Inauguration of Vishwa Nirmal

(भारत)

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Udghatan – Vishwa Nirmala Prem Ashram Date 27th March 2003 : Noida Place : Seminar & Meeting Type

[Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] 

अपने देश में जो अनेक प्रश्न हैं, उसमें सबसें बड़ा प्रश्न है कि यहां पर औरतों को और आदमियों को अलग-अलग तरीके से देखा जाता है। पता नहीं ये कैसे आया, क्योंकि अपने शास्त्रों में तो लिखा नहीं है। कहते हैं शास्त्रों में कि: यत्र पूज्यन्ते नार्या, नारियां जहां पूजनीय होती है तत्र रमन्ते देवता।  तो पता नहीं कैसे हमारे देश में इस तरह की स्थिति सम्पन्न हुई है, जिससे औरतों के प्रति कोई भी आदर नहीं है। विशेषतः मेरा विवाह यू.पी. में हुआ और मैं देखकर हैरान हुई कि यू.पी. में घरेलू औरतों का कोई स्थान ही नहीं है। उनमें और नौकरानियों में कोई फर्क ही नहीं है। ये इस प्रकार क्यों हुआ, और क्यों हो रहा है?  क्योंकि लोग उस ओर जागृत नहीं हैं और कभी-कभी देख कर के तो रोना आता है। जिस तरह से औरतों को छला है, घर से निकाल दिया, कोई वजह नहीं है, यूही घर से निकाल दिया। और ऐसे बहुत सारे हमने जीवन में अनुभव लिए और जिसकी वजह से अत्यन्त व्यथित हो गए। समझ में नहीं आता था कि इस तरह से क्यों औरतों को सताया जा रहा है और इनके रहने की भी व्यवस्था नहीं है। जब घर से निकल गई तो उनको देखने वाला भी कोई नहीं है। बाल बच्चे ले करके निकल आएंगी बेचारी। वो लोग तो हैं निराश्रित पर बच्चों को भी विल्कुल बुरी तरह से निकाल देते हैं। ये अपने यहाँ की व्यवस्था किस तरह से बंदल सकती है, इसका कोई इलाज है या नहीं?    

मैंने बहुत बार सोचा कि इसके बारे में लिखना चाहिए. पर लिखने से कुछ नहीं होगा। इसके लिए कोई व्यवस्थित रूप से कोई इन्तजाम करना होगा, कोई व्यवस्था करनी होगी, और एक तरह से बड़ा दिल कचोटता था। ऐसी अनेक-अनेक औरतें देखी हमने, जो आज रास्ते पर भीख मांग रही हैं। लोगों ने बताया कि अच्छा तरीका है भीख मांगने का, मैंने कहा कि भाई तुमको मांगना पड़े तो पता चले।  औरतों के प्रति एक अत्यन्त उदासीन प्रवृत्ति जो अपने देश में आ गई है मुझे उससे तो रोना ही आता था। और इसीलिए मैंने यह ठान लिया था कि इनके रहन-सहन का, इनके खान-पीन का, इन बेचारी औरतों का कुछ न कुछ इलाज तो करना चाहिए। वो लोग रास्तों में भीख मांगती हैं, हर तरह का काम करती हैं। उनको मैंने घर में बुलाया उनसे बातचीत करी तो कोई कारण नज़र नहीं आता। आदमियों को कोई औरत अच्छी लग गई उसको छुट्टी करो,  दूसरा कुछ बहाना करके औरत को घर से निकाल दो। पता नहीं क्यों?  

