प्रजापति का यज्ञ मुंबई (भारत)
प्रजापति का यज्ञ 02/03/1976 इस संसार में जो सबसे बढ़कर के माया है वो है पढ़त मूर्खों की। पढ़तमूर्ख उन्हें कहते हैं जिनके लिए कबीरदासजी ने कहा है,’पढ़ी पढ़ी पंडित मूरख भए’ और इसलिए मैं किताब लिखने में भी बहुत डरती थी। और जब किताब लिखने का सोचा भी है, तो भी ऐसे महामूर्खों के हाथ में वो नहीं पड़नी चाहिए। वो लोग उसी प्रकार हैं जिस प्रकार कोई इंसान किसी भी देश में नहीं जाता है और झूठी बातें सारी दुनिया में बताता है कि मैं वहाँ गया था और वहाँ पर ये देखा, फिर वहाँ ये था, फिर वहाँ वो था, फिर ऐसा हुआ और फिर किसी ने ये कहा था, उसने वो कहा था, अपनी कोई उनके पास प्रचिती नहीं होती। लेकिन आप जो सहजयोगी हैं आप सबको इसकी प्रचिती आयी है। आपके अंदर से vibrations फूटे हैं माने ये चैतन्य बह रहा है। आपको इसका अनुभव आया है कि चैतन्य क्या चीज़ है। आप एक बड़े भारी स्थान पर बैठे हुए हैं। वो लोग बड़े बड़े भाषण दे सकते हैं इसी चैतन्य के बारे में बता सकते हैं। बहुत बड़े श्लोक पढ़ सकते हैं। लेकिन उनको अनुभूति इतनी भी नहीं हुई और वो परमात्मा के राज्य से अभी बहुत दूर हैं, आपकी entry हो चुकी है। उसका एक विशेष कारण है, आपने पढ़ा होगा कि गणेशजी का जन्म सिर्फ उसकी माँ ने ही किया था। अपनी सृष्टि रचना से पहले ही उसने एक बेटे को जन्म दिया था। खुद माँ ने ही ये सब किया था। इसलिए Read More …