Public Program New Delhi (भारत)

 1973/11/17 Public Program, New Delhi   जानवर में, जो प्रश्न होते ही नही है, जो मनुष्य में होते है। जानवर के लिए तो कोई प्रश्न ही नही होता है, वो सिर्फ जीता है। जिस शक्ति के सहारे वो जीता है, उसकी ओर भी, उसका कोई प्रश्न नही होता है कि  वो कौन सी शक्ति है, कि जिसके सहारे मैं जीता हूँ। उसकी वजह ऐसी है, कि ये चैतन्य शक्ति है , क्योंकि सारी सृष्टी की रचना करती है, उसकी चालना करती है उसकी व्यवस्था करती है। वो प्राणीमात्र में बहती हुई और गुजर जाती है। क्योंकि इंसान ने उसके एक विशेष कारण , उसके एक विशेष तरह के जीवन, से संबंधित ऐसी कुछ रचनाऍ हो जाती है कि जिससे मनुष्य उस शक्ति से वंचित हो जाता है। इसको अगर हम समझे तो साधारण शब्दो में इस तरह से कहा जाएगा कि मनुष्य में जो अहंकार हो जाता है वो प्राणीमात्र में नही होता। मनुष्य की दिमागी, हार जो है वो बहुत ही और तरह की है| उसका दिमाग एक त्रिकोणाकार है और इस त्रिकोण में जब ये शक्ति, बच्चा तीन महीने के माँ के गर्भ में होते समय अंदर की ओर गुजरती है, तो वो एक रिफरेकशन (अपवर्तन) जिसे अंग्रेजी में कहते है, विलिनीकरण जिसे कहते है, विकेंद्रिकरण कहते है उससे तीन हिस्सो में बट जाती है। एक तो हिस्सा जो कि सर के माथे के पीछे सीधा ही नीचे गुजर के जाता है और बाकी दो हिस्से जो कि सर के दो कोणो में से नीचे गुजर के और घुम करके पीछे की ओर चला जाता [है]। इस तीन Read More …