Public Program

New Delhi (भारत)

1973-11-17 Public Program, New Delhi, Hindi, NITL HD, 33' Download subtitles: HI (1)View subtitles:
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 1973/11/17 Public Program, New Delhi  

जानवर में, जो प्रश्न होते ही नही है, जो मनुष्य में होते है। जानवर के लिए तो कोई प्रश्न ही नही होता है, वो सिर्फ जीता है। जिस शक्ति के सहारे वो जीता है, उसकी ओर भी, उसका कोई प्रश्न नही होता है कि  वो कौन सी शक्ति है, कि जिसके सहारे मैं जीता हूँ। उसकी वजह ऐसी है, कि ये चैतन्य शक्ति है , क्योंकि सारी सृष्टी की रचना करती है, उसकी चालना करती है उसकी व्यवस्था करती है। वो प्राणीमात्र में बहती हुई और गुजर जाती है। क्योंकि इंसान ने उसके एक विशेष कारण , उसके एक विशेष तरह के जीवन, से संबंधित ऐसी कुछ रचनाऍ हो जाती है कि जिससे मनुष्य उस शक्ति से वंचित हो जाता है। इसको अगर हम समझे तो साधारण शब्दो में इस तरह से कहा जाएगा कि मनुष्य में जो अहंकार हो जाता है वो प्राणीमात्र में नही होता। मनुष्य की दिमागी, हार जो है वो बहुत ही और तरह की है|

उसका दिमाग एक त्रिकोणाकार है और इस त्रिकोण में जब ये शक्ति, बच्चा तीन महीने के माँ के गर्भ में होते समय अंदर की ओर गुजरती है, तो वो एक रिफरेकशन (अपवर्तन) जिसे अंग्रेजी में कहते है, विलिनीकरण जिसे कहते है, विकेंद्रिकरण कहते है उससे तीन हिस्सो में बट जाती है। एक तो हिस्सा जो कि सर के माथे के पीछे सीधा ही नीचे गुजर के जाता है और बाकी दो हिस्से जो कि सर के दो कोणो में से नीचे गुजर के और घुम करके पीछे की ओर चला जाता [है]। इस तीन तरह की शक्ति की वजह से ही मनुष्य प्राणीमात्र से एक उंची दृष्टी से देखता है। ये जो शक्ति हमारे सर में, त्रिकोण में से गुजरती है और त्रिकोण के कोन के तरफ से जब गुजरती है, तो उसमें भी एक कोन आ जाता है और  उसी कोन के कारण उसकी शक्तियाँ दो तरह से बदल जाती है | अगर आप लोग फिजीक्स जानते हो तो समझ लेंगे की शक्ति हमेंशा सीधी ही गुजरती है लेकिन वो जब इधर ऐसे गुजर जाती है, जब वो ऐसे जाना पडता है उसका बदलता हुआ रूख उसको दो शक्तियों में बाट देता है, जिसे काँपोनंटस् (पुरजा )कहते है। एक ऐसा बाहर की ओर जाती है, एक नीचे की ओर जाती है। बाहर की ओर  जाने वाली शक्ति के कारण की मनुष्य के अंदर में बाहर की ओर दृष्टि आ जाती है। जैसे के जानवर है वो अगर इस स्टुल पे आकर बैठ जाए तो ये सोचेगा की स्टुल पे बैठूं? पर मनुष्य अगर स्टुल पे बैठ जाए तो सोचेगा की ये स्टुल में कैसे पालूँ। ये कहाँ से आया? इसको किसने बनाया? इसका बनानेवाला कौन? कोई सी भी चीज़ को देखते ही साथ उसमें लपट जाता। क्यूंकि इंसान को देखता है, उसकी ओर भी वो लपट जाता है। जानवर में ये बात नही, वो बस जीता है। उसका अगर मालिक आया तो खुश हो जाता है। कोई पराया आदमी आया तो फिर भौंकने लग जाता है कोई अगर चोर आया तो उसके ऊपर  भौंकने लगता है। अब वो ये नही सोचता है कि मैं इसे अपना लूँ, इस माइक को मैं ले लूँ। इस टेबल को में ले लूँ। इसको कहते है पझेशन (अधिकार) उसका उसके दिमाग में ख्याल ही नही आता, उसमें सौंदर्य की भी दृष्टी नही आती। वो ये भी नही सोचता है की कोई चीज़ सुंदर है या असुंदर है। इसका रंग अच्छा है या बुरा,  इससे उसे कोई मतलब नही लेकिन मनुष्य किसी भी वस्तु विशेष में लिपट लेता है। फिर वो आगे बढ करके, ये सोचने लग जाता है, के मैं जो हूँ, मेरी जो सत्ता है, मैं कोई एक विशेष हूँ। जैसे के हम पैदा होते ही ये सोचने लग जाते है के हम निर्मला, हम हिंदुस्तानी, हम हिंदू है, मुसलमान है, ईसाई है, इस तरह से जो कुछ भी बाहर की उपाधियाँ है उससे लिपट जाते है। ये जो बाहर जाने की प्रवृत्ती है, ये मनुष्य के त्रिकोणाकार मस्तिष्क की जो स्थिती है, उसकी वजह से है। अगर मनुष्य बाहर न जाए तो उसके आगे कोई प्रश्न ही नही आएगा। जैसे कुत्ते-बिल्लियाँ उनके आगे कोई प्रश्न नही। इनके अंदर से सारी चेतना गुजर के नीचे चली जाती है इनके आगे कोई प्रश्न ही नही। कोई इनके रूह के अंदर रिऍक्शन (प्रतिक्रिया) नही। लेकिन हमें ऐसा है के हम जब किसी भी चीज़ की ओर देखते है तो उसके प्रति हमारा रिऍक्शन होता है। इसी कारण हमारे अंदर एक आगे से निकलने वाली ऐसी शक्ति होती है, पीछे से निकलने वाली शक्ति के कारण हमारे अंदर उसका रिऍक्शन मात्र ही ईगो और सुपर ईगो, अहंकार और प्रतिअहंकार नाम की दो संस्थाऍ तैयार हो करके यहाँ पे एकत्रित होती है। उसके एकत्रित होने के कारण यहाँ से हम सारे तरह से अलग ही हट जाते है। उस चारो ओर में जो हमारे शक्ति विराज है उस शक्ति के हम कट जाते है। हम अलग हो गए आप अलग हो गए ,आप अलग हो गए ,आप अलग हो गए, हम सब अलग-अलग खडे है। वास्तविक हम एक ही शक्ति की देन है जैसे कि कोई हमारे अंदर पेट्रोल भर दिया हो और हमें यहाँ खीच लाए। इस शक्ति में से जो बीच में से शक्ति गुजर के जाती है वो हमारे रीढ की बीच की हड्डी से नीचे के हिस्से में जो त्रिकोणाकार अस्थि है उसके अंदर जाके लपट के साढे तीन चक्र में बैठती है, कुंडो में बैठ जाती है इसलिए उसको कुंडलिनी कहते है। ये शक्ति अभी दिखाई नही देती, इसलिए बहुत से लोग कहेंगे की आप जो कह रही है बात कैसे सही मान ले? लेकिन ये एक हद से पहुँच ने तक आपको दिखाई देगा। जैसे कि आपको हम कहे की मायक्रोस्कोप से आपको बहुत सी ऐसी चीज़े दिखाई देंगी जो इन आँखों से नही दिखाई देंगी। लेकिन मायक्रोस्कोप आपको मिलना चाहिए। अगर आपको मायक्रोस्कोप नही मिला तो आप उस चीज़ को देख नही सकते। तो एक स्थिती ऐसी आ जाती की जिसमें आप इन शक्तियों को देख सकते है। कहाँ बैंठी है, किस तरह से बैठी है, उसका आकार लेकिन ये निराकार में शक्ति जा करके अंदर बैठी रहती है।

