Public Program, Swadishthana Chakra New Delhi (भारत)

Public Program, New Delhi (India), 6 February 1981. [Hindi Transcript] आपने विनती की है कि हिंदी मे भाषण कीजिएगा बात ये है कि ये तय किया गया था कि इस जगह मे अंग्रेजी मे बातचीत करुँगी अ.. उसकी वजह ये है कि अभी तक हिन्दुस्तान मे अंग्रेजी मे मैंने कहीं भी बातचीत नहीं की और ये जो अतिथि लोग आयें है आज तक मेरा भाषण सुन नहीं पाए इसलिए इनसे कहा था कि यहाँ पर मे मे अंग्रेजी मे बातचीत करुँगी और जब मंदिरों मे आदि या मेरे ख्याल से दिल.. दिल्ली के विद्यापीठ मे भी जो भाषण होने वाले है वो हिंदी भाषा में ही होंगे इसलिए कृपया आप दूसरे भाषणों मे भी आएंगे तो मैं हिंदी मे बातचीत करुँगी आशा हैं आप लोग बुरा नहीं मानेंगे क्योंकि आतिथी है थोड़ा सा इनका भी कभी ख्याल करना चाहिए हालाँकि आप लोग सब थोडा-बहुत तो अंग्रेजी समझते है और मैं कोई ऐसी कठिन अंग्रेजी बोलती नहीं हूँ अगर आपको कोई उसमे प्रश्न हो तो मैं आपको बता दूंगी सिर्फ ये पांच ही लेक्चरस जो है ये मे अंग्रेजी मे देने वाली हूँ इसके लिए क्षमा कीजिएगा ……कल मैंने आपसे उन सूक्ष्म केंद्रों के बारे में बात की , जो हमारे अस्तित्व के भीतर मौजूद हैं। इसका ज्ञान हजारों वर्षों पहले यहाँ के कई भारतीयों को ज्ञात था, लेकिन उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया, दो प्रकार के लोग थे जो प्रकृति की उच्च शक्तियों के बारे में जानते थे। उनमें से एक ऐसे लोग थे जिन्होंने सोचा था कि हम स्वयं Read More …

Public Program, Introduction to Mooladhara Chakra New Delhi (भारत)

Public Program, India, Delhi, 05-02-1981 आज मैं सहज योग और कुंडलिनी जागृति के बारे में सामान्य रूप से बात करने जा रहीं हूँ। सहज, जैसा कि आप जानते हैं, का अर्थ है,’सह’ साथ और ‘जा’आपके साथ पैदा हुआ। लेकिन शायद लोगों को एहसास नहीं है सहज का वास्तव में क्या अर्थ है। यह स्वतःस्फूर्त है लेकिन क्या है स्वतःस्फूर्त? स्वतःस्फूर्त वह नहीं है – मान लीजिए मैं कार में जा रहीं हूँ और अचानक कोई मिल जाए तो मैं कहूँ, ‘मैं अनायास/सहज ही उस व्यक्ति से मिल गई।’ सहज का अर्थ है, वह घटित होना जो कि एक जीवंत घटना है। यह एक जीवित वस्तु होनी चाहिए जो कि स्वतःस्फूर्त है; यह बहुत ही रहस्यमय शब्द है जिसे समझाया नहीं जा सकता और जो, इस बारे में बिना किसी ज्ञप्ति के घटित होता है, जो मनुष्य के लिए समझना संभव नहीं है, यही सहज है। सहज का अर्थ हो सकता है, यह बहुत सरल है, बहुत आसान है – यह है, इसे होना ही है। उदाहरण के लिए, ईश्वर ने हमें ये आँखें दीं हैं। ये अद्भुत आँखें जो मनुष्य को मिलीं हैं, ऐसा नहीं कि वे रंग देख सकतीं हैं वरन इसकी सराहना भी कर सकतीं हैं। भगवान ने उन्हें नाक दी है, जो इतनी अच्छी तरह से विकसित है कि यह गंदगी को महसूस कर सकती है – जानवर इसे महसूस नहीं कर सकते। आप एक मानव बन गए हैं, मैं एक मानव बन गईं हूँ, और हर कोई इंसान बन गया है – बन गया है – Read More …

You are to become Prophets, Guru Nanak’s Birthday Puja Temple of All Faiths, Hampstead (England)

                  “तुम्हें पैगंबर बनना है”  गुरु नानक जयंती पूजा   हैम्पस्टेड मंदिर, लंदन (यूके), २३ नवंबर १९८०। आज गुरु नानक के जन्मदिन का विशेष दिन है। हमने एक गुरु पूजा मनाई है और जैसा कि आप जानते हैं कि गुरु नानक भी आदि गुरु के अवतार थे। वही आत्मा इस पृथ्वी पर आई। और वह वही है जिसने मोहम्मद के काम को फिर से स्थापित करने की कोशिश की। मोहम्मद उसी आत्मा के अवतार थे – आदि गुरु। वह इस धरती पर धर्म की स्थापना के लिए आए थे। इस्लाम उस धर्म का नाम है, हर सहज योगी का, हर ईसाई का, हर हिंदू का धर्म है। हम सभी एक धर्म के हैं जो सामूहिकता की नई धारणा के प्रति हमारी जागरूकता का विस्तार करने में विश्वास करता है। मानव स्तर से उच्च स्तर तक जहां आप दिव्य शक्ति को अनुभव कर सकते हैं और अभिव्यक्त कर सकते हैं। यही वह धर्म है जिसका हम पालन कर रहे हैं। इस धरती पर सभी धर्मों की स्थापना साधकों को उत्पन्न करने के लिए हुई है। आप साधक हैं। आप “भगवान के व्यक्ति ” हैं। अब तुम सबको पैगंबर बनना है। और पैगंबर बनने के लिए आज का सहज योग महायोग का रूप ले चुका है। आप सभी को पैगंबर बनना है। पैगंबरों के पास दो विशेष गुण हैं, जैसा कि सभी पैगंबरों के पास थे: सबसे पहले, उन्हें आध्यात्मिक शिक्षा के बारे में बात करनी होगी। उन सभी ने ऐसा किया। मोहम्मद साहब ने किया, राजा जनक ने किया, नानक ने किया, मूसा Read More …

Diwali Puja Temple of All Faiths, Hampstead (England)

(श्री दीवाली पूजा, हॅम्पस्टेड (लंदन), 9 नवम्बर 1980) आपको मालूम होना चाहिये कि आप एक ही परिवार के सदस्य हैं। किसी को भी युद्ध नहीं करना है, किसी को भी एक दूसरे से महान नहीं बनना है, किसी को भी दूसरे में सुधार लाने की आवश्यकता नहीं है, किसी को भी यह नहीं कहना है कि मैं कुछ अनोखा ही व्यक्ति हूं। आप सबको एक साथ मिलकर कार्य करना है और साथ में कार्य करते हुये प्रेम व मित्रता से समस्याओं का समाधान ढूंढ निकालना है। कोई भी जो स्वयं को अन्य लोगों से अलग कर कुछ और ही बनने का प्रयास करता है वह बाहर (सहज से) चला जाता है और सहज के लिये वह व्यक्ति एकदम किसी काम का नहीं है …. इस तरह का व्यक्ति एकदम बेकार है… जो सहज परिवार से बाहर जाने का प्रयास करता है। आप सबको एक दूसरे का साथ देना है, एक दूसरे की सहायता करनी है, किसी पर चिल्लाना नहीं है और एक दूसरे पर क्रोध भी नहीं करना है…. एक दूसरे पर भरोसा रखना है, उनके दोष नहीं देखने हैं और एक दूसरे को आदर, प्रेम व सम्मान से देखना है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण चीज है कि सहजयोगी ये नहीं समझते हैं कि आप सब संत है और आपको सबका सम्मान करना है। उदा0 के लिये आपको किसी पर भी संदेह नहीं करना है … बिल्कुल नहीं … सहज में इसकी बिल्कुल भी आज्ञा नहीं है और यह बात बिल्कुल निषिद्ध है। सावधान रहें…. मैं तो ये भी कहूंगी कि Read More …

10th Day of Navaratri Puja & Havan, Just surrender Temple of All Faiths, Hampstead (England)

                                                   नवरात्रि पूजा  हैम्पस्टेड, लंदन (यूके), 19 अक्टूबर 1980। तो आपने जीवन में आज के दिन देवी के महत्व के बारे में तो सुना ही होगा। और आज रावण मारा गया और इस तरह जश्न मनाया गया। “इतिहास अपने आप को दोहराता है।” जैसा कि आप अच्छी तरह जानते हैं कि उस समय जिन शैतानी ताकतों का सामना करना पड़ा था, वे सभी वापस रंगमंच पर वापस आ गई हैं और उन्हें पराजित होना है। आधुनिक समय की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इन शैतानी ताकतों ने बहुत सूक्ष्म रूप धारण कर लिया है और वे आपके मानस में और आपके अहंकार में प्रवेश कर गई हैं। और तुम संत हो, तुम भक्त हो, तुम देवी के भक्त हो। यह बहुत ही नाजुक स्थिति है। जब भ्रम होता है, जब संतों पर हमला होता है, तो हमलावर को हटाया जा सकता है, लेकिन संत ही नकारात्मक शक्तियों से मेलजोल में हो जाता है या भ्रमित हो जाता है, इस वजह से उसे प्रकाश दिखाई देना बहुत मुश्किल होता है। और आपने इस स्थिति को बहुत अच्छे से देखा है। और आप जितने सूक्ष्म विकसित होते हो, वे भी उतने ही सूक्ष्म होते गए। और वे तुम्हें ऐसे विचार देने लगते हैं जो इतने नकारात्मक होते हैं, लेकिन तुम उन्हें देख नहीं पाते। इसलिए आज की समस्या बहुत नाजुक है। कोई पूर्ण संत नहीं हैं और कोई पूर्ण बुरे लोग नहीं हैं। ऐसा मिश्रण, एक भ्रम, यही कलियुग है, ये आधुनिक समय है। इनसे छुटकारा पाने का एक ही उपाय है Read More …

How To Know Where You Are Chelsham Road Ashram, London (England)

                      सलाह, कैसे पता करें कि आप कहां हैं       चेल्सीम रोड आश्रम, क्लैफम, लंदन (यूके) , 7 सितंबर 1980 … तस्वीरों के सम्मुख चैतन्य, जो की, बहुत महत्वपूर्ण है। जहां तक परमात्मा का संबंध है, कैसे जाने की आपकी स्थिति कहाँ है। यह मुख्य बात है, क्या ऐसा नहीं है? हम इसी के लिए यहां हैं: ईश्वर से एकाकारिता के लिए, उसकी शक्ति के साथ एकाकार  होने के लिए, उसका उपकरण बनने के लिए। , हमें इसे समझने की कोशिश करनी चाहिए की हमारे कनेक्शन कैसे ढीले हो जाते हैं, और हम इसे कैसे ठीक कर सकते हैं। सबसे पहले, हमें समझना चाहिए कि आपको इसके बारे में सोचना नहीं हैं। यदि आप इसके बारे में बहुत अधिक सोचने लगते हैं, तो आपने देखा है कि आप कुछ अजीब करते हैं जो आपको नहीं करना चाहिए था। इसके बारे में बहुत अधिक योजना न करें, क्योंकि, इस देश में, यदि लोग योजना बनाना शुरू करते हैं, तो वे सभी पूर्ण नियोजन कर लेंगे। उदाहरण के लिए, यदि उन्हें टहलने जाना होगा: तब फिर उनके पास उचित जूते होना चाहिए, उनके पास उचित छड़ें होनी चाहिए, उनके पास यह होना चाहिए, उनके पास वह होना चाहिए, और उनके पास दस्ताने होना चाहिए, और उनके पास सब कुछ होना चाहिए, और वे कभी बाहर नहीं जाएंगे ! योजना के साथ वे बहुत थक गए हैं। (हँसी) उसी तरह, यह सहज योग के साथ होता है। सहज योग के साथ भी ऐसा ही होता है, मैंने देखा है कि, यद्यपि मैंने आपसे Read More …

The Guru Principle Caxton Hall, London (England)

