Public Program Day 1

कोलकाता (भारत)

1990-04-10 Public Program Hindi Kolkata NITL-RAW, 77'
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1st Public Program C Date 10th April 1990 : Place Kolkata Public Program Type Speech Language Hindi

[Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

सत्य के बारे में जान लेना चाहिए कि सत्य अनादि है और उसे हम मानव बदल नहीं सकते। सत्य को हम इस मानव चेतना में नहीं जान सकते । उसके लिए एक सूक्ष्म चेतना चाहिए। जिसे आत्मिक चेतना कहते हैं। आप अपना दिमाग खुला रखें वैज्ञानिक की तरह, और अगर सत्य प्रमाणित हुई तो उसे अपने इमानदारी में मान लेना चाहिए। एक महान सत्य यह है कि सृष्टि की चालना एक सूक्ष्म शक्ति करती है जिसे परम चैतन्य कहते हैं। ये विश्व व्यापी है और हर अणु-रेणु में कार्यान्वित है । हमारे शरीर के स्वयं चालित ( ओटोनौमस संस्था ) को चलाती है। जो भी जीवित- कार्य होता है वो उससे होता है पर अभी हममें वो स्थिती नहीं आई है जिससे हम परम चैतन्य को जान लें। दूसरा सत्य यह है कि हम यह शरीर,बुध्दी, अहंकार और भावनाफँ आदि उपादियां नहीं हैं। हम केवल आत्मा हैं। और ये सिध्द हो सकता है। तीसरा सत्य यह है कि हमारे अन्दर एक शक्ति है जो त्रिकोना- कार असती में स्थित है, और यह शक्ति जब जागृत हो जाती है तो हमारा सम्बन्ध उस परम चैतन्य से प्रस्थापित करती है। और इसी से हमारा मसा आत्म दर्शन हो जाता है। फिर हमारे अन्दर एक नया तरह का अध्याम तैयार हो जाता है, जो हमारे नसँ पर जाना जाता है। जो नस नस में जानी जाए वोही ज्ञान है। इसको जानने के लिए कुण्डलिनी का जाग्रण ा होना चाहीए। ये स्वयं आपकी माँ है। ये आपही की है, और ये माँ आप को पुन्नजन्म देती है। जिस तरह से टेप रिकार्डर में आप सबकुछ टेप कर सकते हैं, उसी तरह इस कुण्डलीनी ने आपके बारे में सब कुछ जान ন

लिया है । क्योक ये साडे तीन कुण्डलों में बैठी हुई है इसलिए इसे कुण्डलीनी कहते हैं। ये ्द इचा की शक् है। कोई भी इच्छा पूर्णतय पूर्ण हो जाने पर भी मनुष्य उससे सन्तुष्ट नहीं होता क्यूंकि सर्वसाधारण इच्छा तृष्त होती नहीं। जब ये शकती ऊपर की ओर उठती है तो 6 चक्कों में गुजराती, छटे चक से ब्रम्हरंद्र को छेदती हुई बाहर निकल आती है। तब ये सूक्ष्म चीज़ आपको चारों तरफ फैले हुए सूक्ष्य शक्ती से [पर चैतन्य से एकाकारिता देती है। जैसे माईक है, अगर हमने इसे मेन्स के साथ नही जोड़ा तो ये बिल्कुल बेका है। इसी प्रकार मनुष्य भी उस परम चैतन्य को प्राप्त किए बगैर सत्य को नहीं जान सकता है। स्व अपने अपनी बात को सत्य मानते हैं। सत्य में कोई भी मतभेद नहीं होता बो मतभेद सत्य के अलग पहलू । तो अलग ढंग से देखे जाते हैं। जब तक आपके चित्त में आत्मा नहीं आता है तब तक आपके अन्दर आत्य प्रकाश नहीं आता और आप अन्धेरे में ही टटौलते रहते हैं। मनुष्य ने समाज की धाराणाएँ बनाई हैं इसलिए हमारे समाज में त्रुटियाँ है, सन्देह