Public Program

Pune (India)

1993-01-27 Public Program Hindi Marathi Pune India DP-RAW, 20'
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सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकोंको हमारा नमस्कार | माफ करिए जिन लोगोने कहा था की आठ बजे के पहले मत पहुँचयेगा ,जो लोग वाकई में सहजयोग में अपनी जागृती चाहते है वो बैठे रहेंगे और बाकीके चले जाएंगे | एक कारण ये है | दूसरा ये की हम कुछ सहजयोग के बारेमें बताएँगे और कुछ परदेसी लोग आपके सामने गाना गाना चाहते थे  | इस तरह से तीन चार कारणोंकी वजह से जानकर हम धीरे धीरे आए | पर इतने साधकोंको देख करके क्या कहा जाए | इस पूना में बड़ी मेहनत की है और वर्षोसे यहाँ आते थे | क्योंकि शास्त्रोमें इस जगह का नाम पुण्यपट्टनम है | माने पुण्यवान नगरी पर यहाँ इतना कुछ गड़बड़ मामला था जब हम आए | और उसके बाद ऐसे यहाँ गड़बड़ गुरु लोग आ गए | इसके कारण पूना  की जो आध्यात्मिक स्तिति थी वो ख़राब हो गई | बहोतसे लोगोंने हमें सताया भी बहोत है यहाँ पूना में | और उससे कोई हमें हानि नहीं हुई ,किंतु लोगोंकी जरूर हानि हुई | न जाने क्यों सत्य के विरोध में हमेशा कुछ लोग ऐसे खड़े हो जाते है की जिनको पता ही नहीं की सत्य कितना आवश्यक है | जिस कगार पे आज मनुष्य खड़ा है आप जानते है की ये घोर कलियुग है | ऐसा कलियुग तो कभी देखा ही नहीं | और सुना भी नहीं | जैसा आज कल है | कुछ भी  समजमें नहीं आता कोई भी प्रांगण में आप देखे ,राजकरण हो कुछ हो हर चीज़ में आप पते है की एक अजीबसा अँधेरा छाया हुआ है | और ये अँधेरा मिटनेका नाम ही नहीं लेता | इसका कारण क्या ?| इतना कलियुग किसलिए प्रभावशाली ,और इसकदर विचलित करने वाला है | इसका एक ही कारण है की मनुष्य अग्यान के  घोर अंधेरेमे डूब  गया है | और इसकी एक जरुरत थी क्योंकि अपने जाना होगा दमयंती आख्यान में ,नल ने एक बार दमयंती के बिछोह में बहोत परेशान होते वक्त कली को देखा | और उसको पकड़ लिया और कहा की अब मै  तेरा सत्यानाश करूँगा | क्योंकि लोग तेरे कारन भ्रान्ति में पड़  जाते है | मई भी भ्रान्ति में पड़ गया और मेरा मेरी पत्नीसे बिछोह हो गया |  तो मै इस तरह से तेरा इलाज करूँगा की तू फिर संसार में नहीं आएगा | काली ने कहा ठीक है लेकिन तू पहले मेरा माहात्म्य सुन | जब तुम मेरा माहात्म्य सुनोगे तो उसके बाद मुझे नहीं मारोगे | कहने लगा अच्छा बताओ ,माहात्म्य ये है मेरी सत्ता आएगी जब कलियुग आएगा उस वक्त घोर अँधेरा छाएगा | तब माया चारो तरफ फैल जाएगी और लोग पैसोंके पीछे पागल हो जाएंगे | ऐसे समय में जब नीतिमत्ता टूट जाए ,धर्म डूब जाए ऐसे समय में लोग भ्रान्ति में आ जाएंगे | उनको भ्रान्ति हो जाएगी | और उस भ्रान्ति में वो खोज करेगा ,भ्रान्ति के  सिवा वो खोज नहीं कर सकता | समझ लीजिए सौ साल पहले इतने  कोई खोजने वाले नहीं थे | जो की  सत्य को खोजते | कलियुग का एक दूसरा प्रकाश है के जिसमे  मनुष्य सोचता है है की अंधेरेमे हमें भी प्रकाश खोजना चाहिए | और इस खोज में ही मनुष्य सत्य की ओर  बढ़ता है | पर वो जानता 

नहीं की खोज किस चीज की करनी है | क्या पाना है ,किसलिए हम परेशान है | ये चीज नहीं जानता ,यही बड़ा भारी अंधकार है |  इस कश्म कश में ही  मनुष्य बहोत गहरा ऐसी गर्त में फस जाता है ,उससे निकलना मुश्किल हो जाता है | 

