1st Day of Navaratri, 10th Position

Campus, Cabella Ligure (Italy)

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नवरात्रि पूजा

कबेला लिगरे (इटली), 27 सितम्बर 1992।

आज नवरात्रि का पहला दिन है। और जब मैंने पाया कि बारिश हो रही है और सभी प्रकार की समस्याएं हैं, और विष्णुमाया कुछ सुझाव दे रही थी, तो मैंने जरा कैलेंडर देखा, और आप यह जानकर चकित होंगे कि कैलेंडर में लिखा है कि पांच पैंतालीस तक यह शुभ नहीं है यह अशुभ है। पाँच पैंतालीस के बाद ही उचित शुरूआत होती है, तो ज़रा सोचिए, गणना करके यह कैसे सही था कि पाँच पैंतालीस के बाद ही हमें यह पूजा करनी थी, पाँच पैंतालीस के बाद। यानी इटली में या यूरोप में नवरात्रि का पहला दिन पांच पैंतालीस के बाद शुरू होता है।

तो यह कुछ ऐसा है जिस से हमें समझना चाहिए कि चैतन्य सब कुछ कर रहा है, और वह सभी सुझाव दे रहा है; क्योंकि मैंने तो देखा ही नहीं था, जिसे आप तिथि कहते हैं, लेकिन मुझे बस ऐसा लगा, मैंने कहा कि यह हम शाम को रख लेंगे। और जब मैंने ऐसा कहा, मैंने कहा “चलो इसे देखते हैं,” और यही हो गया।

हमें कितनी चीज़ें देखनी हैं, कि जो कुछ भी रहस्योद्घाटन तुम्हे हुआ है, तुम उसकी पुष्टि कर सकते हो। उदाहरण के लिए, मैंने बहुत पहले कहा था कि मूलाधार चक्र कार्बन, कार्बन परमाणु से बना है, और यदि आप इसे बाएं से दाएं-नहीं दाएं से बाएं, बाएं ओर देखते हैं तो आपको अन्य कुछ नहीं अपितु स्वास्तिक दिखाई देता है। तो, अब आप बाएं से दाएं देखते हैं, फिर आप ॐ देखते हैं; और एक बार जब आप नीचे से ऊपर की ओर देखते हैं, तो आप अल्फा और ओमेगा देखते हैं। अब देखिए, क्राइस्ट ने कहा है कि “मैं अल्फा और ओमेगा हूं।” तो यही स्वस्तिक ओंकार बन जाता है, क्राइस्ट भी हो जाता है। आप इसे बहुत स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। अब हमारे पास उसकी एक सुंदर तस्वीर है, हमारे पास एक टेप है, और मैं आपको वह सब दिखाना  चाहती थी, लेकिन मुझे नहीं पता कि इसका हम यहां कैसे प्रबंध कर सकते हैं। लेकिन मेरी इच्छा है कि आप सभी इसे देख सकें, यह इतना स्पष्ट है।

तो अल्फा और ओमेगा, ये गणितीय चीजें भी हमारे पास आतंरिक तौर से, परमात्मा से आई हैं। इसे हमने नहीं बनाया है। यह कुछ गणितज्ञों द्वारा खोजा गया था जो आत्मसाक्षात्कारी थे, और उन्होंने इस अल्फा और ओमेगा का उपयोग किया। यह आश्चर्यजनक है कि यह इतना स्पष्ट कैसे दिखाता है कि स्वस्तिक ओंकार बन रहा है, और ओंकार फिर अल्फा और ओमेगा बन रहा है। तो सहज योग में सब कुछ मूर्त है और सत्यापित किया जा सकता है।

अब आप आज दुर्गा, या देवी के सभी नौ रूपों की पूजा कर रहे हैं। वे इस पृथ्वी पर नौ बार आईं, इस अनुसार उन्होंने उन सभी लोगों से युद्ध किया जो साधकों को नष्ट कर रहे थे, जो उनके जीवन को अस्त-व्यस्त करने का प्रयास कर रहे थे। और इन प्रताड़ित संतों ने, जब उन्होंने देवी से प्रार्थना की – क्योंकि कोई भी देवता कुछ नहीं कर सका था, और देवी जो करती है उसमें सदाशिव कभी हस्तक्षेप नहीं करते – इसलिए उन्होंने भगवती की पूजा की, और फिर नौ बार उनका अवतार हुआ, तदनुसार समय की आवश्यकता के अनुरूप। तो हर बार आप उन्हें ऐसे लोगों से लड़ते हुए पाते हैं जो बेहद अहंकारी, आत्म-मत वाले हैं, जो खुद का कोई अंत नहीं सोचते हैं; और भक्तों को इन स्वयंभू भयानक राक्षसों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।

अब, भारत में जब हम किसी व्यक्ति की कुंडली बनाते हैं, तो हमारे पास लोगों की तीन श्रेणी होती हैं: एक देव हैं, उन्हें देव कहा जाता है; दूसरे वे हैं जो मानव अर्थात् मनुष्य हैं; और तीसरे राक्षस हैं। इसलिए मुझे लगता है कि मुझे आप सभी देव श्रेणियों से मिले हैं, अन्यथा आप सहज योग को गंभीरता से नहीं ले सकते थे जब तक कि आप उस स्थिति में नहीं होते। आखिर आप मुझ पर भी क्यों विश्वास करें कि जब मैं कहती हूं कि दुर्गा थी, और यह चीज थी, और उसने यह किया और वह किया? ऐसा नहीं हुआ है कि एक आस्था के वश ही आप चले आये हैं और अब आप दूसरे विश्वास पर छलांग लगा रहे हैं; यह उस तरह नहीं है। यह वास्तव में सिद्ध हो चुका है – आप महसूस कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, जब आप कुंडलिनी को मध्य हृदय पर उठा रहे होते हैं, तो आप महसूस कर सकते हैं कि मध्य हृदय पर अगर कोई पकड़ है, तो आपको जगदंबा का नाम लेना होगा। जब तक आप उसका नाम नहीं लेंगे तब तक यह नहीं खुलेगा। साथ ही जब मैं आपके मध्य हृदय को साफ कर रही होती हूं, तो मुझे भी यह कहना होगा की, ” वास्तव में अब मैं ही जगदम्बा हूं,” और तब आपके भीतर की जगदम्बा जागती है।

तो अब आपने इसे वैज्ञानिकों की तुलना में कहीं अधिक सत्यापित किया है। वैज्ञानिकों की यात्रा बाहर की तरफ से हैं, और वे बिल्कुल भी निर्णायक नहीं हैं। अब यदि आपकी कोई समस्या है, तो वे उसे सुलझा लेंगे; एक दूसरी समस्या आ जाती है – वे समस्याओं पर काम करते हैं, लेकिन वे मूलभूत  बातें नहीं जानते हैं कि समस्याएँ क्या हैं और समाधान कहाँ है।

