Seven Chakras and their Deities, Paane ke baad

New Delhi (भारत)

1973-11-25 Pane Ke Baad Sat Chakro Ke Devta Delhi NITL HD, 42'
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1973-11-25 Seven Chakras and their Deities (Paane ke baad) 1973, Mumbai

कि आपको कुछ भी नहीं करने का है सहज में हो जाता है । सहज शब्द का अर्थ रोजमर्रा भाषा में सहज माने आसान। लेकिन सहज शब्द जहाँ से आया वो ‘सह’ और ‘ज’ के साथ मिले हुए सहज से आया। माने आसान है । मतलब जो हमारे साथ जो पैदा हुई आँख है, हमारे साथ जो पैदा हुई  हमारी नाक है, इसका हमें कुछ देखना नहीं पड़ता।[अस्पष्ट] 

इस कारण इसमें कोई भी प्रतिबिम्ब पूरा नहीं पड़ता। अगर कोई ऐसा सरोवर हो कि जिसके अन्दर कोई भी लहर उठ नहीं रही। तो उसके चारों तरफ फैला हुआ उसका सौन्दर्य पूरा का पूरा अन्दर प्रतिबिंबित होता है । इतना ही नहीं पर पूरा तादात्म्य होता है। इसी तरह से जब आप किसी भी सुन्दर दृश्य को देखेंगे परमात्मा की रचना की ओर दृष्टि करेंगे आप निर्विचार हो जाएंगे। निर्विचार होते ही उसके अन्दर की जो आनन्द-शक्ति है वो आपके अन्दर पूरी प्रतिबिम्बित होगी I  इतना ही नहीं आप ने उसमें पूरी तरह से तादात्म्य पा लिया है। 

इसी तरह से [अस्पष्ट] अनेक विधि परमात्मा ने आपके लिए श्रृंगार सजाए हैं, अत्यन्त सौन्दर्य चारों तरफ फैला हुआ है। उस सौन्दर्य के सूत्र ही में उतरने से ही आपके अन्दर आनन्द की उत्पत्ति हो जाती हैं। उस आनन्द को आप देखने के लिए ही पैदा हुए हैं, अपने को बेकार में दुखी बनाने की कोई ज़रूरत नहीं। [अस्पष्ट] बहुत लोगों ने ये भी पूछा है कि हमें अब आगे क्या करना होगा। अब क्या करना होगा सिर्फ देखना होगा। जब आप सिनेमा देखने जाते हैं एक दर्शक की दृष्टि से तो आप थोड़ी सोचते हैं कि हमें क्या करना है।

 सब कुछ देखना ही है, देखते ही रहना है। आवागमन देखना है, पेड़ों का बढ़ना देखना है, चिड़ियों का चहचहाना देखना है। हरेक चीज़ की मंगल पवित्रपूर्ण मधुर मुस्कान हर चीज में लहलहाती परमेश्वर की आशीर्वाद की वाणी, उसको सुनना है और कुछ भी नहीं करना है। बस यहीं तक देखते देखते आप अपने में ही विभोर हो जाइए। अब सिर्फ देखने का मज़ा  है I कुछ करने का सवाल ही नहीं उठता। शरीर के स्वास्थ्य के लिए भी आपको बहुत कुछ अब नहीं करना होगा जैसे कि आप बहुत से योग आसन आदि करते होंगे तो बहुत योगासन वग़ैरह करने की जरूरत नहीं, एक आध हल्का योगासन करें तो कोई हर्ज नहीं लेकिन अधिकतर अपने शरीर का बहुत ख्याल रखें। इसी शरीर में उस परमात्मा का वास है, इसकी इज्जत, इसके साथ कोई भी ज्यादती करने की जरूरत नहीं। 

हाँ शराब आदि चीजों से गर आप अपना छुटकारा करना चाहते हैं तो बहुत आसान है। अब आप कोई भी चीज का निश्चय कर ले वो काम हो जाएगा। आपमें conditioning नहीं आएगी I गर आपने तय कर लिया है कि हमने शराब नहीं पीना है।  छूट जाएगी शराब। शराब इन्सान इसलिए पीता है कि अपने से भागना चाहता है, एक शराब के सिवाय और कोई भी चीज़ ऐसी नहीं जिसके लिए में मना कर रही हूँ। लेकिन शराब जरूर ऐसी चीज़ है क्योंकि वो आपकी चेतना पे चोट करती  है। शराब की ओर देखते साथ शराब छूट जाती है क्योंकि आप स्वयं को इतना प्यार करने लगे हैं, अपने आप इतना मजा आ जाएगा और आपमें से किसी को जेल हो जाए तो आप कहेंगे कि वाह भई यह तो बड़ा अच्छा हुआ वहाँ बैठकर ध्यान करेंगे।

 मनुष्य अपनी ही मौज में ऐसा रहेगा कि उसको फिर शराब-वराब की वो कहाँ, सिगरेट भी अपने आप छूट जाती है कुछ कहने की जरूरत नहीं। अपने आप ही सब कुछ छूट जाता है। हमारे यहाँ तो बम्बई में ये हालत है कि माचिस नहीं तो अपने घर से ले जानी पड़ती है। धूपबत्ती जलाने के लिए, कोई भी सिगरेट नहीं पीता। बड़े-बड़े सिगरेट पीने वाले पता नहीं कैसे सिगरेट छोड़ दी। कुछ लोग थे वो बहुत रम्मी खेलते थे वो कहते हैं कि वो रम्मी हमारी छूट गई। क्योंकि मजा आ गया, ज़िन्दगी में मजा आएगा।

 इन्सान में मज़ा आएगा, उनके problems में भी मजा आएगा, उनके साथ जूझने में मजा आएगा। अब आप इन्सान के साथ एक होना चाहिए। अब ये भी ख्याल रखना चाहिए अब हमें जूझना नहीं हैं। अब वो नहीं रहे जो पहले थे, एकदम बदल गए। अब दूसरे हमारे साथ बदले नहीं, इनकी ओर देखना है। उनसे घबराने की कोई बात नहीं क्योंकि आप भी तो वैसे ही थे। 

बहुत से लोग सोचते कि हम बड़ी भारी position के हैं, बड़ी उनकी position खोपड़ी पर चढ़ी है। कोई सोचते हैं हम पैसे वाले हैं, कोई सोचते हैं बड़े भारी धार्मिक आदमी हैं। सोचने दीजिए। सब पागल हैं, उनकी तरफ देखिए ही नहीं। सब पागलखाने में अपने को बहुत अक्लमंद समझते हैं। जब उस पागलखाने में आप थे आप भी यही सोचा करते थे। ये सब पागलपन की बातें हैं। एक दम से जो सारी मिथ्या चीजें हैं धीरे-धीरे छूट जाएंगी। जब आप जान जाएंगे कि सत्य क्या है।

