The Three Paths Of Evolution Caxton Hall, London (England)

                                             विकास के तीन रास्ते सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके)। 30 मई 1979। हम जो भी जानते हैं उससे अधिक ऊँचे जीवन के बारे में आपसे बात करने के लिए मैं यहां हूं, उस शक्ति के बारे में जो हर अन्य शक्ति को व्याप्त करती है, प्रविष्ट कर जाती है ; और उस दुनिया के बारे में जिसे शांति और आनंद की दुनिया कहा जाता है। इन सभी शब्दों के बारे में आपने पहले भी सुना होगा। लेकिन मैं यहां आपको उस यंत्र के बारे में बताने वाली हूं जो हमारे भीतर रहता है, सभी हमारे अस्तित्व में बहुत अच्छी तरह स्थापित किया गया हैं, जैसा कि आप यहां चित्र में देख रहे हैं, जो कि एक जीवंत उपकरण है, जिसे आप वास्तव में अपनी आंखों से धड़कता हुआ देख सकते हैं, जब कुंडलिनी अर्थात यह कुंडलित ऊर्जा चढ़ती है। हम पहले से ही अपने अस्तित्व में इस उत्थान का आशीर्वाद पा कर धन्य हो गए हैं, अचेतन में महत्वपूर्ण भेदन के द्वारा, हमारी पूर्ण जागरूकता में एक और नए आयाम में प्रवेश करने के लिए जिससे हम वास्तव में आपकी सभी परम तत्व जिज्ञासाओं के उत्तर पा सकते हैं। अब तक, प्राचीन भारत में, हमारे पास तीन प्रकार के आंदोलन थे। मैं नहीं जानती कि, आप उन सभी के बारे में जानते हैं या नहीं , लेकिन हमारे पास तीन प्रकार थे। और उस के प्रतिबिंब हमारे देश में प्रकट हो रहे थे, दूसरे देशों में भी। यहां तक ​​कि इंग्लैंड में भी हमारे पास ऐसे लोग हुए हैं Read More …

Seminar Day 1, tricks of false gurus London (England)

डॉलिस हिल सेमिनार दिवस 1, “झूठे गुरुओं की युक्तियां”, लंदन (यूके) 27 मई 1979. ऑडियो (टीएम, झूठे गुरु, औद्योगिक क्रांति, मसीह) श्रीमाताजी: आपके लिए यह कहना ठीक है, क्योंकि वह इसके लिए ही वहां आए थे। वह तो परिपक्व था ही। वह मेरे पास आया, और उसे प्राप्त हुआ।  सहजयोगी: मैंने पाया कि उसे बहुत सरलता से प्राप्त हो गया। जिस क्षण मैंने आपके चित्र को देखा, मैंने। …. मेरा मतलब है, मैं था…. । ….. टीएम। श्रीमाताजी: मैं इच्छा है कि उन सभी में कम से कम उतना हो जितना आपके पास है तो यह कार्यान्वित हो जायेगा। सहजयोगी: ठीक है। …  श्रीमाताजी: हाँ….  सहजयोगी: और चौबीस घंटे के भीतर …..  श्रीमाताजी: हाँ ….  सहजयोगी: यह अकस्मात चैतन्य की लहर है। ….  श्रीमाताजी: हमें उन्हें बचाना है। आप देखिए, टीएम पर…., मेरा ध्यान उस ओर बहुत अधिक है, बहुत अधिक। पिछली बार हमने उस “दिव्य प्रकाश” की समस्या का समाधान किया था। “दिव्य प्रकाश” अब चला गया है। केवल उसका भाई….! आप देखते हैं? मैं “जिनेवा” गयी थी। मैं टीएम से मिलना चाहती थी, किंतु, आप देखिये, यह वर्षा आरम्भ हुई और वह सब हुआ रात्रि में, हम नहीं गए। हम उस स्थान तक जा सकते थे, यह बेहतर होता, किंतु कोई बात नहीं। तो, उसका, उसका  भाई, मुझे जिनेवा में केंद्र तक ले गया, और कहा, “वह यही है, आपको पता है।”  मैंने कहा, “ठीक है।” मैंने बंधन डाल दिया। एक सप्ताह के भीतर ही…., वह अब जेल में है, और अब चौदह वर्ष के लिए! परमात्मा का Read More …

Sahasrara Puja: I want you to demand and ask, because I have no desire London (England)

                                 सहस्रार पूजा  डॉलिस हिल, लंदन (यूके), 5 मई 1979। तो आज बहुत महत्वपूर्ण दिन है, यह आप जानते हैं ; क्योंकि सृष्टि के इतिहास में, ईसा-मसीह के समय तक, मानव जागरूकता में, केवल पुनरुत्थान की भावना पैदा की गई थी – कि आपको पुनर्जीवित किया जा सकता है या आप का पुनर्जन्म हो सकता हैं। ऐसा यह भाव उनके साथ ही प्रकट हुआ। लोगों ने इसे पहचाना, कि यह हम सभी के साथ कभी न कभी हो सकता है। पर वह नहीं हुआ। बोध कभी नहीं हुआ। वह एक समस्या थी। और वास्तविकता में प्रवेश किए बिना आप जो भी बातें कर सकते हैं, वह कल्पना ही लगता है। तो, व्यक्ति को वास्तविकता में, सच्चाई में कूदना होगा। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था और जैसा कि मैंने आपको बताया है कि, अगर यह एक या दो लोगों के साथ हुआ भी होता तो इससे आम जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता और कोई भी इसे स्वीकार नहीं करता। और रेगिस्तान में बहने वाली छोटी- मोटी नदी की तरह यह पतली हवा में गायब हो जाती है। सत्य भी , जो भी पाया गया, उसकी कभी जड़ें नहीं थीं। और इस सच्चाई के साथ सभी प्रकार की अजीब चीजें शुरू हुईं, जिनका इन लोगों ने प्रचार किया। तो मानवीय चेतना का यह चरम बिंदु होना था कि, जहाँ वह दिव्य के साथ एकाकार  हो जाता है कि, वह अपने साथ एक हो जाए। होना ही था। और वह भी उस समय होना था, जो सबसे उपयुक्त, सबसे अच्छा समय था। Read More …

Give up Misidentifications London (England)

                   “गलत पहचान छोड़ें”  डॉलिस हिल आश्रम, लंदन (यूके)। 22 अप्रैल 1979। … और ईसा-मसीह के पैरों की सफाई होने के कारण उन्होंने कहा, “हम इतना तेल क्यों बर्बाद करें? आप इसे बेच सकते हैं और गरीबों को दे सकते हैं।” और क्राइस्ट ने कहा – अब देखो उन्होंने क्या कहा – कि क्राइस्ट ने खुद ये शब्द कहे हैं और अगर उन्हें उसी तरह वर्णित किया गया है। आप बस अर्थ देखें और जो आपको समझना चाहिए। उनका कहना है कि, “ये गरीब तो हमेशा के लिए हैं, लेकिन मैं थोड़े समय के लिए ही हूं।” आप समझ सकते हैं? उन्होंने कितने स्पष्ट रूप से कहा है कि इसमें परोपकार का कोई कार्य शामिल नहीं है। लेकिन लोग दूसरा ही अर्थ लेते हैं! मुझे नहीं पता कि आपको दूसरा अर्थ कहाँ से मिलता है? कि आपको गरीबों की देखभाल करनी चाहिए। यह तुम्हारा काम बिल्कुल नहीं है! ठीक है, अतुल? गरीबों की देखभाल करना आपका काम नहीं है। हमें जो काम करना है वह मध्य में है। जिससे हम दाएं और बाएं दोनों को किनारों पर खींच सकते हैं। आपको मध्य पथ पर ही रहना होगा! जब हम मध्य में होते हैं, तो हम सबसे पहले अपने आप को अच्छी तरह से व्यवस्थित कर लेते हैं, और फिर बाएँ और दाएँ को समाया जा सकता है। गरीब और अमीर। अति-अमीर भयानक लोग हैं! वे धूम्रपान करते हैं, वे शराब पीते हैं, वे मनहूस लोग हैं। जुआ, यह, वह, हर तरह की चीजें वे करते हैं। वे अपना जीवन बर्बाद करते Read More …