जबकि आप देख सकते हैं कि एक बार अंबा, यह कुंडलिनी जो आपके भीतर होली घोस्ट, आदि शक्ति का प्रतिबिंब है, जब वह इन विभिन्न चक्रों के माध्यम से उठती है, तो वह उन्हें शक्ति देती है क्योंकि वह शक्ति है, वह शक्ति है। वह सदाशिव की इच्छा शक्ति है। वह सदाशिव की पूर्ण शक्ति हैं। और इसलिए वह हर चक्र को पूरी तरह से शक्ति प्रदान करती हैं, जिससे ये सभी चक्र प्रकाशित होते हैं और सभी देवता जागृत होते हैं। मान लीजिए कि हमारे पास कोई जीवन शक्ति नहीं है, तो हम मृत लोगों के समान होंगे। तो ये केंद्र जब उन्हें यह शक्ति, यह शक्ति प्राप्त होती है, तब वे जागृत हो जाते हैं। अब आप इसे देख चुके हैं, आप इसे स्वयं कर सकते हैं। यह सब मूर्त है, आप इसे सत्यापित कर सकते हैं। मैंने आपको बताया है कि वह हृदय चक्र पर रहती है। अब देखें कि हृदय चक्र कैसे स्थित है – यह देखना भी बहुत दिलचस्प है। जबकि वह जगदम्बा है; लेकिन अंबा, यानी शक्ति का शुद्ध रूप, जैसे, कुंडलिनी त्रिकोणीय हड्डी में रहती है। लेकिन उनका वह रूप जो जगदंबा है, जहां वे ब्रह्मांड की माता हैं, वे मध्य हृदय पर निवास करती हैं।

अब यह हृदय चक्र बहुत महत्वपूर्ण है। जब – यह तो मैं आपको पहले ही बता चुकी हूँ कि जब बारह वर्ष की आयु तक का बच्चा होता है, यह चक्र गणों का निर्माण करता है। गण बाईं ओर के कार्यकर्ता हैं। वे ऐसे हैं, हम कह सकते हैं कि सेंट माइकल उनके नेता हैं, लेकिन उनके राजा गणपति, गणेश हैं।

तो सबसे पहले उन्होंने घटस्थापना की है। “घटस्थापना” का अर्थ है – आपने अभी यहाँ जो किया है, यह घटस्थापना है। यही कुम्भ है। अब यह कुम्भ उसने सबसे पहले स्थापित किया है: वह है त्रिकोणीय हड्डी। अब यह उनका पहला काम है, कि आपका मूलाधार, इसे स्थापित करना,। तो वह तुम्हारे भीतर स्थापित है मासूमियत के रूप में। उसने आपके भीतर शुरुआत करने के लिए अबिधिता की स्थापाना की। इसलिए उन्होंने यह घट रखा है जिसमें वह अब कुंडलिनी के रूप में रह रही हैं। तो सबसे पहले यह कि कुंडलिनी को त्रिकोनाकार अस्थि में स्थापित करना और फिर श्रीगणेश की स्थापना करना। यह पहला काम है, जिसके द्वारा वह अब रचना करने जा रही है – सभी ब्रह्मांड, पृथ्वी, सब कुछ – वह जो कुछ भी रचित करने जा रही है, उसे अबोधिता से भरना है।

अब अगर आप पत्थरों को देखें, तो वे अबोध हैं। यदि आप पत्थर से टकराते हैं तो आपको चोट लगेगी, अन्यथा यह ऊपर आकर आपको नहीं मारता है। वे निर्दोष हैं। यदि आप नदियों को देखें, तो वे निर्दोष हैं। पदार्थ के रूप में जो कुछ भी बनाया गया है वह निर्दोष है। यह चालाक नहीं है, यह चालाकी नहीं कर रहा है, यह आक्रामक नहीं है – ऐसा कुछ भी नहीं है।

वे निर्दोष हैं, इसका मतलब है कि वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पूर्ण आदेश के अधीन हैं। उन्हें जो पसंद है वह करने की उनकी अपनी स्वतंत्र इच्छा नहीं है। जो कुछ भी किया जाता है वह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पूर्ण आदेश के तहत किया जाता है, और इसलिए वे अबोध हैं, हम कह सकते हैं कि वे निर्दोष हैं, क्योंकि उनके पास वैसा करने की कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं है जो उन्हें पसंद हो।

तो फिर अगर तुम जानवरों को भी देखो, वे भी निर्दोष हैं, बहुत कम को छोड़कर। उनमें से अधिकांश निर्दोष हैं, इस अर्थ में निर्दोष हैं कि उन्हें “पशु” कहा जाता है – इसका मतलब है कि वे पूरी तरह से सर्वशक्तिमान ईश्वर के नियंत्रण, पाश में हैं।

एक बाघ बाघ की तरह व्यवहार करेगा, और एक साँप साँप की तरह व्यवहार करेगा। लेकिन इंसानों में कोई बाघ की तरह, कल सांप की तरह और तीसरे दिन कीड़े की तरह व्यवहार करेगा। कोई स्थिरता नहीं है। इसके लिए आप यह नहीं कह सकते कि यह सज्जन आज बाघ हैं, तो कल यह सांप नहीं होंगे।

उन्हें अपने व्यक्तित्व को बदलने की कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं है। उन्हें अकेला छोड़ दिया गया हैं। तो शक्ति का काम परेशान करना नहीं है। यह पहले से ही निर्मित है, वे वहां हैं, और वे मौजूद हैं। उनका एक उद्देश्य है, इसलिए वे वहां हैं; और एकमात्र उद्देश्य है, मनुष्य का समर्थन इसलिए करना, क्योंकि आप विकास के शिखर पर हैं।

तो उसने इन सभी चीजों को सिर्फ आपके निर्माण के लिए बनाया है, और अंततः आपको आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हो इसलिए बनाया है; अपने जीवन को अर्थ देने के लिए, इस सर्वव्यापी शक्ति से जुड़ने के लिए, परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिए। सब उनका कृत्य है।

तो हम कह सकते हैं कि नौ बार वह आईं, और दसवीं बार वह आप सभी को आत्मसाक्षात्कार देने वाली हैं। लेकिन दसवीं बार ये तीनों शक्तियाँ एक साथ जुड़ जाती हैं – इसलिए इसे त्रिगुणात्मक कहा जाता है। इसलिए बुद्ध ने कहा है “मात्रेया”- यानी तीन माताएं एक साथ। तो यह शक्ति जब कार्य करना शुरू करती है, तो इसका आपके सभी तीन नाड़ियों और सात केंद्रों पर पूर्ण नियंत्रण होता है – पूर्ण नियंत्रण, जैसे कि बिना अनुमति के या इस शक्ति का नाम लिए बिना, आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। यह एक सच्चाई है, और यहीं पर मनुष्य असफल हो जाते हैं, क्योंकि उनके पास स्वतंत्र इच्छा होती है, और वे नहीं समझ पाते कि क्यों किसी की बात माननी है या किसी की बात क्यों सुननी है, और किसी को क्यों स्वीकार करना है। इसलिए, हालांकि आपको आत्म-साक्षात्कार दिया जाना है, यह कार्य बहुत कठिन है; क्योंकि आप ऐसे तरीके के आदी नहीं हैं जहां आपकी स्वच्छंदता ना हो। विशेष रूप से पश्चिमी देशों में, लोगों के पास अपने अनाज के चयन के लिए भी कई विकल्प होते हैं। मुझे बताया गया कि अमेरिका में 126 प्रकार के अनाज हैं। यदि इस तरह की बकवास आप अपनाए हुए हैं, तो आपका अहंकार निश्चित रूप से फूला हुआ हो जाता है, और आप सोचते हैं कि ” निर्णय लेने का अधिकार हमारा खुद का है।” और आप किसी ऐसे व्यक्ति को स्वीकार नहीं कर सकते जो आपको बता सके कि अमुक बात सही नहीं है,यह उचित नहीं है|