“द गुरु प्रिंसिपल”, कॉक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 28 जुलाई 1980 कल मैंने आपको भवसागर, धर्म के बारे में बताया था जिसे मनुष्य को स्थापित करना है। आधुनिक समय में लोगों ने अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग उस सीमा तक किया है, वो बहुत आगे चले गए हैं, इस अति तक या उस अति तक। उन्होंने अपने केंद्रीय मार्ग को त्याग दिया है और स्वयं को स्वीकार और पहचान लिया है इस प्रकार के, प्रत्येक चीज़ के बारे में अतिशय विचारों के साथ, कि लोगों को यह समझाना कठिन है कि उन्होंने अपना मार्ग खो दिया है। कोई भी अतिशयता अनुचित हैं। संतुलन वह मार्ग है जिससे हम वास्तव में समस्या का समाधान करते हैं। किन्तु मानव जाति इस प्रकार की है कि प्रत्येक बहुत तेज़ी से दौड़ना आरंभ कर देता है, आप देखें और इसमें एक प्रतियोगिता निर्धारित है: कौन पहले नरक में जाता है।  यह मात्र एक दिशा में नही है, आप किसी भी दिशा को ले सकते हैं, किन्तु ये सभी दिशाएं रैखिक हैं। वो सीधे जाते है और घूम जाते हैं और नीचे जाते हैं – उस प्रकार का कोई भी संचलन। उदाहरण के लिए मानो, हमारा औद्योगिक विकास। हमने अपने औद्योगिक विकास का आरंभ सम्पूर्ण को समझे बिना किया है, सम्पूर्ण संसार, कि सम्पूर्ण संसार ईश्वर द्वारा बनाया गया था, एक भाग नहीं, एक राष्ट्र। संपूर्ण के साथ संबंध को समझे बिना, जब हम औद्योगिक रूप से आगे बढ़ना आरंभ करते हैं, तब हमने उद्योगों का निर्माण किया और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए हमें अन्य उद्योगों Read More …

Guru Puja, The Statutes of the Lord Temple of All Faiths, Hampstead (England)

” परमात्मा द्वारा निर्देशित धर्म “, गुरु पूर्णिमा ,लंदन २७ जुलाई १९८०        आज आपने अपने गुरु की पूजा का आयोजन किया है जो आपकी माँ है। शायद आप बहुत ही अद्भुत लोग हैं जिनकी गुरु एक माँ हैं। यह पूजा क्यों आयोजित की गयी है? आपको यह जानना होगा कि यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि प्रत्येक शिष्य गुरु की पूजा करे, लेकिन गुरु को एक वास्तविक गुरु होना चाहिए, न कि वह जो केवल शिष्यों का शोषण कर रहा है और जो परमात्मा द्वारा अधिकृत नहीं है।        इस पूजा का आयोजन इसलिए किया गया है क्योंकि आप लोगों को परमात्मा द्वारा निर्देशित धर्म की स्थापना के लिए चुना गया है। आपको बताया गया है कि मानव के क्या धर्म हैं। वैसे इसके लिए आपको एक गुरु की आवश्यकता नहीं है। आप किसी भी पुस्तक को पढ़कर जान सकते हैं कि परमात्मा द्वारा निर्देशित धर्म क्या हैं। परंतु गुरु को यह देखना चाहिए कि आप इनका पालन करें।  इन धर्मों का पालन करना होगा, अपने जीवन में उतारना होगा, जो एक कठिन चीज़ है और बिना गुरु के, सुधारक शक्ति के, इन धर्मों का पालन करना बहुत कठिन है क्योंकि मानव चेतना और परमात्मा की चेतना में एक अंतर है, बहुत बड़ा अंतर। और इस अंतर की पूर्ति एक गुरु ही कर सकते हैं जो स्वयं संपूर्ण है। आज पूर्णिमा का दिन है। “पूर्णिमा” का अर्थ है पूर्ण चंद्रमा। गुरु को एक संपूर्ण व्यक्तित्व होना चाहिए; इन धर्मों के विषय में बात करने के लिए और अपने शिष्यों को समझ के Read More …

The Meaning of Puja Pamela Bromley’s house, Brighton (England)

                                              “पूजा का अर्थ”  ब्राइटन (इंग्लैंड), 19 जुलाई 1980। अब पूजा के लिए यह समझना होगा कि बिना आत्म-बोध के पूजा का कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि आप अनन्य नहीं हैं। ऐसा है कि, आपको अपने पूरे के प्रति जागरूक होना होगा। कृष्ण द्वारा प्रतिपादित भक्ति का वर्णन है “अनन्य”। वे कहते हैं, “मैं तुम्हें अनन्य भक्ति दूंगा”, वे अनन्य भक्ति चाहते हैं, अर्थात जब दूसरा कोई नहीं हो, अर्थात जब हमें आत्मसाक्षात्कार हो जाता है।  अन्यथा वे कहते हैं “पुष्पम, फलम तोयुम” (भगवद गीता श्लोक 26) “एक फूल, एक फल और एक पानी: तुम जो कुछ भी मुझे देते हो, मैं स्वीकार करता हूं” लेकिन जब देने की बात आती है, तो वे कहते हैं, “तुम्हें मेरे पास अनन्य भक्ति से आना होगा,” जिसका अर्थ है: जब तुम मेरे साथ एक हो गए हो, ऐसी तुम्हें भक्ति करनी चाहिए, उससे पहले नहीं। इससे पहले, आप जुड़े नहीं हैं।  अब पूजा बाईं ओर का प्रक्षेपण है। यह दायें पक्ष की अति का निष्प्रभावीकरण है, । विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो बहुत दाहिने पक्ष वाले हैं, ऐसा वातावरण जो बहुत दाहिने पक्ष का है, पूजा उनके लिए आदर्श है। यह भक्ति है, भक्ति है… जो आप प्रोजेक्ट करते हैं। अब वास्तव में क्या होता है जब आप इस पूजा को प्रक्षेपित करते हैं?  यह पता चला है, और अब जैसा कि मैं आपको बता रही हूं कि पहले आपको अपने भीतर सोए हुए देवताओं को उनकी पूजा कर के जगाना होगा। लेकिन चूंकि ये देवता, मूल देवता, मेरे साथ Read More …

Confusion, A Sign Of Modern Times Caxton Hall, London (England)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी ‘विक्षेप, आधुनिक काल का लक्षण’ सार्वजनिक कार्यक्रम,  कैक्सटन हॉल,लंदन 14 जुलाई, 1980 आधुनिक काल में आज के समय में हमारा सामना (कन्फ्यूजन) विक्षेपों से है। ये आधुनिक काल का लक्षण है। साथ ही, सत्य को खोजने की सामूहिक तीव्र जिज्ञासा प्रकट हो रही है। ये सिर्फ एक व्यक्ति नहीं है जो ऐसा अनुभव करता है, ये सिर्फ आठ और दस लोग नहीं हैं जो ऐसा अनुभव करते हैं, परंतु जनसमूह के जनसमूह, बहुताय अनुभव कर रहे हैं, कि उनको एक उत्तर खोजना होगा। आप को पता करना होगा कि आप यहां क्यों हैं। आप को जानना होगा, आप कौन हैं। आपको अपनी हितकारिता का पता लगाना है। आपको संपूर्णता का पता लगाना है। ये एक बहुत बड़ी गतिविधि एक बहुत ही सूक्ष्म तरीके से होती है, यानी जन समूह को इस खोज की ओर ले जाना। परंतु शायद हमें इस बारे में कोई अंदाजा नहीं, कि क्या माहौल है जिस में हम जन्मे हैं, क्या परिस्थिति है, पूरा मंच कैसे बिछाया गया है! हमें कुछ नही पता! जैसा कि हमने खुद को इंसान के रूप में बिना उसके महत्व को समझे स्वीकार कर लिया है। हम हर चीज उपलब्ध होने के कारण उस का महत्व नहीं समझते। हम मनुष्य रूप में अपनी उत्क्रांति के द्वारा जन्मे हैं, परंतु हम विचार भी नहीं करना चाहते, कि हम अमीबा से इस उच्चतर अवस्था तक कैसे विकसित हुए! सारे  ‘क्यों’ हम बंद कर देते हैं! जो कुछ भी है हम इन आंखों के द्वारा, इन कानों के Read More …

What is Happening In Other Lokas? Caxton Hall, London (England)

                                 अन्य लोकों में क्या हो रहा है कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड, 30 जून 1980। आज, मुझे आपको यह बताने में कोई आपत्ति नहीं है कि अन्य लोकों में क्या हो रहा है, अन्य लोक जो हम नहीं देखते हैं, जिसके बारे में हमें जानकारी नहीं है। यह आपको थोड़ा डरा सकता है, लेकिन अब समय आ गया है कि हम यह जानें कि संपूर्ण के संबंध में हमें कैसे रखा गया है, परमेश्वर की क्या योजनाएँ हैं, और हम उन्हें कैसे पूरा करने जा रहे हैं। अब यहाँ आप में से अधिकांश आत्मसाक्षात्कारी है। आप में से कुछ पहली बार आए हैं; आपको भी आपका आत्मसाक्षात्कार होगा। लेकिन सामान्य बात यह है कि आप सभी मुमुक्षु हैं, ईश्वर के साधक हैं, शांति के खोजी हैं, प्रेम पिपासु हैं, यह एक सामान्य बात है। लेकिन यह इच्छा आपके पास आपके लिए नहीं आई है, किसी व्यक्तिगत उत्थान के लिए या किन्ही ऐसी उपलब्धियों द्वारा हासिल स्थान के लिए जहां से कोई वापसी नहीं है, बल्कि यह अंतिम निर्णय है जिसका सभी मनुष्यों को सामना करना होगा। उन्हें इससे गुजरना होगा और अपने अंतिम स्थान को प्राप्त करने के लिए, ईश्वर के राज्य में अपना स्थान प्राप्त करना होगा। आज तुम मेरे सामने बैठे हो, तुम मेरे साथ पहले भी रहे हो और बहुत पहले भी। लेकिन आज विशेष रूप से जब आप मेरे साथ हैं, तो आप इसका सामना करने और स्वयं के लिए सुनिश्चित करने यहां आए हैं कि आप सत्य, प्रेम, ईश्वर का आशीर्वाद धारण करने में सक्षम हों। Read More …

Guru Tattwa Caxton Hall, London (England)

कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 23 जून 1980। सार्वजनिक कार्यक्रम (लघु) और सहज योगियों से बात यह एक तथ्य है। यह एक ऐसी चीज है जिसे आप देख सकते हैं। यह एक वास्तविकीकरण है। और हम अपनी कल्पनाओं में, अपने मतिभ्रम और पथभ्रष्टता में इस कदर खोए हुए हैं कि हम विश्वास नहीं कर सकते कि ईश्वर के बारे में कुछ तथ्यात्मक हो सकता है। लेकिन अगर ईश्वर एक तथ्य है, तो यह घटना भी हमारे भीतर होनी ही है, अन्यथा उसका कोई अस्तित्व नहीं है। अगर कोई नास्तिक है तो एक तरह से बेहतर है। क्योंकि उन्होंने आंखों पर पट्टी बांधकर कुछ भी स्वीकार नहीं किया है। लेकिन अगर किसी ने खुले दिमाग से ईश्वर को स्वीकार कर लिया है और किन्ही अटकलो का पालन नहीं किया है, तो यह और भी अच्छा है। लेकिन अगर आप इस तरह की किसी भी अट्कल का पालन करते हैं, कि भगवान होना चाहिए – कुछ लोगों ने मुझसे कहा, “हां मां। भगवान मेरी बहुत मदद करते हैं।” मैंने कहा, “सच में? वह आपकी कैसे मदद करता है?” तो वह महिला मुझसे कहती है “मैं सुबह उठी और मैंने भगवान से प्रार्थना की, ‘हे भगवान, मेरे बेटे की देखभाल करो!”, वह बस इतना ही सोच सकती थी! कि भगवान केवल उसके बेटे की देखभाल में व्यस्त हो, जैसे उनके पास और कोई काम नहीं है! “तो फिर क्या हुआ?” “तब मेरा बेटा हवाई जहाज से आ रहा था और विमान में कुछ परेशानी हुई, लेकिन वह बच गया। भगवान ने वहां मेरी मदद Read More …

Seeking That Which Lies Beyond Stratford, London (England)

                                    जो परे है उसकी चाहत  सार्वजनिक कार्यक्रम  स्ट्रैटफ़ोर्ड, ईस्ट लंदन, लंदन (यूके), १३ जून १९८० वे झूठे नहीं हो सकते थे। वे हमसे झूठ नहीं बोल सकते थे। उदाहरण के लिए आइए हम सुकरात का मामला लें। सुकरात ने हमें बताया है कि हमें दूसरे जीवन के लिए शरीर छोड़ना है और जब हम इस दुनिया में रहते हैं, जब हम इस धरती पर इंसान के रूप में रहते हैं, तो हमें खुद को इस तरह रखना होगा कि हम अपने अस्तित्व को खराब न करें, ऐसा है कि हमारे ही भीतर जीवन की एक क्षमता है, एक ऐसा गुण जो हमें मनुष्य बनाता है, जिससे हम मनुष्य कहला सकते हैं। इंसान और जानवर में क्या अंतर है? जैसा कि औरों ने भी यही कहा है कि हम मनुष्य हैं, चूँकि हम मनुष्य हैं, हमें मूल्यों की एक निश्चित मात्रा का आधार रखना चाहिए। सुकरात के बाद हमारे पास अब्राहम और मूसा जैसे लोग थे, उन्होंने भी यही बात कही। उन्होंने जो कहा और सुकरात ने जो कहा, उसमें बहुत अंतर नहीं है। सुकरात ने एक और बात कही थी, कि हमारे भीतर देवता हैं और हमें उस   देवत्व का ध्यान रखना है, हमें उन्हें प्रसन्न रखना है। मूसा को जब दस आज्ञाएँ मिलीं, तो वास्तव में उन्होने वे दस विधियाँ खोजीं, जिनके द्वारा वह हमें बता रहे थे कि हम उन दस आज्ञाओं का पालन करके मनुष्य के रूप में अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम हों। गुण-धर्म का अर्थ है जिसे हम अपने भीतर धारण करते हैं। Read More …

