँढ निकाली, जिसके लिये उसे काफी धन, मान सम्मान और नौकरी भी मिलेगी। हर्ष को भी अचानक से बहुत सारा पैसा मिल गया, क्योंकि वह मेरी गाड़ी चलाता है। अचानक से उसे काफी सारी धन दौलत मिल गई। आपमें से कई लोगों को भी ऐसे आशीर्वाद मिले, क्योंकि परमात्मा आपके लिये ऐसा करना चाहते हैं। वे आपकी देखभाल करना चाहते हैं। वैसे ये सब आपके लिये प्रलोभन भी हो सकते हैं, अतः इनसे सावधान रहें। 

कोई और प्रश्न?

सहजयोगीः माँ हम लोग इस मनुष्य शरीर में किस स्तर तक की ऊँचाई प्राप्त कर सकते हैं?

श्रीमाताजीः वो क्या कह रहा है?

सहजयोगीः माँ, मेरे खयाल से वो पूछ रहा है कि उसको समझ नहीं आ रहा कि आत्मसाक्षात्कार क्या है? वह आपसे ये भी पूछना चाहता है कि वो किस स्तर तक उसका उत्थान हो सकता है?

श्रीमाताजीः मुझे लगता है कि तुमको मुझसे आकर मिलना चाहिये। मैं तुमको सब समझा दूंगी। तुमको अपने भविष्य के बारे में नहीं सोचना चाहिये, केवल वर्तमान के बारे में सोचो। हाँ तो हम कहाँ हैं? ये बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि यदि मैं आप लोगों को बताऊँ कि आप भगवान भी बन सकते हैं, तो इसका क्या फायदा है? आपको इन चीजों के बारे में मुझे हल्के में नहीं लेना चाहिये। आपको स्वयं ये देखना होगा कि आप किस तरह से आगे बढ़ रहे हैं, क्योंकि मैंने देखा है कि बिना स्वयं को जज किये ही अचानक से सहजयोगी सोचने लगते हैं कि वे बहुत ऊँचे हो गये हैं। वे किसी के बारे में मुझको ऐसा बोलते हुये सुनते हैं, तो वे समझते हैं कि वे भी बहुत ऊँचे उठ गये हैं। अतः सबसे अच्छा तो ये रहेगा कि आप देखें कि आप अभी कहाँ है और क्या करने वाले हैं? आप मेरे पास आयेंगे और फिर मैं आपको इसके बारे में बताऊंगी। आओगे न?

सहजयोगीः (अस्पष्ट)

श्रीमाताजीः अच्छा जरा उसे बताओ और तब वो मुझे बतायेगा। दाँई विशुद्धि की समस्या? ये क्या है? चलो ठीक है। जरा अपने हाथ को यहाँ रखो(श्रीमाताजी अपने बाँये हाथ को दाँई विशुद्धि पर रखती हैं)। अब बैठ जाओ फिर अपना दाँया हाथ मेरी तरफ करो और कहो, माँ आप ही श्रीकृष्ण हैं। बस इतना ही। ये कार्यान्वित हो जायेगा। ठीक है?

क्या किसी और को भी कोई शारीरिक समस्या है?

सहजयोगीः (बहुत धीमे से)

श्रीमाताजीः यहाँ आओ।

(उस व्यक्ति से, जिसको दाँई विशुद्धि की समस्या है)। हाँ, अब अच्छा है? एक बार दाँई विशुद्धि के मंत्र को 16 बार कहो।

सहजयोगीः (बहुत धीमे से)

श्रीमाताजीः तुम खुद को ठीक कर सकते हो।

श्रीमाताजीः हाँ? 

सहजयोगीः माँ अस्थमा के लिये क्या करें? 

श्रीमाताजीः कहाँ है?

सहजयोगीः छाती में।

श्रीमाताजीः अस्थमा। ठीक है। अभी तुम एक काम करो। अपने अपने बाँये हाथ में, एक प्लास्टिक की थैली में थोड़ी सी बरफ ले लो और उसे अपने दाँये हृदय पर रखो और दाँये हाथ को फोटो की ओर रखो।

सहजयोगीः ठीक है। 

श्रीमाताजीः बस इतना ही करो।

(श्रीमाताजी हिंदी में बात करती हैं)।

सहजयोगिनीः माँ जब मैं ध्यान करती हूँ तो मेरा चित्त स्थिर नही रहता। आपने कहा कि हम आपको अपने हृदय में बिठायें। मैं आपको अपने हृदय में बिठाती हूँ तो तब भी मेरा चित्त आपके सिर के ऊपर ही रहता है। मुझे मालूम नहीं, पर ये ऊपर नीचे होता रहता है। मैं ये समझ ही नहीं पाती कि मुझे अपना चित्त कहाँ रखना है?

