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Public Program Galat Guru evam paise ka chakkar (भारत)
Type: Public Program, Place: Dehradun, Date:12/12/19 गलत गुरु एवं पैसे का चक्कर सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार! संसार में हम सुख खोजते हैं, आनन्द खोजते हैं और ये नहीं जानते कि आनन्द का स्रोत कहाँ है। सत्य तो ये है कि हम ये शरीर बुद्धि, अहंकार, भावनायें और संस्कार ये उपाधियाँ नहीं हैं। हम शुद्ध स्वरूप आत्मा हैं। ये एक सत्य हुआ, और दूसरा सत्य ये है जैसे कि आप ये सारे यहाँ इतने सुन्दर फूलों की सजावट देख रहे हैं, न जाने कितने सारे आपने लगा दिये हैं। ये फूल भी तो एक चमत्कार हैं कि एक बीज़ को आप लगा देते हैं, इस पृथ्वी में और इस तरह के सुन्दर अलग-अलग तरह के फूल खिल उठते हैं। हम इसे चमत्कार समझते नहीं हैं। ये डॉक्टरों से पूछिये कि हमारा हृदय कौन चलाता है तो वो उसका नाम कहते हैं,(Autonomous Nervous System), स्वयंचालित। लेकिन ये स्वयं है कौन? इसका वो निदान नहीं बना सकते। साइन्स में आप एक हद तक जा सकते हैं और वो भी ये जड़ चीज़ों के बारे में बता सकते हैं। जो कुछ खोजते हैं, जो पहले ही बना हुआ है उसको वो समझा सकते हैं। लेकिन साइन्स की अपनी अनेक सीमायें हैं और सबसे बड़ी उसकी ये सीमा है कि केवल सत्य को उन्होंने प्राप्त नहीं किया है। और इस वजह से साइन्स एक हद तक जाता है और फिर उसके खोज में दूसरी खोज आ जाएगी। फिर तीसरी खोज आ जाएगी, और पहली खोज को मना कर देते Read More …
Public Program New Delhi (भारत)
1993-12-03 India Tour: Public Program in Kidwai Nagar
Public Program (भारत)
Public Program (Hindi), Noida (India), 2 December 1993.
Public Program New Delhi (भारत)
Sarvajanik Karyakram 22nd March 1993 Date : Place Delhi : Public Program Type [Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] सहजयोग का ज्ञान सूक्ष्मज्ञान है और सूक्ष्मज्ञान को प्राप्त करने कास्प पे दोड़ते रहते हैं। आज ये विचार आया। कल ये विचार के लिये, हमें भी सूक्ष्म होना है। ये सूक्ष्मता क्या है कि हमें आत्मा स्वरुप होना चाहिये। आत्मा से ही हम इस सूक्ष्म ज्ञान को समझ चढ़ती है तो क्या होता है कि विचार कुछ लम्बा हो जाता है। सकते हैं। क्योंकि आत्मा का अपना प्रकाश हैं और वो प्रकाश इन दोनों विचारों के बीच में जो स्थान है उसे विलम्ब कहते हैं। जब हमारे ऊपर प्रगटित होता है तो उस आत्मा के प्रकाश में इस विलम्ब स्थिति में आप आ जाते हैं और विलम्ब की स्थिति ही हम इस सूक्ष्मज्ञान को जानते हैं ये हमारे ही अन्दर की आत्मा जो बहुत संकीर्ण होती है वो बढ़ जाती है। ये हो वर्तमान है। है। ये परमात्मा का प्रतिबिम्ब हमारे ही अन्दर आत्मा स्वरुप है और कुण्डलिनी परमात्मा की इच्छा शक्ति आदि शक्ति का से सतर्क है, बेसुध अवस्था में नहीं जाते। आप सुप्ता अवस्था में प्रतिबिम्ब है। कुण्डलिनी साढ़े तीन वलयों में है जिन्हें कुण्डल नहीं जाते। जरुरत से ज्यादा सतर्क हो जाते हैं। लेकिन कोई कहते हैं इसलिये उसका नाम कुण्डलिनी है। कुण्डलिनी जब विचार आपके अंदर नहीं आता। बस सब चौज देखना मात्र बनता उठतो है तो ये साढ़े तीन कुण्डल पूरे के पूरे नहीं उठते। जैसे है। इसे साक्षो स्वरूप कहा गया है Read More …
