Shri Pallas Athena Puja: The Origins and Role of Greece

Athens, Stamatis Boudouris house (Greece)

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              श्री पल्लास एथेना पूजा

 ग्रीस, 24 मई 1989

सहज योग में सब कुछ बहुत वैज्ञानिक है, सभी पूर्व-नियोजित हैं जो मुझे लगता है, और सभी महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, आज बुधवार है और हमने बुधवार को कभी कोई पूजा नहीं की क्योंकि मेरा जन्म बुधवार को हुआ था। 

इसलिए, मैं सोच रही थी कि यदि पूजा बारह बजे से पहले शुरू हो जाए, तो हम इसे प्रबंधित कर पाएंगे क्योंकि मेरा जन्म बारह बजे हुआ था। तो, प्रत्येक बच्चे को बारह बजे के बाद सोना पड़ता है, आप देखते हैं, और मुझे भी सो जाना था जो मैं नहीं कर पायी। तो, यह इतना महत्वपूर्ण है, आप देखिए। यह पहली बार है जब हम बुधवार को पूजा कर रहे हैं, आम तौर पर मैं बुधवार को यात्रा भी नहीं करती हूं। तो, आप सोच सकते हैं कि यह ऐसी सफलता है, और मुझे बहुत खुशी है कि आप सभी एक पूजा के लिए तैयार हैं और हम इतने लंबे समय के बाद, इस नियम को भी तोड़ सके हैं| क्योंकि मेरे लिए बारह के बाद जागते रहना असंभव था, आप देखते हैं, मैं कोशिश कर रही थी, कोशिश कर रही थी, और मुझे पता था कि आप सभी भी, बहुत नींद महसूस कर रहे थे। तो, यह बहुत पारस्परिक है और यह बहुत सरल है।

ठीक है। तो, आज हम ब्रह्मांड के नाभी के केंद्र में, वास्तव में, उल्लेखनीय रूप से एकत्र हुए हैं, और मुझे नहीं पता कि मैं इस महान देश, जिसे हम ग्रीस कहते हैं, के वर्णन के साथ कहा तक जा सकती हूं। साथ ही, पुराणों में इसे मणिपुर द्विप के रूप में वर्णित किया गया है। मणिपुर नाभी चक्र है – मणिपुर, ओर एक “dweep” एक द्वीप है। मणिपुर के द्वीप में एथेना रहती है, और एथेना का एक मंदिर है, सभी में उसके मंदिर के बारे में, उसके आभूषण, पोशाक और सब कुछ के बारे में वर्णन किया गया है। तो, यह एथेना पुराणों में वर्णित है। जैसा कि मैंने आपको पहले बताया था, ‘एथेना’ का अर्थ है आदि माँ।

तो अब, कोई यह कह सकता है कि, “आदि माँ, आदि शक्ति, ब्रह्मांड के नाभी चक्र पर क्यों होनी चाहिए?” कोई ऐसा प्रश्न पूछ सकता है, जैसे, “उसे नाभी चक्र पर क्यों रखा गया है?” क्योंकि  -( मुझे अंग्रेजी में पता नहीं है) -संसार की भौतिक रूप में रचना करने के पहले विष्णु लोक में जहाँ की विष्णु जी का राज्य है, जहां इस रचना को करने की योजना बनाई गई थी, यह निर्णय लिया गया कि आदि शक्ति को पहले एक गाय के रूप में आना चाहिए, और फिर उसे गोकुल नामक क्षेत्र में जो कि विशुद्धि चक्र है उतरना चाहिए, और फिर पहले वहां चैतन्य उत्पन्न करें। अब भौतिक रूप में गोकुल वहां था जहाँ श्री कृष्ण बचपन में रहते थे।

इसी प्रकार एथेना, भौतिक रूप में, चैतन्य उत्पन्न करने के लिए-स्वयं अस्तित्व के रूप में, इस क्षेत्र में रही| मैं रचना के पहले की बात नहीं कह रही हूँ। तो, यह की वह न केवल वह एक देवी थी बल्कि वह नाभी पर चैतन्य पैदा करने के लिए, सार्वभौमिक करुणा और प्रेम और उसके सभी गुणों को बनाने के लिए इस क्षेत्र में रही थी।

अब जैसा कि आप जानते हैं, देवी के हर पहलू में अलग-अलग गुण होते हैं, और जैसा कि आप देख सकते हैं कि महाकाली के पास सुख देने का पहलू है, और महासरस्वती परामर्श है, और महालक्ष्मी उत्थान और जाग्रति के लिए मिली हैं।

लेकिन आदि शक्ति का काम,सब कुछ एकजुट करना है, सब कुछ एकीकृत करना है; और उन सभी गुणों को एकीकृत करने के लिए, आदि शक्ति खुद  भौतिक रूप में धरती के इस भाग में आयी, और इसीलिए वे लोग एथेना के बारे में जानते थे। लेकिन जैसा कि है, मुझे पता नहीं है कि उनके पास क्या कहानियां हैं – जरुर उनके पास एथेना के बारे में कुछ पौराणिक कहानियाँ होनी चाहिए कि वह इस तरह से रहती थीं या जैसा भी था| और यह वह जगह है … जहाँ उसने देवलोक का निर्माण किया। देवलोक वह क्षेत्र है जहाँ देवों का निर्माण किया गया। जैसे उसने इंद्र को बनाया -आपने इंद्र का नाम सुना है – फिर वरुण; इन सभी देवलोक को उसने इस क्षेत्र में बनाया था, भारत में नहीं। इस ओर देवलोक का निर्माण हुआ और गण वगैरह बायीं ओर नेपाल की तरफ और उन सभी स्थानों पर बने।

अब दुर्भाग्य से सुकरात के बाद, जो की ऐसी स्थिति में यहाँ आए थे जब लोग वास्तव में, बिल्कुल अनभिज्ञ थे, अज्ञानता के पूर्ण अंधकार में थे, वे उसे समझ नहीं पाए, वे सुकरात को बिल्कुल भी नहीं समझ सके और इसलिए उनके आसपास के लोगों द्वारा उनसे वैसा ही बर्ताव किया गया था जैसा किसी भी अन्य आदि गुरुओं से किया था, उनसे भी बुरा व्यवहार किया था और किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। लेकिन निश्चित रूप से, जैसा कि आप जानते हैं, वह आदि गुरु थे और उनकी बुद्धिमानी अच्छी तरह से जानी जाती है, और उन्होंने अपने शिष्य बनाये, लेकिन उनमें से कोई भी उनकी बुद्धि के नजदीक भी नहीं पहुँच सका, और शिष्यों ने अपने स्वयं के सिद्धांत, अपनी शैली शुरू की, और यह कि हम पाते है की कैसे सुकरात का, दर्शन से उत्थान के सिद्धांत के बजाये धीरे-धीरे राजनीतिक और फिर आर्थिक पक्ष का उद्देश्य आ गया। इसलिए, आज चित्त को दर्शन से बदल कर अर्थशास्त्र पर कर दिया गया है , न कि सुकरात द्वारा स्थापित उस दर्शन की ओर। 

