Adi Shakti Puja: Respect the Mother Earth

Campus, Cabella Ligure (Italy)

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

Adi Shakti Puja 1997-05-25

आज हम आदिशक्ति की पूजा करने जा रहे हैं। आदिशक्ति के बारे में बात करना एक कठिन विषय है, क्योंकि यह समझना सरल नहीं है कि आदिशक्ति सदाशिव की शक्ति हैं।

सदाशिव सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं। वह उनकी श्वास हैं, जैसा कि कुछ लोग इसे कहते हैं। कुछ कहते हैं कि वह इच्छा हैं और कुछ कहते हैं कि वह सदाशिव की संपूर्ण शक्ति हैं और सदाशिव उनकी शक्तियों के बिना कुछ नहीं कर सकते।

इस विषय का वर्णन कई लोगों ने विभिन्न पुस्तकों में भिन्न- भिन्न तरीक़ों से किया है। परंतु वास्तव में हमें जाने की आवश्यकता नहीं है, आदिशक्ति के निर्माण की पृष्ठभूमि में। इसके लिए आपको कम से कम सात भाषणों की आवश्यकता होगी। परंतु हम उस मुद्दे पर आते हैं जब आदि शक्ति ने इस धरती माँ पर कार्य करना आरंभ किया था।

पहली बात यह है कि हमें पता होना चाहिए, कि उन्होंने स्वयं धरती माँ में कुंडलिनी का निर्माण किया और उन्होंने धरती माँ में से ही श्री गणेश का सृजन किया, यह बहुत ही रोचक है।

इसलिए धरती माँ हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण  बन जाती हैं। यदि हम नहीं जानते कि धरती माँ का सम्मान कैसे किया जाए, तो हम नहीं जानते कि हमें स्वयं का सम्मान कैसे करना चाहिए।

कुंडलिनी आपके भीतर आदि शक्ति की अभिव्यक्ति है, निःसंदेह। वह आप में आदिशक्ति का प्रतिबिंब है। परंतु धरती माँ में भी यह प्रतिबिंब व्यक्त किया गया है। जैसा कि आप सभी जानते हैं, विभिन्न स्थानों में, विभिन्न देशों में, विभिन्न शहरों में, चक्रों और आदि शक्ति की कृतियों की अभिव्यक्ति के रूप में। 

सबसे पहले एक बहुत पवित्र धरती माँ को बनाना बहुत आवश्यक था जिससे कि उस पर मनुष्य जन्म ले सकें।

तो कुंडलिनी के रूप में आदि शक्ति का प्रतिबिंब सबसे पहले धरती माँ में था। हमें यह कहना चाहिए कि कुण्डलिनी आदि शक्ति का एक बहुत छोटा सा भाग है, या हम कह सकते हैं कि वह आदि शक्ति की इच्छा, शुद्ध इच्छा हैं।

तो आदि शक्ति ,सदाशिव की इच्छा हैं, सदाशिव की सम्पूर्ण इच्छा हैं और कुंडलिनी, आदि कुंडलिनी, आदि शक्ति की इच्छा, सम्पूर्ण इच्छा हैं।

अब यह पहली बार व्यक्त किया गया था, धरती माँ में, धरती माँ के भीतर।

धरती माँ के भीतर, कुंडलिनी उठी, इस तरह से कि इसने धरती के अंदरूनी भाग को ठंडा कर दिया, जितना ठंडा कर सकती थी, और फिर यह पृथ्वी की सतह पर विभिन्न चक्रों के रूप में प्रकट हुई।

इसलिए अद्भुत समानता हमें मिलती है, विराट, धरती माँ और मनुष्यों में। यदि उन सभी को आदि कुंडलिनी द्वारा प्रतिबिंबित किया जा रहा है, तो उनके बीच एक महान संबंध होना चाहिए।

यह मनुष्य नहीं समझ पाते हैं कि वे कैसे इस धरती माँ से जुड़े हैं। यह कुंडलिनी विभिन्न चक्रों से हो कर गुज़री, भिन्न- भिन्न चक्रों को बनाते हुए, धरती माँ में और अंततः कैलाश के पार  बाहर निकल आई।

और मुझे नहीं पता कि आप में से कितने लोग कैलाश गए हैं, आप देखेंगे कि कैलाश से अद्भुत चैतन्य लहरियां निकलती हैं।

अब जिस प्रकार से हम अपनी धरती माँ का अपमान कर रहे हैं, जो भी हम कर रहे हैं उससे हम आदि शक्ति का अपमान कर रहे हैं। इसलिए कई तरीक़ों से हमें धरती माँ का सम्मान करना चाहिए।

मेरा तात्पर्य है जैसे कि यह भारतीय रीति-रिवाज था, कि जब आप अपने बिस्तर से उठते थे और आप अपने पैरों से धरती माँ को छूते थे, तो आपको कहना होता था, “हे धरती माँ, मुझे क्षमा कर दीजिए क्योंकि मैं आपको अपने पैरों से छू रहा हूँ”।

धरती माँ की सभी गतिविधियों को इस आंतरिक कुंडलिनी द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो आदिशक्ति का प्रतिबिंब है। यह जो गुरुत्वाकर्षण है, वह भी अभिव्यक्ति है, धरती माँ की कुंडलिनी की।

अब, हम इस सुन्दर ग्रह में क्यों पीड़ित हैं, क्योंकि हम उस चीज़ का सम्मान नहीं करते हैं, जिसका हमें सबसे अधिक सम्मान करना है। धरती माँ का सम्मान करना है, इसका क्या अर्थ है? अर्थ यह है कि इस पृथ्वी पर जो कुछ भी बनाया गया है, पृथ्वी की गतिविधि द्वारा, समुद्र के द्वारा, सभी तत्वों द्वारा, उनका सम्मान किया जाना चाहिए।

आज की समस्या प्रदूषण है, सभी प्रकार की बातें लोग करते हैं। इसका कारण यह है कि, लोगों ने कभी महत्व नहीं समझा, इन पाँच तत्वों का जो हमारे जीवन के लिए सहायक हैं।