Public Program, Sahajayog ka arth कोलकाता (भारत)
1992 -02-05 पब्लिक प्रोग्राम, सहज योगा का अर्थ कोलकाता इण्डिया कल जैसे बताया की सत्य है वो निर्धारित है | अपनी जगह स्थित है | हम उसकी कल्पना नहीं करते, उसके बारे में हम कोई भी उपमा वर्णन नहीं दे सकते, ना ही उसको हम बदल सकते है और बात तो ये है की इस मानव चेतना में हम उस सत्य को जान नहीं सकते | ये तो मानना चाहिए की साइन्स अब अपनी चरम सीमा पर पहुच गया है और उससे उसको फायेदा जो भी किया, किन्तु उसके साथ ही साथ आएटटम बोअम, हाइड्रोजन बोअम, प्लास्टिक के पहाड़ तैयार कर दिए है | प्लास्टिक रूप में जो कुछ भी हुआ वो इस तरह सीमा के बाहर लाहांग गया की आप जानते है की आप जानते है की कलकत्ता शहर में भी इस कदर पोल्यूशन है | ये सब होने का कारण ये ऐसा की मनुष्या अपना संतुलन खो बैठता है| वो ये नहीं जनता है कि कितने दूर जाना है और कहा उसे रोकना है | इस वजह से जो कुछ भी मनुष्य करता है वो बाद में किसी को नहीं बताता मानव की जो सारी चेतना आज हमने प्राप्त की है | ये हमारे उत्क्रांति में, हमारे एवोल्यूशन में हमें सहज ही मिली हुई है | हमने कोई ऐसा विशेष कार्य नहीं किया कि जिससे हम मानव बने | सहज में ही आप ने इसे प्राप्त किया, जो चीज़ आप ने सहज में प्राप्त की है वो बड़ी ऊंची चीज़ श्रेष्ठ चीज़ है की आप मानवरूप है | Read More …
Public Program Day 2 (भारत)
Public Program [Hindi]. Hyderabad, Andhra Pradesh (India), 12 December 1991.
Public Program Day 1 (भारत)
Public Program [Hindi]. Hyderabad, Andhra Pradesh (India), 11 December 1991. सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार। हम जब सत्य की बात कहते हैं तो यह पहले ही जान लेना चाहिए कि सत्य अपनी जगह अटल और अटूट है। उसे हम बदल नहीं सकते उसे हम अपने दिमाग से परिवर्तित नहीं कर सकते और उसके बारे में हम कल्पना भी नहीं कर सकते। सबसे तो दुख की बात यह है कि इस मानव चेतना से हम जान भी नहीं सकते कि सत्य क्या है। हम लोगों को यह सोचना चाहिए कि परमेश्वर ने यह इतनी सृष्टि सुंदर बनाई है, इतने सुंदर पेड़ हैं, फूल है, फल है, हमारा हृदय स्पंदित होता है यह सारी जीवित क्रिया कैसे होती है। हम कभी विचार भी नहीं करते यह हमारी आंख है देखिए कितना सुंदर कैमरा है। हम कभी विचार भी नहीं करते कि यह इतना सुंदर कैमरा, इतना बारीक, इतना नाजुक, किसने बनाया है और कैसे बनाया है। हम तो इसको मान लेते हैं, बस है हमारी आंख है, लेकिन यह आपके पास आई कैसे, इसके बनाने वाली कौन सी शक्ति है। यही शक्ति है जिससे कि पतंजलि योग में ऋतंभरा प्रज्ञा कहा गया है और उसे परम चैतन्य, ब्रह्मचैतन्य, रूह, ऑल परवेडिंग पॉवर ऑफ़ गोड्स लव कहते हैं। यह सब उसी एक शक्ति के नाम है, वही जीवंत शक्ति सभी कार्य करती है। उसी ने हमें अमीबा से इंसान बना दिया लेकिन अब हमें यह जानना चाहिए कि अगर इंसान बनाना है, आखिरी कार्य था तो इंसान तो Read More …
Confusion and the ordinary householders Madras (भारत)
