Guru Nanak Puja 23rd November 1999 Date: Noida Place Type Puja Speech Language Hindi
आज गुरु नानक साहब का जनम दिन है और सारे संसार में मनाया जा रहा है वैसे। और आश्चर्य की बात है कि इतना हिन्दुस्तान में मैंने नहीं देखा, फर्स्ट टाइम इतना पेपर में दिया है, सब कुछ किया है । उन्होंने सिर्फ सहज की हैं। धर्म के बारे में कहा, उपवास बात की। सहज पे बोलते रहे। हमेशा कहा, कि सब जो है बाहर के अवडंबर करना, तीर्थयात्रा करना और इधर जाना, उधर जाना, ये सब धर्म के अवडंबर हैं और आपको सिर्फ अपने अन्दर जो है उसको खोजना है। अपने अन्दर जो है उसको स्थित करना है। बार बार यही बात कहते थे। उन्होंने कोई दुसरी बात कही ही नहीं। मतलब यहाँ तक कि कोई भी रिच्युअल की बात नहीं करी उसने । उसके बाद जब तेग बहादूर जी आये तो उनका भी आज ही शहीद दिन है, कल है, कल है। कल है उनका दिन। तो वो भी उसी विचार के थे। ये पर जो लास्ट गुरु थे, उन गुरु ने जो वृद्ध हो रहा था इसलिये सब बनाया, कि आप कड़ा पहनिये, बाल रखिये, सब जो चीज़ें बनायीं, ये सब उन्होंने बनायी। पर गुरु नानक साहब ने तो सिर्फ स्पिरिट की बात की। उन्होंने कहा कि बाकी सब चीजें बेकार हैं। बिल्कुल साफ़ साफ़ कहा है। कोई अब पढ़ता ही नहीं अब करें क्या! एक उँगली रखेंगे, ऐसे पढ़ेंगे, यहाँ तक आयेंगे फिर वहाँ तक पहुँच के फिर उँगली रखेंगे । इस तरह से कोई पढ़ सकता है। अगर उसको ठीक से पढ़ा जाए और उस पर मनन किया जाए तो ये जो शब्दजाल है ये खत्म हो जाएगा। पर लोग सब उसी में फँसे हुए हैं। और इसी में, सिख लोगों का देखिये, क्या हाल है! कहीं नहीं। अन्दर की खोज तो है ही नहीं उनके अन्दर , जो होनी है । अन्दर की खोज ही नहीं है तो फिर कहाँ से आप सिख धर्म को फॉलो कर रहे हैं। यही सिख है और उसको वो कहते हैं सिख्खी। ये आपको हमने लिख के दिया है, ये अब पढ़िये इनको। और जितने बड़े बड़े उस वख्त में, उस जमाने में पहले भी और बाद में भी, बड़े बड़े संत हुए, तुम लोग तो जानते ही थे कौन संत है, कौन असंत है। उनकी सब की कवितायें और ये सब उन्होंने अपने ग्रंथसाहब के लिये की इसलिये ग्रंथसाहब पूजनीय है। क्योंकि ऐसे लोग, जो की जाने हुए थे उस वख्त में, माने हुए थे कि ये बड़े भारी गुरु हैं और इन्होंने बड़ा कार्य किया और जो स्पिरिच्युअल है उनको सबको संघटित कर दिया उन्होंने । यही सहजयोग में हम करते हैं कि हम किसी एक विशेष को नहीं मानते। सब का हम आदर करते हैं। सब का सम्मान करते हैं। ये उन्होंने उस वख्त किया। पर उस वक्त जो कहा था वो शब्दों में खतम। उससे आगे कोई गया नहीं। कबीर ने लिखा है, ‘पढ़ी पढ़ी पंडित मूरख भय’, वही बात है कि सब मूर्खों को तैयार किया उन्होंने । अब न तो कोई लड़ाई हुई, न कुछ हुआ। तो ये पगड़ी रखने की जरूरत नहीं। और कच्छे रखने की जरूरत नहीं है । और फलाने और क्या, क्या, कंघी रखने की जरूरत नहीं। सब चीजें वो उसी तरह से कर रहे हैं। और शराब पीते हैं। शराब में उनको कोई दिलचस्पी नहीं। शराब को बहुत मना किया है उन्होंने। जो आदमी अपनी चेतना की बात करेगा, वो शराब को सपोर्ट ही नहीं कर सकता। और उधर शराब पीते हैं। इधर ये सब करने का, इसमें बड़े पर्टिक्युलर है। पगड़ी लगायेंगे, ये करेंगे, वो करेंगे, एक क्लॅन जैसे बनाना चाहते हैं और उस क्लॅन में रहना चाहते हैं। और इसलिये ये सब करने से अन्दर की जो बात कही है वो कब होने वाली। सो, इसी तरह से चलता रहा है इन ন
