धूल का कण बनना
7 साल की उम्र में श्री माताजी द्वारा लिखी गई कविता
Poem by Shri Mataji at the age of 7मैं चाहती हूँ की सूक्ष्म बन जाऊँ,
एक धूल के कण की तरह
जो की पवन के साथ उन्मुक्त विचरता है
वह जहाँ चाहे जा सकता है ,
चाहे तो किसी राजा के सर पे आसन रखे
या फिर चाहे तो
किसी आम इंसान के कदमो पे आ गिरे.
वह हर कोने में जा सकता है
और कहीं भी समा सकता है .
पर मुझे ऐसा धूल कण बनना है,
जिसमे सुगंध हो और जो सभी का पोषण करे
जिसके प्रकाश से सभी प्रबोधित हो.