भ्रांति और सामान्य गृहस्थ सार्वजनिक कार्यक्रम दिवस 2 मद्रास (भारत), 7 दिसंबर 1991। मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। कल शुरुआत में ही मैंने आपसे कहा था कि सत्य वही है जो वह है। यदि हमें सत्य नहीं मिला है तो हमें उसके प्रति विनम्र और ईमानदार होना चाहिए, क्योंकि सत्य हमारी भलाई के लिए है, हमारे शहर, हमारे समाज, हमारे देश और पूरे ब्रह्मांड की भलाई के लिए है। यह एक बहुत ही खास समय है जब आप सभी पैदा हुए हैं, जहां लोगों को आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करना है। यह पुनरुत्थान का समय है जैसा कि बाइबिल में वर्णित है, यह कियामा का समय है जैसा कि मोहम्मद साहब ने वर्णित किया है। यह एक बहुत ही खास समय है जब नल, जैसा कि आप जानते हैं, नल दमयन्ती अख्यान – नल का सामना कली से हुआ था। वह कली पर बहुत क्रोधित हुआ और कहा कि “तुमने मेरे परिवार को नष्ट कर दिया है, तुमने मेरी शांति को नष्ट कर दिया है, और तुम लोगों को भ्रम में डाल देते हो, इसलिए मैं तुम्हें मार डालूंगा।” उन्होंने कली को चुनौती दी कि “तुम्हें हमेशा के लिए समाप्त कर देना चाहिए।” तब कली ने कहा, “ठीक है, मैं आपको अपना महात्म्य बता दूं। मैं आपको बताता हूं कि मुझे वहां क्यों होना चाहिए। अगर मैं तुम्हें समझा सका तो तुम मुझे मारने का इरादा बदल सकते हो, लेकिन अगर मैं नहीं कर पाता तो तुम मुझे मार सकते हो।” तो उसने कहा कि “आज वे सभी Read More …
Public Program Day 2, Atma Kya Hai New Delhi (भारत)
Atma Kya Hai Date 3rd March 1991 : Place New Delhi Public Program Type : Speech Language Hindi [Original transcript, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] सत्य को खोजने बाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार । डाक्टर साहब ने अभी आपको सभी चक्रों के बारे में बता दिया है । उसी प्रकार कल मैने आपको तीन नाड़ियों के बारे में बताया था ये थी ईड़ा, पिंगला और सुष्म्ना नाड़ी । ये सब नाड़ियां, ये सारी व्यवस्था, परमात्मा ने हमारे अन्दर कर रखी है । इस उत्क्रान्ति के कार्य में, जबकि हमारा विकास हुआ है, तब धीरे – धीरे एक अन्दर प्रस्फुटित हुआ । किन्तु सारी योजना करने के बाद, पूरी तरह से इसकी व्यवस्था करने के बाद भी एक प्रश्न था कि हमारे अन्दर ये जो परमेश्वरी यंत्र बनाया हुआ है इसको किस तरह उस परमेश्वरी तत्व से जोड़ा जाय । मैने आपको कल बताया था चारों तरफ ब्रहुम चैतन्य रूप ये परमात्मा का प्रेम, उनकी शुद्ध इच्छा कार्य कर रही है । लेकिन ये ब्रहम चैतन्य अभी तक कृत नहीं था इसलिए जब कलयुग घोर स्थिति में पहुंच गया तो उसी के साथ-साथ एक नया युग शुरू हुआ है जिसे हम कृतयुग कहते हैं और एक चक्र हमारे रा युग आ सकता है । है । इसी कारण सहजयोग में हजारों लोग पार होने लगे हैं अर्थात् सहस्रार का खोलना बहुत जरूरी था । इस कृतयु ग के बाद ही सत्य इस कृतयु ग मैं ये ब्रहृम चैतन्य कार्यान्वित हो गया जब से सहस्रार खुला है, कृतयुग शुरू हो Read More …
Public Program Day 1 New Delhi (भारत)
Sarvajanik Karyakram Date 2nd March 1991 : Place New Delhi Public Program Type : Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] सत्य को खोजने की जो सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार । आवश्यकता हमारे अंदर पैदा हुई है, उसका क्या कारण है ? आप क हैं गे कि इस दुनियां में हमने अनेक कलयु ग में मनुष्य भ्रांति में पड़ गया है, परेशान हो गया है । उसे समझ नही आता कि ऐसा क्यों हो रहा है । तब एक नए तरह के उसको विल्यिम ब्लेक ने ‘मैन । चारों तरफ हाहाकार दिखाई दे रहा