 अब आपके अन्दर वो शक्ति आ गई। अब आपमें ऐसी शक्ति आ गई जिसके कारण आप कोई सी भी बात सोचेंगे, उस सोच विचार का आप पर असर नहीं आता। जैसे कि कोई आदमी कहें कि मुझे गुस्सा नहीं करना तो बड़े अपने से पूछो अरे पागल ज़रा गुस्सा तो करो। आप शीशे के सामने खड़े होकर अपने को कहो जरा गुस्सा तो करो। हँसी आएगी। जब भी आप गुस्सा करिएगा अन्दर से हँसते ही रहिएगा आपको पूरी समय हँसी ही आती है। गुस्से में आप लपटिएगा नहीं। लपट नहीं सकते, किसी भी चीज़ में आप लपट नहीं सकते। 

सभी चीज़ काम, क्रोध मद, मत्सर आदि सब चीजें जो हैं इस विषय की एक अपनी एक खेल है, उसे आप देखिए। उसका एक खेल है उसे आप देखते रहिए। आप दूर रहें आप दूर से इसे देखते रहें। क्योंकि आप पहले बाहर थे, वो नहीं रहे और अब आप अन्दर हैं। सहज में यही करना है कि अपने को अन्दर रखना है बाहर नहीं।

 दूसरों से बात करते वक्त भी अन्दर रहें, माने निर्विचार किसी से भी बात करें, किसी से भी कुछ कहना हो तो पहले निर्विचार हो जाएं। निर्विचार होते ही आप उनके अन्दर उतर जाते हैं। फौरन उनका भी रंग बदल जाएगा और आपका तो बदला हुआ है ही। गर आप भी बाहर से वैसे आ जाएं तो हो सकता है आपको वो पनपा दे। 

अभी आप अन्दर बाहर कर सकते हैं क्योंकि वजह यह है कि अभी अभी कहीं अन्दर आप पहुँचे हैं। जैसे कि आप traffic में से गुज़र कर आ रहे हैं और आपको पहाड़ी पर बिठा दिया है, लेकिन आपको traffic की आदत हो गई है तो आपका ख्याल बनता है अरे मैं तो traffic में हूँ। फिर आप देखिए कि मैं कहाँ खड़ा हूँ, पता हो जाएगा कि आप कहाँ खड़े हैं। यही Self Realization है। पहली जो चीज़ है कि संसार का सारा सौन्दर्य आपमें तादातम्य है।

 आप जानिए, यह नई चीज है। पर बड़ी अद्भुत, अविश्वसनीय, कोई विश्वास ही नहीं करता है पर है बात, ऐसा ही कुछ है। आपको खुद ही लगने लगा कि आप साक्षी हो गये। घर में कोई बीमार पड़ जाए, अब सारा घर दौड़ेगा, आफत करेगा। कोई झूठ, कोई सच, कुछ नहीं, कुछ करने की ज़रूरत नहीं। आप अपने को देखिए, आपको बराबर सूझेगा कि आपको क्या करना है। आपको जो मन में आए वो करिए आपके मन में आए सर पर हाथ रखिए, सर पर हाथ रखिए पैर पकड़ने का मन है, पैर पकड़िए। जो भी आपके मन में आ रहा है सत्य ही आ रहा है, उसको आप करें। 

दूसरी चीज़ है सत्य की आप सत्य बोलें या झूठ बोलें। झूट क्या सत्य क्या बहुत सा सत्य जो होता है, बनाया हुआ सत्य है। मनुष्य ने बानया हुआ सत्य कोई सत्य नहीं है। बहुत बार बहुत सा जो झूट दिखाई देता है वो महान सत्य होता है। इसलिए उसका निर्णय आप मत लीजिए। आप सिर्फ़ बोलिए। आप अपनी निर्विचारिता पे बोलें। आप अपनी स्तिथी पर बोलें। लोगों से डंके की चोट पर कहना पड़ेगा की हाँ ये चीज़ है। यही सत्य है यही होना है। इसमें डरने की कोई बात नहीं। देखने के लिए शायद वो लोगों को झूट लगे।

 लोग आप पर हंस भी सकते हैं। हम पूना में गए थे वहाँ तो कुछ ऐसे महामूर्ख लोग थे उन्होने पेपर में तक निकाला। ये लोग जो हाथ से ऐसे ऐसे माताजी कर रही थीं तो वो सबको mesmerize।। तो उनको एक साहब ने सवाल पूछा वहाँ पर कि उनको क्या ज़रूरत पड़ी mesmerize करने की। और उनको कोई धन्दा नहीं? कहना हम तो mesmerize नही हो सकते कहने लगे आप हो भी नही सकते। उनके तरह का mesmerize होना कठिन है। 

इसलिए तरह तरह के लोग हैं दुनिया में जिनको समझ नही है। क्योंकि आप के अंदर ये चैतन्य अगया है, आपके अंदर से बह रहा है, आपंने इसे देखा हुआ है, उसकी पुष्टि की आपको ज़रूरत नहीं। लेकिन आपने तेजस्विता नही पाई। यही आपमें और बड़े बड़े साधु संतोंमें यही अंतर है। आपने वो तेजस्विता अभी पाई नही जो प्रखर होती है। जो अपने सत्या पे अटूट खड़ी रहती है और जो डरती नहीं दुनिया से कहने के लिए की यही सत्य है। बाकी सब असत्य और मिथ्या है।

वो क्राइस्ट जैसे आदमी के अंदर, वो कृष्ण के अंदर और आज भी बहुत बड़े बड़े संत साधुओ के अंदर ये चीज़ पाई जाती है। वो आप आदि शंकराचार्या निकाल देता है। आप उनकी पुष्टि के लिए आप उनकी किताबें पड़ें। अब नये सिरे से आप पढ़िए। आप गीता पढ़े नए सिरे से आप बाइबल पढ़ें, उसमें आप देखिएगा कि हरेक बात की पुष्टि देने वाली चीजें उसमें हैं। 

लेकिन आप स्वयं पुष्ट है आपको कोई जरूरत नहीं कि कोई आपको support करता रहे, आपको सहारा दे। आप स्वयं अपने सहारे पर खड़े होना जैसे हो शुरू कर देंगे एक दम प्रकाशवान हो जाएंगे। इसमें कोई शर्माने की बात नहीं, इसमें कुछ घबराने की बात नहीं। हमारे यहाँ ऐसे लोग देखे जाते हैं जो एकमेव घर के अन्दर एक आदमी होता है वो फिर किसी से बात कहता नहीं, अन्दर छिपा के रखता है।

