Shri Ganesha and Christmas Puja

Ganapatipule (भारत)

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Christmas Puja IS Date 24th December 1991 : Ganapatipule Place : Type Puja Speech

[Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahiri]

आज का याग अति विशेष है। इस विशेष दिन को अंगार की चतुर्थी अथवा कृष्णपक्ष की चतुर्थी कहते हैं। प्रत्येक चतुर्थों को, जो कि महीने के चौथे दिन पडती है, को श्री गणेश का जन्मदिन मनाया जाता है। मंगलवार के दिन आयो इस चतुर्थी का विशेष महत्व हाता है। आज यही दिन है। हम सब मंगलवार, अंगार की चतुर्थी के दिन गणपति पुल में आये हैं। आज के दिन श्री गणेश की पूजा के लिए हजारा लोग यहाँ आते हैं। कि क्या करें। नम्रता तथा विवेक श्री गणेश जी को विशेषताएं हैं। ये दोनों गुण ग्णेश तत्व की देन हैं । सुन्दर चाल से चलने वाली स्त्री को भी गज गामिनी कहते हैं। हाथी केवल घास खाते हैं फिर भी अत्यंत शक्तिशाली होते हैं, वड़े-बड़े वजन ढाते हैं फिर भी बड़े शान्त स्वभाव के होते हैं। किसी भी चीज के लिए वे जल्दी नहीं करते। उनकी स्मरणशक्ति भी बहुत तीव्र होती है। जब भी आप की बायों और दुर्बल हा जाती है तो आपकी स्मरण शक्ति धुंध्रला जाती है। ऐसा इसलिए हाता है क्योंकि आपके अन्दर गणेश तत्व कम हो गया है। जब आप बहुत अधिक दायों ओर को झुक जाती है तो बायीं ओर का गणेश तत्व कम हो जाता है। अति कर्मी लोगों की स्मरण शक्ति भी वृद्धावस्था में समाप्त हो जाती है। सहजयोगियों को समझना चाहिए कि जा भी कुछ घटित हाता है, उसे धेर्यपूर्वक स्वीकार करना है। सबूरी के साथ। यदि आप जल्दी मचायेंगे या निराश होंगे या घबरायेंगे तो कुछ भी न हो सकेगा। सबूरी की अवस्था में आप तुरन्त समझ जाते है कि क्या करना है और कैसे। जल्दबाजी असहज है। श्री नाथ जी ने कहा है कि धेर्य रखिए। “सबूरी में ही परमात्मा प्राप्त हाते हैं”। जब कोई बातचीत हो रही हो तो देखिए और प्रतीक्षा कीजिए। जब आप ऐसी अवस्था को पा लेते हैं तो परम चैतन्य सारा कार्य करने लगता है और आप अच्छी तरह जान जाते हैं श्री गणेश की एक विशेपता है कि विवेक के साथ-साथ उनकी स्मरणशक्ति भी बहुत तीव्र है, वे सब कुछ याद रखते हैं। उन्हें सब कुछ याद रखना पडता है, क्योंकि सभी कर्मों के चिन्ह कृण्डलिनी पर श्री गणेश जी ही अंकित करते हैं। उनके ন

