Diwali Puja: Lights of Pure Compassion

Istanbul (Turkey)

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी

दिवाली पूजा

‘शुद्ध करुणा का प्रकाश’

इस्तानबुल, तुर्की

5 नवंबर, 1994

आज हम दिवाली मनाने जा रहे हैं, जिसका अर्थ है दीपक की पंक्तियाँ या आप कह सकते हैं दीपकों का समूह।

हमें तुर्की में भी अनुवाद करने के लिए किसी की आवश्यकता है। ये ठीक है!  

यह दीपावली भारत में अत्यंत प्राचीन काल का पर्व रहा है। मैं अपने पिछले व्याख्यानों में पहले ही बता चुकी हूँ, कि ये पाँच दिन क्या हैं। नरकासुर को मारने के बाद दिवाली मनाई गई जब वो साल की सबसे अंधेरी रात थी। तो अब, यह इस आधुनिक समय में बहुत प्रतीकात्मक है, क्योंकि सबसे बुरा वक्त, जहां तक ​​नैतिकता का सवाल है, इस आधुनिक समय में रहा है। हम इसे घोर कलियुग कहते हैं! घोर कलियुग, सब से बुरा आधुनिक समय। जिसका अर्थ है पूर्ण अधंकार। जैसा कि आप अपने चारों ओर देखते हैं, आप पाएंगे कि पूर्ण अंधकार है, जहां तक नैतिकता का प्रश्न है, और इसलिए सभी प्रकार के संकट हैं। इसके वजह से भी बहुत से लोग हैं, जो प्रकाश और सत्य को खोज रहे हैं। 

अज्ञानता के काले युग में लोगों को पता नहीं है कि उन्हें क्या करना चाहिए, वे इस धरती पर क्यों हैं! जैसा कि आप बहुत अच्छे से जानते हैं, की हजारों हजारों सच्चे साधक हैं जो इस समय जन्मे हैं। इसीलिए यह कार्य मुझे दिया गया अज्ञान के काले युग में दिवाली बनाने के लिए। यह कार्य सरल नहीं है क्योंकि एक तरफ सच्चाई के खिलाफ काम करने वाली सभी काली ताकतें हैं। दूसरी तरफ भी हमें झूठे लोगों से लड़ना है, जो आपके खोज का गलत फायदा उठा रहे हैं।

प्रथम तो लोगों को यह नहीं पता, कि उन्हें क्या खोजना है, इसलिए सारे झूठे लोग, जो कि धन उन्मुख हो गए हैं, अपने झूठ की बिक्री का काम करने की कोशिश करते हैं, और उनमें यह करने की निपुणता भी है। 

किसी टेलीविजन वाली महिला ने मुझ से इस बारे में पूंछा, ‘उन पंथों का क्या जो लोगों को मार रहे हैं और हर तरह के काम कर रहे हैं जो उन्होंने स्विट्जरलैंड में किया?’ तो मैंने कहा, ‘यह सच है! वे बदमाश हैं, वे भयानक हैं, वे अपराधी हैं, जो अपने को आध्यात्मिक कहते हैं, परंतु गलती उन लोगों की है जो उनका अनुसरण करते हैं।’

तो एक व्यक्ति जो बिल्कुल अनैतिक है, बिल्कुल बेईमान है, जो स्विस बैंक में धन शोधन करने वाला है, गुरु नहीं हो सकता। वो ये मादक द्रव्य खरीदता था और बेच देता था। वो शस्त्र खरीदता था और बेच देता था। वो अपने शिष्यों से भी बदतर था, अधिक बदतर! उन्होंने तथाकथित गुरु गीता या कोई अन्य पुस्तक से एक प्रकार के उपदेश का इस्तेमाल किया, जहां ये कहा गया है कि आप अपना सब कुछ अपने गुरु को समर्पित कर दें। इसका अर्थ है ये जताया गया था, कि शिष्य अपने गुरु को सब कुछ समर्पित करने के लिए इच्छुक होना चाहिए। 