श्रीमाताजीः अपनी साँस को 3 बार रोको और सोचो कि मैं, ब्रह्मांड की स्वामिनी तुम्हारे हृदय में हूँ। बस इतना ही। इसको ठीक करना पड़ेगा। वहाँ पर ये समस्या है। इसलिये। (श्रीमाताजी अपने हृदय चक्र को दिखाती हैं। जब तक आप इस समस्या को ठीक नहीं करते तब तक न केवल आपका चित्त बल्कि कुंडलिनी भी वहाँ जाती है। अतः तुम्हें उस चीज को ठीक करना है जो मैंने कल नोटिस की थी कि तुम्हारा मध्य हृदय खराब है। ठीक है? लेकिन तुम कुछ ही दिन पहले ही सहजयोग में आई हो, तो ये धीरे-धीरे ठीक हो जायेगा। ठीक है?

तुमको अपना दाँया हाथ फोटो की ओर रखना है, बाँया हाथ मध्य हृदय पर रख कर साँस रोकनी है। आप सब लोग ऐसा ही कर सकते हैं।

अपनी साँस रोककर जगदम्बा.. जगदम्बा.. जगदम्बा कहें।

अब आपने साँस रोकी हुई है, तो अब जोर से ऐसा कहें।

अब साँस छोड़ दें।

एक बार फिर साँस रोक लें। अपना बाँया हाथ, मेरी ओर करें। हाँ अब ठीक है। अब साँस छोडें और फिर से इसे रोक लें।

अब फिर से छोड़ दें। ठीक है? 

परमात्मा आपको धन्य करें।

श्रीमाताजीः जरा इधर आओ। हाँ हाँ तुम्हीं।

सहजयोगीः (बहुत धीमी आवाज में) माँ बाँई विशुद्धि की समस्या के बारे में बताइये न।

श्रीमाताजीः जरा अपना हाथ यहाँ रखो(श्रीमाताजी अपना हाथ अपनी बाँई विशुद्धि पर रखती हैं) और 16 बार कहो कि माँ मैं बिल्कुल भी दोषी नहीं हूँ।

आप आराम से कुरसी पर भी बैठ सकते हैं और 16 बार हृदय से ऐसा कह सकते हैं।

परमात्मा  आपको धन्य करें। 

सहजयोगीः माँ हमें स्वतन्त्र इच्छा रखनी है, लेकिन कई बार कुछ लोग और स्थितियाँ हमारी स्वतंत्र इच्छा पर हावी होने लगते हैं(अस्पष्ट)। 

श्रीमाताजीः देखिये, वैसे तो सहजयोगी की कोई स्वतंत्र इच्छा होती नहीं है, ये परमात्मा की इच्छा होती है, आपकी आत्मा की इच्छा होती है। अब जो लोग स्वतंत्र इच्छा की बात करते हैं, वे उस समय की बात करते हैं जब आपको कोई स्वतंत्रता ही नहीं है। जब आपको स्वतंत्रता होती है, तब आप ये नहीं कहते कि आपको स्वतंत्रता की इच्छा होनी चाहिये। यदि सूर्य चमक रहा है, तब वो ये नहीं कहता कि मैं सूर्य का प्रकाश हूँ। क्या वो ऐसा कहता है? अतः आप भी स्वतंत्र हैं। कोई भी आप पर हावी नहीं हो सकता है, कोई आपको नीचे नहीं गिरा सकता। यदि कोई ऐसा करता है तो वह आपकी कमजोरी है। यदि कोई आप पर हावी होता है, तो उसे अनदेखा कर दें। आप पर कोई भी हावी नहीं हो सकता। वे सब मूर्ख लोग हैं।

माना घास ये कहे कि वह स्टील को दबा सकती है, तो स्टील क्या कहेगा? वो कहेगा कि ठीक है दफा हो जाओ यहाँ से।

एक आत्मसाक्षात्कारी आत्मा पर कोई हावी नहीं हो सकता है। इसको अनदेखा कर दें। जो ऐसा करते हैं, वे महामूर्ख लोग हैं। आप स्वतंत्र पंछी हैं, आपको कोई भी दबा नहीं सकता। यदि कोई ऐसा करने का प्रयास करता है, तो वो मैं देख लूंगी। ये आप मुझ पर छोड़ दें, वैसे ऐसा करना काफी खतरनाक भी हो सकता है।

सहजयोगिनीः माँ हम लोग किस प्रकार से अधिक नम्र और करूणामय हो सकते हैं?