जिस वक्त में कुंडलिनी जागृती होती है हमारे यहाँ जो लोग आए है और जो लोग अब पार हो चूके है जो काफी इस काम को जानते है वो भी बता सकते है। जब कुंडलिनी आपकी जागृत होती है, अगर कोई मेंरे सामने झुका हुआ हो तो उसके पीठ से इस रीढ की हड्डी के पीछे में, उसका स्पंदन दिखाई देता है। आप कभी भी श्वास यहाँ तो लेते नही, लेकिन उसका ऊपर उठना और गिरना आप देख सकते है चाहे आप पार हुए हो, चाहे नही हो। बहुत से लोगो में ये दिखाई देता है। सब में दिखाई नही देता। लेकिन जिस में कुछ रूकावट उसमें काफी अच्छे से दिखाई देती है काफी देर तक आप देख सकते है की वहाँ स्पंदन है। ये शक्ति वहाँ स्थित रहती है। वहाँ बैठी रहती है। यही कुंडलिनी है। जो बैठी रहती है, उस समय तक जन्मजन्मांतर तक, वही कुंडलिनी आप के अंदर में पनपती रहती है और सारी चीज़ जैसे टेप होता है उस तरह से रिकॅार्ड करती रहती है। इनको क्या क्या तकलीफ़ है? ये मेरा बेटा है। इसे क्या क्या परेशानियाँ है? इसके शरीर में क्या क्या तकलीफ़ है? इसके मन में  क्या तकलीफ है? और इसको किस चीज़ की तकलीफ़ है। वो सब कुछ आप के बारे में जानती है। आपके माँ के अनेक बच्चे हो सकते है, पर इस माँ के आप ही एक बेटे है। आप ही एक है।