है, म्रांति है। हरमें उस स्थिती को प्राप्त करनी चाहिए जिससे हम बड़े, मुनि,अवतरण,वली , तीर्थत्यन्कर आदि को समझ सकें और इन लोगे के जैसे बन जाएँ। मतलब , धमेः ऋषि टं की धारणा हमारे अन्दर होती है। मगर जो एक धर्म का ही पालन करता है वो कोई मी पाप कर्म कर सकता है। गलती कर सकता है। क्योंक धर्म की मावना तो सिर्फ आपकी दिमागी जमा खर्च है उसका आपके अन्दर प्रवेश नहीं हुआ। धरमेर की धारणा अपने अन्दर करने से ही हमारा हित्त होगा। किन्तु ये करते वक्त एक सहज तरीके से कुण्डलीनी उठती है क्यकि ये एक जीविन्त प्रक्रिया है। जैसे पृथ्वी में आप बीज छोड़ दे तो वो सहज में ही पनप जाता है हर एक में उसी प्रकार ये कुण्डलीनी बैठी हुई है कि जब मेरा बेटा चाहेगा तब मैं उठूंगी। वो ज़बरदस्ती से आपको पुनर्जन्म नहीं देना चाहती है। आपकी स्वतंत्रता को ही देखकर जागृत होगी। और कोई मी इस मामलें में ज़बरदस्ती नहीं कर सकता। सब से पहले कुण्डलीनी जाग्रण से आपकी शारीरिक स्थिती ठीक हो जाती है । क्यूकि आपके शरीर में सारे चक पूरे प्लावित ह्र हो जाते हैं। इन्हीं च्कों के शवित के द्वारा हम जीवित हैं और उसी से हमारा सारा व्यवहार चल रहा है । किन्तु जब हम शक्ति को अनायास बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते हैं तब ये चक क्षीन हो जाते हैं। इस तरह ी से हमारे अन्दर बिमारीयों आ जाती हैं। लेकिन कुण्डलीनी जागरण के बाद तो जिन बीमारीयों का इलाज ही नहीं, जो मरने तक आ गए ऐसे बीमारीयां एक ही रात में ठीक हो गई। इसके लिए हमें ऋषि मुणियों का धन्यवाद करना चाहिए, जिन्होंने सहज योग ढूंढ निकाला। पहले एक या दो इन्सान ही इस योग को जानते थे। किन्तु ऐसा समय आ गया है कि आपको सामूहिक तरीके से जागृति हो सकती है । इस तरह की जागृति होने से शारीरिक, मानसिक, बोदिधक और सांसारिक व्ययार्प दूर हो जाती हैं। और लक्ष्मी का भी आप पर बहुत आशीवाद आता है क्यूंकि हमने लक्ष्मी देवी, सरस्वती देवी का साक्षात पाया नहीं धा हमें लगा कि ये सब होता ही नहीं है। उसको सिध्द करने का समय आ गया है। ऑस्ट्रेलिया में दो अेडस के आदमी ठीक हो गए सहज योग से। अपने देश में इतनी व्यथापँ हैं, इतनी गरीबी है। इन

लोगों के पास पैसा नहीं कि बो अपनी बिमारीयां ठीक करें, डाक्टरों के बिल भरें, ऐसे लोगों के लिए सहज योग बहुत उपयुक्त है। सहज योग से आपकी खेती में, पशुपालन में सबरमें बहुत असर आता है। अनेक क्षेत्रों में इसका कार्य हो सकता है। सहज योग से आपके अन्दर शान्ती प्रस्थापित होती है। जिनके अन्दर शान्ती नहीं 1. वो बाहर किस तरह से शान्ती प्रस्थापि त करेंगे। आपके अन्दर साक्षी स्वरूप तत्व आ जाता है। आप के अन्दर निर्विचार समाधि स्थापित हो जाती है। फिर उसके बाद निर्विकल्प समाधि, माने चेतना आपके अन्दर आ जाती है। आपके नस नस में सामूहिक चेतना जागृत हो जाती है जिसके अनुसन्धान से आप जान सकते हैं कि दूसरे आदमी को कौन सी शिकायत, तरिटि है । और आपको कौन