तो यह शिष्य के लिए। लेकिन गुरु के लिए है, उसे कुछ भी हथियाना नहीं चाहिए, उसे कुछ भी मांगना नहीं चाहिए, उसे लालची नहीं होना चाहिए। ये सब बातें पहले ही लिखी हुई हैं। परंतु कोई ये नहीं पढ़ता कि गुरु के लिए क्या आवश्यक है, और वे सिर्फ यही देखते हैं कि आप को सब कुछ अपने गुरु को समर्पित करना है। मैं आप को ये सब क्यों बता रही हूं, क्योंकि कैसे अंधकार इतना गहन और खतरनाक है। 

इसके अलावा हाल ही में, मैंने एक लेख पढ़ा जो कहता है कि मिलान में एक बहुत बड़ी संस्था है, शैतानवाद की वैश्विक संस्था। बहुत सारे राजनेता और सरकार में बहुत से लोग, बहुत उच्च पदों पर आसीन मंत्री और प्रधान मंत्री इसमें शामिल हैं। बहुत से लोग जो बैंक मैनेजर हैं या बैंकों के मालिक हैं, और वे लोग जो खुद को सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं, और वे भी जिन्हे शांति पुरस्कार, ये पुरस्कार, वो पुरस्कार मिले हैं वे भी शामिल हैं। तो ये है कलियुग का सब से बुरा समय, आधुनिक काल!

अब दिवाली का दूसरा दिन, आखिरी दिन है जहां भाई और बहनें एक साथ उस रिश्ते का उत्सव मनाते हैं, जो इतना पवित्र और रक्षाकारी है। ये दिखाने के लिए, कि दिए लगाने के उपरांत नैतिकता समाज की प्राथमिकता होनी चाहिए। मुझे आज आपको आधुनिक समय का अनैतिक  पक्ष बताने की जरूरत नहीं है। यह भयावह है! 

अनैतिकता आधुनिक समय का सबसे बड़ा अंधकार है, जहां लोग नहीं जानते कि वे एक दूसरे से कैसे संबंधित हैं, जिस के लिए मैंने आप को पहले बताया था कि ईसा मसीह ने सुझाव दिया है कि आप उस पुरुष की आंख निकाल लें जो एक महिला को दो बार देखता है, क्योंकि उन्हें ज्ञात हुआ कि उस समय के लोग भयंकर थे। तो इस आधुनिक समय में कौन ईसा मसीह का अनुसरण कर सकते हैं? दोनों आंखें, दोनो हाथ काट दिए जायेंगे! कुल मिलाकर देखा जाए तो मैंने अब तक ऐसा कोई ईसाई नहीं देखा है। 

मोहम्मद साहब और भी सख्त थे। उसने सोचा कि महिलाओं के लिए कुछ नहीं किया गया है, इसलिए उन्होंने महिलाओं के बारे में भी कुछ नियमों को पारित किया। तो उन्होंने कहा कि कोई भी महिला जो पुरुष को गलत नजर से देखती है, उसे धरती में आधा गाढ़ कर पत्थर मार कर मारना चाहिए। मैं नहीं जानती कि पता नहीं इन अमरीकी महिलाओं का क्या होता, अगर इन नियमों का अनुसरण होता!

तो जब मैं इस धरती पर आई, मुझे पता चला कि यह दोनों ही (नियम) बहुत दुष्कर हैं, विशेषकर इस कलयुग में। यह नियम वास्तव में साधारण मनुष्य के लिए नहीं, बल्कि देवदूतों के मतलब के हैं। तो आधुनिक मानव एक साधारण मनुष्य से भी बदतर है, क्योंकि उन्हें हर समय है कुछ विध्वंसक चाहिए, जैसे स्पेन के लोग स्वयं पर बैल द्वारा आक्रमण करवाने का खेल खेलते हैं।

अब आधुनिक समय का वर्णन आपको दिखाने के लिए है, कि हम किस समय में जी रहे हैं, और मुझे एहसास हुआ कि जो कुछ भी अच्छा है उसके बारे में, लोगों को आत्म-साक्षात्कार दिए बिना, उनसे बात करना आसान बात नहीं है। जब तक आप उन्हें आत्म साक्षात्कार नहीं देते, तब तक कुछ भी उनके दिमाग में प्रवेश नहीं कर सकता सिर्फ मानसिक स्तर पर। और सिर्फ भाषण और उपदेश देना, सारी बात सिर्फ मानसिक स्तर तक ही रहेगी। और यह सारे तथाकथित धर्म भी मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति के लिए बहुत नुकसानदायक हैं। मुझे लगता है कि आत्म साक्षात्कार ही एकमात्र रास्ता है संसार को बचाने का। अज्ञान के अंधकार में, इस विश्व के संपूर्ण इतिहास में सबसे काली रात में, हमें प्रकाश, प्रकाश और बहुत सारे प्रकाश की आवश्यकता थी। 