 बाइबल में कहा जाता है कि दिया नीचे नहीं रखा जाता। टेबल के नीचे नहीं दिया रखा जाता है, किसी ऊंचे स्थान पर दिया रखना चाहिए। गर आप वाकई दीपक हो गए हैं तो ऊंचे स्थान पर बैठकर के सबको प्रकाश दें, सब धर्मों का प्रकाश यही है। आप चाहे किसी भी धर्म में हों। आप उठा के देख लीजिए। आप सिक्खों के धर्म को मानते हैं आप उठाकर देख लीजिए, अगर ये कहीं पर भी ये बात न लिखी हो, गर झूठ बात कही है।

 आप किसी भी धर्म की किताब देख लीजिए। सब किताबों में आपकी पुष्टि के लिए बड़े-बड़े लोगों ने लिख रखा है। आप श्लोक पे श्लोक कह सकते हैं। आप कुरान की आयात की आयात कह सकते हैं। सब इसी चीज़ की गवाही देते हैं चाहे उसे यहाँ पर हम लोग, जिसे spiritual कहते हैं अंग्रेजी में, जिसको हम लोग आध्यात्मिक कहते हैं संस्कृत में, और जिसे वो लोग रूहानी कहते हैं। नाम बदल देने से जो सत्य है वो एक ही हैं और सबको ये मालूम है आप लोगों को कि सत्य क्या है।

 तो सत्य की भी कोई व्याख्या तो हो नहीं सकती। सागर की क्या व्याख्या है? लेकिन क्षण-क्षण में आप देखेंगे कि सत्य ये है मिथ्या ये है, सत्य ये है, मिथ्या ये है। आपकी vibration से आप जानेंगे। वाइब्रेशन से  इसे, आप तोल पाइएगा इससे आप समझ पाइएगा, जहाँ vibration आ रहे हैं वही पर सत्य है। आप पत्थर में भी, मिट्टी में भी हरेक में आप vibration देखेंगे।

 कोई गर आदमी है उसके चार-पाँच चक्र पकड़े हैं उससे उलझने की कोई जरूरत नहीं है। कठिन आदमी है, आपके बस का नहीं। आपको फौरन आपके हाथ पर गर्म-गर्म आ जाएगा। भागिए वहाँ से कुछ दिनों के लिए, बाद में वो भागेगा। वो खुद ही जलेगा। जिससे भी आपको गर्म-गर्म vibrations आए। छोड़ दीजिए। ये अपनी बात नहीं, ये रूहानी बात नहीं है। यहाँ पर कोई नहीं, अंधेरा है। 

रोशनी और अंधेरे का युद्ध पूरी समय चल रहा है। आपके दीप इतने सारे जल गए, सारा ही वातावरण बदल सकता है गर कुछ दीप और जल जाएं। इसलिए अपने दीप को जलाकर रखना चाहिए, अपनी vibrations को हमेशा तोलते रहना चाहिए। हमारे फोटो से vibrations हर समय आती है, उसके कभी रुकते नहीं। आप हमारे फोटो की ओर अपना हाथ किया करिए। 

गर आपके किसी भी उंगली पर देखा कि जिस जगह भी आपको vibrations जलते हुए नजर आ रहे हैं उन सब चीज़ों का अर्थ होता है। जैसे आप जानते हैं ये मणिपुर चक्र है और ये आपका विशुद्धि चक्र है और ये आपका आज्ञा चक्र है, ये आपका स्वाधिष्ठान चक्र है और ये आपका मूलाधार चक्र है, और बीचों बीच यहाँ पर आपके हाथ के बीचों-बीच सहस्रार है, पूरा गोल।

 किसी के भी, किसी ने आकर आपको बता दिया कि फलाने की तबियत खराब है, हम चाहते हैं कि आप उसके लिए प्रार्थना करें। कुछ करने की जरूरत नहीं। जो चक्र उनका खराब हो उसको आप यूं करके धो लीजिए उनको बहुत फायदा हो जाएगा। यहीं बैठे आपकी उंगलियों के इशारे पर सब चीज़ चलने वाली है। आपके attention के दिव्यत्व है, मैंने आज सवेरे बताया था, इसका आप पड़ताला लीजिए। पाँव में पूरे चक्र बने हैं। 

मनुष्य बहुत बड़ी चीज है, बहुत बड़ी चीज़ है। ऐसे हजारों उसके सामने यंत्र फेंक दिए जाएं, मनुष्य का यंत्र परमात्मा ने इतना सुन्दर बनाया है। बस उसकी बिजली चमकाने की बात है। वो भी चमक गई, अब क्या रह गया? रह यही गया कि बहुत कुछ है लेकिन अब दीप लेकर सब जुट जाना होगा और देखना होगा क्या है। क्योंकि बहुत कुछ है।

 थोड़ा सा एक दिया जला दिया और उसको लेकर बैठे हैं। बैठने की बात नहीं और आप देखिएगा कहाँ तो दूसरों के मन में, दूसरों के अंतर में, दूसरों के अंतर में जब आप देखिएगा तब आप जानिएगा कि क्या है। इसलिए यहाँ पर एक organisation की भी बात सोची गई है। हमारे एक अनन्त जीवन नाम की संस्था है, बम्बई में चली है। इसमें हम कोई Membership नहीं रखते हैं, जो realized होगा वो member है, realized लोग भी थोड़े से वो ढलक जाते हैं। फिर से realized होते हैं, कुछ आते हैं ऊपर से फिर पड़क जाते हैं। ऐसे आपमें भी आधे अधूरे कुछ होंगे, कुछ पूरे होंगे, बिल्कुल चलेंगे।

 पीछे हमने बोस साहब से request किया था, आप उन्हीं को chairman बना लीजिए जैसा भी करना चाहें कर लीजिए, उनके पास हम ठहरेंगे और आपका घर भी, आपका पता यहाँ भी पास ही है। वो क्या है? 10 नंबर, किंग जार्ज एवेन्यू, ये आपका घर है, और फोन नंबर भी इनसे ले लीजिए। इनसके पास हम फोटो वगैरा सब भेज देंगे, लेकिन आप बहुत बड़े काम में व्यस्त रहते हैं, इसलिए समय पर आप लोग आ जाइएगा और आपको शुक्रवार का दिवस बहुत अच्छा है। उस दिन आप लोग अपना meditation का कार्यक्रम रखें। हम वहीं से चित्त से आपको देखेंगे। 

परमात्मा के बहुत से प्रतीक रूप आपने सुने होंगे जैसे गणेश जी हैं, उनके मूषक वाहन हैं और सबके वाहन आपने सुने हैं। अब आपका वाहन सिर्फ आपका चित्त है, आप चित्तारूढ़ हैं, चित्त पे बैठे हैं। क्या कमाल है आपकी? आप चित्त पर अपने बैठे हुए हैं, जहाँ चित्त जाए वहीं काम बन जाए। और इसकी इतनी कमाल है, यहाँ बैठे-बैठे आप अपनी सत्ता निकालिए। यूँ करके ठीक कीजिए सब। जिसको भी देखा है कि वो सता रहा है, परेशान कर रहा है, किसी भी आदमी जिसके लिए भी आप सोचते हैं अपने सहस्रार पर ला करके उसको ठीक कीजिए। बीच में ब्रह्मन्ध्र है, आपको आश्चर्य होगा कि उनकी काफी हालत ठीक हो जाएगी। 