The Subtlety Within Caxton Hall, London (England)

                                          आतंरिक कुशाग्रता   कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 9 जून 1980 एक अन्य दिन आश्रम में, मैं आपको हमारी कुशग्राताओं के बारे में बता रही थी, जो कुशाग्रताएँ हमारे पास पहले से हैं, जिन्हें हम नहीं समझते हैं। हमारे अवचेतन मन से हो सकता है, हमारे अग्र चेतन मन से हो सकती है, कहीं से भी हो सकती है जो हमारे लिए अज्ञात है; लेकिन हमें उन कुशाग्रताओं की परवाह करना चाहिए जो हमें हमारे सार्वभौमिक अस्तित्व की ओर ले जाती हैं। हमने कभी-कभी ऐसे लोगों के बारे में सुना है जिन्हें संकेत मिलता है। जैसे कोई कहता है, “मुझे यह घर खरीदना चाहिए, मुझे एक सुझाव प्राप्त होता कि, मुझे यह खरीद लेना चाहिए।” या कभी-कभी लोग कहते हैं कि, “मैं हमेशा कुछ सुनता हूं, कोई मुझे बताता है कि ऐसा नहीं करना चाहिए।” लेकिन इस तरह के सभी सुझावों के बारे में आकलन किया जाना चाहिए कि वे आपको कुछ परे के बारे में सुझाव देते हैं अथवा कुछ सांसारिक जीवन से सम्बंधित, जैसे की,घर खरीदना। परमात्मा की इस बात में कोई अधिक दिलचस्पी नहीं है कि, आप कौन सा  घर खरीदते हैं, या आप एक दौड़ में कितना पैसा कमाते हैं: उन्हें नहीं है ! क्योंकि यह परमात्मा के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। कोई व्यक्ति यह समझ सकता है, क्या ऐसा नहीं है।  यह भी कि ईश्वर आपको किसी के विरुद्ध कान में यह बताने में दिलचस्पी नहीं रखते है कि, “इस आदमी से सावधान रहें, वह एक खतरनाक आदमी है!” क्योकि, अगर कोई आपको शारीरिक रूप से नुकसान Read More …

Subtlety London (England)

                                                 “कुशाग्रता”  डॉलिस हिल आश्रम, लंदन (यूके), 8 जून 1980। यह केवल उन लोगों के लिए संभव है जिनके स्वभाव में,  इस खंडित दुनिया में सहज योग के मूल्य को समझने,  सहज योग के मूल्यों को धारण करने,  और इसे बनाए रखने के लिए कुशाग्रता हैं। दुनिया खंडित है और हर कोई अपने स्वयं के विनाश की ओर काम कर रहा है। लोग जिन सारे मूल्यों का अनुसरण करते हैं वे सतही मूल्य हैं। अधिकांश मूल्य बिल्कुल स्थूल हैं। तो सहज योग के लिए हमारे पास ऐसे लोग होना चाहिए हैं जो अपनी कुशाग्रता से न्याय करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे कुशाग्र लोग हमेशा सांसारिक भीड़ से थोड़ा अलग होते हैं; और ये लोग हमेशा अपने आप को इस तरह से व्यक्त करते हैं कि उनका अस्तित्व ही यह बताता है कि वे पूरी दुनिया को शक्ति प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं। आप ऐसा महसूस कर सकते हैं। जो लोग महसूस कर सकते हैं कि हमारे भीतर एक तत्व है जो हमें दूसरों की मूर्खता पर हँसाता है, ऐसे लोग जो शायद खुद की दृष्टी में बहुत गंभीरता से कुछ चीजों को करते लग रहे हों। लेकिन हमें ऐसा लगता है जैसे कि यह उनके जीवन को बर्बाद करने वाली मूर्खता है। ऐसी एक क्षमता अलग ही लोगों की होती है। पहले ये लोग, उनके अंदर ऐसी क्षमता और गतिशीलता रखने वाले, सहज योग में जमेंगे, न कि सामान्य सतही प्रकार के। लेकिन चूँकि हमारे दरवाजे सभी के लिए खुले हैं, क्योंकि कोई शुल्क या कुछ भी Read More …

Why Are We Here? Hampstead Friends Meeting House, Hampstead (England)

                    [Hindi translation from English] हम यहाँ क्यों है?   हैम्पस्टेड, लंदन (यूके), 6 जून 1980 आप की बहुत मेहरबानी है की आप ने मुझे हेम्पस्टेड में आमंत्रित किया है, जो मैं पहले भी कई बार आ चुकी हूँ। और मैंने हमेशा महसूस किया कि इस खूबसूरत क्षेत्र में रहने वाले लोगों के ईश्वर के बारे में सुंदर विचार होना चाहिए, क्योंकि आप प्रकृति में, प्रकृति की सुंदरता में ईश्वर के प्रभाव को बेहतर देखते हैं। और फिर आप सोचने लगते हैं कि किस प्रकार ईश्वर ने हमें आनंद देने के लिए इस खूबसूरत दुनिया को  बनाया है। लेकिन इतनी सारी चीजें हम हलके में ले लेते हैं, उदाहरण के लिए, स्वयम हमारा मानव जीवन। हमने इसे यूँ ही पा लिया ऐसा मान लिया है। हमें एक सुंदर शरीर, बहुत सुंदर व्यक्तित्व मिला है।आपने जागरूकता पाई है जो कि किसी भी अन्य बनाई गई चीज़ की तुलना में बहुत अधिक है। उदाहरण के लिए, एक जानवर कहीं भी किसी भी सुंदरता को नहीं समझता है। अगर कोई गंदी या भद्दी चीज है या किसी चीज से अजीब सी बदबू आ रही है तो कोई जानवर नहीं समझ सकते हैं। पशु स्वच्छता को नहीं समझते हैं, लेकिन मनुष्य ईश्वर द्वारा बहुत अच्छी तरह से बनाया गया है। वे इतने विकसित हैं कि वे इन सभी चीजों को महसूस कर सकते हैं, बहुत, जानवरों की तुलना में बहुत अधिक या किसी भी अन्य चीज को जो पहले कभी बनाई गई है। जागरूकता के इस बिंदु पर हम उस चीज़ के बारे में भी Read More …

Attention London (England)

                                    चित्त  डॉलिस हिल, लंदन (इंग्लैंड)  26 मई 1980  आज मैं आपसे चित्त के बारे में बात करने जा रही हूं: चित्त क्या है, चित्त की गतिविधि क्या है और हमारे चित्त के उत्थान की क्या विधि और तरीके हैं। इसे व्यापक तरीकों से रखें। ठीक है? लेकिन जब मैं ये सारी बातें कह रही हूं तो आपको पता होना चाहिए कि मैं आपसे व्यक्तिगत रूप से बात कर रही हूं – यह दूसरों के बारे में नहीं है। व्यक्ति हमेशा सबसे पहले ऐसा करता है, की जब मैं आपसे बात कर रही  होती हूं, तो आप यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि माताजी किस के बारे में बोल रही हैं! यह अपने चित्त को भटकाने का सबसे अच्छा तरीका है। यदि आप अपना चित्त स्वयं पर लगाऐ कि, “यह मेरे और मेरे लिए और केवल मेरे लिए है,” तो इसका प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि [ये मेरे शब्द] मंत्र हैं। परन्तु इस प्रकार इसे व्यर्थ कर दिया जाता है क्योंकि जो कुछ भी आपको दिया जाता है उसे आप उसे किसी दूसरे व्यक्ति पर डाल देते है। तो, आपके पास जो चित्त है,  वह वास्तविकता को जानने का एकमात्र तरीका है। आपका अपना चित्त महत्वपूर्ण है, न कि दूसरों का चित्त या दूसरों पर आपका चित्त! यह स्पष्ट रूप से समझा जाना चाहिए। यदि आप इस बात को समझ जाएँ कि पूरी चीज का उपभोग अपने चित्त के माध्यम से अपने उच्च अवस्था तक उत्थान के लिए आपके द्वारा किया जाना है,  तो, यह काम करेगा। अन्यथा, यह ऐसा हुआ Read More …

The Real Becoming, Seminar Old Arlesford Place, Arlesford (England)

                                               “वास्तविक बन जाना”  ओल्ड आर्लेसफोर्ड , नियर विनचेस्टर, हैम्पशायर, इंग्लैंड  18 मई, 1980 … इन सभी मिश्रणों के साथ, अब इसके बारे में सोचो। यह केवल इसलिए है क्योंकि मैंने तुम्हें जन्म दिया है। इससे पहले कोई नहीं कर सका था, मैं आपको बताती हूं। आप दूसरों का इलाज कर सकते हैं; आप सहज योग पर भाषण दे सकते हैं। आप अपनी समस्याओं को जान सकते हैं; आप अपने माता-पिता का इलाज कर सकते हैं। आप अपने खुद के परिवेश को ठीक कर सकते हैं। आप खुद को और दूसरों को साफ कर सकते हैं। केवल आत्मसाक्षात्कार के साथ यह शुरू होता है। यह सब एक साथ एक गठरी में है। यह पहली जागरूकता से जब यह केवल एक इच्छा मात्र थी से क्या छलांग है और यहां आपने सब कुछ शुरू किया। लेकिन ये सभी चीजें जो शुरुआत में जब आप इच्छुक थे, काफी मज़ेदार लग रही थीं,  आप में एक बहुत ही सूक्ष्म,सुंदर स्वरूप बना कर वे आप में आ जाती हैं। इस समय, आप अपने चक्रों, उनकी समस्याओं को महसूस करते हैं। आप फिर से उनका विश्लेषण करना शुरू करते हैं। पश्चिम में सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे विश्लेषण करना शुरू करते हैं। आप उन्हें एक केक देते हैं, वे इसका विश्लेषण करेंगे। उन्हें कुछ भी दें, वे इसका विश्लेषण करेंगे। उन्हें लगता है कि विश्लेषण सबसे बड़ी बात है और यह कि यह विश्लेषण व्यवसाय उनके लिए कितना दीवानापन है। यहाँ वे अपने आत्मसाक्षात्कार पर निर्भर हैं, दूसरी तरफ सब कुछ का विश्लेषण कर Read More …

Preparation for Becoming, Evening Seminar Old Arlesford Place, Arlesford (England)

                   बनने की तैयारी  ओल्ड आर्ल्सफोर्ड (इंग्लैंड) में शाम का सेमिनार,  17 मई 1980। बनने के लिए खुद का सामना करें। तब कुछ बनने की तैयारी की जाती है और समग्र रूप से, जब आप जानते हैं कि यह आपका अहंकार और प्रति-अहंकार है जो आप पर बोझ डाल रहा है, तो आपको उन्हें वाइब्रेशन की जागरूकता से जाँच लेना होगा। अब हमें दो तरह से चित्त देना होगा। पहले एक निरंतर चित्त है जो एक सहज योगी की दिनचर्या है, और दूसरा आपातकालीन चित्त है। मैं कहती रही हूं कि सभी सहज योगियों को अवश्य अपनी डायरी लिखना शुरू करना होगा: पहली, हर दिन के अनुभवों के साथ, यदि आप जानते हैं कि आपको एक डायरी लिखना है, तो आप अपने दिमाग को सतर्क रखेंगे, और दूसरी,जब भी आपको कोई विशेष विचार मिलेगा अतीत या भविष्य का, इसे भी संक्षेप में बताने के लिए। तो, इस तरह, आपके पास दो डायरी होनी चाहिए। अपने निरंतर चित्त के लिए, आपको कुछ निश्चित बिन्दुओं पर अपने दिमाग को स्थित करना होगा। पहला, जैसा कि मैंने कहा, कि अगर आप एक डायरी रखेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि आपको याद रखना है कि, क्या महत्वपूर्ण बातें हुई हैं। तो आपका चित्त सतर्क हो जाएगा और आप ऐसे बिंदुओं की तलाश में होंगे, जहां, जो चीज आप देख रहे हैं। और आप आश्चर्यचकित होंगे, यदि आप अपना चित्त सतर्क रखते हैं, तो कितनी नई चीजें आप तक आती हैं – बहुत ही शानदार सुझाव, और जीवन के चमत्कार और भगवान की सुंदरता और Read More …