(अनुवादक श्री माताजी से अग्नि शब्द का अर्थ पूछता है) हां अग्नि! अग्नि का अर्थ संस्कृत भाषा में आग है।

ठीक है! तो दुनिया बहुत सारे देशों में विभाजित हो गई, बहुत सारी नस्लों में, बहुत सारी भाषाओं में और अपनी विचारधारा में भी। एक वैश्विक धर्म का विचार तभी संभव था, जब लोगों को आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो जाए।

तो मुझे आप लोगों को, मनुष्यों को, उनकी समस्याएं बतानी पडीं। तो प्रकाश के लिए, हमारे यहां दिया होता है जो मिट्टी का बना होता है, फिर तेल होता है और फिर उसमें बाती होती है।

अब ये देह, ये मन आप कह सकते हैं जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, और जो कुछ भी अंदर है वो सब दिया है, तेल करुणा है, प्रेम है और बाती कुंडलिनी है, शुद्ध इच्छा और चमक आत्मा है! तो सबसे पहले दिए का ठीक होना आवश्यक है। उसे ठीक होना चाहिए, कि वो अपने अंदर तेल को समा सके और तेल बाहर छलके नहीं। अब दो छिद्र हैं जो समस्या उत्पन्न करते हैं। एक है अहंकार और दूसरा है प्रति अहंकार या मन।

तो अगर एक सहज योगी अपने प्रतिअहंकार से विचार करे, ‘मैं एक ईसाई हूं या आप कह सकते हैं, मैं इस मैं इस जाति से हूं, मैं ये समुदाय हूं।’  तो यह सारी सीमाएं जिनसे हम अपना निर्माण करते हैं इतनी दुर्बल होती हैं कि वे टूट जाती हैं, क्योंकि उनमें कोई भी सत्य नहीं है। इनमें कोई सार नहीं है इसलिए वह फीके पड़ जाते हैं। वे सभी भूत बाधा की तरह काम करते हैं और एक व्यक्ति बिल्कुल अंधा हो जाता है।

सहज योग में आने के पश्चात मैंने देखा है, कि ईसाई लोग ईसा मसीह का अनुसरण करते हैं। मुसलमान मोहम्मद साहब या हजरत अली का अनुसरण करते हैं, और बाकी लोग अपने अवधारणाओं, जिनसे वे आए हैं, का अनुसरण करते हैं, पर वह मेरा अनुसरण नहीं करते। तो वे एक व्यक्ति में इन सारे व्यक्तित्वों के समन्वय को नहीं देख पाते। इस बिंदु पर आपको जानना होगा कि आपको प्रकाश मिल गया है। आप आत्मसाक्षात्कारी हैं। आप एक अंडे नहीं है। अब आप पक्षी बन चुके हैं। जो कुछ भी मिथ्या है वो आप को त्यागना होगा। अगर आप पूर्ण जाग्रत हैं, आप स्वत: त्याग देंगे, आप को बताने की आवश्यकता नहीं है। जब कोई प्रकाश प्रकाशित होता है, तो वह स्वत: ही जिम्मेदारी महसूस करता है की उसे प्रकाश देना है। किसी को आप को बताना नहीं पड़ता, ‘कृपया आप प्रकाश दीजिए’ क्योंकि वो एक प्रकाश है, क्योंकि वो अनंत प्रकाश है, कुछ भी उसको नष्ट नहीं कर सकता।

मैं एक संस्कृत भाषा में श्लोक बोलूंगी, ‘नैनं छिंदंति शस्त्राणि, नैनं दहति पावक: ना चैनं क्लेदयन्त्यापो ना शोषयति मारुत:’ अर्थात आत्मा को किसी शस्त्र से काटा नही जा सकता, अग्नि से जलाया नहीं जा सकता। जल इसे गला नहीं सकता और ना वायु इसे सुखा सकती। कुछ भी उसे नष्ट नहीं कर सकता। यह इतना शक्तिशाली प्रकाश है, जो आपको अपने भीतर मिला है। आप सत्यापित कर सकते हैं कि यह शाश्वत है या नहीं! आप आत्मनिरीक्षण कर सकते हैं, और स्वयं देख सकते हैं। आपके भीतर एक ऐसी अनोखी रोशनी है। इस आध्यात्मिकता की दुनिया के इतिहास में कभी भी इतने लोगों को आत्म साक्षात्कार नही मिला और उनमें इतना प्रकाश आया।