अब मेरा जब से जन्म हुआ, मैं ये देखती थी कि हर एक इंसान की कुंडलिनी वही जमी बैठी है। वो उठती ही नही। वजह क्या है? इसका उठने का जो मार्ग निश्चीत है जिसे वो उठेगी, जिसे वो जानती है, कि इसी मार्ग से मुझे उठना है इसके बीच में एक बहुत बडी जगह है। जो की बाहर भी जो डॅाक्टर लोग है समझ सकते है के हमारे अंदर, यहाँ भी ये हमारे व्हॅाइड वेगस नर्व्ह और आँरटिक प्लेक्सेस के बीच में कुछ भी नही। उसी तरह से हमारी जो बीच की सुषुम्ना नाडी है उससे भी ऐसी जगह है। सभी इंसानो में ये जगह बनने के कारण वो कुंडलिनी शक्ति भी है। मैं ये ही नही समझ पाती थी के कुंडलिनी शक्ति उठेगी तो किस तरह से उठेगी? उस गेप (रिक्त स्थान) को भरने का इलाज जो ढूंढा गया है, वही सहजयोग है। ये जब कुंडलिनी शक्ति उठती है, तो ये ऊपर जा करके और फिर से उसी मार्ग से ऊपर जा करके आपको एकाकार कर देती है उस शक्ति से जो की हमारे चैतन्य को भरती है। जैसे के आप समझ लीजिए के पेट्रोल हमारे अंदर पहले भरा गया था, उसके बाद उसे हमने इस्तेमाल कर लिया। हमारे बाहर जाने की प्रवृत्ती से हमने इसे इस्तेमाल कर दिया। अब नया पेट्रोल भरने के लिए फिर से ये केप(ढ़क्कन) खुल गया है और उसके लिए कुंडलिनी ही उसे खोल देती है और ऊपर किसी ग्रेस के नीचे वो आप के अंदर में शक्ति पूरी समय दौडती रहती है। जब ये चीज़ घटित हो जाती है ,उस वक्त आपको ऐसा लगता है कि आपके हाथ के अंदर से कोई शक्ति बह रही है। अब आश्चर्य की बात है की शुरू से जब से चैतन्य शक्ति अपना कार्य कर रही है तब से जड शक्ति और चैतन्य शक्ति, दोनों शक्तियाँ साथ-साथ है। जैसे की एक पेड है, पेड के अंदर उसकी चैतन्य शक्ति है, लाइफ है तभी तो न वो पनप रहा है। लेकिन आप उसे देखते नही, देख रहे है आप किस पेड का बल है माने जड शक्ति का काम आपने कर लिया। चैतन्य शक्ति हमेशा जड शक्ति को चलाती है, रेग्युलेट करती है और अपना काम करती रहती है। लेकिन उस पहली मरतबा जब आप रिअलाईज होते है तब वो दिखाई देती है तब उसका प्रार्दुभाव होता है मॅनिफेस्टेशन होता है। पहली मरतबा आपके अंदर से बहने तब लगती है जब ऊपर से उसका प्रभाव खुल जाता है और अंदर से आने लगती है हाथ में ठंडे-ठंडे व्हायब्रेशन्स आने लगते है। लेकिन आप स्वयं उस दशा में पहुँच जाते है जहाँ र्निविचारिता स्थापित हो जाती है, अंतरमय। अब अगर यहाँ कोई सायकोलाँजिस्ट हो तो समझ सकते है वो इसको युनिर्वसल अनकाँशिअस कहते है।[UNCLEAR]  कोई भी व्याधि हो, कोई भी व्यक्ति हो, इसमें, कैंसर की बीमारी भी ठीक हो सकती है। जिससे की लोग बहुत ज्यादा है और जो आज आया भी इसीलिए है शायद की सहजयोग को लोग लाभ पा सके। पूरी बीमारी से [UNCLEAR] जो कोई आदमी पार हो जाते है, उनको कभी भी कैंसर की बीमारी नही होगी। क्यूंकि वो जानते है, कि कैंसर किस तरह से होता है। बहुत से लोग ये भी कहते है की बडे-बडे लोग थे जैसे की रमण मर्हषि थे, उनको कैंसर हो गया था | राम कृष्ण परमहंस को कैंसर हो गया था, हो गया था | लेकिन उनको कोई बताने वाला नही था की कैसे ठीक किया जाए।

इस व्हायब्रेशन्स के बारे में भी बहुत कम लोगों ने लिखा है और सबसे तो कमाल ये है की सिर्फ आदिशंकराचार्य ने ही इसके बारे में लिखा। लेकिन जो अपने को बडे हिंदू भी कहलाते है, वो आदिशंकराचार्य को नही जानते। आदिशंकराचार्य ने सिवाय सहजयोग के और कोई बात नहीं कही। उन्होने ये ही कहा के, न सांख्ये, न योगे। सांख्य से, योग से, किसी भी चीज़ से परमात्मा को नहीं पाया जाता, वो सहज में ही हो जाता है। अपने आप ही, स्पाँनटेनिअस (स्वाभाविक) ग्रोथ होता है, जो होता है और उन्होने कोई जाती-वाती बनाई नही थी वो भी ये कह गए को तीन तरह के संसार में लोग होते है। एक तो ये की जो बहुत ही निम्न श्रेणी के होते है, जिनकी इतनी हानि होती है, के ये पुरी तरह से अधिक पुरे ह्युमन बिइंग डेव्हलप नही।

