Sahasrara Puja: Jump Into the Ocean of Joy

Sorrento (Italy)

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सहस्रार पूजा, “प्रेम के महासागर में कूदें”

सोरेंटो (इटली) 6 मई 1989।

पिछली रात पूर्ण अंधकार की रात थी, जिसे वे अमावस्या कहते हैं; और अभी-अभी बस चंद्रमा का पहला चरण शुरू हुआ है।

आज हम यहां उस दिन को मनाने के लिए हैं जब सहस्रार खोला गया था। साथ ही आपने फोटो में देखा है। यह वास्तव में मेरे मस्तिष्क की एक तस्वीर थी, जिसमें दिखाया गया था कि सहस्रार कैसे खुला था। अब मस्तिष्क के प्रकाश की तस्वीर खींची जाना संभव हुआ है। इस आधुनिक समय ने यह कुछ महान कार्य किया है।

तो आधुनिक समय बहुत सी ऐसी चीजें लेकर आया है जो दिव्य अस्तित्व को साबित कर सकती हैं। साथ ही यह मेरे बारे में भी साबित कर सकता है। यह आपको विश्वास दिला सकता है कि मैं क्या हूं। यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि आधुनिक समय में इस अवतरण को पहचानना है, पूरी तरह से पहचानना है। यह सभी सहज योगियों के लिए एक शर्त है।

 अब देखते हैं कि आधुनिक समय में लोगों के दिमाग में क्या चल रहा है। आज लोगों के दिमाग में देखा जाए तो सहस्रार पर वार हो रहा है। हमला बहुत पहले से होता आया है लेकिन आधुनिक समय में यह सबसे बुरा समय है। वे लिंबिक एरिया (मस्तिष्क में भावना और प्रेरणा का क्षेत्र )को बेहद असंवेदनशील बनाने की कोशिश कर रहे हैं। बहुत उदास उपन्यास, अति अवसाद के विचार और बहुत उदास संगीत, आप कह सकते हैं ग्रीक त्रासदी जैसी बकवास। हमें कहना चाहिए कि, ये सब बातें मध्यकाल से तब तक आई जब तक नये युग की शुरूआत हो चुकी है। खुद यही हमारे लिम्बिक क्षेत्र के लिए ठीक नहीं था। इसने हमें काफी अवसाद पूर्ण बना दिया था। तथाकथित दुखों से बचने के लिए हमने शराब का सहारा लिया।

  लेकिन फिर यह आधुनिक युग आया जिसमें लोग अति सक्रिय हो गए – अति-गतिविधि शुरू हो गई। साथ ही मस्तिष्क भी अति सक्रिय हो गया। पहले की नीरसता के अलावा, यह अति-गतिविधि के दूसरे चरम पर चला गया है। इसलिए इसे फिर से सुस्त करने के लिए उन्होंने ड्रग्स का सहारा लिया, उन्होंने बहुत ही भयानक संगीत का सहारा लिया। इस तरह उन्होंने मस्तिष्क के इस लिम्बिक क्षेत्र को बहुत ही असंवेदनशील बना दिया। तो एक दवा जो शुरुआत में सिर्फ एक उत्प्रेरक थी उसे अधिक मात्रा में लेना पड़ा था और बाद में उन्हें ऐसी ड्रग्स अपनाना पड़ीं जो बहुत अधिक गंभीर प्रकृति की थीं। यह ऐसे ही चलता रहा और अब हम जानते हैं कि लोग सोचते हैं कि यह ड्रग्स ही एकमात्र तरीका है जिससे वे जीवित रह सकते हैं। क्यों? उस तनाव के कारण जिस के बारे में वे बात करते हैं।

आधुनिक समय में हमारे पास ‘तनाव’ नाम की कोई चीज होती है। जो की  वहाँ पहले कभी नहीं था। लोगों ने कभी अपने तनावों के बारे में चर्चा नहीं की। आजकल हर कोई कहता है, “मैं तनाव में हूँ!” “आप मुझे तनाव देते हैं!” यह तनाव क्या है? यह मेरे अवतरण के कारण है। लिम्बिक क्षेत्र (मस्तिष्क में स्थित भावना और प्रेरणा का क्षेत्र) मेरे बारे में और कुण्डलिनी के बारे में भी जानना चाहता है।  जैसे-जैसे सहज योग बढ़ रहा है, लोगों में उठने की कोशिश हो रही है; क्योंकि आप चैनल बन जाते हैं। आप जहां भी जाते हैं, आप वायब्रेशन उत्पन्न करते हैं, और ये चैतन्य कुंडलिनी को एक चुनौती देते हैं, या एक संदेश देते हैं, और विभिन्न लोगों में इसका उदय होता है। यह सहस्रार तक नहीं भी उठ पाए, या यह सहस्रार तक उठ भी सकती है, लेकिन यह वापस गिर जाती है, क्योंकि इसकी कोई पहचान \मान्यता नहीं है।