लेकिन ये कैसे हो सकता है की वे बेवकूफ, अनाड़ी, बेकार अवधारणाएं अब आप पर हावी हों, जब आप अनंत प्रकाश के वाहक हैं। लेकिन अगर आप शाश्वत प्रकाश का सम्मान नहीं करते हैं, तो अवधारणाएं इसे बुझा देंगी। यही एकमात्र समस्या है, कि आपके पास स्वतंत्रता है। अगर आप अनंत प्रकाश प्राप्त करना चाहते हैं आप प्राप्त कर लेंगे, अन्यथा यह प्रकाश पूरी तरह नष्ट हो सकता है।

तो दूसरा छिद्र अहंकार का है। एक तरफ अवधारणाओं को जिम्मेदारी की भावना से हल किया जा सकता है। जिम्मेदारी की वही भावना जब अहंकार के माध्यम से व्यक्त की जाती है, तो बहुत खतरनाक हो सकती है। प्रकाश आग बन सकता है, और यह सहज योग के घर को जला सकता है। सामान्य जीवन में हम जानते हैं, कि प्रकाश रोशनी के लिए प्रयोग में आता है, ना कि घर जलाने के लिए। परंतु जब आप सहज योग में अहंकार का वरण करते हैं, आप सोच सकते हैं कि आप सहज योग के लिए उत्तरदाई हैं। परंतु ये उत्तरदायित्व आपको कहीं ऐसा भ्रम ना दे, कि आप सहज योग के कर्ताधर्ता हैं। तो धीरे-धीरे आप इतने रजोगुणी हो जाते हैं, और लोगों को आश्चर्य होता है कि यह व्यक्ति जो इतना सामान्य था कैसे ‘बुल इन द चाइना शॉप’ बन गया।

तो आप सहज योग में के कर्ताधर्ता नहीं है। यह सरकारी नौकरों की तरह है। कहने को तो उन्हें नौकर होना चाहिए, लेकिन वे मालिकों की तरह होते हैं। वे मालिक बन जाते हैं। तो सहज योग में पूरी समझ पूर्ण सुबुद्धि की होनी चाहिए। 

तो दूसरा भाग है ‘तेल’ यानी करुणा, जो प्राकृतिक, अंतर्निहित और आनंद देने वाला है। तेल शुद्ध होना चाहिए। करुणा शुद्ध होनी चाहिए। मैंने देखा है की कई सहजयोगी नेताओं को परेशान करने का प्रयास करते देखा है। वे नेता का विरोध करते हैं, और सहज योग के कार्य में बाधा डालने का प्रयास करते हैं। अब वे कहने को सहज योगी हैं, पर वे यह नहीं समझते, कि अगर उनकी करुणा शुद्ध है वे अपने नेता की सराहना करेंगे, क्योंकि नेता इतना करुणामय काम कर रहे हैं। 

बेशक शुद्ध करुणा, आप को समझना होगा, का लालच और प्रलोभनों से कोई लेना-देना नहीं है, कुछ लेना देना नहीं है। आप को नेता से ऐसी निकटता महसूस करनी चाहिए और नेता पुरुष हो या स्त्री जो भी कार्य कर रहे है, उसकी सराहना का भाव होना चाहिए। इसलिए करुणा अशुद्ध नहीं हो सकती। उसमें कोई काम वासना नहीं हो सकती। इसके अलावा करुणा को इतने शालीन तरीके से व्यक्त किया जाना चाहिए, कि किसी को भी आप की करुणा पर संदेह न हो।