श्रीमाताजीः (हँसते हुये) नम्र और करूणामय बन कर ही आप ऐसे बन सकते हैं।

मुझे मालूम ही नहीं है कि इसमें मैं क्या कहूँ कि करूणामय किस प्रकार से बना जा सकता है, क्योंकि मैं तो स्वयं ही बहुत करूणामय हूँ। मानसिक रूप से आप करूणामय नहीं बन सकते। यदि आप यदि ऐसा कहने का प्रयास करें कि मुझे करूणामय बनना है, मुझे करूणामय बनना है, तो फिर आप बेहद उग्र बन जायेंगे, क्योंकि आप स्वयं ही अपने से परेशान हो जायेंगे।  

मेरा कहने का अर्थ है कि मानव का स्वभाव बड़ा विचित्र होता है। एक बार मैं एक महिला के साथ फिल्म देखने गई। उसमें दिखाया गया था कि बहू को सास द्वारा बहुत सताया जा रहा था। फिल्म देखते हुये वो महिला बहुत ज्यादा रोने लगी। उस महिला ने मुझसे कहा कि क्या आप मेरे घर आयेंगी? मैंने कहा हाँ, आ जाऊंगी। जब हम उनके घर गये और मैंने देखा कि वह महिला अपनी बहू पर बहुत ज्यादा चिल्ला रही थी। फिल्म में तो वह इतना रो रही थी कि मैंने सोचा कि उसके आँसुओं से बाढ़ ही न आ जाय, लेकिन अपने घर जाते ही वो अपनी बहू के साथ अत्यंत क्रूर बन गई। ये देख कर मैं बहुत ही हैरान हो गई। मेरी आँखो से ये देखकर आँसू बहने लगे। वह कहने लगी क्या बात है, आप फिल्म में तो रोई नहीं तो फिर यहाँ पर क्यों रो रही हैं? मैंने कहा फिल्म में तो वो सब नकली था परंतु ये तो वास्तविक है।  

पहली बात तो ये कि करूणामय व्यक्ति अपने बारे में चिंता नहीं करता है कि मैं इतना दुखी क्यों हूँ, मेरे साथ ये गलत हो गया। करूणामय व्यक्ति ये सोचेगा कि लोग उसके लिये क्या करते है और क्या नहीं। यदि आप स्वयं से इतने लिप्त हो जायेंगे, तो फिर आप कभी करूणामय नहीं हो सकते। 

अतः ये देखने के लिये कि आप दूसरों के लिये चिंतित हैं, आप उनके लिये सोचने लगते हैं और आप जैसे ही अपने से ऊँचे किसी व्यक्ति को देखते हैं, तो आप अत्यंत विनम्र बन जाते हैं। आप ऐसा इसलिये नहीं करते कि वह बहुत ज्यादा सफल हैं, और न ही इसलिये कि उसके पास बहुत ज्यादा धन संपत्ति है और न ही इसलिये कि वह बड़े-बड़े भाषण दे सकता है और वह काफी दबंग है, बल्कि इसलिये कि वह व्यक्ति एकदम नम्र और उदार है।

ऐसे व्यक्ति से जब आप मिलते हैं तो आप बहुत खुश हो जाते हैं और चाहे वह कैसा भी हो, आप उसका अनुसरण करने लगते हैं। आप उसके प्रेम और करूणा के गुण देखते हैं और उसकी प्रशंसा करने लगते है।

परंतु यदि आप किसी व्यक्ति की दबंगई के प्रशंसक बन जाते हैं और सोचते हैं कि जरा इस व्यक्ति को तो देखो ये कितनी अच्छी तरह से बात करता है, कैसे सब कुछ कर लेता है, कैसे ये सब कार्यों को इतनी कुशलता से करता है, तब तो फिर आप गये, परंतु यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो करूणा से भरा हुआ है, उदार है, दयालु है और जो सबके बारे में सोचता है, तब आपको मालूम पड़ता है कि आप इसके सामने कुछ भी नहीं हैं।  