Christmas Message: Thankfulness London (England)

                         कृतज्ञता  लंदन 1978-12-24 लंदन … केवल यह कार्य करना कि, एक इंसान के रूप में आना, एक इंसान की तरह जीना, और एक इंसान की तरह कष्ट उठाना। और वह इस पृथ्वी पर अवतरित हुए, अभी जानने के लिए, उस संसार को जानने के लिए जिसे उन्होने बनाया, भीतर-बाहर से। इस तरह वह हमें बचाने के लिए वे आये थे। लेकिन मेरा मतलब है, वह व्यक्ति बात कर रहा था और उसकी आज्ञा पर इतनी बड़ी पकड़ थी कि मैं बस यही कह रही थी कि, वह जिस बारे में बात कह रहा है वह खुद उसी में लक्षित हो रही है- कि उसमें नम्रता का कोई भाव नहीं बचा है! वह जिस तरह से उसके लिए ईसा-मसीह का उपयोग कर रहा था! साथ ही एक बहुत ही भयानक आज्ञा! और मैंने इसे साफ कर दिया। और सब कुछ इस प्रकार हुआ…मैं सोच रही थी कि वह कोई नाटक कर रहा है। और फिर सबसे दयनीय बात बाद में हुई जब उन्होंने कहा कि, “यहां स्थित अन्य समुदायों के लोगों के लिए आपका क्या संदेश है और आप क्या कहते हैं?” उन्होंने कहा, “हमें अपने पड़ोसी से प्यार करना चाहिए और इसी तरह हमें आपसे प्यार करना चाहिए। और यह भलाई के लिए है, और इसलिए हमने एक ऐसा काम शुरू किया है जिसके द्वारा हम लोगों को नौकरी देते हैं और उनकी देखभाल करते हैं।” और सब कुछ एक परोपकारी कार्य के साथ शुरू हुआ, और फिर यह एक संघ, एक श्रमिक संघ बन गया, और फिर वह एक Read More …

Agnya Chakra means ‘to order’ Caxton Hall, London (England)

                       “आज्ञा चक्र”  केक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 18 दिसंबर 1978। आज हम छठे चक्र के बारे में बात कर रहे हैं जिसे आज्ञा चक्र कहा जाता है। ‘ज्ञा’,  शब्द का अर्थ ‘जानना’ है, आज्ञा यानी जानना है। और ‘आ’ का अर्थ है ‘संपूर्ण’। आज्ञा चक्र का एक और अर्थ भी है। आज्ञा का अर्थ है ‘आज्ञाकारिता’ या ‘आदेश  करने के लिए’। इसका मतलब दोनों चीजों से हो सकता है। यदि आप किसी को आदेश देते हैं तो यह एक आज्ञा है और जो आदेश का पालन करता है वह आज्ञाकारी है। वह जो आज्ञा देता है। मानव में छठा चक्र तब बनाया गया जब उसने सोचना शुरू किया| विचार भाषा में व्यक्त होते हैं|  यदि हमारे पास भाषा ना हो तो हम विचार नहीं कर सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे अंदर विचार नहीं आ रहे| यदि हम इसे व्यक्त नहीं कर पा रहे इस का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि हमारे अंदर विचार प्रक्रिया नहीं चल रही| लेकिन उस सूक्ष्म अवस्था में जब हम तक विचार आ रहे हैं वे भाषा में नहीं हैं, इसलिए वे हम तक प्रसारित नहीं हैं, और इसलिए यदि हमारे पास भाषा ना हो तो हम नहीं समझ सकते कि हम क्या विचार कर रहे हैं|   आपने देखा होगा कि इसीलिए बच्चे जो चाहते हैं वो हमें नहीं बता पाते क्यों कि वे जो चाहते हैं उसे कह नहीं पाते| वे पेट में भूख महसूस करते हैं और माना कि पानी या अन्य कुछ माँगना चाहते हैं, लेकिन वे ऐसा Read More …

Talk to Sahaja Yogis: Dharma London (England)

                                                            धर्म सहज योगियों से बातचीत   लंदन (यूके), 5 अक्टूबर, 1978 वह, मध्य वाली वही पोषण करने वाली शक्ति है अर्थात वह शक्ति है जिसके द्वारा हम विकसित होते हैं, अर्थात हमें अनायास ही सहज रूप से अपना भरण-पोषण मिलता है। यह पोषण जो हमें एक मनुष्य के रूप में प्राप्त है, जब इसे हमारे भीतर मौजूद पांच तत्वों पर अभिव्यक्त होना होता है, तो स्रोत तो वहीं होता है लेकिन हमें इसके विभिन्न तत्वों के माध्यम से उस तक पहुंचना होता है। जब यह आदान-प्रदान होता है या, हम कह सकते हैं, जब हमें इस बल को बाहर लगाना होता है, तो वह इन पर धर्म की स्थापना के माध्यम से किया जाना है। किसी योग की तरह या, आप कह सकते हैं, कनेक्शन। जैसे आप कह सकते हैं, मान लीजिए कि सूर्य है। सूर्य प्रकाश का स्रोत है और प्रकाश का स्रोत इस पृथ्वी पर आया है जो पाँच तत्वों से बनी है। तो सूरज की किरणें तो आनी ही हैं, लेकिन जब वे अंदर आती हैं, इस आने की क्रिया में, तो क्या करती हैं? वे इस संसार को प्रकाशित करते हैं। लेकिन यह तभी संभव है जब धर्म हो, अर्थात प्रकाश हो, किरणें हों। किरणें कई चीजों से बाधित हो सकती हैं। यदि किरणें बाधित होती हैं, तो अ-धर्म होता है। तो धर्म का स्रोत, धर्म का प्रसार और अंततः पांच तत्वों पर अभिव्यक्ति एक पूर्ण चीज़ है जो भवसागर है। यह खेल हमारे भीतर चलता रहता है। हमारी उत्क्रांती की शक्ति जो प्रारंभ से ही कार्यरत Read More …

Knots On The Three Channels Caxton Hall, London (England)

                                         “तीन नाड़ियों की ग्रंथियां”  कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 2 अक्टूबर 1978 यह जो ब्रह्म का तत्व है, यह सिद्धांत है उस स्पंदित भाग, हमारे ही अंदर निहित शक्ति का तत्व, जिसे हमें महसूस करना है, और जो हर चीज में स्पंदित होती है। यह सहज योग के साथ होता है, बेशक, कुंडलिनी चढ़ जाती है, लेकिन यह इसका अंत नहीं है,  क्योंकि, मानव वह साधन है जिसमें यह प्रकाश प्रकट होता है। लेकिन एक बार प्रकट होने के बाद यह जरूरी नहीं है कि यह हर समय ठीक से जलती रहे। एक संभावना है, ज्यादातर यह एक संभावना है, कि प्रकाश बुझ भी सकता है। अगर कोई हवा का रुख इसके खिलाफ है, तो यह बुझ भी सकता है। यह थोड़ा कम भी हो सकता है। यह बाहर आ सकता है यह झिलमिला सकता है, यह थोड़ा कम हो सकता है। क्योंकि मनुष्य, जैसे कि वे हैं, वे तीन जटिलताओं में पड़ गए हैं। जैसे ही वे मनुष्य बनते हैं, ये तीन जटिलताएं उनमें शुरू होती हैं। और तीन, इन तीन जटिलताओं के कारण, किसी व्यक्ति को यह जानना होगा कि यदि आपको उससे बाहर निकलना है, तो आपको कुछ निश्चित गांठों को तोड़ना होगा – उन्हें संस्कृत भाषा में ग्रन्थि कहा जाता है – जो आपको यह मिथ्या दे रही है – मिथ्यात्व है। मिथ्यात्व यह की,  हम सोचते हैं कि, “इस दुनिया में, आखिर सब कुछ विज्ञान ही है, और जो कुछ भी हम देखते हैं और उससे परे सब कुछ विज्ञान है …” और वैसी सभी प्रकार Read More …