भगवान का शुक्र है कि यह एक बात और हो गई है। लोग अब आप को चूमते नहीं है। पहली बार जब मैं यूरोपीय देशों में गई थी, तो मुझ पर चुम्बन की बौछार हो गई। मुझे समझ नहीं आया, कि क्या कहूं। मेरा मतलब भयानक! हो सकता है कि मन में कुछ भी गलत न हो, लेकिन यह कितना अशोभनीय और मूर्खतापूर्ण है। बहुत समय पहले मुझे बताया गया था, कि भारतीय हवाई अड्डों पर यह लिखा हुआ था, ‘कृपया कस्टम अधिकारियों का चुम्बन न लें।’

आधुनिक काल में एक पुरुष एक महिला को चूम सकता है, पर पुरुष को चूम नहीं सकता। मेरा मतलब है कि यह बेतुका है! वे फुटबॉल के मैच में भले ही गोल कर लें, लेकिन अब गले नहीं मिलते, बिचारे! वे सिर्फ एक दूसरे को हाथ से छूते हैं! तो, और अब बहुत से जो गोल करते हैं, और वो उत्तेजित होते है, तो वे मैदान से बाहर भाग जाते हैं। वे नहीं जानते कि क्या करना है।

तो सहज योगियों के लिए, आपको पता होना चाहिए कि पुरुष पुरुषों को चूम सकते हैं, और उन्हें गले लगा सकते हैं। इसमें कुछ भी गलत नहीं है! और महिलाओं के लिए भी ऐसा ही है। वरना उत्तेजना में वे सहज योग के मैदान से बाहर भी भाग सकते हैं। पुरुषों को महिलाओं को छूने की जरूरत नहीं है। महिलाओं को पुरुषों को छूने की आवश्यकता नहीं है। ये ठीक है! 

यह क्या बकवास है? आप अपने प्यार का इजहार नहीं कर सकते। उदहारण के लिए, भारत के लिए हमारा एक नियम है, कि एक महिला एक कम आयु के आदमी को छू सकती है, और पुरुष अधिक आयु की महिला को छू सकता है, माँ हो सकती है, भाभी या कोई भी, जो मुझे लगता है कि एक अच्छा नियम है, क्योंकि इसने काम किया है!

तो करुणा के लिए, उस में शालीनता होनी चाहिए जैसे तेल में सुगंध के रूप में। तो हम अपनी करुणा कैसे व्यक्त करें? हमारे यहां राखी बहनें और राखी भाई हैं। परंतु मैं एक ऐसी महिला को जानती हूं जो अमीर लड़कों से दोस्ती करती है राखी भाई बनाने के लिए। या दूसरी तरफ कई लड़के अमीर महिलाओं के भाई बन जाते है। 

तो समझना होगा, कि आपको राखी भाई और राखी बहनें धन के लिए या शोषण करने के लिए नहीं, अपितु करुणा के लिए बनना चाहिए। आपको अपने राखी के संबंध को सिर्फ एक दूसरे की सुरक्षा के लिए अभिव्यक्त करना चाहिए। करुणा इतनी आनंददायक है, कि आप की ऐसी धन की शर्तें या अन्य कोई मूर्खतापूर्ण शर्तें नहीं होनी चाहिए, जो आप के आनंद को  समाप्त कर देंगी।

लेकिन दूसरी बात यह भी है कि आप अपना प्रेम व्यक्त करते हैं। आप कुछ वस्तुओं का, जो आप को आनंद देती हैं, उपहार के रूप में प्रयोग करते हैं। इसका ये बिलकुल भी अर्थ नहीं है कि आप ये सिर्फ अपनी राखी बहन को दें और अपनी पत्नी को कोई भी उपहार नहीं दें।

तो पेड़ में रस, जैसा कि मैं हमेशा कहती हूँ, पौधे में करुणा का रस उठता है, अलग-अलग हिस्सों को अलग-अलग तरीकों से प्यार देते हुए जैसी आवश्यकता हो, और फिर यह वाष्पित हो जाता है या वापस जड़ों में चला जाता है। आसक्ति शुद्ध प्रेम और करुणा की हत्यारिन है, इसलिए हमेशा पता लगाने और आत्म निरीक्षण करने का प्रयास करें, क्या आप अपने बच्चों, अपनी पत्नी या अपनी राखी बहन या किसी और चीज के मोह में फंसे हैं? मोह में हैं? तो एक खतरा है कि आप एक तरह के ठहराव में पड़ सकते हैं। आप को आश्चर्य होगा कि जब आप पूरी तरह से विरक्त होते है और आप के जो विभिन्न रिश्ते हैं, आप उनका सही तरह से पोषण करते हैं! आपकी खुशी एकदम संपूर्ण होती है।