बहुत दुष्ट, महादुष्ट जो अभी इन्होंने गाया था कि दुःशासन बैठे हैं और सन्त बैठे हैं, हैं, बिल्कुल बैठे हैं। सबके ऊपर में हम लोग बैठे-बैठे सवेरे यही धन्धा करते रहते हैं कि उनको सुबुद्धि दो। इस तरह से ये प्यार का चक्कर है, बैठे-बैठे यहाँ से प्यार का चक्कर घुमाने से उधर आदमी ठीक हो जाता है क्योंकि नफरत से कितनी ज्यादा शक्तिशाली है प्यार की बात। बहुत शक्तिशाली है, समुद्र की जैसे थाह होती है। समुद्र कितना बढ़ जाए उसकी थाह बढ़ती ही रहती है। ऐसी है! कितनी भी hatred बढ़ जाए संसार की और प्यार जो है उससे भी ज्यादा बढ़ते रहेगा और नहीं बढ़ेगा तो संसार नष्ट हो जाएगा। 

आप अपनी जिम्मेदारी को अभी समझ नहीं पाए कि एक नया ज़माना बनाने की बात है। नए लोग, नया Dimension, एक नया आयाम जिसको आप समझ सकते हैं, सिर्फ vibrations से आप समझ सकते हैं। कोई और नहीं समझ सकता। अभी जो सिद्धेश्वरी बाई गा रहीं थी उनकी हालत खराब थी, कल इतनी खराब थी कि घबरा घबरा कर मेरे पास पहुँची। Operation करना है और ये करना है, वो करना है, ऐसा है, वैसा है। हमने हाथ रखा और आज वो गाने लग गई। 

आप लोग सब ये काम कर सकते हैं। कोई ऐसा मैंने छोड़ा नहीं काम जो आप कर नहीं सकते। अब बस ये कि हमारे बीच में बड़ा परदा है, इस परदे को चाक करना आ जाए, काम बन जाएगा। इस पर्दे का ही चाक होना मुश्किल हो जाता है। बहरहाल आप पार हो गए तो पहले अपना तो परदा चाक हो गया। अब हमारा और आपका बीच का अन्तर जितने जल्दी छूट जाए उतना ही काम बड़ा जबरदस्त है। 

इस चीज़ में अन्त में जो सबसे बड़ी बात है वो है प्रेम। हमें प्रेम के साथ तादात्म्य करना है। जब हम किसी के साथ बात करते हैं तो हम पहले ही सोच लेते हैं कि इसे प्रेम ही करें। ये सारा ही प्रेम इसमें आप कुछ गड़बड़ कर ही नहीं सकते। जैसे लोग हमसे कहते हैं कि आप हरेक को देखो तो Realization दे रही है। अमेरिका में खासकर लोगों को बड़ी परेशानी है, कि लोग उसको बुरी चीज़ के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं। मैंने कहा क्या बुरा करेंगे? किसी की जागृति करेंगे, किसी को पार ही करेंगे या किसी को ठीक करेंगे। प्यार से आप किसी का बुरा कर ही नहीं सकते। 

आप ही सोचिए जिस आदमी को आप प्यार करते हैं आप उसका बुरा कभी कर सकते हैं? प्यार की पहचान ही ये है कि वो कभी किसी का अहित सोच ही नहीं सकता। जो भी होगा वो हितकारी होगा, वो जाएगा कहाँ? हित ही होगा। बस अपनी इज्जत खुद ही करनी होगी। बस अगर अपनी जैसे जैसे इज्जत करनी शुरू कर दी वैसे-वैसे आपकी स्थापना अन्दर हो गई। क्योंकि ये मन्दिर है और इस मन्दिर की जितनी भी आपने इज्जत करी हुई है उतना ही उसके अन्दर परमात्मा का प्रकाश है। 

आप प्रेम से तादात्म्य पा सकते हैं। एकदम आप प्रेम से एकाकार हो सकते हैं, बिल्कुल एक स्वरूप हो सकते हैं। आपके अन्दर से शुद्ध प्रेम ही बह सकता है जो स्वयं साक्षात् चैतन्य है, वही सत्य भी है, वही सौन्दर्य भी । 

इस सबके साथ एकाकार आप एकदम हो सकते हैं। निर्विचारिता में आप बैठें। लेकिन निर्विचारिता तभी आती है जबकि आप इसको यहाँ से तो निकल चुके हैं, अब यहाँ पर आ गए हैं। इस दशा में आप खड़े हैं कि आप निर्विचार हैं। आपका Brain जो था वो सोचता था, अब Brain से आपको निकालकर के सहस्रार तोड़कर के आपको यहाँ ले आए हैं। अब यहाँ आप जब पहुँच जाइए, इस जगह पर आप हाथ रखकर देख सकते हैं, जो Realized देखिए। 

आपको लगेगा इस जगह अर्धबिन्दु में, जो लोग Realized हैं उनको महसूस होगा, जो लोग Realized नहीं हैं उनको महसूस नहीं होगा। लग रहा है? धीरे-धीरे ऊपर नीचे करें, ऊपर नीचे करें जरा नीचे, इससे ऊपर में अर्धबिन्दु की दशा है, उससे ऊपर में बिन्दु हैं, उसके ऊपर में वलय है। 

सब कुछ जो भी सृष्टि करने में बनाया गया था वो सब कुछ मनुष्य के अन्दर में बना दिया। पहले वलय, उसके बाद बिन्दु, इसके बाद अर्धबिन्दु उसके बाद में ये। फिर सारी कुण्डलिनी की रचना पूरी कुण्डलिनी को बना दिया और वो जो आदि कुण्डलिनी है वो ही आपके अन्दर में लपक करके आ गई और आपकी कुण्डलिनी बन गई। आदि कुण्डलिनी बनाने के लिए पहले कुछ लोगों को बिठाया गया था, शुरुआत करने के लिए किसी को बिठाना पड़ता है। 

पहले उन्होंने गणेश जी को बिठाया। आदिशक्ति ने सिर्फ एक चक्र के साथ श्री गणेश जी को बिठाया, एक गणेश, एक ही चक्र के साथ  गणेश जी । गणेश जी क्या हैं? सिर्फ पावित्र्य सिर्फ पावित्र्य । आप इसी को सोचिए हमारे बदन के ऊपर कुछ दिनों तक यदि आप नहाए धोए नहीं और मैल है। आप सोच लीजिए यहां पर भी vibrations है और यहाँ भी vibrations हैं, और उसको निकालकर के हम इकट्ठा कर दें तो जो जड़ तत्व जो है उसके अन्दर तो vibrations ही vibrations होंगे. याने सिर्फ़ पवित्रता के बिल्कुल पुंज हैं. 