औरत एक महान जीवन है, उसी से सारा संसार खड़ा होता है। उसी से अपने देश में हज़ारों बाल-बच्चे इस संसार में आते हैं। पर उनके प्रति इस तरह बेकद्री से लोग पेश आते हैं कि सहते-सहते औरत भी पागल हो जाए। पर नहीं, वो अपने बच्चों की वजह से बड़े हिम्मत से जीती है। लेकिन करे क्या, उसके पास और खाने का जरिया नहीं है कोई तरीका नहीं है।  तो वो क्या करे, कहां जाए, किससे भीख मांगे?  कोई उनको दरवाज़े में भी खड़ा नहीं करता। इसका कोई इलाज मुझे दिखाई नहीं दिया। इसीलिए मैंने बहुत सोचा कि सबसे बड़ा काम, अगर कुछ है, तो इन औरतों के लिए कोई स्थान बना देना है। मैंने यहीं सोचा कि यहां आ करके वो सीख लेंगी, कुछ न कुछ काम सीख लेंगी। इसके अलावा ये लोग मालिश करना सीख सकती हैं, इसके अलावा ये लोग छोटे-छोटे अपने होटल जैसे बना सकती हैं। पर उनको सहायता करने के लिए कोई चाहिए, कोई स्थान चाहिए. और उनको समझाने के लिए कोई चाहिए। इसी ख्याल से मैंने ये आश्रम बनाया है और इसमें सभी के प्यार को ललकारा है, सारे विश्व के प्यार को ललकारा है कि सब लोग प्यार से इसे देखें। इन बिचारी औरतों का कोई दोप नहीं हैं, वो जो दर-दर में भीख मांग रही हैं इसका उत्तरदायित्व हमारे समाज का है। बहुत दुख होता है, एक औरत के नाते मुझे बहुत रोना आता था देख-देख के। और यह जब बनने लगा, मैंने कहा कि किसी तरह से ये पूरा हो जाए। और इसमें मेहनत करी काफी, इसका डिजाइन भी हमने बनाया।   पर इसकी विशेषता यह है कि इसमें जो आपको सफेद रंग दिख रहा है ये खराब होने वाला नहीं है। एक अजीबो गरीब तरीके से बनाया है, ये इटली में मैने सीखा था। इटली में मैंने सीखा था कि ऐसा रंग वनाना चाहिए कि जो छूटे न। और मुझे इसका मालूम है तकनीक (technique) और उसको इस्तेमाल करने से देखिए कितना सुन्दर सफेद रंग बन गया। और ये कभी खराब नहीं होगा, कितना भी इस पर पानी आ जाए, कुछ हो जाए, कभी खराब नहीं होंगा। ये मैने एक experiment की तरह से, लेकिन ये चीज़ है बड़ी अच्छी। और इस तरह की चीज़़ बनाना कोई मुश्किल नहीं। मैंने कितनों से कहा कि आप इसको इस्तेमाल करें, सो यही बात हुई कि कौन करे तवालत, कौन करे ये आफत। इसमें कोई तवालत नहीं है, कोई आफत नहीं है।  

पर भारत देश में एक और प्रथा चल पड़ी है कि जैसे चले वैसे ही चलने दो। फिर आप क्या बात कर सकते हैं। यहाँ एक से एक विद्वान हो गए, संस्कृत के पंडित हो गए इतना ज्ञान दे गए।  पर लोगों को इसका बिल्कुल अंदाज़ नहीं है। बो जानते नहीं कि कितने महान बड़े देश में आप पैदा हुए हैं और इसके अंदर कितना ज्ञान दे गए। यही कि औरतों को आप बिल्कुल कुछ नहीं समझते हैं औरतों को बिल्कुल जैसे कोई भिखारियों जैसे रखा जाता है। पति जो है वो शराब पियेगा और बीवी को मारेगा। और मारेगा नहीं तो भी उसको कुछ सहुलियत नहीं है कोई सुविधा नहीं बेचारी को वो किसी तरह से भी रह ले। हाँ वो अगर कोई रईस की लड़की होगी तो ठीक है, नहीं तो बहुत सताते हैं। और इस तरह से कितनी ही औरतें अपने आप पिछाड़ी गई हैं। उसमें से कुछ तो घर से निकल खड़ी हो गई और भीख मांग रही हैं। और कुछ ऐसी भी हैं जो घर में ही सण  के गल रही हैं घर में ही रोती रहती हैं और किसी तरह से अपना जीवन काट रही हैं। पता नहीं समाज में इसके प्रति अभी, खासकर इधर, खासकर अपने यू.पी. में इधर ध्यान नहीं गया। महाराष्ट्र में एक बात अच्छी हुई, कि वहाँ पर दो-तीन समाज सुधारक निकले। उन समाज सुधारकों ने बहुत कार्य किया। उनकी वजह से वहां पर यूनिवर्सिटीज बन गई। औरतों को बहुत अच्छा शिक्षण मिला और लोग देखने लगे कि औरतों में भी बहुत गुण हैं। 