हम कह सकते हैं कि अब्राहम और मूसा के बाद सुकरात भी एक आदि गुरु थे, जिन्होंने वास्तव में आध्यात्मिकता के बारे में बहुत स्पष्ट समझ बनाई थी। बेशक, मूसा और मोहम्मद … अब्राहम की समस्याएं अलग थीं। जैसे अब्राहम के सामने समस्या थी कि,उन्हें ऐसे लोगों से बात करनी पड़ी जो वास्तव में बहुत, बहुत अज्ञानी थे, और मूसा को ऐसे लोगों की समस्या थी जो बहुत ही भोग-लिप्त लोग थे, इसलिए उन्हें शरीयत के कानूनों को पारित करना पड़ा।

मूसा ने शरीयत का कानून पारित किया, और यदि आप बाइबल, बाइबल की तीसरी पुस्तक, पढ़ते हैं, तो – मुझे लगता है -पहली ही आयत में शरीयत के बारे में लिखा गया है,(जेरमिया, लेवितिकुस), कि मूसा को धर्म का पालन निश्चित रूप से करवाने के लिए इन कानूनों, अलग-अलग कानूनों को पारित करना पड़ा। इसलिए, उन्होंने बहस नहीं की, उन्होंने यह नहीं कहा कि आपको ऐसा क्यों करना चाहिए, कोई स्पष्टीकरण नहीं देना चाहा। “आप ऐसा करें!”बस इस तरह। क्योंकि उसने सोचा था कि ये लोग इतने अज्ञानी हैं कि आप इसे उनकी स्वतंत्रता के लिए नहीं छोड़ सकते हैं कि आप इसे समझे या आप इस मुददे को देखें ; वह ऐसा नहीं कर सके। तो, उन्होंने कहा, “ठीक है। ये कानून हैं; ये चीजें हैं और आपको पालन करना होगा। यदि आप अनुसरण नहीं करते हैं तो आपको मार दिया जाएगा, आपके हाथ काट दिए जाएंगे, ऐसा होगा, ऐसा ही होगा। ” क्योंकि लोग उस प्रकार के थे।

अब आप देखिए कि कैसे धीरे-धीरे, सुकरात के समय लोग विकसित हुए थे, वे बहुत बेहतर लोग थे, इसलिए वह उनसे ज्ञान की, ईमानदारी की, धार्मिकता की, शांति की, के बारे में कुछ बात कर सके थे। बहुत सारे विषयों में से उसने बात की, और वह बात कर सकते थे, चूँकि लोग उसके योग्य थे। अन्यथा वह कह सकते थे की , “ठीक है। आप ऐसा करें, आप वैसा करें, आप ऐसा करते हैं। ” लेकिन अंतर देखें, परिस्थितियों में भी, कैसे हुआ है: पहली परिस्थितियों में जब अब्राहम को समस्या हुई थी तो लोग बिल्कुल अच्छे नहीं थे, बिल्कुल नहीं, इसलिए वह नहीं जानते थे कि उनके साथ क्या करना है । तो, केवल, आप इसे , अब्राहम के समय में कि उनकी अपनी जीवनशैली …देख सकते हैं, मेरा मतलब है, यह सिर्फ एक प्रणाली थी जब परिवार का निर्माण हो रहा था और रिश्ते बढ़ रहे थे, और उन्होंने उस स्तर पर काम करने की कोशिश की। तब मूसा के समय लोग बहुत अधिक विकसित हुए। वे विकसित हुए लेकिन [अभी भी] बहुत अनभिज्ञ थे इसलिए, वे इस स्थिति तक विकसित हुए कि उन्हें वे बातें नहीं करनी पड़ी जो अब्राहम ने की थी |  इसलिए, उन्होंने उनसे मिस्र से बाहर निकलने, अपनी स्वतंत्रता पाने, वहां से बाहर निकलने और अधिक शांति के स्थान पर जाने के बारे में बात की। लेकिन जब उन्होंने ऐसा किया, एवम जब वे दस आज्ञाओं को पाने के लिए गए,उन्होंने इन लोगों को रास्ते में पाया -जब वे वापस आए – उन्होंने क्या जाना  …

तो, जब वह दस आज्ञाओं को प्राप्त करने के लिए गए थे, तो मूसा के समय जो लोग थे वे बहुत, बहुत अनैतिक चरित्र, अत्यंत अनैतिक चरित्र में लिप्त होने लगे। वे बहुत अनैतिक थे और ऐसे भयानक काम कर रहे थे कि कोई भी विश्वास नहीं कर सकता है कि जो कोई भी मिस्रियों से दूर भागने की कोशिश करते थे, वे खुद मिस्र वासियों से भी बदतर थे। इसलिए, उन्होंने यह शरीयत उन लोगों में बदलाव लाने के लिए दिया।

अब फिर वह समय आया, हम कह सकते हैं ईसा मसीह के समय जब लोग  … मेरा मतलब है कि, इस सब के बावजूद लोग इतने अच्छे नहीं थे, , लेकिन वे इतने भी अनैतिक नहीं थे;पर वे भी ईसा मसीह को नहीं समझ सके।

इसलिए, आप देखते हैं कि सभी मानव विकास, विकसित होती मानव जागरूकता के बावजूद, आध्यात्मिकता के बारे में समझ बहुत खराब थी और आप उनसे बात नहीं कर सकते थे। अब आप चीजों की परिस्थितियों को भी देख सकते हैं। जब हालात ऐसे होते हैं, जैसे कि मूसा के उस समय, कि लोग बेहद अनैतिक हैं, वे सभी तरह के बुरे काम कर रहे हैं, वे अपने स्वयं के विनाश के बारे में चिंतित नहीं हैं, इसलिए अवतार को पूरी तरह से राईट साइडेड कदम उठाना पड़ा क्योंकि वे लोग इतने लेफ्ट साइडेड  थे: इसलिए, अवतारों को पूरी तरह से दाईं बाजु की ओर जाना पड़ा और कहा कि, “यदि आप ऐसा करते हैं, तो हमें यह हिंसा वाला काम करना होगा”। लिहाजा, वे हिंसा पर उतारू हो गए।

तो, परिस्थितियों ने लोगों की प्रतिक्रियाएं बनाईं, और इंसान की जागरूकता भी। इसलिए कई चीज़ो से यह कार्यान्वित हुआ । उदाहरण के लिए, जब एथेना इस धरती पर आयी थी, तो उसका काम एक एकीकृत बल बनाना था, जिसमें संपूर्ण चैतन्य एक एकीकृत बल की तरह फैल जाएगा। ताकि बाद में जब यह सब बिखर जाएगा, तो यह फिर से एकीकृत हो सकता है।