महत्वाकांक्षा एक और हत्यारिन है आनंद की। इसलिए यदि आपको महत्वाकांक्षा हैं तो आपको केवल सहज योग के बारे में महत्वाकांक्षी होना होगा, ताकि आप विनम्र हो जाएं। सहज योग में एक वादा है, कि आपका जीवन खुशियों से भरा रहेगा। आंख निकालने की जरूरत नहीं है, हाथ काटने की जरूरत नहीं! कोई सजा नहीं! 

यदि आपके पास बहुत अधिक छिद्र हैं, तो सहज योग में आने की आवश्यकता नहीं है। आपको वास्तव में पवित्र व्यक्ति बनना है, छिद्रों से भरा नहीं! मुझे कहना होगा कि आप सब ‘यौर होलीनेस’ हैं। मैं नहीं हूं क्योंकि मैं कुछ बनी नहीं हूं। आप लोग बने हैं। मान लीजिए आप को कोई पुरुष कह कर पुकारे। क्या वे कहेंगे, ‘तुम पुरुष, फलां फलां?’ नहीं! क्योंकि आप पुरुष हैं। जो कुछ आप ने प्राप्त किया है आप से जुड़ा हुआ है! जो भी कुछ आप ने प्राप्त किया है।

(अनुवादकों पर टिप्पणी करना) रूसी लंबे समय से अतिक्रमण करने लगते हैं और कभी बहुत छोटा तो कभी ..रोमानिया निवासी कभी बहुत छोटे और कभी बहुत लंबे

ठीक है! अब दूसरी चीज़ जिसका वादा किया गया है वह है परम आनंद। परम आनंद क्या है, आनंद का अनुभव है। यह किसी भी चीज़ से आ सकता है। हो सकता है कि आपको लगे कि आप एक दुर्घटना में थे, और आप अचानक बच गए थे, आप सुरक्षित थे। आप चकित हैं, और हर कोई आनंद महसूस करता है। आप भी आनंद का अनुभव करते हैं।

(अनुवाद पर टिप्पणी करते हुए) मै स्पष्ट कहूं कि मैं अनुवाद नहीं कर सकती। मैं भाषाएं जानती हूं पर एक भाषा से दूसरी भाषा मै अनुवाद नहीं कर सकती। मेरे साथ कुछ गड़बड़ है।  

सहज योगी: श्री माताजी! परंतु जो भी हम कहते हैं आप बहुत अच्छे से समझती हैं।

श्री माताजी: ये बहुत सरल है। विचारों को देखिए! पहला एक अमूर्त रूप है!

(रूसी सहज योगी ने दिया बहुत लंबा अनुवाद किया)

श्री माताजी: (हंसते हुए) ये अमूर्त रूप है, मैने इतना ही कहा था!

रोमानिया का सहज योगी सारा अनुवाद करता है। (श्री माताजी हंसते हुए) यह बिल्कुल उलटा है!  ठीक है! परंतु बहुत बहत धन्यवाद!

तो ये है, आप देखिए, इस बिंदु पर कोई भी जान सकता है कि विचार क्या है, क्योंकि बाद में वह एक भाषा बन जाती है, शब्द ले लेता है। ठीक है, तो अगर आप उस अमूर्त पर छलांग लगा सकते हैं, तब आप वो जान जाते हैं, परंतु आप को बहुत ज्यादा चित्त डालना पड़ता है।

(अनुवादक को) तो, आप को कहना है, ‘चित्त उस अमूर्त बिंदु तक’ (???)

