Keep the attention on yourself मुंबई (भारत)

Apani Or Drushti Rakhe Date 21st December 1975 : Place Mumbai : Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi [Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] सहजयोगियों का प्रेम इतना अगाध है कि शब्द जितने जल्दी मिथ्या हमारे अंदर से मिटता जाता है सूझ नहीं रहे कि किस तरह से बात की जाए। उतनी ही जल्दी हम लोग उस चित्त को हलका आपको पता है कि संसार में हर जगह आज सहजयोगी उत्क्रांति की ओर, evolution की ओर चित्त परमेश्वर से जाकर मिलता है। यही चित्त उस बढ़ रहा है। बहुत से सहजयोगी बड़ी ऊँची दशा सर्वव्यापी, परमेश्वर के प्रकाश में जा कर डूब जाता में चले गए हैं। आनंद के स्रोत उनके अंदर बह रहे है । यही मानव का चित्त जो कि हम प्रकृति का रूप हैं। कुछ तो बिल्कुल निमित्तमात्र हो करके ही समझते हैं, प्रकृति का जो ये फूल है वो परमात्मा के संसार में एक विशेष रूप से कार्यान्वित हैं। लेकिन प्रेम सागर में विसर्जित हो जाता है । लेकिन ये चित्त हर एक देश की एक अपनी अपनी, मैं देखती हैं कि कितना बोझिल है, कितना अव्यवस्थित है. कभी परिपाटी है। मानव हर जगह एक ही है। इसमें कभी देखते ही बनता है। कोई अंतर नहीं है और सहजयोग एक अन्तर्तम की ही व्यवस्था है जिसका कि बाह्य से कोई सम्बंध है कितने आनंद में उतरे, आप कितने शांति में उतरे, ही नहीं। तो भी चित्त जो कि प्रकृति का एक स्वरूप है, जिसे हम कुण्डलिनी के नाम से जानते सहजयोग को Read More …