सी शिकायत और त्रुटि है। उसको ठीक करने की किया अगर आप सीख लें तो आप दूसरों की मी मदद कर सकते हैं और अपनी मी मदद कर सकते हैं। इसके लिए आप पैसा आदि कुछ नहीं दे सकते। जो इन्सान परमात्मा के नाम पर पैसा ले वो आपका गुरू नहीं, आपका नौकर है। मैं पक माँ हैँ और मैं ये कहुँगी कि जिस गुरू ने आपकी तबीयत ही ठीक नहीं रखी, ऐसे गुरू को रखने से क्या फायदा। गुरू दर्शन के लिए नहीं होता है गुरु ज्ञान के लिए होता है और अनुभव के लिए। इसी तरह पढ पढ़ करके आप परमात्मा को नहीं जान सकते। क्यूंकि परमात्मा बुध्दि से परे हैं। प्रश्न पूछने से या उसका उन्तर पाने ले क्या कुण्डलीनी का जाग्रण हो जाएगा? अमीबा से हम मनुष्य स्वरूप हुए । इससे ऊँची एक और दशा है, कि हमें आत्म स्वरूप होना चाहिए। आपकी सम्पत्ती और आपको ही देने और जब तक हम आत्म स्वरूप नही होते, हमे चैन नहीं आने वाला। आएँ हैं। इससे आपको क्यूँ दिक्कत होना चाहिए। आपके अन्दर एक बडा भारी हीरा चमक रहा है जिसे आत्मा कहते हैं। इसे प्राप्त करें । मानव सबसे ऊँची चीज़ है उत्कान्ति में । उसे बस इतना ही प्राप्त करना है रूस के लोग बहुत Tहरे हैं । उन्होंने कभी धर्म नहीं सुना, कभी देवी का नाम नहीं सुना। पर ये लोग एक दम पार हो गए। इतने शुध्द तबीयत के लोग जो खोज रहें हे अन्दर से सत्य। वहां की गोवरमेन्ट ने भी हमें रिकगनाइज कर लया है और साईबीरिया तक सहज योग फैल गया है । मेडीकल में, एज्युकेशन में हर चीज में । वहां के मिनिस्टर्स नक। उन लोगों में अहंकार नहीं है। इसीलिए शायद इस तरह से ये कार्य हुआ है। आशा है यहां पर भी सी प्रकार ये कार्य होगा। ये तो देवी का बड़ा भरा स्थान है और कलकत्ते से तो मुझे बहुत ज्यादा अपेक्षा जब तक हम सत्य को जान नहीं लेते तो किसी भी बात को प्रमाण मान लेना या सत्य मान लेना हुत बड़ी गलती कर देता है बहुत लोग सोचते हैं कि ये धर्म सत्य है, वो धर्म सत्य है। सत्य एकही है। कुण्डलीनी से किसी को भी तकलीफ़ नहीं होती। उत्कान्ति में हमने जो कुछ पाया है तो हमारे सेन्ट्ल তस सिस्टिम में जानते हैं। एक जानवर, समझे एक कुत्ता, वो गर गरन्दी गली से निकल जाए तो उसे कोई

तकलिफ नहीं होती। लेकिन मनुष्य ये नही कर सकता क्यूकि उसके उन्दर पक चेतना आ गई है जिससे वो गन्दगी को देखता है, समझता है और घूणा करता है । इसी प्रकार हमारी ये चेतना प्रगत हो जाती है, और हमारे अन्दर ही धर्म धारणा हो जाती है तो फिर वो कोई गलत काम नहीं करता। जैसे सन्त साधु कभी गलत काम नहीं करते थे। जब कुण्डलीनी का जाग्रण होता है तो हमारे अन्दर पूरी तरह से राजयोग प्रतीत डोता है। जैसे जब मोटर आपने शुरू कर दी तो उसकी मशीनरी अपने आप चलने लग जाती है, उसी प्रकार जब कुण्डलीनी जागुत होती है तो किसी भी चक से गुजरती है तो वो चक का बन्ध पड़ जाता है, जिससे कि कुण्डलीनी नीचे न आए। लेकिन जब विशुध्दी चक पर आती है तो आपकी जुबान भी अन्दर के तरफ धोड़ी सी खिच जाती है बन्द के लिए। इसका मतलब ये