(सहजयोगी हिंदी में बात करता है)।

श्रीमाताजी(हँसती हैं)- देखिये एक प्रश्न पुरूषों की तरफ से आया है कि औरतों की समस्याओं के लिये क्या करना चाहिये? आपको कुछ भी नहीं करना चाहिये, ये आपकी नहीं, उनकी समस्या है। आप इसको नज़रअंदाज़ कर दें। आपको मालूम होना चाहिये कि आप योगी हैं। आप पर कोई भी हावी नहीं हो सकता। यदि फिर भी वे आप पर हावी होती हैं, तो ये उनकी समस्या है और उनको ही इसे ठीक भी करना है। जो व्यक्ति अपनी पत्नी से डरता है, मेरे खयाल से फिर उसका कुछ नहीं हो सकता।

ऐसे लोगों के लिये आपको उसकी जूते से पिटाई (शू-बीटिंग) करनी चाहिये या फिर एक तकिया लेकर, उसको उस दबंग पत्नी का नाम दे दीजिये और उसको जोर-जोर से मारें। दो बार मेरी तरफ से भी मार दीजिये।

कुछ पुरूष भी ऐसे होते हैं, जो अत्यंत दबंग होते हैं पर मुझे कहना चाहिये कि वे भी अब अपनी दबंगई खोते जा रहे हैं। वास्तव में वे बहुत ज्यादा ही दबंग हो गये थे। अब जो कुछ भी उन्होंने किया था, वे उसी की कीमत चुका रहे हैं। बस अब और ज्यादा नहीं। इसे खतम करिये।

पुरूष पहले बहुत ज्यादा दबंग हुआ करते थे। जो कुछ भी उन्होंने किया है, अब उनको उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। है कि नहीं?

एक बार चीन में मैंने कहा था कि कई ब्रिटिश लोगों ने ड्रग्स लेनी शुरू कर दी है, तो चीनी लोग कहने लगे कि ये बहुत अच्छा हुआ। उन्होंने ही ड्रग्स की शुरूआत की थी, अब उन्हें भी इसका मजा चखने दें।

वे सामूहिकता के दृष्टिकोण से नहीं सोचते हैं कि हम लोग मनुष्य हैं और जिस प्रकार से हमने सहन किया है औरों को इस प्रकार से सहन नहीं करना चाहिये। हिटलर ने जिस तरह से यहूदियों को सताया था तो अब यहूदी कहते हैं कि अब हम लोग इनको सतायेंगे। 

क्रिया और प्रतिक्रियाः हमको इस क्रिया और प्रतिक्रिया से बाहर निकल जाना चाहिये। इसकी अनदेखी करिये और इसे समाप्त करिये।

क्योंकि औरतों को बहुत ज्यादा दबाया गया है तो अब वे पुरूषों को दबा रही हैं। आप उन पर हावी हो जाइये और वे फिर आप पर हावी हो जायेंगी। जन्म जन्मांतरों तक ऐसा ही चलता रहता है। आप एक दूसरे के साथ का आनंद कब उठायेंगे? 

पति पत्नी को आप दो मिनट के लिये ही छोड़ दीजिये, वे तुरंत झगड़ने लगेंगे। आप किसी फिल्म को देखिये। गलियों में भी अगर आप जाइये तो वे झगड़ते ही रहते हैं। फिर आपने शादी ही क्यों की? मुझे मालूम नहीं। यही समस्या है, इसलिये।

श्रीबुद्ध का नाम लीजिये और ये चला जायेगा। ये दाँई आज्ञा की समस्या है।

और क्या है?

सहजयोगी(बिल्कुल धीमी आवाज में)

श्रीमाताजीः के वा (क्या हुआ)?