ं दायं हाथ में एक कलम हे जो कि उनका अपना दांत है और वे आपके विषय में सभी कुछ आपक कर्म, आपकी समस्याएँ, परमात्मा की खोज में आप कहाँ गए, आपने क्या बुराईयां को लिखते हैं। कुण्डलिनी जब चढ़ती है तो आपके चक्रों को सभी अशुद्धियां दिखाई पड़ती हैं और महसूस् होती. है तथा आप जान जाते हैं कि उस चक्र में क्यो समस्या है। इस प्रकार यह पूर्णतया वैज्ञानिक है गणेश तत्व का कंवल यही गुण नहीं है कि व्यक्ति अबोध तथा पवित्र हो, उनके बहुत से गुण आपमें विवेक और बुद्धिमता होनी चाहिए, आपकां समझ होनी चाहिए कि क्या ठीक है और क्या गलत। भी इंसा नं क्षमा कर दिया। उन्होंने कहा, “ह परमात्मा इन्हं क्षमा कर दो क्यांकि वे अपने कर्म को नहीं जानते”। जब लाग मंदिर के चढ़ावे को बेचकर व्यापार कर रह थे ता उन्हांन कोडा उठाकर उन सब को पीटा। यह उनका दूसरा पक्ष है। जब कोई राक्षस या दुष्प्रकृति मनुष्य आपको परेशान करता है तो गणों के पति श्री गणेश उनका विनाश करते हैं । आपको ये गण आपके साथ हैं। जब वे आपको बचाते हैं तो आय समझते हैं कि चमत्कार हुआ। यदि ये गण आपकी रक्षा कर रहे हैं तो आप समझ लीजिए कि है। कुछ कहना या करना नहीं पड़ती। हैं जैसे आप सहजयागी हैं। अंगारिका क्या है? श्री गणेश जलते हुए अंगारों को ठंडा कर देते हैं कुण्डलिनी भी एक ज्वाला धधकती ज्वाला-सम है। पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण है और ऊपर को जाने वाली कोई भी चीज पृथ्वी की ओर खिंचती है। केवल अग्न ही गुरुत्वाकर्षण के विपरीत ऊपर को जाती है। श्री गणेश दो प्रकार से आप के अन्दर को अग्नि को शांत करते हैं। व कूण्डलिनी को शांत करते हैं। सभी अवगुणों के बावजूद भी व्यक्ति के लिए आत्मसाक्षात्कार की प्रार्थना वे कुण्डलिनी से करते हैं। वे कुण्डलिनी के बालक हैं और आपके अन्दर वे ही शिशु हैं। इस संबंध के कारण वे कुण्डलिनी को समझा पाते हैं कि आप मेरी माँ हैं और कृपया इच्छापूर्ति में मेरी सहायता कीजिए। तब कुण्डलिनी शांत होकर सोंचती है कि मेरे बच्चे की इच्छानुसार हमारे शरीर के अन्दर ये गण सदा सक्रिय हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने पर जब आपका सम्पक परमात्मा से हो जाता है, तब ये आपकी. आपक कार्या की, आपके बच्चों आदि को देखभाल करते हैं। आत्मसाक्षात्कार से पूर्व हमारे शरीर के अन्दर में गण प्रतिकारकों के रूप में विद्यमान होते हैं। ये हमारे मध्य हृदय में होते हैं और |2 वर्ष की आयु तक उरोस्थि में इनकी रचना होती है। जब काई प्रकाप आप पर होता है तो उरोस्थि में कंपन होता है और तुरन्त ये रोग प्रतिकारक मंडराते हुए खतर, रोग या वायरस से युद्ध शुरु कर देते हैं। माँ क विरुद्ध जाने से आप चरित्रहीन हो जाते हैं और पिता के विरुद्ध जाने से आप आलसी और अकुशल बन जाते हैं। चरित्रहीन लोगें के चक्र वहुत दुबल हो जाते हैं और उन्हें ठीक करना अति कठिन होता है। उन्हें एइस बा कोई अन्य विनाशक रोग हो सकता है। अत; हमें सदैव अपना जीवन पवित्र रखना चाहिए। ईसा ने भी इस पवित्रता की वात की। उन्होंने कहा “आपके पास अपवित्र आंखें नहीं होनी चाहिए”। क्योंकि उनका स्थान आज्ञा चक्र में है अत: यदि व्यक्ति की आंखें पवित्र नहीं हैं तो इस चक्र में ईसा जागरुक नहीं है। पश्चिमी देशों के लोग ईसा में विश्वास करते हैं पर उनकी आंखें अपवित्र हैं। उनकी आंखें सदा स्त्रियों या पुरुषों को देखने में लगी रहती हैं। वे स्थिर नहीं हैं। यह नकारात्मकता है. श्री गणेश हर चक्र पर विराजित हैं हर चक्र पर बैठे हुए के पास जाने वाले लोग भी कुण्डलिनी को बहुत कष्ट देते हैं। वे कुलपति हैं जब तक वे नहीं कहते कुण्डलिनी नहीं चढ़ती । कुण्डलिनी । उनकी दूसरी प्रवृत्ति अंगारसम है। एक शोला ही दूसरे शाल को है। इसका उत्थान मैं ऊपर उठू। एक बार देवी बहुत नाराज हो गई और उन्होंने सोचा कि पूरे विश्व को समाप्त कर दूं, उन्हें लगा कि उनके बनाए हुए लोग बेकार हैं और बहुत अपराध करते हैं। तब वे तांडव नृत्य करने लगी। यह देखकर शिवजी को बड़ी चिन्ता हुई। उन्होंने देवी पुत्र कार्तिकेय को उनके चरणों में डाल दिया, ज्योही उनका पैर अपने बालक पर पड़ा वे तुरन्त शांत हो गई। इसी प्रकार श्री गणेश कुण्डलिनी को बताते हैं कि आप अपने बालक को जन्म दे रही हैं और इस समय आपको करुद्ध नहीं होना। यह कहकर वे कुण्डलिनी को शान्त करते हैं। कुगुरुओं । श्री गणेश की शक्ति के द्वारा ही उठती हैं कुण्डलिनी में जो शोले उठते हैं वे शीतल शोले हैं। यह शीतलता भी श्री गणेश जी ही प्रदान करते हैं। अतः एक प्रकार से वे आपके क्रोध को भी शांत करते हैं। क्रोध की अवस्था में हम भटक जाते हैं और हमें हमारा धर्म, हमारा कर्त्तव्य भी याद नहीं रहता। इस क्रोध में हम किसी को चोट पहुंचा सकते हैं या उसकी हत्या कर सकते हैं। इस समय श्री गणेश ही हमारे क्रोध को शान्त करते हैं और हमें संभालते हैं। शान्त कर सकता है। जब रावण श्री राम के विरुद्ध बोला तो पूरी लंका जल गयी क्योंकि श्री हनुमान भी मंगलवार को ही जन्में थे और श्री गणेश एवं श्री हनुमान मिलकर मानव के अन्दर के क्रोध को शान्त करने का कार्य करते हैं । वे इस प्रकार कार्य करते हैं कि व्यक्ति समझ जाता है कि उसने गलती की है। क्रोधी स्वभाव के व्यक्तियों को भी बे ठीक कर देते हैं । यदि कोई व्यक्ति मांगलिक हो अर्थात् उसका मंगल ग्रह दुर्बल हो तो उसे मूंगा पहनने के लिए कहा जाता है जो कि गर्म होता है। अग्नि से अग्नि बुझती है। गर्म देशों में रहने वाले लोग ईसा भी श्री गणेश के समान हैं। उन्होंने कहा कि सबको क्षमा कर दो, जिन्होंने उन्हें कष्ट दिए, क्रुसारोपित किया उन्हें