क्योंकि he is an eternal child of the mother अनंत के बालक हैं. उनके जैसा बालक संसार में नही हो सकता. सिर्फ़ पावित्र ही पावित्र. उनका सारा प्यार ही पवित्रता है. और उस पावित्र की वजह से आपके मूलाधार चक्र पे, चक्र पे, मूलाधार पे तो मा बैठी हैं, उनको बिठाया है. इसका मतलब ये है की sex के मामले में आपको एक छोटे बच्चे जैसे होना है. माने [अस्पष्ट] इसका अर्थ ये है की सेक्स के मायने मैं जब आप धर्म में उतरते हैं उस वकत में सेक्स के प्रति विचार जैसे एक बालक के अबोध होते हैं वैसे.

गणेश तक पहुँचना बहुत कठिन बात है, बहुत कठिन बात है क्योंकि बड़ी पवित्र आत्मा हैं। और उनका प्रकाश चारों तरफ फैल रहा है। उसके अन्दर जाने के लिए हमें बहुत ही स्वच्छ होना पड़ता है तभी हम उसके अन्दर उतरते हैं। नहीं तो वो और उनकी माँ के सिवाय वहाँ कोई बैठता नहीं।

उसके बाद दूसरा चक्र लेकर के वो जब आए तब उन्होंने ब्रह्मदेव की रचना करी, किन्तु वो उन्होंने करी उल्टे ढंग से पहले उन्होंने श्री विष्णु को पैदा किया। उसकी वजह ये कि पहले creation करने से पहले ही एक पालनकर्त्ता पहले ही बना दिया। इसलिए नाभि चक्र से हमें भी अपनी माँ से ही पहले पैदा किया जाता है। और फिर इस पिता स्वरूप बाप को बनाने के बाद क्योंकि पहले बाप बना दिया उन्होंने और उसके बाद उनकी नाभि से श्री ब्रह्मदेव की रचना हुई। 

बिल्कुल हुआ, ऐसे ही हुआ जैसे खूँटे बिठाए जाते हैं, इसी तरह से हुआ। इसमें झूठ कुछ नहीं, आप खुद देख सकते हैं बात अब भवसागर बन गया भवसागर की तैयारी हो गयी, सारा void तैयार हो गया, Vagus Nerve और Aortic Plexus चारों तरफ भवसागर के। उसके अन्दर से बहने वाला प्यार, creation उसी में फँस गई। प्यार चारों तरफ से लिपटा हुआ है। All pervading power है प्यार और उसके बीच में creation है। अब इस भवसागर को लाँघने की बहुत जरूरत है। 

लेकिन सबसे पहले दिन जो मैंने आपसे बताया था, जो ईश्वर और उनकी शक्ति, जो ईश्वर है वो हमारे हृदय में आत्मास्वरूप बैठे हैं। इसलिए जैसे ही बच्चा जन्मता है, जन्मता नहीं जब माँ के उदर में ही होता है तभी साक्षीस्वरूप ईश्वर  उनके हृदय में आ जाते हैं और एक flame, जैसे अंगूठा है एक flame, के जैसे दिखाई देते हैं। वो left hand side हृदय में हैं। बहुत लोग confusion में डाल देते हैं कि हृदय चक्र में हैं। हृदय चक्र में नहीं वो हृदय में हैं। आत्मा स्वरूप एक flame जैसे रहते हैं।

 उसकी वजह है, कि वोहृदय चक्र में क्यों नहीं, क्योंकि वह कुण्डलिनी के जाने का मार्ग है, हृदय चक्र, जो बीचों बीच है और ये एक तरफ left में रहते हैं।

राम शब्द का अर्थ इसीलिए आता है। रा माने energy और म माने, महेश, महेश  माने शिव, जो ईश्वर अपने हृदय में बैठे हैं। रा जब म से मिल जाता है तभी राम हो जाता है। इसे भवसागर में फँसे लोगों को बाहर निकालने के लिए कोई न कोई व्यवस्था करनी पड़ी। इसलिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये बड़ी अजीब सी हस्ती बनाई है। इन तीनों की धर्म पर स्थापना कर दी गई, दत्तात्रेय ने और यही आदि गुरु और हमेशा गुरुरूप रहे हैं। इन्होंने अनेक बार संसार में जन्म लिया। 

उनका जन्म राजा जनक के रूप में हुआ जो आदिशक्ति के पिता स्वरूप थे। उसके बाद उनका जन्म ईरान में हुआ था, जोरास्टर के रूप में, मच्छिंदरनाथ भी वहीं, मोहम्मद साहब भी वही, नानक साहब भी वहीं। किसका झगड़ा किसके साथ लगा हुआ है, सोचिए। कैसे अन्धकार में आप हैं? मोहम्मद साहब की जो लड़की थी फातिमा, वो वही थी जो कि जनक की लड़की थी। किससे झगड़ा कर रहे हो कुछ सोचो तो और नानक की जो नानकी थी वो वही थी जो जानकी है। उसके बाद हमारे शिरडी के साई बाबा, वो भी आदि गुरु थे, सबके ही गुरु हैं, मेरे भी यही गुरु हैं।

 आदि गुरु हैं इन्होंने ही मुझे सब धन्धा सिखाया, जन्म जन्मांतर सिखाते रहे। अन्त में मुझ ही को आकर ये काम करना पड़ा। ये उन्होंने भी नहीं किया और इस जन्म में मुझी को वो गुरु स्थान में बिठा रहे हैं कि मैं गुरु बनूं। अजीब सी हालत है! एक जमाना ऐसा था कि किसी स्त्री को कोई गुरु मानने को तैयार नहीं था। कलियुग में माँ के सिवाय काम नहीं है, पुरुषों के बूते का काम नहीं है। प्रखरता से काम चलने वाला नहीं है, माँ का प्यार ही । क्योंकि इतना ज्यादा पहले ही से दबाव और tension संसार में आ गया कि आदमी टूट जाएगा जिस दिन और प्रखरता में उतरेगा, और टूट ही जाएगा। 

इसलिए प्यार के बगैर कोई इलाज नहीं था। इसलिए हमी को आज गुरु पद पर आना पड़ा। सब स्वीकार्य है लेकिन हम तो जानते ही नहीं थे गुरु कैसा होता है। गुरु में तो distance रह जाता है वो माँ में कोई distance नहीं रहता है। बच्चे माँ की खोपड़ी पर बैठे रहते हैं। इसलिए आप लोग भी देखिएगा हमसे आप बहुत liberty लीजिए और मज़ा आता है। पूरे freedom से आप हमारे साथ रहिए न आपको हमारे साथ कोई भय लगेगा न आपको कोई घबराहट होगी। कोई परेशानी नहीं। कोई भी बात हो बेधड़क आकर आप हमसे बताइगा, कोई सा भी problem हो आप हमसे कहिएगा। आप हमसे लड़िएगा, झगड़िएगा सब होगा, जैसे अपनी माँ के साथ वही होती है जिससे हम बिल्कुल freely बैठे हैं।