  इसलिए हर बार जब वे कुछ करते हैं, तो यह कुंडलिनी ऊपर आ जाती है और उन्हें एक दबाव देती है, क्योंकि उनका सहस्रार खुला नहीं होता है। यह एक बंद दरवाजा है। बंद दरवाजे की वजह से उनके सिर में एक तरह का दबाव पड़ता है, जिसे वे समझ नहीं पाते और इसे वे ‘तनाव’ कहते हैं। असल में कुण्डलिनी उसे ही बाहर धकेलने की कोशिश कर रही है, लेकिन वह नहीं कर पाती। और जिन्हें आत्मसाक्षात्कार हो जाता है, वे भी यदि अपने सहस्रार को ठीक नहीं कर पाते हैं, तो वे तनाव में पड़ते चले जाते हैं। इसलिए, हालांकि सहस्रार को इतने साल पहले खोल दिया गया है, फिर भी हमें कुछ काम करने हैं – सबसे पहले अपने सहस्रार को साफ करना है।

तो पहली बात है सहस्रार का टूटना, फिर एक बार जब यह खुल गया,  ब्रह्मरंध्र खुल गया, फिर हमें कृपा महसूस होने लगी, और यह हमारी इड़ा और पिंगला पर चली गई – कृपा ना की कुंडलिनी। और कृपा, जो चैतन्य है, चौतरफा, हमारे बाएँ और दाएँ पक्षों को शांत करती है जिससे हमारे चक्र अधिक खुल गए, और कुंडलिनी के अधिक धागे पारित होने लगे।

  इसलिए मैं हमेशा सहज योगियों से कहती हूं कि यह महत्वपूर्ण है कि आपको ध्यान करना चाहिए। यदि आपका सहस्रार ठीक है, तो आपके सभी चक्र ठीक होंगे, क्योंकि, जैसा कि आप जानते हैं, कि पीठ, या इन सभी चक्रों को नियंत्रित करने वाले केंद्र, लिम्बिक क्षेत्र के आसपास मस्तिष्क में हैं। तो अगर आपका सहस्रार निर्मल है तो सब कुछ बहुत अलग तरीके से काम करता है।

 सहस्रार को ठीक कैसे रखा जाए, यह बड़ी समस्या है जो हमेशा लोग मुझसे पूछते हैं। आप जानते हैं कि मैं सहस्रार में निवास करती हूँ। मैंने एक हजार पंखुड़ी वाले कमल पर अवतार लिया है। इसलिए मैं इसे भेद भी सकी थी। जैसी आज मैं हूं, जैसा आप मुझे देखते हैं। बेशक वे कहते हैं, “सहस्रारे महामाया” (सहस्त्रारे महामाया) तो यह भ्रम है जो आपके लिए हर समय है, जो बहुत मायावी है। इसे उस तरह से ही होना था, क्योंकि आप मेरा सामना नहीं कर पाते, मुझमें से प्रसारित सारे प्रकाश या जिस तरह से आपने कल सहस्रार को देखा था, उसके साथ  सकते थे – सभी तरफ प्रसारित अमूर्त रंग और बाहर फेंकी गई रोशनी।

 जब मैं बोल रही होती हूँ तो कृपया तस्वीरें न लें, ठीक है? आप बाद में ले सकते हैं। कोई जल्दी नहीं है। बस मेरे भाषण पर ध्यान दो। ध्यान दीजिए। यह महत्वपूर्ण है। ऐसा ही होना चाहिए, यह पहले से ही बता दिया गया है कि पूजा के दौरान किसी को भी फोटो नहीं खींचनी चाहिए क्योंकि यह एक बहुत गहन चीज है जिसे कि कार्यान्वित होना है। ध्यान दीजिए। भले ही आप समझ ना पा रहे हों, आप पर इसका असर पड़ता है। इसलिए मैं आपसे निवेदन करूंगी कि जब मैं बात कर रही होती हूं तो आप मुझ पर पूरा ध्यान दें। यह बेहतर काम करता है।