तो, यूनानियों के पास एक कार्य है, विशेष काम है, एकीकृत करना है। आपको उन लोगों को एकीकृत करना होगा जो बाएं-बाजु तरफा और दाएं-बाजु तरफा हैं। और जो मैंने उनसे पूछा, “हिटलर का क्या हुआ?”तो, उन्होंने कहा कि जब उन्होंने हिटलर को देखा, हालांकि हिटलर ने उनका सम्मान किया, तो भी उन्होंने हिटलर का विरोध किया। आप इसके महत्व को देख सकते हैं, कि कैसे उसने यूनानियों का सम्मान किया और इसके बावजूद उन्होंने उसका विरोध किया क्योंकि उन्हें यह विशेष यूनानी विशिष्ट क्षमता दी गई थी। जो उन्होंने किया  … मेरा मतलब है, केवल सिकंदर के अलावा, जिसने भारत पर आक्रमण करने की कोशिश की, और ग्रीक प्रकृति के कारण वह वापस लौट आया। आप इसमें एक ग्रीक प्रकृति देखते हैं कि वे इतनी दूर जा कर के भी रुक सकते हैं , क्योंकि उनके पास एक एकीकृत बल है।

वही बात जो मैं उससे पूछ रही थी कि तुर्क के साथ क्या हुआ था। वे तुर्की गए थे लेकिन वे वापस चले गए। तो, पीछे हटने की यह शक्ति एक एकीकृत शक्ति है, जब आप अपने भीतर बाएं और दाएं दोनों गुणों को एकीकृत करते हैं और आप इसे संतुलित करते हैं, और आप देखते हैं कि अब ठीक है। यदि आपको मध्य में होना है तो हमें एक बिंदु तक जाना चाहिए और वापस आना चाहिए। और यह हर मामले में यूनानियों का एक बहुत ही बुनियादी गुण है।

यदि आप उनका शिपिंग लेते हैं, तो शुरुआत में वे शिपिंग में बेहद आक्रामक थे, अत्यधिक आक्रामक लोग, और ग्रीक जहाज पूरी तरह ख़राब रखरखाव के लिये हीं जाने जाते थे ।

वे बहुत कानून के पालन करने वाले नहीं थे इसलिए  वे उनके जहाजो के रखरखाव की  आदत वाले भी नहीं थे, आप देखते हैं, और हमेशा परेशानी में रहते हैं –यूनानियों कि, यूनानियों के जहाज, शिपिंग उद्योग में इस बात के लिए जाने जाते थे कि वे सभी टूटे-फूटे और शोरगुल भरे हैं। (श्री माताजी के परिवार से परिचित न होने वालों के लिए,- उनके पति सर सी.पी. श्रीवास्तव को 16 साल के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन का महासचिव नियुक्त किया गया था) तो, शायद, शायद, वे जानते थे कि अब शिपिंग कम होने जा रही है, इसलिए  इन जहाजों का कोई रखरखाव नहीं करना चाहिए, आप देखते हैं। फिर जब शिपिंग कम हो गई -आप देखते हैं, यह एक आर्थिक स्तर पर है जो मैं कह रही हूं, उन्होंने कैसे काम किया – उन्होंने अपने जहाजों को डूबा दिया और बीमा से पैसा निकाल लिया। यह व्यवहार की एक विशिष्ट ग्रीक शैली है, की वे पहले से ही जानते हैं। यह एक प्रकार का विवेक है, वे जानते हैं कि कहाँ तक जाना है।

जैसे, अब हम देख सकते हैं, ओनासिस ने भी इस पागल महिला, कैनेडी की पत्नी से शादी कर ली, क्योंकि उसे पता चल गया होगा कि कैनेडी ने उसे कभी कोई सुरक्षा नहीं दी, इसलिए उसने उससे शादी की। एक स्थिति पर उन्होंने उससे शादी तक कर ली, लेकिन उनकी अधिकांश संपत्ति उनकी बेटी को गयी न की श्रीमती केनेडी के पास, यह संतुलन और यह विवेक जीवन की एक विशेष यूनानी शैली है; इसलिए आप कह सकते हैं कि वे अमेरिकियों की तरह अति-विकसित नहीं हैं। लेकिन अब अमेरिकियों ने महसूस किया है कि वे बेवकूफ हैं, लेकिन ग्रीक कभी भी बेवकूफ नहीं बन सकते, आप कोई भी कोशिश करें। वे बहुत तेज और बहुत बुद्धिमान हैं लेकिन उन्हें पता है कि हर चीज के साथ कहाँ तक जाना है। और इसका कारण क्या है? एथेना।  तो, एक एथेना है,जो आदि शक्ति है , और उसने यहां गणेश की रचना की। (एक गणेश स्वयंभू है जिसने देवी एथेना की पूजा स्थापित की है) और ब्रह्मांड, या सभी धर्मों का संतुलन, नाभी चक्र में है, और इसलिए यहां के लोग बहुत संतुलित हैं। आप उन्हें उनकी भाषा में, अपनी शैली में, बहुत गहन … जान सकते हैं। कोई कह सकता है क्योंकि वे पारंपरिक लोग हैं, उनकी लंबी परंपराएं हैं। लेकिन मिस्र में भी लंबी परंपराएं थीं। बेशक, मिस्रवासी एक तरह से अन्य सभी इस्लामिक देशों की तुलना में समझदार हैं, लेकिन यूनानियों की तरह नहीं, यूनानियों की तरह नहीं ।

हमारे पास चीनी भी हैं जो बहुत बुद्धिमान हैं, और वे गहरी समझ के लोग होने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन वे भारतीयों की तरह नहीं हैं। परन्तु, इन सभी लोगों में जागरूकता की, गहराई की कमी है, क्योंकि, हालांकि, चीन में भी मदर ऑफ मर्सी आयी और उसने वास्तव में उन को आशीर्वाद दिया, और चीन ने भी बाद में उसके गौरव में अपना विकास किया और काफी अच्छा औद्योगिक, मतलब विकसित देश बन गया, हम कह सकते हैं, बहुत शक्तिशाली; लेकिन फिर भी, उस तरह का सैन्य-करण सहन नहीं किया जा सकता था, क्योंकि आखिरकार, माँ मर्सी वहाँ थी।

क्या आप जानते हैं कि पिछली बार  …  एक माँ मर्सी है जो आपने मुझे दी है – कुआन यिन, एक ही चीज़, कुआन यिन। और वह वही चीज है जिसे मदर ऑफ मर्सी कहा जाता है – और दूसरी हाल ही में ग्रीगोइरे ने दी थी, और आप देखते हैं कि अब चीन में क्या हो रहा है। तो, अलग-अलग समय में अलग-अलग देशों में मौजूद इन देवताओं के प्रभाव को कलियुग में सबसे अच्छे तरीके से महसूस किया जाता है।