The Principle of Brahma Caxton Hall, London (England)

                                             ब्रह्म का तत्व  कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 11 सितंबर 1978 आज मैं आपको कुछ ऐसा बताना चाहती हूं, शायद मैंने उस बिंदु को पहले कभी नहीं छुआ है। या मैंने इसके बारे में विस्तार से बात नहीं की है। यह ब्रह्म के तत्व के बारे में है: ब्रह्म का तत्व क्या है? कैसे इसका अस्तित्व है? यह कैसे पैदा होता है? यह कैसे अभिव्यक्त होता है? और कैसे, यह निर्लिप्त भी है और संलग्न भी है । विवरण में,  ब्रह्म का तत्व स्वयं ब्रह्म से भिन्न है। जैसे, मैं जिन सिद्धांतों का पालन करती हूं, वे मुझ से अलग हैं। यह एक बहुत ही सूक्ष्म विषय है और इसके लिए वास्तविक ध्यानस्थ चित्त  की आवश्यकता है। तो अपने मन की सारी समीक्षा, कृपया उन्हें बंद कर दें, जैसे आपने अपने जूते उतार दिए हैं। क्या आप सभी ने अपने जूते उतार दिए हैं? कृपया। और बस मेरी ओर थोड़ा, थोड़ा गहन ध्यान देकर सुनो। क्या आप आगे आ सकते हैं! आप सब आगे आ सकते हैं ताकि जो बाद में आने वाले हैं वो बाद में आ सकें। आगे आओ! मुझे लगता है कि आगे आना बेहतर है, क्योंकि हमारे यहां माइक नहीं है। यहां आगे आना बेहतर है। जिस प्रका,र आप जिन सिद्धांतों पर आधारित हैं, वे स्वयं आप से भिन्न हैं, उसी तरह, ब्रह्म का तत्व स्वयं ब्रह्म से भिन्न है, लेकिन एक ब्रह्म है और ब्रह्म में निहित है। लेकिन ब्रह्म स्वयं तत्व द्वारा कायम है। आयाम में, आप कह सकते हैं कि ब्रह्म व्यापक है, बड़ा Read More …

Guru Puja: Your own dignity and gravity Finchley Ashram, London (England)

                               गुरु पूजा, “आपका गुरुत्व एवं  गरिमा “  फिंचली आश्रम, लंदन (यूके), 21 जुलाई 1978 … अपने गुरु की पूजा, अपनी माता की नहीं, अपने गुरु की। गुरु शिष्यों में धर्म, निर्वाह स्थापित करता है। वह पोषक शक्ति क्या है, शिष्यों को इसके बारे में सभी स्पष्ट विचार देता है। वह पूरी दुनिया को उपदेश कर सकता है लेकिन अपने शिष्यों के लिए, वह बहुत स्पष्ट निर्देश देता है। अधिकांश गुरु, जब वे ऐसा करते हैं, तो वे वास्तव में हर शिष्य को तराशते हैं। पहले वे तौलते हैं कि शिष्य का आग्रह कितना है, शिष्य वास्तव में कितना ग्रहण कर सकता है, और फिर वे किसी को शिष्य के रूप में स्वीकार करते हैं कि यदि  शिष्य वास्तव में धर्म के बारे में निर्देश प्राप्त करने योग्य भी है। लेकिन सहज योग में नहीं क्योंकि आपकी गुरु एक माँ है। इसलिए वह आपका शिक्षारम्भ आपकी क्षमता,ग्रहण योग्यता,और आपके व्यक्तित्व के गुण जाने बिना करती है। यह गुरु की एक बहुत ही भिन्न शैली है जो की आप को प्राप्त है जिसमे आपके शरीर की, आपके मन की ,और आपकी समस्याओं की देखभाल करता है और फिर कुंडलिनी जागरण का आशीर्वाद देता है। लेकिन आम तौर पर गुरु ऐसा नहीं करते हैं। कारण है: वे केवल गुरु हैं, माँ नहीं। जब आप गुरु पूजा करते हैं, तो आप वास्तव में क्या करते हैं? आपको यह समझना चाहिए। इसका मतलब है कि मेरी पूजा के माध्यम से आप अपने अंदर स्थित गुरु के सिद्धांत की पूजा करते हैं। सिद्धांत तुम्हारे भीतर है: Read More …

Ego, The West, Love & Money Caxton Hall, London (England)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी ‘अहंकार,पश्चिमी देश, प्रेम और धन’ कैक्स्टन हॉल, लंदन, इंग्लैंड 17 जुलाई, 1978 श्री माताजी: आप कैसे हैं? बेहतर? साधक: ज्यादा बुरा नहीं! श्री माताजी: ज्यादा बुरा नहीं! सब लोग धीरे धीरे बेहतर हो रहे हैं, है ना? डोमिनिक तुम कैसे हो? डोमिनिक: अच्छा हूं! श्री माताजी: तुम हमेशा ही अच्छे होते हो! इस उत्तर पर गौर करें ‘अच्छा हूं ‘। ये जब से पैदा हुए तब से अच्छे हैं, परंतु सारी दुनिया भयानक है। है ना? (हंसते हुए) एक आत्म साक्षात्कारी के लिए ये ऐसा है। वो बहुत आश्चर्यचकित होता है, बहुत ज्यादा सदमा ग्रस्त भी जिस तरह से दुनिया के तौर तरीके हैं। कितने लोग आज पहली बार आए हैं? कृपया अपने हाथ ऊपर उठाइए। हां! और कौन? तुम? आप तीन चार लोग? मैं सोचती हूं अगर वो अंदर आ जाएं। आप भी पहली बार आए हैं? साधक: नहीं! श्री माताजी: नहीं? आप को प्राप्त हो गया है! आप को प्राप्त हो गया है। आप का क्या? आप पहली बार आईं हैं? महिला साधक:  मैं पिछली बार आई थी। श्री माताजी: पिछली बार? क्या हुआ था? क्या आप को अच्छा अनुभव हुआ था? बढ़िया! आप को कैसा लगा? बढ़िया! और आप भी वहां थीं? महिला साधक: नहीं! श्री माताजी: तुम भी वहां थे। नहीं? पहली बार? अच्छा! हम ऐसा कर सकते हैं, जो लोग आज पहली बार आए हैं, वे इस तरफ बैठ जाएं, जिस से आप को देखना बहुत आसान हो। और मैं उनकी कुंडलिनी देखना चाहूंगी। अगर आप उस तरह बैठें, Read More …

What happens after Self-realisation? Caxton Hall, London (England)