इसलिए धरती माँ का सम्मान करने के लिए लोग भूमि पूजन करते हैं। बहुत से लोग, जब वे एक घर का निर्माण करते हैं, तो वे भूमि पूजन करते हैं, इसका तात्पर्य है कि वे धरती माँ का सम्मान करेंगे, क्योंकि यदि उनका सम्मान नहीं किया जाएगा  तो कदाचित भूकंप आ सकता है, जिसका अर्थ है कि यह पृथ्वी माँ समझती हैं, जानती हैं और कार्य करती हैं। वह इस प्रकार से कार्य करती हैं कि मनुष्य समझ नहीं सकते कि ऐसी चीज़़ें क्यों होती हैं।

अब, हम कह सकते हैं कि, लातूर नामक स्थान में, यह श्री गणेश (उत्सव) का चौदहवाँ दिन था और उन्हें विसर्जित करना था, प्रतिमाओं को समुद्र में या नदी में, इसलिए वे नाचते गाते हुए गए। वहाँ से आने के बाद वे सभी शराब पीने लगे, और शराब पीना धरती माँ को बिलकुल पसंद नहीं है। यदि आप नशे में हैं और आप सड़क पर चल रहे हैं तो आप नीचे गिर जाएंगे। उनके पीने से ऐसा हुआ कि एक बड़ा भूकंप आ गया, और जो लोग नाच रहे थे, शराब पी रहे थे, उन सभी को धरती माँ ने उस भूकंप में फंसा दिया। मात्र हमारा केंद्र, जो वहाँ है, एक बड़े खाली स्थान से घिरा हुआ था, परंतु हमारे केंद्र को कुछ भी नहीं हुआ और एक भी सहज योगी को उस से हानि नहीं हुई।

हम समझ सकते हैं क्योंकि हम सहज योगी हैं, कि धरती माँ ने कैसे कार्य किया उन लोगों को बचाने का जो सहज योगी थे। इसलिए संतों के बारे में धरती माँ की समझ बहुत गहन है। वह जानती हैं कि कौन संत है, वह एक संत के चरणों को जानती हैं और इसीलिए, आप जानते हैं कि बहुत सी चीज़ें बनाई गई थीं, जैसे कि मोज़िज़ समुद्र में गए तो उनके चलने का रास्ता बनने के लिए धरती माँ उपर उठ गईं। यदि सभी यहूदी चलते, तो ऐसा नहीं होता, परंतु यह मोज़िज़ थे और उनकी साधुता, कि धरती माँ ने स्वयं आगे आ कर सहायता की । 

उसी प्रकार जब राम लंका और भारत के बीच एक बड़े पुल का निर्माण कर रहे थे, तब धरती माँ एक सेतु बनकर ऊपर आई थीं।

इसलिए हमें इस धरती पर हुई किसी भी प्रकार की दुर्घटना के लिए धरती माँ को भला – बुरा कहने का प्रयास नहीं करना चाहिए। यदि लोग संत हैं तो धरती माँ सदैव उनकी रक्षा करेंगी। वह सदैव उन्हें वह देने का प्रयास करेंगी जो वे चाहते हैं। 

आप बहुत सूक्ष्म प्रकार से देख सकते हैं,जैसे कि अब यहाँ हमारे कबेला में गुलाब इतने बड़े आकार के हैं। इतने बड़े आकार के गुलाब, आपको पूरे विश्व में इतने बड़े आकार में नहीं मिलेंगे। परंतु हमारे यहाँ इतने बड़े हैं।

प्रतिष्ठान में हमारे यहाँ सूरजमुखी के फूल इतने बड़े थे। एक अकेला आदमी इसे उठा नहीं सकता था। 

अब, यह सब इन विशेष स्थानों पर कैसे हो रहा है? यह धरती माँ है जो जानती है कि यहाँ कौन रह रहा है, जो जानती है कि कौन उसकी पीठ पर चल रहा है, या हमें कहना चाहिए कि उनकी मिट्टी पर, क्योंकि पृथ्वी माँ चैतन्य लहरियों को समझती हैं। 

अब, कुछ स्थानों को हम कहते हैं कि बहुत पवित्र हैं। उन्होंने कैसे पता लगाया है कि ये स्थान पवित्र हैं? चुंबकीय बल के कारण। मैं चकित थी, इंग्लैंड में ये चुंबकीय बल एक दूसरे से गुज़र रहे थे, ऑक्सटेड नामक स्थान पर जहाँ हम रहते थे। वे बहुत पहले से गुजरते थे। परंतु हम वहाँ बहुत बाद में रहे।  इसलिए धरती माँ भी संतों के लिए चीज़ों को बनाती और व्यवस्थित करती हैं।

यह देखना बहुत रोचक है कि कैसे धरती माँ आपका उचित प्रकार से मार्गदर्शन करती हैं। 

कहने का तात्पर्य यह है कि मैं आपको ना जाने ऐसे कितने उदाहरण दे सकती हूँ। परंतु हम इस धरती माँ की समझ के मूल्य को नहीं समझते हैं और संतों के लिए उनकी प्रेममयी सुरक्षा को।

उसी प्रकार से हमें समझना होगा कैसे पूरा वातावरण, वर्षा सही समय पर आती है, चाँद, सूरज, सब कुछ इतने सुंदर प्रकार से काम करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि वे संत हैं। वे जानते हैं कि ये संत लोग यहाँ बैठे हैं। वे जानते हैं कि वे शुद्ध लोग हैं, कि वे जीवन का सार हैं और उनकी देखभाल की जानी चाहिए, उनका ध्यान रखना चाहिए, इनके लिए चिंता करनी चाहिए। वह उन लोगों के बारे में चिंतित नहीं है जो किसी काम के नहीं हैं।