अब आप कह सकते हैं कि, “माँ ग्रीस में सबसे आखिर में क्यों आयी?” चूँकि एथेना अब सहस्रार में है, इसलिए आपको नाभी में नहीं जाना होगा। इसलिए, मुझे सहस्रार को यहां लाना था, क्या ऐसा नहीं है? सहस्रार अंतिम चक्र है, प्राप्ति के लिए| इसलिए, मैंने सोचा कि यूनानियों को सहस्रार बिंदु तक विकसित होने दें। इसलिए, हमें सहस्रार को ग्रीस में स्थापित करना है और इस तरह यह एक बहुत शक्तिशाली काम है जो हमें ग्रीस में करना है क्योंकि वास्तव में, जिस समय एथेना यहां आयी थी, तब वह सहस्रार नहीं था, यह नाभी था, क्योंकि वह वास्तव में हिमालय पर थी, हिमालय से आयी है। इसलिए, अब हिमालय को यहां लाना, या ग्रीस में उस पवित्रता को लाना, एक जबरदस्त काम है और हमारे पास बहुत कम सहज योगी हैं।

लेकिन आप उस सज्जन की प्रतिक्रिया देखते हैं जो आया था? और हमारे पास इन रूढ़िवादियों के कारण कार्य विकट हैं … अधिकांश अपरंपरागत, उनके पास किसी भी चीज़ के बारे में कोई परंपरा ही नहीं है। इसलिए, हमारे पास एक समस्या है, बड़ी समस्या है कि हम यहां कैसे स्थापित करेंगे। यहाँ देवलोक का निर्माण हुआ था और देवता यहाँ थे; उन्होंने यहां शासन किया, इसमें कोई संदेह नहीं; लेकिन मानवीय संवेदना में उन्हें मानवीय स्तर पर ले आया गया। जैसे ज़ीउस परशुराम थे, परशुराम -जो श्री राम के आगमन की घोषणा करने वाले एक अवतार थे, और वे श्री राम से पहले आए थे, श्री राम से बहुत पहले मर गए; लेकिन यहाँ लोगों ने ज़ीउस को एक व्यभिचारी पुरुष के रूप में चित्रित किया था।

तो, सभी भगवानों को मनुष्यों के स्तर पर चित्रित किया गया, सभी कमजोरियों में लिप्त , आप देखते हैं, वास्तव में सभी कमजोरियों के साथ सज्जित चित्रण। और यही पतन के लिए जिम्मेदार है क्योंकि देश का यह हिस्सा देवलोक की तर्ज पर है, उसी का प्रतिबिंब है, लेकिन हम देखते हैं कि, अब यह देवलोक उसका बिलकुल ही विपरीत हो गया है क्योंकि देवताओं को इतने निम्न स्तर पर ले आया गया है, ऐसी अपमानजनक बातों के लिए।

यहां तक कि पौराणिक कथाओं में, भारत में भी उनके बारे में इस तरह की बातें होती हैं। ; पर,ज़ीउस की तरह इस हद तक, वे बात नहीं करते हैं, लेकिन इंद्र के बारे में वे बात करते हैं। और जैसे इंद्र का वर्णन इस तरह आता है: कि राजा हिरण्यकश्यप की पत्नी थी … उसकी पत्नी … हिरण्यकश्यप की पत्नी एक संत महिला थी और हिरण्यकश्यप,जिसे आप कंधार और अफगानिस्तान और इन सभी स्थानों पर कह सकते हैं शासन कर रहा था, और यहां से इंद्र नीचे गए। और उसकी पत्नी को ले गये । मेरा मतलब है कि उन्होंने अवतार लिये, यहाँ देवताओं ने अवतार लिये, और इंद्र गए, उन्होंने हिरण्यकश्यप की पत्नी को बचाने के लिए अपने साथ ले लिया, और वह गए और महाराष्ट्र में एक आश्रम में रहे, जहां मेरे नाम-‘नीरा’ के साथ एक नदी बह रही थी। तो, अब … देखें कि संयोजन कैसे हैं, शांडिल्य मुनि जो मेरे परिवार के गुरु थे -इसीलिए मेरा गोत्र शांडिल्य है -वह उनके आश्रम में रहे। तो, मुनि शांडिल्य ने कहा कि, “देखिए, यह महिला बहुत ही पवित्र महिला है, उसे परेशान न करें, और उससे एक बहुत महान संत उत्पन्न होगा, जो अपनी भक्ति से नरसिंह का अवतार-जो की भगवान विष्णु अर्ध सिंह के रूप में प्रकट करेंगे -और जो इस असुर को मार देंगे।

अब, मिस्र के कुछ हिस्से पर भी इस हिरण्यकश्यप का शासन का हिस्सा था, मिस्र का हिस्सा – देखें कि सब कुछ कितना महत्वपूर्ण है। तो, यह नरसिम्हा तब आया जब| … और आप प्रह्लाद की कहानी के बारे में जानते हैं, ठीक है, इसलिए यह छोटा लड़का इधर-उधर खेलता था, और उसने कुछ चीजें बनाई और बहुत पास में एक मंदिर है – आपने नरसिंह का मंदिर देखा है? -और जो रेत की प्रतिमा बनाई गयी है, उसे आपने देखा है वह प्रह्लाद द्वारा बनायी गयी थी, और वह किसी के सपनों में आये और कहा कि, “आपके मंदिर में मेरे द्वारा बनायीं गयी मूर्ति स्थापित कर दीजिये “, तब फिर वे नीरा नदी के चारों ओर घूमे और उस  मूर्ति को ढूंढ कर वहीं स्थापित किया | 

तो, रिश्ते को देखें, यह कैसा है। अब इस हिरण्यकश्यप को नरसिंह ने मार दिया था। नरसिंह, जैसा कि आप जानते हैं, श्री विष्णु का अवतार है, क्योंकि उसके पास, इस हिरण्यकश्यप के पास ब्रह्मदेव का वरदान था कि कोई भी जानवर उसे नहीं मार सकता है, कोई भी इंसान उसे नहीं मार सकता है, न कि भूमि पर न आकाश में। और ना किसी हथियार से-सभी इतने वरदान उसने ले रखे थे! उसने सभी तरीको को रुकावट कर रखी थी, ताकि कोई उसे मार न सके,आप समझे, लेकिन वास्तव में वह नहीं जानता था कि इसके अन्य भी ढंग और तरीके हैं। तो, श्री विष्णु ने नरसिंह का रूप धारण किया, यह है कि वह सिंह बन गया, मतलब ‘शेर’, और निचला हिस्सा एक आदमी , और ऐसा हुआ कि,

 हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से पूछा, “तुम्हारा भगवान कहाँ है?”

 उन्होंने कहा, “वह हर जगह है।” 

तो, उन्होंने कहा, “ठीक है, क्या वह इस स्तंभ में है?”

