श्री कृष्ण पूजा। कैबेला (इटली), 28 अगस्त 1994
आज हम यहां हैं,
श्री कृष्ण की पूजा करने के लिए।
जैसा कि आप जानते हैं कि श्री कृष्ण अवतार हैं, श्री विष्णु के।
और श्री विष्णु वह है, जो इस ब्रह्मांड के संरक्षक है।
जब इस पूरी दुनिया को बनाया गया था, तब यह आवश्यक था, एक संरक्षक बनाना भी। नहीं तो यह दुनिया नष्ट हो गई होती और पूरी तरह से अगर इस दुनि को,बिना किसी संरक्षक के, अकेला छोड़ दिया जाता तो, जिस प्रकार इंसान की प्रवर्ति हैं, तो शायद वह इस दुनिया को कुछ भी कर सकते थे ।
परंतु , इसलिए, विष्णु संरक्षक हैं । वह संरक्षक हैं और केवल वह ही एक अवतार हैं। बेशक, कभी-कभी ब्रह्म देव ने भी अवतार लिया, लेकिन फिर भी उन्होंने केवल रूप धारण किया, हमारी विकास प्रक्रिया में, वो अलग-अलग रूप ले चुके है। वह (श्री विष्णु ) इस धरती पर आए,अलग-अलग तरीकों से.
लेकिन फिर भी वह जैसा कि आप कहते हैं, बारह – बारह तक श्री राम थे और दस के माध्यम से वह वहाँ थे। इसलिए, उन्होंने खुद के आसपास कई महान पैगम्बरों का एक वातावरण भी बनाया ताकि वे इस ब्रह्माण्ड में धर्म की रक्षा कर सके।
तो, संरक्षण का आधार धर्म था, जो, जैसा कि आप जानते हैं, आध्यात्मिक जीवन की सबसे महत्वपूर्ण, मुलभूत नींव है। और इस धर्म में, जो भी महत्वपूर्ण चीज स्थापित की जानी थी, वह था संतुलन क्योंकि लोगों को किसी भी चीज के चरम में जाने की आदत थी ।
इसलिए, उन्होंने एक संतुलन बनाया, हमारे भीतर। धर्म का पहला सिद्धांत था, संतुलन बनाना । यदि किसी व्यक्ति के पास संतुलन नहीं है,तो वह अपना उत्थान हासिल नहीं कर सकता है। ये इतना सरल है। यदि हवाई जहाज में संतुलन नहीं है ,तो वह नहीं उड़ सकता। यदि आपके जहाज में संतुलन नहीं है, तो यह जहाज भी नहीं चलेगा।
इसी तरह, पहले इंसान को संतुलन हासिल करना था। लेकिन, वे विभिन्न क्षमताओं के साथ, विभिन्न योग्यता के साथ पैदा होते हैं। जैसा कि कहा गया है, ” या देवी सर्व भूतेषु जाति रूपेण संस्थिता”, जिसका अर्थ है कि रुझान अलग हैं। वह अलग-अलग रुझान के साथ पैदा हुए हैं । अलग-अलग चेहरों के साथ, अलग-अलग रंगों के साथ , क्योंकि विविधता का निर्माण होना था। अगर हर कोई एक जैसा दिखता, जैसे की शायद रोबोट या कुछ और की तरह दिख रहे होते। इसलिए, हर कोई एक अलग तरीके से बनाया गया था, देश के अनुसार, माता-पिता के अनुसार। यह सब आयोजित किया गया था, श्री विष्णु के सिद्धांत द्वारा।
की उन्होंने विविध प्रकार से इस दुनिया का निर्माण किया। उन्होंने विविधता प्रदान की, और श्री कृष्ण इसके स्वामी हैं।
जिस समय, श्री कृष्ण आए थे, उस समय लोग बेहद गंभीर किस्म के थे और बहुत कर्मकांड वाले हो गए थे। कारण यह था कि, श्री राम आए थे और उन्होंने मर्यादाओं की बात की थी, और इन मर्यादाओं ने लोगो को अत्यंत अत्यंत ही कट्टर बना दिया था ।
उस कठोरता में लोगों ने आनंद की भावना, सुंदरता की भावना, विविधता की भावना खो दी थी । तो, श्री कृष्ण, अवतार के रूप में आए, हम इसे सम्पूर्ण कहते हैं, यह पूरा हो गया है क्योंकि उनकी सोलह पंखुड़ियाँ हैं। जैसे की चाँद में सोलह कलाए हैं। उनके पास भी सोलह पंखुड़ियाँ हैं, इसलिए वे सम्पूर्ण है, और वह हैं ,जिसे हम कहते हैं की पूर्णिमा। वे पूर्ण चाँद हैं ।
अपने अवतार की पूर्णता के साथ , विष्णु अवतार की; श्री विष्णु से लेकर अन्य कई अवतरणों तक, वह पूर्ण अवतार के रूप में आए, पूर्ण , श्री विष्णु के पूर्ण रूप में अभिव्यक्ति हुई। इसलिए, राम के अवतार में जो भी कमी थी, वह उनमें पूर्ण हुई ।
जैसा कि आप जानते हैं कि मध्य में – दाहिने हृदय पर, आपकी बारह पंखुड़ियाँ हैं। इसी के साथ, उन्होंने कई चीजें ऐसी दिखाई, जो लोग पूरी तरह अनदेखा करते हैं, क्योंकि, दुर्भाग्यवश, गीता लिख दी गई। जब गीता लिखी गई, तब लोगों ने, उसके हर एक शब्द का अनुसरण करना शुरू कर दिया, बिना उसको समझे । और गीता में, उनका संदेश, कभी शांति के लिए नहीं था। उन्होंने नहीं कहा था कि आपको शांतिपूर्ण होना है | यह कुछ जिहाद की तरह था। उन्होंने अर्जुन से कहा, “तुम्हें युद्ध करना होगा”।
इस समय, आपको लड़ना होगा, धर्म के लिए, सच्चाई के लिए, और आपको लड़ना होगा। “ तब उन्होंने (अर्जुन ने ) कहा, “मैं अपने चाचाओं को नहीं मार सकता और मैं अपने दादा को नहीं मार सकता और मैं अपने सम्बन्धियों को नहीं मार सकता।” उन्होंने (श्री कृष्ण ने) कहा, “आप किसको मार रहे हैं, वो तो पहले ही मर चुके हैं।” क्योंकि उनमें कोई धर्म नहीं है । अगर आपका कोई धर्म नहीं है, तो आप पहले से ही मर चुके हैं। तो, यहां क्या है ,मारने के लिए ? या नहीं मारने के लिए? और यही आज हम देखते हैं, आधुनिक समय में, विशेष रूप से अमेरिका, जो विशुद्धि का देश है। उनमें कोई धर्म नहीं है, इसलिए वह पहले से ही मरे हुए हैं, नशे के तहत या जो भी आप इसे कहते हैं, सभी प्रकार की बीमारियों के डर से । वह पहले से ही मरे हुए हैं और आप किसको मारने जा रहे हैं ? और यह संदेश उन्होंने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिया था।
लेकिन, फिर उन्होंने (अर्जुन ने ) कहा, “ आपने मुझे इन लोगों को मारने के लिए कहा है क्योंकि मेरे अंदर धर्म है। मैं मार रहा हूं उन्हें, ठीक है, लेकिन, इससे आगे क्या?” उससे आगे क्या है? तब वे (श्री कृष्ण) सहजयोग का वर्णन करते हैं । इससे आगे, था सहज योग । सबसे पहले वह इसका वर्णन, दूसरे अध्याय में करते है कि स्तिथ प्रज्ञ कौन है , वह मनुष्य है, जो संतुलित है। फिर वह कहते हैं कि ऐसा आदमी, कभी क्रोधित नहीं होता। वह गुस्सा नहीं करता। अंदर से वह बिल्कुल शांत है। इसलिए, बाद में उन्होंने जो वर्णन किया वह वास्तव में आधुनिक काल का समय है, या हम कह सकते हैं कि हमारा सहज योग जिसमें उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति को कैसा होना चाहिए। उन्होंने नहीं लिखा, या उन्होंने यह नहीं कहा कि कैसे बनना है , लेकिन वर्णन, मैँ सोचती हूँ , ईसा मसीह जैसा ही है। जहां , वह कहते हैं यदि, आपको कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो आप दूसरा गाल आगे कर दो।
यह सब, वास्तव में वर्णन है सहज योगियों का, भविष्य के । उस समय का नहीं जब, कौरव पांडवो से लड़ रहे थे। यह उस समय का नहीं था । उस लड़ाई के दौरान, उन्होंने उससे (अर्जुन से ) कहा कि अगर तुम स्थित प्रज्ञा बन जाओ, तो आप पार कर सकते है, सभी समस्याओं को, सारी समझ को, जो आपके पास है और आप बिल्कुल शांत हो जाते हैं, अपने साथ । तो, एक तरफ, उन्होंने ( श्री कृष्ण ने ) कहा कि, आपको लड़ना होगा, अब आधुनिक समय में, हमें कौरवों से लड़ना नहीं पड़ता है, कोई भी कौरव नहीं हैं। पाँचों पांडवों को, कौरवों से लड़ना पड़ा ।
तो, अब ये पाँचों पांडव कौन से हैं? वह हमारी इंद्रियां हैं या हम कह सकते हैं कि वह ब्रह्मांड हैं, विभिन्न तत्वों में विभाजित। उनको लड़ना होगा , उनको लड़ना होगा , कौरवों से, जो हमारे भीतर हैं। अब, ये सौ कौरव हैं, एक नहीं । यह है, यदि आप इसे विस्तृत करते हैं, तो हम कह सकते हैं, प्रकृति को लड़ना पड़ेगा, उससे, जो प्रकृति के खिलाफ है।
अब लोग कहेंगे, कि गुस्सा स्वाभाविक है , नाराज होना स्वाभाविक है, आक्रामक होना स्वाभाविक है। यह नहीं है । गुस्सा और ये सब बातें, प्राकृतिक रही होंगी, लेकिन अब हमें पता होना चाहिए कि हमारे अन्दर उत्थान के लिये स्वाभाविक क्षमता है। अब ऊँचा उठना स्वाभाविक है। यह स्वाभाविक है, स्तिथ प्रज्ञा होना । यह स्वाभाविक है, सहज योगी होना । यह भी हम में निर्मित है। उदाहरण के लिए, बीज एक बीज है। जब यह बीज होता है, तो हम इसे बीज कहते हैं। ठीक है, स्वाभाविक रूप से बीज है, लेकिन फिर यह अंकुरित होता है और वृक्ष बन जाता है।
इसलिए, एक बीज में यह भी स्वाभाविक है कि भविष्य के हजारों पेड़ भी उसी बीज में हैं। और जैसा कि हम जानते हैं कि अब प्रयोग द्वारा एक बीज में कम से कम हजारों, छोटे पौधे अंकुरित हो रहे हैं। जो कि आगे बड़े-बड़े पेड़ या पौधे बनेंगे। यह एक नई बात है, जो सामने आई है।