              आत्म-साक्षात्कार के बाद क्या होता है?   कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 26 जून 1978 प्रश्न यह है कि आत्म-साक्षात्कार के बाद वास्तव में हमारे साथ क्या होता है? बेशक, मेरा मतलब है, आप निर्विचार जागरूक महसूस करते हैं, आप सामूहिक चेतना महसूस करते हैं, आप दूसरों की कुंडलिनी को महसूस कर सकते हैं, आप कुंडलिनी को ऊपर उठा सकते हैं, आप चक्रों को महसूस कर सकते हैं। यह सब आप जानते हैं। लेकिन असल में, इंसान के साथ गहरे तरीके से क्या होता है, यह देखना होगा। तो, सबसे पहले, आइए जानें कि हम कैसे हैं, आत्मसाक्षात्कार होने से पहले हम क्या हैं, ताकि हमें पता चलेगा कि बोध के बाद हमारे साथ क्या होता है। अब यह विषय बहुत सूक्ष्म है और मैं चाहूंगी कि आप इसे बहुत, बहुत बड़ी एकाग्रता से सुनें। आज मैं अमूर्त चीजों के बारे में बात नहीं करने जा रही हूं, लेकिन बिल्कुल ऐसी चीज के बारे में जो वास्तव में बहुत तथ्य पूर्ण है। एक इंसान क्रमागत उत्क्रांति से बना है – आप यह अच्छी तरह से जानते हैं – कि वह उत्क्रांति से बना है। और एक बड़ा वाद-विवाद चल रहा है। ये इन बातों को नहीं समझते, इसलिए विवाद है। लेकिन वह सात चरणों में विकसित होता है और इसलिए कहा जाता है कि: इस दुनिया को बनाने में उसे सात दिन लगे। हम कह सकते हैं कि पूरे ब्रह्मांड ने लगभग सात चरण लिए। लेकिन, जैसा कि आप समझते हैं, एक बीज में सभी सूक्ष्म बीज होते हैं, एक पेड़ के Read More …

The Difference Between East & West Caxton Hall, London (England)

                                 पूर्व और पश्चिम के बीच अंतर कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 19 जून 1978 हमारे पाश्चात्य समाज की समस्या यह है… आप देखिए, पूर्वी समाज की अपनी समस्याएं हैं और पश्चिमी समाज की अपनी समस्याएं हैं। मूल रूप से वे दो अलग-अलग समस्याएं हैं, बिल्कुल दो अलग-अलग समस्याएं हैं, और पूर्व की समस्याओं के बारे में चर्चा करना आपके लिए किसी काम का नहीं होगा। उदाहरण के लिए, भगवद गीता में, श्री कृष्ण ने कहा है कि, “योग क्षेम वहाम्यहम।” “मैं आपके योग की देखभाल करता हूं,” का अर्थ है भगवान के साथ मिलन। ‘वहाम्यहम’ का अर्थ है: मैं उसका वहन करता हूं, उस प्रक्रिया को करता हूं या मैं वह व्यक्ति हूं जिसे वह प्रक्रिया करनी है। और ‘क्षेम’, क्षेम का अर्थ है भलाई, “मैं भलाई की देखभाल करता हूं”। लेकिन भारत में, लोग पूरी तरह से मानते हैं कि भगवान हमारे उद्धार की देखभाल करते हैं। मेरा मतलब है कि वे विश्वास करते हैं, मेरा मतलब है कि उनके पास ऐसी श्रद्धा है। जो एक बहुत बड़ा फायदा है, उन्हें ऐसा विश्वास नहीं होता कि वे स्वयं इसके बारे में कुछ कर सकते हैं। उनमें से अधिकांश, मेरा मतलब है कि बहुत थोड़े पश्चिमीकृत लोगों को छोड़कर, अन्यथा वे आमतौर पर सोचते हैं कि केवल ईश्वर ही उनके लिए यह करने जा रहे हैं। जैसे भी संभव हो। वह एक अवतार, या एक अवतरण, या कोई ऐसा व्यक्ति भेज सकता है जो हमें मुक्ति दिलाएगा। उन्हें विश्वास नहीं है कि वे इसके बारे में कुछ भी कर सकते हैं, Read More …

Rationalism, Emotionalism And Wisdom Caxton Hall, London (England)

                            “तर्कबुद्धि, भावनात्मकता और विवेक”  कैक्सटन हॉल, लंदन, 12 जून 1978। … तो तर्कसंगतता क्या कर सकती है? हमारे अंदर तर्कसंगतता होने के कुछ कारण होने चाहिए [और] भगवान ने हमें तर्कसंगतता क्यों दी है। वह अपने हीरे को इस तरह बर्बाद नहीं करता है! तर्कसंगतता हमें यह समझने की समझ देती है कि हम तर्कसंगतता के माध्यम से वहां नहीं पहुंच सकते। क्योंकि जहाँ तक और जब तक यह घटना आपके साथ घटित नहीं होती, तब तक आप उस पर विश्वास नहीं करेंगे। आप इस पर विश्वास नहीं करने जा रहे हैं कि, यह तर्कसंगतता, जिस पर हम निर्भर हैं, जो हमारा सहारा है, जो ; हम हर समय सोचते हैं कि तर्कसंगतता के साथ ही हमारी पहचान पूर्ण होती है। और हम बहुत तर्कसंगत हैं और हमें अपनी तर्कसंगतता पर भी गर्व है। तो, आप तर्कसंगतता के माध्यम से एक बिंदु पर पहुंचते हैं, जहां आप को समझ आता है कि, यह घोड़ा अब आगे किसी भी उपयोग का नहीं होगा। यह तर्कसंगतता का उपयोग है! एक तरह से यह आपको उस समापन बिंदु पर ले जाता है जहाँ आपको लगता है कि इसे छोड़ दिया जाना चाहिए या इस पर निर्भर नहीं किया जा सकता है। दूसरी तरफ तर्कसंगतता आपको एक दृष्टिकोण देती है जिसका आप को अनुभव प्राप्त होने के बाद में संबंध समझ आ सकता है। आप समझने लगते हैं कि तर्कसंगतता आपको क्यों निराश कर रही थी। तो यह एक नकारात्मक तरीके से एक शिक्षक है। यह एक नकारात्मक तरीके से एक शिक्षक है। लेकिन Read More …

Satya Yuga: The Unconscious Caxton Hall, London (England)

   [Hindi translation from English]    हृदय चक्र और ओमकारा फरवरी 1978. यह बात भारत में पश्चिमी योगियों के पहले भारत दौरे (जनवरी-मार्च 1978) के दौरान दी गई थी।  ऑडियो से प्रतिलिपि अब हृदय के इस बायीं ओर का संबंध आपकी माता और शिव अर्थात अस्तित्व से है। आप अपना अस्तित्व अपनी माँ के माध्यम से प्राप्त करते हैं।  जहाँ तक आपका अस्तित्व का प्रश्न है, शिव और पार्वती, वे आपके माता-पिता हैं,  दोनों ही आपके माता-पिता हैं  और यह इतना सुंदर केंद्र है आपका, हृदय चक्र है। आप चाहते हैं कि कोई व्यक्ति आपकी कोशिशों पर अनुकूल प्रतिक्रिया करे, आप चाहते हैं कि कोई व्यक्ति कुछ फल प्रदान करे या ऐसा ही कुछ और, आप किसी को बहुत ही अड़ियल पाते हैं,  मैंने आपको बताया है कि आप अच्छी तरह से उनकी जूता पट्टी कर सकते हैं, यह सभी चीज़े करें। लेकिन एक बहुत ही सरल तरीका है, यदि आप जानते हैं कि इसे कैसे करना है। आप देखिये, आप सिर्फ उनके ह्रदय [मध्य हृदय] के बारे में सोचें, उनके हृदय में एक बंधन लगा देते हैं। और आप इसे इतनी खूबसूरती से कर सकते हैं, आप किसी भी कठिनाइयों के बिना किसी व्यक्ति को पिघला सकते हैं यदि आप जानते हैं कि उनके दिल को कैसे संभालना है। आपको उनके दिल से अपील करनी होगी और वह सबसे अच्छा आकर्षण है, जो मैं आपको बताती हूं और सबसे अच्छी गुप्त विधि है जिसके द्वारा आप किसी के साथ बात करते समय उनमें अच्छाई ला सकते हैं। मान लीजिए कि मैं Read More …

Ask for the Truth London (England)