 उन्होंने कहा, “हां, वह इस स्तंभ में भी है।”

तो, उसने खंभे पर प्रहार किया – देखिए, खंभा उसी शैली का रहा होगा जैसा आप बनाते हैं, ग्रीक शैली, पत्थर का खंभा, इसलिए वह जानता था कि खंभे में कोई कैसे हो सकता है, यह एक पत्थर है-उसने इसपर प्रहार किया और स्तंभ टूट गया, जिसमें से नरसिंह लंबे हाथों और पंजों के साथ बाहर आया और उसने उस हिरण्यकशिप को ले लिया और उसे अपनी गोद में रख लिया, क्योंकि ‘न तो आकाश में और न ही जमीन पर’, और अपने पंजे के साथ, क्योंकि वे हथियार नहीं थे, उसका पेट फाड़ दिया और उसे मार डाला।

तो,चूँकि वह मिस्र में भी शासन कर रहा था, मिस्र के लोगों ने बनाये उनके  … {वे असीरियन थे – असीरियन असुर हैं, वे वही थे जो असुर थे, इसीलिए उन्हें असीरियन कहा जाता था }- इसलिए उन्होंने अपने देवता स्फिंक्स की मूर्ति नरसिंह जैसी किन्तु दुसरे ढंग से बनाई। तो, स्फिंक्स का ऊपरी हिस्सा मनुष्य का है, और उस मूर्ति का निचला हिस्सा शेर का है।

यह बहुत प्राचीन कहानी है जो मैं बता रही हूं। इसलिए, यूनानी लंबे समय पहले भारत कैसे चले गए, क्योंकि ये सभी देवता यूनानी थे – और ये देवता, जैसे इंद्र, उन्होंने जो किया, और वरुण ने और ये सभी बातें। लेकिन मुझे लगता है कि … चूँकि पूरा सोच ही विकृत हो गयी थी, पूरी बात, तो वे अपने ध्यान में, देवताओं के चेहरे की छवि को उचित ढंग से  देख नहीं पाए थे, क्योंकि उन्होंने ही उसे विकृत किया था, इसलिए वे नहीं देख सके थे, और वे विकृत चेहरे देखते थे। उन्होंने उन्हें नग्न देखा और इस तरह की बात की, क्यों कि उनकी कल्पनाएँ ये सभी काम कर रही थीं,चूंकि वे सभी प्रकार की अनैतिक चीज़ों में लिप्त थे, इसलिए उन्होंने इसे अत्यधिक पूरी तरह उनके बीच अनैतिक प्रकार के रिश्ते और चीज़ें बना दिया । तो, यह उनकी अपनी सोच थी और उन्होंने इसे प्रस्तुत किया। लेकिन साथ ही, इसके परिणामस्वरूप, वे कभी भी इन देवों के शरीर या चेहरों को ठीक से नहीं देख पाए। इसलिए, उन्होंने उन्हें और अधिक इस तरह का  … मेरा मतलब है कि वे बहुत भद्दे चेहरे बनाये थे।

जैसे मेरे पास कुछ पोसिडोन हैं जो उन्होंने यहां बनाए हैं जो उन्होंने मेरे पति को भी दिए थे – यह वरुण की तरह बिल्कुल नहीं है, मैं आपको बता सकती हूं। तो … और बिल्कुल नग्न, आप जानते हैं; यह बहुत शर्मनाक है। उन्होंने इसे मेरे पति को दिया और उन्हें नहीं समझा की इसे कैसे देखें, और सिर्फ इसलिए मैं हँसने लगी क्योंकि मेरे पति वह बहुत शर्मीले आदमी है। और उसे इसको अपने कार्यालय में रखना था, आप देखते हैं, कहीं छिपा कर और यह बहुत अजीब दिखता है। 

और वह कह रहे थे, “हम कुछ चांदी के साथ एक तरह के आवरण का उपयोग क्यों नहीं करते?” 

मैंने कहा, “यह एक प्राचीन चीज है जो उन्होंने इसे पुन: प्रस्तुत किया है; आप किसी प्राचीन वस्तु के साथ ऐसा नहीं कर सकते।

 ” उन्होंने कहा, “ठीक है; मैं इसे कहां रखूं? “

 मैंने कहा, “इसे किसी गलियारे में रख दो।”

तो, इस तरह की महँगी चीज उन्होंने दी लेकिन मेरे पति इसके बारे में काफी परेशान थे, आप देखते हैं, और हर बार जब वह इस सज्जन को देखते है तो कहते है की , “आप जानते हैं, यह सज्जन अच्छा नहीं है।”

ठीक है। तो, फिर, इतिहास का यह हिस्सा यहाँ है। उस इतिहास पर आधुनिक ग्रीक खड़ा है। इसलिए, यदि आप सुकरात से ईसा मसीह तक देखते हैं, तो हम सोचते हैं की लोग विकसित हुए, लेकिन उन्होंने ईसा मसीह को क्रूस पर भी चढ़ाया, तो उनका उत्थान क्या था ? हालाँकि, यदि आप देखते हैं कि ईसा मसीह ने क्या उपदेश दिया और क्या … मुझे खेद है, ईसा मसीह ने क्या उपदेश दिया और सुकरात ने उपदेश दिया, बहुत अंतर है क्योंकि ईसा मसीह नीतिकथा में बात करते है, खुले तौर पर नहीं, जबकि सुकरात ने बहुत खुले तरीके से, एक खुली चर्चा में, खुली समझ में बात की। यह केवल दिखाता है कि लोग समझ सकते थे कि वह क्या कह रहे थे। लेकिन फिर भी वह भी मारे गये; सुकरात को भी जहर दिया गया और उनको भी मार दिया गया। ताकि पता चलता है कि, उस समय भी, अधिकारी लोगों को, जो की मामलों के नियंता थे, पता नहीं था कि वास्तविकता क्या थी।

तो, अब, ईसा मसीह से सुकरात तक और सुकरात से मुझ तक, हम इस तरह से कह सकते हैं कि हम इसके बारे में बात कर रहे हैं, हालांकि सुकरात आये थे – कितना ई.पू. वह था?

योगी: ईसा से लगभग 500 साल पहले

श्री माताजी: मसीह से पहले 500; इसलिए, हो सकता है कि क्राइस्ट ने सुकरात को महसूस किया हो | सुकरात,चूँकि आदि गुरु थे इसलिए उन्होंने इतनी खुलकर बातें कीं| ईसा मसीह को इसका एहसास हुआ, इसलिए उसने नीतिकथा में बात की। उसने सोचा कि, “सुकरात की तरह सीधी बात करने का कोई फायदा नहीं है” क्योंकि … आप देखते हैं कि वे बहुत मुंहफट लोग हैं; आदि गुरु को बहुत, बहुत … होना चाहिए वे स्वभाव से बहुत मुंहफट होते  हैं। आज भी … जो वास्तविक गुरु थे, वे हर किसी व्यक्ति को स्वीकार नहीं करेंगे, वे फेंक देंगे, वे लोगों को पीट देंगे। भारत में भी संगीतज्ञ, जो महान गुरु हैं, वे अपने शिष्यों को पीट देंगे यदि उन्होंने कुछ गलत बजाया,या गाया; बहुत कठोर लोगों की तरह। इसलिए, सुकरात के लिए यह ठीक भी था कि वे बहुत ही सादे और सरल और सभी चीजों को बताएं, लेकिन फिर भी वह मारे गये।

और फिर ईसा मसीह, जो 500 साल बाद आये। देखें, उन्होंने वह सच्चाई देखी, की बात करने का कोई फायदा नहीं है – चूँकि वह आज्ञा पर आए थे – इसलिए उस तरह से बात कर रहे थे। 