 अब इस सहस्रार की देखभाल आपको करनी है। यह आपकी माता का मंदिर है। जब आप कहते हैं कि आप मुझे ह्रदय में रखते हैं, वास्तव में आप मुझे सहस्रार में बैठाते हैं। क्योंकि, जैसा कि आप जानते हैं, यहां स्थित ब्रह्मरंध्र (श्री माताजी अपने ब्रह्मरंध्र को स्पर्श करती हैं) फॉन्टानेल हड्डी क्षेत्र है, इसमें पीठ है, केंद्र है, जो हृदय को नियंत्रित करता है, जो  की सदाशिव का आसन है या आप शिव का कह सकते हैं। इसलिए जब तुमने मुझे हृदय में बिठाया तो वास्तव में तुमने मुझे वहां बैठा दिया। तो हृदय से वहां तक उठाना, या उधर से हृदय में लाना, यह मामला दो प्रकार के लोगों का है।

  कुछ लोग जो अपने दिल में संवेदनशील होते हैं – मैं कहूंगी कि यूरोप में हम कह सकते हैं कि इटालियन अपने दिल के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं – जैसे ही वे मुझे देखते हैं वे सबसे पहले अपने दिल पर हाथ रखते हैं। और यही वह बात है, कि, अगर आप मुझे अपने दिल में महसूस करने की कोशिश करते हैं, तो यह बहुत आसान है। मुझे अपने दिल में महसूस करना। अब आप ऐसा भी कह सकते हैं, “यह कैसे करें?” आपको मुझसे वैसे ही प्यार करना होगा जैसे मैं आपसे प्यार करती हूं। आपको आपस में हर एक से प्यार करना है, क्योंकि आप सभी मेरे भीतर हैं।

और आप किसी को प्यार करना नहीं सिखा सकते। प्रेम भीतर है। और प्रेम अभिव्यक्त होता है अगर, बस, तुम अपना हृदय खोलो। अब क्या इसे रोकता है, हमें इसकी जांच करनी चाहिए।

  सबसे पहले, कंडीशनिंग। पश्चिम में अपने प्यार का इजहार करना वास्तव में पाप माना जाता है। उन्हें यह कहने में समय लगता है कि, “मैं तुमसे प्यार करता हूँ,” लेकिन “मैं तुमसे नफरत करता हूँ!”  यहां तक कि ऐसा एक बच्चा भी कह सकता है, ”मैं तुमसे नफरत करता हूं! मुझे आपसे नफ़रत है! मुझे आपसे नफ़रत है!” लेकिन किसी से नफरत करना पाप है। किसी से भी घृणा करना पाप है। तो यह कहना कि, “मैं तुमसे नफरत करता हूँ! मुझे आपसे नफ़रत है!” पाप कर्म है। तो किसी व्यक्ति को क्या करना चाहिए है कि कहना है,  कहते रहना है कि, “मैं तुमसे प्यार करता हूँ।” आखिरकार, आपको उस व्यक्ति से प्यार करना चाहिए जो आपको बहुत प्रिय है। जिस किसी ने भी आपके लिए कुछ अच्छा किया है, आप उस व्यक्ति से प्यार करते हैं। लेकिन अगर खुद आदि शक्ति ने आपको पुनर्जन्म दिया है, तो उन्हें प्रेम करना सबसे आसान काम होना चाहिए। और अगर वह कहती है कि, “वे सब मेरे शरीर के भीतर हैं,” तो एक दूसरे से प्यार करना और भी आसान हो जाना चाहिए।

तो इस प्रेम के माध्यम से सहस्रार की पूरी सफाई की जाती है, यह प्रेम जो सशर्त नहीं है, जो निर्बाध है, जो कोई प्रतिसाद नहीं चाहता है या कोई बदला नहीं चाहता है – निर्वाज्य। लेकिन जड़ता बहुत ज्यादा हैं। पहले कंडीशनिंग की समस्या आपके सामने तब आती है जब आप ऐसा सोचते हैं कि, “यह जड़ता मुझसे किसी से नफरत करवाती है,” या, “मैं किसी से प्यार नहीं कर पाता क्योंकि यह अमूक शर्त है!” लेकिन अगर आप इसे एक-एक करके देखें तप जानेंगे कि वास्तव में खुद कंडीशनिंग ही इतनी बेतुकी बात है।