सहजयोगी हिंदी में अपना प्रश्न दोहराता है।

श्रीमाताजीः अपने आपको ठीक करने के लिये सबसे अच्छा तरीका तो ध्यान करना है। इसके बाद आपको खुद ही सब समझ आ जायेगा, परंतु मैंने लोगों को देखा है कि पहले वे बड़ी तेजी से बढ़ते हैं और फिर उनका संतुलन गड़बड़ा जाता है। इसका अर्थ है कि अभी उनको और अधिक ध्यान करने की और ज्यादा समझदारी की जरूरत है। सामान्यतया मेरे फोटो के सामने प्रश्न पूछें तो आपको उचित प्रोटोकॉल्स के साथ एकदम सही उत्तर मिल जायेगा। ये नहीं कि आप हाथ में छड़ी लेकर खड़े होकर पूछें कि माँ अब मुझे बताइये। इससे काम नहीं चलेगा।

सहजयोगिनीः माँ क्या आप मुझे बता सकती हैं कि अपने चित्त को किस प्रकार से सुदृढ़ किया जा सकता है? मेरा चित्त बहुत कमजोर है।  

श्रीमाताजीः ये जानकर मैं बिल्कुल भी हैरान नहीं हूँ कि तुम्हारा चित्त कमजोर है। तुम्हारा चित्त इस देश और पश्चिमी जीवन शैली के कारण कमजोर है। 

यदि आप समझने की कोशिश करें कि ऐसा क्यूँ है तो आप देखेंगे कि सारी इकॉनॉमिक्स ही आपके चित्त को खराब करती है। सबसे पहले तो मशीने आँई। मशीनरी तो राक्षसों की तरह से है जो सिर्फ सृजन करती रहती हैं। जब वे सृजन करती हैं तो फिर वे आपके चित्त को आकर्षित करती हैं। यदि वे आपके चित्त को आकर्षित नहीं करेंगी तो वे अपनी चीजों को बेचेगें कैसे? वे विज्ञापनों और कई चीजों का सृजन करते हैं। अपनी चीजों को बेचने के लिये वे बेहद आकर्षक चीजें बनाते हैं। जब वे देखते हैं कि आप पर इन चीजों का प्रभाव ही नहीं पड़ रहा तो फिर वे बहुत भयावह चीजें करते हैं जैसे नग्न औरतों और पुरूषों या फिर बाथरूम के दृश्य दिखायेंगे। बाथरूम से तो किसी सामान्य व्यक्ति को उल्टियाँ ही आ जायेंगी लेकिन आपके चित्त को आकर्षित करने के लिये इनकी बहुत ज्यादा सराहना की जाती है।

इसके बाद श्रीगणेश आपसे नाराज होने लगते हैं और आपका चित्त अशांत हो जाता है। आजकल पश्चिमी सस्कति में ऐसी ही कई चीजें की जाती हैं। औद्यौगिक मूल्यों के कारण आपका चित्त खराब हो जाता है। अतः मैं ये जानकर बिल्कुल भी हैरान नहीं हूँ।

अपने चित्त को ठीक करने के लिये आप स्वयं को देखना शुरू कर दें कि आपका चित्त जाता कहाँ है? ये कहाँ भटकता है?

पहले मैं लोगों से कहा करती थी कि जब आप चलें तो घास को देखें। धरती माँ को धन्यवाद कहें कि उन्होंने हमको इतनी सुंदर, मुलायम और मखमली घास देखने के लिये दी है। पेड़ों को देखिये और बच्चों को भी देखिये, लेकिन आपकी आँखे 3 फीट(1 मीटर) से ऊपर नहीं उठनी चाहिये। 3 फीट पर आपको सामने से आती हुई कार दिखाई दे जायेगी, हाथी दिखाई दे जायेगा, चींटी दिखाई दे जायेगी। अतः केवल 3 फीट तक अपनी आँखे रखिये। सबसे सुंदर तो बच्चों और फूलों को देखना होगा। अधिकांश सुंदर फूल 3 फीट की ऊँचाई पर ही उगते हैं। आपको इससे ज्यादा ऊपर अपनी आँखे उठाने की जरूरत ही नहीं है। आपका चित्त स्वयमेव ही ठीक हो जायेगा। ऐसा करना बहुत ही सरल है।

ये आधुनिक समय का शाप ही है। मैंने लोगों को देखा है कि वे किस प्रकार से देखते जाते   हैं, कई बार तो मुझे लगता है कि उनकी गरदनें टूट जायेंगी, जिस तरह से वे देखते जाते हैं, देखते जाते हैं और देखते ही जाते हैं। उन्हें मालूम ही नहीं होता कि करना क्या है? उनकी विशुद्धि। इसको वे कैसे ठीक हो सकते हैं?