 फिर गुरुओंके पीछे दौड़ना ,झूठे गुरुओंके पीछे दौड़ना ,नहीं  तो राजकारणी लोगोंके पीछे दौड़ना ,किसी न किसीके पीछे दौड़ते रहता है | उसको अपने व्यक्तित्व का कोई महत्त्व नहीं रहता | क्योकि वो  अपनेको जानता ही नहीं की वो क्या चीज है | कितनी महान चीज है | जिस वक्त वो जान जाएगा की वो कितना महान है और उसका स्वरुप अंदरसे कितना गौरव शाली है तब वो ये सब जुटी शान को छोड़कर असलियत पे उतरेगा | अब मैंने कहा की आप सब सत्य को खोजने वाले है | आपको आश्चर्य होगा की सत्य और निर्वाज  प्रेम ये एक ही चीज है | परमात्मा का जो निर्वाज प्रेम हमारे ऊपर है उसकी शक्ति हर जगह  विचरण करती है | लेकिन हमारे दिमाग में ये बात नहीं आती | हम लोग कभी सोचते भी नहीं की ऐसी शक्ति है | हमारे शास्त्रोमे सब बाते लिखी हुई है ,लेकिन हम लोगोंने अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की और इस अंग्रेजी शिक्षा के पीछे में हम लोग भी अंग्रेजी हो गए एक तरह से और ये मालूम ही नहीं की हमारे देश में कितनी महान  महान हस्तिया हो गई है ,कितने बड़े बड़े  ऋषि मुनि ,और द्रष्टा हो गए है जिन्होंने बहोत कार्य किए पर उस कार्य के फलस्वरूप आज का  सहजयोग है | फर्क इतना ही है की पहले एकहि  इन्सान को एकहि इन्सान या गुरु ,सदगुरु कहिए एकहि ही आदमी को रियलाइजेशन देते थे | एकहि आदमीको आत्मा का दर्शन कराते थे | ऐसी कुछ परंपरा थी | अपने महाराष्ट्र में भी एक ही गुरु एक ही आदमी को दीक्षा देता था | पर इसमें दीक्षा बिक्षा की बात नहीं है बात है कुण्डलिनी जागरण की | जैसे ज्ञानेश्वर  जी ने अपने गुरु से कहा ,उनके भाई साब उनके गुरु थे ,मुझे इजाजत देदो की मै सिर्फ इस कुण्डलिनी के बारेमे लिखना चाहता हूँ | बस और कुछ नहीं मै सिर्फ लिखना चाहता हु | मै ये कार्य करूँगा नहीं ,बस मुझे इजाजत दीजिए | पता नहीं कैसे सोच करके उन्हें इजाजत देदी | और इस इजाजत को पा  करके उन्होंने अपनी ज्ञानेश्वरी ग्रंथ में छटे अध्याय मे कुण्डलिनी पर व्यवस्तित रूपसे विवरण किया | लेकिन जो धर्म मार्तण्ड लोग थे उनको ये बात समजमें नहीं आई | उनको कुण्डलिनी का ग्यान ही नहीं था | उन्होंने कहा ये जो छटा अध्याय है उसका निषेध करना चाहिए | ख़तम ,कोई किसीने वो बात पढ़ी नहीं ,जानी नहीं | उसके बाद इसीके परिणाम स्वरुप सोलवे शताब्दी में शिवाजी जैसे महान राजा हुए और उन्होंने अपने गुरु से दीक्षाए ली | 

उस वक्त महाराष्ट्र में अनेक साधु संत हो गए ,जो की असल में बहोत पहुंचे हुए पुरुष थे | लेकिन उनकी बड़ी दुर्दशा कर दी | तुकाराम को देखिए , अपने और लोगोंको देखिए किसीके साथ भी सद व्यवहार समाज ने भी नहीं किया और जो धर्म मार्तण्ड लोगोने भी नहीं किया | सबने उनको सताया | एकनाथ जी थे , और दूसरे लोग थे वो सब बहोत तकलीफ में थे | क्योंकि लोग सत्य को पसंद नहीं करते थे | सत्य को पाते  ही असत्य सब गिर जाएगा और जिस असत्य के बुते पर वो खड़े है वो मिट जाएगा इसलिए वो नहीं चाहते थे की कोई साधुसंत या कोई पंहुचा हुआ ऐसा बड़ा आध्यात्मिक है तो उससे कोईभी चीज सीखना या उससे कोईभी चीज मानना बड़ा मुश्किल था | किन्तु सोलवे शताब्दीमे हम आपसे कहते है की अनेक जगह इसपर बातचीत हुई | नामदेव गए थे पंजाब में ,पंजाब में गुरुनानक साब ने उनको पहचान लिया | क्योकि गुरुनानक साब पहुंचे हुए पुरुष थे | जो पहुंचे हुए होते है वही पहुंचे हुओंको पहचानते सकते  है | उसकी परमनुभूति वही जान सकते  है | नानक साब ने उनको कहा की अच्छा बेटे तुम हमारे साथ रहो ,पंजाबी सीखो और पंजाबीमे अब कविता लिखो | तो उन्होंने पंजाबी में कविता लिखना शुरू की और मैंने देखि है की उनकी इतनी बड़ी किताब है | उसमें पंजाबी भाषामें नामदेव साब ने कविता लिखी हुई है | नामदेव एक साधारण दर्जी थे और गोरा कुंभार एक साधारण कुभार था | धन्यवाद धन्यवाद | अनंत आशीर्वाद सबको |