Public Program, Sahajayog ka arth

कोलकाता (भारत)

1992-02-05 Meaning of Sahaja Yoga, Kolkata, India, 38'
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1992-02-05 Meaning of Sahaja Yoga, Kolkata, India, version 0 (Hindi, English), 98' Chapters: Talk in Hindi, Talk in English, Self-Realization
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1992-02-05 Public Program Kolkata NITL-RAW, 104'
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  1992 -02-05 पब्लिक प्रोग्राम, सहज योगा का अर्थ कोलकाता इण्डिया

कल जैसे बताया की सत्य है वो निर्धारित है | अपनी जगह स्थित है | हम उसकी कल्पना नहीं करते, उसके बारे में हम कोई भी  उपमा वर्णन नहीं दे सकते, ना ही उसको हम बदल सकते है  और बात तो ये है की इस मानव चेतना में हम उस सत्य को जान नहीं सकते | ये तो मानना चाहिए की साइन्स अब अपनी चरम सीमा पर पहुच गया है और उससे उसको फायेदा जो भी किया, किन्तु उसके साथ ही साथ आएटटम बोअम, हाइड्रोजन बोअम, प्लास्टिक के पहाड़ तैयार कर दिए है | प्लास्टिक रूप में जो कुछ भी हुआ वो इस तरह सीमा के बाहर लाहांग गया की आप जानते है की आप जानते है की कलकत्ता शहर में भी इस कदर पोल्यूशन है | ये सब होने का कारण ये ऐसा की मनुष्या अपना संतुलन  खो बैठता है| वो ये नहीं जनता है कि कितने दूर जाना है और कहा उसे रोकना है |  इस वजह से जो कुछ भी मनुष्य करता है वो बाद में किसी को नहीं बताता मानव की जो सारी चेतना आज हमने प्राप्त की है | ये हमारे उत्क्रांति में, हमारे एवोल्यूशन में हमें सहज ही मिली हुई है | हमने कोई ऐसा विशेष कार्य नहीं किया कि जिससे हम मानव बने | सहज में ही आप ने इसे प्राप्त किया, जो चीज़ आप ने सहज में प्राप्त की है वो बड़ी ऊंची चीज़ श्रेष्ठ चीज़ है की आप मानवरूप है | और इस मानव इस्थिति में परमात्मा ने आप को पूर्ण रूपी तरह से आपको स्वतंत्रता दे दी है की आप चाहे तो स्वर्ग की ओर जाए और चाहे तो नर्क की ओर जाए | अब आजकल के जमाने में परमात्मा का नाम लेना भी ज़ोर शोर  से पागलपन बात है लेकिन जैसे की मैने कल कहा था ये बहुत आशांति है की बगैर परमात्मा की खोज किए बगैर ही अगर हम कहे की  परमात्मा नहीं है तो इसका मतलब है की हमने अपने एक तरह से धारणना बना ली है और उसी दबे में बैठे हुए  है जिसमें की कोई तथ्य नहीं है | मैं कहती हूँ की परमात्मा हैं | इतना ही नहीं किंतु चारो ओर  उनकी ये प्रेम की शक्ति है | ये परम चैतन्य स्वरूप चारो ओर फैले हुए है |आज हम देखते है इन फूलो को सृष्टि  की करामात देखते है लेकिन हम ये नहीं सोचते है की किस तरह से ये कितने ईमानदार है किस तरह से किस तरह से तरह तरह पेड़ फूल विभोर पनपा है और फिर आगे जाकर के अगर हम अपने ही ओर देखे तो देखते है हमारी ये एक आंख एक नाक ये सब कुछ हमारी शरीर यष्टि ये कितनी चमत्कार पूर्ण है।  अगर  ये सिर्फ एक अमीबा से बनी है तो किसी भी कायदे से आज इंसान नहीं बन सकता था इतने थोड़े समय में, इतने थोड़े समय में एक अमीबा से इतने सारे इंसान संसार  में बन गए।  बहोत से चीजों का साइंस में उत्तर ही नहीं है, और — इस मामले में हो गए है की जो वो देखते है और बाहये दृष्टि  से पाते है वही इनके  लिए सत्य है। लेकिन हमारे अंदर कुछ है या ऐसी कोई व्यवस्था  है की जिससे हम इस उत्क्रांति को प्राप्त  हुए है। ये वो नहीं जानते।  