इसलिए, जब उन्होंने कहा कि आपको एक स्तिथ प्रज्ञ बनना है, तो वह यह कहना चाह रहे थे कि आपको अपना संतुलन हासिल करना चाहिए। अब यह उन्होंने बताया, जब एक युद्ध चल रहा था। जब वह युद्ध कर रहे थे, तो यह ठीक है, आपको यह करना पड़ेगा। यदि आपको लोगों के साथ युद्ध करना है, यदि आपको उन्हें मारना है तो यह सब ठीक है। लेकिन बाद में, जब एक बार वह खत्म हो गया, तो उसके बाद आपको जो करना है, वह है अपनी आध्यात्मिक समझ का निर्माण करना।
अब आध्यात्मिक समझ का निर्माण हमारा काम है और यही हमें करना है। न सिर्फ़ धर्म। कई सहज योगी सोचते हैं कि वह धर्म में जा रहे हैं, इसलिए वह ठीक हैं। वह काम कर रहे हैं धर्म में, वह एक धार्मिक जीवन जी रहे हैं। वह सब ठीक हैं। मुझे बहुत आश्चर्य और ख़ुशी होती है कि वह इसे कर रहे हैं। लेकिन वह इसका अंत नहीं है। वह संतुलन का हिस्सा है, जहाँ आप अपने आप को संतुलित कर रहे हैं।
अब, आपको इसे आगे बढ़ाना है और अपने,स्वयं का आध्यात्मिक निर्माण करना है और इसे फैलाना है। यही श्री कृष्ण का काम भी है क्योंकि वह ही हैं जो संवाद करते हैं, सब जगह । जैसा कि आप जानते हैं कि अमेरिका हर जगह संचार कर रहा है, गलत तरीके से,पर कर रहा है और अब उन्हें कंप्यूटर मिल गया है, यह सब मिल गया है। इन्हीं चीजों से ही संचार किया है क्योंकि यह सहज रूप से ही संवाद करने के लिए बने हैं। लेकिन क्योंकि वह श्रीकृष्ण को नहीं मानते, न ही धर्म को, इसलिए आधार ही गलत है, और इस गलत आधार के साथ, उन्होंने फैलाना शुरू कर दिया, उन्होंने बहुत बहुत गलत आधार के साथ ,हर तरह की अपवित्रता और गंदगी है, मैं नहीं जानती इसे क्या कहुँ, जो कि मनुष्य के खिलाफ है, जो कि हमारे उत्थान के खिलाफ है, जो कि परमात्मा के खिलाफ है। और वह ऐसा कर रहे है, क्यों ,क्यों वह कर रहें हैं , जो उन्हें नहीं करना चाहिए।
मुझे लगता है ये बुद्धि है | उनकी बुद्धि, जो कि मस्तिष्क भी है, जो कि विराट का आसन है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं, कि विराट का आसन है। और अपनी बुद्धि के साथ , वह क्या करते हैं? वह कहते हैं कि यह प्राकृतिक है।ये स्वाभाविक है, अधार्मिक होना । ये स्वाभाविक है, आक्रामक होना । ये स्वाभाविक है, धन उन्मुख होना । हर चीज जो उनके पास है, वह सब स्वाभाविक है, क्योंकि उनके अनुसार उनकी बुद्धि द्वारा या अन्य किसी भी तरह से, वह आपकी तर्कसंगतता के माध्यम से यह समझाने में कामयाब रहे कि यह सही काम है। इसके बिना आपका अस्तित्त्व नहीं हो सकता । मेरा मतलब है कि यह अब उनकी संस्कृति मानी जाती है। अब यह संस्कृति है , सब जगह | अब न केवल अमेरिका में है, यह सब जगह है ,बल्कि यह निरर्थक संस्कृति, समस्त विश्व में स्वीकार्य है, और यह बुद्धि के कारण है। क्योंकि वह अधिक होशियार हैं।
आप देखते हैं की एक व्यक्ति, जो हमेशा पैसे के बारे में सोचता है, यह, वह, स्वाभाविक रूप से बहुत बुद्धिमान हो जाता है, वह तेज हो जाता है। वह होशियार हो जाता है। वह एक तरह से होशियार हो जाता है, जैसे कि वह जानता हो सब कुछ। वह सोचने लगता है कि वह सब कुछ जानता है, वह जो भी कर रहा है, वह सही है, जिस तरह से वह व्यवहार कर रहा है वह सही है। तो, ये पांडव, जो उसने अपने भीतर पाए हैं, यह तत्व जो उन्हें मिले हैं , वह उन्हें एक उद्देश्य के लिए उपयोग करता है, जो विनाशकारी हैं, बिल्कुल विनाशकारी – ईश्वर विरोधी। और वह जागरूक नहीं है क्योंकि उसकी बुद्धि, उसके तर्क से हमेशा सही साबित होती है। वह जो भी कर रहा है वह उचित है। और उन्होनें इन बुद्धिजीवियों को इतना दिमाग भी दे दिया है कि वह भी खिलाफ जाने की कोशिश करते हैं, धर्म के ।
उदाहरण के लिए, यहां तक कि श्री कृष्ण के जीवन को भी वह यह कहकर चित्रित करने का प्रयास करते हैं कि स्वयं श्री कृष्ण की पांच पत्नियाँ थीं, बाद में उनकी सोलह पत्नियाँ थीं। दरअसल, ये उनकी शक्तियाँ थी। लेकिन बिना यह समझे की, श्री कृष्ण क्या थे, क्योंकि बुद्धि इतनी घोर निरर्थक है कि वह आपको सही सोच की ओर नहीं ले जाती | हमेशा गलत सोचने के लिए, यह आपको आगे बढ़ाती है क्योंकि आप हर चीज को सही ठहराना चाहते हैं और यह औचित्य आपको अपने साथ जीने देता है। अन्यथा, आम तौर पर, आप खुद के साथ नहीं रह सकते। इस तरह का जीवन जीना बहुत मुश्किल है, जो कि अधार्मिक है, जो आक्रामक है, जो कि आप कह सकते हैं – एक युद्ध भड़काऊ की तरह । लेकिन जीते हैं।
तो, जो कुछ भी एक इंसान से अपेक्षित है, उसके ठीक विपरीत, उसके विरुद्ध, किया जा रहा है, इन सभी पश्चिमी संस्कृतियों में । आप यह स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि वह कैसे उसको उचित कहते हैं। अनैतिकता, को वह उचित ठहरा सकते हैं। एक मिस्टर फ्रायड आया । उसने ईसा मसीह की ही जगह ले ली ।
अब यह तो उसको करना ही था क्योंकि ईसा मसीह तो मोहम्मद साहब से भी ज्यादा सख़्त थे । उन्होंने कहा था की अगर कोई एक आँख से कुछ करता है तो उसकी एक आँख निकाल लेनी चाहिए और अगर एक हाथ उसको खराब कर रहा है तो उसका हाथ काट देना चाहिए। मेरा मतलब है कि अधिकांश यूरोपीय और अमेरिकी फिर तो एक हाथ के बिना होते, क्राइस्ट के अनुसार। परमात्मा का शुक्र है कि लोगों ने क्राइस्ट के इस उपदेश का पालन नहीं किया। और, मोहम्मद साहब ने भी सोचा कि ईसा मसीह ने पुरुषों के लिए बहुत कुछ किया है, हम क्यों नहीं महिलाओं के लिए भी कुछ करें, इसलिए उन्होंने महिलाओं के लिए कुछ किया। दोनों बहुत ज्यादा हैं, इंसान के लिए । उन्हें इसका एहसास नहीं था। कौन एक आंख निकालेगा इस चीज़ के लिए ? उनके पास बुद्धि है । अब, अगर वह कई महिलाओं को देख रहे हैं, तो इसका औचित्य है – क्यूंकि स्वाभाविक है।
क्या आपने किसी जानवर को इस तरह से बर्ताव करते हुए देखा है, अगर जानवर प्राकृतिक प्राणी हैं ? हम जानवरों से भी बदतर हैं और क्या गड़बड़ कर दिया है हमने, इस समझ के साथ, इन बुद्धिजीवियों के माध्यम से, जो हमें कुछ बताने की कोशिश कर रहे हैं, और हम स्वीकार करते हैं। तो, यह समस्याओं में से एक है कि अगर एक बुद्धिमान व्यक्ति है, तो वह हावी होता है।
अब, उदाहरण के लिए, कुछ फैशन शुरू होता है। हम सभी उस को ग्रहण करते हैं, ये फैशन है , लेकिन आप इसे क्यों ग्रहण कर रहे हैं ? यह फैशन है | तो इस तरह एक व्यवसायी की बुद्धि, आपको भ्रमित कर सकती है, पूर्णतया। लेकिन उन लोगों के साथ नहीं, जो विवेक बुद्धि हैं| वे कहेंगे “चले जाओ| हमारे पास यह सब है ।”
यह नैतिकता के बारे में है। वह सबसे खराब प्रथा है, पश्चिम में, और जानवरों से भी बदतर हैं, मुझे कहना चाहिए । और इसी तरह, वह आज पीड़ित हैं। वह पीड़ित हैं, इतने सारे रोगों से, इतनी सारी मुसीबतों से ,ये वो ।
दूसरी बात, जो हम हमेशा सही ठहराते हैं, वह है हिंसा। अब कोई युद्ध नहीं चल रहा है, कुरुक्षेत्र में । परंतु आप देख रहें हैं , हर जगह हिंसा। अमेरिका में यह भयानक है। जब मेरी बेटी गई तो उसने अपने सब गहने निकाल लिये , मेरे पास रखवा दिये। उसने कहा, “मम्मी, मैं इसे नहीं ले जा सकती।” लड़की को कुछ नहीं दिया गया। सब कृत्रिम चीजें दी गईं क्योंकि आप इसके लिए मारे जा सकते हैं। मैं यह नहीं कह रही हूँ कि यह केवल अमेरिका में है, यह हर जगह है। क्योंकि सबका गुरु, है अमेरिका । इसकी शुरुआत अमेरिका के गुरुकुल से होती है और दूसरे लोग आँख बंद करके पालन करते हैं। इसलिए, हिंसा अब हमारी फिल्मों, भारतीय फिल्मों में भी प्रवेश कर रही है, लेकिन अब वहां कुछ आपत्ति हुई है। शायद, यह हमारे लिए बहुत ज्यादा है।
लेकिन इस तरह की चीज कि आप किसी को भी मार सकते हैं, इसलिए यदि आप इसी तरह से चलते हैं, तो आप देखिये कि यदि यह महानता का मापदंड है, तब रवांडा के लोगों को सर्वोच्च स्थान दिया जाना चाहिए, विकासवादी प्रक्रिया में । किसी को मारने की, अनुमति नहीं है। आप हत्या नहीं करेंगे । मुसलमान मार रहे हैं। सब लोग, सबको मार रहे हैं।