तो परमचैतन्य में अब वही शक्ति जाग्रत हुई है। अब, परमचैतन्य में यह जागरण अद्भुत कार्य कर रहा है, जिसे आप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। सबसे पहले, आपने मेरी तस्वीरें देखी हैं। आप मेरी तस्वीरें देखते हैं, आप दंग रह जाते हैं, आप हैरान रह जाते हैं। मेरा मतलब है, मैं खुद नहीं जानती कि यह परमचैतन्य किस काम में व्यस्त है। यह इतना सक्रिय है कि यह हर समय आप लोगों को सच्चाई के बारे में समझाने के लिए काम कर रहा है। यह ईसा के समय इतना सक्रिय होता तो बहुत अच्छा होता। लेकिन इसे इस तरह से होना ही था, क्योंकि मनुष्य को प्रबंधित करना सबसे कठिन काम है। उन्हें स्वतंत्रता दी गई है; वह भी आपको आश्चर्य होगा कि आदम और हव्वा को स्वतंत्रता दी गई थी, लेकिन यह उपलब्धि कैसे हुई, यह हमें समझना चाहिए।

नॉस्टिक्स बाइबिल में यह सामने आया है जोकि मैं कह रही हूं, कि आदम और हव्वा, दोनों पशु के समान थे, परमेश्वर के पूर्ण नियंत्रण में – कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं थी। वे ईडन के बगीचे में नग्न अवस्था में रहते, इससे अधिक कुछ जानने के बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं होगा, केवल खाना, जानवरों की तरह जीना। वे बिल्कुल जानवरों की तरह थे। तब शक्ति ने ही सर्प का रूप धारण किया और जाकर उनसे कहा कि “तुम्हें ज्ञान का फल प्राप्त करना चाहिए।” वह विकसित होना चाहती थी। यह विचार सर्वशक्तिमान ईश्वर का  नहीं था, क्योंकि इसमे काफी सिरदर्द है, आप जानते हैं, ऐसा काम करना। उन्होने सोचा होगा, “मेरे चारों ओर इस तरह के सिरदर्द होने की क्या जरूरत है?”

लेकिन शक्ति की अपनी शैली मालूम थी। वह जानती थी कि वह बहुत सारे चमत्कार करने में सक्षम है, और वह इन मनुष्यों को ज्ञान समझा सकती है, और वह वास्तव में उन्हें ज्ञानी बना सकती है। तो उसने कहा, “तुम इस फल को खाओ, और तुम्हें ज्ञान जानने की कोशिश करनी चाहिए।”

इस प्रकार एक नई प्रकार की मानव जाति का प्रारंभ हुआ, जो जानना चाहती थी कि ज्ञान क्या है। आपने देखा है कि पहले हमारे पास सभी प्रकार के आदिम लोग थे। फिर वे विकसित होने लगे, विकसित होने लगे।

अब, मुझे यह कहना है कि जो पहली रचना हुई उससे पहले, अन्य उच्च रचनाएँ करने को थीं जिन्हें सम्पूर्ण नियोजन के लिए आदि शक्ति ने आयोजित किया था। तो उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु, महेश की रचना की, और उन्होंने उनके लोक, उनके वातावरण या आप कह सकते हैं कि उनके क्षेत्र बनाए। उसमें सारी योजनाएँ की गईं कि कैसे हम इन जानवरों को आत्मसाक्षात्कारी बना सकते हैं, पशु से मनुष्य और मनुष्य से आत्मसाक्षात्कारी। यह बहुत बड़ी समस्या थी। इस तरह उन्होंने बनाया, आप देखते हैं – जैसा कि आप जानते हैं कि विष्णु का अपना लोक था, महेश का अपना लोक था, और ब्रह्मदेव का अपना लोक था। और उन्होंने आपस में तय किया कि कैसे हम इसे बेहतर तरीके से कर सकते हैं। क्योंकि इंसानों में ये तीन नाड़ियाँ बाद में बनाई गई थी। तीन नाड़ियों में से ये तीन शक्तियाँ निकलीं: महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती। उन्होंने दो बच्चे पैदा किए, एक शक्ति और एक भाई, और फिर अंतर्विवाह और जो कुछ भी हुआ, एक तरह से – विवाह मानवीय तरीके से नहीं, मानवीय तरीके से नहीं, हमें कहना चाहिए, लेकिन वे हुई थी, संभाव्य व्यक्ति को ऊर्जा दी गई थी। ऊर्जा का प्रतिनिधित्व कर रही वह स्त्री, एक पुरुष को दी गई। ये सब चीजें घटित हुईं, और उन्होंने मनुष्यों में कार्यान्वित करने के लिए यह चुना।

हुआ यूं कि किसी न किसी तरह का पहला काम भारत में बहुत कारगर रहा। या हो सकता है कि उन्होंने भारत को इसलिए चुना क्योंकि भारतीय जलवायु बहुत अच्छी है। मेरा मतलब है,  निश्चित रूप से आप जानते ही हैं कि छह मौसम होते हैं। ऐसा कभी नहीं होता, लंदन जैसे बेमौसम ही बारिश आ जाती है,  आपको भी सिर पर छाता लेकर फुटबॉल खेलना पड़ता है! तो भारत में ठीक छह मौसम हैं, और वे बहुत अच्छी तरह से संतुलित हैं। इसलिए भारत में इस परमचैतन्य को “ऋतंभरा प्रज्ञा” भी कहा जाता है – यहाँ नहीं, हम नहीं कह सकते। “ऋतंभरा प्रज्ञा” का अर्थ है ऐसा ज्ञान, प्रज्ञा, जिसका अर्थ है एक प्रबुद्ध ज्ञान, जो ऋतुओं को बनाता है। क्योंकि यहाँ ऋतम्भरा प्रज्ञा अधमरी अवस्था में है। यह बिल्कुल भी समझ में नहीं आता, क्योंकि वे जैसे मनुष्य हैं। वे इतने बिखरे हुए बुद्धि के हैं, मुझे कहना चाहिए, कि प्रकृति भी यहाँ छितर-बितर हो गई है, और समझ नहीं पा रही है कि ऐसे मनुष्यों से कैसे निपटा जाए – यह एक सच्चाई है। लेकिन भारत में छह ऋतुएं होती हैं, और ये छह ऋतुए स्पष्ट जानी जाती है।

किसी ने भारत के ज्योतिष का अध्ययन नहीं किया है, लेकिन उनका अपना ज्योतिष है – बेशक, मैं इस पर विश्वास नहीं करती। लेकिन, मानवीय स्तर पर आप देख सकते हैं कि वे किस तरह चित्रण करते हैं और कैसे वे वास्तव में बता सकते हैं कि कब बारिश होगी, कब बारिश नहीं होगी; क्या होगा, वह होगा। सितारों के बारे में भी कि ऐसा सितारा आने वाला है। अब यह हजारों साल पहले किया गया है। वे ठीक-ठीक बताएँगे कि कौन-सा तारा किस समय निकट आ रहा होगा, आज कौन-सा तारा शासन कर रहा है, कल वहाँ कौन-सा तारा होगा। उन पुराने दिनों में उन्होंने इन सब बातों का अध्ययन किया था।

जब मैं यहां देखती हूं, तो पता नहीं उस समय इन पश्चिमी देशों में क्या स्थिति थी, मनुष्य थे या नहीं, मैं नहीं जानती; लेकिन ऐतिहासिक रूप से मुझे लगता है कि यह इतनी विकसित जगह नहीं थी।