ये वो नहीं बताते की ऐवोलुशन की ये उत्क्रांति कैसे हुई।  इसका कोई भी —साफ़ वर्णन नहीं पाएंगे।  उनसे पूछिए की एक बीज अगर हम जमीन में बोते है तो ये बताइये  की सहज वो बीज कैसे पनप जाता है  और — है और जिस बीज को हम बोते है  उसी का पौधा ऊपर से निकल रहा  है और एक ही हद तक अपनी सीमा में ही रहता है और उसी बीज के अंदर क्या सारे ही बीजो का नक्शा है। जो —- इतना बड़ा सूक्ष्म कार्य हो रहा है।  लेकिन हम जीवित कार्य की ओर  देखना ही नहीं चाहते  क्यों की उसके मामले हम कुछ कह भी नहीं सकते।  ये  सार ॐ कार्य ये चारो तरफ फैली हुई परमात्मा की प्रेम की सृष्टि  चल रही है ।  ये सारी प्रेम की सृष्टि इस कार्य को कर रही है। वही सारा जीवित कार्य कर रही है।  वही हमारे हिरदये में स्पन्दित है। अब हम जो भी आप से कह रहे है उसको आप सोचेंगे की हम उसे हम —- से कह रहे है सो बात है। इसे एक धारणा  समझना चाहिए।  हाइपोथिसिस समझना चाहिए और अगर हम सिद्ध कर दे तो आपको ईमानदारी से मानना चाहिए की ऐसी चीज हमारे अंदर  है।  पहले तो हम हमेशा ये सोचते है की हम बिलकुल नालायक है।  हम इंसान है बिलकुल बेकार है।  हम किसी योग्य नहीं, हम कुछ कर ही नहीं सकत।  इस तरह से पहले से ही हम अपने तरफ सोचते है की भाई आखिर हम लोग ——।  दूसरी तरफ ऐसे भी लोग है जो कहते है नसीब वासिब कुछ नहीं है, और दुनिया में भगवान् वगैरा कुछ नहीं है। सिर्फ जो हम करेंगे वो खायेगे। बोहत से लोग है जो बीच में पड़े पड़े ढूंढ रहे है और बहोत से लोग है जो गलत सलत जगह पर जाकर  के संतोष पा रहे है की हमने इनको पा लिया।  किन्तु ऐसे भी लोग है जो साधक है संतुष्ट है जो सोचते है की इसके अलावा भी कोई न कोई मार्ग जरूर होगा।  आज संसार में जितने भी प्रश्न हमारे सामने है चाहे वो वेल बीइंग के हो चाहे वो आपके पोजीशन के हो।  किसी भी चीज के हो इस का कारण मनुष्य है।  मानव ने ही सब गड़बड़ कर दी।  तो मानव की ये जो गड़बड़ है इसे ठीक करने के लिए अगर मानव ही परिवर्तित हो जाये उसे ही कन्फोर्मशन  आ  जाये उसे वो  परिवर्तन हो जाये तो आप सोचिये  की कितना बड़ा कार्य हो गया।  इसीलिए कहा गया है सब शास्त्रों में की आप आत्म साक्षात्कार को प्राप्त कर ले। पर आजकल के ज़माने में लोग शांति से पढ़ते है,कुछ न कुछ ऊट पठंग बाते उनको बताते है।  वो सोचते है। जैसे नानक साहब ने कहा है | पर आजकल के ज़माने में लोग शांति से पढ़ते है,कुछ न कुछ ऊट पठंग बाते उनको बताते है।  वो सोचते है। जैसे नानक साहब ने कहा है कहे ————नानक बिन आप चीन्हे मिठे न भरम की काई।  जब तक तुम  अपने को नहीं  पहिचानो गे तब तक तम्हारा भरम नहीं जायेगा | किसने नहीं कहा सब ने यही बात की है। ईशा मसीहा ने कहा यू आर टू बी बोर्न अगेन।  कम से कम पट्टी लगा ली  हो गया बोर्न अगेन। सोशल वह वह हमने पट्टी लगा ली हो गया ऐसे पट्टी लगा लेने से आप बोर्न अगेन नहीं हो सकते।  —जिसने ब्रह्म को जान लिया।  जिसने ब्रह्म को प्राप्त किया वही बुद्धा है बेकार में अपने को हम बुद्धा है आप बुद्धा  नहीं हो सकते।  किसी भी तरह के धारणा मन में ले केर के या विचार ले केर के आप इसे प्राप्त नहीं कर सकते।  