                   सार्वजनिक कार्यक्रम लंदन 20-03-1970 …यह आपको पता होना चाहिए कि मैं ऐसा कुछ बताने वाली नहीं हूँ जो सत्य नहीं है, क्योंकि मैं यहां किसी राजनीतिक लाभ के लिए, व्यावसायिक लाभ के लिए नहीं हूं। नहीं साहब, मैं यहां स्वयं आपके फायदे के लिए हूं, असलियत के बारे में। यदि आप उपलब्धि चाहते हैं तो इसके बारे में असली बनें। अब आप खुद ही देख लीजिए कि ऐसा होता है या नहीं। आप अपनी खुली आंखों से देख सकते हैं – इन लोगों ने देखा है – कुंडलिनी को स्पंदित होता हुआ। आप इसे देख सकते हैं। यह धड़कती है। जब लोग मेरे पैर छूते हैं, तो कई मामलों में यह धड़कती है। उन्होंने इसे देखा है। वे सब झूठे नहीं हैं! और उन्हें झूठ क्यों बोलना चाहिए? हासिल करने के लिए कुछ नहीं: पैसा नहीं, सबसे पहले, वही अलग कर दिया है। तो दूसरी बात क्या है? यह कुंडलिनी उठती है, और आप इसे ऊपर उठते हुए देख सकते हैं, इन सभी चक्रों से होकर गुजरती है, और यह उस स्थान पर रुक जाती है जहां आपको कोई समस्या है। एक अन्य दिन हमारे पास कहीं से एक बहुत बड़ा आदमी था जो मुझसे मिलने आया था, और उसकी कुंडलिनी ऊपर आई, और बस ऐसे ही यहां धड़क रही थी। और यह सारा हिस्सा ऐसे ही धड़क रहा था। मेरा मतलब केवल उस हिस्से से है। तो लोगों ने उससे पूछा, “क्या तुम ठीक हो?” उन्होंने कहा, “हां, मैं ठीक हूं।” “लेकिन क्या आपको लीवर की समस्या है?” “हाँ Read More …

We are all seeking Caxton Hall, London (England)

                    हम सभी इच्छुक हैं  सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल, लंदन, 20 मार्च 1978 ग्रेगोइरे ने इतनी सारी बातें कह दी हैं कि मैं वास्तव में नहीं जानती कि उसके बाद क्या कहना है। सच में अवाक। मुझे पता है कि यह एक सच्चाई है और आपको इसका सामना करना होगा, हालांकि मैं इसके बारे में संकोचशील हूं। तुम सब खोज रहे थे, और मुझे लगता है कि जब से मुझे याद पड़ता है, तब से मैं किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिली जो खोज नहीं रहा था। वे पैसे में, सत्ता में ख़ोज कर रहे होंगे। लेकिन उनमें से बहुत से लोग वास्तव में कुछ इससे भी परे की तलाश कर रहे थे। पश्चिम में, मैंने हमेशा महसूस किया कि पुराने और प्राचीन काल के सभी महान संत जो परमात्मा की तलाश कर रहे थे, पैदा हुए हैं। मैं देख सकती थी , जिस तरह से आपने भौतिकवाद को नापसंद किया है; जिस तरह से आपने जीवन के बारे में एक तरह की समझ हासिल की है… नई बात है। ईसा-मसीह के समय में कुछ कोढ़ी और कुछ बीमार लोगों को छोड़कर ऐसे लोगों को देखना संभव नहीं था। अन्य कोई नहीं था जो उसे देखने को तैयार हो। निःसंदेह समय बदल गया है। लेकिन, इस तलाश में कई लोगों ने बहुत सारी गलतियां की हैं। गलतियों को हमेशा माफ किया जा सकता है। उन्हें ठीक किया जाना चाहिए। मैं इसके साथ पैदा हो हूं। मुझे पता था कि मुझे यह करना है और मुझे पता था कि मुझे एक दिन Read More …

Spirit, Attention, Mind Finchley Ashram, London (England)

                                                                “आत्मा, चित्त, मन”  फिंचली आश्रम, लंदन (यूके), 20 फरवरी 1978 … और वह हमें एक साधन के रूप में उपयोग कर रहा है। साथ चलो! जैसा की मैंने कहा। अब क्रिस्टीन ने मुझसे पूछा था, “हमारा समर्पण क्या है?” और उसने मुझसे पूछा है कि क्या हमारे पास एक स्वतंत्र इच्छा है या नहीं। ठीक है? आपके पास अपनी एक स्वतंत्र इच्छा है। खासतौर पर इंसानों के पास है, जानवरों के पास नहीं। हम कह सकते हैं, आपके पास चुनने की स्वतंत्र इच्छा है, अच्छा और बुरा, सत्यवादिता और असत्यवादिता। अब, आप उसकी मर्जी के सामने समर्पण करने या ना करने के बीच चुन सकते हैं,;अथवा अपनी ही इच्छाओं के दबाव में आने के लिए। अब, उसने मुझसे पूछा, “समर्पण क्या है?” समर्पण, जैसा कि मैं कह रही हूं, यह तीन चरणों में किया जाना है। विशेष रूप से यहाँ इस देश में जहाँ लोग सोचते हैं, युक्तिसंगत बनाते हैं, विश्लेषण करते हैं; चूँकि यह आसान नहीं है। अन्यथा यदि आप इसे कर पाते, तो आप इसे स्वचालित रूप से कर सकते हैं  ईश्वर को मानना, स्वयं, एक प्रकार से आपकी निश्चित धारणाओं पर आधारित है। मुझे नहीं पता कि भगवान के बारे में आपके पास किस तरह की धारणाएं हैं, लेकिन माना कि कुछ निश्चित अवधारणाएं हैं, व्यक्तिगत। सभी के पास ईश्वर के लिए अलग-अलग अवधारणाएँ हैं। और हो सकता है कि आप देखें कि वह इतना सर्वशक्तिमान है और वह इतना महान है और आप बिना सोचे समझे उस के सामने नतमस्तक हो जाते हैं। लेकिन ऐसा नहीं Read More …

Nabhi Chakra London (England)

                                                      नाभी चक्र  लंदन 1978-02-20 जिस तरह से इसे हमारे भीतर रखा गया है. नाभी चक्र के भी दो पहलू हैं- बायां और दायां। नाभी चक्र के बायीं ओर एक केंद्र के रूप में स्थित है या आप इसे चक्र या उप-चक्र कहते हैं जिसे चंद्र का अर्थात चंद्रमा कहा जाता है। बायीं ओर चंद्र केंद्र और दाहिनी ओर सूर्य केंद्र है और वे बिल्कुल चंद्र रेखा और सूर्य रेखा यानी पहले इड़ा और पिंगला पर स्थित हैं। ये दो केंद्र वे दो बिंदु हैं जिन तक हम जा सकते हैं और बाएं से दाएं जा सकते हैं। उससे आगे जब हम जाने लगते हैं तो आप हदें पार कर जाते हैं. अब ये दोनों केंद्र जब स्थानीयकृत होते हैं, तो देखिए कि उनमें ऊर्ध्वाधर स्पंदन प्रवाहित होते हैं, लेकिन जब वे उस बिंदु पर स्थानीयकृत होते हैं तो हम उन्हें कैसे बिगाड़ देते हैं। हमें समझना होगा. बायीं नाभी और दाहिनी नाभी एक दूसरे पर निर्भर हैं। यदि आप बायीं नाभी से बहुत अधिक खींचते हैं या बायीं नाभी पर बहुत अधिक काम करते हैं तो दाहिनी नाभी भी पकड़ सकती है। लेकिन कहते हैं हम एक-एक करके लेंगे. अब बाईं नाभी पकड़ी गई है, आम तौर पर यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति के घर पर खाना खाते हैं जो किसी एक प्रकार का अध्यात्मवादी है या जो सत्य साईं बाबा की तरह  प्रसाद दे रहा है, यह भयानक व्यक्ति है, उसकी वे विभूतियाँ हैं जैसा कि वे इसे कहते हैं क्योंकि यह श्मशान से आती है देखिये, उस राख Read More …

Deeper Meditation London (England)