पिछले दिन उन्होंने भारत में एक बहुत अच्छे आदमी को मार दिया, बिना वजह के । आक्रामकता का यह विचार, अंततः आपको हत्या वाली हिँसा में ले जाता है। आप एक चींटी भी नहीं बना सकते। आप इस तरह मानव को कैसे मार सकते हैं ? बेशक, इस हत्या के कारोबार को उच्चतम सीमा तक ले जाया जाता है, जैसे कि हिटलर का मानना था, वह दुनिया में सबसे श्रेष्ठ था। यह वही है, जिससे आप भूल जाते हैं कि आप क्या हैं और आप अपने अहंकार के माध्यम से मानना शुरू करते हैं कि आप कुछ बहुत महान हैं। इसके अलावा, सहज योग में मुझे लगता है कि हाल ही में कुछ लोग कह रहे हैं कि वह देवता हैं, वह ईश्वर हैं, सब कुछ। तो, यह अहंकार का व्यवसाय, वास्तव में आपकी बुद्धिमत्ता की ऊर्जा को समाप्त करता है, और मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, उसका बुद्धि, मुझे लगता है, क्योंकि यह बहुत सीमित है, यह बहुत प्रतिबंधित है, और यह बहुत अभिमानी है, और यह नेत्रहीन है ।
विवेक एक अलग चीज है। विवेक आपको नहीं मिलता है, कॉलेजों, स्कूलों, विश्वविद्यालयों में,कहीं नहीं । कहाँ से आप इस विवेक को प्राप्त करते हैं? आप इसे अपनी आत्मा के माध्यम से प्राप्त करते हैं, जो आपको एक पूर्ण विचार देती है, क्या सही है और क्या गलत, के रूप में । जो भी गलत है वह बुद्धि द्वारा स्वीकार किया जाएगा। हमेशा| बुद्धि विवेक नहीं है ,ये समझना चाहिए। वह दो चीजें हैं – विवेक और बुद्धि । अब श्री कृष्ण को राजनीतिज्ञ के रूप में जानते थे । उनके पास दिव्य कूटनीति थी। इसका मतलब क्या है? वे बहुत बुद्धिमान थे , इसमें कोई शक नहीं। इसके बिना आप ऐसा नहीं कर सकते। मैं कुछ ऐसे लोगों से मिली हूँ, जो बहुत उच्च पद पर हैं, जिनके पास बुद्धि भी नहीं है, लेकिन मैंने अब देखा है कि यह बुद्धि एक खतरनाक चीज है।
तो, श्री कृष्ण, उन्होंने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किया। वे सर्व शक्तिमान हैं । उन पर कुछ भी हावी नहीं हो सकता। यहां तक कि उनकी बुद्धि भी उन पर हावी नहीं हो सकती। उन्होंने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किया। दोनों के बीच का अंतर आपको देखना चाहिए। आपको अपनी बुद्धि का उपयोग करने में सक्षम होना चाहिए, न कि बुद्धि आप पर हावी होनी चाहिए।
इसलिए, उन्होंने अपनी बुद्धि का उपयोग किया, जिसके द्वारा उन्होंने कई समस्याओं को हल किया। उनकी पूरी कूटनीति थी , अपनी बुद्धि का उपयोग करना और उसे ईश्वरीय उद्देश्य के लिए उपयोग करना। और इस बुद्धि को उपयोग करने में उनके अंदर का दिव्य, उनकी मदद कर रहा था। इसलिए अंतर है कि, हम अपनी बुद्धि के गुलाम हैं और वह अपनी बुद्धि के स्वामी हैं ।केवल बुद्धि नहीं, सब कुछ के। अपने संस्कारों के वह स्वामी हैं, अपनी भावनाओं के वह स्वामी हैं, अपने शरीर के वह स्वामी हैं। वह हर चीज के मालिक हैं | और जब आप इसमें महारत हासिल करते हैं तो आप अपनी बुद्धि को देख सकते हैं स्पष्ट रूप से, ओह! यह ऐसा सुझाव दे रहा है। यह नहीं है।
यह बुद्धि आपको बहुत तथाकथित सकारात्मक विचार दे सकती है कि आप पूरी दुनिया के स्वामी हैं। यह सकारात्मक माना जाता है |
या वही बुद्धि आपको विचार दे सकती है कि आप कुछ भी नहीं हैं। यह बुद्धि आपके ऊपर खेलती है। अब आपको अपनी बुद्धि से निर्देशित नहीं होना है, बल्कि आपके विवेक से, क्यों कि आप सहज योगी हैं। मतलब आपके पास इसे महसूस करने का एक बहुत अच्छा साधन है – अपने स्पंदन के माध्यम से आप यह जान सकते हैं कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है। और आप कभी-कभी मनुष्य के रूप में देख सकते हैं, कुछ बौद्धिक प्रभाव भी आ रहा है। लेकिन सहज योग के साथ आप तय कर सकते हैं कि यह बुद्धि आपको क्या बता रही है।
क्योंकि जो बुद्धि आपके पास है, वह कहाँ से आयी है? वह मुख्य चीज है; सूक्ष्म में जाना चाहिए कि यह बुद्धि हमारे पास कैसे आ गई है| यह बुद्धि हमारे पास आयी है क्योंकि हमारा मस्तिष्क सक्रिय हो गया, बहुत जल्द । मैंने कुछ बच्चों को देखा हैं, अत्यंत बुद्धिमान, लेकिन उनके पास कोई ज्ञान नहीं है। यदि आपका केवल मस्तिष्क बहुत अधिक विकसित है, हो सकता है माँ एक बहुत ही बुद्धिमती महिला है और, पिता बहुत बुद्धिमान हैं , उनकी विरासत महान होगी, इसलिए वे इसे प्राप्त करते हैं। या शायद परिस्थितियां, जैसे कि आप किसी विशेष देश में पैदा हुए हों, अचानक बहुत बुद्धिमान हो गए। मैंने अमेरिकियों को देखा है, वह हर समय पढ़ते रहते हैं। हर समय आप उन्हें पढ़ते देखते हैं। यहां तक कि अंग्रेजी भी वह पढ़ते हैं। लेकिन उन सभी के परिणाम क्या हैं, मैं नहीं जानती । हर किताब, वह पढ़ेंगे।
यदि आप उनसे पूछते हैं कि कंप्यूटर क्या है, तो वह कंप्यूटर जानते हैं, यह बात, वह बात, यह सब ये … मुझे यह भी नहीं पता कि मैं अपने टेलीविजन को कैसे बंद करूं। यदि आप उनसे टेलीविजन के बारे में पूछेंगे, कुछ भी, आप यांत्रिक चीजों के बारे में जानना चाहते हैं तो उन्हें सब पता होगा | राजनीति के बारे में कुछ भी, वह जानते होंगे। कौन किसके पिता थे और वह आपको बताएंगे कि, “नहीं, नहीं, नहीं, ऐसा नहीं है यह, इस तरह से। ” यह सब अविद्या है; यह ज्ञान नहीं है, यह अज्ञान है। तो, उन्हें लगता है कि वे बहुत बुद्धिमान हैं क्योंकि वह सब कुछ जानते हैं, हर चीज के बारे में। अब, इस बुद्धि के साथ, इस चेतना में, वे बहुत बौद्धिक विचारों का निर्माण शुरू करते हैं। खासकर अमेरिका में मैंने देखा है, उन्होंने बच्चों के लिए, सब तरह की मज़ेदार चीज़ें बनायीं हैं, केवल पैसा निकालने के लिए ।
उदाहरण के लिए,एक गोलिवोग (पक्षियों को डराने का पुतला) या कुछ है जिसका जन्मदिन है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं? एक जन्मदिन है और कभी कभी, आप देखते हैं , इस के लिए लोग बड़ी पार्टियां करते हैं। फिर उन्होंने शुरू किया “चलो, कुत्तों का जन्मदिन मनाएं”। तो अब वह कुत्तों का जन्मदिन मनाते हैं |
जो कोई भी उनमें विचार डालता है। फिर वहाँ संगठन हैं, जहाँ वह कहते हैं, “ठीक है, जब आप मरने जा रहे हैं, आप हमें बताएं कि आप क्या सूट पहनना चाहते हैं, आप कैसी टाई पहनना चाहते हैं, कौन से जूते, क्या कपड़े, फिर क्या, किस तरह के ताबूत में आप जाना चाहते हैं – प्लास्टिक, या लकड़ी, या एैसा और वैसा ।”
मेरा मतलब है … तो, यह इस हद तक निर्धारित किया जाता है कि कुछ लोग कहते हैं, ” हमें बर्फ में रखना, देखो, तो हम वहां होंगे।”
सबसे बुरी बात, मुझे लगता है, विशेष रूप से यूरोप में, यह है कि उन्होंने अच्छी तरह से विज्ञापित तथा व्यावसायिक कर दिया है, छुट्टी मनाने की बात को | इसलिए, अगर इटली में कोई व्यक्ति छुट्टी मनाने नहीं जाता तो वह कहेगा कि, “मेरे जीवन में संकट है।” “क्या?” “मैं छुट्टी मनाने नहीं जा सका ?” तब उन्होंने कहा कि तुम वहाँ ज़रूर जाओ, चेहरे की धूप सिकाई करो, वहाँ होटल में ठहरो, कई होटल आ गए हैं। सबको बाहर जाना है। खासतौर पर मैं आश्चर्यचकित थी कि मिलान पूरा एक महीने के लिए बंद है। कोई भी, आपको वहां नहीं मिल सकता है।
देखिए, मुझे लगता है, कि अगर वह सभी जंगलों में जाएँ और रहे तो बेहतर होगा। वहां इससे कहीं अधिक सीखेंगे, बजाय समुद्र के किनारे अपना समय बर्बाद करें । वह सभी समुद्र तटों को खराब कर रहे हैं। उन्हें समुन्दर के लिए कोई सम्मान नहीं है, जो उनके पिता हैं । उन्हें एक-दूसरे के लिए कोई सम्मान नहीं है। महिलाएँ पतला होने की कोशिश करती हैं | बहुत अच्छे दिखना चाहती हैं ताकि वे वहाँ नग्न हो सकें। पूरा उद्योग इतना खराब है। मेरा मतलब है अगर, कोई कहता है कि आप समुद्र के किनारे आना चाहेंगी , मैं नहीं जाऊंगी। मुझे उस जगह जाने से नफरत होगी जहाँ बहुत सारी बेवकूफ़ महिलाओं को धूप सेकते हुए देखना पड़ेगा । तो यह मूर्खतापूर्ण विचार आप कैसे स्वीकार कर सकते हैं ,अब यदि आप बुद्धिमान हैं ?