ये चीज़ अंदर से होने की है और वो होनी बोहोत आसान है बोहोत सरल है सहज है इसका कारण ये है नितांत आवशयक है। जैसे हमारा स्वांसा लेना नितांत आवश्यक है। उसी प्रकार ये उत्क्रांति का भी — अतयंत आवश्यक है। और ये सब ये कुलजुग की घोर इस्थिति में ही होने वाला है। इसी वक़्त आप इतने सारे बैठे है। जो प्राप्त करना चाहते है उस परम तत्त्व को , अभी आपको बताया गया इससे की क्या क्या लाभ होते है।  जोकि की आप बाहय — पर शारीरिक ,मानसिक, बौद्धिक  आप के लिए हर तरह से पूर्ण तया आराम इतना ही नहीं इसके बाद आपके अंदर शक्तिया आ जाती है।  जिस शक्ति के कारण आप लोगो को भी ये शक्ति दे सकते है। उनके भी आप रोग निवारण कर सकते है उनके मान को भी आप शांति दे सकते है हर तरह की बुरी आदते अपने आप छूट जाती है। घर की व्यवस्था ठीक हो जाती है। दफ्तर की व्यवस्था ठीक हो जाती है।  खेती बाड़ी में दस गुना जयादा बिकाऊ होता है और घर के जो जानवर है वो भी बोहोत बेहतरीन भी स्वस्थ रूप से जीवन व्यतीत करते है | दस गुना ज्यादा   — खा जाते है।  ये तो सब प्रयोग की गति है।  लेकिन इससे भी अगली बात जो मैं आज मैंआप से कहने वाली हूँ। वो ये है की आप आध्यात्मिक आनंद को पा जाते है।  आप को अपने आत्मा का अनुभव आता है।  जब आप का आत्मा आप के चित्त में आता है।  तो आप के सेंट्रल नर्वस सिस्टम में  आपके उंगलियों में आप जान सकते है की आपके कोण से चक्र खराब है और कौन और कौन के चक्र दूसरों खराब है। इसे साबुन के तरह देखे की आप अपने बारे में तो जानते ही है। व्यष्टि में तो आप जानते ही है और समष्टि में भी आप जानते ही है की  दूसरों  को क्या तकलीफ है। अगर आप ये समझ ले की ये तकलीफे किस तरह से हटाई जाये।  इस हाँथ में आने वाली शक्ति को आप इस तरह से चलाये मान करे जिससे आप लोंगो का भला केर सक।  बस हो गया।  आप अपना भी भला केर सकते है और  दूसरों का भी भला केर सकते है।  इसमें कोई मुश्किल नहीं  है। और कोई आपकी तकलीफ नहीं होगी क्योकि  सहज सरल में जब ये शक्ति मिल जाती है तो आप के अंदर से बहने लग जाती है। तो आप कभी ये नहीं कहेंगे की मैं कर रहा हूँ। ये हो रहा है , चल रहा है , बन रहा है, और जब ये परम चैतन्य स्वयं ही आपको देखता है  तो आप आशचर्य करते है की अरे ये कैसे मेरी मददत हो गयी, ये कैसे मुझे मिल गया, ये कैसे ठीक हो गया आप इस आशचर्य  में पड़ जाते है।  और ऐसे आशचर्य   हर एक  सहजयोगी को अगर आप पूछे तो वो आपको लम्बी दास्ताँ बतादेगा।  दूसरी जो बात है। आत्मा से आप प्राप्त करते है की इस आत्मा के प्रकाश में आप एकमेव सत्य को एब्स्यूलूट  तुरुथ को जाने।  आप सब जानते है की हम आप के सामने खड़े है क्योकि आप आंख से देख रहे है। और आप हमे सुन रहे है अपने कान से लेकिन  आप की जो धारणा है  वे दूसरे  की है आप एक चीज़ को मानते है दूसरा मानते नहीं।  आप एक तरह की प्रणाली में व्यस्त है तो दूसरा दूसरी प्रणाली में व्यस्त है।  धर्म में कहता है ये अच्छा है वो  कहता है की ये धर्म मेरा अच्छा है  तीसरा कहता है की की ये धर्म मेरा अच्छा है और सब और सब सोचते है की मैं बहोत अच्छा हूँ  हालाँकि कोई खास धार्मिकता किसी में दिखाई नहीं देती।  