लोगों का। पता नहीं कैसे! दे हैव टेकन टू धिस काइंड ऑफ रिच्युअलिझम और बिल्कुल बाहर आ गये थे। बाह्य में आ गये। बाह्य से ही सब कुछ उनको समझ में आता है। अब इन लोगों को मोड़ना कोई कठिन काम तो नहीं होना चाहिए। उन्होंने वही कहा है जो हम कर रहे हैं। उन्होंने किया नहीं। फर्क ये है। हमने किया है, उन्होंने किया नहीं। कहा है सहज समाधी लागो। कैसे? ….. (अस्पष्ट) पर कौन करेगा ये। रियलाइझेशन तो मेरे ख्याल से दिया ही नहीं उन्होंने जहाँ तक। उनके दो शिष्य थे। उन दो शिष्यों को उन्होंने रियलाइझेशन दिया है। अब एक आदमी अगर दो शिष्यों को दे, तो उसका क्या इफेक्ट आ सकता है। लोगों ने उसका जो बाह्य स्वरूप था वो ले कर के वर्क शुरू कर दिया। बड़े बड़े वो बनाये, आप तो देखते हैं कितने सारे मंदिर बनाये। क्या क्या बनाया, सब कुछ! उसका कोई फायदा नहीं। मनुष्य कम बनाये। और बाकी बने वो सरदारजी हैं। वो क्या बताये! उनको किस तरह से समझाया जाए। अब सहज में आने लग गये हैं। मैं देखती हूँ। ८-१० सहजयोगी आते ही हैं, जो की सिख हैं । पगडी वगैरे लगाये रहते थे। बगैर पगड़ी के आते हैं तो मुझे पता नहीं। पर एक नामधारी सिख है। नामधारी हमें मानते हैं। लोग ज्यादा तर बैंकॉक में हैं। काफ़ी लोग आये, ५०-६० नामधारी। वो सफ़ेद पगड़ी पहनते हैं। पता नहीं उनकी क्या विशेषता हैं, मुझे नहीं मालूम। लेकिन वो फॉलो करते हैं। जो उन्होंने कहा होगा। इसी तरह से धर्म में डायव्हर्जन होते जा रहे हैं। पता नहीं कहाँ जा के पहुँचे हैं। आपस में लड़ रहे हैं। फायदा क्या! और उन्होंने तो ये कहा है कि ‘मैं मुसलमानों का पीए हैूँ। और इनका गुरु हूँ, हिन्दूओं का और उनका पीए हूँ।’ किसी के समझ में तो आने वाली बात नहीं है। जब तक आप पार नहीं होते आपके समझ में नहीं आयेगा और यही बात है। यही होना जरूरी था, पर उनका प्रिपरेशन था हमारे लिए। उन लोगों ने सबने आपको प्रिपेअर किया और अंत में हमारा काम है कि उन्होंने जो कहा कर के दिखाये। लेकिन ये दशा सब की हुई है। समझ में नहीं आता कि कितने लोग ऐसे खो गये हैं कहाँ से, कहाँ से। हमारे यहाँ ज्ञानदेव की मैं बात बता रही थी, कि ज्ञानदेव कितने बड़े हो गये। और वो नाथपंथी थे| और उन्होंने कुण्डलिनी का लिखा भी है। पर ग्यानदेव के शिष्य हये, वो अपने को वारकरी कहलाते है। और एक तमाशा है उनका। इतनी बड़ी बड़ी दो झानियां (झाँज) हाथ में ले कर के, दोनों मिला के एक किलो की, उसको कुटते फिरते जाते हैं पंढरीनाथ, पंढरपूर। और कपड़े, उसको लक्तर कहते हैं, माने झूठ के कपड़े पहन के जाते हैं, फटे हुए। बड़े सैक्रिफायसिंग और एक महिना कूटते कूटते