माने समझ लीजिए ये माइक है ये अगर पुरी तरह से अभी मशीन तैयार नहीं हुई है उसका मेंन्से कनेक्शन लगाने की कोई जरूरत भी नहीं और फायदा भी नहीं। इस तरह के जो लोग है वो भक्ति रस में पडे रहते है उनका कुछ फायदा नहीं होने वाला। दुसरे ऐसे लोग है कि जिनका मन इधर-उधर बहुत दौडता है और उसके कारण वो बुरे काम या ऐसे काम में जुटे रहते है जिसके उनकी जिससे उनकी शक्ति बहुत क्षीण हो जाती है। ऐसे लोग योग में पडे की जिससे की वो योग से कुछ अपने को बचाए। लेकिन एक तीसरे तरह के लोग होते है जो की इससे आर और इसकी शुद्धि को भी खोते है। उनके अंदर ये अद्भुत घटना घटित हो जाती है। अब उनमें मुझ में यही अंतर है कि वो कहते है कि करोडो में एकाद होते है। मैं करोडो में लाखों कहती हूँ, लाखों कहती हूँ, यही एक बात है इनमें हमारे में अंतर है। हो सकता है की छटी शताब्दी में ऐसे ही लोग रहे हो, लेकिन जैसे आज मैं देखती हूँ की इनमें से हजारों इस चीज़ को पा रहे है। ये कुंडलिनी जागृती के प्रति भी आपने बहुत कुछ पढा होगा अगर आप उस किताबो को पढे हो तो शायद आप यहाँ न आते क्योंकि उसके बारे में ऐसा बताया की कुंडलिनी जागृती किए तो बदन में बडे बडे फुन्सियाँ निकल आती है या बडी आग सी होती है। कोई लोग कहते है की उसमें आदमी पागल हो जाता है दुनिया भरकी चीज़े लोग कहते है इसमें ऐसा कुछ भी नहीं होता। लेकिन वास्तविक ये लोग जिसको कुंडलिनी जागृती कहते है ये कुंडलिनी की जागृती नहीं है ये कुंडलिनी को नाराज करते है क्यूँकि जब कुंडलिनी मध्य मार्ग से उठती ही है और उठती रहती है उसको और जगह से किसी भी तरह से हम अगर उठाने का प्रयत्न करे तो वो गलत होगा। मध्य मार्ग से वो तभी उठ सकती है की ऐसा ही आदमी जो संपूर्ण परमात्मा के चैतन्य स्वरूप में प्रेम को ही बाट रहा है तो वही उस जगह से धर सकता है जो मनुष्य के बीचों-बीच मिल जाए। वास्तविक ऐसे लोग बहुत कम होते है, थे.. हम तो कहेंगे अब बहुत लोग ऐसे हो गए है, इन्ही लोगों को रिअलाईझड् कहना चाहिए जिनके अंदर से चैतन्य शक्ति बह रही है। जब ऐसे ही लोग आप को जागृती देंगे जो पार हो गए है, जो रिअलाईझड् लोग है तब आपको कभी भी कुंडलिनी का कोई सा भी प्रार्दुभाव दिखाई नहीं देगा जैसा की लोग बता रहे है बिलकुल तथाकथित है ये बात इस तरह की घटना घटित होगी। हमारे सामने हजारों लोगों की जगृतियाँ हुई है बंबई शहर में दस हजार कम से कम लोगों की जागृती की है और पार भी करे करीबन तीन हजार से ऊपर चार हजार करीब, कहते है तीन और चार के बीच में लोग पार हो गए। लेकिन किसी भी आदमी को इस तरह की तकलीफ़ होते हुए हम ने देखा नहीं जैसा वो कहते है हाँ, थोडा बहुत जरूर, रेझिस्टंन्स (प्रतिरोध) जिसे कहते है, वो देखा है क्यूँकि हम तो इधर से प्यार दे रहे है हो सकता है आपको कोई नफ़रत कर रहा हो, और आपके अमदर बसा हुआ हो वो जरूर थोडा आपके शरीर को हिला सकता है आपको कोई दुख दे सकता है लेकिन वो भी थोडे देर में नष्ट हो जाता है और वो भी भाग खडा हो जाता है क्यूँकि जब वो देखता है की यहाँ प्यार ही आ रहा है तो वो भी जैसे की उजियारे को देख अंधेरा भाग जाता है वो भी इसी तरह | लेकिन कोई भी इंसान को हमने आज तक देखा नहीं जिसके बदन में फोडे आए हो या फुंसी आए हो या वो पागल जैसे हो गए हो ऐसी बात है। अभी कुछ दिन पहले हम एक जगह गए थे तो एक साहब हमारे तरफ इस तरह से पाव कर बैठे। उस दिन कहा की ऐसे पाव पे न बैठिए, उने कहा की ऐसे बैठने दीजिए नहीं तो मैं तो मेंढ के जैसे कुदता हूँ। तो मैंने कहा ये क्यूँ? कहने लगे मेरे गुरू ने बताया जब कुंडलिनी की जागृती होती है तो आप सब मेंढक के जैसे [UNCLEAR] तो उसको हमने कहा की तुम्हारी तो अभी जागृती ही नही हुई है और बहुत मुश्किल काम है तुम्हरा जागृती होना। क्यूँकि बीच की जो सुष्मना नाडी है, जिसमें कि ये जगह बनी हुई है उसके अलावा हमारे अंदर और दो नाडीयाँ है, जिसे के सिंपेथॅटिक नरव्हस सिस्टिम कहते है इसे हम ईडा और पिंगला कहते है। इन नाडियों के तप्त हो जाने से ही ये सब काम होता है और जब आप कुछ भी परमात्मा के नाम पे करते है, उस वक़्त आप में वो गर्मी आ जाती है। यानी आप ऐसा सोच लीजिए की अगर आपने अपने घर का हिटर उसमें पानी डाले बगैर अगर चला दिया तो उसकी क्या हालत होती है। पहले उसे प्रेम का प्यार का पानी पड़े , जब तक उसमें प्यार का पानी नही पडेगा तब तक वो कार्य बन नहीं सकता। इसी तरह से जब हम बगैर उस परमात्मा को पाए हुए, उसकी शक्ति को पाए हुए उसके नाम पर कोई भी काम करते है या क्रिया करते है उसी वक्त हमारी ये सिस्टिम ये सिंपेथँटिक नर्व्हस सिस्टम वो चलने लग जाती है, इडा या पिंगला। कोई सी भी नाडी के चलने से क्रिया शक्ति के बढने से जो आपकी शक्तियाँ वो खत्म होने लगती है। अगर आपकी इडा अगर बहुत चलेगी तो आपको कैंसर जैसी भयंकर बीमारी होगी, ओव्हरअँक्टिव्हिटी जिसे कहते है और अगर आपकी पिंगला बहुत ज्यादा चल गई तो आपका कंडिशिनींग बढ जाएगा। आपके अंदर में जिसे कहते है भूत बाधा आदि ये सब चीज़ | इसे दोनों ही तरह से, क्रिया का करना निषिध्द माना है।