लेकिन आप लोग ईमानदार हैं और साधक हैं जो अपना उत्थान चाहते हैं। अतः ऐसी कई फोर्सेज हैं, जो आपके लिये अच्छे वातावरण का निर्माण करेंगी, जो आपके लिये बहुत पावन और सुंदर होगा। फिर आप अपने सिर की 14, 15 और 16 फीट की ऊँचाई तक देख कर भी प्रसन्नता का अनुभव करेंगे।

और आपके चित्त को कुछ नहीं होगा। 

इतना कहने मात्र से ही आपका चित्त वहाँ तक जा रहा है, जिसको 14वीं अवस्था कहा जाता है। मैंने पहले ही कह दिया है कि 14 वीं अवस्था से ऊपर।

इसके अलावा और क्या?

श्रीमाताजीः हाँ?

सहजयोगिनीः माँ उन लोगों के बारे में बताइये जो परमात्मा पर विश्वास नहीं करते।

श्रीमाताजीः क्या है?

(सहजयोगी हिंदी में अनुवाद करके बताता है)

ओह वे तो बड़े अच्छे हैं। क्योंकि आजकल परमात्मा पर विश्वास करने का मतलब है अंधापन, पूरी मूर्खता। किसी भी धर्म को मानना सबसे बड़ी मूर्खता है क्योंकि वे धर्म ही नहीं हैं।

अतः जो परमात्मा पर विश्वास नहीं करते उनको जाकर कहो कि क्या आप स्वयं पर विश्वास करते हैं? वे कहेंगे कि हम तो उन पर विश्वास करते ही हैं। निसंदेह वे इससे इनकार तो नहीं कर सकते। आपका स्व या आत्मा कहाँ है? वहीं से इसकी शुरूआत करें। आपकी आत्मा कहाँ खो गई? वह कहेगी मैं इसको मानती हूँ। मैं कहूँगी कि आप होती कौन है ये मानने वाली? क्योंकि आपने कहीं से कुछ पढ़ लिया है, आपके कुछ अपने ही विचार हैं क्योंकि आपका इसी मस्तिष्क तरह से कंडीशन्ड है, क्योंकि आप किसी प्रकार की प्रतिक्रिया कर रहे हैं इसीलिये आप ऐसा कह रहे हैं। लेकिन आप ऐसा विश्वास अपने अहं और कंडीशनिंग के कारण करते हैं। आप इसका विश्वास वास्तविकता के कारण नहीं कर रहे हैं।

ऐसे लोगों से बात करना उन लोगों की अपेक्षा काफी सरल है, जो किसी चीज के प्रति बेहद जुड़ाव महसूस करते हैं। उनसे बात करना भयावह है। उनसे आप बात ही नहीं कर सकते। अतः ऐसे समर्पित प्रशंसकों से बहस करने की अपेक्षा उनको भूल जाइये।

सहजयोगीः (अस्पष्ट—वाइब्रेशन्स को अनुभव नहीं कर पाने की समस्या)

सहजयोगी अपना प्रश्न हिंदी में दोहराता है।

श्रीमाताजीः अपनी बाँई नाड़ी को दाँई नाड़ी पर 108 बार गिराइये।

इसके बाद कुंडलिनी को उठाइये। 

सहजयोगीः कभी-कभी हमें आँखों में कुछ धब्बे जैसे दिखाई देते हैं। मुझे लगता है कि ये शायद बैक आज्ञा के कारण होता है।

(सहजयोगी अपना प्रश्न हिंदी में दोहराता है)।

श्रीमाताजीः उन पर बंधन डाल दीजिये। उनको भगाने की कोशिश करें, बस इतना ही करें। कुछ समय बाद वे निकल जायेंगे (श्रीमाताजी अपनी दाँई आँख पर बंधन डालती हैं)। बाँई आज्ञा पर भी बंधन डालें। किसी को अपने सिर के पीछे प्रकाश रखने को कहें (श्रीमाताजी अपनी बैक आज्ञा दिखाती हैं) आप प्रकाश या फोटो और प्रकाश दोनों भी रख सकते हैं। बाँया हाथ फोटो की ओर और दाँया हाथ धरती माँ पर और पीछे की ओर प्रकाश(श्रीमाताजी अपना बैक आज्ञा दिखाती हैं)

सहजयोगिनीः (धीमी आवाज में) 

श्रीमाताजीः क्या है?