इस बात को सरल बनाने के लिए, मैं चाहती हूं कि आप इस संस्कारबद्धता वाले भाग को समझें जहां मैंने एक बार एक दिलचस्प लेख पढ़ा, “रोमांस को किसने मार डाला?” तो उन्होंने कहा “हेयरड्रेसर”ने । मैं सोच रही थी कि वह लेखक हेयरड्रेसर के साथ रोमांस को कैसे जोड़ रहा है? चूँकि लोग किसी एक नाई के पास जाने के आदी थे और कोई विशिष्ट प्रकार की केश सज्जा को कोई व्यक्ति पसंद कर लेता। तो वह कहेगा कि, “मुझे ऐसी हेयरड्रेसिंग बहुत पसंद है!” अब मान लो उसकी मँगेतर, या उसकी पत्नी किसी दूसरे प्रकार की केश-सज्जा कर लेती थी, क्योंकि रोज़ नई-नई चीज़ें आ रही हैं, तो पति तुरंत कहेगा, “अरे, मैं तुम्हारे केश-सज्जा के कारण तुमसे घृणा करता हूँ!” कारण कि वह एक विशिष्ट प्रकार की केश सज्जा को ही पसंद करता है, इसलिए वह प्यार करता है। अन्यथा अगर आपके पास एक दुसरे प्रकार की हेयर स्टाइल है तो आप उससे नफरत करते हैं! “मुझे यह पसंद नहीं है!” यह कहना कि “मुझे यह पसंद नहीं है” और “मुझे यह पसंद है”, अपने आप में इस बात का एक संकेत है कि कंडीशनिंग बहुत अधिक है।

 आप एक उचित हेयर स्टाइल बनाते हैं और आप ठीक से तैयार होते हैं और आप बाहर आते हैं और फिर अचानक लोग कहते हैं, “ओह, मुझे इससे नफरत है!” आप हो कौन ? हमें किसी से ऐसा कहने का क्या अधिकार है? आप किसी कानून अदालत द्वारा नियुक्त न्यायाधीश नहीं हैं। तो किसी को चोट पहुँचाने के लिए हम ऐसा क्यों कहते हैं कि,  “मुझे इससे नफरत है” ऐसा कह कर? इसके विपरीत आपको यह कहना चाहिए कि, “ठीक है, मुझे यह पसंद है लेकिन आप बेहतर कर सकते थे।” यह प्यार की निशानी है जब आप चाहते हैं कि कोई व्यक्ति इस तरह से तैयार हो जो आकर्षक हो। लेकिन हम जो देखतें है यह बहुत ही घटिया स्तर की बात है। फिर हम और भी आगे बढ़ जाते है किसी एक व्यक्ति को आकलन करने के लिए कि: वह कितना बुद्धिमान है, वह कितना चतुर है, वह कितना करिश्माई है, कितना आकर्षक है – यह एक और शब्द है जो बहुत मायावी है।

 ये भी मन की एक तरह की कंडीशनिंग हैं कि आप सोचते हैं कि किसी व्यक्ति की एक विशेष शैली एक प्रेमपूर्ण व्यक्ति है, कि आप उस व्यक्ति से प्यार करते हैं। यह बहुत सतही बात है। या कुछ लोग वास्तव में प्यार नहीं करते हैं लेकिन प्रदर्शित करते हैं कि वे प्यार करते हैं चूँकि किसी के पास अधिक पैसा है। और पैसा, निस्संदेह वह देने वाला नहीं है, आप उस व्यक्ति से प्यार करते हैं क्योंकि उसके पास अधिक पैसा है, या उसके पास एक बेहतर कार है या उसने बेहतर कपड़े पहने हैं, चाहे वह खुद कुछ भी हो। तो इस तरह का विचार भी प्रेम का हत्यारा है। यदि प्रेम मारा जाता है, तो आनंद खो जाता है, आपको प्रेम के बिना आनंद नहीं मिल सकता। मैं कहती हूं, आनंद और प्रेम, दोनों बिलकुल एक जैसे हैं।