                                               “गहन ध्यान”  लंदन, 20 फरवरी 1978 कुली (टोनी पानियोटौ) क्या आपने इसे लिखा है? श्री माताजी: नमस्ते, आप कैसे हैं? योगी: बहुत अच्छा, धन्यवाद। श्री माताजी: परमात्मा आप को आशिर्वादित करें ! आप कुर्सी पर बैठ सकते हैं। आराम से रहो। योगी: ओह, यह आप की बहुत कृपा है! श्री माताजी: कुली से कहो कि वह स्वयं के लिए लिख ले। योगी: वह कर रहा है। नमस्कार! डगलस आप कैसे हैं? क्या हाल है? डगलस फ्राई: बहुत अच्छा! श्री माताजी: बहुत बढ़िया लग रही है! एक फूल की तरह सुंदर! देखो, मेरे पास कितने सुंदर बच्चे हैं, बिलकुल यहाँ फूलों की इन पंखुड़ियों की तरह। क्या आप थोड़ी देर के लिए एक खिड़की खोल सकते हैं। बस पांच मिनट के लिए खिड़की खोलें। आराम से बैठो। इस तरह सहज रहें। मेरा मतलब। हां, बहुत सहज रहें। एक को बहुत, बहुत सहज, बहुत सहज होना पड़ता है। मुझे मिलने से पहले ही उसे यह प्राप्त हो गया था ! क्योंकि इससे पता चलता है कि यह हवा में लहरा रहा है। आज मैं आपको आगे के ध्यान के बारे में बताना चाहती हूं कि: हमें कैसे बढना है और कैसे खुद को समझना है। आप देखिए अभी तक चीज़ों से व्यवहार करने की आप की आदतें अथवा तौर-तरीके रहे हैं : जिस भी तरह से आपने अपनी सांसारिक,व्यक्तिगत, भौतिक और, शरीर की समस्याओं निपटा है, लेकिन अब जैसे ही आपने परमात्मा के राज्य में प्रवेश किया है और ईश्वर की शक्ति आपके माध्यम से बह रही है, आपको पता होना चाहिए Read More …

God and Creation Caxton Hall, London (England)

                                         परमात्मा और रचना   कैक्सटन हॉल, लंदन 1977-11-28 जैसा कि गेविन ने आपको पहले ही विस्तार से बताया है कि आज का विषय वास्तव में एक बहुत विस्तृत विषय है और इस विषय को समझने के लिए एकाग्र चित्त होना होगा। और जैसा कि उन्होंने आपको पहले ही बताया है कि यह मेरा व्यक्तिपरक ज्ञान है जो आपका भी हो सकता है। और आपको इसे अपनी चैतन्यमयी जागरूकता से ही सत्यापित करना होगा। क्योंकि यही एकमात्र ऐसी जागरूकता है जो आपको पूर्ण परिणाम दे सकती है। जैसा कि मैंने आपको बताया है, मानव जागरूकता अभी भी अधूरी है, जब तक आप आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से चैतन्यमयी जागरूकता प्राप्त नहीं करते, जिसमें आत्मा आपसे बात करना शुरू कर देती है, आप सत्य को सत्यापित नहीं कर सकते। तो यह व्यक्तिपरक ज्ञान के सबसे आवश्यक पहलुओं में से एक है। कोई भी कुछ भी कहता है, उस पर बिल्कुल भी विश्वास करने की जरूरत नहीं है। और जैसा कि मैंने आपको बताया है कि आपको मेरी बातों पर भी विश्वास करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इसे नकारा भी नहीं जाना चाहिए क्योंकि जैसा कि मैंने आपको बताया कि यह एक बहुत ही सूक्ष्म विषय है और व्यक्ति को इसमें थोड़ा समझने वाला होना चाहिए ना की बस स्वीकार कर लेने वाला शायद कुछ लोगों के साथ। लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता। भले ही आप इसे थोड़े समय के लिए स्वीकार कर लें, अगर आपको यह पसंद नहीं है तो आप इसे बाद में छोड़ सकते हैं। लेकिन इसके खिलाफ किसी तरह का Read More …

The history of Tantrism Caxton Hall, London (England)

                          तंत्रवाद सार्वजनिक कार्यक्रम  कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 21 नवंबर 1977 मेरे प्रिय साधकों, मैं गेविन ब्राउन की शुक्रगुजार हूं कि वह मेरे द्वारा पहले कही गई कुछ बातों को समेटने में सक्षम हैं और मुझे पिछली बार जो मैंने आपको बताया था, उसके सभी विवरणों में जाने की जरूरत नहीं है। आप में से कुछ लोग यहां पहली बार आए हैं। [टेप बाधित]। जैसा कि उन्होंने कहा, तंत्र का अर्थ है तकनीक, यह एक तकनीक है। और संस्कृत भाषा में यंत्र का अर्थ है तंत्र\यंत्र रचना। तो, तंत्र की तकनीक। अब हम किस तंत्र की बात कर रहे हैं? क्या हमारे बाहर या अंदर कोई तंत्र है? या यह किसी सूक्ष्म विधि से काम किया गया है? यदि आप खोज रहे हैं और यदि आप साधक हैं तो ये सभी प्रश्न हमारे मन में आने चाहिए। लेकिन मुझे लगता है कि पश्चिम में हालांकि भौतिक रूप से लोग बहुत विकसित हैं, उन्होंने कई भौतिक प्रश्नों और समस्याओं को सुलझा लिया है, वे बहुत अच्छी तरह से सुसज्जित हैं, लेकिन जहां तक ​​​​आध्यात्मिक जीवन का संबंध है, फिर भी, वे बहुत ही अनाड़ी हैं। यद्यपि अनुसरण करने के लिए उनके पास मसीह जैसा महान व्यक्तित्व था, और कितना बढ़िया यह आदर्श था! लेकिन शायद एक संगठित धर्म के कारण, शायद उन लोगों के लिए जो वास्तविक साधक थे और जो वास्तव में ध्यान विधियों के माध्यम से इसमें प्रवेश करना चाहते थे यह यह संभव नहीं था| तो, यह तंत्र या तकनीक जो हमारे आत्म-साक्षात्कार को कार्यान्वित करती है, उसे जानना Read More …

Workshop Finchley Ashram, London (England)

HH Shri Mataji, Workshop Part-1, Finchley Ashram, London, UK, 1977-1118. सभी प्रोस्टेट ग्रंथि और  सभी चीजें अति सक्रियता के कारण शामिल होती हैं। इस तरह की अति सक्रियता से पूरा तंत्रिका तंत्र बर्बाद हो जाता है। मेरा मतलब है, क्या आप एक सेक्स पॉइंट के अलावा कुछ नहीं हैं?  हमें अपने व्यक्तित्व का सम्मान करना चाहिए। आप केवल एक सेक्स पॉइंट नहीं हैं। मेरा मतलब है, यहां तक कि जानवर भी ऐसे नहीं हैं। हम केवल हमारा सेक्स पॉइंट कैसे हो सकते हैं? लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप उन लोगों की तरह बन जाएं जो आप महिलाओं को नहीं देख सकते। आप क्यों नहीं कर सकते? आप महिलाओं को देख सकते हैं, अगर आप अपकी आंखों में शुद्धता हैं, आपको मैं होनी चाहिए। हर कोई देखेगा, आप देखिए, हम इसके बारे में कभी ऐसा महसूस नहीं करते। बिलकुल नहीं। लेकिन तुम्हारी आंखें शुद्ध नहीं हैं, तुम देखो, वे असंतुष्ट आंखें हैं। वे व्यभिचारी हैं। यही कारण है कि वे एक व्यक्ति से संतुष्ट नहीं हैं, एक से दूसरे को वे आगे भाग रहे हैं। आपके माता-पिता ने क्या गलतियाँ की हैं, आप उन गलतियों को नहीं करने जा रहे हैं या आप करते हैं? या आपके दादा-दादी ने किया है। यह सब कुछ खराब कर देता है। पूरा समाज आधारित है, पूरा समाज, एक छोटी सी बात पर आधारित है, आप सेक्स और उसकी पवित्रता को कहां तक समझते हैं। देखिए, हम सब भाई-बहन की तरह बैठे हैं। हर कोई जानता है कि कौन किसका पति है, Read More …

