Workshop in the Park, Mother Are You The Holy Ghost? Adelaide (Australia)

                                               पार्क में कार्यशाला  एडिलेड, ऑस्ट्रेलिया, 5 मार्च, 1983। श्री माताजी : इस केंद्र को हम “बायीं विशुद्धि” कहते हैं। अब क्या आपने उन्हें बायीं विशुद्धि के बारे में बताया है? सहज योगी : नहीं, विशिष्ट पहलू नहीं, केवल इसकी सामान्य बातें। श्री माताजी : ठीक है। अब, यह बायीं विशुद्धि की पकड़ आपको तब आती है जब कि आपने मंत्रों को गलत तरीके से कहा है। देखिए, मन्त्र तभी कहे जाने चाहिए जब कोई आत्म ज्ञानी हो जो यह जानता हो कि कौन से मन्त्रों को बोलना है। और यदि आप को इसके बारे में ज्ञान नहीं हैं, फिर भी आप मंत्रों को स्वीकार करने लगते हैं। चाहे जो कोई भी आपको कहे कि, “यह मंत्र बोलो”, आप इसे बिना समझे ही कहना शुरू कर देते हैं भले ही यह किसी अधिकृत द्वारा दिया गया हो अथवा   नहीं। आप यह भी ज्ञान नहीं होते है कि यह आपके लिए है या नहीं। शायद कुछ के लिए इसकी आवश्यकता नहीं है। किसी विशेष मंत्र की आवश्यकता नहीं भी हो सकती है। और कुछ मंत्र बिल्कुल बेतुकी बातें हैं। तो ‘मन्त्र’, यह भी बहुत बड़ा विज्ञान है। और अभी-अभी मुझे बायीं विशुद्धि की पकड़ का अनुभव हो रहा है। इसे कोई व्यक्ति तब भी महसूस करता है, भले ही आपने मंत्र नहीं लिया हो लेकिन, आप दोषी महसूस कर रहे हैं। जैसे, आप देखिए, यदि आप दोष स्वीकारोक्ति और इसी तरह की चीजों के अभ्यस्त हैं, यदि आप ऐसी स्थिति के आदी हैं जहां आपको लगता रहता है कि “मैं अमुक Read More …

Puja, Mother You be in our brain Adelaide (Australia)

Puja, Mother You be in our brain आप सबके बीच आना बड़ा सुखद अनुभव है और अभी मेरे आने से पहले यहां जो कुछ हुआ उसके लिये मुझे खेद है। लेकिन जैसा कि मैंने कहा कि प्रकृति भी परमेश्वरी व्यक्तित्व की उपस्थिति में जागृत हो जाती है और एक बार जब ये जागृत हो जाय तो यह उसी तरह का व्यवहार करने लगती है जैसे कोई साक्षात्करी आत्मा करती है। ये उन लोगों से नाराज हो जाती है जो धार्मिक नहीं हैं … जो परमात्मा के बारे में जानना नहीं चाहते हैं…. जो लोग गलत कार्य करते हैं… जो लोग सामान्य लोगों जैसा व्यवहार नहीं करते हैं … या एक तरह से वे पूर्ण का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं … इस तरह के सभी लोगों से वह नाराज हो जाती है। एक बार जब वह इस स्तर तक आ जाती है तो यह स्वयं ही कार्यान्वित होने लगती है। जैसा कि आपको मालूम है कि सहजयोग के अनुसार सभी तत्वों के पीछे उनके देवता होते हैं। उदाहरण के लिये आग के देवता अग्नि हैं। अपने शुद्ध स्वरूप में ….वास्तव में अग्नि देवता हमें शुद्ध करते हैं। ये सभी को शुद्ध करते हैं … ये सोने को शुद्ध करते हैं … यदि आप सोने को आग में डाल दें तो यह जलता नहीं है बल्कि और भी चमकदार हो जाता है। लेकिन अन्य बेकार की वस्तुओं को आग जला डालती है। अतः सभी ज्वलनशील वस्तुयें अधिकांशतया निम्न श्रेणी की होती हैं जिनको जलाना ही उचित है। आश्चर्यजनक रूप से इन Read More …