Guru Puja: The Gravity of Guru Principle Camping Borda d'Ansalonga, Ansalonga (Andorra)

गुरु पूजा, गुरु सिद्धांत का महत्व अंसलॉन्गा, एंडोरा, 31 जुलाई, 1988 आज हम सब यहाँ आपके गुरु की पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि गुरु तत्व भवसागर में स्थित है। यही वह सिद्धांत है जो आपको संतुलन देता है, जो आपको आकर्षण-शक्ति देता है। आपके गुरु तत्व के माध्यम से हमारी पृथ्वी माता में जो गुरुत्व है वह अभिव्यक्त होता है। गुरुत्वाकर्षण का पहला बिंदु यह है कि आपके पास एक व्यक्तित्व, एक चरित्र और एक ऐसा स्वभाव होना चाहिए कि लोग देखें कि आप एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जो सांसारिक चीजों में नहीं शामिल नहीं हो जाते। यह एक ऐसा व्यक्तित्व है जो जीवन के झमेलों से बर्बाद नहीं होता है। उसके अस्तित्व में  एक गुरु का व्यक्तित्व गहराई से बैठ जाता है और किसी भी लिप्त कर लेने वाली परिस्थिति में भी आसानी से विचलित नहीं होता है, उसमे आसक्त नहीं हो जाता।  गुरु का पहला सिद्धांत यही है- निर्लिप्तता। जैसा कि मैंने आपको बताया, यह कुछ ऐसा है जिसे किसी भी बात में लिप्त  नहीं जा सकता। यह किसी के व्यक्तित्व में बहुत गहराई तक बैठ जाता है। इसलिए यह पानी में तैरता नहीं है। अभी आप देखते हैं कि जो देश बहुत विकसित हैं, उनमें हम सोचते हैं कि हमारे पास व्यक्तिगत उपलब्धि की बहुत बड़ी शक्ति है, कि व्यक्तिगत रूप से हम बिल्कुल स्वतंत्र हैं और हम जो चाहें कर सकते हैं; और इसीलिए सामूहिकता की उपेक्षा करते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता सभी लोकतांत्रिक देशों का लक्ष्य बन जाती Read More …

Talk to Sahaja Yogis, Eve of Guru Puja Camping Borda d'Ansalonga, Ansalonga (Andorra)

गुरु पूजा से पहले शाम पर व्याख्यान  अंसलॉन्गा (अंडोरा), 30 जुलाई, 1988 कल हम सभी के लिए एक महान दिन है क्योंकि यह गुरु पूजा दिवस है, और शायद आप जानते हैं कि गुरु पूजा सभी सहजयोगियों के लिए सबसे महान दिन है, मेरे लिए भी। बेशक, सहस्रार दिवस वह दिन है, जो बहुत महत्वपूर्ण है, जो आध्यात्मिकता में और उत्क्रांती की प्रक्रिया में भी एक बड़ा इतिहास रचता है। लेकिन हम सहजयोगियों और मेरे लिए – यह बहुत उल्लेखनीय है कि हम यहां कुछ जानने और कुछ सिखाने के लिए हैं। अब, यदि आप देखते हैं कि कैसे सहज योग ज्ञान धीरे-धीरे आप सभी के पास आ गया है। ज्ञानेश्वर ने इसका बहुत सुंदर वर्णन किया है – वे कहते हैं, “जिस तरह पंखुड़ियाँ जब धरती माता पर गिरती हैं, उसी तरह धीरे से, इस ज्ञान को शिष्यों के मन पर पड़ने दें और उन्हें सुगंधित करें।” एक और बात वर्णित है चकोर नामक पक्षी, जो एक ऐसा पक्षी है जो सिर्फ पूर्णिमा के समय चांदनी का अमृत चूसता है, अन्यथा यह किसी और चीज की परवाह नहीं करता है, यह केवल अपने आप को पोषित करता है। इसलिए वे कहते हैं, “चांदनी के अमृत को चूसने वाले चकोर पक्षी की तरह शिष्यों द्वारा दिव्य ज्ञान को शोषित कर लिया जाए।” चंद्रमा आत्मा का प्रतिक है। उसी तरह, इसे उनके अस्तित्व में प्रवेश करने दें। आखिरकार, वह एक बहुत महान कवि थे, मुझे कहना होगा, कविता में कोई भी उतना गहरा नहीं जा सकता जितना ज्ञानेश्वर गए हैं, कोई Read More …