Workshop Finchley Ashram, London (England)

Finchley, Ashram 28-10-1977  [अस्पष्ट बातचीत] फिंचले, 28 अक्टूबर 1977। पहले कैक्सटन हॉल व्याख्यान के बाद प्रश्न और प्रवचन, 24 अक्टूबर 1977। आदमी 1: मैं बिस्तर पर पड़ा था [अस्पष्ट], मैं कुछ भी नहीं देख पा रहा  था। मैं बिस्तर पर किसी से लड़ रहा था।  जब मैं [अस्पष्ट, उससे छूटने ] के लिए लड़ रहा था तो मैं पूरी तरह से मुक्त हो गया था। लेकिन साथ ही, मुझे उसे पकड के भी रखना था  ताकि वह मुझसे भाग  न  सके । और फिर [अस्पष्ट], वहाँ आय खिड़की के माध्यम से प्रकाश की एक चमक। यह प्रकाश की एक भीषण चमक  [अस्पष्ट, ]  थी  और मैंने दूसरे व्यक्ति को बिस्तर पर देखा, और यह मैं था।  श्री माताजी: [अस्पष्ट]  आदमी 2: वह खुद से लड़ रहा था। श्री माताजी : ओह, आपने चेहरा देखा और यह आप थे?  आदमी 1: मैंने चेहरा नहीं देखा, लेकिन मुझे पता था कि यह मैं था।  श्री माताजी : यह ऐसा ही है। फिर मैं आत्मा को [अस्पष्ट] करती  हूं।  आदमी 1: यह एक बहुत शक्तिशाली भावना थी . श्री माताजी: आपका नाम क्या है?  महिला 1: डेनिएल | [अस्पष्ट]  श्री माताजी : आप एक भारतीय हैं?  महिला 1: नहीं, मैं मॉरीशस से हूं। [अस्पष्ट]।  श्री माताजी: हाँ। वहां बहुत सारे भारतीय हैं। श्री माताजी: क्या आपको कोई कंपन महसूस हुआ, डेनियल? वहाँ मिला [अस्पष्ट]]?  महिला 1: ओह, हाँ, मैंने किया।  मुझे [अस्पष्ट], बहुत गर्म [अस्पष्ट बातचीत]   मुझ ठंडा महसूस हुआ  श्री माताजी: आप देखते हैं, यह [अस्पष्ट] पर कैसे होने को आता Read More …

Workshop with new people Finchley Ashram, London (England)

नये लोगों के साथ कार्यशाला का प्रतिलेखन, फिंचले आश्रम 1977-10-27  (ओ)? (?स्पष्ट नहीं)… उन्होंने कहा, और वे सभी (स्पष्ट?) हैं और सोचते हैं कि हमारे पास बहुत कुछ है और हम बहुत मजबूत हैं। चलिए आपके पास आते हैं, उसने यही क्या किया। उन्होंने कहा: ‘लेकिन मैं बुद्धिमान रहा हूं … (स्पष्ट नहीं) लोग बहुत परेशान थे .. (स्पष्ट नहीं) क्योंकि मैं एक और कृष्णमूर्ति से मिला था। कृष्णमूर्ति… उन्होंने कहा: आप सभी प्रानकूलित हैं यदि कहें तो, आप ऐसा नहीं हैं क्या; यह प्रानकूलिता को आपको छोड़ देना चाहिए, और आपको स्वतंत्र होना जाना चाहिए, आप स्वयं देखें कि कैसा एहसास करते हैं।   कुछ नहीं, आप अपने आप से कुछ नहीं करते।  अब, कृष्णमूर्ति के शिष्य किसी और की तुलना में बहुत अधिक प्रानकूलित हैं। मैं कृष्णमूर्ति के एक भी शिष्य, एक व्यक्ति को भी बोध नहीं दे पाई हूं, क्या आप इस पर विश्वास कर सकते हैं? एक भी नहीं।  क्योंकि वह कहता है कि इस तरह प्रानकूलित मत होओ, अनकूलित  … आपको प्रानकूलित नहीं होना चाहिए;  इसलिए वे दुगने  कन्डिशन्ड हो जाते हैं।  तो उसने कहा कि मैं कृष्णमूर्ति की तरह बोल सकता हूं, यह व्यक्ति मुझे बहुत दिलचस्प तरीके से बताता है, आप उसे पसंद करेंगे। वह युवा है, वह पहले से ही 30 साल का है और कहा: मैं उनकी तरह बोल सकता हूं, मैं कृष्णमूर्ति से बेहतर वक्ता हो सकता हूं, मैं उनकी तरह ही बोलता हूं और मैं उनकी सभी पुस्तकों को दिल से कंठस्थ किया है, और मैं लोगों से बात कर Read More …

Workshop with new people after 1st Caxton Hall Meeting Finchley Ashram, London (England)

                                                     कार्यशाला फिंचले आश्रम  26 अक्टूबर 1977  पहली कैक्सटन हॉल बैठक,  के बाद नए लोगों के साथ श्री माताजी: क्या वे जानवर बन गये हैं या जानवर से भी बदतर, जानवर भी ऐसा नहीं करते। मैं सोच भी नहीं सकती थी, यह वेश्यावृत्ति से भी बदतर है, मेरा मतलब है भयानक, यह नर्क है, और क्या है। कोई परिवार सुरक्षित नहीं है, कोई सुरक्षित नहीं है, कोई जगह सुरक्षित नहीं है, ऊपर से तुम्हें यह सब सिखाने के लिए रजनीश की क्या ज़रूरत है। वह यहां मौजूद कई अन्य लोगों की तुलना में कुछ भी नहीं है। वह चालाकी की सभी चालें नहीं जानता जैसा कि आप लोग जानते हैं, आप में से कुछ लोग जानते हैं। पेरिस में, आप आश्चर्यचकित होंगे, मैंने आपको यह कभी नहीं बताया, मुझे नहीं लगता कि मैंने आपको बताया है या नहीं। साधक: पेरिस एक गंदी जगह है. श्री माताजी: यह साक्षात् नरक है। मुझे नहीं पता… मुझे नहीं पता कि वे क्या बनने जा रहे हैं, उन्हें कुत्ते और कुतिया कहने के लिए एक शब्द भी नहीं, पागल अवस्था में जानवर और बैल, इस तरह वे भयानक हैं और वे सभी वहां नपुंसक हो रहे हैं, सभी तरह-तरह की बीमारियाँ और डरावने लोग, पेरिस में बहुत ख़राब वायब्रेशन। वहाँ कुछ भी सुन्दर नहीं है, कोई पवित्र रिश्ता नहीं है। अब, मान लीजिए कि आप मेरे घर आते हैं, तो आप मेरे साथ रहते हैं, और मेरी बेटियों के साथ रहते हैं। अब वे शादीशुदा हैं, आप उनका जीवन खराब कर देते हैं, आप उन्हें Read More …

Kundalini and Self-realisation London (England)