उदाहरण के लिए अब हज के लिए, बहुत से लोग गए और बहुत से लोग मारे गए।

कुछ लोग अमरनाथ गए और मारे गए क्योंकि वे संत नहीं थे, मात्र कर्मकांड करने वाले लोग थे, एक अनुष्ठान के लिए जा रहे थे। जो, धरती माँ के विवेक के अनुसार, इससे कुछ नहीं मिलने वाला था और उन्हें कोई लाभ नहीं होने वाला था। 

परंतु इससे कोई शिक्षा नहीं लेता, कोई नहीं सीखता।

 जैसे कि इतने लोग अमरनाथ जाते हुए  मारे गए, पाकिस्तान ने कहा, “देखिए, उन्हें अमरनाथ नहीं जाना चाहिए था, यह एक झूठा स्थान है, वे वहाँ क्यों गए? और वहाँ जाकर यही सिद्ध हुआ है कि वह पवित्र स्थान नहीं है।”

परंतु जब हज की घटना हुई, तो उनके पास कहने के लिए कुछ भी नहीं था, वे नहीं जानते थे कि इस हज की घटना को कैसे समझाया जाए और हत्याओं को…इतने लोगों की मृत्यु को। इसका कारण यह है, कि ये लोग हर समय हज के लिए जाते रहते हैं।

एक बार वहाँ भगदड़ में बत्तीस हज़ार लोग घायल हुए, परेशान हुए और मारे गए । अब यह तथ्य है। अब, धरती माँ क्या संदेश दे रही हैं, कि इन स्थानों पर जाकर, पवित्र स्थान, वे वास्तव में पवित्र हैं, निःसंदेह; इन स्थानों पर जाकर आप कोई आध्यात्मिक उत्थान प्राप्त नहीं कर रहे हैं। आप इन स्थानों पर जाकर कुछ भी प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं, जो वास्तव में पवित्र हैं, इसमें कोई चुनौती नहीं दी जा सकती, वे पवित्र स्थान हैं।

आप जानते होंगे कि मेरा जन्म छिंदवाड़ा में हुआ था, और मक्का और छिंदवाड़ा एक ही कर्क रेखा पर हैं। ऐसा कैसे है? मक्का के बारे में क्या है?

मक्का में मक्केश्वरशिव हैं – यह शिव हैं।

मोहम्मद साहब ने लोगों को पत्थर की पूजा करने के लिए क्यों कहा? वह पत्थरों में विश्वास नहीं करते थे वह सभी प्रकार की मूर्ति पूजा के विरूद्ध थे। फिर उन्होंने यह क्यों कहा कि वहाँ जो काला पत्थर है, उसकी पूजा की जानी चाहिए, इसके लिए लोगों को वहाँ जाना होगा। इसका क्या कारण था?

क्योंकि उन्होंने चैतन्य लहरियाँ अनुभव की थीं, वह अनुभव कर सकते थे कि वह एक स्वयंभू हैं, इसलिए उन्होंने ऐसा कहा।

तो सभी मुसलमान वहाँ पागलों की तरह जा रहे हैं। वहाँ जाकर किसी में सुधार नहीं हुआ, मैंने मक्का जाने वाले किसी में भी सुधार होते हुए नहीं देखा। यह मात्र एक प्रकार का अनुष्ठान है।

वे सोचते हैं कि यदि वे वहाँ जाते हैं, तो जब वे कल मर जाएंगे तो वे परमात्मा को बताएंगे, “अब देखिए, हमारे पास एक प्रमाण पत्र है, कि हम मक्का गए थे।”

जैसे हमारे पोप एक समय में प्रमाण पत्र दिया करते थे, कि जब आप स्वर्ग जाते हैं, तो आप प्रमाण पत्र दिखा सकते हैं कि अब आप एक वास्तविक ईसाई हैं।

इस प्रकार, ये सभी कृत्रिम चीज़ें सामने आईं, परंतु इसके पीछे वास्तविकता है। अंतर यह है कि वास्तविकता वास्तविक लोगों के लिए है न कि झूठे लोगों के लिए।

परंतु यह कर्मकांड बहुत अधिक बढ़ गया है। जैसे भारत में  कुंडलिनी द्वारा बनाए गए कई स्वयंभू हैं और फिर से मैं कहूंगी कि और वे वास्तव में पूजे जाते हैं।

मैं उनमें से अधिकांश में जा चुकी हूँ और मुझे आश्चर्य था कि अधिकांश पुजारी किसी प्रकार की गंभीर बीमारी से पीड़ित थे। जैसे एक लकवा ग्रस्त था। उसने कहा, “हम यहाँ इस भगवान की सेवा कर रहे हैं, और आपने कहा कि यह स्वयंभू हैं। तो माँ, कैसे, क्यों हम इस बीमारी से पीड़ित हैं? “

मैंने कहा, “क्योंकि तुम मात्र पैसा कमा रहे हो। आप परमात्मा से पैसा नहीं कमा सकते।

यदि आप परमात्मा की सेवा नहीं करना चाहते हैं, तो आप यहाँ नहीं रहें, परंतु यदि आप परमात्मा की सेवा करना चाहते हैं, तो आप यहाँ रह सकते हैं, परंतु इससे पैसा ना कमाएं।“

यह बहुत आम है, मैंने देखा है, जो लोग पैसा बनाते हैं उन्हें लकवा हो जाता है, मैंने इसे देखा है।

धरती माँ और इन सभी तत्वों की समझ बहुत गहरी है, ये हर किसी के बारे में सब कुछ समझ लेते हैं, क्योंकि उनकी कुंडलिनी आपकी कुंडलिनी की तरह नहीं है, जो कि अपने आप में शुद्ध तो है, परंतु आपके मानवीय प्रयासों, मानवीय ग़लतियों, अहंकार, प्रति अहंकार, सभी प्रकार की मूर्खताओं के कारण, कुंडलिनी इतनी संवेदनशील नहीं है, और न ही यह आपको बताती है कि क्या  घटित हो रहा है।

यह बहुत सतर्क होनी चाहिए, संवेदनशील आध्यात्मिकता आपके भीतर। जिसके द्वारा आप तुरंत कह सकते हैं कि आप क्या सोचते हैं, आप क्या जानते हैं, आप किसी भी चीज़ के बारे में क्या समझते हैं।

परंतु समस्या यह है कि ऐसा नहीं होता है। ऐसा क्यों है कि आप इतने संवेदनशील नहीं हो सकते?