है । कष्ट उठाए तकलीफें उठाई मानव की उत्पत्ति हुई है, एक सुजन हुआ है । उसे साधक कहते हैं ऑफ गाड’ कहा है । आजकल तो परमात्मा की बात करना भी मुश्कल है फिर धुम की चर्चा करना तो ही कठिन है क्योंकि परमात्मा की बात कोई करे तो लोग पहले उंगली उठा कर बताएँ गे कि जो में, मस्जिदो में चर्चों में गुल्द्वारां में घूमते है, उन्हंने कोन से बड़े इन्होंने कोन-सी बड़ी शांति से सन्मार्ग से चलते हैं । किसी भी धर्म में कोई भी मनुष्य हो किसी भी धर्म का बहुत लोग बड़े परमात्मा को मानते हैं, मन्दिरों भारी उत्तम कार्य किए है ? आपस में लड़ाई, झगड़ा, तगाशे खड़े किए हैं । दिखाई है ? ये कोन पालन करता है, परमात्गा को किसी तरह से भी मानता हो, लेकिन हर एक तरह का पाप वो कर सकता है । उस Read More …
Public Program पुणे (भारत)
1990-12-05 Public Program, Hindi Pune India सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा प्रणाम! सत्य के बारे में हमें ये जान लेना चाहिए कि सत्य है सो अपनी जगह है। उसे हम बदल नहीं सकते, उसकी हम धारणा नहीं कर सकते, उसकी हम हम व्यवस्था नहीं कर सकते। सबसे तो दुःख की बात ये है कि इस मानव चेतना से हम उस सत्य को जान नहीं सकते। इसीलिए हम देखते हैं कि दुनियाँ में भेद-अभेद है। इसीलिए लोग अन्धेपन से आपस में लड़-झगड़ रहे हैं। अनेक तरह की नयी-नयी गतिविधियाँ उत्पन्न हो रही हैं। और नये-नये विचार, नयी-नयी प्रणालियां और नये-नये प्रश्न आज हमारे सामने खड़े हैं। ये हमारे भारतवासियों का ही प्रश्न नहीं है, ये सारे दुनियाँ का प्रश्न है। सारी दुनियाँ में एक तरह की बड़ी आशंका मनुष्य के मस्तिष्क में घूम रही है और वो आशंका ये है कि हम कहाँ जा रहे हैं? और हमें क्या पाना है? जब मैं आपसे आज सारी बातें कहुँगी, तो मैं आपसे ये विनती करना चाहती हूँ, कि आप एक वैज्ञानिक ढंग से, एक साइंटिफिक (scientific) ढंग से अपना दिमाग खुला रखें। जिस आदमी ने अपना दिमाग बंद कर लिया वो साइंटिस्ट हो ही नहीं सकता। और जो कुछ भी हम बात बता रहे हैं इसे एक धारणा, एक हाइपोथीसिज़ (hypothesis) समझ कर के आप सुनिए। और अगर ये बात सिद्ध हो जाए तो इसे आपको एक ईमानदारी के साथ मानना चाहिए। जो लोग भारतवर्ष में रहते हैं वो ये सोचते हैं कि हमारे देश में Read More …
Public Program Day 1 कोलकाता (भारत)
1st Public Program C Date 10th April 1990 : Place Kolkata Public Program Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] सत्य के बारे में जान लेना चाहिए कि सत्य अनादि है और उसे हम मानव बदल नहीं सकते। सत्य को हम इस मानव चेतना में नहीं जान सकते । उसके लिए एक सूक्ष्म चेतना चाहिए। जिसे आत्मिक चेतना कहते हैं। आप अपना दिमाग खुला रखें वैज्ञानिक की तरह, और अगर सत्य प्रमाणित हुई तो उसे अपने इमानदारी में मान लेना चाहिए। एक महान सत्य यह है कि सृष्टि की चालना एक सूक्ष्म शक्ति करती है जिसे परम चैतन्य कहते हैं। ये विश्व व्यापी है और हर अणु-रेणु में कार्यान्वित है । हमारे शरीर के स्वयं चालित ( ओटोनौमस संस्था ) को चलाती है। जो भी जीवित- कार्य होता है वो उससे होता है पर अभी हममें वो स्थिती नहीं आई है जिससे हम परम चैतन्य को जान लें। दूसरा सत्य यह है कि हम यह शरीर,बुध्दी, अहंकार और भावनाफँ आदि उपादियां नहीं हैं। हम केवल आत्मा हैं। और ये सिध्द हो सकता है। तीसरा सत्य यह है कि हमारे अन्दर एक शक्ति है जो त्रिकोना- कार असती में स्थित है, और यह शक्ति जब जागृत हो जाती है तो हमारा सम्बन्ध उस परम चैतन्य से प्रस्थापित करती है। और इसी से हमारा मसा आत्म दर्शन हो जाता है। फिर हमारे अन्दर एक नया तरह का अध्याम तैयार हो जाता है, जो हमारे नसँ पर जाना जाता है। जो नस नस में जानी जाए वोही Read More …