नहीं कि मोटर शुरू करने से पहले आप धक्का धुमाना शुरू करें। आजकल के येोग जो मनुष्य नें बनायें हैं यो उसी प्रकार के कृत्रिम हैं। हठ योग तभी करना चाहिए जब कुण्डलीनी का जागरण हो। जब शारीरिक दोष हो उस चक पर, तब आपको आसन लगाना चाहिए। हठ योग हम ऐसे करते हैं जैसे की सारी दवाईयां एक साथ खा रहे हीं । प्राणायम भी हम कृत्रिम तरीके से ही करते हैं। जिस ववत आपकी कुण्डलीनी चढ़ती है भर आपके अन्दर राईट साइड की शक्ती कम हो जाए, तब हम लोग प्राणायम कर सकते ाच हैं, पर सूझ बुझ के साथ। पर आप बेकार में ही प्राणायम करे तो हो सकता है कि आप को ठ्याधियाँ हो जाएँ, या आप एक दम शुष्क हो जाएँ। इतने शुष्क हो जाएंगे की आपके अन्दर कोई भावना नहीं रह जाएगी। और हो सकता है कि आप अपने पत्नी को, बच्चों को छोड़ दें और सोचें कि मैं बड़ा मारी साधू सन्यासी बन गया इस तरह का असंतुलन, जीवन में आ जाता है। जिस व्वत जिस चीज़ की जरूरत होती है वो सिर्फ कुण्डलीनी के जाग्रण के बाद ही जानी जाती है कि आज कुण्डलीनी उठके कौन से चक पे गई और कडाँ सकी। हमारे अन्दर तीन नाडीयाँ हैं। पहली है महाकाली की नाड़ी। ये बाँ और की सिम्परथेटिक नव्हस सिर्टिम को देखती है और दायें ओर की नाड़ी है महा सरस्वती की, वो हमारे राईट साइड की सिम्परथेटिक नव्हस सिस्टिम सिस्टिम को देखती है। बाएँ को देखती है। बीच की नाड़ी जो सुघुमना नाई़ी है वो हमारी पॉरा सिम्परथैटिक और जो है वो सिर्फ हमारी मावनार्प हमारे इच्छाओं को पुरा करती है ये इच्छा शबती की इडा नाडी है । या चन्द्र नाड़ी जो कुछ हमारा मूतकाल है, वो लेफ्ट साईड में इसके साथ समाहित है । राईट साइड की नाड़ी को सूर्य नाईी या पिंगला नाडी कहते हैं। ये मारे शारीरिक और मस्तिश्क सोचना, विचारना आदि के कार्य करती है ये कार्यान्वित होती है जब हम भविष्य की सोचते हैं । के काम मध्य नाड़ी इन दोनों को संतुलन में रख ती है। जैसे कि आप बहुत जोर से दौडे तो आप के हृदय के ठोके बा बढ़ जाएँगे। लेकिन इन ठोको को फिर शान्त कर देना तो किस तरह से बिल्कुल नॉर्मल डो जाते हैं, ये पारा सिम्पर्थेटिक नव्हस सिस्टिम या सुघुम्ना नाड़ी का काम है । जब कुण्डलीनी जागूत होती है तो सुपुम्ना नाड़ी और पक बाल के जैसे शक्ती ऊपर जाकर के अन्तरतम जो नाई़ी है जिसे ब्रहम नाड़ी कहते उससे जाती है। के ब्रम्हरंद को छेदती है । ये छेदन होते ही ऊपर से परम चैतन्य बहने लगता है और उससे आपके संकीर्ण चक्र खुल जाते हैं। इस प्रकार आपका सम्बन्ध उस परम चैतन्य से हो जाता है जिसकी सुक्ष्म सृष्टि है और जिसे हमने आज तक जाना नहीं। ये जानना हमारे उँगलीयों पर होता है। हाथ्थो में चैतन्य की लहरीयों बहने T१।।।