तो फिर यह सारी व्यवस्था की गई, और मनुष्यों को यह समझाया गया कि ईश्वर है। संतों का सम्मान किया जाता था – मैं आपको भारत के बारे में बता रही हूं – वास्तविक संतों का सम्मान किया जाता था, और उन्होंने अलग-अलग अध्ययन किए। अब जब मैंने आदि शंकराचार्य को पढ़ा, तो मुझे आश्चर्य हुआ कि वे मेरे बारे में इतनी सारी बातें कैसे जानते हैं। वह जानते है कि मेरा घुटना कैसा दिखता है, वह जानते है कि मेरी पीठ पर कितनी रेखाएँ हैं, कितनी – मेरा मतलब है, यह बहुत आश्चर्यजनक है कि यह व्यक्ति मेरे बारे में सब कुछ कैसे जानता है। इसका मतलब है कि अपनी ध्यान शक्ति के माध्यम से वह मुझे देख सकते थे – उन्होने कभी भी मुझे नहीं देखा। विवरण और सब कुछ इतना स्पष्ट है। अब अगर देवी के हजार नाम कहें तो देवी के हजार नाम इतने सटीक हैं। मेरा मतलब है, उन को आप मुझमें सत्यापित कर सकते हैं, मैं ऐसी ही हूं। जो कुछ भी है, अच्छा या बुरा, मेरे बारे में जो कुछ भी कहा गया है, वह एक सच्चाई है। और इन लोगों का यह ज्ञान सबसे उल्लेखनीय है: उन्हें कैसे पता चला कि एक देवी ऐसी होती है?

मेरी कुछ बातें जो मैं भी नहीं जानती, परन्तु वे वहां उल्लेखित हैं, और उन्होंने वर्णन किया है। यह बहुत आश्चर्यजनक है।

तो भारत में, उनकी ध्यान शक्ति महान थी। कारण था, हमारी ऋतुएँ अनुशासित थीं, लोग अनुशासित हैं। भारत में अधिकांश लोग सुबह जल्दी उठते हैं, पूजा करते हैं, सब कुछ करते हैं, स्नान करते हैं, और वे काम के लिए जाते हैं, घर आते हैं, परिवार के साथ रहते हैं, अपना भोजन करते हैं, और फिर कुछ गीत और भजन गाते हैं, और फिर सो जाते हैं – सामान्य रूप से। बहुत अनुशासित। वे छुट्टियों मनाने को नहीं जाते, वे शराब पीने और इस तरह की चीजों में नहीं पड़ते। आम तौर पर परिवार में, कोई सवाल ही नहीं, अगर कोई पीता है तो उसे घर से बाहर निकाल दिया जाता है। उसकी निंदा कोढ़ी के रूप में की गई। उसे दारुडा कहा जाता है, इसका मतलब है कि वह शराबी है। और आजकल भी कुछ लोग शराब पी रहे हैं, लेकिन वो भी अपनी शराब छुपा कर रखते हैं. कोई भी दूसरों की उपस्थिति में नहीं पीता है। मेरा मतलब है, मुझे नहीं पता, आगे उनका प्रभाव बढ़ सकता है और लोग खुलेआम शराब पीने लगेंगे, लेकिन आमतौर पर ऐसा नहीं होता है।

इसलिए इन छह ऋतू के बिल्कुल अनुशासन में रहने के कारण हमें पता था कि कब क्या करना है और कैसे करना है। अब लोग जंगलों में रह सकते थे। जैसे इंग्लैंड में, अगर आपको बाहर जाना है तो तैयार होने में पंद्रह, बीस मिनट लगते हैं: आपको अपने जूते, मोज़े, अपना कोट, अपने आतंरिक वस्त्र – यह चीज़, वह चीज़ पहननी होती है; अन्यथा आप बाहर नहीं निकल सकते। और तुम एक जगह से शुरूआत करते हो; दूसरी जगह पहुंचकर आप पाएंगे कि भारी बारिश हो रही है, आपके पास कोई साधन नहीं है, आप भीग जाते हैं। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। यह इतना संतुलित है कि जब आप आते हैं, तो आप सभी सर्दियों के समय में आते हैं, आपने देखा है। अचानक बारिश नहीं होती,  गलत समय पर ऐसा नहीं होता। आप जब तक चाहें बाहर रह सकते हैं।

तो ये लोग जंगलों में रह सकते थे, इस मायने में हमें आराम का इतना अंदाजा ही नहीं था। एक साधारण सी झोपड़ी में वे रह सकते थे: धूप से थोड़ी सुरक्षा, और बरसात के मौसम के लिए बारिश से बचाव, बस इतना ही।

और उन्हें जीवन की बहुत कम जरूरतें थीं। और हम प्लास्टिक का उपयोग नहीं करते थे – मेरा मतलब है कि उस समय प्लास्टिक नहीं था, या अब भी हम प्लास्टिक का अधिक उपयोग नहीं करते हैं। और हमारे पास कुछ थालियां और चीजें हुआ करती थीं। एक छोटे से परिवार में भी उनके पास सिर्फ थालियाँ होंगी, जो हमेशा के लिए परिवार के पास थीं।

अब मुझे लगता है कि इतना अंतर है। आप देखिए, ऐसे साधारण जीवन में क्या होता है, कि आप धरती माता से सारी दौलत नहीं छीन लेते। वहां कोई जलवायु की समस्या नहीं है। लेकिन जैसा कि आप कह रहे हैं कि इसके लिए इतने सारे ग्लास हैं, इसके लिए इतने सारे ग्लास हैं, इस तरह की सभी चीज़ों जिनका का कोई सौंदर्य परक मूल्य नहीं है, और इसका कोई टिकाऊपन नहीं है। तो फिर आपके पास ये विशाल बड़े प्लास्टिक के पहाड़ पर पहाड़ हैं जिन्हें जलाया भी नहीं जा सकता है, जिसे फेंका भी नहीं जा सकता है, अगर आप समुद्र में फेंक दें तो यह तैरता है, और ऐसी अन्य समस्याएं हैं।

तो उन दिनों में यह जो शक्ति कार्यरत थी उन्हें साधक बनाने के लिए उनमें थी; क्योंकि उन्हें कुछ और करने की ज़रूरत नहीं थी, आप जानते हैं। यह सब ठीक है, तुम्हारे पास खाने के लिए भोजन है, तुम्हारे पास सोने के लिए जगह है, समाप्त – करने के लिए बहुत कुछ नहीं है, इतनी खुशी से जी रहे हो। इन सभी सुविधाओं के साथ जिस तरह से आपके समय की बहुत कम मांग है। उनके पास समय था, बहुत समय था। और उस समय के साथ उन्होंने जो किया?

उदाहरण के लिए ,वे तैराकी या बॉलरूम नृत्य के लिए, या ऐसा कुछ भी के लिए नहीं जाते थे। उस समय को पाकर के उन्होंने ध्यान किया। और जब उस समय ध्यान शुरू हुआ, तब उन्हें यह बोध होने लगा कि ईश्वरीय शक्ति क्या है, दिव्यता क्या है, ईश्वर क्या है।

उदाहरण के लिए मैं आपको बताती हूँ, यहाँ लोग ईसा-मसीह के निजी जीवन की भी चर्चा करते हैं, और हर तरह की बातें कहते हैं; मेरा मतलब है, भारत में यह असंभव है, कोई भी ऐसा नहीं करता है। उनके दिमाग में ऐसी बात कभी नहीं आती कि कृष्ण की सोलह हजार पत्नियां कैसे थीं-कोई तो कारण होगा, आखिर वे भगवान हैं। ईश्वर ईश्वर है, आप एक इंसान हैं – आप ईश्वर के बारे में कैसे जान सकते हैं, क्योंकि आप उसके माध्यम से आए हैं? वे ऐसी बेतुकी बातों की चर्चा नहीं करते, होना ही चाहिए। और अब जब मैंने उन्हें बताया कि ये उनकी सोलह हजार शक्तियाँ हैं, उन्होंने कहा, “हाँ।” फिर, पाँच पत्नियाँ पाँच तत्व थीं – “हाँ।” वे भगवान हैं। इन बातों पर कोई चर्चा नहीं करता। ईश्वर है – तुम ईश्वर को कैसे समझ सकते हो? क्या आप मुझे समझ सकते हैं? आप नहीं कर सकते कोशिश करो – तुम मुझे नहीं समझ सकते। बहुत कठिन।