इसका कारन ये है की जिस चीज़ को हमने माना  उसको अभी तक परखा नहीं और परखने के लिए हमारे पास कोई साधन भी नहीं है की ये सत्य है या नहीं। इसके लिए तो हाँथ से चैतन्य लहरिया बहनी चाहिए। तब आप फ़ौरन पूछ सकते है की ये सत्य है या नहीं आप अगर पूछना चाहे तो पूछ सकते है की क्या परमात्मा है। इस तरह हाँथ कर के आप अगर पूछे तो तो आप देखिये गा की ठंडी ठंडी लहरे इस चैतन्य से आएगी और और पहेली मर्तबा आप को इस चैतन्य का एहसास होगा उसको आप जानेगे पहेली मर्तबा। पहेली बार आप इस अद्भुत शक्ति से प्लावित होंगे नरिश होंगे। तो आपके लिए एक बार जरूर की आप पहले आत्मा साक्षात्कार को प्राप्त कर ले क्यों की आत्मा के प्रकाश में आप सत्य को जान सकते है। हमारे बारे में कोई कुछ भी कहे बिलकुल भी=—- न लीजिये क्यों की ये कोई ऐसी ही बात है की जब तक आप के पास  दृष्टि ही नहीं आएगी तो आप कैसे हमे पहचानिये गा तो ये दृष्टि आना  बहुत जरुरी है आप सत्य और असत्य को जानिए। दूसरी बात जो महत्व पूर्ण आत्मा के हिस्से में होती है की आपका चित्त प्रकाशित हो जाता है | चित प्रकाशित हो जाने से आपको अपने गुण दिखाई देने लगते है और दूसरो के दोष दिखाई देने लगते है। पर वो चक्रो पर दिखाई देने लगते है ये नहीं की ये आदमी ने सफ़ेद कपड़ा पहेना है उसने दूसरा कपड़ा पहेना है पर बहोत ही सूक्ष्म इन चक्रो  पर दिखाई देता है तो आप समझ जाते है क्या मेरे अंदर दोष है और क्या इस आदमी के अंदर दोष है।  अगर आप इस बात को समझते  तो  बहुत ही आप के लिए आसान है सहज है की आप अपने को भी ठीक कर ले और दूसरो को भी ठीक कर ले।  इसके अलावा जो हमलोग बोहोत शांति की बात करते है बोहोत से लोंगो को मैंने देखा है की शांति के  तमगे है शांति के बड़े दूत है  और इतने गर्म तबियत के लोग है वो मुझे आशचर्य होता है की जिनके अंदर ही शांति नहीं वो बहार क्या शांति फैलाएंगे।  किसी न किसी राजकारण के वजह से आप जाके धूर्त कह दीजिये।  किसी न किसी और वजह से आप किसी को कुछ भी चढ़ा दीजिये।  लेकिन  सत्य ये है की शांति जो है वो जब तक अपने अंदर न होगी आप शांति कैसे फैलाएंगे। जिस  वखत  आप के अंदर विचारो की सरिता होती है | तो विचार एक तरफ से उठ कर के फिर डूब जाता है।  दूसरा विचार उठता है और डूब  जाता ह।  ये विचार आपको भविष्या से और भूतकाल से आते है।  इन किन्तु  ये वर्त्तमान काल में आप रुक जाते है।  और निर्विचार हो जाते है। जब आप की कुण्डलिनी चढ़ती है तो इन विचारो को लम्बा कृत कर देती है और उसके बीच में एक जगह है जिसे विलम्ब कहते है  उस विलम्ब की जगह आपका वर्त्तमानकाल  ठहर जाता है। इस वखत आप निर्विचार समाधी को प्राप्त कर लेते है।  ये आपको पहेली प्राप्ति होती है की आप निर्विचार  समाधी को प्राप्त होते है। उसके बाद जो हमारा तालू है ये खुल जाने से हमारे अंदर ये बहार की शक्ति अंदर  बहने लगती है। और जब ये योग, या ये सम्बन्ध या कहना चाहिए कनेक्शन एस्थावन हो जाता है तब ये शक्ति पूरी समय हमारे अंदर दौड़ने लगती है और तब हम एक दूसरे ही मानव हो जाते है। सबसे तो बड़ी बात ये है की हम समग्र हो जाते है। सम अर्थ माने  जो की ये हम महामानव है वो हम महामानव हो जाते है वो महा मानव की इस्थिति  में मनुष्य एक सारी दुनिया के तरफ एक — की तरह देखता है एक नाटक की तरह से देखता है। उस पर इन सब चीज़ो का असर नहीं पड़ता और जबकि आप पानी में रहते है तो आपको डर है की कही डूब न जाये लहरों से आप डर जाते है पर अगर आप नाओ पर चढ़े तो आपको कोई डर नहीं लगता इसी प्रकार आप  नाओ पर चढ़ जाते है उसके बाद जब आप समझ लीजिये तैरना सीख लिया। तो आप पानी में कूद सकते है और दूसरो को बचा सकते है।  