इसके विपरीत, मैंने देखा है, यदि उनका मस्तिष्क किसी के विरूद्ध काम करता है, तो वे कहने लगते हैं, “आप में यहाँ पकड़ हैं, आप में वहाँ पकड़ है, आप इसे पकड़ रहे हैं”। यथार्थ में जो कह रहा है उसी में पकड़ है।

तो इस बात के साथ यह समझना होगा कि यदि हम सच्चे प्रतिबिंब हैं आदि शक्ति के तो हमें शुद्ध होना चाहिए, पूर्णतया शुद्ध, सफ़ेद हिमपात

 की तरह। यहाँ तक ​​कि एक काली बूंद, इसलिए मैंने आज सफ़ेद साड़ी पहनी है, सफ़ेद पर गिरती है तो यह दिखती है।

आपको इतना सफ़ेद होना चाहिए कि कुछ भी, छोटा सा भी काला धब्बा आपको दिख जाना चाहिए, और दूसरों में भी आपको अनुभव हो जाना चाहिए।

यदि वह ऊँचाई शुद्ध जीवन से, शुद्ध सोच से, शुद्ध हृदय से प्राप्त की जाती है, तो किसी भी चीज़ में हेरफेर करना आवश्यक नहीं होता, नहीं, कोई आवश्यकता ही नहीं है। यह सब स्वाभाविक होता है धरती माँ की तरह। क्या वह कुछ भी हेरफेर करती हैं? कुछ भी तो नहीं।

बस देखो वह कितनी स्वाभाविक हैं। आप धरती माँ में एक बीज डालें और देखें कि यह कैसे पनपता है। वह बहुत स्वाभाविक हैं, उनकी गतिविधि इतनी स्वाभाविक है, हम इसके बारे में कभी आश्चर्य नहीं करते।

विभिन्न प्रकार के फूल, विभिन्न प्रकार की सुगन्ध, विभिन्न प्रकार की झाड़ियाँ और पेड़ देखें, कैसे वह हर स्थान पर   इस प्रकार के संतुलन के साथ उगाती हैं। धरती के छोटे से छोटे अणु रेणु में यह समझ होती है। 

तो हमारे सामने आदि शक्ति का सबसे अच्छा प्रतिबिंब हैं और वह हैं यह धरती माँ। 

इसलिए सबसे पहले हमें धरती माँ का सम्मान करना चाहिए।

मुझे आप लोग पसंद हैं क्योंकि आप धरती पर बैठे हैं, यह बहुत अच्छा है। ध्यान के लिए यदि आप धरती माँ पर बैठ सकते हैं तो यह बहुत अच्छा होगा। क्योंकि धरती माँ का विशेष गुण, जो दुर्भाग्य से मुझ में भी है, कि मैं आपकी समस्याओं को अवशोषित कर लेती हूँ।  

वह भी आपकी समस्या को अवशोषित करती हैं और जब वह आपकी समस्या को अवशोषित करती हैं तो आप बिना किसी परेशानी के उनसे छुटकारा पा लेते हैं।

इसलिए, यदि आप धरती पर नहीं बैठ सकते हैं, तो बेहतर है कि आप एक पत्थर ले लें, या आप एक संगमरमर ले सकते हैं, या ऐसा कुछ जो प्राकृतिक है जिस पर आपको बैठने का प्रयास करना चाहिए।

परंतु यदि आप प्लास्टिक पर बैठते हैं और अपना ध्यान लगाते हैं, तो मुझे नहीं पता कि क्या आपकी सहायता कर सकता है-प्लास्टिक? इसलिए मैं आपसे सदैव अनुरोध करती हूँ, कि प्राकृतिक चीज़ों का उपयोग करें, क्योंकि प्राकृतिक चीज़ें आपकी समस्याओं को अच्छी तरह से अवशोषित कर सकती हैं। हम वैसे भी कृत्रिम रूप से रहते हैं। आप देखें कि यह शारीरिक रूप से भी है और मानसिक रूप से भी।

मानसिक रूप से हम क्या करते हैं, कि हम वाद – विवाद करते रहते हैं, समझाते हैं, यह चलता, चलता और चलता ही रहता है! इसका कोई अंत नहीं है। आप देखें वास्तव में आपको इससे सरदर्द होना चाहिए। 

परंतु यदि आप स्वाभाविक हैं, परंतु यदि आप बहुत स्वाभाविक हैं तो आपको तुरंत पता चल जाएगा कि दूसरा व्यक्ति क्या करने या कहने या बताने का प्रयास कर रहा है,।

आपको इसके बारे में अधिक सोचने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आप दूसरे व्यक्ति की सोच को भी अवशोषित कर सकते हैं। अवशोषण का तातपर्य यह नहीं है कि आप उस व्यक्ति की बुरी बात को सोख लेते हैं। परंतु यह छानने की तरह है, आप दूसरे व्यक्ति की बातों को अवशोषित कर रहे हैं और उसे छान देते हैं। 

अब इस आदि शक्ति की समस्या यह है, कि मैंने निश्चय किया कि मैं आप सभी को अपने शरीर में अंदर ले लूंगी, आप सभी को अवशोषित करूँगी। यह एक बहुत ख़तरनाक खेल है जिसे मैं जानती हूँ। परंतु मैंने खेला, क्योंकि काल के इस चरण में मुझे यही करना था, कि मैं आप सभी को अपने शरीर में अवशोषित कर लूं।