(सहजयोगी अपना प्रश्न हिंदी में दोहराता है) 

श्रीमाताजीः अच्छा होगा कि आप इसकी कोशिश न करें। आपको केवल उतना ही देखना चाहिये, जितना आप देख सकते हैं। इससे ज्यादा देखने की कोशिश भी मत कीजिये। माना आप सूर्य देखना चाहते हैं। ठीक है। उसको जितना देख सकते हैं उतना ही देखिये। बहुत ज्यादा मत देखिये। आप कितना ज्यादा सह सकते हैं, ये तो आप मुझे देख कर स्वयमेव ही समझ जायेंगे क्योंकि मेरे अंदर अत्यधिक करूणा है।।

आपको सांद्रा की एक चीज के लिये तारीफ करनी होगी। एक दिन मैं इटली से आ रही थी और गाइडो (Guido) ने मुझसे कहा कि उसको किसी प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिये 16,000 पाउंड्स की जरूरत है। मैंने कहा क्या सचमुच? शायद मेरे पर्स में इतने पैसे तो नहीं होंगे, लेकिन चलो देखते हैं। जैसे ही मैं एयरपोर्ट पहुँची तो सांद्रा ने मुझे एक लिफाफा दिया। उसमें ठीक 16,000 पाउंड्स मूल्य के लीरा (इटली की करेंसी) थे। उसने मुझसे कहा कि माँ आप चाहे जिस तरह से इन पैसों का उपयोग करें। मैंने उसको कहा कि निश्चित रूप से तुम आदिशक्ति से एकरूप हो क्योंकि उसने इतनी तेजी से ये कार्य किया। उस समय गाइडो ने मुझसे कहा कि इस समय मुझे इन पैसों की जरूरत नहीं है। आप इनको अपने पास ही रखिये। मैंने कहा ठीक है। अगली बार जब मैं वहाँ गई तो मैंने उससे कहा कि इन पैसों से वो शूडी कैम्प के लिये सारी चीजें खरीदेगा।

इसलिये मैंने शूडी कैम्प के लिये संगमरमर, टाइल्स और सैनिटरी फिटिंग्स आदि खरीदीं। हमने मिलान में सब कुछ एक ही दिन में खरीद लिया। जो कुछ भी आप वहाँ देख रहे हैं, जब इसका बिल आया तो वो ठीक 16,100 पाउंड्स का था। काफी सारे पर्दे भी इसी पैसे से में आये। मैंने इंग्लैण्ड के सहजयोगियों से कहा कि अब इमारती लकड़ी भी 16,100 में ही खरीदिये और उसे इटली भेज दीजिये क्योंकि वहाँ पर ये लकड़ी काफी मंहगी है। लेकिन जरा सोचिये, ये सब चीजें भी इतनी ही कीमत की आईं। इसलिये बार्टर सिस्टम किया गया और सब चीजें अच्छी तरह से कार्यान्वित हो गईं। अतः हमें इन कार्यों के लिये अपने हाथ आगे बढ़ाने चाहिये।

इसके अलावा गोल्डन बिल्डर्स और उनके सभी सदस्यों की भी तारीफ करनी होगी क्योंकि उन्होंने इस जगह को काफी सुंदरता से बनाया है  

हमें उन लोगों की भी तारीफ करनी होगी, जिन्होंने पर्दे के पीछे से कार्य किया है, जैसे कुकिंग और बाकी चीजें। जो लोग गोल्डन बिल्डर्स के सदस्य भी नहीं हैं, उन्होंने भी यहाँ आकर काफी परिश्रम किया और ये शूडी कैम्प हमें दिया। 

हमें उन डॉक्टर्स की प्रशंसा करनी होगी, जो अपनी क्लिनिक यहाँ पर खोलने वाले हैं और यहाँ के इंग्लिश लोगों के लिये बहुत अच्छा काम करने वाले हैं। यहाँ के उन संगीतकारों की भी प्रशंसा हमें करनी होगी, जो हर सप्ताहांत पर यहाँ आकर संगीत की प्रैक्टिस करेंगे और सहजयोगियों व अन्य लोगों के लिये बहुत सुंदर संगीत का सृजन करेंगे।

ये बहुत सुंदर जगह है और हमने आपके लिये बहुत सुंदर स्थान बनाया है, जहाँ पर आकर आप बहुत सारी चीजों को कर सकते हैं। हम लोग कलाकारों के लिये प्रदर्शनी रख सकते हैं, बच्चों की शिक्षा दीक्षा का कार्य कर सकते हैं। इस जगह पर हम बहुत सारी चीजें कर सकते हैं। परंतु हमें इसके बारे में सोचना होगा कि हम यहाँ पर क्या–क्या कर सकते हैं। 