इसी प्रकार आप की जो उन्नाति होती है वो बहे तो आप नाव में बैठ जाते है । आप साक्षी स्वरुप देखते है ये सब चीज़ को और उसके बाद आप खुद ही एक तैराक हो जाते है। की आप दूसरो को बचाने का पूर्ण तरह से अधिकार प्राप्त करते है।  आप अपने गुरु तो हो ही जाते है और दूसरो को भी पूरी तरह से आप जानकारी रख सकते है।  क्योकि कहा जाता है की हम एक विराट के अंग प्रत्ययंग  है।  लेकिन ऐसा कहा ही जाता है। अंग्रेजी में भी कहते है एक तो होता की मयेक्रोकोस्म एक तो होता है माक्रोकोस्म कहने की बात है पर जब बूँद सागर हो जाये अगर बूँद सागर हो जाये तो फिर उसकी शूद्रता, उसका छोटापन, उसकी दरिद्रता और उसके अंदर जितने भी दुर्गुण है वो सब नष्ट हो जाते है।  इसी प्रकार आपको भी वो सूक्ष्म होना है। और इसकी पूर्ण व्यवस्था परमात्मा ने आपके अंदर कर रखी है। मै कुछ नहीं करती सच बात तो ये है की आप ही अपनी शक्ति है।  आप ही की ये माँ है कुण्डलिनी वो साढ़े तीन सर्किल में बैठी हुई है। त्रिकोणाकार अस्थि में आराम से आपकी माँ आपकी बैठी हुई हैवो इंतजार में की वो दिन आये की मै अपने बच्चों को या बच्चे को पुनर जन्म दूंगी। वो तो इतनी ललाइत है और वो चाहती की किसी तरह से मै इस कार्य को सम्पन करुँ | लेकिन आज तक हमारी दशा और थी।  आज वो समय आ गया है की जब आप को सामूहिक तरीके से ये प्राप्त हो सकता है।  जिसे हम आत्मसाक्षात्कार  कहते है।  आत्मा के बारे में अनेक बाते कही गई है की उसमे अनेक तरह के आनंद आते है की आत्मानन्द , परमानन्द और निरानंद।  यानी बिकुल आप आनंद ही आनंद में आप हो जाते है।  उस आनंद  ही  आनंद में  इसका मतलब ये नहीं की  आप असिलियत से मुँह मोड़ ले पर आप असिलियत को समझते है ।  जब तक आप नाव में नहीं बैठेंगे तक तक आप जो आप के प्रश्न है उनको देख भी नहीं सकते।  तो उसका हल कहा से निकाले।  जब आप उन प्रशनों से बहार निकल के आते है।  तब आप देख सकते है की इसका हल क्या  है  और आप  इसका हल भी  निकाल सकते है।  आज — है।  ये युग बोहोत महान है।  नल दमयंती आख्यान में लिखा था की  जब तुम  नल को समय — होना है और  बोहोत दुखी होना।  एक  दिन उन्हें कलि मिल गया और उन्होंने  उसको पकड़ लिया और कहा की मै तुमको मार ही डालूंगा।  क्यूंकि तेरे कारण ही सब लोग —–।  तेरे कारण ही वो टूट जाते है , तेरे ही कारण ही वो विक्षुब्ध हो जाते है तो मुझे तुझे मार ही डालना है।  उस वक़्त उसने नल से कहा कलि ने ठीक है।  तुम पहले मेरा महात्य सुनो  या फिर मेरा क्या महात्य  उसके बाद तुम  मुझे मार देना।  मेरा महात्य ये है की जब मेरा युग आयेग।  तब जो लोग गिरी कन्दरो में घूम रहे है और सत्य को खोज रहे है वो एक सर्व साधारण गृहस्थ में जन्म लेंगे और उस वक़्त कलिजुग में ही वो उस सत्य को प्राप्त्य करेंगे। अब तुझे मानना हो तो मान ।  तो उसने कहा  कलिजुग में क्यों  होगा ये क्यूंकि कलिजुग में ऐसी इस्थिती होगी।  की मनुष्य की दृष्टि उर्धव होगी।  वो सोचने लगेगा की इन सब चीजों में से निकलने का कोई न कोई मार्ग   होगा वो मंदिरो में जाके थक गया। मस्जिदों में जाकर थक गया।  वो पॉलिटिक्स में जाके थक गया और दुनिया भर के खुरापात करके थक गया और अब कहेगा आखिर ये है क्या कमाल उस वक़्त वो साधक बनेगा।  जब वो साधक बनेगा तब उसे ये प्राप्त होगा। ये बिलकुल सही बात आजीवन में और बोहोत से भविष्यवाणी में बताई है | लेकिन  ये  तो कलि ने ही — बताई है।  किन्तु एक बात आपको पता नहीं है की जो परम चैतन्य है तथष्ट है। ये बिकुल तथष्ट है। आज मै देखती ह।  