Public Program Day 2 New Delhi (भारत)
Public Program, Ram Lila Maidan Delhi, India 05th April 1990 सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार! कल आपसे मैने कहा था कि हमारे अंदर एक बड़ा भारी सत्य है और बाह्य में दूसरा सत्य। पहला सत्य तो ये है कि हम आत्मा हैं, हम आत्मा स्वरूप हैं और दूसरा सत्य ये है कि ये सारी सृष्टि, ये सारा संसार एक बड़ी सूक्ष्म ऐसी शक्ति है, उससे चलता है। और ये शक्ति जो है, इस शक्ति को ही पाना, उसमे एकाकारिता में जाना, यही एक योग है। ये दूसरा वाला सत्य है और इन दोनों सत्य को हमें इस वक़्त मान लेना चाहिए। संशय करना तो बहुत आसान है और पढ़ लिख कर मनुष्य और अधिक संशय करने लगता है, इसीलिए कबीर ने ये कहा है की “पढ़ी पढ़ी पंडित मूरख भये” क्योंकि पढ़-पढ़ के उनके अंदर संशय और ज़्यादा हो जाता है और उनकी संवेदना कम हो जाती है और वो बुद्धि से ही तर्क वितर्क से जानना चाहते हैं कि सत्य क्या है पर सत्य बुद्धि के परे है, सत्य बुद्धि से परे है और ये इस जीवंत क्रिया के साथ होगा। अब अगर आप एक साइंटिस्ट् है, आप एक शास्त्रीय आधार को देखना चाहते हैं तो उसके लिए सबसे पहले धारणा दी जाती है, हैपोथेसिस (hypothesis) दिया जाता है। अगर वो धारणा सही है तो उस धारणा को आपको पहले समझ लेना चाहिए और अपने दिमाग़ को खुला रखना चाहिए जैसे साइंटिस्ट् को चाहिए और उसके बाद देखिए कि अगर ये हो जाता Read More …
Public Program (भारत)
Sarvajanik Karyakram Date 31st March 1990 : Place Yamaunanagar Public Program Type Speech Language Hindi सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार! सबसे पहले हमें ये जान लेना चाहिये कि सत्य जहाँ है, वहीं है, उसे हम बदल नहीं सकते| उसे हम मोड़ नहीं सकते। उसे तोड नहीं सकते। वो था, है और रहेगा। अज्ञानवश हम उसे जानते नहीं, लेकिन हमारे बारे में एक बड़ा सत्य है कि हम ये शरीर, बुद्धि आत्मा के सिवाय और कुछ नहीं। जिसे हम शरीर, बुद्धि और अहंकार आदि उपाधियों से जानते हैं वो आत्मा ही है और आत्मा के बजाय कुछ भी नहीं। ये बहुत बड़ा सत्य है जिसे हमें जान लेना चाहिए । दूसरा सत्य है कि ये सारी सृष्टि, चराचर की सृष्टि एक सूक्ष्म शक्ति है, जिसे हम कहेंगे कि परमात्मा की एक ही शक्ति है। कोई इसे परम चैतन्य कहता है और कोई इसे परमात्मा की इच्छाशक्ति कहता है। परमात्मा की इच्छा केवल एक ही है कि आप इस शक्ति से संबंधित हो जायें, आपका योग घटित हो जायें और आप उनके साम्राज्य में आ कर के आनंद से रममाण हो जाए। वो पिता परमात्मा, सच्चिदानंद अत्यंत दयालू, अत्यंत प्रेममय अपने संरक्षण की राह देखता है। इसलिये ये कहना की हमें अपने शरीर को यातना देनी है या तकलीफ़ देनी है ये एक तरह की छलना है। कोई भी बात से जब आप नाराज़ होते हैं तो आप कहते हैं कि अच्छा है,’ इससे कुछ पा कर दुःखी होता है, सुख तो होने वाला नहीं। सो, सिर्फ Read More …