वहाँ पहुँचते हैं। और रास्ते में तम्बाकू खाते हैं। ये वारकरी लोग। और फिर उन्होंने उसमें संप्रदाय बनाया। उस संप्रदाय में क्या विशेषता है, की जैसे वो एक पालखी निकालते हैं । ग्यानदेव की पालखी। जिनके पास की जूते नहीं थे पैर के, तो उनकी पादुका उसमें रखते हैं। और वो ले कर के गाँव गाँव जाते हैं। अब जिस गाँव जाते हैं, वहाँ पालखी आयी तो सब वहाँ खाना खाते हैं। फिर दूसरे गाँव गयें, फिर पालखी आयीं, वहाँ खाना खाते हैं। भीख माँगने का नया तरीका वहाँ बना हो । इस तरह की चीज़ें| और तीसरा ये कि उनका जन्म हुआ था, जहाँ आळंदी में, पुणे के पास है। तो वहाँ औरतें एक पूरी कुंडी जिसमें तुलसी लगी हुई है और बिल्कुल मिट्टी से भरी हुई है। कम से कम तीन-चार सेर से कम नहीं हुई है। सर पे ले कर के आळंदी तक पैदल जाती है। ये आँखों देखा हाल है। समझ में नहीं आता क्या करें ? और बहुत से लोगों ने उनके नाम पर ही इतना पैसा बनाया है। कुछ समझ में नहीं आता है। कैसे लोग इस चीज़ को मानते हैं। किसी भी
आदमी का नाम ले लो, पैसे बनाओ। और इसी तरह उसका सारा जो कार्य था खत्म हो गया। इतना ही नहीं, एक साहब है, वो ग्यानदेव पे बड़ा भारी लेक्चर देते हैं। वो बहुत पैसा बनाते हैं। सिर्फ लेक्चर दे के। अपने मन से जो चाहे वो बोलते रहें उनके बारे में। लोग अपना सुनते जा रहे हैं। इस तरह की अंधश्रद्धा भरी हुई है सब में। और इसी तरह से गुरु नानक साहब के साथ भी हो गया। मैं देखती हूँ कि कोई जानता ही नहीं कि गुरु नानक साहब ने क्या कहा, क्या नहीं कहा। और यहाँ तक कि चंदीगढ़ बनाया है उन्होंने। चंदी सी बात करी है, हमारे आने की बात करी है। सबकुछ वर्णन किया हुआ है। कोई नहीं सुनता, कोई देखता भी नहीं। तो, इसी तरह हर एक का हो जाता है। पर अब जो है जिसको पार हो गये वो पार हो गये। क्यों कि आपको सत्य मिल गया तो आप झूठ नहीं स्वीकार कर सकते। और इसमें से कोई झूठ निकले भी तो खतम हो जाये। अब इतने लोग पार हो गये हैं सारे संसार में कि अब कोई झूठ नहीं फैल सकता। हमने जो कहा, वो टेप है, रेकॉर्डेड है। सब कुछ है। तो कोई उसको बदल नहीं सकता। इसलिये मैंने किताब नहीं लिखी । क्योंकि टेप को तो सुनना पड़ता है। पर जो किताब है उसको तो हम पढ़े जा रहे हैं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है। इससे बेहतर है किताब कम लिखो। ज्यादा जो है, वो सुनने को हो। सुन, सुन के खोपड़ी में जायेगा। नहीं तो पढ़ने में बस, मनोरंजन हो रहा है, पढ़ रहे हैं। तो क्या फायदा! और जब, आप देखते हैं कि सहजयोग का हाल होने वाला है, समझ में नहीं आता, कि अब तो ये बिगड़ नहीं सकते हैं। अब एक हद तक पहुँच गये हैं, अब नहीं बिगड़ सकते। ऐसा मेरा विश्वास है। गलत काम नहीं करना चाहिए। यही एक उनके दिये हुए से सीखना है। गुरु नानक क्या कह गये। किताब पे किताब लिख गये। गुरुवाणी पढ़ी है, तो यही कहा है, कि अपने को जानो, अपने को पहचानो। और लोग कर क्या रहे हैं? लेकिन सहज में ऐसा होगा नहीं। क्योंकि अब तो सबको पका लिया मैंने। अब