What is a Sahaja Yogi, Morning Seminar Old Arlesford Place, Arlesford (England)

आपको पता होना चाहिए कि सहज योग एक जीवंत क्रिया है। ठीक उसी प्रकार की क्रिया जिससे एक बीज़, वृक्ष में अंकुरित होता है। यह एक जीवंत क्रिया है। तो यह परमात्मा का काम है। मेरा मतलब है, यह उन्हें करना है। यह आपका कार्य नहीं है । बीज को अंकुरित करना उनका काम है।  लेकिन समस्या इसलिए आती है क्योंकि इस अवस्था में जहां मनुष्य एक बीज़ है, उसके पास स्वतंत्रता है। उनके पास स्वतंत्रता है। इस स्वतंत्रता के साथ, वह ईश्वर की अभिव्यक्ति को, उनके कार्य को बिगाड़ सकता है।  तो पहली चीज जो हमें याद रखनी चाहिए कि इसके बारे में हमें विवेक होना चाहिए। तो पहली बात विवेक की यह है कि यह परमात्मा है जो यह कार्य करेंगे। हम यह नहीं कर सकते। आप बीज़ अंकुरित नहीं कर सकते, फिर आप अपना बीज भी कैसे अंकुरित करेंगे? और इस विवेक में हमें एक चीज़ याद रखनी और  जाननी चाहिए, अपने अंदर, कि आप पूरी क्रिया के अंग प्रत्यंग हैं। हालांकि आपके पास अपनी ‌स्वतंत्रता है, स्वतंत्रता भी इस क्रिया का अंग प्रत्यंग हैं। आप परमात्मा से अलग नहीं है, आपका कोई दूसरा अस्तित्व नहीं है। आप उस पूरी क्रिया के अंग प्रत्यंग हैं । ठीक है ?  तो यह सोचना कि आपको इसके बारे में भी कुछ तय करना है- यह भी गलत है। आप उसी मशीनरी में हैं जहां आप इस अवस्था में लाए गए हैं जहां आप को पूर्ण स्वतंत्रता है अपनी उत्क्रांति के लिए।‌ तो इस स्तर पर जहां आप को पूर्ण Read More …

Sahasrara Puja, Sincerity Is The Key Of Your Success Dollis Hill Ashram, London (England)

सहस्त्रार पर आपको सामूहिक आत्मा द्वारा आशीर्वादित किया जा रहा है। (सहस्त्रार पूजा, डौलिस हिल) हम कह सकते हैं कि 5 मई 1970 को पहली बार परमात्मा की सामूहिक आत्मा का द्वार खोला गया था। इससे पहले परमात्मा के आशीर्वाद लोगों को व्यक्तिगत रूप से ही प्राप्त होते थे …. और वे अपना आत्मसाक्षात्कार भी व्यक्तिगत रूप से ही प्राप्त करते थे एक के बाद एक। व्यक्तिगत आत्मसाक्षात्कार की विधि सामूहिक साक्षात्कार से एकदम अलग थी। उन्हें (व्यक्तिगत आत्मसाक्षात्कार) पहले अपना धर्म को स्थापित करना पड़ता था ……. अपने मोक्ष की कामना करते हुये स्वयं को पूरी तरह से स्वच्छ करना पड़ता था …… और अपने चित्त को मोक्ष पर ही केंद्रित करना पड़ता था या कह लीजिये कि ईश्वर प्राणिधान पर….. (ईश्वर – परमात्मा और प्राणिधान– तीव्र इच्छा) ….. ध्यान धारणा—- प्रार्थना …. परमात्मा के बारे में सोचना … उनकी कृपा प्राप्त करने के लिये प्रार्थना करना …. स्वयं को शुद्ध करने के लिये धार्मिक तरीके से आचरण करना पड़ता था। उन्हें अपने मन मस्तिष्क पर, इच्छाओं पर, क्रियाओं पर इस तरह से नियंत्रण रखना पड़ता था ताकि वे पूरी तरह से मध्य मार्ग पर बने रहें और जब वे इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाते थे …. या जब वे इसके योग्य हो जाते थे तो माँ की कृपा से उन्हें साक्षात्कार प्राप्त होता था। कुछ समय तक यही तरीका चलता रहा। जिन थोड़े बहुत लोगों को इस प्रकार से साक्षात्कार प्राप्त हुआ उन्होंने सहजयोग की तैयारी के लिये बहुत से सुंदर कार्य किये। वे जीवन के प्रत्येक Read More …

Sympathetic and Parasympathetic London (England)

                  “अनुकंपी और परानुकंपी”  डॉलिस हिल आश्रम। लंदन (यूके), 24 अप्रैल 1980। एक्यूपंक्चर वास्तव में उस शक्ति का दोहन है जो पहले से ही हमारे भीतर है। अब उदाहरण के लिए, आपके पेट में एक निश्चित शक्ति है, ठीक है? अब पेट में आपके अन्य अंगों को लगातार इस शक्ति की आपूर्ति की जाती है, तथा अनुकंपी तंत्रिका तंत्र के माध्यम से उसका उपयोग किया जाता है। परानुकम्पी इसे संग्रहीत करता है और अनुकंपी इसका उपयोग करती है। अब मान लीजिए पेट में कोई बीमारी है। तो अब उसमें जो शक्ति है, उस विशेष केंद्र की प्राणिक ऊर्जा एक प्रकार से समाप्त हो गई है या बहुत कम है। तो आखिर वे करते क्या हैं? उस व्यक्ति को कैसे ठीक किया जाए? वे दूसरे केंद्र से लेते हैं, उसे मोड़ते हैं, और वहां रख देते हैं। और इस तरह वे इसे ठीक करने की कोशिश करते हैं। लेकिन इससे वे असंतुलन पैदा करते हैं, क्योंकि आपके पास सीमित ऊर्जा है; आपके पास एक सीमित, बिल्कुल सीमित, ऊर्जा है। अब मान लीजिए कि आपके पास एक सीमित पेट्रोल और दूसरी कार है जिसका पेट्रोल खत्म हो गया है। अब अगर आप दूसरी कार में पेट्रोल डालते हैं, तो शायद वह कार आधी दूर तक चली जाएगी और आप भी आधे रास्ते जाकर खत्म हो जाएंगे। आप मेरी बात समझते हैं? तो ये दोनों ही आपकी लंबी उम्र को कम करते हैं। तो यह हमारे भीतर स्थित उस सीमित ऊर्जा का निचोड़ है । सहज योग बहुत अलग चीज है: सहज योग में Read More …

The Egg and Rebirth Caxton Hall, London (England)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी ”अंडा पुनर्जन्म से कैसे संबंधित है?” कैक्सटन हॉल, यू.के. 04-10-1980 अभी हाल में ही मैंने आश्रम में आपको ईस्टर, ईसा मसीह के जन्म, उनके पुनरुत्थान और ईसाई धर्म का संदेश जो की पुनरुत्थान है, के बारे में बताया था।  एक अंडा बहुत ही महत्वपूर्ण है और भारत के एक प्राचीन ग्रंथ में लिखा है, कि अंडे के साथ ईस्टर क्यों मनाया जाना चाहिए। यह बहुत आश्चर्यजनक है। यह बहुत स्पष्ट है वहां अगर आप देख सके कि किस प्रकार ईसा मसीह को अंडे के रूप में ‌प्रतीकत्व किया गया है। अब, अंडा क्या है? संस्कृत भाषा में ब्राह्मण को  द्विज: कहते हैं। द्विज: जायते अर्थात जिसका जन्म दो बार हुआ हो। और पक्षी, कोई भी पक्षी द्विज: कहलाता है अर्थात दो बार जन्मा। क्योंकि पहले एक पक्षी एक अंडे के रूप में जन्म लेता है और फिर पक्षी के रूप में उसका पुनर्जन्म होता है। इसी प्रकार मनुष्य पहले एक अंडे के रूप में जन्म लेता है और फिर एक आत्मसाक्षात्कारी के रूप में उसका पुनर्जन्म होता है। अब आप देखें कि कितनी महत्वपूर्ण बात है कि दोनों एक ही नाम से जाने जाते हैं। कोई भी अन्य जानवर द्विज: नहीं कहलाता जब तक कि उसका पहला निर्माण अंडे के रूप में ना हो और बाद में फिर किसी और रूप में। उदाहरण के लिए कोई स्तनधारी, कोई भी स्तनधारी द्विज: नहीं कहलाता सिवाय मनुष्यों के। यह उल्लेखनीय है जीव विज्ञान में अगर आप पड़ें, कि स्तनधारी अंडे नहीं देते। वह सीधे अपने बच्चों Read More …

Easter Puja: The Meaning of Easter London (England)

1980-04-06 ईस्टर का अर्थ, डॉलिस हिल आश्रम, लंदन, ब्रिटेन … जैसे कि आज मैं एक मुस्लिम लड़के से बात कर रही थी और उसने कहा कि “मोहम्मद साहब एक अवतरण नहीं थे।“ “तो वे क्या थे?” “वे एक मनुष्य थे , परंतु परमात्मा ने उन्हें विशेष शक्तियां दी हैं।” मैंने कहा, “बहुत अच्छा तरीका है!” क्योंकि यदि आप कहते हैं कि वे एक मनुष्य थे, मानव जाति के लिए  यह कहना बहुत अच्छा है कि “वे केवल एक मानव थे , वे इस पृथ्वी पर आये , और हम उनके समकक्ष हैं।” जो आप नहीं हैं। इसलिए विस्मय और वह श्रद्धा जैसा कि आप इसे कहते हैं, वह हमारे अंदर नहीं आती है । व्यक्ति सोचने  शुरू लगता हैं कि वह ईसा मसीह के समान हैं, मोहम्मद साहब के समान है, इन सभी लोगों के सम कक्षा है! और वे कहां और हम कहां हैं? जैसे, यहां, लोग ईसामसीह के जीवन के साथ कैसे खेल रहे हैं! वे स्वयं अपने को ईसाई कहते हैं, और वे उनके जीवन के प्रति कोई सम्मान नहीं दिखाते हैं, क्योंकि यह बनना है जिसके बारे में उन्होंने चर्चा की थी।  उन्होंने इन सब निरर्थक की बातों के विषय में बात नहीं की थी । दूसरी बात हम कोई सम्मान नहीं करते हैं । हमारे हृदय में कोई आदरपूर्ण भय नहीं है कि एकमव वही हैं जिन्होंने एक के बाद एक कई ब्रम्हांडों की रचना की है और हम क्या है, उनकी तुलना में? हम न्यायधीशों  की तरह  बैठ कर उनका निर्णय कर रहे हैं। Read More …

What is Seeking? Brighton Pavilion, Brighton (England)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी (आत्मा की) खोज क्या है? ब्राइटन पवैलियन,  यूनाइटेड किंगडम  31st March, 1980 मैंने कल आपको बताया था कि आप को कैसे अनुभव होता है अपनी खोज का? आप को अपनी खोज का अनुभव क्यों होता हैं। हमारे अंदर ऐसा क्या है जो इस खोज को कार्यान्वित करता है? और यह योग सहज है। और कोई रास्ता नहीं है जिससे आप अपना आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर सकें, क्योंकि अगर आपको एक बीज को अंकुरित करना है तो उसमें अंकुरण होना चाहिए। इसी प्रकार अगर आपको अपनी नई चेतना में अंकुरित होना है, वह आपके कुंडलिनी जागरण के द्वारा ही होना है, क्योंकि इसी कार्य के लिए कुंडलिनी वहां है। अगर आप को ये (माइक) मुख्य स्विच में लगाना है तो आप को तार प्रयोग करना होगा। इस के लिए और कोई रास्ता नहीं है। जैसे कल मैंने आपको बताया था कि ये सुंदर यंत्र बनाया गया है, सारे प्रयास किये गए हैं। आप इस से गुजर चुके हैं, कितने, हम ने इसे पैंतीस करोड़ के लिए कितना गिना था? पैंतीस! हां? सहज योगी: तीन सौ पचास मिलियन श्री माताजी : तीन सौ पचास मिलियन प्रकार के जीवन! और अब आप मनुष्य बन गए हैं। तो, आखिरकार अवश्य ही इस सुंदर मानवीय ढांचे, इस यंत्र का कोई अर्थ होगा कि क्यों इसका निर्माण किया गया। इसका अवश्य कोई कारण होगा। और जैसे आप को अपना मानवीय साक्षात्कार प्राप्त हुआ है, जैसे आपको यह मानवीय शरीर मिला है, अगर आपको और विकसित व्यक्तित्व तक पहुंचना है, तो Read More …

Birthday Puja: Guarding Against Slothfulness London (England)