लेकिन जब आप वही हो गए तब आप कुछ किया ही नही करते। जैसे की अभी ये माईक है, ये क्या क्रिया कर रहा है सिवाए इसके की मैं जो बोल रही हूँ वही आप सब तक पंहुचा रहा है। इसी तरह से आप भी एक खोकली चीज़ हो जाते है, एक हॅालोपरस्नॅलिटी (खोकलाव्यक्तित्व) हो जाते है जिसके अंदर की ये शक्ति अपने आप बहने लग जाती है | इस खोकलेपन को आपके अंदर बसी हूई आपकी कुंडलिनी प्रस्थापित करती है। कुंडलिनी आपकी माँ है। माँ आपके अंदर पहले ही से बैठी है, माने के आप पहले से सब्लिमेंटेड(उदीतिकरण) है। बहुत से लोग ऐसी भी बात करते है के हमारे सेक्स को सब्लिमेंट करना है ये सब बेकार की बाते है। आप पहले ही से सब्लिमेंटेड है। आपको सब्लिमेंशन का कोई सवाल ही नही है आप पहले ही से कहीं नीचे बैठते है और इस तरह की गलत धारणा लेकर के भी जो लोग चलते है वो ही अपनी माँ का ही स्वयं अपमान करते है और इसी कारण इनकी कुंडलिनी तो जगती नही, लेकिन उसका जो क्रोध है, कुंडलिनी का जो क्रोध है वो आपके सिंपॅथॅटिक पर दौडने लग जाता है और बूरी तरह की गर्मी ,जो है[UNCLEAR] लोगो को पागल कर देती है। क्रिया योग आदि आपने बहुत कुछ सुना होगा इस तरह की बहुत सी चीज़े है जो लोग करते है। अब बहुत से लोग है जो जपतप आदि भी करते है | जपतप करना भी बाहर की बात है। आप परमात्मा के नाम पे कुछ भी नहीं कर सकते, यहाँ आके आप इतना भी सोच ले के हम कुछ भी जीवंत कार्य कर ही नही सकते | मनुष्य अपनी भ्रम में ही ये बात सोचता है, कि मैं कुछ कर लूँ। बिल्ली, कुत्ते कुछ ऐसा सोचते नही। हम वो ही कर सकते है जो मरा हुआ काम है। जैसे कि एक पेड मर गया तो उससे हमने एक खंबा बना लिया इसको खडा कर दिया सब मरी हुई चीज़े, कोई भी चीज़ जीवित नही और बिजली और आपके जो ये प्रकाश है, लाईट और ये सब जो इलेक्ट्रिसिटी आदि, जितनी भी, जो कुछ भी, आप शक्तियाँ जानते है, ये सब जड शक्तियाँ है। इसमें से जीवंत शक्ति एक भी नही | आप कोई सा भी जीवंत कार्य नही कर सकते। माने आप एक फूल में से एक फल नही निकाल सकते। एक बीज में से आप एक पेड नही निकाल सकते। लेकिन मनुष्य को ऐसा भ्रम रहता है के मैं सब कुछ कर सकता हूँ और जो ऐसे करोडो काम करता है उसके आगे आपकी शक्ति हो ही क्या सकती है के आप कुछ कर नही सकते। अगर समझ लीजिए कोई बडा भारी ऐसा मैगनेट(चुम्बक) हो, बहुत शक्तिशाली हो और उसके आप छोटी सी एक मैगनेट हो, आप कर क्या सकते है उसको अपनी तरफ खीचने के लिए, सिवाय इसके की अपने अंदर जो मॅग्नेट है उसे खत्म कर दे, इतने ही का काम है। मनुष्य कुछ कर ही नही सकता और करता नही है, ये भ्रम में बैठा हुआ है कि वो करता है क्यूंकि उसके अंदर ईगो और  सुपर ईगो दोनो का प्रार्दुभाव हो जाता है, मॅनिफेस्टेशन हो जाता है। वो एक भ्रम को बना देता है कि मनुष्य कुछ करता है। वास्तविक परमात्मा ने आपको उन्ही के आपके लिए बनाया है। हम ही परमात्मा के शरीर है। जैसे के हमारे शरीर में जो शक्ति बह रही है वो इन उंगलियों से कार्यांवित है। ये जितनी भी उंगलियाँ है, ये हमेशा शरीर के एक स्वरूप में दिखायी देती है माने जड है। हम ही उसके जड स्वरूप है जो हमारे अंदर से वो कार्यांवित रहेगा। वो स्वयं शक्ति स्वरूप है, वो सब कुछ जानते है, वो सब कुछ करते है, वो सब प्लानिंग करते हुए है, वो बारीक बारीक चीज़ को जानते है, लेकिन वो निराकार है। वो साकार में हमारे ही अंदर कार्यांवित है। निराकार और साकार का कोई भी चरण नही। जब आप कुंडलिनी पर आयेगा तो आश्चर्य होगा कि किसी भी धर्म का किसी भी धर्म से झगडा नही। हाँ अर्धम होएगा तो होगा। इसामसीह ने एक जगह ऐसा कहा है की “ दोज हु आर नाँट अगेंस्ट मी, आर विथ मी”। कितनी बडी बात उन्होने कह दी कि जो मेरे खिलाफत में नही, माने जो चैतन्य के खिलाफत में नही, वो सब मेरे ही साथ | ये तो अपनी कुंडलिनी में भी देख सकते है, की आपकी कुंडलिनी स्वयं न जाने कितने चक्करो में गुम पड़ी है। जैसे के आप पूर्वजन्म में समझ लीजिए मुसलमान रहे हो | कम से कम हिंदुओ को तो मानना ही पडेगा जो पूर्वजन्म को मानते है। हो सकता है कि आप चायनिज रहे हो। जिस चीज़ को आप नफ़रत करते रहे होंगे वही आज आप पैदा भी हुए हो। क्यूंकि उस वक़्त आज नफ़रत करते थे तो आज इस जन्म में हो सकता है, कि आप इसलिए पा गए है की जाने, की जिसको आप नफ़रत कह रहे सोचिए वो बात इतनी बुरी नही।