आज बहुत सारे विचार प्रचलित हैं, ज्यादातर अमेरिका से आ रहे हैं, मुझे कहना होगा – जो आप लोग पालन करते है । जैसा कि मैंने कहा कि अमेरिका, गुरु है, सभी पूर्वी, हमारे सभी यूरोपीय और अंग्रेजी और सभी लोगों का ।
अब, फिर एक और बात होती है। आप उस माहौल को देखें, जिसमें आप रहते हैं। खासकर, इंग्लैंड में मैंने ध्यान दिया है। वह कुछ भी नहीं हैं, आप जानते हैं। एक कचरा साफ करने वाला था, जो हमारे घर आया था और उस समय हमारे पास हेग उच्च न्यायालय का एक अध्यक्ष आया था, कल्पना करे, विश्व उच्च न्यायालय का। इसलिए, मैंने उनसे कहा, “आपको इन सभी चीजों को साफ करना होगा।” “यह तो बहुत ज्यादा है!”
हमेशा की तरह, आप देखते हैं कि उन्हें बहुत, मुझे नहीं पता कि क्या कहना चाहिए, लेकिन, अपने बारे में फ़ालतू गर्व है। “आप नहीं समझते।” मैंने कहा, “आप कितना (पैसे) चाहते हैं?” मैंने उसे दस पाउंड दिए। उन दिनों में दस पाउंड एक बड़ी चीज थी। उन्होंने कहा, “आप कानूनों को नहीं समझते हैं, देखिये आप सब भारतीय हैं, हब्शी हैं , यह सब ।” फिर यह सज्जन जो हमारे घर में थे, वह बाहर आए और उन्होंने उस से पूछा, “आप यहाँ चिल्ला क्यों रहे हैं ? ” “आप हबशी , आप किसी भी कानून को नहीं समझते हैं।” वे दुनिया की सबसे ऊंची अदालत के अध्यक्ष (चेयरमैन ) हैं और यह अंग्रेज बेवकूफ की तरह बात कर रहा है। अंग्रेज वास्तव में, एक तरीके से, बेहद बेवकूफ़ हैं | क्योंकि उनकी बुद्धि ने उनको यह कभी नहीं बताया कि वह वास्तव में वह कुछ नहीं हैं। तो आपको गर्व किस बात का है? ऐसे मूर्ख लोग हैं ये | पता नहीं उनकी बुद्धि, ठंड से जम गई है या कुछ, लेकिन उन्हें लगता है कि वे बहुत बुद्धिमान हैं। उनका पांडित्य ठीक था, लेकिन मैं चकित थी कि कैसे उनके पांडित्य की शुरुआत में, उन्होंने कहा कि काले लोग जानवरों की तरह हैं। इसके बारे में बहुत सारी किताबें लिखी गई हैं, और उन्होंने स्वीकार किया कि काले लोग जानवरों की तरह हैं, जब ये लोग जीवित थे, मुझे नहीं पता किस तरह से, उस समय जब काले लोग बहुत ज्यादा विकसित थे।
तो, इस तरह का विचार, जब उनके पास होता है, तो मैं यहाँ भी देखती हूँ | मैं देख सकती हूँ कि अंग्रेज सोचते हैं कि उनसे अच्छा कोई नहीं है। लेकिन वे नहीं समझते कि वह कुछ भी नहीं जानते । उनके पास कोई विवेक नहीं है।वह 300 वर्षों तक भारत में रहे। उन्होंने भारत से कभी कुछ नहीं सीखा। क्या आप उनके विवेक की कल्पना कर सकते हैं। उनकी पांडित्य, उनमें से कुछ, लेकिन अभी भी अस्पष्ट। जैसे बर्नार्ड शॉ मुझे लगता है, बहुत अस्पष्ट थे। मैं उन्हें एक बहुत बड़े लेखक के रूप में याद करती हूँ , लेकिन अस्पष्ट।
और फिर ये फ़्रांसिसी आते हैं, परमात्मा बचाये। अब उन्होंने, श्री कृष्ण को कैसे नकार दिया है आप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं, फ़्रांसिसी लोगों में। फ्रांसीसी कूटनीति में सर्वोच्च बनना चाहते थे। उनमें कूटनीति का अभाव है, पूरी तरह से | बेकार लोग। उन्होंने भारत में हमारे टेलीफोन को बनाया, किस तरह से खराब किया । तो उन्होंने पीने की एक प्रथा शुरू की। अब क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि श्री कृष्ण इन सभी चीजों को पी रहे हैं? उनके पास एक पीने पर शब्दकोश है , हर चीज़ पर। पुस्तकों के बाद पुस्तकें लिखी गई हैं। मेरा मतलब है कि आप कल्पना करिये कि कैसे कोई भी विकसित लोग इस तरह की निरर्थक संस्कृति को स्वीकार कर सकते हैं कि आपको पता होना चाहिए कि क्या पीना है, क्या खरीदना है, क्या डालना है, किस तरह के गिलास में डालना है? वह सभी गिलास हैं, गिलास और कुछ भी नहीं, मैं सोचती हूँ। वे ऐसी बात को कैसे स्वीकार कर सकते हैं, जो इतनी मूर्खतापूर्ण है, वही एक सामाजिक स्वीकृति है ? वेश्यावृत्ति एक अन्य सामाजिक स्वीकृति है। वास्तव में, नैतिक रूप से उन्होंने श्री कृष्ण के सिद्धांत को पूरी तरह से नकार दिया है ।
जिस तरह से वह अपने लोगों को बर्बाद कर रहे हैं और हर चीज को हरा रहे हैं, वह जातिवाद है।
क्या आप सोच सकते हैं कि त्वचा के लिए, आप लोगों को अलग करते हैं? इसके विपरीत, मैं कहूंगी, अश्वेत, विशेष रूप से भारत में, वे कहीं अधिक विकसित हैं , सभी श्वेत लोगों को मिलाकर, उनकी तुलना में – क्योंकि उनमें विवेक है। वह ज्यादा समझदार लोग हैं। लेकिन ये श्वेत चमड़ी, वह जा रहे हैं – मेरा मतलब है, उन्हें अमेरिका भी कैसे मिल गया। वह इतने हावी हो गए, उन्होंने इसे जीत लिया, वहीं बस गए।
आपने कल देखा, सिएरा नेवादा से ,आपने देखा कि लोग कैसे ज्ञान में विश्वास करते थे और कैसे रहते थे। उन्होंने उन लोगो की सारी जमीनें छीन लीं। सब लोग, आप देखते हैं, अब अच्छी तरह से अमेरिका के मालिक है। कैसे? आपने कब्ज़ा कर लिया है । आप दूसरे देश से आए, और हजारों, हजारों लोगों को मारा, बिना स्वयं को दोषी महसूस किये । इसका मतलब है कि वह इंसान भी नहीं हैं। और अच्छी तरह से अमेरिकियों के रूप में बसे हैं । मुझे नहीं पता कि यह शब्द ‘अमेरिका’ कैसे आया है, लेकिन अगर इसका मतलब “अमर” है तो वह नहीं हैं। इसका मतलब है “ए मेरिकस” तो वह भी नहीं हैं। दोनों तरह से मुझे नहीं पता कि यह शब्द कैसे आया है और किस प्रकार का अर्थ वह इससे जोड़ लेते हैं, लेकिन उनकी बुद्धि बहुत अधिक बढ़ गयी। क्यों ? फिर से, धन की तरफ रुझान के कारण । मैं अर्थशास्त्र नहीं समझती और जिस तरह से उन्होंने यह अर्थशास्त्र अपने सूत से बनाया है, जो उनके सिर से बाहर आया है, सभी देशों को मंदी में उतार दिया है, सभी प्रकार की धोखाधड़ी में और माफिया में भी । यह इस तथाकथित अर्थशास्त्र का परिणाम है।
सहज का अर्थशास्त्र बहुत अलग है। हम इन सभी निरर्थक विचारों से बंधे नहीं हैं, जो अर्थशास्त्र के रूप में प्रचलित हैं । यह कुछ नहीं है, शोषण के सिवाय । मार्केटिंग है। लोगों को प्रभावित कैसे करना है, चीजों को कैसे बेचना है, यह कैसे करना है, वह कैसे करना है। यह सब कुछ नहीं है, लेकिन मैं कहूँगी वित्तीय आक्रामकता।
श्री कृष्ण के बारे में क्या? वे राजा थे और वे राजा की तरह रहते थे । लेकिन साथ ही, वे बहुत ही सादगीपूर्ण निवास में रहते थे, गोकुल में । वे संलग्न नहीं थे। तो, पहली बात यह है कि जिस तरह से वे लोग पैसे से जुड़े हैं, पैसा पाने का कोई भी औचित्य, ठीक है। एक बार हम भारत के एक होटल में गए। तो, हमारे साथ कुछ अमेरिकी दोस्त थे और हमेशा की तरह, मेरा मतलब है, आप अमेरिकियों की तरह नहीं खा सकते हैं, आप जानते हैं, भारतीय प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते हैं। बहुत खा सकते हैं।
इसलिए, वे खा रहे थे, खा रहे थे, खा रहे थे, लेकिन हम उनका मुकाबला नहीं कर पा रहे थे, सच में, बहुत साफ़ तरह से कहें, मेरा मतलब, हम मुकाबले में अच्छे नहीं हैं। कुछ समय बाद, उन्होंने कहा, “क्या आपका खाना समाप्त हो गया ?” मैंने कहा “हाँ।” “ठीक है …” उन्होंने वेटर को बुला कर कहा, “इसे पैक करो।” मैंने कहा “क्या? यह किस लिए पैक करना चाहते हैं? ” “हमने इसके लिए भुगतान किया।”
“तो, आपने इसके लिए भुगतान किया, लेकिन मेरा मतलब है … भारत में कोई भी ऐसा खाना नहीं खाएगा, जो किसी और ने खाया हो।” “नहीं, आप इसे पैक करें।” और उन्हें इसके बारे में कोई शर्म नहीं थी; इतने बेशर्म। मैंने कहा। “हम भारत में ऐसा नहीं करते हैं।” कहा, “क्यों नहीं?” मैंने कहा, “ये बुरा व्यवहार हैं।”