तो आपके साथ, आपकी सभी समस्याएं भी मेरे भीतर चली गई हैं, आपकी सभी परेशानियां भी मेरे भीतर चली गई हैं। परंतु इसे अवशोषित करके, देखें, यह समुद्र की तरह है जिसमें आपको डाल दिया जाता है और आपको साफ़ किया गया। परंतु इस समुद्र का क्या? समुद्र अभी भी आपकी समस्याएं लिए हुए है और यह बहुत कष्टदायी है।

इसलिए आपके लिए सबसे अच्छी बात होगी कि आप स्वयं को शुद्ध करें। आत्मनिरीक्षण के माध्यम से सफ़ाई बहुत महत्वपूर्ण है। परंतु मेरा तात्पर्य सोचने से नहीं है, सोचना मेरा तात्पर्य कभी भी नहीं है। 

परंतु आत्मनिरीक्षण का तात्पर्य है ध्यान, और आप सभी को ध्यान करना चाहिए।

 मुझे आपको बताना चाहिए कि हमने मुखियाओं की एक बैठक की और वे आकर बाहर ड्राइंग रूम में बैठ गए। जैसे ही वे इकट्ठे हुए मुझे पेट में इतना तेज़ दर्द हुआ और मुझे इतने अधिक दस्त हुए कि आप विश्वास नहीं कर सकते। अब, उन समस्याओं को कौन लाया था मुझे नहीं पता। यह किसके माध्यम से आईं, मुझे नहीं पता। परंतु एक माँ के रूप में, एक माँ के रूप में, मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगता, इससे जब तक आप सभी पूरी तरह से ठीक और शुद्ध नहीं हो जाते।

जैसे धरती माँ आपकी देखभाल करती है, वैसे ही मैं भी आपकी देखभाल करती हूँ। और जैसे धरती माँ आपसे प्यार करती हैं, वैसे ही मैं भी आपसे प्यार करती हूँ, चाहे आप बुरे हों या अच्छे, उससे अभिप्राय नहीं है।

परंतु यदि आप मेरी चिंता करते हैं तो वास्तव में अच्छे सहज योगी बनने का प्रयास कीजिये, दिखावे के लिए नहीं, व्यवसाय की तरह नहीं, मात्र सोचने वाले नहीं, न तार्किक की तरह, न दूसरों की आलोचना करने वाले। यदि आप मात्र दस से पंद्रह मिनट प्रतिदिन ध्यान करने का प्रयास करते हैं, तो मैं आपको बताती हूं, मेरा स्वास्थ्य  बहुत अच्छा रहेगा। 

क्योंकि मैंने तुम्हारे इंजेक्शन अंदर ले लिए हैं और वे मुझे बिना किसी कारण प्रताड़ित करना आरंभ कर देते हैं।

ऐसा देखें, अब, यह एक संकट है जो मैंने उठाया है, और मुझे विश्वास है कि आप सभी बहुत समझदार लोग हैं, और आप समझेंगे कि आपकी माँ को कष्ट भुगतना ना पड़े। मेरे लिए ये हर दिन सूली पर चढ़ना है, कभी-कभी, आप जानते हैं, और मुझे नहीं पता कि क्या कहना है।

उदाहरण के लिए, दिल्ली में एक दिन, एक सज्जन जो एक मुखिया  हैं, मेरे पास आए, मुझसे मिलने के लिए, और मेरे एक पैर में इस प्रकार होने लगा और बहुत अधिक दर्द होने लगा। 

मेरा तात्पर्य है कि मुझे नहीं पता था कि उनसे क्या कहना है, कि, “आप अभी बाहर निकल जाइए।” क्योंकि आप जानते हैं कि मैं उन्हे चोट नहीं पहुंचा सकती। परंतु मैंने कहा, “क्या बात है, आप कहाँ थे, आपने क्या किया?” और इससे उन्हें एहसास हुआ और वह बाहर चले गए। और वास्तव में इसमें (पैरों में) आराम हुआ।

मुझे लगता है कि समीपता का भी एक प्रभाव है, क्योंकि यदि उस प्रकार का एक आदमी है, या उस प्रकार की एक महिला जो समस्याओं से भरी है, और वह आती है, मेरे ध्यान में बहुत निकट, तो मुझे क्रॉस लेना होता है, यह इस प्रकार है।

एक बहुत ही सरल समझ यह होनी चाहिए कि, “हम सहज योग में क्यों हैं?”।

हम सहज योग में उत्थान पाने के लिए हैं, उच्चतर और उच्चतर जाने के लिए, जैसा कि आपने कल गाया था।

कल यह बहुत मनोरंजक था जिस प्रकार से आपने बात की थी, अपनी महत्वाकांक्षा के बारे में उच्चतर और उच्चतर होने की। वास्तव में बहुत यह बहुत आनंद देने वाला था, इसमें कोई शंका नहीं। परंतु हम इसके बारे में क्या कर रहे हैं, हम इसके बारे में क्या प्रयास कर रहे हैं, हमें देखना चाहिए।

गंभीरता से हमें सोचना चाहिए, क्या हम ध्यान कर रहे हैं, क्या हम सब दूसरों के उत्थान के लिए भी कुछ कर रहे हैं, दूसरों को आत्मसाक्षात्कार दे रहे हैं?

विशेष रूप से महिलाओं को मैंने देखा है, इस बारे में कुछ अधिक नहीं करती हैं। जो बहुत अनुचित है, क्योंकि आप माताएं हैं। आप सभी को दूसरों को आत्मसाक्षात्कार देने के लिए बाहर जाना होगा।

परंतु पुरुष इस विषय में अधिक सक्रिय हैं और महिलाएं नहीं हैं। जो  दूसरे तरीक़े से काम करते हैं। अब एक तरफ़ पुरुष हैं, मुझे लगता है कि वे सक्रिय हैं परंतु ध्यान नहीं करते। महिलाएं ध्यान करती हैं और पुरुष बाहर का काम करते हैं, यह बस काम चलाना है, या आप इसे एक अच्छा श्रम विभाजन कह सकते हैं कि, “आप घर पर ध्यान करो और हम सब जाएंगे”। यह कार्यान्वित होने वाला नहीं है।