ये स्थान हम सबका है और नहीं भी है। यहाँ पर हमें त्याग की भावना भी सीखनी होगी क्योंकि जब आपके पास इतना बड़ा और सुंदर सा घर होता है तो तुरंत आपका महालक्ष्मी तत्व जागृत हो जाता है। ये आपका अपना ही घर है।

इस महालक्ष्मी तत्व के साथ आप अपने अंदर की मैं और मेरा व स्वामित्व की भावना का त्याग भी करने लगते हैं। आप एक त्यागवान व्यक्ति बन जाते हैं, जो अपना सब कुछ त्याग कर भरपूर जीवन बिता रहा है। हम सबके साथ ऐसा ही होना चाहिये।

आप सभी का इस स्थान पर सप्ताहांत पर आकर कार्य करने के लिये स्वागत है, परंतु इस स्थान का उपयोग बच्चों के खेलने के लिये नहीं किया जाना चाहिये कि आप सब अपने बच्चों को यहाँ पर भेजकर खुद छुट्टी मनायें। यदि आपका बच्चा यहाँ आ रहा है, तो उनके माता-पिता को भी उनके साथ आना चाहिये। आपको इस स्थान को बच्चों को भेजने के लिये उपयोग नहीं करना चाहिये। आपको यहाँ रह कर ध्यान धारणा करनी चाहिये। इस स्थान का उपयोग ऐसे किसी और उद्देश्य के लिये नहीं करना चाहिये।

मैं सोचती हूँ कि प्रत्येक सप्ताहांत यहाँ आप सेमिनार आयोजित कर सकते हैं। हर सप्ताहांत पर लोग यहाँ आकर लोग छुट्टियों का नहीं, बल्कि सहजयोग के वास्तविक कार्यदिवस का आनंद उठा सकते हैं।

इस सेमिनार के अंत में मैं उन सब सहजयोगियों का शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ, जिन्होंने मेरे परिवार की देखभाल की है और खुद कहीं चले गये हैं। मुझे तो मालूम भी नहीं हैं कि वे कहाँ गये। उन्हीं की ओर से मैं आप सबको धन्यवाद कहना चाहती हूँ। इतने सारे लोगों की इस सुंदर और सौहार्दपूर्ण बैठक के आयोजन के लिये भी मैं आपका धन्यवाद करना चाहती हूँ। 

मैं उन सभी सहजयोगियों का भी धन्यवाद करना चाहती हूँ, जो विदेश से आये हैं और जो सहजयोग के लिये कार्य करने की इच्छा को मजबूत करना चाहते हैं, क्योंकि वे अपने-अपने देशों में बहुत सुंदर कार्य कर रहे हैं। वे एक के बाद एक कई आश्रमों की स्थापना कर रहे हैं जब कि यू0के0 में हमारा काम काफी धीमा रहा है। उनमें से आधे लोग आते हैं और आधे गायब हो जाते हैं। वे आपको काफी निराश करते हैं। यू0के0 में जिस तरह से लोग व्यवहार करते हैं, इससे कई बार बड़ा दुख होता है।

जो कुछ भी हो, मैं तो उनको क्षमा ही करती रहती हूँ, लेकिन ऐसा आप एक सीमा तक ही कर सकते हैं। अतः यहाँ पर आकर ध्यान करने का उत्तरदायित्व उन्हीं इंग्लिश सहजयोगियों का है, जिनको इस स्थान के आशीर्वाद प्राप्त हुये हैं। अपने पूरे परिवार को यहाँ लाइये, ध्यान करने का प्रयास करिये। सोचिये कि ये आपका ही आश्रम है, जहाँ आपको रहना और इस कार्य को कार्यान्वित करना है। 

आप सबको इसका प्रयास करना चाहिये, और मुझे पूरा विश्वास है कि आपकी तेजी से प्रगति होगी।

परमात्मा आपको आशीर्वादित करें।

 
अब मैं सोचती हूँ कि आप सब जाँयें और लंच करें या जो कुछ भी आप करना चाहें। जो लोग भी जाना चाहते हैं वे आकर मुझसे मिलें। मुझे उनको कुछ बताना है।