                                                    जन्मदिन पूजा                     आलस्य एक अभिशाप   लंदन (यूके), 23 मार्च 1980। आपकी माँ का जन्मदिन, और इस तरह के सभी समारोहों का बहुत गहरा महत्व है, क्योंकि ऐसे अवसरों पर वातावरण में विशेष चैतन्य होता है। जब सभी आकाशीय पिंड , शाश्वत व्यक्तित्व, देवता और देवी स्तुति गाते हैं, और इस तरह पूरा वातावरण मृदुल और आनंद से भर जाता है। मानव भी, आभार व्यक्त करता है। कृतज्ञता और प्यार की अभिव्यक्ति अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरीकों से की जाती है, लेकिन सार एक ही रहता है और रूप बदल जाते हैं। सत्व समुद्र की तरह है जो तटों की ओर लगातार बहता है और किनारों को छूने वाली लहरें फिर से वापस आ जाती हैं, और एक अच्छा पैटर्न बनता है। यह बात इतनी अनायास है और इतनी सुंदर है, इस तरह के वातावरण में एक सुंदर सरंचना बनाता है। इन सभी तरंगों को जब वे एक साथ प्रेम के पैटर्न बुन कर जो वे मनुष्यों को भिगोते हैं, वे मनुष्यों को मंत्रमुग्ध करते हैं और पूरी बात बहुत आनंददायी होती है। ऐसे अवसरों पर एक विशेष प्रकार की भावनाएँ विकसित होती हैं, जिन्हें हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते हैं इसलिए अभिव्यक्ति किसी भी रूप में हो सकती है। लेकिन मुख्य बात अभिव्यक्ति है। ईश्वर ने इसे रचना करके, इस रचना को बना कर खुद को व्यक्त किया है। जबकि रचना को उस ईश्वर की महिमा बता कर आभार व्यक्त करना है, और यह नाटक अनंत काल तक चलना चाहिए। यह सबसे सुंदर खेल है। जो लोग इस Read More …

The Value of Marriage Dollis Hill Ashram, London (England)

                                            “विवाह का आदर्श” डॉलिस हिल आश्रम, लंदन (यूके), 8 मार्च 1980 ..तो सहज योग सबसे पहले आपका अंकुरण शुरू करता है, फिर विकास करता है। उस वृद्धि में, आपको एक व्यापक, अधिक व्यापक व्यक्तित्व बनना होगा। शादी के साथ आप एक और भी बेहतर इंसान बनते हैं, और आप एक बेहतर व्यक्तित्व का विकास करते हैं। अब, सहज योगियों के लिए शादी क्यों जरूरी है? सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात, शादी करना सबसे सामान्य बात है। भगवान ने आपको  शादी करने की इच्छा किसी उद्देश्य से दी है। लेकिन, उसी इच्छा का उपयोग , यदि आप उस उद्देश्य के लिए नहीं करते, जिसके लिए इसे दिया जाता है, तो यह विकृति बन सकता है, यह एक बुरा काम बन सकता है। यह आपके विकास के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है। तो हमारे भीतर शादी करने की इस इच्छा को समझना चाहिए। शादी का मतलब एक पत्नी है, जो आपके अस्तित्व का अंग-प्रत्यंग है। एक पत्नी जिस पर आप निर्भर हो सकते हैं। वह आपकी मां है, वह आपकी बहन है, वह आपका बच्चा है, वह सब कुछ है। आप अपनी सारी भावनाओं को अपनी पत्नी के साथ साझा कर सकते हैं। इसलिए यह ज़रूरी है कि पत्नी ऐसी होनी चाहिए, जो यह समझे कि उपरोक्त यह सब बातें, शादी की ज़रूरत है। अब, सहज योग में, जैसा कि आपने देखा है, आप सभी को या तो बाईं या दाईं ओर समस्या है। अब, जब ये विवाह होंगे, ज्यादातर अनायास, यह प्रकृति की योजना से ही होगा, कि आप एक Read More …

Mahakali Shakti New Delhi (भारत)

                   “महाकाली शक्ति” सार्वजनिक कार्यक्रम, 8 फरवरी 1980 नई दिल्ली, भारत। सहज योगी : दो दिन पहले मुझे दिल्ली के एक मंदिर में माताजी का परिचय कराने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था और बड़ी भीड़ आई थी। यह भीड़, कार्यक्रम के अंत में, माताजी के पैर छूने के लिए बहुत उत्सुक थी और एक बार फिर मुझे एहसास हुआ कि आप इस देश में कितने भाग्यशाली और धन्य हैं क्योंकि आपकी परंपराओं, आपके पालन-पोषण ने आपको एक गहरी धारणा और अध्यात्म के आयाम के प्रति बेहतर संवेदनशीलता दी है।  ऐसा लगता है कि आप कई अन्य लोगों, अन्य देशों और सभ्यताओं की तुलना में ईश्वर के प्रति अधिक जागरूक हैं। यही कारण है कि हम में से बहुत से लोग भारत आए हैं, मैं कहूंगा, लगभग बीस। इस सदी के साथ प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन विशेष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बड़ी संख्या में पश्चिम के साधक भारत आए, वह खोजने जो उनकी अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता नहीं दे सकी। यह जीवन के कुछ बुनियादी सवालों का जवाब है, हमारे भाग्य के अर्थ का आत्म-संतुष्टि के सवाल का जवाब। अब, यह कहानी दयनीय हुई क्योंकि इस देश से ऐसे चोर और बदमाश हुए हैं जिन्होंने खुद को गुरु कहा है, और बिना किसी दैवीय अनुमति के उन्होंने नेतृत्व किया था, या यूं कहें कि उन्होंने बड़ी संख्या में साधकों को गुमराह किया था। जब मैंने भारतीय लोगों से इन चीजों के बारे में बात की, तो उन्होंने कहा, “हम इन सभी नकली गुरुओं पर विश्वास नहीं करते हैं। यह Read More …

Seminar for the new Sahaja yogis Day 1 Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)

सहज योगियों के लिए सेमिनार  बोर्डी शिबिर, महाराष्ट्र, भारत, 28 जनवरी 1980, मुझे बताया गया था कि, मुझे संबोधित करना चाहिए, जनसमूह को, अंग्रेजी भाषा में। मैं आशा करती हूँ, यह संतोषजनक होगा, कुछ लोगों के लिए, यदि मै संबोधित करूँ, आपको अंग्रेज़ी में। मैं सोचती हूँ की, समय हो गया है, हमारे लिए, कि सोचें, क्यों परमात्मा ने सृजन किया है, इस सुंदर मानव का, मनुष्य का। क्यों उन्होंने इतना कष्ट उठाया, कि विकास करें हमारा, अमीबा से इस स्तर तक। हमने सब कुछ, महत्वहीन समझा है। यहाँ तक की, बात करना परमात्मा के बारे में, ऐसे आधुनिक समय में, यह असंभव है। क्योंकि बुद्धिजीवियों के अनुसार, वे अस्तित्व में नहीं हैं। वे कदाचित कुछ भी कह सकते हैं, जो चाहे, परन्तु वह हैं, और बिलकुल हैं। अब समय आ गया है, सर्वप्रथम, हमारा यह जानने के लिए, हम यहाँ क्यों है? हमारी सिद्धि किस में है? क्या हम आए हैं, इस संसार में, केवल पैदा होने के लिए, अपना भोजन करें, बच्चे पैदा करें, उनके लिए धन उपार्जित करें, और इसके बाद मर जाएँ? अथवा कोई विशेष कारण है, कि परमात्मा हमसे इतना प्रेम करते हैं, और उन्होंने सृजन किया, एक नवीन संसार, मनुष्य का?  साथ ही, समय आ गया है, हमारे जानने के लिए, कि परमात्मा विद्यमान हैं। और यह कि उनके प्रेम की शक्ति विद्यमान है। और केवल यह नहीं, परन्तु यह व्यवस्थित करती है, समायोजित करती है, यह गतिशील है। कि वे प्रेम करते हैं, और उनके प्रेम में, वे चाहते हैं, हमें प्रदान करना, Read More …

Transformation, Morning Advice at Bordi seminar Bordi (भारत)

                    रूपांतरण   बोर्डी (भारत) सेमिनार में सुबह की सलाह   27 जनवरी, 1980 जब सभी यहां आये तब हर कोई बहुत अच्छा महसूस कर रहा था, खुश था और उन्हें लगा, उनके चैतन्य बिल्कुल ठीक थे। लेकिन ऐसा नहीं था। इसलिए सतर्क रहें, आप देखें – एक-दूसरे से इसे परखने को कहें कि कृपया आप जाँच करें, इसके बारे में विनम्र रहें। आपको परखते रहना चाहिए। जब तक आप खुद की जांच नहीं करते, तब तक आप कैसे जानेंगे कि आप क्या चीज पकड़ रहे हैं? दूसरों को आपकी जाँच करने के लिए निवेदन करें और विनम्र रहें, इसके बारे में बहुत विनम्र हों | चीजों को हल्केपन में न लें,  जब तक हम खुद को बदल नहीं देते,सहज योग का आपके लिए कोई मतलब नहीं है। आप देखें, इस रेडियो, ट्रांजिस्टर या, लाउडस्पीकर की ही तरह सहज योग की अभिव्यक्ति का भी बहुत भौतिक तरीका हो सकता है। हमें यह जानना होगा कि सहज योग हमारे माध्यम से ऊर्जा प्रवाहित करने मात्र के लिए नहीं है, जैसे कि अन्य सभी भौतिक चीजें ऊर्जा पारित कर रही हैं।यह माइक ऊर्जा को प्रसारित कर रहा है, यह ट्रांजिस्टर ऊर्जा को फैला रहा है और इस तरह की अन्य सभी चीजें ऊर्जा को प्रसारित कर रही हैं।उन के अंदर कुछ नहीं जाता।जैसे … एक कलाकार गा रहा है और, उसकी आवाज का रेडियो में से  गुजरना होता है। उसी तरह,चूँकि किसी तरह कुंडलिनी को शक्ति के स्त्रोत्र से जोड़ा गया है, यदि हमारी शक्ति बहने लगती है ; ना तो इसने अपना काम किया, Read More …

Guru Puja: The Declaration London (England)

(परम पूज्य श्रीमाताजी निर्मला देवी, श्रीमाताजी की उद्घोषणा, डॉलिस हिल आश्रम लंदन, इंग्लैंड, 2 दिसम्बर 1979।) आज का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि बहुत समय पहले … जब ईसा नन्हे बालक थे तो उन्होंने उस समय के अनेकों लोगों को बताया कि वह एक अवतरण हैं … जो मानवता का रक्षा हेतु आये हैं। उस समय के लोगों का विश्वास था कि उनकी रक्षा हेतु कोई आने वाला है। बहुत समय पहले एक रविवार को उन्होंने उद्घोषणा की कि वही मानव मात्र की रक्षा के लिये आये हैं। इसी कारण आज … अवतरण रविवार (Advent Sunday) है। उनको बहुत कम समय तक जीवित रहना था। अतः बहुत ही कम उम्र में उन्हें उद्घोषणा करनी पड़ी कि वह एक अवतरण थे। यह देखना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि किसी भी अन्य अवतरण ने सार्वजनिक रूप से ये बात कभी नहीं कही कि वे अवतरण हैं। श्रीराम तो भूल ही गये थे कि वह एक अवतरण थे। एक तरह से उन्होंने स्वयं को ही भुला दिया था …. उन्होंने अपनी माया से स्वयं को पूर्णतया एक साधारण मानव बना लिया था — मर्यादापुरूषोत्तम। श्री कृष्ण ने भी केवल एक ही व्यक्ति … अर्जुन को युद्ध प्रारंभ होने से पहले यह बात बताई। अब्राहम ने भी कभी नहीं कहा कि वह एक अवतरण हैं जबकि वह आदि गुरू दत्तात्रेय के साक्षात् अवतरण थे। दत्तात्रेयजी ने भी स्वयं कभी नहीं बताया कि वह आदि गुरू के अवतरण हैं। ये तीनों धरती पर आकर लोगों का मार्ग दर्शन करने के लिये आये। मोजेज या मूसा ने Read More …

How to get to the Spirit that lies within Caxton Hall, London (England)