 तब यह बात और भी सूक्ष्म और सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतर होती जाती है। तब हम अपने ही बच्चों से प्रेम करने लगते हैं, यह बहुत सामान्य बात है। मेरा मतलब है, निश्चित रूप से, कुछ लोग अपने बच्चों से भी प्यार नहीं करते, मेरा मतलब है कि सभी प्रकार के लोग हैं, आप देखिए। लेकिन फिर वे कहते हैं, “यह मेरा बच्चा है, यह मेरा बच्चा है, यह मेरा बच्चा है!” वह फिर से प्रेम की मृत्यु है। जैसा कि मैंने आपको पहले कहा था: पेड़ का रस चढ़ता है, हर फल में जाता है, हर पत्ते पर जाता है, हर हिस्से में जाता है और घूम कर वापस आ जाता है। यह आसक्त नहीं है। अगर तुम किसी एक हिस्से से या एक फूल से इसलिए लिप्त होते हो कि वह ज्यादा सुंदर है तो पेड़ मर जाएगा और फूल भी मर जाएगा। तो वह प्रेम की मृत्यु है। तो आपको ऐसा प्रेम रखना है जो न उलझे और न लिप्त हो। हर बार जब मैं इस तरह कहती हूं तो वे कहते हैं, “ऐसा करें कैसे?” आत्मा का प्रेम उस प्रकार का होता है। संस्कारबद्ध मन का प्रेम अलग है। एक जड़ मन एक सीमित तरीके से प्रेम कर सकता है क्योंकि यह जड़ है।

  फिर प्रेम का सबसे बड़ा शत्रु हमारे भीतर का अहंकार है, जो हमारे सिर के ऊपर गुब्बारे की तरह है। और यही अहंकार हमें बहुत अधिक तनाव देता है।

 जड़ता, बेशक, जैसे वे एक कालीन देखते हैं। अब यह उनकी कंडीशनिंग के अनुसार अच्छा नहीं है। तो वे कहते हैं, “ओह, यह क्या कालीन है!” या कुछ और। इस तरह की कंडीशनिंग बहुत निम्न स्तर की होती है। और सबसे ऊँचे स्तर पर यह है कि आप अपने देश से प्यार करते हैं, इसलिए “मेरा देश सबसे अच्छा है!” चाहे वह लोगों को मार रहा हो, चाहे वह विश्व शांति को नष्ट कर रहा हो, यह सब ठीक है क्योंकि “मैं उस विशेष देश से संबंधित हूं जो सबसे अच्छा है!” हम अपने देश और देशवासियों की कभी समालोचना नहीं कर पाते।

  यह सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतर होता चला जाता है। लेकिन दिमाग के मामले में यह और भी बुरा है! क्योंकि बुद्धि से अगर आप ने यह समझ लिया हैं कि कुछ अच्छा है तो आपको कोई नहीं बचा सकता! क्योंकि अपने मस्तिष्क के माध्यम से आप समझ गए हैं। वास्तव में यह बहुत आश्चर्यजनक है: मैं रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित पुस्तक पढ़ रही थी और एक अंग्रेज ने उसकी बहुत सुंदर प्रस्तावना दी थी, एक प्रस्तावना, और उन्होंने कहा कि पश्चिम में रचनात्मकता को मार दिया जाता है। तो उन्होंने एक सज्जन से पूछा जो एक भारतीय आलोचक थे। उन्होंने पूछा, “क्या आप अपने कवियों की आलोचना नहीं करते? आपके पास ऐसे लोग नहीं हैं जो आलोचक हैं? “हाँ, हाँ हमारे पास है, वे आलोचना करते हैं,” “तो वे क्या आलोचना करते हैं?” “ओह, वे इसकी आलोचना कर सकते हैं कि, इस बार बारिश नहीं हुई थी इसलिए हमें समस्याएँ और चीज़ें थीं।” उसने कहा: “नहीं, नहीं, नहीं, नहीं! हम कवि के बारे में सोच रहे हैं, क्या वे कवि की आलोचना करते हैं, क्या वे किसी कलाकार की आलोचना करते हैं? तो वे कहते हैं: “क्या यह आलोचना के लिए है?”

“इसकी रचना की गई है, जो कुछ भी उसने महसूस किया वैसी रचना की है। लेकिन मान लीजिए कि उसने कुछ बहुत ही अश्लील डाल दिया है तो निश्चित रूप से हमें यह पसंद नहीं है। लेकिन अगर यह एक सुंदर मन द्वारा बनाया गया है, तो इसे सुंदर होना ही हुआ।” “फिर आप आलोचना नहीं करते?” उन्होंने उत्तर दिया, “नहीं, क्योंकि हम ऐसा नहीं बना सकते। तो फिर उसकी आलोचना का क्या काम ?”