तो आप को ध्यान करना होगा और आपको बाहर भी जाना होगा, सहज योग फैलाने के लिए। दोनों काम करने पड़ेंगे। मान लें कि अब आप ध्यान करते हैं और आप सहज योग का प्रसार नहीं करते हैं, तो आप कभी उत्थान नहीं पाएंगे। आप देखें क्योंकि अंततः कुंडलिनी एक समझदार महिला हैं, वह बहुत समझदार हैं। वह सोचती हैं, “मुझे इसे संत क्यों बनाना चाहिए? इसका क्या लाभ है?”।

सहज योग व्यक्तिवादी नहीं है, यह एक व्यक्ति को संत बनाने और कहीं बैठा दें, यह इस प्रकार से नहीं है।

यह एक व्यक्ति के लिए नहीं है। मात्र स्वयं के लिए। यह व्यक्तिवादी नहीं है, यह सामूहिक घटना है। 

इसलिए, यदि आप सामूहिकता में सहायता नहीं कर रहे हैं, तो कुंडलिनी कहती है, “ठीक है, तुम जैसे हो वैसे ही ठीक हो” अपने शरीर जैसे।

देखिए, हमारे शरीर में यदि एक अंग कहता है, “सब ठीक है, अब मैं बिलकुल ठीक हूँ, मैं बाहर काम करने नहीं जा रहा हूँ”, या एक कोशिका कहती है कि, “अब मुझे और बढ़ना नहीं है यह सब ठीक है। मैं पूरे शरीर की चिंता क्यों करूं?”, तो यह फलीभूत नहीं होगा। 

यह एक जीवंत है, यह एक जीवंत क्रिया है, मैंने आपको सौ बार कहा है, जब यह जीवंत क्रिया है तो इसे विकसित करना है, इसे विकसित करना है और सीखना भी है।

ऊर्जा के लिए आपको ध्यान करना होगा और आपको बढ़ना होगा। यदि आप नहीं बढ़ते हैं, तो आप समाप्त हो जाएंगे। तब आप कोई  सहज योगी नहीं है। मैं एक ऐसे व्यक्ति को सहज योगी नहीं कहूंगी जिसने एक भी व्यक्ति को साक्षात्कार नहीं दिया है। एक सहज योगी नहीं हो सकता, सहज योगी को दूसरों को साक्षात्कार देना ही होगा। अन्य गतिविधियों के साथ- साथ, मुख्य गतिविधि यह होनी चाहिए कि कैसे हम दूसरों को साक्षात्कार दें।

जब तक हम वास्तव में जीवन के उस पहलू को नहीं देखेंगे, तब तक हम सहज योग में कभी भी, कभी भी नहीं बढ़ सकते हैं।

उदाहरण के लिए अब, मेरी स्थिति ले लो। मैं बिलकुल ठीक हूँ, मैं पूर्ण हूँ, मुझे कोई समस्या नहीं है।

परंतु मैंने इतना परिश्रम क्यों किया और इतने सारे सहज योगी क्यों बनाना चाहती थी। क्यों? क्या था – मुझे तो बढ़ने की भी आवश्यकता नहीं, मैं पहले से ही बहुत बढ़ चुकी हूं। मुझे यह सब करने की आवश्यकता नहीं हैं, परंतु क्यों? क्या आवश्यकता है?

आवश्यकता इस प्रकार की है, आवश्यकता प्रेम की है। मुझमें इतना प्रेम है कि मुझे इसे विकेंद्रित करना है। यदि मैं ऐसा नहीं करूंगी तो मेरा दम घुट जाएगा। मैं स्वयं से प्रेम नहीं कर सकती। 

तो इस प्रेम को फैलाना है। उसके लिए मुझे आप लोगों की आवश्यकता है, जो इस प्रेम को दूसरों तक पहुंचा सकते हैं और उन्हें प्रसन्नता दे सकते हैं।

यह एक प्रकार का मेरा दृष्टिकोण है, और इस विशेष समय में, इसका कई लोगों द्वारा, कई संतों द्वारा वचन दिया गया था और यह स्पष्ट है कि आप सभी इस कार्य के लिए विशेष रूप से चुने गए हैं।

अब यह अलग बात है कि आप अपने महत्व को कितना समझते हैं। आप अपनी मुक्ति के लिए करते हैं, ठीक है, आप ध्यान करते हैं। परंतु यदि आप प्रेम को, दैवीय प्रेम को आगे फैलाते नहीं हैं, तो इसका क्या लाभ?

अब समझ लीजिए कि मैं बहुत अच्छी प्रकार से किसी चीज़ की मरम्मत कर रही हूं: मैं इस मशीन की मरम्मत करती हूं, अच्छी प्रकार से, इसे ठीक करती हूँ, सब कुछ। और अब मैं बोलती नहीं, तो इसके होने का क्या लाभ है?

उसी प्रकार, यदि आप बहुत परिश्रम करते हैं, मुझे पता है कि जो लोग चार बजे उठते हैं, वे स्नान करते हैं, ध्यान करते हैं, बैठ कर। रात में फिर से ध्यान के लिए बैठते हैं। परंतु वे कभी बाहर नहीं जाते हैं, वे कभी दूसरों से बात नहीं करते हैं, वे कभी सहज योग नहीं फैलाते हैं। वे दूसरों को दिव्य प्रेम नहीं देते हैं, तो इस संसार की इस भयानक समस्या को कैसे हल किया जा सकता है, कि इसमें कोई प्रेम नहीं है? इसने कभी दिव्य प्रेम को नहीं जाना।

इसे उन्हें दिया जाना है। उन्हें इस दिव्य प्रेम, आदि शक्ति की शक्ति को अनुभव करना होगा। उन्हें यह जानना होगा।

अन्यथा आप स्वार्थी हो गए हैं। मैं कहूंगी कि आपने इसका बहुत आनंद लिया था और इसे दूसरों को नहीं दिया।

यही कारण है कि सहज योग कभी-कभी विफल हो जाता है, मनुष्यों में एक उचित संतुलित व्यक्तित्व बनाने में।

कुछ लोग इस प्रकार के होते हैं, अब मान लें कि एक सहज योगी ने दूसरे सहज योगी से विवाह कर लिया है, इस तरह की एक स्थिति ले लो। अब मेरी इच्छा है कि वे एक-दूसरे के बारे में पूरी समझ विकसित करें, एक-दूसरे से प्रेम करें, परंतु सहज योग के और दूसरों प्रति प्रेम हो। यही एक तरीक़ा है जिससे हम सहज योग में विवाह को उचित ठहरा सकते हैं, अन्यथा उन्हें विवाह क्यों करना चाहिए?