                                          आत्मा को कैसे पायें  सार्वजनिक कार्यक्रम। कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड। 26 नवंबर 1979। …और किस प्रकार यह हमारे भीतर रहती है और कैसे हम माया के पर्दों में खोए रहते हैं। आज मैं आपको बताने जा रही हूँ कि हम उस आत्मा तक कैसे पहुँचते हैं। उस आत्मा का पता लगाने के लिए लोग दो प्रकार के तरीके अपनाते हैं। एक को अणुवोपाय कहा जाता है, और दूसरे को शाक्तोपाय कहा जाता है। ‘अणु’ का अर्थ है एक अणु। जब हम माया में खोए होते हैं, जैसा कि मैंने आपको पिछली बार बताया था, वास्तव में आत्मा शाश्वत है, सर्वशक्तिमान है। यह कभी भी अपनी शक्ति नहीं खोता है चाहे हम बूढ़े हों, युवा हों, चाहे हम किसी भी स्थिति में हों, आत्मा की अपनी शक्ति है, हर समय। लेकिन, हम में आत्मा का प्रतिबिंब, हम में आत्मा का प्रकाश, हमारे परावर्तक की गुणवत्ता पर निर्भर करता है कि हम कैसे हैं। और गुणवत्ता अत्यधिक घटिया होने के कारण कभी-कभी हमारे भीतर अँधेरा पैदा हो जाता है और उस अँधेरे में कभी-कभी तो हमें पता ही नहीं चलता कि परे कुछ अन्य भी है। तो खोजने की पहली शैली अणुवोपाय है, जैसा कि आप इसे कहते हैं, जो अणुओं के बाद अणुओं को पृथक करने पर निर्भर करती है। क्योंकि इन परिस्थितियों में, जब आप अंधेरे से घिरे होते हैं, तो आप आत्मा को एक अणु के रूप में देखते हैं या आप एक चिंगारी या झिलमिलाहट कह सकते हैं। कभी-कभी आपको बस इसकी एक झलक ही मिलती है। जैसा Read More …

How to go beyond the ego and know yourself, Meditation London (England)

                         अहंकार के पार जाकर और स्वयं को कैसे जानें डॉलिस हिल आश्रम, लंदन (यूके) में सलाह, 18 नवंबर 1979 लेकिन सहज योग, उस महान घटना की उत्प्रेरणा है जिस के माध्यम से ईश्वर की रचना अपनी परिपूर्णता को प्राप्त करने वाली है और उसका अर्थ जानने वाली है  – यह इतना महान है! शायद हमें इसका एहसास नहीं है। लेकिन जब हम कहते हैं, “हम सहजयोगी हैं,” तो आपको यह जानना होगा कि, एक सहज योगी होने के लिए, आपका सहज योग के सत्य के साथ कितना तादात्म्य होना चाहिए, और इतनी सारी गलत पहचान जो आप पर छायी हुई हैं, आपको इस से छुटकारा पाना चाहिए।  लोग इसे एक त्याग कहते हैं। मुझे नहीं लगता कि यह बलिदान है। अगर आपको लगता है कि कुछ आपके रास्ते में बाधा डाल रहा है तो आप उस बाधा को दूर करने का प्रयास करेंगे। उसी तरह यदि आप अपने अवरोधों से अलग खड़े हो जायेंगे, तब आप समझ पाएंगे कि ये रुकावटें आपके रास्ते में खड़ी हैं और ये आपकी नहीं हैं और आपकी प्रगति को रोक रही हैं। तो, आपको इस गलत पहचान को अपने दिमाग से पूरी तरह से निकाल देना चाहिए और अधिक से अधिक स्व बनने का प्रयास करना चाहिए, न कि गलत पहचान। यह एक समस्या है, मुझे लगता है, यहाँ के लोगों की है। जब भी मुझे कोई शिकायत या कुछ भी मिलता है, मैं समझती हूं कि सहज योग के बारे में अभी भी समझ का स्तर उस बिंदु तक नहीं है। यह एक Read More …

The Meaning of Yoga London (England)

The Meaning Of Yoga Date : 11th November 1979 Place : London Туре Public Program Speech [Translation from English to Hindi, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] सहजयोग आपके अन्दर जीवाणु की तरह आड़ोलन एक के बाद एक क्रिया आदि एक से विद्यमान है । यह आपके अन्दर जन्मी हुई दूसरी तरह के आड़ोलन के माध्यम से होता चीज है। व्यक्ति के अन्दर ये अन्तर्जात होती है जो अवययों में मौजूद है जैसे पेट स्वतः स्वतः इसका अंकुरण होता है अभिव्यक्ति होती है। बिल्कुल वैसे ही जैसे सब आपके मस्तिष्क से आता है । अनुकंपी आप छोटे से बीज को अंकुरित होकर वृक्ष नाडीतन्त्र और पराअनुकम्पी नाड़ी तन्त्र बनते (Sympathetic, और खाए हुए पदार्थ को नीचे को धकेलता है। ये देखते हैं। यही सहजयोग है। अन्य Parasympathetic) हुए सभी योग जो इसके साथ-साथ चलते हैं, वे गतिशील हो उठते हैं और इसे कार्यान्वित सब सहजयोग के ही अंग-प्रत्यंग हैं। इन्हें करते हैं। ये एक बहुत बड़ी प्रणाली है और इससे अलग नहीं किया जा सकता। मुझे एक बहुत बड़ी संस्था है जो ये कार्य कर लगता है कि लोगों में कुछ गलत-फहमी है। रही है। आप यदि इसे पृथक करना चाहें तो योग के चार अंग होते हैं। ये सोचना भी पाचन प्रणाली भिन्न है मस्तिष्क प्रणाली । भिन्न है, स्नायु प्रणाली भिन्न है । आप इन्हें गलतफहमी न होगी कि वे अलग- अलग हैं जब हम कहते हैं कि हमने खाना खाया है इस तरह से अलग नहीं कर सकते कि तो इसका अर्थ ये नहीं होता कि बोल्ट की Read More …

Diwali Puja: Today is the day to take an oath Dollis Hill Ashram, London (England)

                                                दीवाली पूजा  डॉलिस हिल आश्रम, लंदन, इंग्लैंड। 20 अक्टूबर 1979। ….14वें दिन, षडानन के द्वारा उसका वध हुआ, कार्तिकेय पुत्र थे पार्वती और शंकर के जो रुद्र शक्ति की बहुत शक्तिशाली अभिव्यक्ति थे, जो कि भगवान की मारक शक्ति हैं। और उसकी रचना विशेष रूप से इसी उद्देश्य के लिए, नरकासुर को मारने के लिए की गई थी। तब – ऐसा था, यह राक्षस, ऐसा खतरा था और उसने कितने लोगों के जीवन को बर्बाद कर दिया था। उसने ऐसा कहर बरपाया है और लोगों को यह नहीं पता था कि सुरक्षा कैसे प्राप्त की जाए। उस समय, तब शक्ति द्वारा षडानन, कार्तिकेय के रूप में नरकासुर का वध किया गया था, उस समय चारों ओर उत्सव मनाया गया था। लोगों ने अगली रात मनाई और अगली रात पूरे साल की सबसे काली रात थी, जो कि आज रात है। घटते चंद्रमा के 15वें दिन को अमावस्या [अमावस्या] कहा जाता है। तो यह सबसे अंधेरी रात है। हर महीने एक बार हमेशा अंधेरी रातें होती हैं, लेकिन यह पूरे साल की सबसे काली रात होती है और इससे ठीक पहले नरकासुर का वध हुआ था। और घर में सारी रौशनी प्रज्वलित की जाती हैं और ढेर सारे दीपक जला दिए जाते हैं। बेशक बिजली की बत्तियाँ इनसे अलग होती हैं, जैसा कि आप जानते हैं, कि वे हर समय बाधा को जला देती हैं। इसलिए नरकासुर की मृत्यु के बाद, जब वह बहुत शक्तिशाली था तब उसकी अपनी एक बड़ी सेना थी, और उसने कई लोगों को सम्मोहित कर लिया Read More …

How realisation should be allowed to develop Caxton Hall, London (England)

          बोध को कैसे विकसित होने दिया जाना चाहिए  कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड। 15 अक्टूबर 1979। आप में से अधिकांश यहाँ सहजयोगी हैं। अब जिन लोगों को साक्षात्कार मिल गया है, जिन्होंने स्पंदनों को महसूस किया है, उन्हें पता होना चाहिए कि वे अब दूसरे ही स्वरुप में विकसित हो रहे हैं । अंकुरण शुरू हो गया है, और आपको अंकुरण को अपने तरीके से काम करने देना चाहिए। लेकिन सामान्य तौर पर, जब हमें बोध भी हो जाता है, तो भी हमें यह एहसास भी नहीं होता है कि यह एक जबरदस्त चीज है जो हमारे भीतर घटित हुई है। कि यह प्रस्फुटन, जो एक असंभव कार्य है, हमारे भीतर घटित हो गया है, और इसे धीरे-धीरे कार्यान्वित होना है। इसे विकसित हो कर, और हमें उसमें उत्क्रांति प्रदान करना है, और चूँकि हम इसे महसूस नहीं करते हैं, हम इसे (आत्मसाक्षात्कार को )उतनी गंभीरता से नहीं लेते हैं, जितना हमें लेना चाहिए। इसके अलावा, वे ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जिन्होंने वायब्रेशन महसूस नहीं किया है, वे इस क्षेत्र को नहीं जानते हैं; उन्होंने इसे कभी नहीं देखा है। जैसा कि गुरु नानक ने कहा है, यह ‘अलख’ है (अलक्ष्य :अदृश्‍य)। उन्होंने इसे नहीं देखा है, वे इसके बारे में नहीं जानते हैं, वे नहीं जानते कि ईश्वर की एक शक्ति मौजूद है, जो आपको समझती है, समन्वय करती है, सहयोग करती है, जो सामूहिक अस्तित्व में काम कर रही है, जो आपको जागरूक करती है, आपको उस सामूहिक अस्तित्व के बारे में और दूसरों के बारे में Read More …

Maintaining purity of Sahaja Yoga Caxton Hall, London (England)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी,  ‘सहज योग की शुचिता कायम रखना ‘ कैक्सटन हॉल, लंदन 10 अक्टूबर, 1979 …कुछ समय से अपने ही ढंग से चल रहा है (श्री माताजी किसी सहज योगी के विषय में कह रही हैं) मैंने कहा, ‘उसे प्रयास करने दो।’ डगलस फ्राई: मै लाउडस्पीकर का प्रयोग नहीं कर रहा हूं। मै सिर्फ आप को रिकॉर्ड कर रहा हूं। यह सिर्फ रिकॉर्डिंग के लिए है। श्री माताजी: ओह, यह लाउडस्पीकर नही है! सहज योगी: ये सिर्फ टेप है। श्री माताजी: ओह, ये बात है! और उसने कई प्रकार की चालें चलना आरंभ कर दिया था। आप समझे, जो मैंने उसके बारे में अनुभव किया था, कि उसने अपने आत्म साक्षात्कार के बारे में कुछ चालबाजी करनी आरंभ कर दी। क्योंकि सिर्फ यही वो एक चीज है, जिस में आप पड़ सकते हैं, जिस में आप को बहुत अधिक सावधान रहना चाहिए। और उसने प्रेतात्माएं एकत्रित कर लीं, क्योंकि उसको उपचार करने में बहुत अधिक रुचि हो गई। मैंने उसे और ज्यादा उपचार करने से मना किया था। मैंने कहा, ‘आप मेरा फोटो दे सकते हैं, पर उपचार कार्य में संलग्न मत हो, क्योंकि अगर आप प्रेतात्माएं से ग्रस्त हो गए, तो आप को पता भी नहीं चलेगा, आप उसके प्रति असंवेदनशील रहेंगे और फिर आप को समस्याएं हो जाएंगी।’ और फिर उस में ऐसी विचित्र प्रेतात्माएं थीं कि जो लोग उसके पास आए, वो प्रेतात्मयें उन लोगों को इसको धन देने के लिए प्रभावित कर रही थीं। और कुछ लोग बाध्य किए गए। मेरा मतलब Read More …

9th Day of Navaratri Celebrations, Eve of Navaratr, Puja & Havan मुंबई (भारत)

Sahajayog Ki Ek Hi Yukti Hai (Navaratri) Date : 30th September 1979 Place Mumbai Туре Seminar & Meeting Speech [Original transcript, Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahiri] आपके अन्दर में परमात्मा की शक्ति ज्यादा बड़ा भारी कार्य एक जमाने में हो गया है जबकि बढ़ती जाएगी। यानि आपका caliber जो है वो wider होते जाएगा और आपके अन्दर ज्यादा शक्ति के अनुचर सताया करते थे। आज भी संसार में बढ़ती जाएगी। अब जब ये ज्यादा शक्ति आपसे बढ़ शैतानों की कमी नहीं है, दुष्टों की कमी नहीं है, रही है तब इस शक्ति को भी उपयोग में लाना चाहिए। अगर शक्ति बढ़ती गई और आपने उसको उपयोग में नहीं लाया तो हो सकता है कि थोड़े दिन बाद ये caliber फिर छोटा हो जाए। अब आपको घर और इसीलिए इनमें से निकलने के लिए भी मनुष्य जाके बैठना है और सोचना है, मनन करना है कि हम किस तरह से सहजयोग को बढा सकते हैं। कितने ही लोगों का Realisation हुआ है और बहुत किस-किस जगह हमारा स्थान है, कौन लोग हमें से लोगों ने इस आत्मज्ञान को पाते वक्त अपने मानते हैं, उनकी लिस्ट बनाइये। कौन-से ऐसे areas हैं जहाँ हम जाकर के इसको प्रस्थापित कर सकते हैं। उसके लिए जो भी आपको जरूरतें हैं, हमारे अलग सेंटर हो गए हैं, आज मैंने कोलाबा में भी एक सेंटर खोल दिया है कफकैसल में। और इस तरह से हर जगह एक-एक सेंटर अब आपके लिए ऐसे मैं भी नहीं सोचती थी और इतने थोड़े समय में हो गया है Read More …