“लेकिन हमने इसके लिए भुगतान किया है। एक बार जब आप इसके लिए भुगतान कर देते हैं तो कोई बुरा व्यवहार नहीं होता है। ” मैंने कहा, “आह, हम इसे पैक नहीं करवाना चाहते हैं।” “हम इसे खाएंगे। हम इसे रात को खाएंगे । हम इसे शाम को खाएंगे।” मैं आश्चर्यचकित थी कि ऐसे कंजूस लोग कह रहे हैं कि वे बहुत अमीर हैं, उन्हें लगता है कि उनसे अच्छा कोई नहीं है; बेहद कंजूस। अमेरिकी ऊपरी रूप से अच्छे हैं,आपको बताना चाहूँगी, ।
मेरे अनुभव से, वे अंग्रेजों की तरह नहीं हैं कि वे सभी को नीचा देखते हैं। नहीं, आपको उनके साथ इस तरह से नहीं लगता। लेकिन वे बहुत ऊपरी सतह के लोग हैं। आप उन्हें दस भेंट दें; आपको वह एक भी नहीं देंगे । उन्हें कोई मतलब नहीं है; कोई शर्म नहीं है। क्यों? क्योंकि पूरी बात यह है, “हमने भुगतान किया इसके लिए”। मेरा मतलब है कि आप किसी भी जगह, वहां के किसी भी रेस्तरां या किसी भी जगह पर जाएं, आप चकित रह जाएंगे। वे आपके लिए चीज़ें पैक कर देते हैं, अगर कुछ बचा हुआ है तो – अमेरिका में । वे करते हैं। अपनी कंजूसी में वे इस हद तक जा सकते हैं, बिना शर्म के ।
और कंजूसी, सहज योग से बाहर है। आप कंजूस नहीं हो सकते। आपको उदार होना होगा। आपको देना होगा। आपको दूसरों के लिए महसूस करना होगा। यह एकमात्र तरीका है, जिससे हम खुद को व्यक्त कर सकते हैं| यह सब उदारता, आप को एक बड़ा नायक बनाने के लिए नहीं है।
लेकिन सबसे खराब और सबसे खराब और सबसे खराब, हॉलीवुड है, फिल्म उद्योग है। उद्योग नाम के अंतर्गत, आप कुछ भी कर सकते हैं। अब यह हॉलीवुड, ऐसी भयानक फिल्में बना रहा है, लेकिन सबसे खराब है कि उन्हें इन सब खराब फिल्मों के लिए पुरस्कार मिले हैं । एक फिल्म है, जो उन्होंने दिखाई है, मैंने नहीं देखी है, मैं इसे नहीं देख सकती । उन्होंने मुझे बताया कि एक आदमी नरभक्षी है और वह इंसानों का माँस खा रहा है और उन्होंने दिखाया और वे सब आनंद लेते हैं। बहुत, बहुत प्रसिद्ध। इसके अलावा, न केवल प्रसिद्ध, बल्कि उन्हें पुरस्कार मिला, सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, सर्वश्रेष्ठ यह, वह| आपको वहां से एक निर्देशक मिलना चाहिए और उसे इंसानों का मांस खिलाना चाहिए। यही एकमात्र तरीका है – मैं इस भयानक बात को सोचूं – फिर, वह अन्य फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं। मैंने एक और थोड़े समय के लिए देखी जहां वे सभी शवों को लटकते हुए दिखाते हैं , देखिये । भयानक! ये लोग ऐसे भयानक चीजें क्यों देखना पसंद करते हैं ? उनका चरित्र क्या है? वह कहाँ चले गए है? वह उन चीजों का आनंद क्यों लेते हैं जिसमे किसी भी इंसान – जो इंसान है – को मज़ा नहीं आएगा|
और फिर यह आगे बढ़ता है। उनका हैलोवीन (पश्चिमी देशों का एक त्यौहार) व्यवसाय – मैंने एक फिल्म देखी, मैंने कहा, “हे भगवान् ।” यह एक नरक है, जिस में उन्हें लगा कि यह श्री कृष्ण के रास की तरह है। तो, मुझे लगता है कि वह कृष्ण चैतन्य था, जो वहां काम कर रहा था |
अमेरिका में एक हजार एक चीजें हैं जो आपको चौंकाती हैं, और इंग्लैंड में भी, और यूरोप में भी।
मैंने सोचा ऑस्ट्रिया कुछ बेहतर था, लेकिन ऑस्ट्रिया में जब आप सड़क पर चलते हैं, रात में कार्यक्रम के बाद, आपको रास्ते में कई भयानक महिलाओं के दर्शन करने पड़ते हैं । मेरा मतलब यह कहीं नहीं है – आप जानते हैं कि वहाँ हैं – हमें इसमें मजबूरन जाना पड़ता है| और वह इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते ,जैसे यह अधिकार की बात हो, आप देखें, आप इसे क्या कहते हैं – देखिये – कि मानव अधिकार है, ऐसी महिलाओं को देखने का , और इन महिलाओं का मानव अधिकार है, सड़क पर होने का। सभी भयानक चीजें, चारों ओर हो रही हैं, इसलिए सहज योगियों को खुद को और अधिक सुसज्जित करना चाहिये, श्री कृष्ण के सिद्धांत के साथ ।
पहला सिद्धांत है संचार । पहला सिद्धांत, यह है कि आप दूसरों के साथ कैसे बात करते हैं। इसकी शुरुआत अपने घर से, अपने बच्चों के साथ करें, अपनी पत्नी के साथ, अपने पति के साथ, आप कैसे बात करते हैं। क्या आप सज्जन हैं ? क्या आप उदार हैं ? क्या आप हावी हैं, आक्रामक हैं ? बस यह पता लगाने की कोशिश करें। यह आक्रामकता, किसी भी सीमा तक जा सकती है, महिलाओं की या पुरुषों की । यहाँ अधिक महिलाएं – मुझे कहना चाहिए – मुझे खेद के साथ कहना पड़ रहा है, लेकिन मेरे अनुभव में, मैंने देखा है कि महिलाएँ ज्यादा हावी हैं | भारत में पुरुष ज्यादा हावी हैं।पर यहाँ महिलाएं ज्यादा हैं |
अब मूल तत्त्व कि मनुष्य के पास अच्छे शिष्टाचार होने चाहिए। मुझे अच्छे शिष्टाचार नहीं मिलते, सिवाए इसके कि वे अच्छे कपड़े पहनते हैं, हो सकता है – वे विशेष प्रकार के कपड़े पहन रहे हों। सब शिष्टाचार कपड़ों में हैं, लेकिन जब लोग एक साथ होते हैं, तो वह घोटालों के अलावा, कोई बात नहीं करते।
मेरा मतलब है, असहनीय भयानक घोटालों पर चर्चा करते हैं। यह कुछ ऐसा है, जिसे आपको समझना चाहिए कि श्री कृष्ण ने कभी घोटालों की नहीं सोची । यह कैसे हो सकता है, कि श्री कृष्ण के देश और सभी यूरोपीय देश, दुनिया के सभी घोटालों से लैस हैं? मैं नहीं समझ सकती कि घोटालों में लोगों की क्या दिलचस्पी है। और इस सब के ऊपर आपकी मीडिया है जो बिल्कुल श्री कृष्ण – विरोधी है , क्योंकि उन्हें पैसा बनाना है। इस कारोबार में ऐसी मिली भगत है कि लोग यह सब बकवास सुनना पसंद करते हैं, ताकि उनके पास अखबार में घोटाले हों।
कम से कम तीस साल पहले, आप एैसी बात कभी नहीं सुन सकते थे और ऐसी सभी किताबें पूरी तरह से प्रतिबंधित थीं । और अब, अचानक, पूरी चीज इतनी अच्छी तरह से फली – फूली है कि कोई भी पत्रिका, आप जो कुछ भी लेते हैं, और आप समझ नहीं पाते हैं कि वह क्या उपदेश दे रहे हैं। वह विनाश पंथ का प्रचार कर रहे हैं, पूरी तरह से । और लोग इसे लेते हैं, इसे पसंद करते हैं, और इसपर कार्य करते हैं। वे अपने उद्देश्य के लिए महिलाओं का उपयोग कर रहे हैं और मूर्खतापूर्ण महिलाएँ, इसे स्वीकार कर लेती हैं। बेशक, वे हावी हैं, एक तरफ , वे बहुत खुश होती हैं कि वे हावी हो रही हैं। वहां एक महिला थी, जो एक पत्रिका में अपनी बड़ाई कर रही थी कि उसके जीवन में चार सौ आदमी हो चुके थे। क्या आप कल्पना कर सकते हैं ? अब ऐसी महिला के लिए नर्क मे भी कोई जगह नहीं है | आप ऐसी औरत को वहां कहाँ रखोगे ? अब मुझे नहीं पता; यह एक और समस्या है। तो यह आंदोलन, जो धर्म के सिद्धांत और संचार के बिल्कुल खिलाफ है |
अब आपको कैसे संवाद करना चाहिए – शालीनता से, बहुत ही कोमल और बहुत ही सुंदर तरीके से, आपको दूसरे व्यक्ति से बात करनी है , अन्य सहज योगियों से बात करनी है , किसी से भी बात करनी चाहिए , बहुत ही मधुर तरीके से आपको बात करनी चाहिए। मेरा मतलब फ्रांसीसी शैली नहीं है, आप देखते हैं, अपने शरीर को झुकाना और सभी कृत्रिम चीज़ें । वैसे नहीं । मैं कह रही हूं कि यदि आप स्वाभाविक रूप से किसी से बात कर रहे हैं, तो आपको सभ्य होकर बात करनी चाहिए, शालीनता के साथ, विनम्रता के साथ और हर समय बकबक और बहुत बातचीत करने की जरूरत नहीं है। कोई जरूरत नहीं है। लेकिन, इसके विपरीत, यह शैली श्री कृष्ण की थी। संक्षेप में, उनकी शक्ति थी माधुर्य ; मधुरता – शहद की तरह । जब आप श्री कृष्ण की पूजा कर रहे हैं तो आपको ज्ञात होना चाहिए कि आपको एक ऐसे व्यक्ति की तरह बात करनी चाहिए जो किसी अन्य व्यक्ति को खुश करे।