परंतु ऐसा नहीं होता है। क्या होता है कि एक बार जब वे विवाह कर लेते हैं तो या तो वे झगड़ा करेंगे और तलाक़ मागेंगे; यदि यह सौभाग्य से नहीं होता है, क्योंकि सहज योग में विवाह करना इतना सरल है, यह आप जानते हैं।

यदि ऐसा नहीं होता है, तो वह अपना स्वयं का परिवार बनाने लगते हैं, उनके अपने घर, वे फिर से बहुत छोटे, बहुत, बहुत छोटे, बहुत सीमित होते जाते हैं।

क्या आप इसके लिए सहज योग में आए थे?

आपको अपना उत्तरदायित्व समझना होगा।

इस धरती माँ को देखें, वह अपना उत्तरदायित्व कैसे समझती हैं। वह किसी और चीज़ से नहीं मात्र मिट्टी, और कीचड़ से बनी है परंतु उनकी ओर देखें कि वह कैसे सचेत हैं, कैसे वह सटीक हैं, कैसे वह कार्यांवित करती हैं, कैसे वह सतर्क हैं, कैसे वह सावधान हैं। जबकि आप, हालाँकि, हर वस्तु से जो आपके पास है, इतना अधिक आशीर्वादित हैं, क्या आप इसे दूसरों को देने के बारे में सोच रहे हैं?

बारह शिष्यों के साथ, जो भी ईसाई धर्म की समस्या थी, मेरा तात्पर्य है कि वहाँ कोई बहुत अच्छा कार्य नहीं किया गया था, मुझे कहना होगा, परंतु फिर भी ईसाई धर्म का प्रसार हुआ। इस्लाम में भी बहुत अच्छा कुछ कार्य नहीं था, इसका प्रसार हुआ।

वे सभी बुरे कार्य बाहर इतना अधिक फैल गए हैं, तो सहज योग का अच्छा कार्य क्यों नहीं? इसे फैलना है, इसे विभिन्न स्थानों पर जाना है।

प्रयास करें और पता करें कि आप कहाँ जा सकते हैं और इसके बारे में बात कर सकते हैं । और दूसरों के लिए कुछ अच्छा कर सकते हैं और उनकी किसी भी प्रकार से सहायता करें, दुख, अप्रसन्नता और विनाश की इस सामान्य अवस्था से ऊपर उठने में।

समय बहुत कम है और मुझे लगता है कि यदि आप समय देखते हैं, तो जिस दर से हम बढ़ रहे हैं वह उचित नहीं है। हमें बहुत तेज़ होना है, हमें बहुत आगे जाना है और हमें बहुत अधिक सहज योगी बनाने होंगे, अपने लगातार, बहुत गहन प्रयासों के माध्यम से

परंतु हमारे लिए- यह एक प्रासंगिक विषय है। आप देखें, यह वैसा ही है, सहज योग वैसा ही है (महत्वपूर्ण नहीं है)।

और यहीं हम अपने उत्तरदायित्व में असफल हो रहे हैं।

हमें धरती माँ से सीखना होगा।

आप कह सकते हैं कि, “माताजी, हम आपके जैसे कैसे हो सकते हैं? अंततः आप आदि शक्ति हैं ”।

कई लोग ऐसा कहते हैं। “आप आदि शक्ति हैं, तो क्या? एक उंगली से आप चीज़ों को स्थानांतरित कर सकती हैं”।

परंतु मैं क्यों करूं? मुझे ऐसा क्यों करना चाहिए? क्या आवश्यकता है? तो उस प्रतिबिंब में जो आप हैं वह मैं ही हूं, उस प्रतिबिंब में जो धरती माँ हैं वह मैं हूं। आपके भीतर की उस सुंदर रचना में, आपको विश्व की आवश्यकता के प्रति बहुत संवेदनशील बनना होगा।

संसार की क्या आवश्यकताएं हैं? आज, यदि आप असफल होते हैं, तो पूरा उद्देश्य सदा के लिए विफल हो जाएगा। बहुत कम ही बचेंगे। तो यह आवश्यक है कि आप लोग सहज योग का प्रसार करें। क्योंकि यह प्रेम मात्र आपके लिए ही नहीं है। मात्र आपको ही इसका आनंद नहीं लेना है, बल्कि पूरे संसार के हर संभव व्यक्ति को इसका आनंद लेना है।

इसलिए आज हमें यह निश्चय करना है कि आदि शक्ति के बच्चों के रूप में, हमें बाहर हर स्थान, हर कोने में जाना है, हमें आवाज़ उठानी है और हमें दृढ़ता से बताना है कि हम किस समय में रह रहे हैं, और आपको सहज योगी के रूप में क्या उत्तरदायित्व पूरा करना है। 

आपके यहाँ होने का कोई कारण होना चाहिए। जैसे आरंभ में, सहज योगी मुझसे पूछते थे, “माँ, क्या मैं पिछले जीवन में यह था, क्या मैं पिछले जीवन में शिवाजी था?” मैंने कहा, “क्या लाभ है? आप कुछ भी हो सकते हैं, परंतु आप आज जो हैं वह कहीं अधिक ऊंचे हैं।”

समझने का प्रयास करें। उदाहरण के लिए आप नेपोलियन हो सकते हैं। आप राजाओं में से एक हो सकते हैं या सम्भवतः कहीं की रानी। तो क्या हुआ, उन्होंने क्या किया? क्या उन्होंने किसी की कुंडलिनी उठाई? क्या उनके पास कोई शक्ति थी?