 पूरे freedom की जरूरत थी इसी वजह से धर्म की चर्चा खुलेआम करने की जरूरत थी। गुप्त कुछ भी नहीं है, कुछ भी गुप्त नहीं है, एक दशा में जाकर सब उघाड़ कर ही जाना है। पूरा उघाड़ना पूरा तत्व उघाड़कर कहने की जो बात है। लेकिन हो गया। हरेक बात हर मौके पर नहीं कही जाती। पूरी ही बात अब हम आप लोगों से कह रहे हैं ये हम Realized लोगों से कह रहे हैं जो non-realized हैं उनके लिए शंका ही है। जो realized लोग हैं उनके लिए कुछ इसका मतलब है पर इससे भी ऊँची दशा पर पहुँचने पर आप साक्षात् हो जाते हैं। 

उसके बाद भवसागर को पार करने के लिए जो गुरु की स्थापना हुई उस पर भी बहुत कुछ काम किया गया कि गुरु किसी तरह से इस भवसागर से मनुष्य को पार कर देगा। कुछ काम बने कुछ नहीं बने, बहुत से लोग हो गए। वो ही आज मदद कर रहे हैं वो चिरंजीव हैं। जैसे कि जैन धर्म में बहुत से चिरंजीव हैं, जैन धर्म के संस्थापक महावीर और बुद्ध की माँ एक थी और आदिशक्ति के ही पेट से दोनों पैदा हुए। इसलिए उनका पहला ही रिश्ता आप समझ लीजिए कि वो कहाँ पैदा हुए और फिर कितने बार फिर पैदा हुए। 

लेकिन सब के लिए ही experimental था, सबने ही experiment किए, कभी इस दशा में कभी उस दशा में, कभी इस तरफ ले जाकर कि किसी तरह से मनुष्य भवसागर से पार हो जाए। थोड़े बहुत हो जाते थे। चिरंजीव हो जाते थे लेकिन amass जिसे कहना चाहिए इतने लोगों को पार करना कलियुग में ही हो सकता है। इसके बाद रामचन्द्र जी संसार में आए, वो भी इसीलिए वो बिल्कुल ही मानव हो गए थे, एकदम मानव हो गए थे, उनको तो भुला दिया गया था कि तुम अवतार हो। वो एक दम ही अपने को भुलाकर के आप इस माया में पड़कर एक दम ही अपने को भुला करके आए और मानव ही बनकर इस संसार में वो जिए हैं इस भवसागर से आपको निकालने के लिए पूर्णतया वो मानव थे। यहाँ तक बाहरी features में आप देखिए तो वो पूर्णतया मानव थे कि मनुष्य उनको जाने।

 उस वक्त भी दो चार लोग थे वो पार हो गए इसमें कोई शक नहीं लेकिन बहुत ज्यादा नहीं हो पाए। उसके बाद छ: सात हजार साल पहले श्री कृष्ण आए। शिवजी तो आप जानते हैं कि साथ-साथ हैं ही। लेकिन श्रीकृष्ण के आने से पहले आदिकाल से ही जब भवसागर से लोग पार होना चाहते थे तब उन भक्तों पे बड़ी आफत आती थी, वो जब भी meditation में बैठते थे उनको सताया जाता था। तब आदिशक्ति अपने सम्पूर्ण रूप में प्रकट हुई और उन्होंने 108 बार अवतार लिया। 

इसको आप जानते ही होंगे। देवी महात्मय आप पढ़ें, मेरी बात आप समझ जायेंगे। देवी रूप वो संसार में आई और उन्होंने आकर के लोगों को बचाना शुरू किया। लेकिन तब वो सिर्फ देवी स्वरूप आई थीं, उनपे कोई माया बीच में नहीं थी। इस वजह से मनुष्य तारण नहीं पा सकता, उनकी सिर्फ Protection ही जिसे कहना चाहिए बचाव ही हो सकता है लेकिन तारण नहीं हो सकता। 

महिषासुर को मारा, शुम्भ निशुम्भ को मारा, बहुतों को मारा। जो राक्षस सताते थे, जो Negative लोग थे, जो सताते थे भक्तों को उनको सबको मारा। लेकिन उनसे उनका तारण नहीं हुआ क्योंकि वो पूर्णतया Human नहीं थीं। जितने चक्र थे,तो पाँच ही, चार चक्र पर हृदय चक्र आता है, इसलिए उनके सामने चार ही पड़ते थे। इसलिए राधा का जन्म हुआ। सीताजी के बाद राधा का जन्म हुआ। जो बहुत ही Human, विशुद्धि चक्र पर पाँचवें चक्र पर उनका स्थान है। बहुत ही Human और प्रेम का संगीत उन्होंने गाया। कहते हैं कि जब कंस को मारा था श्री कृष्ण ने अपना मामा था, तब भी राधा जी को ही बुला कर मारा था।

 राधा ‘रा’ माने फिर वही energy ‘धा ‘माने धारने वाली राधा ही की धारा हो जाती है आपके अन्दर जो शैवाइट लोग हैं वो शिवजी को मानते हैं, वो भी एक हैं और कृष्ण भी एक हैं। कृष्ण और शिव में कोई अन्तर नहीं सिवाय इसके कि शिव जो हैं ईश्वर स्थिति में अपने हृदय में स्थान बनाए हैं, और श्री कृष्ण विशुद्धि चक्र में उनको 16 कला कहते हैं वैसे अपने अन्दर 16 sub plexuses होते हैं, आश्चर्य की बात है विशुद्धि चक्र जिसकी कि 16 कलाएं हैं वहाँ पर श्रीकृष्ण का वास है। और उनकी शक्ति राधा थी जो बाद में दो में बंट गई जो रुकमणी और राधा बनकर के एक वृंदावन में और एक द्वारिका मेंI बहुत ही Human I

 उसके बाद श्री कृष्ण का एक ही पुत्र था जो प्रणव स्वरूप था। जरा सोचिए साक्षात् ओम् स्वरूप वो था। उसने यहाँ अवतार लिया। उसका नाम जीसस क्राइस्ट है और उसकी ‘मेरी’ माँ थी आज्ञा चक्र पर वो आए। आज्ञा चक्र पर आते ही वहाँ पर ego और super ego दोनों का सामना होता है। आप देखिए कि आपका आज्ञा चक्र जो है Pineal Body (शंकु रूप) और Pituitary Body (पीयुष ग्रंथी) को control करता है। बिल्कुल Scientific बात है। इसलिए आपके आज्ञा चक्र पर भूत सिर्फ उन्होंने निकाले क्योंकि Super ego में भूत बैठते हैं और Ego में भी भूत बैठ सकते हैं क्योंकि ईडा और पिंगला दोनों वहीं [अस्पष्ट] खत्म होते हैं। उसी ने इस पर हाथ रखा। पहले वैसे तो नानक जी के जमाने में भी हुआ था। हर समय ये भूत वाले आते रहते थे। Enticement करते रहते थे। ये होता था।