अगर पहले जन्म में आप बडा ही आसथित्य है। परमेंश्वर से अत्यत अटूट विश्वास हो कि, हाँ परमात्मा है, परमात्मा है और आपको परमात्मा नही मिला और आपने इसी से अगर खुदख़ुशी करली हो, तो इस जन्म में जरूरी नही है की आप नास्तिक भी है।आप चाहे नास्तिक हो या आस्तिक हो परमात्मा तो है ही। उनको मानने ना मानने से वो मिटते थोडी है और हम होते ही कौन है जो उनको मिटा दे। अगर ये उंगली माने चाहे नही माने इसके अंदर शक्ति है इससे कोई फर्क नही पडने वाला और इसका मानना न मानना उसका कोई मानना भी क्या है। कोई अर्थ भी क्या है? इसको तो सिर्फ यही चाहिए के इसके अंदर से जो शक्ति चल रही है, जो इस बुद्धि से कनेक्टेड है वो जो भी कह रही है, जो भी करा रही है, वे सीधे सीधे कर रही है। इसमें राधाजी का एक बड़ा सुंदर उदाहरण है यहाँ पे राधाजी के प्रेमी बहुत बैठे है इसलिए मैं बताने चाहती हूँ एक बार राधाजी को कृष्ण की मुरली से बहुत ईर्ष्या हूई, तो उन्होने कृष्ण से कहा कि इस मुरली की क्या विशेषता है जिसको तुम हमेशा अपने मुख से लगाए रहते हो। तो उन्होने कहा तुम उसी से जाके पूछ लो। तो उन्होने मुरली से पुछा के तुम्हारी क्या विशेषता है जो तुम हमेशा उसके मुख में लगे रहते हो | तो, मुरलीने कहा के अरे पागल तुझे नही मालूम, मेरी कोई विशेषता नही ये ही तो मेरी विशेषता है। मैं पूरी तरह से खोकली हो गई हूँ, इसीलिए तो वो बजाता है। अगर मैं कही भी खडी हो गई उसका तो सारा राग ही खराब जाएगा। मतलब पूरी खोकली हो गई हूँ। तो कहते है की राधाजी ने कृष्ण से कहा था के अगले जनम तुम मुझे अपनी मुरली बनावा।

इसी तरह से हम भी एक खोकले हो जाते है। पर खोकले होने का मतलब ये नही के आप कार्य से छूट जाते है। बहुत से लोग कहते है की ये हमारी जिम्मेदारी नही। वास्तविक आपकी कोई जिम्मेदारी है नही। लेकिन लोग कहते है की ये हमारी जिम्मेदारी है क्यूंकि ग़लतफहमी में बैठे है जैसे की हम इसके इस छत्र के नीचे बैठे हुए है और ये खंबे इसको पकडे हुए है। अगर कोई अज्ञानी हो तो अपना हाथ उसे बेकार में लगाए रखेगा के मैं उसको पकडे हूए हूँ। लेकिन जो ज्ञानी है, जो जानता है के उसके लिए खंबे खडे हुए है। संभालने वाले हम कौन है। उसी तरह से, जब तक अज्ञान रहता है तो मनुष्य यह सोचता है के मैं ही सब चीज़ करने लगा हूँ और वो काम कर लेता है और अगर मैं इस झंझट में पड गया तो मैं कोई साधू सन्यासी और ये हो जाऊंगा और मैं कुछ काम ही नही कर पाउँगा। वास्तविक आप तभी ही ठीक से काम कर सकते है, जब आप विचारों से परे हो।क्यूंकि आपके अंदर की शक्ति इतनी अद्वितीय है और इतनी गहन है और इतनी ही ज्यादा शक्तिशाली है के जैसे ही वो आपके अंदर से बहने लग जाती है, आपके तो चार चांद लग जाते है। आपके बातचीत में, बोलने में हर एक चीज़ में आप एक कमाल का जोहर [दिखाते है] लोग आश्चर्य में हो जाते है के कैसे के ये हो गया।

अब यहाँ मिस माणिकलाल बैठी हुई है उनका उदाहरण हम आपको बता रहे के जब से इनकी जागृती होकर ये पार होई, उनकी लेखनी से कुछ ऐसी ऐसी चीज़े होती है के ये खुद कहती है कि मुझे लगता है मैं लिखती हूँ के क्या हो रहा है। ऐसे ऐसे लोग जो साधारण भी कविता नही कर पाते थे जब वो पार हो गए उसके बाद वो ऐसी ऐसी कविता करते है। एक लडकी थी साधारण आठवी की, बिलकुल साधारण माने घर बैठकर रंगवंग फैला करती थी, उसके बाद जब वो पार हो गई उसके बाद उसके एगझिबीइशन्स होना लग गए और लाखो रूपया उसने और कमा लिया। कोई अगर समझ लीजिए पॅालिटिशीयन भी हो जिस वक़्त वो साक्षी हो जाता है तो पुरी तरह से सारी चीज़ को देख लेता है और इसके अलावा जब उसके आश्रय में पूरे खडे हो जाते है जब आप उसको पूरी तरह से आप मान लेते है उसके भी हजारों दस्तक आपके आस पास कुछ कह रहे है देवता मंडराने लगते है। आपको समझ में नही आता कि कैसे काम बन जाता है। कैसे लोग आ जाते है। कैसे चीज़ बन जाती है। किस तरह से चीज़ आ जाती है और कैसे पुरा काम होता है। इतनी कमाल की चीज़े हो जाने लग जाती है, के मनुष्य आश्चर्य होने लगता है की ये चीज़ कैसे बन गई, वो चीज़ कैसे बन गई। लेकिन दृष्टि मनुष्य की इस पर नही होना चाहिए , इससे हमारा मटेरीअल गेन क्या होगा। बहुत से लोग कहते है की कुंडलिनी शक्ति जगा दीजिए तो हमारे अंदर शक्ति आ जाएगी। असल में आप तो बिलकुल शक्तिवीन हो जाते है लेकिन कुंडलिनी आपकी शक्तिशाली नही है। परमात्मा की शक्ति आपके अंदर से बह जाती क्यूंकि आप बिलकुल ही शक्तिहीन हो करके उसके आगे समर्पित हो जाते है। जो कुछ भी आज तक सारे धर्मो में बताया गया है, उसका सार मात्र एक ही है के आप अपने को जानिए और इसका जानने का मार्ग भी एक मात्र है, वो है सहजयोग एक स्पाँटेनिअस ग्रोथ जिसे कहना चाहिए। जो अंदर से ही अपने आप घटित होता है। बुद्ध को भी सहजयोग से ही मिला था। वो इधर उधर हजार जगह भटक के एक दिन थक कर पडे हुए थे और जब थके हुए लेटे हुए थे, उस वक़्त में उनकी कुंडलिनी ने कहा के मेरा बेटा बहुत थक गया है किसी तरह से उसे धरो, उसी वक्त वेग उनके सर पर आ कर रुक गई, और नीचे से कुंडलिनी ने उनका सहस्त्रार तोड दिया और वो पार हो गए।

