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Adi Shakti Puja Jaipur (भारत)
Adi Shakti Puja (Hindi). Jaipur (India), 11 December 1994. [Original transcript Hindi talk, scanned fromo Hindi Chaitanya Lahari] आज हम लोग आदिशक्ति का पूजन कर रहे हैं। जिसमें सब कुछ आ जाता है। बहुत से लोगों ने आदिशक्ति का नाम भी नहीं सुना। हम लोग शक्ति के पुजारी हैं, शाक्तधर्मी हैं और महामाया स्वरूप था। आदिशक्ति को महामाया स्वरूप होना जरूरी है क्योंकि सारा ही शक्ति का जिसमें समन्वय हो, प्रकाश हो और हर तरह से जो हरेक शक्ति विशेष कर राजे-महाराजे सभी शक्ति की पूजा की अधिकारिणी हो उसे महामाया का ही स्वरूप करते हैं। सबकी अपनी-2 देवियाँ हैं और उन लेना पड़ता है। उसका कारण ये है कि जो प्रचण्ड शक्तियाँ इस स्वरूप में संसार में आती सब देवियों के नाम अलग-2 हैं। यहाँ की देवो का नाम भी अलग है, गणगौर। लेकिन आदिशक्ति हैं. सबसे पहले सुरकभि के रूप में आई थी ये का एक बार अवतरण इस राजस्थान में हुआ जो शक्ति, जो एक गाय थी। उसमें सारे ही देंबी वो सती देवी के रूप में यहाँ प्रकट हुई। उनका देवता बसे हैं और उसकोे बाद एक बार सती बड़ा उपकार है जो राजस्थान में अब भी अपनी देवी के रूप में, एक ही बार इस राजस्थान में अवतरित हुई। मैंने आपसे बताया कि मेरा संबंध संस्कृति, स्त्री धर्म, पति का धर्म, पत्नी का धर्म, राजधर्म हरेक तरह के धर्म को उनकी शक्ति ने इस राजस्थान से बहुत पुराना है क्यांकि हमारे पूर्वज राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के सिसौदिया वश प्लावित किया, Nourish किया। सती देवी की Read More …
Public Program (morning) Jaipur (भारत)
1986-02-19 Morning Program in Jaipur
Public Program Day 2, Kundalini Ka Jagran Ek Jivant Kriya Hai Jaipur (भारत)
1986-02-18 Second Public Program in Jaipur (Hindi)
Public Program Day 1 Jaipur (भारत)
1986-02-17 Public Program in Jaipur
Public Program Jaipur (भारत)
जयपुर के सर्व सत्य शोधकों को हमारा प्रणाम। जीवन में हर मनुष्य अपनी धारणा के बूते पर रहता है। जो भी धारणा वो बना लेता है उसके सहारे वह जीता है। लेकिन एक कगार ऐसी ज़िन्दगी में आ जाती है, जहाँ पर जा कर वह यह सोचता है, कि, “मैंने आज तक जो सोचा, जो धारणाएं लीं, वो फलीभूत नहीं हुईं। उससे मैंने आनंद की प्राप्ति नहीं की, उससे मुझे समाधान नहीं मिला, उससे मैंने शांति प्राप्त नहीं की।” जब वो कगार मनुष्य के सामने खड़ी हो जाती है, तब वो अपनी धारणाओं के प्रति शंकित हो जाता है। और उस वक़्त वो ढूँढने लग जाता है कि इससे परे कौन सी चीज़ है, इससे परे कौन सी दुनिया है, जिसे मुझे प्राप्त करना है। ये जब शुरुआत हो जाती है, तभी हम कह सकते हैं, कि मनुष्य एक साधक बन जाता है। वो सत्य के शोध में न जाने कहाँ-कहाँ भटकता है। कभी-कभी सोचता है कि, बहुत सा अगर हम धन इकठ्ठा कर लें, तो उस धन के बूते पे हम आनंद को प्राप्त कर लेंगे। फिर सोचता है कि हम सत्ता को प्राप्त कर लें – सत्ता को प्राप्त करने से ही हम आनंद को प्राप्त कर लेंगे। फिर कोई सोचता है कि अगर हम किसी मनुष्य मात्र को प्रेम करें, तो उसी से हम सुख को प्राप्त कर लेंगे। उससे आगे जब वो विशालता पे उठता है, तो ये सोचता है कि, हम प्राणी मात्र की सेवा करें, उनकी कुछ भलाई करें, उनके उद्धारार्थ कोई कार्य करें, Read More …
Public Program Jaipur (भारत)
परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी, सार्वजनिक कार्यक्रम, 23 मार्च, 1985 जयपुर, राजस्थान, भारत श्री माताजी के आगमन पूर्व का दृश्य बहुत सारे साधकों से हॉल भरा हुआ है। एक सहज योगी भाई नए लोगों को अंग्रेजी भाषा में संबोधित कर रहे हैं। उसके पश्चात श्रीमती सविता मिश्रा भजन प्रस्तुत करती हैं। भजन समाप्ति की उपरांत श्री योगी महाजन दर्शकों को संबोधित कर रहे होते हैं। तभी श्री माताजी का आगमन होता है, और वे स्टेज पर तेजी से चढ़ते हुए हम सब को दर्शन देती हैं। सब को प्रणाम कर के वे अपनी सिंहासन पर विराजमान होती हैं। योगी महाजन श्री माताजी का स्वागत कर के सहज योग के विषय में संक्षिप्त में बोलते हैं। तत्पश्चात उनके आमंत्रण पर डॉक्टर वारेन भी सहज योग का संक्षिप्त परिचय देते हैं। श्रीमती सविता एक और भजन प्रस्तुत करती हैं। श्री माताजी को माल्यार्पण किया जाता है और उनके साथ उपस्थित सज्जन को भी। (वे अंग्रेजी में कहती है की – आई विल स्टैंड एंड स्पीक) (श्री माताजी खड़ी हो गई हैं, और सब पर दृष्टि डालते हुए अपना भाषण आरंभ करती हैं) जयपुर के साधकों को हमारा प्रणाम। श्री कृष्ण ने तीन तरह के लोग संसार में बताए हुए हैं, जिन्हे के वे तामसिक, राजसिक और सात्विक कहा करते थे। तामसिक वो लोग होते हैं, कि जो अच्छा और बुरा, शुभ अशुभ कुछ भी नहीं पहचानते, पर अधिकतर अशुभ की ही ओर दौड़ते हैं, अधिकतर गलत चीजों की ओर ही दौड़ते हैं। जब वो अति इस में घुस जाते हैं, तो Read More …