 लेकिन उनकी तो गर्दन ही काट दी। कृष्ण में तो संहार शक्ति है कमाल की। तो आज्ञा चक्र पर ईसा मसीह का नाम है। और महालक्ष्मी जिनकी हम इतनी स्तुति गाते हैं, उनको किसी ने कहीं वर्णित नहीं किया कि वहाँ कहाँ हैं, वो स्वयं ‘मेरी’ हैं। ये जब भी अपने बच्चे के साथ आती और अपने पति के साथ में आती हैं तब शांत होती हैं। लेकिन जब अकेली आती हैं तब वो [अस्पष्ट]  हैं। और सब से यहाँ का स्थान साक्षात् भगवती का है। सहस्रार का स्थान साक्षात् भगवती का है।

 ये स्वयं इसे तोड़कर इसमें सातों चक्र पूरे होते हैं इसीलिए माया भी सात पर्दे की है ।आदमी पहचान नही सकता और इसकी पहचान मुश्किल बहुत मुश्किल है। पूरा का पूरा उसका Human बिल्कुल Human चक्र पूरा हो जाता है। ‘सातों चक्र का। आपको क्या करना चाहिए किस तरह से अपनी साधना पूरी करनी चाहिए ये तो मैंने थोड़े में बता दिया। लेकिन Methodically इसे बताया जाए तो इस तरह से समझिए इसका कोई समय तो होता नहीं, हर समय आप निर्विचारिता में रहिए जैसे इस वक्त आप निर्विचार बैठे हैं। जब chance मिले निर्विचारिता में जाइए। 

अब इसके बाद में thoughtless awareness के बाद में doubt- less awareness आती है। अब आपको शंकाएं खड़ी होंगी। इसके बाद second stage में आदमी doubt- less awareness में आता है। अब शंकाएं होंगी। ये ठीक है या नहीं, माताजी ने ये कहा ये बात ठीक नहीं है। ऐसा कैसे हो सकता है? ये हुआ या नहीं, हम पार हुए कि नहीं? इस तरह की शंकाएं। ये शंका का निर्मूलन ऐसा होगा जब आप अपने स्थान पर आसन्न होंगे। माने कि हमने आपको तो सिंहासन दे दिया लेकिन आपको शंका है कि ये सिंहासन है या नहीं, हम बैठे हैं ये ठीक है या नहीं? 

तो आप देख लीजिए आप अपने हाथ से देख लीजिए कि कितनी अद्वितीय चीज़ आपके हाथ से जा रही है और लोगों को जब आप इसी हाथ से छूकर के ठीक करेंगे, आपको जब इनके अनुभव धीरे-धीरे आने लग जाएंगे तो आपके Doubt तब धीरे-धीरे कम होने लग जाएंगे। माने ये कि हमने आपकी नाव बना दी तैयार कर दी, अब तैयार होने के बाद इसको, नाव को, पानी में छोड़ना चाहिए लहरों से लड़ना चाहिए, तब पता होगा कि ये नाव है या नहीं हो सकता है लकड़ी ही हो। लेकिन लकड़ी की नाव बन गई कि नहीं, बन गई, ये पानी में गिरे बगैर नहीं पता चलेगा।

 इसलिए इसको, नाव को छोड़ देना चाहिए और लहरों पर छोड़ना चाहिए और देखना चाहिए। लहरों के थपेड़े जब बैठेंगे और तो भी जब नाव नहीं डूबेगी तो पता हो जाएगा नहीं, हाँ हो गया है, मामला कुछ। अभी तो doubts ही आएंगे थोड़े से, क्योंकि मनुष्य अपने को बहुत ऊँचा समझता है। 

एक साहब थे हमारे यहाँ तो वो गए वहाँ एक स्वामी जी बैठे हुए हैं, हजारों आदमी वहाँ आते हैं। खाते हैं पीते हैं। वो झण्डा लगाकर वहाँ बैठे हैं। अब ये महाशय हमारे साथ अमेरिका गए हुए थे। ऐसे इशारे पर वो कुछ करते थे। आप भी कर सकते हैं, यूं करिए, किसी-किसी की कुण्डलिनी रास्ते रास्ते यूं ही उठा सकते हैं, यूं करिए। यूं इशारे पर यहाँ बैठे बैठे ही किसी की कुण्डलिनी चाहे उठा करके आप मज़ा देखिए क्या होता है। आप किसी की भी आप उंगलियों पर आपके कुण्डलिनी घूमेगी। आपके क्या आपके हाथ से जो बह रहा है उसी के सहारे होगा।

 वो ऐसे तीन-तीन सौ लोगों की अमेरिकन लोगों की कुण्डलिनी उठाते थे वो साधू जी थे वहाँ बहुत से लोग गए। तो ये भी चले गए तो जब गए तो हमें तो सब पता हो ही जाता है कहाँ कौन भटक रहे हैं। जब लौट के आए तो हमने कहा आपने उनके पाँव क्यों छुए? कहने लगे सब छू रहे थे हम ने भी छुए। जो अपने से बड़ा हो उसके पाँव छूने चाहिए। आपने क्यों किया? कहने लगे सब छू रहे थे तो हमने भी छू लिए। हमने कहा उनका हाल क्या था? कुण्डलिनी का क्या हाल है? वो पार हो गए?

 कहने लगे वो पार तो नहीं हैं और कुण्डलिनी, वो तो ओंधी बैठी है। मैंने कहा तुम्हारे उंगली के इशारे पर हजारों ऐसे उठते हैं और तुम्हें ख्याल नहीं आया कि इसके मैं क्यों पाँव छुऊं? कुण्डलिनी ओंधी बैठी हुई है, अरे पार तो होता कम से कम उसके पाँव छूने चाहिए। पाँव उसी के छूने चाहिए जो अपने से ऊँचा हो। आखिर किस चीज़ के लिए? तुम तो सब जानते हो उसका शास्त्र, जानते हो, सब कुछ जानते हो। इतनी तेजस्विता तुममें आ गई तुमने उसके पाँव कैसे छुए?