कोई ही आदमी आजतक सहजयोग के सिवाए पार नहीं हुआ है। सिर्फ यही है के जैसे हम अब चार डुपले लेन में आने के लिए, पहले हजरतगंज गए फिर वहां से सुटारे हो तो दिल्ली में है तो चलिए अब यहाँ से लखनऊ छोड करके हम दिल्ली में आए फिर दिल्ली में घुम करके हमने देखा के इधर गए, उधर गए, वहाँ से घुमते घुमते किसी तरह से लोगों ने कहा साब ये तो यही है आप ही के अंदर में बैठा है, आप कहाँ जा रहे है। तो लोगों ने सारा घुमना हमारा देखा के ये तो पहले यहाँ गए थे, फिर वहां से वहाँ गए थे, फिर जापान गए थे। फिर वहां चायना गए थे। फिर वहां से घुमघाम कर के यहाँ मिले। वो सारे घुमने घामने जो गडबड हो गई थी वो अभी भी लोग पकडे हुए है। लेकिन जिसने पा लिया है, वे अधिक्तर समाधिस्त हो जाता है।

इसका उदाहरण सबसे अच्छा उदाहरण हमारे ज्ञानेश्वर जी है। जब उनकी कुंडलिनी जागृत हुई थी जो छटा अध्याय लिखा है तब उनकी जागृत हुई थी और जब वो पार हो गए तब तक उनकी ज्ञानेश्वरी पूरी हो गई थी। उस वक़्त उन्होने समाधी ले ली, क्यूंकि जब पा लिया तभी तो को सब व्यर्थ यही पाली। अब इतना सब कुछ लिख दिया सब बेकार न हो जाए। समाधी ही ले लेते है | सारी ही खोज व्यर्थ हो जाती है। लेकिन व्यर्थ कुछ भी नही होता, खोज से ही आदमी उस दशा में पहुँच जाता है जहाँ उसे पाता है। ये खोज ही है। कुंडलिनी आपके साथ खडी खडी सारी चीज़ रिकॉर्ड करती है। मनुष्य पहले पैसे में खोजता है, पझेशन्स में खोजता है। उसके बाद जब उससे भी, के कहता है के क्या रखा है? सब जंग है, जैसे अमेरीका में। तब उसकी कुंडलिनी कहती है, अच्छा चल ये नही। उसका फिर जनम होता है। तो वो फिर एक सत्ता में खुश रहना है। फिर सत्ता को देखो। फिर सब सत्ता भी देख डाली। तब वो कहता है इस में क्या है। फिर वो कहता है चलो धर्म में खोजते है धर्म भी तो बाहर है, हमारे सारे धर्म बाहर आ गए है। अंदर का धर्म कोई जानता ही नही। बात सब अंदर के धर्म की है लेकिन तरीके सब बाहर है। इस वजह से वो बाहर खोजता है। धर्म नही खोजता। गुरू बनाता है, मंत्र करता है, मंदिर जाता है। परमात्मा को पुकारता है, लेकिन सारे धर्मो का तत्व ये है की इसे पा लेना है। जो लोग पार हो चूके है ऐसे कितने भी गुरू हो गए है। जैसे गुरूनानक है। वो कहते है के ‘सहज समाधी लो, सहज समाधी लागे’। वो कहते है ‘ काहे रे मन खोजन जाई, सदा निवासी, सदा अलेपा तोहे संगत | पुष्प मध्य जो बास बसत है, मुकर में माही वे ठाई, तैसे ही हरी बसे निरंतर घट ही खोजो भाई।|