8th Day of Navaratri Celebrations, Poverty Shree Sunderbhai Hall, मुंबई (भारत)

           नवरात्री 8वॉ दिवस, गरीबी, अवतरण संगोष्ठी सुंदरबाई हॉल मुंबई, भारत। 29 सितंबर 1979। श्री माताजी: श्री विजय मर्चेंट, श्री राकुरे, सभी सहज योगी जो यहां मेरे प्रति अपने प्यार का इजहार करने आए हैं और बाकी सभी लोग जो सत्य की खोज में हैं। श्री मर्चेंट की वास्तव में बहुत मेहरबानी रही की वे इस पुस्तक का विमोचन कर रहे हैं। अपने बचपन से मैं उनका क्रिकेट देखती आ रही हूं। मुझे कहना होगा कि मैं खुद काफी बड़ी क्रिकेट प्रशंसक हूं। मुझे लगता है कि क्रिकेट ऐसा खेल है जो वास्तव में सहज है, फुटबॉल के एक चरम और गोल्फ के दूसरे उबाऊ खेल के बीच का। और जिस तरह से वह हमारी टीमों का प्रबंधन कर रहे हैं और वह हमारे देश के लिए इतने अच्छे कप्तान रहे हैं, मैं हमेशा उनकी सराहना करती रही हूं और मैं उनकी प्रशंसा करती रही हूं, जिस तरह से वह क्रिकेट के क्षेत्र में गौरव को संभालने में सक्षम रहे हैं। उसके बाद भी, इस जीवन के अन्य सभी सफल लोगों की तरह सेवानिवृत्ति में अपना जीवन बर्बाद करने के बजाय, वह इतना बड़ा काम कर रहे हैं, और इस देश के सभी दलितों और गरीबों के लिए उनकी ऐसी भावना से पता चलता है कि वे एक बहुत ही महान व्यक्ति हैं। संवेदनशील व्यक्तित्व। जिस तरह से वह हम सभी के प्रति दयालु हैं और यहां आए हैं और अपने काम के बारे में हमसे बात की है, मैं उनकी बहुत आभारी हूं। मैं उनसे पूरी तरह से सहमत हूं Read More …

Navaratri Celebrations मुंबई (भारत)

             कुंडलिनी और श्री कल्कि के बीच संबंध   अंतिम से एक रात पूर्व नवरात्रि  बॉम्बे (भारत), 28 सितंबर 1979। आज मैं आपकी इच्छानुसार अंग्रेजी भाषा में आपको संबोधित करने जा रही हूं। कल भी, शायद, हमें इस विदेशी भाषा का प्रयोग करना पड़ सकता है। आज का विषय है, कुंडलिनी और कल्कि के बीच संबंध| कल्कि शब्द वस्तुत: निष्कलंक का संक्षिप्त रूप है। निष्कलंक का अर्थ, मेरे नाम के समान ही है, अर्थात निर्मला:, तात्पर्य यह बेदाग स्वच्छ है, कुछ ऐसा जो बेदाग हो, निष्कलंक ऐसा स्वच्छ है, जिस पर कोई धब्बा नहीं है। अब इस अवतार का – अनेकों पुराणों में वर्णन किया गया है कि -वे  इस धरती पर सफेद घोड़े पर सवार होकर आएंगे, संभलपुर के एक गांव में, ऐसा वे कहते हैं, संभलपुर। यह बहुत दिलचस्प है कि किस प्रकार लोग हर चीज को इतने शाब्दिक रूप में ले लेते हैं। सम्भाल शब्द का अर्थ इस प्रकार है…, भाल अर्थात माथा, सम्भाल का अर्थ है उस अवस्था में। अर्थात कल्कि आपके भाल पर स्थित है। भाल मतलब माथा। और यहीं उनका जन्म होने वाला है। संभलपुर शब्द का वास्तविक अर्थ यही है। ईसा मसीह और उनके विनाशकारी अवतार महाविष्णु जिन्हें कल्कि कहा जाता है, के बीच में एक काल खंड है जिस में मनुष्य को खुद को सुधारने के लिए समय दिया गया है, ताकि वे परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकें, जिसे बाइबिल में लास्ट जजमेंट कहा जाता है कि, तुम्हारा न्याय किया जाएगा, तुम सब का, इस पृथ्वी पर न्याय किया जाएगा। वे ऐसा Read More …

6th Day of Navaratri Celebrations, Shri Kundalini, Shakti and Shri Jesus Hinduja Auditorium, मुंबई (भारत)

Kundalini Aur Yeshu Khrist Date : 27th September 1979 Place Mumbai Туре Seminar & Meeting Speech Language Hindi श्री कुण्डलिनी शक्ति और श्री येशु खिस्त’ ये विषय बहुत ही मनोरंजक तथा आकर्षक है । सर्वमान्य लोगों के लिए ये एक पूर्ण नवीन विषय है, क्योंकि आज से पहले किसी ने श्री येशु ख़्रिस्त और कुण्डलिनी शक्ति को परस्पर जोड़ने का प्रयास नहीं किया। विराट के धर्मरूपी वृक्ष पर अनेक देशों और अनेक भाषाओं में अनेक प्रकार के साधु | संत रूपी पुष्प खिले । उन पुष्पों (विभूतियों) का परस्पर सम्बन्ध था । यह केवल उसी विराट-वृक्ष को मालूम है। जहाँ जहाँ ये पुष्प (साधु संत) गए वहाँ वहाँ उन्होंने धर्म की मधुर सुगंध को फैलाया। परन्तु इनके निकट (सम्पर्क) | वाले लोग सुगन्ध की महत्ता नहीं समझ सके। फिर किसी सन्त का सम्बन्ध आदिशक्ति से हो सकता है यह बात सर्वसाधारण की समझ से परे है । मैं जिस स्थिति पर से आपको ये कह रही हूँ उस स्थिति को अगर आप प्राप्त कर सकें तभी आप ऊपर कही गयी बात समझ सकते हैं या उसकी अनुभूति पा सकते हैं क्योंकि मैं जो आपसे कह रही हूँ वह सत्य है कि नहीं इसे जानने का तन्त्र इस समय आपके पास नहीं है; या सत्य क्या है जानने की सिद्धता आपके पास इस समय नहीं है। जब तक आपको अपने स्वयं का अर्थ नहीं मालूम तब तक आपका शारीरिक संयन्त्र ऊपर कही गई बात को समझने के लिए असमर्थ है। परन्तु जिस समय आपका संयन्त्र सत्य के साथ जुड़ जाता है Read More …

5th Day of Navaratri Celebrations, Guru Tattwa (Mahima) and Shri Krishna मुंबई (भारत)

  [हिंदी प्रतिलेख] 1979-0926-गुरू तत्व और श्रीकृष्ण शक्ति २६ सितम्बर १९७९, मुंबई  गुरू का स्थान हमारे अंदर काफी ऊंची जगह है। गुरु का स्थान हमारे अंदर स्थित है, कोई इसमें नई चीज करने की नहीं है। परमात्मा ने ये जो साधन बनाया हुआ है, यह जो इंस्ट्रूमेंट है इसको बहुत ही सुंदरता से बनाया गया है। इसका एक एक चक्र जोकि हमारे लिए अद्रश्य ही हैं और हमारे अंदर स्थितः है जिससे ये विश्व जगत हमें जान पड़ता है बहुत सुंदरता से रचित है; किन्तु मनुष्य अति मैं रहता है, हमेशा अति पे जाने से उसने अपने इस साधन को बिगाड़ लिया है। उसी प्रकार गुरु का जो स्थान है उसे भी मनुष्य ने बिगाड़ लिया है. गुरु का स्थान हमारे अंदर इस पूरी जगह इस फ्रांस मैं है, इस पूरे देश मैं गुरु का स्थान है। पेट के अंदर चारों ओर नाभि चक्र से जुड़ा हुआ है। अभी तीन दिन पहले मैने नाभिचक्र पर आपसे बात की थी, इस नाभिचक्र पर श्री विष्णु  का स्थान है। विष्णुशक्ति के कारण ही मानव अमीबा से इंसान बने हैं। और उसी शक्ति से ही आप मानव से  अतिमानव बनने वाले हैं। । अब ये जो गुरु की शक्ति हमारे अंदर परमात्मा ने पहले से ही विकसित की हुई है इसके लिए अनेक गुरुओं के पहले अवतरण हुए हैं। अब पहले देखें की यह गुरूतत्व बना कैसे  है इसके लिए समझना चाहिए की गुरुतत्व अनादि है और उसको कैसे बनाया गया। हमारे अंदर  अदृश्य रूप से तीन  शक्तियां कार्यान्वित रहती हैं। प्रथम  शक्ति Read More …

1st Day of Navaratri Celebrations, Shri Kundalini, Shri Ganesha मुंबई (भारत)

Kundalini Ani Shri Ganesha 22nd September 1979 Date : Place Mumbai Seminar & Meeting Type [Hindi translation from Marathi talk] आज के इस के प्रथम दिन शुभ घड़ी में, ऐसे इस सुन्दर वातावरण में इतना सुन्दर विषय, सभी योगायोग मिले हुए दिखते हैं। आज तक मुझे किसी ने पूजा की बात नहीं कही थी, परन्तु वह कितनी महत्त्वपूर्ण है! विशेषतः इस भारत भूमि में,महाराष्ट्र की पूण्य भूमि में, जहाँ अष्टविनायकों की रचना सृष्टि देवी ने (प्रकृति ने) की है । वहाँ श्री गणेश का क्या महत्त्व है और अष्टविनायक का महत्त्व क्यों है ? ये बातें बहुत से लोगों को मालूम नहीं है । इसका मुझे बहुत आश्चर्य है। हो सकता है जिन्हें सब कुछ पता था या जिन्हें सब कुछ मालुम था ऐसे बड़े-बड़े साधु सन्त आपकी इसी सन्त भूमि में हुए हैं, उन्हें किसी ने बोलने का मौका नहीं दिया या उनकी किसी ने सुनी नहीं। परन्तु | इसके बारे में जितना कहा जाए उतना कम है और एक के जगह सात भाषण भी रखते तो भी श्री गणेश के बारे में बोलने के लिए मुझे वो कम होता । आज का सुमुहूर्त घटपूजन का है। घटस्थापना अनादि है । मतलब जब इस सृष्टि की रचना हुई, (सृष्टि की रचना एक ही समय नहीं हुई वह अनेक बार हुई है।) तब पहले घटस्थापना करनी पड़ी । अब ‘घट’ का क्या मतलब है, यह अत्यन्त गहनता से समझ लेना जरूरी है । प्रथम, ब्रह्मत्त्व में जो स्थिति है, वहाँ परमेश्वर का वास्तव्य होता है । उसे हम अंग्रेजी में Read More …

Self-realisation and fulfilment Caxton Hall, London (England)

‘आत्मसाक्षात्कार और तृप्ति’ , सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड,  6 अगस्त, 1979 ….क्या ये ठीक है? सहज योग के बारे में पहले ही बहुत कुछ कहा जा चुका है। जैसा कि पहले मैंने आपको बताया था, नये लोगों के लिए मैं कहना चाहूंगी, ‘सह’ माने साथ ‘ज’ माने जन्मा। यह आपके साथ ही जन्मा है। यह आपके साथ है। अंकुरित करने वाली शक्ति जो आपको परमात्मा से जोड़ेगी, वो आपके साथ ही पैदा हुई है। जैसे इस देह में आपकी नाक है, आँखें हैं, चेहरा है, इसी प्रकार ये अंकुरित करने की शक्ति भी आपके अंदर है, अनेक युगो से आपके अंदर है। आप की हर खोज में वो आप के साथ रही है। और अब समय आ गया है, बसंत का समय आ गया है आप कह सकते हैं, जब लोगों को परमात्मा से अपना संबंध प्राप्त करना है, अन्यथा ईश्वर अपना खुद का अर्थ खो देंगे। जब तक आपको अपना खुद का अर्थ ज्ञात नहीं होता, जब तक आपको अपना अंदर से तृप्ति नहीं आती, आप के रचयिता जिसने आपको बनाया है उसको भी अपना संतोष प्राप्त नहीं हो सकता। इसलिए यह अनुग्रह, यह विशेष उपहार है आधुनिक मनुष्य को की वह वास्तव में अपना आत्म साक्षात्कार पा सकें। पर जैसे ( रेजिस ?) ने ठीक ध्यान दिलाया कि हमारे सारे यंत्र अच्छे से हमारे अंदर स्थापित हैं।  पर जब से हम पैदा हुए हैं तब से हम हमेशा उन लोगों के प्रति आकर्षित हुए हैं, जो ऐसे सिद्धांतों को ले कर आगे आए हैं कि वह Read More …