अभी हमने स्कूल तो बनाया हैं और आप लोगों से यही बिनती है कि आप लोग हमें बताएं कि इसमें हम क्या कर सकते हैं। कौन-सी, कौन-सी शिक्षा हम दे सकते हैं। ऐसे हम लोगों ने तो बहुत सोच लिया है। पर तो भी आप (  अष्पष्ट.. सुद्न्य??) है, आप हमारे पास खबर भेजें कि और क्या-क्या हम इन औरतों के लिए कर सकते हैं। परदेस में हमने देखा कि वहां कायदा-कानून ऐसा है कि कोई भी औरतों को इस तरह से सता नहीं सकता, ऐसी उनकी दुर्दशा नहीं है। ये अपने ही देश की विशेषता है जहां पर कि ऐसे औरतों की दुर्दशा होती है। परदेस में हम बहुत साल रहे, जाते-आते रहे सो ये फर्क मुझे मालूम हुआ।  बड़ा महसूस हुआ कि यहा पर देखिए कि एक औरत की कोई कीमत ही नहीं है, वही बच्चे पैदा करती है वही संवारती है। और भारतीय नारी तो वैसे भी बड़ी सुन्दर होती है।  बहुत कार्यक्षम बहुत दक्ष और बहुत ही यही ज्यादा मोहब्वत वाली होती है। यहाँ की माताएं तो मशहूर हैं पर हमारे यहां उनके लिए कोई प्रेम-आदर नहीं है।  पता नहीं ऐसा क्यों है?   हाँ वहाँ जरूर है औरतों ने ही अपना, और मंच बनाया हुआ है उन्होंने अपने लिए सब ये, स्थापित कर लिया है। और इस देश में उनको पूछने वाला कोई नहीं है। इसी ख्याल से एक छोटा सा ये आश्रम हमने बनाया है कि इस आश्रम में जो लोग आएं लड़कियां-औरतें, उनको दे दिया जाए ज्ञान, अपने पांव पर खड़े होना और सहज-योग भी उसके साथ साथ, गर वो इसको प्राप्त कर लें तो वो बहुत अभिमान के साथ और गौरव के साथ रह सकते हैं।  यहीं आश्रम में हम बहुत सी इंडस्ट्रीज़ भी बना सकते हैं।  बहुत से खाने-पीने की चीजें बना सकते हैं, और बहुत से उच्च तरह का भी शिक्षण भी दिया जा सकता है। ये तो देखा जाएगा कि किन औरतों में इसकी क्षमता है, कितनी औरतें इसमें उठ-खड़ी होती हैं। कभी-कभी हमने देखा है कि ऐसी ही जगहों से जहां पर औरतों को इतना कुचला गया है, बड़े-बड़े स्थानों में औरतें उठ खड़ी हुई हैं। पर हमको उनकी मदद करनी होगी, उनको हमें देखना होगा। क्योंकि जो हो रहा है वो अपने समाज के लिए बहुत हानिकारक है, और बड़ी दुष्टता की निशानी है। उस तरफ हमारा ध्यान ही नहीं है, पता नहीं कैसे?  उधर ध्यान देना बहुत जरूरी है। और जो ये औरतों की तरफ हमारा, कहना चाहिए कि, उनके लिए जो हमारे दिल में हृदय में जो श्रद्धा होनी चाहिए वो नहीं है, बिल्कुल नहीं है। और हम बुरी तरह से उनको सताते भी हैं, पीटते भी हैं, बात-बात में मारते भी हैं।  

