Public Program, Sakshi Swaroop (भारत)
साक्षी स्वरूप हैद्राबाद, ७.२.१९९० सत्य के बारे में बताया था कि सत्य अपनी जगह अटूट, अनंत है और उसे हम अपने बुद्धि से, मन से, किसी भी तरह से बदल नहीं सकते। और सत्य क्या है? सत्य ये है कि हम, जो आज मानव स्वरूप हैं वो वास्तविक में आत्मास्वरूप है। एक आज ऐसी स्थिति पर हम खड़े हैं जहाँ हम स्वयं को एक मानव रूप में देख रहे हैं। और इससे एक सीढ़ी चढ़ने से ही हम जान लेंगे कि हम इस मानव स्वरूप से भी एक ऊँचे स्वरूप में उतर सकते हैं जहाँ हम आत्मास्वरूप हो जाते हैं। ये एक महान सत्य है। लेकिन परम सत्य ये है कि ये सारी चराचर सृष्टि, सारी दुनिया, मनुष्य, प्राणीमात्र, जड़ चेतन सब जीव है। एक ब्रह्मचैतन्य के सहारे जी रही है, पनप रही है, बढ़ रही है। और ये परम चैतन्य चारों तरफ सूक्ष्मता से फैला हुआ है जो कि सब चीज़ों को बनाता है, सब चीज़ों को सृजन करता है, बढ़ाता है और जो कुछ भी आज हम इन्सान बने हैं वो भी इस परम चैतन्य के कृपा से ही बने हैं। इस परम चैतन्य में ऐसी शक्ति है कि जिससे वो हमें ज्ञान दे सकता है, ऐसा ज्ञान कि जो एकमेव ज्ञान है। जिसे कि हम ये जान सकेंगे कि हम क्या है? हमारे अन्दर क्या स्थिति है? हम कहाँ हैं? और हमारा लक्ष्य क्या है? वो ज्ञान देता है कि जिससे हम अन्दर से ही महसूस करते हैं, अन्दर से ये हमें ज्ञात होता है कि हम Read More …