मिर्चों का बहुत उपयोग करते हैं। पसीनों से वे ठण्डे हो जाते हैं। अपनी गर्मी से श्री गणेश आपकी गर्मी को शान्त करते हैं हमें श्री गणेश के प्रति समर्पित होना चाहिए कि वे इस गर्मी आप अति बुद्धिमान तथा भाग्यशाली हैं कि आपने सत्य को खोजा तथा प्राप्त किया। इसे पूर्णत्व तक लाने के लिए आपको श्री गणेश के गुण आत्मसात करने चाहिए। श्री गणश की पूजा के लिए हजारों लोग गणपति पुल आए है। वास्तव में कितने लोग उन पर विश्वास करते हैं ? कितने लोगों में श्री गणेश क गुण हेैं? व शराब पीते हैं, स्त्रीलम्पट हैं. परस्पर झगड़ते हैं और अत्याचारी हैं फिर भी वे अंगारिका एवं श्री गणेश की पूजा करने को आ पहुंचे हैं। आपमें यदि इतनी बड़ो अग्ति है तो आप आए ही क्यों? कोई नहीं सोचता कि जिस पर वे विश्वास करते हैं उसके गुणों को भी अपनाना है। आप भिन्न गुरुओं तथा दवताओं की पूजा करते हैं, पर क्या आपने उनके गुणीं को अपनाया? बिना उनके गुणों को ग्रहण किए को वश में रखें। व्यक्ति को धैर्य रखना चाहिए कि पूजा के उचित समय पर ही पूजा हागी विधि के विधान को क्यों बदलना है? हम समय के दास नहीं हैं। यदि आप लोग समय के दास न बने ता सहजयोग फैल सकता है। इसका अनुभव तथा इस पर विश्वास होना चाहिए। सहजयोग में अन्ध विश्वास नाम का कुछ नहीं है। यह विश्वास हमने अपने चक्षु तथा बुद्धि से देखा है। यदि देख कर भी आप विश्वास नहीं करते तो अवश्य आपमें कोई दोष है। आप देख सकते हैं कि श्री गणेश कितने महान हैं और अष्ट-विनायक (आठ गणेश) के कारण महाराष्ट्र कितना पुण्यवान है। आपका उनपर विश्वास करना व्यर्थ है । परमात्मा आप पर कृपा करें।