कुंडलिनी और आत्म-साक्षात्कार गुरुपूर्णिमा  सार्वजनिक कार्यक्रम, 1977-0731, तो, जब आपको अपना आत्मसाक्षात्कार मिलता है,  सबसे पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात आपको अपने भौतिक स्व के बारे में जानना चाहिए, जिसके बारे में आप अब तक नहीं जानते हैं। जैसे ही आप अचेतन में कूद जाते हैं, आपने यह देखा है कि आपको अपने भौतिक अस्तित्व के बारे में पता चलता है: सबसे पहले अपने बारे में। आपको पता चल जाता है कि आपकी शारीरिक समस्या क्या है, आप कहां परेशान हैं। स्वचालित रूप से आपको पता चल जाता है कि आप किससे पीड़ित हैं, आपको किसी डॉक्टर के पास जाकर यह पूछने की ज़रूरत नहीं है कि आप किससे पीड़ित हैं। मान लीजिए कि आपका नाभी चक्र पकड़ रहा है, तो आप जानते हैं कि पेट में परेशानी है। यदि आप उसकी आवृत्तियों के साथ थोड़ा और आगे बढ़ते हैं, तो तुरंत आपको पता चल जाता है कि यह इसी भाग में है। यहां तक कि उंगली पर, दायीं ओर की उंगली से, यदि बायीं ओर की ऊंगली में अधिक जलन होती है तो समझ लें कि दाहिनी ओर की अपेक्षा बायीं ओर अधिक जलन होती है। अभ्यास से आप ठीक-ठीक समझ जाते हैं कि यह किस प्रकार की परेशानी है। लेकिन कुछ समय बाद आप बस यही कहते हैं कि यही तो परेशानी है और यही तो है. यह आपके द्वारा लगाए गए कंप्यूटर की तरह है। तो, आत्म-ज्ञान जो सबसे पहले अनुभव किया जाता है वह साकार हो जाता है। इसे हम दूसरा चरण कह सकते हैं। लेकिन Read More …

Guru Puja: “The promises you have to make” London (England)

                          गुरु पूजा, “जो वादा आप को करना है” आज आप के गुरु की पूजा का दिन है : जो की आपकी माता है। और जैसा कि मैंने आपको बताया, यह एक बहुत ही अनोखी घटना है कि स्वयं माता, को आपका गुरु बनना पड़ा है। और आप यह भी जानते हैं कि एक माँ के लिए एक गुरु होना बहुत मुश्किल काम है, क्योंकि उसका प्यार इतना अति-बहता है कि उसके लिए अपने बच्चों को कोई भी अनुशासन देना मुश्किल है। वह अपने प्यार को अनुशासित नहीं कर सकती, वह अपने बच्चों को कैसे अनुशासित कर सकती है? ऐसा होने के नाते, शिष्यों पर जिम्मेदारी बहुत अधिक है। यदि गुरु एक ऐसा व्यक्ति है जो आपके किसी दर्द को अहसास किए बिना आपको अनुशासित कर सकता है, तो वह बहुत अधिक सक्षम है, और वह ऐसा कर सकता है। लेकिन एक माँ के लिए यह बहुत, बहुत, बहुत मुश्किल है, मैं कहूँगी, गुरु बनना बहुत मुश्किल काम है। वह नहीं जानती कि कैसे संतुलन बनाना है, और वह बेहद क्षमाशील है क्योंकि वह एक माँ है। जबकि गुरु, शुरू से ही क्षमा नहीं करता है। लेकिन माँ, अंत तक, वह आखिरी छोर तक जाएगी। यहां तक ​​कि अगर बच्चे ने उसे छोड़ दिया है, भले ही उसने उसे पीटा हो, भले ही वह उसे वध करने के लिए तैयार हो, फिर भी वह कह रही होगी कि, “मेरे बच्चे आपको चोट तो नहीं आयी है?” तब शिष्यों की ज़िम्मेदारी बहुत अधिक होती है, यह सुनिश्चित करने की कि, वे उसे Read More …

Nabhi Chakra London (England)

[Hindi translation from English]                                                                                   नाभी चक्र  फरवरी 1977.  यह बात भारत में पश्चिमी योगियों के पहले भारत दौरे (जनवरी-मार्च 1977) के दौरान दी गई थी। सटीक स्थान अज्ञात। नाभी चक्र, हर इंसान के गुरुत्वाकर्षण के केंद्र में रखा जाता है। यदि यह वहां नहीं है, तो इसका मतलब है कि आप के लिए इसे इसके सही स्थान पर पहुंचाना थोडा मुश्किल होने वाला है। एक तरह की परेशानी है जो आप में से अधिकांश को होती है, शायद ड्रग्स या शायद नर्वस समस्या, युद्ध के कारण, या शायद आपके अस्तित्व के लिए किसी तरह का झटके के कारण सकती है। उदाहरण के लिए, युद्ध के दौरान, लोगों ने अपने मूल्यों को खो दिया, क्योंकि, उन्होंने ईश्वर में विश्वास खो दिया। शुद्धता पर विश्वास करने वाली पवित्र महिलाओं के साथ क्रूरतापूर्वक आक्रमण किया गया। बहुत धार्मिक लोगों को सताया गया, परिवारों को तोड़ा गया। कई लोग मारे गए, और बच्चे, महिलाएं और बूढ़े लोग बिखर गए। असुरक्षा का एक बहुत भयानक वातावरण, इन सभी राष्ट्रों पर हावी हो गया। फिर देखिये,यातना शिविर भी आए,  जिसने मानव को चकनाचूर कर दिया, क्योंकि मनुष्य बहुत नाजुक यंत्र हैं। वे उत्कृष्ट रचना हैं, वे सर्वोच्च हैं और उन पर बम जैसी चीज़ों का दबाव था, जो मायने रखते हैं। इस प्रकार, मनुष्य में भावना, मर गई। लोगों ने प्यार में, सच्चाई में विश्वास खो दिया। फिर सुरक्षा का नया ढांचा बनाया गया। औद्योगिक क्रांति ने इसका अनुसरण किया, परिणामस्वरूप, प्रेम की, सुरक्षा की, आनंद की कृत्रिम भावना को समाज ने स्वीकार किया।  मनुष्य ने Read More …

Letter about Dharma London (England)

                        धर्म के बारे में पत्र (पिरामिड और ताजमहल भी)  लंदन, 12 अक्टूबर 1976। यह बहुत सच है कि प्रागैतिहासिक काल के कुछ मनुष्य बहुत बुद्धिमान और गतिशील थे। शायद वे आत्मसाक्षात्कारी थे लेकिन निश्चय ही प्राचीन सभ्यता में ऐसे लोग, श्रेष्ठ लोगों के रूप में बहुत अधिक मान्य होंगे। अन्यथा आप मिस्र में एक पिरामिड निर्माण का श्रेय किन्हें दे सकते हैं, पिरामिड जो कि अंदर से, पूर्ण चैतान्यित है। (मानव मस्तिष्क भी एक “पिरामिड जैसा है” लेकिन अभी तक आदर्श परिपूर्ण नहीं है। पिरामिड के अनुपात दिव्य हैं। यह सब  “the super nature”  पर उनकी पुस्तक में एक वैज्ञानिक द्वारा प्रमाणित  है जहां उन्होंने पाया कि वहाँ शवों का क्षय नहीं होता है। । ऐसे कई उदाहरण हैं। विशेष रूप से कलाकार जो उच्च जागरूकता (आत्मसाक्षात्कारी ) के थे, स्वीकार किए जाते थे और इसी प्रकार है कि ताजमहल काम करता है ( उसका गुंबद प्रतिध्वनि करता है और बहुत सारे कंपन होते हैं क्योंकि गुंबद का एक विशेष आकार है)। तो अब ये कोई कोरे विश्वास नहीं है। वे सभी आधुनिक पुरुषों के अवधारणा से भी परे हैं। इस स्वीकृति का कारण इस तथ्य से आता है कि उस समय ज्यादातर मानव ने अपने जीवनचर्या में सदाचार को [धर्मं की अभिव्यक्ति]  स्वीकार किया। उन्हें सामाजिक या राजनीतिक रूप से सदाचार से “मुक्ति” नहीं मिली। धर्म का पालन करने को सामान्य स्वीकृति थी| “ईश्वर के बारे में बात” करने वाले लोगों द्वारा प्रतिपादित औपचारिक धर्मों के स्पष्ट विचार होने ही थे। वे लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं और जो बोध Read More …