तो तुम समझ नहीं सकते, तुम भगवान को नहीं समझ सकते। कृपया एक बात समझ लें, चूँकि ईश्वर को समझना असंभव है। लेकिन आप ईश्वर से सम्बंधित हो सकते हैं, आप भगवान की संगति में हो सकते हैं, आप पर ईश्वर का आशीर्वाद हो सकता है, परमात्मा आपकी देखभाल कर सकते हैं, आप ईश्वर के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं; परन्तु तुम समझ नहीं सकते।

यह एक और बात है जिसे आपको जानना है, कि आप यह नहीं समझ सकते कि ईश्वर ऐसा क्यों करता है, वह ऐसा क्यों करता है, वह ऐसा क्यों करता है। आप समझ नहीं सकते, आप इसे समझा नहीं सकते। मेरा मतलब है, कोई यहाँ तक कह सकता है, “उसने स्वस्तिक क्यों बनाया?” फिर, “उन्होंने ॐ क्यों बनाया?” मेरा मतलब है कि यहां लोग इतने अहंकारी हैं कि वे परमात्मा से भी पूछ सकते हैं, “आप क्यों मौजूद थे?” वे उस सीमा तक जा सकते हैं, आप जानते हैं, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। तो इस अहंकार ने, इस अहंकार ने हमें परमात्मा के मामले में अंधा कर दिया है। हम सोचते हैं कि हमारा कोई अंत नहीं है, हम बहुत ही आत्मकेंद्रित हैं, और हम इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं।

तो ये जो शक्ति है, ये शक्ति है जिसने आपको आत्म-साक्षात्कार दिया है, ये आपको ईश्वर-साक्षात्कार भी देगी; लेकिन फिर भी तुम परमात्मा को समझ नहीं पाओगे। आपको ईश्वर को समझने के लिए उनसे ऊपर जाना होगा। तुम कैसे समझोगे? मान लीजिए कि आपके नीचे कुछ है, तो आप समझ सकते हैं; लेकिन कुछ तुम्हारे ऊपर हो, तुम कैसे समझोगे? मान लीजिए कि कोई नीचे कबेला में हो और मेरे घर के बारे में जानना चाहता है, तो क्या वह समझ पाएगा? मेरा घर देखने के लिए उसे कैबेला के ऊपर जाना होगा।

तो जिस स्रोत से हम आए हैं, उसे हम समझ नहीं सकते। हम उसका आकलन नहीं कर सकते, हम ऐसा नहीं कह सकते कि क्यों?; वह परमेश्वर की इच्छा है, परमेश्वर की इच्छा है, जो कुछ भी वह करता है। तो हमें क्या कहना है: उसकी जो भी इच्छा होगी, हम उससे प्रसन्न रहेंगे। और आपके भीतर जो शक्ति है वह अंबा है, जो परमात्मा की ही इच्छा शक्ति है। तो आपकी जो भी इच्छा है, इसका मतलब है कि उसकी इच्छा है कि आप उसके क्षेत्र में प्रवेश करें।

अब आप परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करें। तब शक्ति आपको विभिन्न सुंदर पदों पर बिठाती है, और कुछ परमात्मा के हृदय में बैठे हैं, कुछ ईश्वर के सहस्रार में, परमात्मा के राज्य में बैठे हैं।

अब आपको अपनी शक्ति धारण करना चाहिए। नवरात्रि पर अब आप समझ लीजिए कि अब इसने सीमा लांघ ली है और अब हम दसवें स्थान पर हैं, जहां आप को धारण कर लेना चाहिए। मैंने तुमसे कई बार कहा है कि, अब भरोसा करो कि तुम सहजयोगी हो। विश्वास करें कि आप हो, आपने परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर लिया है। आप इश्वर का आकलन नहीं कर सकते, आप ऐसा नहीं कह सकते कि वह ऐसा क्यों करती है, वह ऐसा क्यों करती है, वह ऐसा क्यों करती है। आप ऐसा नहीं कह सकते – वह भिन्न ही  है। लेकिन जब आप वहां बैठते हैं, तो यह कोई सभा नहीं है, ऐसा नहीं है कि कोई राजनेता लड़ रहा है, नहीं; यह ऐसा है कि आपने परमेश्वर के राज्य में प्रवेश किया है, परमेश्वर द्वारा आशिर्वादित, देखभाल, रक्षा, पोषण और बनाए गए ज्ञानी है।

लेकिन फिर भी इस अहंकार को नीचे उतरना होगा ताकि हम समझ सकें कि ऐसा क्यों होता है। वह विनम्रता हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है; अन्यथा यह शक्ति आपको परे नहीं ले जा सकती। अब जैसे भी हो, सहस्रार को पार करवा दिया गया है, अब इस शक्ति को और ऊपर जाना है। उसके लिए पहले आपको विनम्र होना चाहिए। “विनम्र” का अर्थ ऐसा नहीं है कि यह किसी व्यवसायी या राजनेता की कृत्रिम विनम्रता होनी चाहिए। यह आपके दिल की ऐसी एक विनम्रता है कि “हे ईश्वर, हम आपको समझना नहीं चाहते, आप बहुत महान हैं। लेकिन आइए हम स्वयं को जानें। और तब तुम चकित होओगे कि उसने तुम्हें अपनी छवि जैसा बनाया है। इसका मतलब है कि उसने आपको सारी शक्तियां दे दी हैं। उसने तुम्हें बनाया है। जब उसने तुम्हें बनाया है, तो तुम उसे नहीं बना सकते। वह स्रोत है, आप उसे नहीं बना सकते। उसने आपको अपने स्वरूप में बनाया है। अब, जो आप कर सकते हैं वह दूसरों को उसकी छवि में बनाना है।

ये शक्तियां आपके साथ हैं। लेकिन पहली चीज जो आपके पास होनी चाहिए, वह है अपने भीतर का अनुशासन, जो गायब है। लोग खुद को अनुशासित नहीं कर पाते – मतलब अगर वे खुद को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं, तो वे किसी को अन्य कैसे नियंत्रित कर सकेंगे? कोई अनुशासन नहीं होने का मतलब है कि आप खुद को नियंत्रित नहीं कर पाते। इसलिए अनुशासन यह होना चाहिए कि पहले आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आप अपने आप को नियंत्रित कर लेते हैं, क्योंकि अब आप परमेश्वर के राज्य में हैं।

क्या आपने “मि.बीन ” नामक फिल्म देखी है? जहां वे एक बेवकूफ आदमी दिखाते हैं, आप देखिए? तो क्या होता है कि अब जब आप अब देवी के दरबार में आते हैं, जब आप परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर चुके होते हैं, तो आपको अपने सिंहासन पर गरिमापूर्ण तरीके से बैठाया जाता है। लेकिन आप मिस्टर बीन की तरह व्यवहार करने लगते हैं, देखिए। आप अपने आसन पर बैठना कैसे यह नहीं जानते, आप बाज़ू में बैठना चाहते हैं, आप दीवार पर बैठना चाहते हैं या हर तरह की चीजें करना चाहते हैं। कोई अनुशासन नहीं है। आपके पास अनुशासन होना चाहिए। आप कहां बैठे हैं? आप परमेश्वर के राज्य में बैठे हैं। तो आपमें वह गरिमा होनी चाहिए, वह स्नेह होना चाहिए, वह करुणा होनी चाहिए, वह प्रेम होना चाहिए, और समर्पण होना चाहिए।