इस तरह, ‘बुद्धिवादिता से’, जो हमने किया है कि: हमारे पास हर चीज के बारे में मानदंड हैं, कला के बारे में हर रचना के बारे में। हमें यह कालीन पसंद नहीं है। क्यों? क्योंकि यह हमारी बौद्धिक समझ को उन मानदंडों के बारे में प्रभावित नहीं करता है जहाँ हम पहुंचे हैं और उस तानेबाने में फिट नहीं होते हैं इसलिए हम इसे पसंद नहीं करते हैं। क्या आप उसका एक इंच भी बना सकते हैं?

 तो यह अहंकार आपको अनाधिकृत चेष्टा देता है। यह अनाधिकृत है, अनाधिकार चेष्टा। अनधिकृत। आपको आलोचना करने का अधिकार नहीं है। जब आप कुछ रच नहीं सकते, तो आप आलोचना क्यों करें? करने योग्य बेहतर है की सराहना करें और स्वयं जाने कि आप अधिकृत नहीं हैं, आप इसकी आलोचना करने के योग्य नहीं हैं। यदि आप इसके योग्य नहीं हैं तो आपको किसी चीज की आलोचना क्यों करनी चाहिए?

  और, अन्यथा भी, आपको पता होना चाहिए कि आप अपने अहंकार के गुलाम हैं।  जो कुछ भी आपका अहंकार निर्देशित करता है और आपकी बुद्धि, तथाकथित ‘बुद्धिमत्ता’, आपको कुछ मापदंड रखने के लिए एक बिंदु पर लाती है। और फिर यह एक समुदाय विशेष का, देश विशेष का, विशेष विचारधारा का सामूहिक अहंकार बन जाता है। यह सामूहिक है। तो फिर वे कहते हैं, “अरे हमें लगता है कि यह कोई कला नहीं है!” यही कारण है कि अब हमारे पास कला में निपुण\गुरु नहीं हो सकते। हमारे पास रेम्ब्रांट नहीं हो सकता, हम नहीं कर सकते। बेचारे रेम्ब्रांट ने खुद बहुत कुछ सहा होगा। तुम्हें पता है कि गौगुइन ने बहुत कुछ सहा है। इन सभी कलाकारों को काफी नुकसान हुआ है। यहां तक कि माइकल एंजेलो को भी बहुत नुकसान हुआ। न केवल आर्थिक रूप से, न केवल मौद्रिक रूप से, बल्कि अन्यथा भी: आलोचना, आलोचना करना, आलोचना करना। इसलिए मुझे लगता है कि लोगों ने छोड़ ही दिया।

मैं एक ऐसे कलाकार से मिली जिसने कला का बहुत काम किया था और मैंने कहा, “आप मुझे क्यों नहीं दिखाते?” उन्होंने कहा, “नहीं, मैं आपको नहीं दिखाना चाहता। इसे बस अपने ही लिए बनाया गया है। मैंने कहा, “मैं देखना चाहूंगी!” मैंने देखा, यह सुंदर था, बहुत सुंदर, मैंने कहा, “आप क्यों नहीं प्रदर्शित करते?” उसने कहा, “कोई फायदा नहीं। लोग सिर्फ आलोचना करेंगे। मैं इसे अपनी खुशी के लिए करता हूं। वे मेरी रचना का पूरा आनंद खराब कर देंगे।

 इसलिए बुनियादी बातें, जिनसे हमें बचना चाहिए उनमें से एक है दूसरों की आलोचना करना। अपनी आलोचना करना बेहतर है। अपनी आलोचना करो, अपने भाइयों और बहनों की आलोचना करो, अपने देश की आलोचना करो, अपनी सभी आदतों की आलोचना करो और खुद पर हंसो, यह सबसे अच्छा तरीका है। अगर आप खुद पर हंसना जानते हैं तो आप किसी दूसरे व्यक्ति की रचनात्मकता पर आपत्ति नहीं जताएंगे या उसके रास्ते में नहीं आएंगे।