तो नहीं बदल सकते आप लोग, चाहे तो भी कुछ नहीं हो सकता। जो हो गया सो हो गया| और कितना अपमान है उनका। और कितने उन्होंने तकलीफ़ें झेलीं, कितनी उत्पत्ती हुई, पर जागृती नहीं दी, ये पॉइंट आज हम कह रहे हैं। कि जागृती नहीं दी, अनुभूती नहीं दी। तो फिर अब उसका जो भी करना चाहो, जैसे के वैसे। फिर आप किसी का नाम लीजिये, उस किताब में थोडी बदल होने वाला है। जागृती से ही होगा। और यही उनके सिख लेसन सबको लेना चाहिये कि हम इस तरह से गलत रास्ते से नहीं जाएंगे। या हम कोई अलग धारणा लगायें। ये बहत जरूरी है। हम जो हैं, सहजयोगी हैं। इतना विशद रूप से सहजयोग समझते हैं, गहन समझते हैं कि अब इससे कोई और चीज़ निकालने की जरूरत नहीं। अभी भी एकाध- दो होते हैं कि ये ऐसा है तो ये करो, वो करो। सब बेकार की बात है। बिल्कुल, क्या कहना चाहिये, कि एक तरह का झूठा ही गँवा रहे हैं वो। सच्चाई कुछ भी नहीं। जो चीज़ कही ही नहीं वो चीज़ कर रहे हैं। पर अब ऐसा ही की अब वो कान से सुनेंगे। पता चलेगा । वो तो कान से तो जायेगा ना सर में। पढ़ने से नहीं जायेगा। समझेंगे कि ये नहीं काम आने वाला। जो नहीं कहा, नहीं कहा। क्यों करते हो ऐसे। पर वो पुराने संस्कारों की वजह से है । उससे भी होता है। जो हमारे पुराने संस्कार हैं कि दूसरा की हमारा जन्म इसमें हुआ तो वैसे हम चलें। ये जब तक नहीं छूटता है, तब तक सहज का असली रूप उतरता नहीं। और आपको तो स्पेशल बनाया हमने। स्पेशल लोग हैं आप। स्पेशल धर्म आप जानते हैं। सब कुछ आप जानते हैं। अपने बारे में जानते हैं, दूसरों के बारे में जानते हैं। जागृती आप कर सकते हैं। सब आज समझ सकते हैं। आप तो संपूर्ण हो गये। अब इसके बाद बिगड़ने की क्या बात है।
तो इस पर आज मुझे ये विचार आया कि गुरु नानक साहब ने कितना सहन किया, वाईफ भी उनकी ठीक नहीं थी। बहुत परेशान थे। और कर के उन्होंने जो बनाया उसका क्या हाल है। ऐसे ईसा मसीह का, ऐसा ही सबका हाल है। महम्मद साहब का यही हाल है। सब से ज्यादा गुरु नानक साहब का हुआ, क्योंकि वो सब से लास्ट आये थे। और बहुत समझाया, बहुत कुछ किया। उसके बाद साईनाथ आये। साईनाथ कहते थे कोई जरूरत नहीं । सब बेकार है। साफ़ कह दिया उन्होंने। आपने कुछ चीज़ शुरू कर दी। तो सब लोग खराब हो जाये। जागृती नहीं दी। जागृती के बाद अलग है, सब एक हो जाते हैं, समझदार हो जाते हैं। उसके बगैर बहुत मुश्किल काम है। तो, उन्होंने तो किया ही नहीं ऐसे। कोई ऑर्गनाइज ही नहीं किया लोगों को, जोडा ही नहीं, कुछ नहीं। उनके शिष्य हो गये। बस| और हमने भी ऑर्गनाइज नहीं किया । हमारा कोई ऑर्गनाइझेशन नहीं है। कुछ नहीं। पर पार होने पर ऑटोमॅटिक ऑर्गनाइज्ड हो जाते हैं। जैसे ये शरीर है। इसके सारे अंग-प्रत्यंग ऑर्गनाइज्ड है। उसी तरह से। कोई ऑर्गनाइझेशन आप सब को अनंत आशीर्वाद हैं । नहीं है। कुछ नहीं है। सब ऐसे ही चला है। और ये ध्यान रखना है कि हमने जो पाया है, उसको विकृत नहीं करना है। इससे बढ़ के कोई और पाप नहीं है। उसको विकृत नहीं करना किसी भी वजह से।