Two minds, lying vertically parallel on both the sides of the Sushumna Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

                         सुषुम्ना के समानांतर दोनों तरफ स्थित दो मन    मुंबई, भारत, 19-02-1975 कल मैंने आपको हमारी रीढ़ की हड्डी में कुंडलिनी की स्थिति के बारे में और यह क्यों मौजूद है, और इसके कार्य क्या हैं, बताया। ईश्वर ने मनुष्य को अपनी ही छवि में बनाया है और ये सभी चीजें जो मैंने आपको कल बताई हैं, वे सबसे पहले विराट के शरीर में निर्मित हुई हैं,  जो कि ईश्वर का वह पहलू है जिसमें वह सब जो निर्मित है, विद्यमान रहता है। लेकिन हम देखें कि, इंसानों में यह कुंडलिनी किस तरह से आई। जैसा कि मैंने कल आपको बताया था कि शरीर में तीन शक्तियां मौजूद हैं और सबसे महत्वपूर्ण मध्य वाली है जो कि महालक्ष्मी के रूप में अवतरित हुई है जिसने हमें एक अतिमानव के रूप में विकसित होने में मदद की। उस चैनल को सुषुम्ना के रूप में जाना जाता है जो मैंने आपको मध्य में दिखाया है। और नाभी बिंदु और कुंडलिनी के निवास के बीच एक दूरी है। उस चैनल का यह भाग या आप कह सकते हैं कि ऊर्जा यहाँ स्थित रहती है और कुंडलिनी, जिसका उपयोग तब तक नहीं किया जाता है जब तक कि आपको किसी ऐसे व्यक्ति से मिलने का मौका नहीं मिलता है जो आपको आत्म-साक्षात्कार दे सकता है और केवल उसी समय कुंडलिनी उठती है। ये दोनों मनोवैज्ञानिक रूप से हमारे भीतर मौजूद हैं। एक रचनात्मक शक्ति है जिसके द्वारा हम सोचते हैं, या हम अग्रचेतन मन कह सकते हैं, मन वह डाकिया है जो हर पल चेतन Read More …