  तो अहंकार के साथ तुम इतने अनाधिकृत हो जाते हो। आप किसी की भी आलोचना कर सकते हैं। आपको लगता है कि आपका अधिकार है। आपको यह आलोचना करने का अधिकार किसने दिया है? यह सवाल खुद से पूछना चाहिए। हम किसी की निंदा कैसे कर सकते हैं? संत के रूप में, जैसा कि आप अभी हैं, बेशक, आप यह पता लगा सकते हैं कि कौन पकड़ा गया है, किसने खराब वायब्रेशन दिया है, किसे समस्या है। यह आप जानते हैं। आपको यह पता है। यह कंडीशनिंग नहीं है। यह केवल आप इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि कुछ अहंकार है, बल्कि आप इसे अपनी उंगलियों पर महसूस कर रहे हैं। यह आपके भीतर एक वास्तविक अहसास है। यह बोध : ज्ञान है, जिसके द्वारा आप जानते हैं।

 तो आपको क्या करना चाहिए? अपने प्यार में, यदि संभव हो तो आपको उस व्यक्ति को बताना होगा कि, “यह आपके साथ गलत है। बेहतर है सुधार किया जाए! लेकिन इस तरह से की वह करे। इसके विपरीत, यदि आप उसे इस तरह कहते हैं कि वह जो है उससे भी बदतर हो जाता है, तो आपने उस व्यक्ति से बिल्कुल भी प्यार नहीं किया।

  सबको बढ़ने दो। सहज योग में बहुत से लोग हैं जो बहुत, बहुत अच्छे, उत्कृष्ट हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें हम बहुत कठिन लोग कह सकते हैं; बहुत! उनके सिर में एक तरह की दरार या कुछ और है, वह हिस्सा कभी-कभी गायब हो जाता है। मुझे लगता है कि कुछ पेंच ढीले हैं। कभी-कभी वे जोकरों की तरह व्यवहार करते हैं। और हमने कुछ लोगों को जाना हैं। हम उनकी मदद नहीं कर सकते। अन्यथा हो सकता है कि, वे बहुत बुद्धिमान हों, अन्यथा वे बहुत तेज भी हों लेकिन सहज योग में वे उस स्तर तक नहीं पहूंच पाते जहाँ आप कह सकें कि: अब विकास संभव है।

 मान लीजिए कि धरती माता सूर्य की तरह बहुत गर्म होती, तो कोई विकास नहीं होता। या अगर यह चंद्रमा की तरह ठंडी होती, तो कोई विकास नहीं होता। उसे उस मध्य अवस्था पर आना था जहां उसमें विकास के लिए दोनों चीजें उचित अनुपात में होती| उसी तरह, एक इंसान को यह कार्यान्वित  करना होगा कि आप संयम और संतुलन बनाए रखें, और समझें कि किसी भी चीज़ की अति नहीं करनी है। वह संतुलन आप तब सीख पाते हैं जब आप किसी से प्यार करते हैं।

सहज योग में, जैसा कि आप जानते हैं, हमें कुछ लोगों से सहज योग छोड़ने के लिए कहना पड़ता है। यह उनके प्रति प्यार की वजह से है, क्योंकि एक बार जब वे बाहर जाते हैं, तो वे सुधर जाते हैं, मैंने देखा है, वे जबरदस्त सुधार करते हैं। लेकिन जब वे सहज योग समुदाय के अंदर होते हैं तो वे एक बाधा बन जाते हैं, और वे और अधिक उपद्रव करना चाहते हैं क्योंकि उनका अहंकार भूमिका निभाता है, हो सकता है कि जड़ता भूमिका निभाती है, चाहे कुछ भी हो, वे उपद्रव करना चाहते हैं। तो हमें उनसे कहना होता है कि, “कृपया अब, थोड़ी देर के लिए प्रस्थान करें।” अब अगर किसी व्यक्ति में वह बकवास मूल्य खो जाए तो उसे सीधा होना पड़ेगा। वह और अधिक उपद्रव नहीं कर सकता है और तार्किक रूप से यह किसी व्यक्ति को अपील कर सकता है, यदि आप उस व्यक्ति को बताते हैं कि यही कारण है कि हम चाहते हैं कि आप बाहर हों। लेकिन वे बहुत ही घिनौने रूप से परेशान करने वाले हो सकते हैं, मुझे पता है। लेकिन आपको पूरा धैर्य और पूरी समझ दिखानी होगी और आपको ऐसे शख्स की तरह बात करनी होगी जो प्रेम करता हो।