मेरे पास उपहार है, इनके लिए ,यदि ये सोने जा रहें है तो अच्छा हैं, दे दीजिए I
इसलिए, किसी से भी बात करते समय, आप बहुत प्यार से, बहुत अच्छी तरह से और इस तरह से बात कर सकते हैं, जो उस व्यक्ति को खुश करे, भड़काने के लिए नहीं, उन चीजों को कहने के लिए नहीं, जो सख्त हैं। लेकिन कुछ लोगों की आदत होती है, हर समय कुछ ऐसा कहने की, जो बहुत उत्तेजक है, जो बिल्कुल भी अच्छा नहीं है। लेकिन कुछ लोग हैं, जब उनके काम की बात आती है तो वे बहुत मधुर होते हैं , लेकिन जब बात किसी और चीज की होती है, तो वे बहुत कठोर होते हैं। हमारे भारत में एक जैन समुदाय है। मैंने कई जैनी देखे हैं। जब वे अपने व्यवसाय के लिए हैं, तो सबसे प्यारे हैं, जिसे आप जान सकते हैं, लेकिन जब बात किसी और चीज़ की हो, जैसे कि कुछ पैसे दान करना या कुछ, वे बहुत कठोर हैं।
वे केवल मूर्खतापूर्ण कार्य के लिए दान करेंगे, लेकिन समझदारी के कार्य के लिए नहीं। वे बेहद मूर्खतापूर्ण चीज़ों के लिए काम करेंगे, पर कभी समझदार चीज़ों के लिए नहीं | हमारे यहाँ एक और समुदाय है, जिसे सिंधी कहा जाता है। मुझे लगता है कि वे पश्चिम के प्रभाव में हैं। बिल्कुल ऐसे ही पश्चिमी लोगों के साथ भी है । अगर आप उन्हें दिखाते हैं कि आपको उनके साथ कुछ व्यवसाय सम्बन्धी कार्य है, तो अचानक उनमें आपके लिए एक परिवर्तन आता है। वे तुरंत बदल जाते हैं | आप नहीं समझ पाते कि इस आदमी को क्या हो गया है। या, फिर अगर उन्हें पता चले कि, आप कुछ उच्च पद पर हैं तो भी वे बदल जाते हैं ।
श्री कृष्ण बिल्कुल विपरीत थे। अपने जीवनकाल में, वे हमेशा विदुर के अतिथि थे, जो एक दासी के पुत्र थे, नौकरानी के । विदुर दासीपुत्र थे , लेकिन वे एक साक्षात्कारी आत्मा थे । तो वे उनके घर जाते थे, उनके घर में रहते थे, एक बहुत ही सादे घर में, विदुर के, और वहाँ भोजन करते थे, बहुत साधारण भोजन। लेकिन वे दुर्योधन के महल नहीं जाते थे ।
बिलकुल विपरीत | मेरा मतलब है कोई ये सोचता है कि आपके पास महल है, तो वे आपके लिए बहुत उदार होंगे, बहुत अच्छे होंगे,आप जानते हैं ।
लेकिन वह यदि कहते हैं, कि वे एक झोपड़ी में रहते है, फिर वे कुछ भी नहीं है। इस तरह यह धन के प्रति झुकाव है, सूक्ष्म तरीके से। श्री कृष्ण ने कभी भी धन की परवाह नहीं की और न ही कभी इस विषय में परेशान हुए। आप उनका उदाहरण देख सकते हैं, जिसमें उन्होने उनके सिंहासन, या उनके राज्य, या धन के बारे में पूरी अनासक्ति दर्शाई है। आप एक बार संलग्न हैं, तो आपको धन के सभी कष्ट मिलते हैं। स्वाभाविक रूप से, यदि आप सांप को पकड़ रहे हैं, तो आपको हमेशा सांप का दर्द होगा, नहीं होगा? लेकिन मान लीजिए आप अनासक्त हो गए हैं। फिर वही पैसा, आप उपयोग कर सकते हैं। एक बार जब आप उस पैसे के गुलाम हो जाते हैं, तो वह पैसा आपके सिर पर बैठ जाता है। अब आप अच्छी तरह से जानते हैं कि इन दिनों पैसा पास होना भी खतरनाक है। पूरी प्रतिक्रिया बन रही है और यह वह जगह है जहां पूरे – सभी तत्व आपके खिलाफ प्रतिक्रिया कर रहे हैं।
आपने सिएरा नेवादा के इन लोगों की बुद्धिमत्ता देखी है, और उन्होंने जो कहा, वह सच है कि जब हम अधिक धन प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, प्राप्त करते रहते हैं, करते रहते हैं और हमारे दिमाग में एक विचार आता है, उसके बाद लूटपाट करने वाले आते हैं। मुझे लगता है कि सबसे खराब वह हैं जिन्हें उद्यमि का नाम मिला है। उदाहरण के लिए, वह कहेंगे, अब, यदि आपके पास एक डिजाइनर घड़ी है, तो हर कोई डिजाइनर घड़ियों के लिए भागा। पिछले दिनों में जब मैं इटली गयी, नहीं, इस्तांबुल गयी और मुझे पता चला कि टी-शर्ट वहाँ बनाया जाता है और फ्रांस में बेचा जाता है, जैसे कि वह फ़्रांसिसी हो ।
वे नहीं हैं। वे शुरू से अंत तक – वे वहाँ बनायी गयी हैं, इस्तानबुल में, और नाम उस पर लैकोस्टे है, यह, वह और वह सब। और लोग किसी भी राशि का भुगतान करते हैं, लेकिन टर्की में नहीं। जो भी अतिरिक्त बचा है, हम उसे सात पाउंड में प्राप्त कर सकते हैं। अब मूर्खता यह है कि वे आपको मूर्ख बना सकते हैं। पियरे कार्डिन, फिर एक और है, मुझे नहीं पता, अरमानी – यह इटली में ही है, लेकिन अमेरिका में कई हैं।
यहां तक कि, मेरा मतलब है, वे आपके घर आते हैं। इंग्लैंड ज्यादा खराब है। वे इतने असभ्य हैं, वे रात्रिभोज पर आपके घर आएँगे और प्लेट को उल्टा कर के देखेंगे कि यह कहाँ बनाया गया है। वास्तव में। खुले तौर पर। और वे चर्चा करेंगे कि कटलरी (छुरी-कांटा) कहां से आई है। इसलिए, हालांकि उन्हें लगता है कि वे बहुत अमीर हैं, मूर्खतापूर्ण तरीके से उनका इस तरह से शोषण किया जा रहा है कि आपके पास यह घड़ी है, आपके पास यह चीज़ है ।
अब, इंग्लैंड में हमारे पास सैविल रो नामक कुछ है, तो वे इसे बाहर रख देते हैं, आप जानते हैं, कोट के बाहर – सैविल रो। क्या आप कल्पना कर सकते हैं ? ब्रांडेड। देखिए, हर चीज का एक बड़ा तमाशा बन जाता है । तो, एक तरफ वे यह समझने के लिए बहुत बुद्धिमान हैं कि यह व्यवसाय है, यह सब फैशन है। दूसरी तरफ, वे नहीं जानते कि वे मूर्ख हैं, उन्हें मूर्ख बनाया जा रहा है, यह कहकर कि यह विशेष है, वह विशेष है और इसका नाम है – और क्या कहते हैं – इसके पीछे एक बड़ा संगठन है ।
सहज योगियों को यह समझना चाहिए कि यह सब मूर्खता है और फ़ालतू बात है। और वे पहनते हैं, वे सब इस तरह पहनते हैं, केवल दिखावा करने के लिए । यह क्या है? यह क्यों किसी को प्रभावित करेगा ? इसके बारे में सोचो | अब , समझदारी से सोचें कि यह आपको प्रभावित क्यों करना चाहिए, ये जो मूर्खतापूर्ण बातें चल रही हैं? कुछ विशेष नहीं है । वे बस एक जैसे हैं।
उन्होंने इस्तानबुल में मुझे बताया कि वे साधारण (वस्तु) बनाते हैं और फिर वे इस के ऊपर यह निशान लगा देते हैं और साधारण वाले छह डॉलर के हैं, तो इस चीज़ (निशान ) के साथ सात डॉलर के हैं। कुछ खास नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि यह विशेष ठगी, इंग्लैंड से आ रही है, अमेरिका से विशेषकर, शायद फ्रांस से भी , लेकिन फ्रांसीसी, आप जानते हैं, अजीब लोग हैं। अब उनके पास कुछ है – मैंने उन्हें आज दिखाया – इतनी बेवकूफी से बनाई गई चीज, जिसकी कीमत पांच सौ पाउंड थी, लेकिन लोग स्वीकार करते हैं क्योंकि उनके पास कोई विवेक नहीं है। अब बुद्धिमता और विवेक के बीच अंतर देखें। प्रथमतः, दिखावा क्यों करना , और ऐसा कुछ दिखाने के लिए, जिसका कोई अर्थ न हो? उस चीज़ को लगाने के लिए टर्की में केवल एक डॉलर का खर्च आया और लोग मूर्खतापूर्ण तरीके से इसे दिखा रहे हैं। क्या ऐसा है कि हमारे पास बुद्धि है, लेकिन जिसकी कोई दिव्य शक्ति नहीं? कोई भी आपको बेवकूफ़ बना कर काम करा सकता है । अब छह इंच की स्कर्ट शुरू हो गयी है । ठीक है, हर जगह छह इंच | आप को सात इंच की एक भी नहीं मिली । वह फैशन में नहीं है। वह “इन” नहीं है , “इन” माने पागलखाने में?