ऐसी-ऐसी मेरे पास कहानियाँ हैं कि मैं उनको अभी गर सुनाऊं तो आप सब रो पड़ियेगा। मैं बहुत रो चुकी हूँ अब चाहती हूँ कि कुछ न कुछ मार्ग ढूंढा जाए और इसलिए यह छोटा सा ये प्रयास किया है। इसको बढ़ा भी सकते हैं बाद में और फिर जो यहाँ से जो औरतें ठीक हो कर जायेंगी, जो यहाँ से कहना चाहिए कि परिपक्कव हो के जायेंगी, परिपक्व हो कर जायेंगी, वो कुछ अपनी जिन्दगी में करेंगी इतना ही नहीं वो अपने को संभाल सकती हैं। अपने बच्चों को भी संभाल सकती हैं और बाइज्जत अपनी जिन्दगी निभा सकती हैं। ये बहुत जरूरी है उनको कितना भी आप शिक्षण दीजिए, कुछ दीजिए, घर में उनकी अगर इज्जत होती नहीं तो वो क्या करेंगी बेचारी। उनकी पढ़ाई-लिखाई की यदि इज्जत अगर नहीं होती तो वह क्या करेगी?  इसलिए कोशिश यही करनी है कि इनको इस लायक बना दिया जाए, इन औरतों में यह आ जाए हुनर कि वो स्वाभिमान के साथ अपनी जिन्दगी काट सकें। वो भी इन्सान हैं, वो कोई जानवर तो नहीं हैं। वो भी इन्सान हैं और इन्सान- की पदवी उनको देना यह नितान्त आवश्यक बात है। अगर हम ये बात नहीं समझेंगे, पहले तो अपने घर-द्वार से शुरु करें, वहीं से देखिये कि कैसे क्या क्या चल रहा है। हमने तो बहुत-बहुत नज़दीकी तरीके से देखा है और सिवाए रोने के और कोई मार्ग नहीं था।  

मैं जान करके हिन्दी में बोल रही हूँ क्योंकि परदेसी लोग हैं इनके सामने अपने देश की औरतों की निन्दा कैसे करें?  इन लोगों को तो अपने  देश के प्रति बहुत अभिमान है। जब भी आते हैं तो पहले सर को जमीन में छू करके और अभिनन्दन करते हैं। इतना मानते हैं कि मैं आपसे बता नहीं सकती,  मैंने इनको कभी नहीं कहा। अपने ही विचार से, अपने ही श्रद्धा से ये समझते हैं कि ये तो नन्दन वन है, और उनको अभी तक यहाँ की दुर्दशा का पता नहीं है। इसलिए मैं नहीं चाहती कि इन  लोगों को बताया जाये। अपने देश की बुराई करने में क्या रखा है?  पर जो बुराई है उसको निकालना चाहिए, उसको हटाना चाहिए, उसको एकदम साफ़ कर देना चाहिए।  यही बात मैं आप सबसे कह रही हूँ। वहां औरतों का मान होने का कोई विशेष कारण तो है नहीं, पर वहाँ के कायदे-कानून ऐसे बन गए थे कि कोई भी औरत वो कहीं पड़ी हो, नई हो, कैसी भी हो,  उसकी बेइज्ज़ती नहीं होती। इसलिए हमें भी चाहिए कि हम भी समझें कि ये बहुत बड़ी बात है कि हम भी अपनी औरतों का मान करें और उनके प्रति श्रद्धा रखें। हमने तो इतनी भयंकर चीज़ें देखी हैं कि विश्वास नहीं होता कि कोई इन्सान दूसरे इन्सान को इस तरह से छल सकता है, सता सकता है परेशान कर सकता है, एक अजीब ही तरह की गुलामी है। हम तो अंग्रेज़ों की गुलामी से तो छुटकारा पा गए लेकिन हमारे समाज में जो इस तरह की गुलामी है उससे छुटकारा पाना बहुत जरूरी है।  

हमारे देश की महिलाएं, मेरे ख्याल से कम से कम 70 फीसदी हैं और बाकी आदमी लोग हैं, इतना होते हुए भी आदमियों में बहुत घमंड है। अपने को पता नहीं क्या समझते हैं और सोचते हैं कि हम चाहे जो भी कर ले सब मामला ठीक हो जाएगा, ऐसा नहीं है। एक औरत भी स्त्री है एक समाज का बड़ा भारी घटक है। उनके साथ जो भी आप ज्यादती करिएगा उसका फल आपको और आपके बच्चों को भोगना ही पड़ेगा।  