यहाँ तक कि ईसा मसीह के शिष्य या यहाँ तक कि मोहम्मद साहब के शिष्य, कोई भी – क्या उन्होंने ऐसा कुछ किया था? क्या उन्हें कुंडलिनी की कोई समझ थी? क्या उन्हें दूसरों से इतना प्रेम था कि वे उन्हें आत्मसाक्षात्कार दे सकें। 

कुछ सूफ़ी थे, उन्होंने कभी किसी को आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया। बहुत सारे संत थे जिन्होंने कभी किसी को आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया। मोहम्मद साहब ने कभी किसी को आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया। गौतम बुद्ध ने कभी किसी को आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया, इसके बारे में सोचें।

ईसा मसीह ने कभी किसी को आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया। किसी को नहीं। कृष्ण ने नहीं दिया, राम ने नहीं दिया। किसी ने नहीं- परंतु आप इसे कर सकते हैं! आप इसे कर सकते हैं और आप कुंडलिनी के बारे में सब कुछ जानते हैं। यह बहुत बड़ी बात है क्योंकि आप आदि शक्ति के बच्चे हैं।

आप यहाँ हैं और आपकी माँ यहाँ है। यह मेरे लिए बहुत ही सौभाग्य की बात है कि आप यहाँ हैं। मुझे आप पर बहुत गर्व है, परंतु बार-बार मुझे आपको यह बताना पड़ता है कि काम को तेज़ गति के साथ करना है, हमें तेज़ गति के साथ आगे बढ़ना है और अधिक लोगों को सहज योग में लाना है।

 बल्कि, बल्कि मुझे उग्रता से कुछ कहना कठिन लगता है। आप जानते हैं कि यह मेरा स्वभाव नहीं है। झुंझला नहीं सकती और क्रोध नहीं कर सकती। और मैं आपसे उग्रता से कुछ नहीं कह सकती। परंतु यदि आप असफल होते हैं, तो यही एक वजह होगी जिसके कारण आप मुझे पूरी तरह से विफल कर देंगे। इसका तात्पर्य है कि इससे कुछ कम नहीं और यदि आप ऐसा नहीं करना चाहते हैं, तो मैं आप सभी से अनुरोध करूँगी कि आप आज प्रतिज्ञा लें कि आप सहज योग का प्रचार करेंगे और आप सहज योग के बारे में बात करेंगे, सहज योग के बारे में जानेंगे। कई ऐसे हैं जिन्हें कुछ भी पता नहीं है।

यह भी बहुत आश्चर्य की बात है कि वे सहज योगी हैं, वे कुछ भी नहीं जानते हैं। और मेरे लिए समस्याएं खड़ी न करें। जैसे विवाह को लेकर “हम अब पत्नी के साथ नहीं रह सकते, हम पति के साथ नहीं रह सकते”। सहज योग में लोग मेरे लिए हर प्रकार की निरर्थक समस्याएं पैदा करते हैं। क्या आप यहाँ समस्याएं पैदा करने के लिए हैं या लोगों की समस्याओं को दूर करने के लिए? 

मैं यह अवश्य कहूंगी कि कुल मिला कर हमने बहुत अच्छा कार्य किया है, परंतु यह अंत नहीं है। हमें अधिक उत्साह और प्रसन्नता के साथ तेज़ी से कार्य करना होगा।

जब आप किसी को आत्मसाक्षात्कार देते हैं तो आपको नहीं पता कि आपको क्या प्रसन्नता मिलती है। यह सबसे प्रसन्नता का क्षण है जब आप दूसरों को आत्मसाक्षात्कार देते हैं। बस प्रयास करें, आपको एक बार प्रयास करना चाहिए, आप इसका आनंद लेंगे, फिर आप और अधिक और अधिक और अधिक चाहेंगे। 

अब सहज योग के बाद वास्तव में आपकी सारी आकांक्षाएं इस इच्छा में विलीन हो जाती हैं कि, “हे ईश्वर! यह आदमी जा रहा है, क्या मुझे उसे बुलाना और उसे आत्मसाक्षात्कार देना चाहिए?”

सड़क पर चलते हुए आप उसे बुलाने की इच्छा करेंगे, “यहाँ आओ, यहाँ आओ, मैं आपको कुछ देना चाहता हूं”, फिर उसे बिठा कर आत्मसाक्षात्कार दें। 

यह आपकी कार्य शैली होगी, उन्मत्त होकर आप कहेंगे, “अरे नहीं, नहीं, इसे देखो, यह सज्जन बिना किसी आत्मसाक्षात्कार के हैं, चलो हमें उन्हें देना चाहिए”।

आपको गिरिजा में जाना होगा, आपको विश्वविद्यालयों में जाना होगा, आपको ऐसी सभी सभाओं में जाना होगा जहाँ उन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं है कि वे क्या प्राप्त कर सकते हैं; और फिर उन्हें बिना किसी डर के, बिना किसी द्वेष के बताएं। आप उनसे बात कर सकते हैं और आपको उन्हें बताना चाहिए, “अब हम आपकी सहायता के लिए, आपकी भलाई के लिए यहाँ हैं। हम अपने भले के लिए नहीं बल्कि आपके भले के लिए आये हैं, अब हमारी बात सुनें ”। और मुझे विश्वास है, बहुत विश्वास है, कि आपके भीतर की कुंडलिनी बहुत प्रसन्न होगी।

वह आपको देखकर प्रसन्न नहीं है, वह ऐसे लोगों से प्रसन्न नहीं है जो उसका पूरा उपयोग नहीं कर रहे हैं। इसलिए वह बहुत प्रसन्न होगी आपकी सहायता करके, और जो भी आवश्यक है पूरे संसार की मुक्ति के लिए वह करके।

आप सभी को परमात्मा का अनंत आशीर्वाद।