अब जरा श्री कृष्ण की शैली को देखिये -इतने ज्ञानी, सब कुछ देखते हुए, कैसे वे अपनी लीला करते हैं और कैसे जीतते हैं। अब, अगर वे संलग्न होते, तब वे यह नहीं कर सकते थे । तो, इस सब पर विजय के लिए, पहले आप इस श्री कृष्ण – विरोधी संस्कृति से अपने आप को अनासक्त करिये। यह बहुत ज़रूरी है। यह फैशन है। वह फैशन है। और ये सभी फैशन बेहद – बेहद विनाशकारी हैं।
अब, बालों में तेल नहीं लगाना चाहिए और अंततः गंजे सिर के साथ रहिये। ठीक है। फिर आप देखें, विशेषज्ञ हैं, डिज़ाइनर, जो नकली बाल बनाते हैं, ‘डिजाइनर विग’। तो, आप अपने सिर पर एक विग लगा लें और लिखें ‘डिज़ाइनर की ‘। मेरा विचार यह देखना है कि मनुष्य, अपनी बुद्धि से कितना मूर्ख बन सकता है।
आज मैं श्री कृष्ण के गुणों का वर्णन नहीं करना चाहती क्योंकि आप उन्हें जानते हैं। लेकिन आप लोग कैसे दूर चले गए हैं, पश्चिम में, श्री कृष्ण की शैलियों से, उनकी विधियों से। उन्होंने जो कुछ भी किया था, बुराई को नष्ट करने के लिए, नकारात्मकता को नष्ट करने के
लिए और आनंद को सामने लाने के लिए, जो रास है, उन्होंने शुरू किया। “रास” – रा मतलब ऊर्जा – उसके साथ | रास ऊर्जा है, जो आपके पास है और इस तरह से आप रास खेलते हैं, उस ऊर्जा और आनंद के साथ ।
वे होली लाए| बेशक होली कुछ भी हो सकती है, पर बहुत समझदारी से वे होली लाये, केवल अपने अंदर के आनंद को हर्ष और उल्लास से व्यक्त कर सके। क्योंकि श्री राम के जीवन में इसका अभाव था।
इसलिए उन्होंने कहा कि अपने आप को आनंद लेने की अनुमति दें, लेकिन यह केवल सहज योगियों के लिए था। दूसरों के लिए नहीं। बाकी सब, आप जानते हैं कि वे मदिरालय जाते हैं और क्या होता है। हमारे पास यहां एक प्रमाण पत्र है कि हम बहुत शांतिपूर्ण हैं, बहुत अच्छे लोग, इत्यादि ।
श्री कृष्ण ने यही कहा और किया है, कि हमें हर चीज का आनंद लेना हैं, लेकिन धार्मिक तरीके से। हमें अधर्मी नहीं होना चाहिए। धर्म आपको आनंद देना चाहिए। अन्यथा, यदि आप धार्मिक हैं, तो आप जानते हैं कि क्या होता है, कि आप पूरी तरह से कठोर व्यक्ति बन जाते हैं, आनंदहीन व्यक्ति और कभी-कभी सनकी क्योंकि आपको लगता है कि अन्य लोग अधार्मिक हैं और यह और वह । लेकिन श्री कृष्ण की शैली थी कि आप खुशदिल होने चाहिए, आपको हर्षित होना चाहिए और यह आनंद दूसरों के साथ संवाद करेगा। इस आनंदमय स्वभाव के बगैर आप संचारक नहीं हो सकते। लेकिन, जैसा कि आप जानते हैं, जब मैं फ़्रांस गयी थी, उन्होंने मुझे बताया, “माँ, आप बहुत खुश लग रही हो, आपको बताना चाहिए कि आप दुखी हैं ।” मैंने कहा, “लेकिन मैं नहीं हूं।” “अगर आप नहीं बताएंगी , तब वे आप पर विश्वास नहीं करेंगे।” मैंने बोला “क्यों?” “क्योंकि वे सभी दुखी हैं और उन्हें लगता है कि वे बहुत बेचारे लोग हैं। ” इसलिए, मैंने अपना व्याख्यान “लेस मिजरेबलस (फ़्रांस की ऐतिहासिक किताब)” के साथ शुरू किया और मैंने उन्हें बताया कि हर चौथे बिजली के खम्बे पर आपको एक वेश्या और हर दसवें पर एक मदिराघर (पब) मिलता है। और मैं इतने लोगों को पटरी पर बैठे देखती हूं, इसलिए मैंने उनसे पूछा, “ये यहाँ क्यों बैठे हैं?” कहा, “वे पूरी दुनिया के बरबाद होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।” मैंने कहा, “सच में?”
पीने के बाद, ये विचार आते हैं, कि पूरी दुनिया को नष्ट कर दिया जाए क्योंकि शायद पब में जाने के लिए उनके पास और पैसे नहीं हैं । मुझे पता नहीं क्यों। अब, उनके स्तर के बारे में सोचें, एक बार उनके स्तर के बारे में सोचें । वे लोग आप सभी की तुलना में कहाँ हैं?
तो, वे ही हैं , विराट स्वरुप, जो आपके मस्तिष्क में प्रकाश डालते है। उस प्रकाश में आप देखते हैं कि क्या मूर्खता है; क्या अज्ञानता। यह श्री कृष्ण का आशीर्वाद है।
और वह आपको निरानंद देता है क्योंकि यदि आपके पास प्रकाश नहीं है, तो आप अपने मानस का आनंद, या अपने मस्तिष्क का आनंद नहीं उठा सकते। आप नहीं कर सकते। और यह उनके प्रकाश के माध्यम से ही हम स्वयं को खुशी से भरा देख सकते हैं ,
और हम नहीं जानते कि इसके साथ क्या करना है और कैसे करना है; अपनी खुशी को कैसे व्यक्त करना है; अपनी भावनाओं को कैसे व्यक्त करना है । क्योंकि यह बहुत ज्यादा है।
यह एक और फैशन है कहना, “यह बहुत ज्यादा है।” आप उन्हें कुछ भी बताईये , “माँ, यह बहुत ज्यादा है।” क्योंकि मस्तिष्क निरर्थक बातों से भरा है, इसलिए आप उन्हें कुछ भी बताएं, उनके सिर में कुछ भी नहीं जा सकता है। “यह बहुत ज्यादा है ।”
तो बुद्धिमान व्यक्ति , जैसे श्री कृष्ण हैं, बुद्धिमानों में बुद्धिमान ; वे ज्ञान का स्रोत हैं , को स्थित प्रज्ञ होना है। मतलब – उसे संतुलन में रहना है, उसे धर्म में रहना है और उसके ऊपर, उसे आनंद में रहना है।
अब, आप केवल आनंद में नहीं हैं, लेकिन आप सत्य जानते हैं। आप परम सत्य को जानते हैं। और यह परम सत्य वह है जो आपको यह समझाता है कि क्या सही है, क्या गलत है और आप अपने विवेक का विकास करते हैं, बुद्धि का इतना नहीं। आप तब अपनी बुद्धि को कभी-कभी दुर्व्यवहार करते हुए देखते हैं , नकारात्मक विचार बताते हुए, कभी-कभी बहुत अधिक आक्रामक विचार। आप साक्षी बन सकते हैं, साक्षी, और इसलिए श्री कृष्ण ने कहा है, ”मैं संपूर्ण विश्व का साक्षी हूं, संपूर्ण विश्व का साक्षी हूं।” देखिये , आप उनके बारे में बात करते जा सकते हैं, लेकिन हमें क्या देखना है कि हम कहाँ गलत हैं और श्री कृष्ण हमें कैसे बचा सकते हैं ? गाने से नहीं, “हरे रामा, हरे कृष्णा ,” जैसे। दिन प्रति दिन, समझदार व्यक्ति बनने से। ज्ञान आपको निश्चित विचार देता है कि आपको कैसा होना है। अगर अभी भी यह बात चल रही है। देखिए, पश्चिमी तरीके से वे इस तरह दिखाते हैं। उनसे पूछें, “कैसे हैं आप?” “मैं ऐसा हूँ ।” “क्या मतलब?” “ऐसा ही।” यदि वह अभी भी वहाँ है, तो श्री कृष्ण जागृत नहीं हुए हैं, लेकिन अगर आप जानते हैं कि यह क्या है, तो आप की मुस्कराहट वैसी होगी, जैसे श्री कृष्ण की थी | मुझे पता है। मुझे यह पता है|
अब हमें यह समझना होगा कि हमारी विशुद्धी को ठीक रहना होगा। मेरी विशुद्धी पकड़ती है क्योंकि मैं जानती हूँ यह क्या है। यह अमेरिका है, सब ठीक होना चाहिए, नहीं तो मेरी विशुद्धी कभी ठीक नहीं होगी। मुझे लगता है। लेकिन विशुद्धि के लिए, सहज योग में बहुत सी चीजें हैं, जो बहुत कम लोग करते हैं।
कम से कम यदि आप सहज योगी अपनी विशुद्धी को ठीक रखें , तो मैं बहुत बेहतर हो जाऊंगी – लेकिन आप कभी कोशिश नहीं करते, अपनी विशुद्धी को ठीक रखने के लिए। इसके साथ प्रयास जारी रखें। इसके साथ जारी रखें। यहाँ तक कि अमेरिका के राष्ट्रपति की सबसे ख़राब विशुद्धि है, अभी तक जो मैंने देखी हैं, इसलिए आप कल्पना कर सकते हैं कि वे क्या अच्छा कर सकते है। क्या विवेक होगा उनके पास?
अब आप एक नई जाति हैं, जो परमात्मा से आर्शीवादित है, और आपके भीतर श्री कृष्ण जागृत हैं। उनकी महिमा में, उनके अपने प्रकाश में, आपको ज्ञात होना चाहिए कि क्या करना है। आपको बातचीत करनी चाहिए। यह आपको करना है, लेकिन मैंने क्या देखा है कि लोग ध्यान भी नहीं करते हैं। भले ही वे ध्यान करें, वे संचार नहीं करना चाहते। और कभी-कभी जब वे बात करते हैं, तो उन्हें लगता है कि वे भगवान बन गए हैं। यह बहुत मुश्किल है। इंसान को संभालना बहुत मुश्किल काम है।
आपको पूरी विनम्रता के साथ, संवाद करना होगा, जिस तरह से श्री कृष्ण ने किया था। उन्होंने रास में , राधा की ऊर्जा सभी लोगों में, हाथ पकड़ कर फैला दी थी । तो उनका बचपन, जहां उन्होंने बहुत से लोगों को मारा और वह सब किया, वह खत्म हो चुका है। फिर उनकी व्यसकता, जहां उन्हें अपने मामा को मारना था, वह भी खत्म हो गयी है। फिर वे राजा बन जाते हैं| जब वे राजा बन जाते है, तो वे क्या करते हैं? वे संवाद करते हैं। उनके अधिकांश, गुणों की अभिव्यक्ति, राजा बनने के बाद देखी गयीं। इससे पहले वे सभी भयानक लोगों को, एक के बाद एक, मारने में व्यस्त थे। उसके पश्चात उन्होंने लोगों का निर्माण किया | उन्होंने द्वारिका का निर्माण किया और उन्होंने लोगों से संवाद करने की कोशिश की।
अब आपका कर्तव्य है कि आप स्वयं का निर्माण करें और दूसरों के साथ संवाद करें , पूर्ण मिठास, श्री कृष्ण के माधुर्य के साथ, श्री कृष्ण के सारे सौंदर्य के साथ, पूर्ण समझ से – कि क्या बेवकूफी की चीजें इधर-उधर हो रही हैं । एक बार जब आप समझ जाते हैं, तो आप इन सब निरर्थक चीजों को नहीं लेते क्योंकि आप इतने बुद्धिमान बन जायेगें और इन बेकार की चीजों को ग्रहण नहीं करेंगे । और यह इतना ज्यादा है , मेरा मतलब, मैं, इस भाषण में, आपको नहीं बता सकती, लेकिन अगर आप सम्पूर्ण चीज़ों के प्रति साक्षी हो जाएँ, तो आप देखेंगे ,कि क्या हो रहा है।
अब हमें उन सब को नरक जाने से रोकना होगा। और हमें वास्तव में एक बहुत, बहुत अच्छे सहजयोगी का व्यक्तित्व विकसित करना होगा। आप सभी को। अब कई विवाह होते हैं, फिर अचानक वे तलाक का फैसला कर लेते हैं। सहज योग में तलाक की अनुमति है, लेकिन यह बेकार की अमेरिकी शैली मुझे नहीं चाहिए। महिलाएं बहुत हावी हो सकती हैं। एक व्यक्ति रूस भाग गया। उन्हें शादी का कोई पता नहीं है। वे नहीं जानते कि इसे कैसे ठीक से चलाना है। विवाह की सारी मिठास समाप्त हो गयी है। अगर पति हावी हो रहा है, पत्नी हावी हो रही है, तो ऐसा होता है, फिर आप तलाक लेते है । उपलब्धि क्या हुई?