परन्तु यदि वह न हो तो यह शक्ति व्यर्थ है, क्योंकि आप उस शक्ति के वाहक हैं। मान लीजिए मुझे पानी लेना है, मेरे पास ऐसा गिलास होना चाहिए है जो अंदर से खाली हो। अगर वह पहले से ही अहंकार से भरा हुआ हो, तो आप उसमें क्या डाल सकते हैं? या अगर वह पत्थर है तो आप उससे पानी नहीं पी सकते, आपको पानी डालने के लिए उसमे जगह खोद कर बनानी  पड़ेगी। इसलिए यदि आप पहले से ही अपने विचारों से, अपनी सुविधा से, अपनी प्रगति से या जो भी हो, केवल उसी से भरे हुए हैं, तो आप बहुत ऊपर नहीं उठ सकते। आपको इस प्रकार से कहा कर पूरी तरह से समर्पण करना होगा कि, “माँ, आपकी जो भी इच्छा है, कि … हम अपनी कोई व्यक्तिगत इच्छा नहीं रखना चाहते हैं।” तब ईश्वर की इच्छा काम करेगी।

आप चाहते हैं कि कुंडलिनी जो ईश्वर की इच्छा है, ना की आपकी इच्छा, जो आपकी इच्छा से स्वतंत्र है, आपके लिए काम करे, लेकिन वही है जो आपकी सारी ही तथाकथित इच्छाओं को पूरा करेगी, यहाँ तक की आपकी जानकारी में आये बिना।

चमत्कार के बाद चमत्कार होंगे, इतने चमत्कार कि अब हम यह भी समझ नहीं पाते कि चमत्कारों पर किताब भी कैसे संकलित करें। लेकिन ये चमत्कार आप तक इसलिए आ रहे हैं क्योंकि आप आत्मसाक्षात्कारी हैं। आपका ध्यान बिल्कुल ठीक होना चाहिए, आपको स्वयं को देखना और आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि, “मैं परमात्मा के राज्य में बैठा हूँ, अब मेरी क्या स्थिति है? क्या यह इसके लायक है, क्या मैं इसके लायक हूं, क्या मैं उसी तरह का व्यवहार कर रहा हूं, या अब भी मुझे भरोसा नहीं है? यदि आप को भरोसा नहीं होता हैं, तो आप उत्थान कैसे पा सकते हैं? “विश्वास” का अर्थ है कि आपने कुछ देखा है, आपने कुछ जाना है जो मूर्त है, आपको उसका अनुभव हुआ है। फिर भी तुम समर्पित नहीं हुए। यदि आप परमात्मा की इच्छा के सामने समर्पण करते हैं, तो सब कुछ उनके नियंत्रण में ले लिया जाता है। यह आपको कभी निराश नहीं करेगा, कोई सवाल ही नहीं; और सब कुछ, सभी चीजें जो कठिनाइयों और बाधाओं के पहाड़ों की तरह दिखती हैं, तुम पार कर जाओगे, जैसे एक हवाई जहाज उस पर से गुज़र जाता है। आपको किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होगी।

तो एक बात, आज मुझे बहुत खुशी है कि ये पूजा एक ऐसे देश के लोगों द्वारा की जा रही हैं, जहाँ अनुशासन बहुत महत्वपूर्ण है- वो है स्विट्ज़रलैंड। लेकिन उनका अनुशासन बुरी बातों के लिए होता है, अच्छे के लिए नहीं।

उदाहरण के लिए, उनके पास एक सेना है: कौन उस दूरस्थ जगह पर हमला करेगा, आप देखिए? कोई नहीं। क्यों उनके पास सेना है? और अनिवार्य सेना, क्या आप जानते हैं? क्योंकि उन्होंने दूसरे लोगों का पैसा लूटा है और  ठगों की तरह उसे वहाँ रखा है। तो वह सारा पैसा उनके बैंकों में है, और वे चिंतित हैं कि किसी भी समय, आप देखिए, कोई भी व्यक्ति आ सकता है और पैसे की मांग कर सकता है, और हम पर विनाश की शक्ति का उपयोग करना शुरू कर सकता है। इसलिए, क्योंकि वे गलत कर रहे हैं, इस कारण उनके पास एक सेना है – भय के कारण, केवल भय के कारण। वहाँ फौज रखने की दरकार नहीं। लेकिन हर किसी को सेना में भरती होना पड़ता है और सेना में शामिल होना पड़ता है, क्योंकि वे सबसे खराब किस्म के चोर हैं।

फिर दूसरी बात यह कि उन लोगों में घड़ी की गुलामी भी बहुत है, जो इंसानों ने बनाई है, ईश्वर ने नहीं बनाई है। तो, घड़ी इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे घड़ी बना रहे हैं। अगर वे घड़ियाँ बना रहे हैं और अगर वे घड़ियों की गुलामी नहीं करें, तो कौन उनकी घड़ियाँ खरीदेगा? वे लोग कहेंगे, “तुम सब के पास घड़ियां रखने का क्या फायदा, अगर तुम ऐसे हो।” इस वज़ह से वे बहुत अनुशासित हैं। इतना ही नहीं, इसके अलावा वे अत्यधिक, मेरा मतलब है कि जैसा कि कल उन्होंने प्रदर्शित किया है, उनमें वास्तव में बहुत अधिक स्वच्छता है।

कुछ लड़कियां जिनकी शादी हो चुकी थी – मुझे कहना होगा,  कि मुझे यह कहते हुए खेद है, लेकिन यह एक सच्चाई है – कुछ लड़कियाँ स्विट्जरलैंड से ब्याही गई थी, और रिपोर्ट्स आई हैं कि, “माँ, वे नौकरानी या बार बाला रही होंगी- नौकरानियाँ। ”तो मैंने पूछा,“ क्यों? क्योंकि “अगर कहीं कुछ गिर जाता है, तो तुरंत, वे उसे उठाने लगेंगी और वहीं रख देंगी। अगर कुछ भी – यह ऐसा ही है, जैसे मेहमानों में, आप देखिए कि,  मेहमान बैठे हैं और उनके पास उनसे बात करने का समय नहीं है। एक दूसरे से बात करने का कोई सवाल ही नहीं है, कुछ भी नहीं है; हर समय वे इसी बात को लेकर चिंतित रहती हैं कि, यह गंदा हो रहा है, वह गंदा हो रहा है, जैसे घरेलू-नौकर। आप कल्पना कर सकते हैं? ऐसा व्यवहार भी उसी भयानक अनुशासन से आया है जो उनके पास है। ऐसा अनुशासन दैवीय अनुशासन नहीं है। प्रकृति ऐसी नहीं है। यदि आप प्रकृति को देखते हैं, तो देखें कि प्रकृति कितनी सुंदर है, – आपको वहां कभी कोई गंध नहीं मिलेगी। हा, लेकिन अगर इंसान वहां जाकर रहने लगें तो सारी बदबू आने लगती है। अन्यथा कोई दुर्गन्ध नहीं होती है। प्रकृति अपना ध्यान खुद रखती है, वह खुद को साफ करती है, वह सब कुछ करती है।

तो, हर चीज का नियत एक समय होता है, इसे थोड़ा फुर्सत के साथ करना चाहिए। यानी, एक बार घर की सफाई करनी है तो घर की सफाई करो। लेकिन हर समय अगर आपका ध्यान इस की सफाई कर रहा है, इसे साफ कर रहा है, उसे साफ कर रहा है, इसे ठीक कर रहा है – आप किसी काम के नहीं हैं, आप हूवर मशीन (सफाई करने वाली वेक्यूम क्लीनर)की तरह हैं! और ऐसी महिला को कौन प्यार कर सकता है जो हर समय सिर्फ एक हूवर मशीन की तरह है?