यदि आप किसी को बताते हैं कि , “ऐसा मत करो”, यहाँ तक की सुकरात की तरह इस का कारण भी बताते हैं, सुकरात जो कह सकते हैं की तर्क करने में माहिर थे , संपूर्ण तर्क प्रणाली उनसे आती है, वह तर्क के माहिर है ।

लेकिन इसके बावजूद, यह उन शीर्ष जिम्मेदार अधिकारीयों की बुद्धि को पसंद नहीं आता था। इसलिए, उनके दिमाग में कोई तर्क नहीं रहता है, आप देखते हैं, वे सिर्फ बुद्धिवादी हैं। बुद्धिवादिता तर्क हीन अंधापन है । इसलिए, चूँकि कोई तर्क नहीं है, उन्होंने उसे मार दिया। 

और ईसा मसीह समझ गये कि ये लोग तर्क हीन है इसलिए बेहतर है की उनसे नीतिकथा में बात करते हैं। । इसलिए, उन्होंने दृष्टान्तों में उनसे बात की, लेकिन फिर भी उन्होंने उसे मार दिया। नियंत्रण,अधिकारी सहन नहीं कर सकते थे, उन्होंने सोचा कि वह बहुत शक्तिशाली होता जा रहा है, या जो कुछ भी था। यहूदी खुद बहुत बेतुके थे, और उन्होंने ऐसा किया।

इसलिए, सहज योग में, मैंने जो फैसला किया कि कम से कम मुझे पहले लोगों को आत्मसाक्षात्कार देना चाहिए, और फिर मैं उनसे वो बात जो मुझे पसंद है, कर सकती हूं । अब, मैं आपसे सब कुछ बात कर रही हूँ और आप इसे समझ रहे हैं क्योंकि आप आत्मा स्वरुप हैं, लेकिन मैं एक सामान्य व्यक्ति से यह बात नहीं कर सकती। इसलिए, हमारे पास दो प्रकार के लोग हैं: एक जो सहज योगी हैं, और एक वे जो नहीं हैं। निश्चित रूप से कुछ सहज योगी हैं जो इस योग्य नहीं हैं, मैं सहमत हूँ, और वे बस वापस जा सकते हैं या कुछ और, लेकिन आप यह सब ज्ञान को समझने के योग्य बन सकते हैं क्योंकि आपकी कुंडलिनी आपको इतना सक्षम बना सकती है और आपका सहस्रार इतना अच्छा है की, मैं  जो कह रही हूँ, आप उसे अवशोषित कर सकते हैं, और तार्किक रूप से देख सकते हैं कि मैं जो कह रही हूं वह सच है, और आप इसे सत्यापित भी कर सकते हैं, कि यह सच है या नहीं।

इसलिए, आपकी यह अवस्था, मुझे लगता है, जागरूकता का उच्चतम चरण है जहां सामूहिक रूप से आप मुझे समझ रहे हैं। स्थिति इतनी खराब भी नहीं है जितनी कि ईसा मसीह के समय में थी। इससे पहले, सुकरात के समय पर, मुझे लगता है, वह एकमात्र विवेकवान व्यक्ति था जो घूम रहा था। कोई और नहीं था, मुझे लगता है, जिसे कोई भी विवेक था। यहां तक कि उनके शिष्य, आप देखते हैं,जैसे प्लेटो – उसका दिमाग फिर गया था , फिर अरस्तू उसकी भी बुद्धि फिर गयी | उन दोनों ने, वास्तव में, अपने स्वयं के मनमाने परिवर्तन करने की कोशिश की जो सभी बिल्कुल मनमाने ही थे। लेकिन उसने अवश्य बात की … सुकरात ने देवताओं और सब कुछ के बारे में अबाध रूप से बात की, और इतनी खुलकर बात की। फिर, उसी तरह, हम कह सकते हैं, आदि गुरु अवस्था वह है जैसे कि हमारे पास मोहम्मद साहब हैं। उनको भी मारा गया; उन्हें इसलिए भी मारा गया क्योंकि उन्होंने सच कहा था। फिर नानक आए; वह मारे नहीं गये, लेकिन किसी ने उनसे सरोकार नहीं रखा , और वास्तव में जो लोग उनका अनुसरण करते हैं, वे भी विपरीत दिशा में । माना की वह कह रहे थे, “इस तरह” आओ; तो, वे लोग “उस तरह” से जा रहे हैं। तुम ईसा मसीह के साथ भी यही बात पाते हो; अगर ईसा मसीह ने कहा, “इस तरह आओ” ईसाई “उस तरह” जा रहे हैं। हर धर्म में बस एक जैसा ही है। कृष्ण की गीता के साथ भी। जो लोग गीता का उपदेश देते हैं वे सिर्फ… अगर कृष्ण यहां खड़े हैं और कह रहे हैं, “इस तरह आओ” गीता कह रही है, तो वे लोग गीता का प्रचार कर रहे हैं, लोगों को नीचे ले जा रहे हैं।इसलिए, सभी धर्मों के साथ यह आम है कि उन्होंने हमेशा पैगंबर और सभी अवतारों के नाम का इस्तेमाल सिर्फ पैसा कमाने और हर किसी को नरक में ले जाने के लिए किया है; सीधा नरक की ओर, तुम देखते हो। तो, अब जो लोग इसके बारे में सतर्क हैं, और जिन्होंने देखा है कि यह सब बकवास है, सहज योग में हैं, और सहज योगी ऐसा नहीं कर सकते हैं क्योंकि वे इस तरफ अब काफी लंबा रास्ता तय कर चुके हैं, इसलिए वे हैं खुद नीचे जाने के बजाय कई अन्य लोगों को अपनी तरफ खींचेंगे| इसलिए, आज यह स्थिति है, और इसलिए मैं कहती हूं कि ग्रीस एक बहुत ही अद्भुत क्षेत्र है जहां हम इसे कार्यान्वित कर सकते हैं। अगर यहां एथेना को जगाया जा सकता है, तो यह स्थान हमारे लिए बहुत मददगार हो सकता है।अब बहुत संतुलित ग्रीक लोग हैं, उन्हें राइट-साइड स्वाधिष्ठान के कारण कला की बहुत समझ है; इसके अलावा, उनके पास अति भोग की व्यर्थता वगैरह को समझने का गुण हैं। यह ऐसा है। लेकिन अब अनैतिकता बढ़ी,क्योंकि वे पश्चिमी लोगों की नकल करने लगे; अन्यथा यहाँ की महिलाएँ बहुत ही नैतिक थीं। यह केवल इन बीस वर्षों में यह परिवर्तन आया है।