पचास वर्ष से कृति युग शुरू हो गया है और ये कृत युग ये इस परम चैतन्य को भी बहोत जबरदस्त कार्यान्वित करेगा। डायनामिककरेगा  और ये  परम चैतन्य इस कार्य को कर रहे है हर पल हर दिन  आप को अनुभव आएगा की आत्मसाक्षात्कार के बाद की जैसे पूरी समय आपकी कोई मदद कर रहा है।  पूरी समय कोई आप के पास ऐसा लगा हुआ है  की मुझे समझ ही नहीं आता। की मुझे किसी के सामने मिलने चली आ रही है मुझे मिलने कोई सामने से चला आ रहा है यही नहीं मै ऐसे आनंद में ऐसे विभोर हू।  तो इस परम आंनद को प्राप्त करने के लिए भी आपको पहले आत्मसाक्षात्कार होना चाहिए सिर्फ अगर  कोई कहे नाचने कूदने से आनंद मिलता है नहीं  ये गलत है  अपने को भुलावे में नहीं रखना है और अपने साथ ईमानदारी रखनी है।  अगर ये सब चीज आप के हित के लिए है तो उसे  क्यों न प्राप्त किया जाये  और फिर आप ही की कुण्डलिनी है आप ही की माँ है  अपनी खुद की जो की आप के बारे में सब कुछ जानती है और जो लालियत है की आपको किसी तरह से आत्मसाक्षात्कार दे तो फिर क्यों नहीं इसे स्वीकार किया जाये और क्यों नहीं इसे मान लिया जाये। इसमें शंका कुशंका करने से बहोत अच्छी बात नहीं है।  आप से कोई रूपया पैसा मांग नहीं रहा है कोई आप से ये नहीं कह रहा की आप अपने सारी पूरी प्रॉपर्टी दे दीजिये  कोई इसको देख ही नहीं सकता क्यूंकि ये इतनी अमूल्य चीज है की जो लोग भगवान् के नाम पैर पैसा मांगते है उनसे बहोत खबरदार रहना चाहिए।  परमात्मा को क्या बैंक और पैसा समझता है क्या कभी नहीं ये तो हम लोग ने बनाये सर दर्द है परमात्मा को इससे क्या वास्ता पर हमलोग तो है अभी ऐसे संस्कारो में पले है  की जब तक हम पैसा नहीं देंगे तब तक सोचे गए कोई कार्य ही नहीं होगा समझ लेना चाहिए की जो परमात्मा ने जो हवा दी है इसके लिए क्या कभी पैसा दिया है  क्या पर जब मनुष्य गलती करता है तो इस हवा की भी पैसा देना पड़ता है। ये सब मनुष्य की ही हिमाकत है इसलिए हमे पैसा खरचा करना पड़ता है मनुष्य की ये जो बाते है इतनी दुखदाई है उतनी ही आशापूर्णा भी है अगर मनुष्य में परिवर्तन आ सकता है सारा समाज का समाज —  सारा हिंदुस्तान या कहिये आपका विश्व कर परिवर्तित हो जाता है। सब लोग अगर परिवर्तित न भी हो लेकिन काफी तादात में परिवर्तित हो जाये तो दुनिया बदल जाएगी क्यूंकि एकदम आत्मनिर्भर हो जाये गे।  एकदम आप समर्थ निर्भया हो जाये गे और आपको पूरा रास्ता दिखाई देता है की आपको कहा जाना है और आप मंजिल पर आप बहोत आसानी से पहुंच जायेगे ये सब सुनने में आपको बहोत अजीब सी भी बात लगेगी और सोचने सुनने में तो बड़ी चमत्कार कुछ तो ऐसी बात है।  ये सब बात है और आज यही आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ है।  सब यहाँ भी पीछे बैठे हुए है सब को ये  आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ है सिर्फ आपको एक ही बस बात है की श्रेष्ट की आप के अंदर शुद्ध इच्छा शक्ति बस होगी।   श्रेष्ट की आप के अंदर शुद्ध इच्छा शक्ति बस होनी है  अगर आप के अंदर शुद्धा इच्छा  शक्ति होनी तो अगर आप के प्रति शुद्ध इच्छा नहीं है तो ये चीज आपको जबरजस्ती नहीं लादी जा सकती क्योंकि परमात्मा ने आपको जो स्वतंत्र दी है  उसका तो मान करना  है। आप कहे स्वतंत्रता में इस चीज की इच्छा है क्योंकि कुण्डलिनी जो है वो शुद्ध इच्छा है बाकी की इच्छा आप जानते ही है की आज एक इच्छा हुई जैसे अब घर बनना है फिर हमे मोटर चाहिए फिर , हमे वो चाहिए, मतलब जो चीज हमे मिली हुई है उससे हम संतुष्ट होते  ही नहीं है और आप जानते है ————- तो कभी हम ख़तम ही नहीं होने वाले एक विचार दूसरा, दूसरे से तीसरा  इसका मतलब की  ये की हमारी जो इच्छाएं है वो शुद्ध इच्छा नहीं है बिकुल हमारी इच्छाए शुद्ध इच्छा नहीं है ।  