अब हम गा रहे है, रट रहे है, घट ही खोजो भाई ये तो ऐसा ही हुआ के, किसी डाक्टर ने प्रिस्क्रिपशन दिया के तुम अॅनासिन ले लो तुम्हारे सरदर्द हो रहा है, तो हम रट रहे, अॅनासिन ले लो, अॅनासिन ले लो, लेगा कब? अगर पेशंट लेगा ही नही तो उसका सरदर्द जायेगा कैसे? घट के अंदर खोजने का मतलब ये है के घट के अंदर स्थापित हो जाओ। इसको खोजा नहीं जा सकता अपने आप ही हो जाता है। जब आपका समय आ जाता है और हजारो लोगों का समय आ गया है। जो आप लोग यहाँ बैठे हुए है आप अपने पूर्वजन्म जानते नही। हजारों सालों से ये खोज है जो आपको यहाँ लायी है। इसके कारण आप अपने ही अधिकार में पा लेते है, हम तो यहाँ कुछ कर नहीं रहे | जैसे समझ लीजिए के आप बैंक में जाते है और अपना चेक देकर अपना पैसा मांग लेते है। उनको देना ही पडेगा, नहीं तो जायेंगे कहाँ। अगर हम आपको रिअलायझेशन नही देंगे तो जायेंगे? कहाँ देना ही पडेगा, होना ही पडेगा। क्योंकी आपका वो अधिकार है। आप जो भी पा रहे है, अपने अधिकार में पा रहे है। आपकी इच्छा ही नही होगी जब तक आपका स्वयं इतना अधिकार नही। आपकी इच्छा की बगैर कोई सा भी कार्य , लेकिन हम कोई एक बात जरूर जान लेनी चाहिए के हम क्या असलियत चाह रहे या नकलीयत चाह रहे। आपको कुंडलिनी जानती है। आपको वो सब कुछ जानती है आपके बारे में, लेकिन आपके स्वतंत्रता की वो इज्जत करती है कि अपनी स्वतंत्रता में जिस दिन आप ये तय करले, के हम परम चाहते है, उसी दिन कुंडलिनी आपकी उठेगी। उसी दिन आपका सहस्त्रार खुल जाएगा के हमें और कोई चीज़ नहीं चाहिए। हमें सिर्फ परम की चीज़ मांगनी है। हमें शरीर का कुछ नही चाहिए और कुछ नहीं चाहिए। हम उसी परम पिता परमात्मा परमेंश्वर। उसी छत्र छाया में अपने को, जागते हुए पाना। ये जिसने एक बार सोच लिया वो पार हो गया।

कुंडलिनी के बारे में आप के अगर कोई सवाल हो तो आप मुझसे पूछे । कुंडलिनी विषय तो बहुत बडा है और इसका इतना कुछ, अब यहाँ पर जो कुछ लोग है दो चार लोग ऐसे आए हुए है हमारे साथ में के जो रिअलाइझ भी नहीं है। लेकिन उस दशा से रिअलाइझ्ड है। जिनसे आप पूछे के वो दूसरों को रिअलायझेशन दे सकते है। जैसे आप पार होते है आप स्वयं आपके इशारे पर कुंडलिनी नाचती है, इशारे पर। आप खुद महसूस करियेगा । हजारो आदमीयों की आप ऐसे के ऐसे करके कुंडलिनी उठाते है। ये लोग बिल्कुल साधारण तरह से लोग है। नॅारमल लोग है। अंदर से आपको उनकी शक्ति का कुछ भी पता नही लग सकता है के कितनी शक्तिशाली है। लेकिन एक इशारे पर इनकी कुंडलिनी उठेगी और ये लोग पार हो गए। ऐसे जिस दिन हजार आदमी तैयार हो जायेंगे, बहुत बडा कार्य हो सकता है। और एक नयी, नेख तैयार होगी। एक नए तरह के लोग, एक नयी संस्था ऐसी की जो अंदर से चीज़ को पाएगा। बाहर ढकोसले ढोंग पैसो से नहीं पाएगा। अपनी अपनी अंदर की आर्तता से, अपनी अपनी परमेंश्वर की लगन से ही पायी हुई इस चीज़ के जो लोग है इनकी आयु नब्बे साल से तो किसी की कम नही। साक्षी स्वरूप आदमी जो होता है, उसकी  कितनी भी देन हो, उसमें कितने भी पावर्स हो, कुछ भी हो, लेकिन वो उसे अहंकार में कभी नही देखता है। उसको अहंकार नही होता। क्यूंकि वो जब भी देता है, कहता है मेरे अंदर से जा रहा है, ये हो रहा है, ये चल रहा है। इनका नही चल रहा, उनका चल रहा। अब आपका बेटा भी होएगा, तो भी आप उसे नही कह सकते की हां ये पार हो गया। वो तो जब होता है, तब वो पता चल जाता है के हो गया है। अंदर से ऐसे व्हायब्रेशन्स आने लग जाते है। आपके भी अंदर व्हाब्रेशन है। अगर आप कहे जबरदस्ती ताबिज को कराइये, वो नही हो सकता। उसमें कोई रेकमंडेशन नही चल सकता। कोई पॅालिटीक्स नही चल सकता। कोई प्रेशर नहीं चल सकता। कोई रिश्ता नही चल सकता। कोई पैसा नहीं चल सकता। कोई सा भी फॅाल्सहुड, जिसके कारण से मिथ्या कोई सी भी चीज़ उसको पकड नही सकती। सत्य जो है, वो है होना और घटित होना। कोई सा भी कार्य, कार्यक्रम कोई सी भी तरीका इसको बनता नही, अपने आप ही | लेकिन तो भी अपने मन कि ओर दृष्टि जरूर ला सकते के मनुष्य में अहंकार इतना ज्यादा है, इतना सुक्ष्मतल है, के उसे जैसे ही मैं कहती हूँ कुछ भी नही करने का है तो वो चकाचौद हो जाता है। अगर मैं कहूँ सर के बल खडा होना है तो वो ठीक है। लेकिन जो चीज़ एकदम ही मुफ्त मिलने वाली है और एकदम बगैर किसी इसके मिलने वाली तो मनुष्य का विश्वास नही बैठता। क्यूंकि वो अपने अहंकार पे बडा विश्वास करता है। परमात्मा के अहंकार को वो जानता नही, के वो चाहे तो ऐसी ऊंगली घुमा करके सारी सृष्टि की सृष्टि बदल देगा ओर चाहे तो, इस सृष्टी में एक एक छोटे छोटे कण में भी वो दीप जला देगा।

आप लोगों को वाकई ही अगर कोई सवालत हो तो पुछिए और नही तो हम लोग थोडा सा मेंडिटेशन में जा करके और प्रयोग करे, क्यूंकि जब तक अनुभव नही होता है तब तक सब बातचीत, बातचीत रहती है और बातचीत में क्या रखा हुआ है? आ रहे है।