Shri Hamsa Swamini puja and two talks Grafenaschau (Germany)

श्री हंसा स्वामिनी पूजा ग्राफेनाशाऊ (जर्मनी), 10 जुलाई 1988। आज हमने जर्मनी में हंसा पूजा करने का फैसला किया है। हमने अभी तक  इस चक्र हंसा पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है, जो कि, मुझे लगता है, भारतीय या पूर्वी के बजाय, पश्चिमी दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। कारण है, हंसा चक्र पर, इड़ा और पिंगला का कुछ हिस्सा बाहर निकलता है और अभिव्यक्त होता है – अर्थात इड़ा और पिंगला की अभिव्यक्ति हंस चक्र के माध्यम से दी जाती है। तो यह हंसा चक्र वह है, जो मानो आज्ञा तक नहीं गया है, बल्कि इड़ा और पिंगला के कुछ धागे अथवा हिस्सों को थामे हुए है। और वे आपकी नाक से, आपकी आंखों से, आपके मुंह से और आपके माथे से व्यक्त होने लगते हैं। तो आप जानते ही हैं कि विशुद्धि चक्र में सोलह पंखुड़ियां होती हैं जो आंख, नाक, गला, जीभ, दांतों की देखभाल करती हैं। लेकिन इनकी अभिव्यक्ति वाली भूमिका इन सभी में हंसा चक्र के माध्यम से आता है। तो हंसा चक्र को समझना पश्चिमी दिमाग के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात है। इसके बारे में संस्कृत में एक सुंदर दोहा है, “”हंस श्वेतः, बखः श्वेतः। कह भेद: हम्सा बखाओ? नीर-क्षीर विवेकेतु । हंसा हंसा, बकह बकाह।” अर्थ ‘सारस और हंस, दोनों सफेद हैं। और दोनों में क्या फर्क होता है? यदि आप पानी और दूध को एक साथ मिला दें तो हंस केवल दूध को शोषित कर लेगा। तो यह पानी और दूध के बीच अंतर समझ सकता है, जबकि बखा, यानी Read More …