  प्रेम में ऐसी शक्ति होती है कि कोई भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहता जिससे यह लगे कि वह प्रेम नहीं करता; यह बहुत शक्तिशाली चीज है। यह लोगों को इतने सुंदर तरीके से बांधता है कि कोई भी व्यक्ति कुछ करना चाहता है: उदाहरण के लिए आप मुझे फूल देना चाहते हैं, क्योंकि आप जानते हैं कि मुझे फूल बहुत पसंद हैं। तो आप मुझे यह सुझाव देने के लिए फूल देना चाहते हैं कि, “माँ हम आपसे प्यार करते हैं,” बस इस बात को बल देने के लिए| मुझे पता है कि तुम मुझसे प्यार करते हो, लेकिन तुम सिर्फ मुझमें इस विचार को मजबूत करना चाहते हो, । इसलिए आप मुझे एक फूल देना चाहते हैं ताकि आप अपना प्यार और मेरे लिए अपनी आंतरिक भावना की अभिव्यक्ति कर दिखा सकें। तो इन सभी भौतिक चीजों का इस्तेमाल आपके प्यार का इजहार करने के लिए किया जा सकता है। उन्हें बहुत आसानी से इस तरह व्यक्त किया जा सकता है कि दूसरा व्यक्ति जाने कि प्रेम क्या है।

 लेकिन सहस्रार की सारी शक्ति प्रेम है। तो, यदि आप सुनिश्चित करें कि, इस मस्तिष्क को प्रेम करना है; मस्तिष्क को प्यार करना पड़ता है। अब अपने मस्तिष्क और बुद्धि के माध्यम से, सहज योग की शक्तियों का परीक्षण करने के बाद,  यदि आप उस निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं जहाँ आप समझ जाते हैं कि: नहीं, इन सभी चीजों का विश्लेषण, संश्लेषण, करने का कोई फायदा नहीं है। यह सिर्फ प्यार है। यह सरल प्रेम है।

तो वही सहस्रार जिसका उपयोग पहले किया जाता रहा है, इस मस्तिष्क का उपयोग विश्लेषण करने के लिए, आलोचना करने के लिए, हर तरह की बेतुकी बातें करने के लिए, अब वही प्रेम करना चाहता है और प्रेम का आनंद लेना चाहता है। और पराकाष्ठा वहां होती है जहां मस्तिष्क बस प्रेम करता है। इसी स्थिति तक पहुंचना है। यह सिर्फ प्यार करता है। यह केवल प्रेम को जानता है क्योंकि इसने प्रेम की शक्ति को देखा है। आप एक निश्चित तार्किक निष्कर्ष पर पहुँचते हैं, और फिर आप बिंदु को देखते हैं। जैसे आदि शंकराचार्य ने विवेकचूड़ामणि, यह, वह, और उन सभी रचनाएँ जैसी बहुत सी बातें लिखीं, और फिर उन्होंने हार मान ली, उन्होंने कहा, “नहीं, कुछ नहीं!” सिर्फ माँ की महिमा लिखता हूँ  – समाप्त!

   तो एक बार जब आप उस बिंदु पर पहुंच जाते हैं, तो हम कह सकते हैं कि अब आप निर्विकल्प में हैं क्योंकि कोई विकल्प नहीं है, आपके दिमाग में कोई संदेह नहीं है; क्योंकि तुम प्यार करते हो। प्रेम में तुम संदेह नहीं करते, कोई प्रश्न नहीं। केवल जब सोचते हैं तभी आप संदेह करते हैं। लेकिन जब आप प्रेम करते हैं तो आप संदेह नहीं करते, आप केवल प्रेम करते हैं, क्योंकि आप प्रेम का आनंद लेते हैं। और इसीलिए प्रेम आनंद है और आनंद प्रेम है।

  तो सहस्त्रार के खोले जाने के इतने दिनों के बाद हमें अपने सहस्रार को फिर से खोलना होगा: अपनी ध्यान प्रक्रियाओं के माध्यम से, स्वयं को और दूसरों को समझने के माध्यम से। शायद तार्किक रूप से उस बिंदु तक पहुँचने का : अब कोई रास्ता नहीं है। हम अब इसके अंत तक पहुँच चुके हैं। सारा तर्क अब समाप्त हो गया। प्रेम के सागर में कूदो-समाप्त!

 एक बार जब आप प्रेम के सागर में कूद जाते हैं तो फिर करने को कुछ भी नहीं रहता; सिवाय – इसकी हर लहर, इसका हर रंग, इसका हर स्पर्श का आनंद लेने के। यही कारण है कि तार्किकता से यही सिखना है कि, सहज योग अन्य कुछ नहीं बल्कि प्रेम है।

 परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करें।