लेकिन फिर से, जैसा कि आप जानते हैं कि देवी के पास सभी चरम हैं, तो यह एक और परम है। और एक दूसरी अति वो है कि बिल्कुल घटिया लोग, कि इंग्लैंड में – बिल्कुल घटिया, बहुत घटिया। वे हर तरह की घटियापन के साथ जी सकते हैं, और यह बहुत दूर तक जा रहा है। तो यह एक मध्य में होना है। स्वच्छता हमारे लिए है, हम स्वच्छता के लिए नहीं हैं। आपको उसके लिए भुगतान नहीं किया जाता है, आप दासी नहीं हैं।तो, साफ-सफाई होनी चाहिए। हमें यह अच्छा लगता है तो हम इसे स्वच्छ रखेंगे, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि हर कोई इससे घबरा जाए; ऐसी स्थिति में होना कि आपके पास किसी से बात करने का समय नहीं है, किसी के साथ अच्छा व्यवहार करने का समय नहीं है, यहां तक ​​कि ध्यान करने का भी समय नहीं है। यहां तक ​​कि ध्यान करते हुए भी वे आसपास नज़र रख रहे होंगे कि यहां कुछ गिर रहा है, “हे भगवान!” और वे जाकर बटोर लेंगे। मुझे आश्चर्य नहीं होगा कि चर्च में भी वे ऐसा करने लगते हैं!

ध्यान के बारे में आप में कोई अनुशासन नहीं है, ध्यान का अनुशासन, दैवीय कार्य का अनुशासन, ईश्वर की इच्छा का पालन करने का अनुशासन – ऐसा नहीं है। जब तक ऐसा अनुशासन नहीं आता, आप जो भी कर रहे हैं वह इतना सांसारिक और मूर्खतापूर्ण है, आपके जीवन का बेकार अपव्यय, खुद की कोई गरिमा नहीं है। तो अब सहज योगियों के रूप में हमें ध्यान का वह अनुशासन रखना होगा।

फिर यह शक्ति, यह अंबा, वह आपको बहुत अच्छी तरह से जानती है: वह आपके अतीत को जानती है, और वह जानती है कि आप किस प्रकार के व्यक्ति हैं। एक बार जब आप आत्मनिरीक्षण करना शुरू कर देते हैं और इसे अपने भीतर देखते हैं, “मेरे साथ क्या गलत है?” और पूर्ण संतुलन की स्थिति तक पहुँचने के लिए, “मुझे क्या करना है?” – सबसे पहले आपको ध्यान करना है। कोई अन्य रास्ता नहीं है, मैं आपको बता दूं, कोई दूसरा रास्ता नहीं है।

किसी ने कहा, “माँ, मैंने यह खाना छोड़ दिया है, मैंने वह खाना छोड़ दिया है” – कुछ भी नहीं। “माँ, मैं यह करता हूँ और मैं अपने सिर के बल खड़ा हो जाता हूँ” – कुछ भी नहीं। ध्यान अवश्य करना चाहिए और ध्यान थोड़ा सा सुबह और थोड़ा सा शाम को करना चाहिए। और जब आप ध्यान कर रहे हों तो अपनी घड़ी न देखें। ध्यान के लिए समय तो रखना ही है, चाहे कुछ भी हो। इसमें बहुत थोड़ा सा ही समय लगता है। मेरा मतलब है, मैंने भी देखा है कि महिलाएं तैयार होने में इतना समय लेती हैं कि उस समय का दसवां हिस्सा भी अगर आप अपने ध्यान के लिए दे सकें, तो आपको ज्यादा मेकअप की जरूरत नहीं पड़ेगी। आपकी त्वचा में निखार आएगा, आपके बालों में निखार आएगा, आपके चेहरे पर निखार आएगा, सब कुछ ठीक हो जाएगा। आपको कुछ भी उपयोग नहीं करना पड़ेगा, कोई इत्र या कुछ भी उपयोग नहीं करना पड़ेगा, आपका शरीर स्वयं ही इत्र से भर जाएगा। सब कुछ प्रदान किया जाएगा।

इसलिए हमें जो करना है वह है, सबसे पहले ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण सुनिश्चित करना है। सहजयोगियों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है। एक बार जब आप समर्पण कर देंगे, तो आपकी सभी समस्याएं हल हो जाएंगी। आप अपनी समस्याओं को भी समर्पित कर दें। “यह मैं आप पर छोड़ता हूं। परमात्मा आप समस्या का समाधान करें। आप इसे करो।” यह इतनी सटीक, इतनी प्रभावी, इतनी कुशल शक्ति है। और सबसे बढ़कर वह आपसे प्यार करती है, आपकी परवाह करती है, आपको माफ करती है। यहां तक ​​कि अगर आप गलतियां करते हैं तो यह माफ कर देती है, “ठीक है, यह ठीक हो जाएगा।” यह चाहती है कि आप सभी अपने सिंहासनों पर उचित रूप से विराजमान हों, अपनी शक्ति का आनंद उठा रहे हों। इसलिए जो कुछ भी आवश्यक है वह बहुत सावधानी से किया जाता है।

तो नवरात्रि का – अब, नवरात्रि का दसवाँ दिन, जो आप सभी के लिए सबसे महत्वपूर्ण है, वह है जहाँ यह परमचैतन्य सक्रिय हो चुका है। और इसकी गतिविधि से आपको पता होना चाहिए कि यह बहुत शक्तिशाली हो गया है, और अब जो कोई भी आपके साथ बुरा व्यवहार करने की कोशिश करता है, आपको परेशान करने की कोशिश करता है – “मुझे बिल्कुल चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।” इस बारे में ख्याल रख लिया जाएगा|

आपने जितने भी गलत काम किए हैं, जितने भी बुरे कर्म किए हैं, आपको उसका प्रतिफल मिलेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन अगर आप एक आत्मसाक्षात्कारी आत्मा हैं, तो समाप्त; आप उस स्तर पर नहीं हैं। जैसे हम कह सकते हैं कि सामान्य लोगों पर आपराधिकता का आरोप लगाया जा सकता है, लेकिन मान लीजिए कि आप राजा के उच्च पद पर आसीन हो जाते हैं, तो कोई भी आप पर आरोप नहीं लगा सकता है। आप कानून से ऊपर हैं। इसी प्रकार आपके साथ भी ऐसा हुआ है कि कोई अन्य आपको छू नहीं सकता, कोई अन्य आपको नष्ट नहीं कर सकता, और कोई भी आपकी प्रगति में बाधा नहीं डाल सकता। केवल आप खुद ही हैं जो इसे कर सकते हैं।