ठीक है! तो अब इस समस्या का अंत करने के लिए, मै आप सब से प्रार्थना करूंगी, की कम से कम अंग्रेजी भाषा सीख लें। मै संस्कृत भाषा नही, अंग्रेजी भाषा कह रही हूं।

अब, यह कुंडलिनी है, जो शुद्ध इच्छा है, पहले से ही विद्यमान है। आप को कुछ भी नहीं करना है। शायद रूई साफ नहीं है। उस में समस्या है क्योंकि वो गंदे हाथों से गुजरी है, परंतु उसे साफ किया जा सकता है। बाती की रूई शायद साफ न हो, परंतु उसे भी साफ किया जा सकता है। मेरा मतलब है कपास।

कबीर ने इस विषय में कुछ बहुत सुंदर कहा है। वे कहते हैं कि जब बकरी की आंतें उसके पेट में होती हैं, वह ‘मैं! मैं! मैं बोलती रहती है। परंतु जब अंतड़ियों को बाहर निकाल कर उनसे तार बनाया जाता है जो रुई धुनने के लिए प्रयोग किया जाता है। यंत्र से जोड़ दिया जाता है जो रुई ढूंढने के लिए प्रयोग होता है आप जानते हैं। भारत में उसे धुनकी कहते हैं और जब उस से रुई साफ की जाती है तो आवाज आती है, ‘तू ही! तू ही! तू ही!’

(श्री माताजी और अनुवादक इन शब्दों पर विचार विमर्श कर रहे हैं)

ठीक है, जो भी है! तो इसका अर्थ यह है कि जब आपकी कुंडलिनी ठीक से कार्य नहीं कर पा रही है, क्योंकि आप के चक्रों में समस्याएं हैं तो आपको कहना है, आप है!आप हैं! ‘आप साक्षात यह हैं, आप साक्षात वो हैं।’ साक्षात का अर्थ है जो हकीकत में होता है, वास्तव में! आप यह नहीं कहते, ‘आप कोई परम पवित्र है।’ आप कहते हैं आप गणेश हैं। आप यह हैं। इस प्रकार आप अपने चक्रों की सारी गंदगी और सारे दोषाें को साफ करते हैं। इस प्रकार आप अपने अहंकार और प्रति अहंकार को भी सही कर सकते हैं। तब आप किसी भी बात का श्रेय खुद नहीं लेते। आपको लगता ही नहीं कि आप कुछ कर रहे हैं, और आपका पूरा व्यक्तित्व ही पूर्ण यंत्र में बदल जाता है जैसे श्रीं कृष्ण के हाथों में बांसुरी। तब आप अपने कार्य को और हर एक कार्य को परमात्मा का कार्य समझ कर देखते हैं। इस प्रकार आप आत्म साक्षात्कारी बन जाते हैं। इस प्रकार आप आनंद के प्रकाश, शांति के प्रकाश बन जाते हैं। ??? कहा गया है उस बारे में कि आप क्या हैं। इस प्रकार जो भी वर्णन किया गया है, वैसे ही आप बन जाते हैं। अगर कहीं प्रकाश है तो आप को यह कहना नहीं पड़ता कि प्रकाश है। यह कोई मोहर नहीं है जिसका आपको उपयोग करना है।

तो आज हम दिवाली का पर्व मना रहे हैं, सहज योग के प्रकाश की दिवाली। मुझे नहीं पता कि मैं क्या कहूं, मैं किस परम आनंद की अवस्था में हूं। आपके द्वारा बनाई गई खुशी की सभी लहरें जबरदस्त हैं। कोई भी शब्द इसका वर्णन नहीं कर सकते। मैं कविता की रचना नहीं कर सकती। ध्यान के माध्यम से रोशनी खूबसूरती से जलती रहें। और प्रकाश के कारण आप बहुत मजबूत बन सकते हैं।

परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करें! आप सभी को दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं! 

मुझे कहना होगा कि दिवाली पूजा बहुत छोटी है और मेरा व्याख्यान तीन गुना ज्यादा रहा। तो आप कल्पना कर सकते हैं कि समय सामान्य से अधिक व्यतीत हुआ है! 

अंत में, भारत में बहुत से सहज योगी निशुल्क आमंत्रित हैं। उनमें से अधिकांश शायद भुगतान न भी करें। जो लोग यात्रा के लिए भुगतान नहीं कर सकते हमें बता दें। नहीं नहीं, हमने बहुत से लोगों को भारत आमंत्रित किया है उन्हें अपना नाम देना चाहिए और जिन पर गणपतिपुले आने के लिए समय हैं, लेकिन यात्रा के लिए जिन्होंने भुगतान किया है, और जिन्होंने भुगतान नहीं किया है, वे भी अपना नाम दें। वे भी जो भुगतान नहीं कर सकते आमंत्रित हैं।

परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करें।