इससे पहले कि महिलाएं बहुत नैतिक थीं, बहुत अच्छी महिलाएं यहां रहती थीं, और उनमें से कुछ अब भारत में हैं जैसा कि मैंने आपको बताया था, वे सिकंदर के साथ आई थीं, और वे बहुत अच्छे पति और पत्नी और बहुत अच्छे परिवार थे। यह केवल- मैं नहीं जानती कि क्यों?- लगभग बीस साल या पच्चीस साल ज्यादा से ज्यादा, आप कह सकते हैं, कलियुग यहाँ भी अपना प्रभाव दिखा रहा है, लेकिन यह एक बहुत ही ठोस देश है और अभी भी वे सम्मान करते हैं, एक महिला जिसके पास चरित्र है; उसका सम्मान करते हैं। वे एक दुश्चरित्र महिला का उपयोग कर सकते हैं,लेकिन वे उस महिला का सम्मान करते हैं, जिसका चरित्र है और वह माँ का भी सम्मान करते है। तो, इस देश में बहुत सारे गुण हैं जो अभी भी विद्यमान हैं, कुछ स्थानों में गिरावट है, और कुछ स्थान पर प्रभावी हैं। तो, सहज योगियों का काम है , किसी न किसी तरह, अंतर्निहित एथेना की एकीकरण की शक्ति को जागृत करना है, और मुझे यकीन है कि आप इस देश को शुद्ध कर सकते हैं।

परमात्मा आप को आशिर्वादित करे!

 सिकंदर ईसा मसीह से दो सौ साल पहले था … एक सौ, दो सौ ईसा पूर्व मुझे लगता है। भारत में उसका बहुत सम्मान किया जाता था, हमेशा, भारत में सिकंदर का बहुत सम्मान किया जाता था, और क्योंकि वह चले गए और उन्होंने भारत से कुछ भी नहीं लूटा। आने वाले किसी भी अन्य आक्रमणकारियों की तरह, जिसने सिर्फ हमें लूटा, उसने नहीं किया। प्रथम। मुझे लगता है कि वह भारत आने के बाद काफी निर्लिप्त हो गए। कोई भी व्यक्ति जो भारत पर आक्रमण करने के लिए आया, और वास्तव में भारत की आध्यात्मिकता से उसने कुछ हासिल किया, वह था सिकंदर; अन्यथा अंग्रेज भारत में तीन सौ साल, तीन सौ साल तक रहते थे। कुछ भी उनके दिमाग में नहीं गया, कुछ भी नहीं। तीन सौ साल! क्या आप विश्वास कर सकते हैं? वे हर बात पर हंसते थे, वे हर चीज का मजाक उड़ाते थे, उनके सिर में कुछ नहीं जाता था। लेकिन इतने सारे यूनानी लोग भारत में रुक गए क्योकि वे इसे बहुत पसंद करते थे, इसलिए वे पीछे रुक गए वापस नहीं गए। तो कई अब भी जंगलों में रह रहे हैं। तो, यह कुछ है, संवेदनशीलता है, जागरूकता, जो ग्रीक लोगों में समय के साथ बढ़ी है। आप अलेक्जेंडर के चरित्र में देख सकते हैं कि वह कैसा था। भारत में एक कवि हैं, जिन्हें चंदव राय कहा जाता है, जो सिकंदर के समय में थे। अलेक्जेंडर उसे यहां लाया, उसे सम्मानित किया, उसे यहां रखा, वह यहां था, और उसने अलेक्जेंडर के बारे में कविताएं लिखीं, उनकी महानता और चीजों के बारे में, उनकी इतनी प्रशंसा की। मेरा मतलब है, मैं किसी भी भारतीय को इंग्लैंड में कवि के रूप में ले जाने वाले अंग्रेजी लोगों के बारे में सोच भी नहीं सकती; कोई सवाल नहीं है। मेरा मतलब है, वे ऐसे नहीं थे … और उनकी जागरूकता का संकेत यह है, कि आप किसी और का सम्मान नहीं करते हैं, आप कहते हैं, “ओह, मैं सबसे बड़ा हूं”। तब आप अन्य लोगों की अच्छाई नहीं देख सकते। ऐस ही पुर्तगाली के साथ भी है । बेशक, वास्को डी गामा एक साधारण व्यक्ति थे और जब वह पहली बार भारत आए, तो उन्होंने भारतीयों को देखा और वह गोवा गए और उन्होंने वहां देवी के मंदिर को देखा, वह शांत दुर्गा का है, इसलिए उन्होंने वापस जाकर अपने राजा को बताया कि , “वे सभी ईसाई हैं क्योंकि वे माता को मानते हैं। वे मुसलमान नहीं हैं ”। इतना सरल था वह। “उन्हें ईसाई बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। वे पहले से ही ईसाई हैं क्योंकि वे माँ की आज्ञा का पालन करते हैं ”। वह एक अच्छा इंसान था। लेकिन पुर्तगालियों ने भी कभी कुछ नहीं सीखा, लेकिन फिर भी कुछ खास सम्मान उन्होंने दिखाया, जैसे कि बॉम्बे का नाम मुंबई है। वे अब भी इसे मुंबई कहते हैं। मुंबई मुंबा है। मुंबा-आई नाम है। मतलब वह मुंबा की मां है। जैसे “आई” ’माँ है, इसलिए वे इसे मुंबई कहते हैं – देवी का नाम है। इसलिए, वे इसे बदलना नहीं चाहते। और पुर्तगाल में, जब मैं गयी थी, वे “मुंबई” कह रहे थे। तो, मैंने कहा, “आप इसे मुंबई क्यों कहते हैं?” उन्होंने कहा, “आखिरकार, यह देवी का नाम है; क्या यह नहीं है? ” मैंने कहा, “यह है।” लेकिन अंग्रेज, इसे “बॉम्बे” कहते हैं -समाप्त।तो आप देखें … जागरूकता देखें, आप लोगों की जागरूकता देख सकते हैं क्योंकि वे शांति के बारे में, पवित्रता के बारे में, शुभता के बारे में और उस सब के बारे में इतने जागरूक थे, इसलिए उन्होंने कहा, “हम इसे बॉम्बे कैसे कह सकते हैं क्योंकि यह देवी का नाम? ” जरा सोचो- उनकी गहराई के बारे में ,क्या नहीं? “क्या हम नहीं कह सकते।”

लेकिन अंग्रेज जा सकते थे और वे पता लगा सकते थे की इस जगह को क्या कहा जाता है, इसे मुंबई क्यों कहा जाता है। लेकिन उन्होंने नहीं किया। लेकिन अगर वे जान भी जाते, तो मुझे नहीं लगता कि उन्होंने इसे मुंबई के रूप में रखा होगा। वे ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि, आप देखते हैं, कि किसी न किसी तरह से, शांति और इन सभी चीजों का सम्मान,  इन लोगों में, जिन्होंने हम पर शासन किया, यह वहां नहीं था। अब ब्रिटेन के बच्चे बहुत अलग हैं, बहुत अलग हैं। लेकिन जिन्होंने हम पर राज किया, उनमें कोई सम्मान भाव नहीं था। वे केवल चर्च जाते थे, और कुछ भी नहीं, कोई सम्मान नहीं।

जबकि यूनानियों में भारतीयों के प्रति  हमेशा सम्मान था, वे सम्मान के साथ आए थे। अब, सम्मान, भी, हमारे भीतर एक तरह की जागरूकता है। और अब, जैसे-जैसे समय बीत रहा है, मुझे लगता है कि ब्रिटिश लोगों में दूसरों के लिए सम्मान है, वे बहुत सम्मान कर रहे हैं। मेरा मतलब है, मैं नहीं कहूंगी की सभी, लेकिन काफी सारे, क्या ऐसा नहीं है?

