Public Program Gandhi Bhawan, New Delhi (भारत)

क्योंकि बहुत लोगों ने इस पर लिखा है (अस्पष्ट) और बहुत से लोग सोचते रहे हैं कि इस मामले में कुछ करना चाहिए कि सत्य को खोजने का है। (अस्पष्ट) अब जब मानव (अस्पष्ट) तो उसकी ऐसी स्तिथि होती है कि वो सिर्फ इस चीज़ को मानता है (अस्पष्ट) और उसके पास कोई माध्यम नहीं है। जैसे कि साइंस की उपलब्धि जो हुई है, यह हमने सिर्फ बुद्धि के ही माध्यम से देखा है। लेकिन बुद्धि जो है, वो दृश्य जो संसार में है, उसी के बारे में बातें करता है। जो अदृश्य है उसे नहीं बता सकता। और सत्य और अदृश्य में क्या अंतर है यही नहीं बता सकता। तब पहले यह सोचना चाहिए, कि जब सत्य की खोज की इंसान बात करता है, तो सर्वप्रथम उसको यही विचार करना होगा कि जो कुछ हमने बुद्धि से जाना, कुछ भी नहीं जाना, तो भी हम भ्रम में बने रहे। बुद्धि से जानी हुई बात, जितनी भी हमने आज तक जानी है, उससे इतना ज़रूर हुआ, जो दृश्य में है उससे हमने ज्ञात (अस्पष्ट) लेकिन जो कुछ अदृश्य में है वो भी नहीं जाना और ये भी नहीं जान पाए कि वो आखिर जो हमने दृश्य में जानना है यह परम सत्य है या नहीं। अब साइंस की उपलब्धि जब हमारी है, तो साइंस के हम अपने सिर हुए, साइंस में हमने बहुत सारी बातें जानी। अणु परमाणु तक हम पहुँच चुके। गतिविधियों को जो समझा है, वो भी सब जो कुछ भी जड़ है, उसके बारे में। ….. हरएक Read More …

Creation, Man and his fulfillment (Universe is a beautiful cosmos) Gandhi Bhawan, New Delhi (भारत)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी ‘सृजन, मनुष्य और उसकी संतोष-भावना’ [संपूर्ण जगत एक सुंदर ब्रह्मांड है] गांधी भवन, दिल्ली विश्वविद्यालय,  दिल्ली, भारत  1 फरवरी, 1979 इस व्याख्यान में मुझे सृजन के बारे में बात करनी चाहिए। मै उस समय से आरंभ करूंगी जब हम सिर्फ अमीबा थे। उससे पहले क्या हुआ और कैसे हम बने, ये सृष्टि बनी, मैं कल सुबह बताऊंगी। यह पता लगाना मुश्किल नहीं है कि यह ब्रह्मांड कैसे व्यवस्थित है। हर खुला दिमाग वाला वैज्ञानिक खुद देख सकता है कि यह जगत एक सुंदर ब्रह्मांड है। ये बहुत अच्छी तरह से व्यवस्थित है और बहुत सुचारू रूप से चल रहा है, और तर्क द्वारा यह भी निष्कर्ष निकाल सकता है कि इस ब्रह्मांड, इस ब्रह्मांड विशेष के निर्माण से इस धरती माता का निर्माण हुआ है। लगभग पचास लाख वर्ष पूर्व यह धरती माता गैस के रूप में अलग होकर ठंडी हो गई थी। यह कैसे ठंडा हुई, कोई नहीं जानता। लेकिन अगर उसे ठंडा किया गया तो वह सूरज जितनी ठंडी क्यों नहीं है? क्योंकि विज्ञान में कोई यह नहीं सोचता कि ‘कैसे’! वे जैसा है वैसा ही स्वीकार करते हैं। उन्हें जानना नहीं चाहिए, या वे पता नहीं लगा सकते क्योंकि उनकी सीमाएँ हैं। यह बात क्यों हुई? यह कैसे किया गया? यह कहना आसान है कि ईश्वर नहीं है लेकिन बहुत सी बातों को समझाना बहुत मुश्किल है बिना कहे कि ईश्वर है। उदाहरण के लिए, इस ब्रह्मांड को इंसान बनाने में जो समय लगा है, वह इतना कम है, इतना कम Read More …