Public Program, Parmatma ka swarup मुंबई (भारत)

Parmatma Ka Swarup 3rd March 1975 Date : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi एक रुपया भेज दें तो जगह खरीदने के लिये दो लाख बीस हजार रूपया चाहिये। कोई आसान काम नहीं है। इसलिये जितना बन पड़े उतना दे दें। जगह अपने ही लिये, अपने बच्चों के लिये हो जायेगी और वहाँ पर मेडिटेशन तो होगा ही लोगों का। क्यूअर भी होंगे, पार भी होंगे लोग। और बहुत बड़ा धर्म का कार्य है। अपने धर्म के लिये हम लोगों ने खर्चा ही नहीं किया है । अपने बारे में ही सोचते रहते है। सेल्फ सेंटर्ड। कोई धर्म भी करो । धर्म के बगैर संसार में कुछ अधर्म आ जायेगा। अधर्म आ जायेगा तो तुम्हारे पैसे का भी तुमको सुख नहीं मिलने वाला। तुम्हारे बच्चों का तुमको सुख नहीं मिलने वाला। किसी चीज़ का नहीं। धर्म की स्थापना के लिये वो जगह बना रहे हैं। आपको मालूम है, मुझे पैसों की बिल्कुल जरूरत नहीं। मैं खुद उसमें रुपया दंगी। मुझे किसी के भी रुपये की, पैसे की भगवान की कृपा से कोई जरूरत नहीं। लेकिन सबको इसमें मदद करनी चाहिये । बहत से लोग ऐसे हैं कि माताजी के पास आते हैं, ‘माताजी, मेरे बाप को ठीक कर दो, मेरे बहन को ठीक कर दो। मेरे भाई को ठीक कर दो।’ पचासों को ठीक करने के लिये आते हैं। लेकिन जब पैसे की बात आती है, तो रफूचक्कर! उस वक्त कोई बात नहीं। ऐसा भी करने से कोई , मैं किसी से नाराज नहीं होने वाली। ये Read More …