शुरू हो जाती है। श्री शंकाचार्य ने इसे “सलीलम” कहा है। ठंडी ठंडी हवा, हाथ में आने लग जाती है। ये हवा हमको बताती है और जताती है कि हमारे अन्दर कौन से दोम है और दूसरों के अन्दर कौन से दीप हैं। जब हमारा ब्रम्हरन्द्र छेद होता है तो हमारे सिर से भी ठंडी हवा आने लगती है। पर जब तक हम इसका उपयोग नहीं करेंगे हम समझ नही सकेंगे कि ये ठंडी हवा क्या चीज़ है और इससे क्या प्राप्त होता है। जब मनुष्य अपने भूतकाल के बारे में सोचता है, औौर हर समय दुखी रहता है और अपने को बहुत न्यून समझता है। उस वक्त हम इस नाडी पर गिरते गिरते हम सामुहिक सुप्त चेतना में चले जाते हैं। (कलेक्टिव्ह इससे हमें बहुत मानसिक ऋरास होता है। ऐ्रेपिलैप्सी की बिमारी हो जाती है। दुःखी किसम सब- कीनशस) के लोग होते हैं, जो लोग पागल हो जाते हैं, ये सब इसी नाड़ी के कारण। दाये ओर की नाड़ी कम होती है जब हम बहुत ज्यादा सोचते हैं, या बहुत शारीरिक श्रम करते हैं। बहुत उ्यादा सोचने से हमारे अन्दर बहुत असंतुलन आ जाता है। अगर हम संकीर्ण होते जाएँगे और आपकी शक्ति भी क्षीण होती जाएगी अगर किसी आघात से, बार या दाये इसे तोड़ दे तो आपका सम्बन्ध जो मेन्स से है, यो टूट जाएगा। डायबिटीय, लिवहर, किडनी की बिमारी पिंगला नाडी में खराबी आने से हो जाती है। बलड़ प्रेशर, टेन्शन वरगैरड होता है। इसका एक ही कारण है आजकल का जीवन। इसमें हमें बहुत संघर्ष सै रहना पडता है। और फिर मनुष्य बहुत सोचता है आगे की बार्ते सेचता रहता है। इस सोच विचार से क आपकी स्वाधिष्ठान चक, जिसे एक बहुत ज़रूरी कार्य करना होता है कि हमारे मस्तिक में जो ग्रे सेल्स उनको बार बार पूरा करें। बहुत विचार करने से ये ग्रे सेन्स खत्म होते जाते हैं, और सारा ध्यान इस चक ा का जाता है सिर्फ ग्रे से्स बदलर्ने में । तो बाकी के जो काम वो करता है वो रह जाते है। जैसे लिव्हर को प्लीहा , को देखना। तो इन में बिमारीय्याँ हो जाती हैं। ये सिर्फ सहज पाचग्रन्थी, गुर्दा, अतड़ी पत- योग के द्वारा ठीक कर सकते हैं। कुण्डलीनी जाग्रण से इन चक्कों को फिर से जोड़ देती है। और फिर से खोल देती है, और फिर से शक्ति उस चक् में आ जाती है और कुण्डलीनी स्वयं ही उस चक् को प्लावित कर देती है! डायबिटीस बहुत सोच विचार करने वाले लोगों को होती है। तो उनका पैकियास खराब हो जाता है । खुन का केन्सर हमारे प्लीहा के बजह से होता है। आज कल का जीवन बहुत ही उथल पुथलवाला है। तो उसे शोक लगता है फिर ये स्प्लीन धक जाती है फिर ब्लड केन्सर हो जाता है। हमारे आजकल का जीवन बहुत असंतुलन का जीवन हो गया है इस वक्त हम कुण्डलीनी जाग्रण से ही अपने चर्कों को प्लावित कर सकते हैं । इडा नाड़ी के बारे में कहना है कि जो मनुष्य रात दिन रोते रहता है। बंगाल में इतनी कला है तत्रिक देवी का इतना कार्य हुआ तो यहाँ इतनी गरीबी क्यूं। इसका एक कारण ये है कि यहाँ काला जादू बहुत है। पुरे विश्व” में सें यहाँ सब से ज्यादा है । महाकाली के विरोध में ये लोग कार्य करते हैं । अगर इस काली विदधया को आप उखाड़ फेकये तो दखये कि लक्ष्मी का वास यहां आ जाएगा| इस काली विद्या से बहुत अगर आपको सत्य को खोजना है और अगर आप अपना हित चाहते हैं तो बे सबको लोग यहां पर बिमार हैं । छोडकर के सहज योग में आएँ ।