शुद्ध इच्छा एक मात्र है चाहे उसके बारे में आप जाने या न जाने  की इस  परम  चैतन्य से हमे ऐकाकरिता प्राप्त हो ये शक्ति हमारे अंदर आ जाये जाने अनजाने यही शक्ति  शक्ति हमे हर जगह ले जाती है और हम उसको देखते हो कोई उसको पैसे में खोजता है।  कोई सत्ता में खोजता है कोई घर गृहस्ती में खोजता है और अंत में जानता है की इन सब में उसको आनंद नहीं मिलता है।  फिर वो उठता है और सोचता है की किस जगह परम आनंद मिल सकता है और वो जगह हमारे अंदर हमारे हिरदय में है।  कित्नु सिर्फ इसके बारे में बोलने से ,पढ़ने से, लिखने से,  सोचने से कुछ नहीं होने वाला। ये प्रत्यक्ष होना चाहिए।ऐक्टुअलाइज़शन होना चाहिए। प्रत्यक्ष  में ये चीज घटित होनी चाहिए जब तक की ये चीज घटित नहीं होती तबतक  सिर्फ बात ही बात रह जाएगी और ऐसी तो बाते  अपने देश में सभी लोग बोहोत जरूरत से ज्यादा करते है पर सब के कान भी पक्क गए , सर भी पक्क गए सुन सुन क।  पर अब कब हिरदय पकने वाला है ये बात महसूस करिये और मैं  चाहूंगी की आप लोग —- अगर कोई प्रश्न ऐसे है तो मैं उसका जरूर जवाब देना चाहूंगी।  हलाकि मैं , आप जानते है की बोहोत दिनों से मैं बोलती हूँ और हर तरह के प्रश्न का मुकाबला करके अब काफी होशियार हो गई हूँ और हर तरह का मैं आपको उत्तर दे दूंगी किन्तु इसका मतलब ये नहीं की मैंने अगर आप का उत्तर दे दिया तो आपकी कुण्डलिनी जागृत होगी ही नहीं क्योकि ये तो मस्तिष्क की ऊट पटांग बाते है।  ये तो आपकी बुद्धि से परे जाने की बात कर रहे है।  आपके मन, बुद्धि, अहंकार आदि से सब चीजों से परे  जाने की बात है और उसके लिए किसी तरह से विरह करना , व्रत करना , या उसपे बात चीत करना  उससे कुछ नहीं होने वाला ।  ऐसे तो मेरे लेक्चर भी लोगो ने देखे है लेकिन बैगैर लेक्चर देखे लोग समझ भी नहीं पाते की ऐसे कैसे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो सकता है | ये तो प्रेम की वाणी है और प्रेम का कार्य है प्रेम में  ये जरुरी थोड़ी की  आप—  प्रेम तो सिर्फ प्रेम अपने कार्य किस  तरह से करता है —–(मई सोचती हूँ  की आज आप सब लोग इसको प्राप्त केर लें।  किन्तु प्राप्त करने के बाद में ऐसा नहीं होना चाहिए की बीज अंकुरित हो गया। और फिर  रस्ते पर में बट गया इस तरह से बात नहीं होना चाहिए।  बीज अंकुरित हो जायेगा उसके बाद चाहिए की आप इसके वृक्ष बनाये।  एक वृक्ष इस तरह का हजारो लोगो का भला केर सकता है।  हर तरह की सद्बुद्धि आ सकती है।  हर तरह की मददत हो सकती है।  आपको बताना  की —-     में इतनी बेकार थी लेकिन  जितने भी सहज योग में  आये है चाहे हर तरह के , हेर प्रान्त के लोग आये है , हर तरह के लोग आये है। एक भी बेकार सहज योगी नहीं है सब ——– क्यों की लक्ष्मी का भी कुछ तत्व निहित  है लेकिन लक्ष्मी का तत्व है पैसे का तत्व नहीं इसलिए लक्ष्मी को भी समझना चाहिए की लक्ष्मी जी जो है वो एक संतुलन में खड़ी हुई है।  