We have to seek our wholesomeness Caxton Hall, London (England)

                                            सार्वजनिक कार्यक्रम  “हमें विराट से अपनी एकाकारिता की आकांक्षा करनी चाहिए”।  कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके)। 24 जुलाई 1979। कल, मैं एक महिला से मिली, और उसने मुझसे कहा कि वह ईश्वर को खोज रही है। मैंने कहा, “परमात्मा के बारे में आप की सोच क्या है, आप क्या खोज रही हैं?” जब हम कहते हैं कि हम खोज रहे हैं, तो क्या हम जानते हैं कि हमें क्या खोजना है, और क्या हम समझते हैं कि अपनी खोज़ की पूर्णता हम कैसे महसूस करने जा रहे हैं, कि हम मंजिल तक पहुंच गए हैं? पिछली बार की तरह, मैंने आपसे कहा था कि खोज वास्तविक, सच्चे दिल से होना चाहिए, और यह कि आप खरीद नहीं सकते, या आप इसके लिए प्रयास नहीं कर सकते। लेकिन आज मैं आपको बताना चाहती हूं कि हम क्या ढूंढ रहे हैं। आइए देखें कि खोज हमारे भीतर कैसे आती है, कहां से? जैसा कि यहां दिखाया गया है, नाभी चक्र नामक एक केंद्र है, जो यहां मध्य में है [अश्रव्य], नाभी चक्र, जो हमारी रीढ़ की हड्डी में स्थित है, और सौर जाल solar plexus को अभिव्यक्त करता है जो आपकी नाभी के बीच में स्थित है। यह वह केंद्र है जो हमारे भीतर खोज का निर्माण करता है। खोज तभी संभव है जब कुछ जीवंत हो। उदाहरण के लिए, इस कुर्सी की क्या इच्छा है? यह सोच नहीं सकती, यह हिल नहीं सकती, आप इसे यहां रख सकते हैं या आप इसे सड़क पर रख सकते हैं। आप इसे तोड़कर फेंक सकते Read More …

How truthful are we about seeking? Caxton Hall, London (England)

          हम सत्य की ख़ोज के बारे में कितने ईमानदार हैं?  सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड। 16 जुलाई 1979। एक दूसरे दिन मैंने आपको उस उपकरण के बारे में बताया जो पहले से ही हमारे अंदर है, अपने आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए, जो एक वास्तविक अनुभूति है, जो एक अनुभव है, जो एक घटना है जिसके द्वारा हम वह बन जाते हैं। यह हो जाना है, यह कोई वैचारिक मत परिवर्तन या उपदेश नहीं है बल्कि यह एक ऐसा बनना है जिसके बारे में मैं बात कर रही हूं। जब हम कहते हैं, हम सत्य के साधक हैं, तो इस खोज में कितने ईमानदार हैं? यह एक बिंदु है जिसे हमें समझने की कोशिश करनी चाहिए। क्या हम वास्तव में, सच्चाई से खोज रहे हैं? क्या हम इसके बारे में सच्चे हैं, या हम ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यह कहना अच्छा है कि हम सत्य की तलाश कर रहे हैं? यदि आपको कुछ वास्तविक खोजना है, तो आपको स्वयं ईमानदार होना होगा। यह सहज योग में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। सहज योग एक ऐसी प्रणाली है जिसके द्वारा आप स्वयं सत्य में कूद पड़ते हैं। तुम सत्य हो जाते हो, तुम सत्य को नहीं देखते हो, तुम सत्य को नहीं समझते हो, लेकिन तुम सत्य बन जाते हो। यह सबसे आश्चर्यजनक बात है कि मनुष्य यह नहीं समझते कि सत्य से क्या अपेक्षा की जाए। वे सत्य की खोज कर रहे हैं, लेकिन सत्य के पूर्ण मूल्य के बारे में उनकी कोई धारणा नहीं Read More …

Guru Puja: Gravity Point London (England)

                                                      गुरु पूजा  डॉलिस हिल आश्रम, लंदन (यूके)  8 जुलाई 1979 आज गुरु पूर्णिमा का दिन है। यह पूर्ण चंद्रमा का दिन है, इसलिए इसे पूर्णिमा कहा जाता है। गुरु को पूर्ण चंद्रमा की तरह होना चाहिए: इसका मतलब है पूरी तरह से विकसित, पूरी तरह परिपक्व। चंद्रमा की सोलह कला या चरण होते हैं, और जब पूर्ण पूर्णिमा आती है, पूर्णिमा के दिन, सभी सोलह कलाएं पूरी हो जाती हैं। आप यह भी जानते हैं कि विशुद्धि चक्र में सोलह उप चक्र होते हैं। जब कृष्ण को विराट के रूप में वर्णित किया जाता है, तो उन्हें सम्पूर्ण कहा जाता है: विष्णु के स्वरूप का पूर्ण अवतार। क्योंकि उन्हें सोलह चरण पूरी तरह से प्राप्त हैं। इसलिए आज की संख्या सोलह है। छह प्लस एक सात है। अब हमें गुरु के महत्व को समझना होगा। जब हमारे पास ईश्वर हैं तो हमें गुरु क्यों चाहिए? हमें शक्ति मिली है, फिर हमें गुरु क्यों चाहिए? गुरु रखने की क्या जरूरत है? ‘गुरु’ का अर्थ होता है वजन, भार। हम अपना वजन धरती माता के गुरुत्वाकर्षण के चुंबकीय बल से प्राप्त करते हैं। तो गुरु का अर्थ है गुरुत्वाकर्षण, किसी व्यक्ति में गुरुत्वाकर्षण। हमें गुरु की आवश्यकता क्यों है? क्योंकि ईश्वर को जानना आसान है, विशेष रूप से सहज योग में, उसके साथ एकाकार होना। जैसे ही आप सहज योग, आधुनिक सहज योग में अपना आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करते हैं, तुरंत ही आप अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने के हकदार बन जाते हैं। यह कहा जाता था कि गुरु वह व्यक्ति है जो Read More …

Talk to Sahaja Yogis: When in darkness London (England)

                     “जब अँधेरे में हों”  डॉलिस हिल आश्रम, लंदन, इंग्लैंड। 20 जून 1979। …फिर वो लोगों का इलाज शुरू करता है, फिर वो नकारात्मकता को ज्यादा पास करता है। और यह कुछ अच्छा लगने लगता है, आप देखिए। कभी-कभी उसे यह भी लगता है कि उसने अधिक शक्तियाँ प्राप्त कर ली हैं, क्योंकि ये प्रेतात्माएँ बहुत चालाक हैं और वे उस तरह का वातावरण स्थापित करती हैं। इसलिए व्यक्ति को सावधान रहना होगा। एक नियमित युद्ध चल रहा है। और इसलिए हमें बस अपने हौसले को ठीक रखना है। और इस युद्ध में कायरता का कोई स्थान नहीं है। अगर लोगों की पहचान सत्य के साथ हो जाए तो यह पूरी बात बहुत अच्छी तरह से काम करेगी। लेकिन सत्य, जैसा कि आप जानते हैं, के साथ पहचान करना बहुत कठिन है; मनुष्य के लिए बहुत कठिन, बिल्कुल असंभव के समान है। यदि आप उन्हें बेवकूफ बनने को कहेंगे, तो वे आपको स्वीकार करेंगे। यदि आप उन्हें मूर्ख बनने को कहते हैं, तो वे आपको स्वीकार करेंगे। किसी भी तरह का काम जिस को करके वे बिल्कुल गधे जैसे दिखें, वे करेंगे। यदि आप उन्हें फरेबी बनने को कहें, तो वे ऐसा करेंगे। असत्य का कोई माहौल बनाएंगे तो वे आपको स्वीकार करेंगे। लेकिन सच्चाई? बहुत कठिन। बहुत कठिन। आपको भी पता चलेगा कि कुछ लोग हैं जो मेरी तस्वीर देखते हैं और उन्हें ठंडी हवा मिलती है, लेकिन फिर जब वे मुझे पूरा देखते हैं, तो वे नहीं कर सकते। क्योंकि जब वे फोटो देखते हैं तो उनमें अभी भी Read More …

This is not the work of mediocres Doctor Johnson House, Birmingham (England)

             “यह औसत दर्जे के लोगों का काम नहीं है” सार्वजनिक कार्यक्रम, डॉ जॉनसन हाउस, बर्मिंघम (यूके), १६ जून १९७९। मुझे वास्तव में खेद है कि हम यहाँ एक ऐसी ट्रेन से पहुँचे, जो लेट थी। चीजों को ईश्वर की समय योजना के अनुसार घटित होना होता है, आप अपनी चीजों की योजना खुद नहीं बना सकते। और इसी तरह कभी-कभी किसी को देर से होना पड़ता है और कभी-कभी किसी को समय से पहले होना पड़ता है। लेकिन एक बात निश्चित है: तुम्हारे अस्तित्व की अंतिम घटना का नियत समय आ चुका है। यह जीव जीवन के विभिन्न चरणों से गुजर रहा है। आप जानते हैं कि, आप एक छोटा सा अमीबा और फिर एक मछली, एक सरीसृप रहे हैं, और इस तरह उत्क्रांति तब तक चलती रही जब तक आप आज, यहां, एक इंसान के रूप में बैठे हैं। यह सब आपके साथ आपकी जानकारी के बिना, आपके विचार-विमर्श के बिना हुआ है। और आपने यह मान लिया है कि आप एक इंसान हैं और एक इंसान के रूप में सभी अधिकार आपके अपने हैं। उसी तरह आप जो हैं उससे ज्यादा कुछ बनने का अधिकार है, क्योंकि आज भी आप नहीं जानते कि आपका उद्देश्य क्या है, आपको बनाने के लिए यह सब प्रयास क्यों किया गया? इस जीवन का अर्थ क्या है? क्या यह अर्थहीन है? बस आप हजारों वर्षों तक अकारण ही बनाए गए थे? इस तरह से कि कितनी नामंजूर कर दी गईं, कितनी ही आकृतियां अस्वीकृत कर दी गईं, कितने रूपों को ठुकरा दिया Read More …

Conceive something beyond Doctor Johnson House, Birmingham (England)

                                          सार्वजनिक कार्यक्रम डॉ जॉनसन का घर, बर्मिंघम (इंग्लैंड)  31 मई 1979 [एक योगी द्वारा परिचय]: [अस्पष्ट] आध्यात्मिक व्यक्तित्व जिसने पृथ्वी पर पुनर्जन्म लिया है और उन्होने हममें से बहुतों को हमारे वास्तविक स्वरूप का बोध कराया है और मुझे आशा है कि आप सभी आज रात खुले दिमाग से यहां बैठेंगे और कोशिश करेंगे और जो वे आपको देना चाहती हैं वो प्राप्त करेंगे। और मैं केवल इतना ही कह सकता हूं कि आप बस उनके तरफ अपने हाथ रखें, आराम से बैठें और सुनें कि माताजी को क्या कहना है। [श्री माताजी बोलते हैं]: मैं बाला और फिलिप, मेरे सभी बच्चों की आभारी हूं, जो इस हॉल की व्यवस्था करने में सक्षम हुए और आप सभी को इस कार्यक्रम के लिए यहां बुलाया है।  जब भी इस धरती पर अवतार आए, उससे आधुनिक समय वास्तव में बहुत अलग है। जब क्राइस्ट इस धरती पर आए थे तब और आज जब किसी को साधकों का सामना करना पड़ता है तो इतना बड़ा अंतर है। ईसा के समय कोई साधक नहीं था, एक भी साधक नहीं था। जब वे इस पृथ्वी पर आए, तो उन्हें वास्तव में लोगों को समझाना पड़ा, उन्हें उनके लिए किसी प्रकार की समझाइश देना थी कि उन्हें इच्छा करनी चाहिए, कि परे कुछ ऐसा है जिसके लिए उन्हें प्रार्थना करना चाहिए। लेकिन आज यह बहुत अलग बात है, आज हमारे पास एक नहीं बल्कि लाखों साधक हैं; विशेष रूप से पश्चिम में, लोग खोज रहे हैं। कुछ परे की कल्पना करने की हमारी क्षमता के माध्यम Read More …