 Egolessness ये ही आता है। आप लोग इतने साधारण तरीके से रहिए कि कोई विश्वास नहीं कर सकता कि आप पार हैं। आदमी Egoless हो जाता है। एकदम Egoless । उसको लगता ही रहता है कि ये कैसे हो सकता है। कुछ भी करे उसको लगता है। ऐसे कैसे हो सकता है। लेकिन हो गया है, आपके अन्दर ये बात हुई, अगर हो गई तो ये सोचना चाहिए कि गर हुई है तो हमारे लिए क्यों हुई।

 इस दिल्ली में हम कितने लोग रहते हैं। कितनी आबादी है आखिर हमीं क्यों विशेष रूप से पार हुए? कोई न कोई कारण होगा। पूर्व जन्म के जन्म जन्मांतर की आपकी खोज है जन्म जन्मांतर का आपका हक है। आप लोग साधु, बड़े-बड़े साधु लोग हैं, आपको क्या पता? आप गर साधु नहीं होते तो क्या आपको हम पार करा सकते थे। हम क्या करते गर पत्थर को हम पार कराते। हजारों लोग आते हैं, हम, आपने देखा नहीं पार करा पाते। आप ही लोग कुछ लोग पार हो गए, कोई न कोई बात तो है ही। लेकिन ये आपके अन्दर आएगी नहीं बात, बैठेगी नहीं, क्योंकि आप अपने को सोचिएगा कि ऐसे कैसे हो सकते है? Egoless हैं इस वजह से ये Problem आ जाता है। ये सहजयोग की Egolessness है। बहुत ही साधारण तरीके से न तो आप कपड़ों में कोई बदल करने वाले हैं। न तो किसी चीज़ में लेकिन अन्दर से आप देखते जाइएगा कि शान्ति आ गयी, अब क्यों उलझ रहे हो? 

बातचीत में बोलने में हरेक चीज़ से आप Realized आदमी होंगे कि हाँ यह Realized है। और फिर माहिर, होशयार हो जाएंगे क्योंकि आप जानेंगे कि इनका ये ऐसे ही बोलेंगे, इनका ये घूम रहा है, उनका ये घूम रहा है। वो उधर बक बक कर रहे हैं ये इधर ऐसे-ऐसे कर रहे हैं, चलो इनको ठण्डा करें। थोड़ी देर में देखा महाशय जी ठण्डे हो गए हैं। 

कोई लोग आते हैं हमसे झगड़ा वगड़ा करने, ये लोग पीछे से उनकी कुण्डलिनीयाँ घुमा घुमा कर उनको ठण्डा करते हैं, थोड़ी देर में चुपचाप बैठे। बहुत tricks करते हैं। एक साहब बहुत झगड़ा कर रहे थे। इतने उनका Time वो बता रहे थे आज एक किस्सा, एक साहब झगड़ा कर रहे थे उनका Time आ गया pill खाने का। तो अच्छा लाओ देखें तुम्हारी pill, हाथ में रखकर उसमें Vibrations दे दिया, खाओ। खाते साथ ध्यान में खट से चले गए। 

किसी ने ज्यादा परेशान किया तो पानी में ज़रा सा हाथ डालकर वाल करके पिला दीजिए पानी, काम खत्म। चैतन्य अन्दर में एकदम से पनप जाएंगे। लेकिन आप सभी अभी आप बच्चे हैं। अभी-अभी आप पैदा हुए हैं तो छोटा बच्चा बड़ी जल्दी बीमार होता है, बड़ी जल्दी आप पकड़ लेते हैं। अपने स्थान से आप बड़ी जल्दी गिर जाएंगे स्थान को पकड़े रहें, स्थान से हटें नहीं। डावांडोल आदमी को नहीं रहना है। अपने स्थान पर जमे रहें क्योंकि चीज़ ऐसी मिली हुई है कि आदमी डांवाडोल हो ही जाएगा। ये आपको मैं बता रही हूँ। 

इसीलिए संघ शक्ति होनी चाहिए। ये लोग हैं आपस में आकर के माताजी मेरा सिर पकड़ गया। निकाल दीजिए। आपस में अरे भई कमर में ही आज्ञा चक्र में कहीं जहाँ पर भी है वहाँ निकाल दो। आपस में ऐसे ही बातें करते रहते हैं। अब यही आपके सब भाई बहन हैं यही सब प्रेम की एक नई दुनिया है। ये आपके रिश्तेदार हैं इनको सबको आप जानिए। कोई तकलीफ होगी अचानक आप देखिएगा कि इनमें से कोई आदमी पहुँच जाएगा अचानक क्योंकि देवता आपके ऊपर मँडराते हैं। 

एकदम से कोई आदमी सोचे जरा देखूं उनका क्या हाल है? कहने लगे मुझे पता नहीं मैं कैसे चला आया? मैं आ रहा था रास्ते से, मैंने कहा ऊपर जाएं, चला आया। काम आपका बन गया। एक्सीडेंट आपके होने वाले नहीं, देवता आप पर मंडरा रहे हैं। आपमें से एक भी आदमी गर ऐसी जगह है जहाँ एक्सीडेंट हो रहा है तो सब बच जाएंगे, आपकी वजह से बहुत बहुत कुछ होगा। 

आप देखते रहें, रोज़ का अनुभव लिखते रहें, आपकी कुण्डलिनी की जागरणा, उसका घूमना फिरना देखते रहें। उसमें परेशान होने की कोई बात नहीं उठेगी, कभी यहाँ गुदगुदी करेगी, कभी यहाँ चढ़ेगी, कभी यहाँ आलौकित करेगी, कभी यहाँ आलौकित करेगी। उस सब चीज़ से आपकी जो चेतना है वो बँधी है, वो प्रकाशित होएगी और संसार में वो आन्दोलित होएगी। अभी यहाँ आप बैठे हुए हैं आपको पता नहीं कि हज़ारों करोड़ों रश्मियाँ प्यार की यहाँ बह रही हैं। आप देख लीजिएगा कि दिल्ली का वातावरण बदल जाएगा। 

देख लीजिए हम एक ही बार कलकत्ते गए थे कलकत्ते का वातावरण देखा आपने कैसा है? तभी हमने कहा था कलकत्ते का वातावरण बदल जाएगा। आठ दिन कलकत्ते में रहे, वातावरण बदल गया। लोगों के दिमाग जरा ठण्डा हो गया। आज महाराष्ट्र state सबसे अच्छा चल रहा है। वजह है इसकी। कितने ही लोग Realized हो गए महाराष्ट्र के, अब दिल्ली स्टेट को जाना है। और सारे संसार की कुण्डलिनी भारत वर्ष में बैठी हुई है वो भी देख लीजिए, क्या कमाल है? 

भारतवर्ष में ही सारे विश्व की कुण्डलिनी बैठी हुई है और भारत वर्ष हमारा ठीक हो जाए सारा संसार ही ठीक हो जाए और उसका सहस्रार भी यहीं बैठा हुआ है और इसलिए मुझे हज़ार हिन्दुस्तानी ऐसे चाहिएं जो Realization दे पायें।

May God Bless you.