अब हम लोग देखते हैं कि हमारे बच्चे भी खराब हो रहे हैं क्योंकि उन पे नियंत्रण कौन करें?  माँ को तो कोई अधिकार नहीं है और बाप को फुर्सत नहीं है, तो उन बच्चों को ठीक कौन करेगा?  और कौन देखेगा उनको?  ये तो घर-घर की कहानी है। मैंने तो देखा है कि यू.पी में देखिये कि कॉलेज में जाने वाले लड़के दिन-दहाड़े, दिन-दहाड़े कॉलेज से छुट्टी पा करके और किसी भी रेलगाड़ी पे चढ़ जाएगें और बहां लूट- खसोट करेंगे और उनकी माँ लोग करेंगी क्या?  वो तो कुछ बोल नहीं सकती। उनको तो कोई सुनता नहीं है। इस चीज़ को बदलना चाहिुए और अपने घर की जो औरतें हैं उनके सामाजिक व्यवस्था उसकी उन्नति करनी चाहिए। उसकी ओर विचार करना चाहिए, वो अपने घर में है जब वहां से शुरू होगा तो और भी जगह हो जाएगा। और मुझे इसके लिए नितान्त-नितान्त तकलीफ होती रही है।  

हम तो क्या बताएं आपसे, (..अष्पष्ट) सब स्वभाव से ही बेकार हैं सहन नहीं होता है। जब यह, विल्डिंग बनने को हुई, हमने कहा कुछ भी करो, पैसा-वैसा हम दे देंगे, पर यह विल्डिंग बनाओ किसी तरह से। और जब यह विल्डिंग बन गई तो मुझे बड़ी खुशी हुई। कम से कम एक चीज़ ऐसी बनी है, ऐसी एक चीज बन गई कि जिससे औरतों के तरफ ध्यान आकर्षित होगा। और लोग उनको कुछ तो उनको मुहब्बत से इज्जत से रखेंगे। यह दुर्दशा मुझे नए तरीके से क्या बताना है, जो है सो है। पर आप लोग अपने व्यक्तिगत जीवन में देखें कि आपके यहाँ औरतों का क्या हाल है। आपकी माँ, बहन उनका क्या हाल है। और उसके बाद समाज की ओर दृष्टि करें। ये ठीक हो जाने से ही आपका देश बहुत उन्तति पे पहुँच जाएगा, बहुत ऊँचा उठ जाएगा। जहाँ पर औरत निर्देश करती है, और संभालती हैं  वहाँ-वहाँ वड़े महान-महान लोग हो गए।  

पर यहाँ जिस तरह से घटित हो रहा है, इस छोटे से प्रयास से आशा है, मुझे आशा है, कि कुछ तो हालात ठीक होंगें। और इतने दिन से मैं जिस चीज़ के लिए रोती रही हूँ और परेशान थी, उसके ओर सबका ध्यान जाए और सब लोग उस ओर देखें। सहजयोग से आप आत्मा को प्राप्त होते हैं, ठीक है आत्मा को जानते हैं।  पर सबके तरफ आपकी जो दृष्टि है उसमें करुणा होनी चाहिए और आत्मा को प्राप्त करके आपके अन्दर करुणा नहीं हुई तो क्या फायदा है? करुणा होनी चाहिए। और उस करुणा में आप देखिए, चारों तरफ आप देखकर परेशान हो जाएंगे कि ये मॉएं और बहने किस दुष्वक्र में फंस गई हैं। इसके लिए आपसे विनती है मुझे कि आप आस-पास आंख घुमा कर देखिए, घर-बाहर देखिए। और औरतों की जो स्थिति बनाई हुई है उसे व्यवस्थित करने का प्रयत्न करें। हमने तो एक छोटा सा प्रयास किया है पर आप लोग बहुत कुछ कर सकते हैं। और इसलिए मैं आप सबसे विनती करती हूँ कि जैसा आप मुझे प्यार करते हैं ऐसा ही अपनी माँ को और अपनी बहनों को प्यार  करें। अनन्त आशी्वाद है।