और कोई भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, कोई भी राक्षस मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता और न ही उसने कभी ऐसा किया है। परन्तु यह तुम ही हो जो मुझे हानि पहुँचा सकते हो; क्योंकि इस जीवन में मैंने तुम्हें अपने शरीर में लिया है, और मैं इसे अपने शरीर में क्रियान्वित कर रही हूं, सब कुछ, तुम्हारी सफाई, सब कुछ, जो एक कठिन कार्य है। लेकिन शुरुआत में ही, यह शक्ति आदम और हव्वा के पास गई और उनसे कहा कि “आपको ज्ञान होना चाहिए।” तो उस वादे को पूरा करना है और वह करना ही है, हालांकि यह बहुत खतरनाक काम है। विशेष रूप से पश्चिम में, मुझे लगता है कि लोगों को यह समझाना बहुत खतरनाक है कि वे एक संपूर्णता के अंग प्रत्यंग हैं; यह बहुत कठिन कार्य है। वे बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। मैंने आजकल लोगों को लेख लिखते हुए देखा है कि कुछ भी पर्याप्त सारभूत नहीं है, यह विज्ञान इतना सीमित है, इसने हमारी समस्या का समाधान नहीं किया है। ये सभी बड़ी-बड़ी किताबें वे लिख रहे हैं। परन्तु यदि तुम उन्हें अभी लिखो कि हमें कुछ पता चला है, तो वे तुम्हें देखना नहीं चाहेंगे। वे आपसे मिलना नहीं चाहते। उनका इससे कोई लेना-देना नहीं है।

तो मुझे नहीं पता कि वे किस तरह के साधक हैं, अपने आगे इतने बड़े अहंकार के गुब्बारे, और वे साधक हैं। वे क्या खोज रहे हैं? अहंकार, गुब्बारा – मान लीजिए कि आपके पास एक बड़ा गुब्बारा है और आप पानी में गिर जाते हैं, तो क्या होगा, गुब्बारा आपको इधर-उधर ले जाएगा और उधर-इधर, आपकी कोई मंजिल नहीं है। इसी तरह, वे बिना किसी मंजिल के हैं, यह कहते हुए कि “हम खोज रहे हैं, हम यह कर रहे हैं, हम वह कर रहे हैं” – बिना किसी मंजिल के, बिना किसी समझ के, बिना अपने जीवन के अर्थ के, बिल्कुल बेकार लोग। उनका कोई मूल्य नहीं है।

हमें कोशिश करनी है, जितना हो सके, हम कितने बचा सकते हैं। लेकिन जो नहीं आना चाहते हैं, उनकी कोई जरूरत नहीं है, हमारे लिए उनकी कोई जरूरत नहीं है। उन्हें माँगना होगा, उन्हें झुकना होगा और उन्हें कहना होगा कि, “हम आपके पास आना चाहते हैं” – तभी हम उन्हें लेंगे। मैं कभी किसी को पत्र नहीं लिखती कि, “कृपया मेरे कार्यक्रम में आएं।” ये सभी गुरु सभी अभिनेताओं और संगीतकारों को और उन सब को लिखते थे; मैं कभी नहीं लिखती। यह सिर्फ मैं खुद विज्ञापन कर रही हूं, अगर आप आना चाहते हैं तो आप आ सकते हैं। यह विज्ञापन के लिए भी, मैं इच्छुक नहीं थी।

तो, आप कल्पना कर सकते हैं कि अब हम बहुत समय पहले दिए गए वादे को फलीभूत कर चुके हैं, कि आपको ज्ञान होगा। और आपको ज्ञान है। लेकिन अब आपकी पहचान इस ज्ञान से होनी चाहिए, और आपको पता होना चाहिए कि आपके पास यह ज्ञान है, और यह ज्ञान दूसरों को दिया जा सकता है। और हम इस दुनिया को एक खूबसूरत दुनिया में बदल सकते हैं, और आदि शक्ति के सपने को पूरा कर सकते हैं।

उसने आपको इस उद्देश्य के लिए बनाया है, आपको इस उद्देश्य के लिए मानव स्तर से अलौकिक स्तर तक लाया है, और यही आपको करना है। और अगर तुम आज जगदम्बा के रूप में मेरी पूजा कर रहे हो, तो जान लो कि जगदम्बा ही आदि शक्ति के अलावा और कुछ नहीं है।

और जब तक आप लोग खुद को दिव्य तरीके से अनुशासित करने के उस स्तर तक उत्थान नहीं कर लेते – जैसे कुछ लोग अभी भी धूम्रपान कर रहे हैं, “ओह, यह ठीक है, आप जानते हैं, हम सामान्य लोग हैं, हम ऐसा नहीं कर सकते।” ठीक है, बाहर निकलो। ऐसे लोगों की चिंता न करें। पीछे रह जाएँगे, फालतू लोग, कहाँ जाएँगे? मुझे लगता है, वे अधर में लटके होंगे, क्योंकि अब नर्क में भी ज्यादा जगह नहीं बची है, तो उनका क्या होगा?

लेकिन यह सब आपके लिए उपलब्ध है; केवल एक चीज जो आपको पता होनी चाहिए कि कैसे खुद को नियंत्रित करना है, अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करना है। छोटी-छोटी बातों में भी हम अपने आप को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं। यदि हम अपने ही घोड़ों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं, तो हम उस अवस्था तक कैसे पहुँच सकते हैं जहाँ हमें पहुँचना है? इसलिए इन सभी छोटी-छोटी बातों में अपनी ऊर्जा बर्बाद न करें। जरा सोचिए, आपको ध्यान करना है, आपको उठना है, और आपको इसे दूसरों को देना है। यदि आप वास्तव में स्वयं से प्रेम करते हैं तो यह बहुत संभव है। अगर आप खुद से प्यार करते हैं, तो आपको यह समझना चाहिए कि, “मेरा शरीर देखें, मेरा दिमाग देखें, मुझे परमात्मा ने सब कुछ दिया। यह कितना सुंदर है। और अब यह इतना सुंदर है, और इसका परमेश्वर द्वारा इतने बड़े उद्देश्य के लिए उपयोग किया जाएगा।” आप ढाले गए हैं, आप इस अवस्था तक इस प्रकार बनाए गए हैं। लेकिन अब यह आपकी स्वतंत्र इच्छा है, और इस स्वतंत्र इच्छा के साथ आपको उन्नत होना होगा। इस स्वतंत्र इच्छा के साथ आपको यह समझना होगा कि करना क्या है और उस अवस्था को कैसे प्राप्त किया जाए।

यह चीजों के प्रति प्रकृति की प्रतिक्रिया है। प्रकृति हमेशा मनुष्य के प्रति प्रतिक्रिया करती है। प्रकृति की कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं है लेकिन परमात्मा  प्रतिक्रिया करता है, और जब ईश्वर की प्रतिक्रिया आती है तो हम इन सभी घटनाओं को होते हुए देखते हैं। और मेरी इच्छा है कि आप विष्णुमाया पर मेरे टेप को सुन सकें, जो बहुत अच्छी तरह से समझाता है कि ये सभी आपदाएं क्यों आती हैं, लोग इन आपदाओं से क्यों मरते हैं। बहुत ही अच्छा लेक्चर था, उम्मीद है आप सब इसे सुनेंगे, और बार बार सुनेंगे।

मेरे व्याख्यान सिर्फ एक शाम के लिए नहीं होने चाहिए, बल्कि कुछ ऐसी बात होनी चाहिए जिन्हें आपको समझने की कोशिश करनी चाहिए। अब मैं जो कह रही हूं वह सत्य है, परम सत्य है और सूक्ष्म बात है, जो अब तक उनमें से किसी ने नहीं कही है।चूँकि आपको आपका आत्मसाक्षात्कार हुआ है, क्योंकि आप सहज योगी हैं, मैं आपसे यह कह सकती हूं।

परमात्मा आप को आशिर्वादित करें|