वह एक प्रेम मई देवी है उसके एक हाँथ में ,दोह– दोनों हाँथ में कमल है  और वो भी गुलाबी रंग का कमल जो है गुलाबी रंग के है हाँथ में तो बोहोत सुंदरता से देख कर वो एक कमल में ही खड़ी है। मतलब ये की बोहोत उनमे सादगी है और किसी में दबाओ नहीं है।  लक्ष्मी पति की पहचान ये है की जिस तरह से कमल का फूल सुन्दर होता है और आकर्षक होता है उसी प्रकार —-   उसका भी हृदय ऐसा ही सुन्दर सुरूप है और उसके अंदर कांटे दार कीड़े भी आ जाये कोई — भी आ जाये तो  भी उसमे इस्थान होना चाहिए।  उससे भी प्रेम होना चाहिए।  दूसरी चीज है के एक हाँथ में पैसा है और हाँथ में— एक हाँथ से दान होना चाहिए और दूसरे हाँथ से आश्रय जो हमारे आश्रम में है उनके प्रति अत्यंत प्रेम और श्रद्धा होनी चाहिए मैने तीन दिन पहले इनलाइटटेन ——- को कुछ समझाया की किस तरह से आप को यहाँ के लोगो के साथ एक स्वर होना चाहिए। उनके साथ वार्ता लाप — होना चाहिए।  किस तरह से  आप को इसकी उन्नति की ओर अपनी नजर रखनी चाहिए और आप लोग सहज योगी है।  वो सब कार्यरत है। की वो किस तरह से इस वार्तालाप को इस्थापित कर।  इस तरह से हर देश के लोग —– पचपन देश के लोग ———- उनमे मैंने कभी लड़ाई झगड़ा करते नहीं देखा  कभी एक दुसरो की शिकायत नहीं करते।  हमारे  हिंदुस्तान के जो सहज योगी  है इतने ईमानदार हो गए है की अस्चर्य वो करते है की मेरे पास इतनी ईमानदारी कहा से आ गयी और परदेश के सहज योगी इतने चरित्र वान हो गए है की किसी औरत की ओर नजर उठा कर नहीं देखते है।  ये क्या चमत्कार नहीं ये लोग तो देवदूत बन गए और आप सब बन सकते है  और मुझे आशा है की आप लोग आज उस महान पथ को प्राप्त करेंगे। इसमें मेरा कुछ लेना देना नहीं होगा मेरा कोई किसी प्रकार का उपकार नहीं कोई माँ अपने बच्चो के लिए कुछ करती है तो वो जिस प्रेम से करती है वो इसी लिए की उसे प्रेम है।  उस प्रेम में इसका दईत्वा है उसका लेना देना क्या बन सकता है यही न की माँ चाहे की मेरे बच्चे उससे भी बढ़ जाये | मुझसे भी बढ़िया मुझसे भी ज्यादा शक्तिशाली हो जाये मुझसे भी ज्यादा प्रेम मय हो जाये मुझसे भी ज्यादा करुणा मई  बन जाये सब तरह से खुशाल और अलहद में अपना जीवन वयतीत करे इसके अलावा माँ क्या चाहे गी और कुछ नहीं चाहती और ये देश जहाँ की मातृ पूजा होती है जहाँ पर हर एक लोग माँ के नजरो से देखा जाता है इस देश में तो आप को समझ लेना चाहिए की जहाँ  माँ को लोग समझते भी  नहीं उसका कोई महत्व भी नहीं है एक ऐसे देश परदेश में उन लोगो माँ को मान लिया है  तो आप लोगो के लिए तो बोहोत आसान है की इस योग भूमि में आप बैठे हुए है आपकी परम पराये इतनी ऊंची है।  आपके चरित्र कितने ऊचे है आपके कितने बड़े बड़े चरित्र वान साधु संत दिरस्टा हो गए तो आप क्यों न इसे प्राप्त करिये और —— उनकी बात तो ये है की उन्होंने भगवान नाम ही नहीं सुना जैसे रशियन वागइरा वो बड़े गहरे बैठ गए की समझ नहीं आता —- तलियाती है अनेक जगह — पर एक गाँव तलियाती है जहाँ पर आपको आश्चर्य होगा सुन के बाईस हजार सहज योगी वह पर कार्यान्वित है बाईस हजार और इतने गहरे उतरे है —- तो फिर इस देश में जहाँ पर हमने  ने हमेशा सत्य की बात की जहाँ पे हमेशा आत्मा की बात की है और जहाँ पे हमेशा परमात्मा की बात की खोज की है ऐसे महान देश में ये कार्य कितना महान होना चाहिए।  मुझे  पूरा आशा है की एक दिन हम लोग पूरा जागृत हो कर के वो प्राप्त करेंगे ।  आप सब को मेरा अंनत आशीर्वाद।