इसलिए, हमें अपने भीतर कार्य करना होगा क्योंकि हम संस्कारों में जकड़े हैं, हम एक वातावरण में हैं। मैं आप सभी से अनुरोध करुँगी कि आप सब श्री कृष्ण के व्यक्तित्व की इन सूक्ष्मताओं को समझने का प्रयास करें , वैसा बनने की कोशिश करिये – अत्यंत शांतिपूर्ण, अत्यंत दयालु, नरम दिल और सहायक । और विनम्रता में उन्हें धन का कोई बोध नहीं था। कोई नहीं | और जैसा कि आप जानते हैं, वे किसी कारणवश सांवले रंग के थे। लेकिन जिस तरह से उन्होंने अपने जीवन व्यतीत किया, वह हमारे लिए एक उदाहरण होना चाहिए।
मुझे यकीन है, अब, जब आप अपने देशों में वापिस जायेंगे, तो आप सब को ये निरर्थक बातें दिखाई देंगी । कृपया इसे लिखिए। इसे लिखें कि ये निरर्थक लोग क्या कर रहे हैं और मेरे पास भेजें। यह वही है।
तो आज श्री कृष्ण की पूजा है । मुझे आपको यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि उनके पास कितने गुण हैं, जैसा कि मैंने आपको बताया, लेकिन सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे डॉक्टरों के डॉक्टर है। अब, उनके नाम में आप जानेंगे कि कितने गुण उनके पास हैं और आप समझ जायेंगे । यह समझने की कोशिश करें कि हमारे भीतर भी ये गुण होने चाहिए ।
जो भी गुण वर्णित या कहे गए हैं, उनमें से कितने हमारे पास हैं, यह देखने का प्रयास करें। इस तरीके से आप में आत्मनिरीक्षण शुरू होगा। एक बार जब आप खुद का आत्मनिरीक्षण करने लगते हैं और खुद को समझने लगते हैं, तब विवेक बढ़ेगा – दूसरों में दोष देखकर, दूसरों पर दोष डालने से नहीं, बल्कि स्वयं पर । ऐसे ही काम बनेगा। यद्यपि कृष्ण को ऐसा नहीं करना पड़ा क्योंकि वे सम्पूर्ण थे, वे संपूर्ण थे | लेकिन हमें यह सब करना होगा ताकि हम भी पूर्ण हो जायें।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद। परमात्मा आप सबको आशीर्वाद दें। परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करें ।
मैं एक और बात करना चाहती हूं ,सहज योगियों के बारे में, कि हम ने आप लोगों के लिए , भारतीय शास्त्रीय संगीत का परिचय दिया, क्योंकि मुझे लगता है कि यह चैतन्य लहरियाँ बढ़ाने में मदद करता है। लेकिन जैसा कि पश्चिमी लोगों की प्रकृति है, जिस भी चीज़ को वो पकड़ते है , उसके अंतिम छोर तक पहुंचने के प्रयास में, वे पूरी तरह से खो जाते हैं। तो मुझे पता लगता है कि अब वे सभी कैसेट खरीद रहे हैं। कुछ टेप… ।
अब उनमें से कुछ लोग, बहुत अनजान लोगों के टेप खरीद रहे हैं, मुझे आश्चर्य हुआ, बस पागलपन है । एक बार मैं अमेरिका में एक महिला के साथ यात्रा कर रही थी, मुक्तानंद की शिष्या थीं । उसने कहा, “मेरे पास एक बहुत अच्छा टेप है,” और उसने मुक्तानंद का भाषण सुनाया । रजनीश के लोग, रजनीश का भाषण सुनाएंगे । परंतु यहाँ अब, वे सभी एक ओर चले गए हैं, तो यह वाला , वह वाला, सभी प्रकार का संगीत उनके पास है। कल अगर, हम आपको बताना शुरू करते हैं कि आपको भारतीय नृत्य को समझना चाहिए, तो मेरे सभी वीडियो की जगह भारतीयों के नृत्य के टेप होंगे, शुरू से लेकर अंत तक । आप सहज योगी हैं। ठीक है, मैं भी संगीत की शौकीन हूं, लेकिन यह तरीका नहीं है । आपके जीवन की मुख्य बात क्या है?
और मुझे आश्चर्य हुआ कि लोग संगीत में कैसे खो जाते हैं। मेरा मतलब है कि कोई अवसर होना चाहिए। वे सभी पहले से ही संगीत के साथ किसी और दुनिया में हैं । ऐसा मत करिये। आप सब कुछ को चरम पर ले जाते हैं| यह उचित नहीं है, यहां तक कि पूजा भी, कुछ भी, आप चरम ले पर जाते हैं।
चरम सीमा पर जाने से आप संतुलन में नहीं होंगे। आप श्री कृष्ण के स्थान पर नहीं होंगे, जहाँ आप को होना है। इसके विपरीत, आप सिर्फ किसी और काल्पनिक दुनिया में होंगे। इसलिए, हम आदतन एक ऐसी दुनिया बना लेते हैं ; किसी के पास संगीत की दुनिया है; किसी की नृत्य की दुनिया है । किसी और के पास दुनिया है, मैंने देखा है, ऐसे सहज योगिओं की जो खुद को बहुत ज्यादा बड़ा सोचते हैं| “हमारा एक विशेष रिश्ता है श्री माताजी के साथ। ” बहुत सामान्य सी बात है। लेकिन मेरा कोई विशेष संबंध नहीं हो सकता। क्षमा करें, किसी का मेरे साथ कोई विशेष संबंध नहीं है। यह मैं आपको बहुत स्पष्ट रूप से बताना चाहूँगी और आपको दावा नहीं करना चाहिए और फिर कुछ लोग कहते हैं, “हम देवता हैं।” मेरा मतलब है कि यह कुछ भयानक है । अगर आप बुरा न मानें तो मैं मराठी में दो मिनट बोलूंगी।
(मराठी)
अब मैं महाराष्ट्रीयन लड़कियों से बात करना चाहती हूं। आपकी शादी पश्चिमी आदमियों से हुई और आपको अमीर पति मिल गए। लेकिन जैसे ही आप यहां आयीं, आपने अपने माता-पिता को पैसे भेजने शुरू कर दिए हैं। क्या भारत में ऐसा होता है? क्या आप अपने ससुराल से अपने माता-पिता को पैसे भेज सकते हैं? दूसरी बात है, गहने। आपने बहुत सारे गहने बनाने शुरू कर दिए हैं। मैंने एक सहज योगी पति से पूछा कि आप अपने लिए क्यों नहीं एक शर्ट खरीदते । उन्होंने कहा कि मैं समर्थ नहीं हूं क्योंकि मेरी पत्नी सारा पैसा गहने में खर्च कर रही है।
गहनों का यह लालच एक सहज योगी को नहीं भाता। यह बहुत गंभीर मामला है। हाल ही में, मुझे पता चला कि सभी भारतीय महिलाओं ने शादी के बाद गहने बनाए हैं। इस प्रकार, उनके पति के पास कोई पैसा नहीं बचता है। वह पति जो शादी से पहले सहज योग की मदद करते थे, शादी के बाद ऐसा करने मे असमर्थ हैं। उनका कहना है कि, उनके पास कोई पैसा नहीं बचा है। आपको क्या हो गया है। याद रखें कि आप संतों की भूमि से यहां आएं हैं। शिवाजी महाराज का, श्री संत तुकाराम के लिए बड़ा सम्मान था और वे उनकी पत्नी के लिए कुछ गहने ले गए। उसकी पत्नी आपके जैसी कोई होगी, चूँकि उन्होंने तुरंत गहने स्वीकार कर लिए। किसी को आभूषणों का इतना शौक क्यों होना चाहिए? यहां तक कि एक देवी होने के नाते मैं आभूषणों की शौकीन नहीं हूं; तो फिर आप आभूषणों का शौक क्यों करें? चूँकि वे अनिवार्य रूप से मुझे आभूषण प्रदान करते हैं ,इसलिए मैं उन्हें स्वीकार करती हूं। तो जब कि उनकी पत्नी ने गहने स्वीकार कर लिए, पर संत तुकाराम ने कहा कि संतों को आभूषणों की क्या आवश्यकता है? इसलिए, उन्होंने सभी गहने वापस कर दिए।
जान लें कि आप संतों की भूमि से यहां आयीं हैं और आपका यह रवैया दयनीयता का संकेत है। आप अपने माता-पिता को पैसे भेज रहीं हैं और मैं आपको यह नहीं समझा सकती कि यह कितनी बुरी बात है। आप इस तरह से दुर्व्यवहार करने के लिए यहाँ नहीं आए हैं। आप सहज योग की मदद करने के लिए यहां आए हैं, न कि गहने बनाने के लिए। यदि आप ऐसा एकाध बार करती हैं तो यह ठीक है लेकिन अगर आप अपना ध्यान आभूषणों पर रखती हैं, आभूषण ,आभूषण ,आभूषण , तो आप अपने पति को खो सकती हैं और वे सहज योग छोड़ सकते हैं। यह अच्छा कर्म होगा, जो आप करेंगे।
अब से किसी को मेरी अनुमति के बिना कोई आभूषण नहीं बनाना।