अच्छा, आप क्या कहते हैं? उसकी कोई मुलाकात नहीं हुई है।

हां, उस विशेषता की कमी है- सम्मान करने की।  इंग्लैंड में कमी वाला यह हिस्सा है। और उस दिल की कल्पना करें, अगर जिसमे कोई सम्मान करने का भाव नहीं है, तो यह किस तरह का दिल होना चाहिए?  ऐसे दिल से पूरी दुनिया बर्बाद हो सकती है।

तो  बात यह है की -किसी को सम्मान उत्पन्न करना होगा: दूसरों का सम्मान करना, उनकी संस्कृति का सम्मान करना, उनकी जीवन शैली का सम्मान करना। लेकिन मेरा मतलब है कि आप जो कुछ भी कहें, लेकिन सैद्धांतिक रूप से यह वहां है; व्यवहार में नहीं भी हो । सैद्धांतिक रूप से यह काम कर रहा है, क्योंकि आप से आशा की जाती है की आप किसी विशिष्ट संस्कृति के व्यक्ति का अपमान नहीं करेंगे, और कानूनी रूप से, सैद्धांतिक रूप से यह वहाँ है; लेकिन व्यवहार में यह नहीं है, मैं सहमत हूं; लेकिन सैद्धांतिक रूप से यह काम कर रहा है। आप किसी का अपमान नहीं कर सकते क्योंकि वह एक अश्वेत व्यक्ति है या वह एक जातीय समूह है, आप कानून के तहत ऐसा नहीं कर सकते, आप ऐसा नहीं कर सकते। तो यह है कि सिर्फ सिद्धांत है।लेकिन फिर भी, जागरूकता के लिहाज से भी लोग जागरूक हैं। मैं उनमें से बहुतों को जानती हूं जो धूप में बैठे थे और दक्षिण अफ्रीका के लिए उपवास कर रहे थे। इसलिए, दक्षिण अफ्रीकी जागरूकता और ब्रिटिश जागरूकता के बीच, हमें कहना चाहिए, हमें गर्व होना चाहिए कि ब्रिटिश जागरूकता में बहुत समझदारी है, और यह भावना, एक बार दूसरों का सम्मान करने की बात आती है, मुझे लगता है कि यह पूरे विश्व को बदल सकता है ।

लेकिन मुझे नहीं पता कि मुझे यह कैसे करना है, मैंने कोशिश की है। उनको सम्मान करना होगा। यह अब अपमान नहीं है, लेकिन यह सकारात्मक सम्मान भी नहीं है। इसलिए, व्यक्ति को सीखना होगा कि सकारात्मक रूप से कैसे सम्मान करें; कम से कम सहज योगियों का सकारात्मक सम्मान किया जाना चाहिए।

यह मैं चर्चा करती रही हूँ बुद्ध के बारे में, सत्य के बारे में, सम्मान के बारे में । लेकिन एक बार जब आप जानते हैं कि वे सहज योगी हैं, तो उनका सम्मान करना होगा। और यह व्यक्ति को यूनानियों से सीखना है क्योंकि अभी भी उनके पास सम्मान की भावना है। वे जानते हैं कि कैसे सम्मान करना है, क्या ऐसा नहीं है? वह विशेषता वहां है, जिसे सीखना है। यहां तक कि मिस्र के लोग भी हैं, और चीनी भी, क्योंकि इन सभी वर्षों में पारंपरिक विकास से, उन्हें एक बात का एहसास हुआ है: कि अगर आपको वास्तव में इस दुनिया में मौजूद रहना है तो आपको सीखना होगा कि दूसरों का सम्मान कैसे करें। और सम्मान आपके दिल का भाव है । जैसे जापानीयों का किसी के लिए कोई सम्मान नहीं है, लेकिन वे जाते है और दस बार झुकते हैं, और जब वे झुकते है उन्हें पता नहीं कि कब रुकना है, और अगर आप झुकते हैं, तो वे लगातार झुकते जाते हैं ,इसलिए यदि आप झुकना रोक देते है तो बेहतर होगा ।

लेकिन यह कृत्रिम है; यह वास्तविक नहीं है। तो, यह सम्मान करना आप का अंतर्निहित गुण से आना चाहिए और जब यह कार्यान्वित होता है तो आपकी जागरूकता निश्चित रूप से बहुत उच्च अवस्था, देवत्व की समझ की उच्च अवस्था तक पहुंच गई है।

तो, जब बारी आपके द्वारा आदि शक्ति का सम्मान करने की आती है, और तब, जब आपके अंदर सम्मान होता है, तो यह कृत्रिम सम्मान नहीं है, यह कृत्रिम नहीं है, यह आपके दिल से होना चाहिए। और एक बार जब आप ऐसा करने लगेंगे तो आपकी जागरूकता में सुधार होगा।

और यह कि ऐसा नहीं है की, आप को क्या मिलता है, अथवा आप के पास क्या है ,परन्तु सम्मान दे कर आप स्वयं को क्या देते हैं| और यह सम्मान जिसमें आप पूरी तरह से परिवर्तन करते हैं, मैं आपको बता सकती हूं, क्योंकि आपके और दिव्य के बीच अब एक बड़ी समझ है, और मुझे यकीन है कि सब कुछ बहुत अच्छा काम करेगा। जिस तरह से देवी आदि शक्ति का आदर करती हैं, अगर आप भी उस आदर को सीखेंगे, तो चीजें कार्यान्वित होंगी । और मुझे लगता है कि यूनानी इस मामले में, हमारा,पूरे यूरोप का, बहुत अच्छा नेतृत्व करेंगे; मैं इसके बारे में निश्चित हूं|

परमात्मा आप को आशिर्वादित करे!

वीडियो का अंत

अब, हम क्या कर सकते हैं कुछ ले सकते है …  सौभाग्य से हमारे पास कुछ संगीतकार हैं। आपने मेरी इतनी मदद की … मुझे कहना होगा कि, स्पेन में मेरी मदद करने के लिए आपकी बहुत आभारी हूं। इन सभी को आपके संगीत के कारण आत्मसाक्षात्कार हुआ और आज भी शुरू हुआ।

सम्मान आपको निर्विचार जागरूकता देता है, मैं आपको बताती हूं। सिर्फ सम्मान का विचार; क्या ऐसा नहीं है| आप सभी निर्विचार हो गए हैं क्योंकि सम्मान निर्विचार है । आज्ञा रुक जाती हैं।

तुम्हें पता है कि स्तुति क्या है? स्तुति ‘का अर्थ है प्रशंसा करना।

आपको पानी को नहीं छूना चाहिए।