Parmatma Ka Prem 26th December 1975 Date : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi
सत्य को खोजने वाले आप सब को मेरा वंदन है। कल आप बड़ी मात्रा में भारतीय विद्या भवन में उपस्थित हये थे और उसी क्षण के उपरान्त जो भी कहना कुछ है, आज आप से आगे की बात मैं करने वाली हूँ। विषय था, ‘एक्सपिरिअन्सेस ऑफ डिवाईन लव’। परमात्मा के प्रेम के अनुभव। इस आज के साइन्स के युग में, पहले तो परमात्मा की बात करना ही कुछ हँसी सी लगती है और उसके बाद, उसके प्रेम की बात तो और भी हँसी सी आती है। विशेष कर हिन्दुस्तान में, जैसे मैंने कल कहा था, कि ये दुःख की बात है और विदेशों में साइंटिस्ट वहाँ तक पहुँच गये हैं, जहाँ पर हार कर कहते हैं, कि इससे आगे न जाने क्या है? और वो ये यहाँ के साइंटिस्ट उस हद तक नहीं पहुँचे हैं जहाँ वो जा कर परमात्मा की बात सोचें। भी कहते हैं कि ये सारा जो कुछ हम जान रहे हैं, ये साइन्स के माध्यम में बैठ रहा है, ये बात सही है। लेकिन ये कुछ भी नहीं है। ये जहाँ से आ रहा है वो ये अजीब सी चीज़ है, जिसे हम समझ ही नहीं पाते। जैसे कि केमिस्ट्री के बड़े बड़े साइंटिस्ट है, वो कहते हैं कि ये जो पिरिऑडिक लॉ जो बनाये गये हैं, ये समझ से ही नहीं आते कि ये किस तरह से बनाये गये हो। एक विचित्र तरह की रचना कर के इतनी सुन्दरता एक एक अणु-रेणु को इस तरह से रचा गया है। एक एक अणू में एक एक ब्रह्मांड किस तरह से समाया गया है। ये कुछ समझ में नहीं आता। वो कहते हैं कि इनके रचना का कार्य तो हम कर ही नहीं सकते। रही बात ये कि ये रचना कैसी हयी ये हम नहीं बता सकते । ये पृथ्वी इतने गति से घूम रही है, ये किस तरह से घूम रही है और उस पर ये ग्रॅविटी किस तरह काम कर रही है, ये हम बता सकते हैं कि ये काम कर रही है, लेकिन वो किस तरह से कर रही है इस मामले में साइन्स कुछ भी नहीं कह सकता। आइन्स्टीन जैसे बड़े बड़े साइंटिस्ट हैं। बार बार दोहरा के कहा कि कोई तो भी ऐसा अज्ञात, अननोन लँड है, जहाँ से ये सारा ज्ञान हमारे पास आता है। और जो देश साइंस की परिसीमा में पहुँच | गये हैं, वहाँ पर हर तरह की सुविधायें हो रही हैं। खाने-पीने को सब के पास व्यवस्थित हो गया। समृद्धि आ गयी । लोग कहते हैं कि ये अॅफ्ल्यूएन्स आ गया है। कंट्री में अॅफ्ल्यूएन्स है, बहुत ज्यादा पैसा है। तो उनके बच्चे घर-द्वार छोड़ कर के भागे हुये हैं। सब संन्यासी जैसे घूम रहे हैं। कुछ हिन्दुस्तान भाग रहे हैं, कुछ नेपाल जा रहे हैं। वो कह रहे हैं कि वो सब छोड़ दो। ये माँ-बाप ने पता नहीं ये क्या पत्थर, ईंटे इकठठे कर ली। हम इनके पीछे बैठने वाले नहीं हैं। लेकिन वो छोड़ कर के भी आज वो लोग हिप्पी हो गये हैं। चरस पी रहे हैं, गांजा पी रहे हैं। लेकिन इन सब बातों से परमात्मा की सिद्धता नहीं होती। ये तो सब तर्क-वितर्क से, इंटेलिजन्स से, इसको कहते हैं कि रॅशनलाइज्ड करने से कोई जगह आदमी जा के पहुँचता है और कहता है कि इसके परे कोई शक्ति जरूर है। नहीं, ये बात नहीं कहने वाली मैं आपसे। मैं आपको तो साक्षात् की बात कहने वाली हूँ, अॅक्च्यूअलाइजेशन ऑफ द एक्सपिरिअन्स, जो अनेक वर्षों से, अपने योगशास्त्र आदि छोड़ दीजिये, इन विदेशों के भी बड़े बड़े वैज्ञानिक और फिलॉसॉफर्स उन लोगों ने जो बात कही है, कि इस जड़ स्थिति से उस सूक्ष्म स्थिति में कैसा उतारा जायें । मन भी ন
तो जड़ है, विचार भी जड़ है। इस विचार के सहारे किस तरह से उस निर्विचार, इस सीमा के सहारे किस तरह से उस असीम में उतारा जायें। इस फाइनाइट से किस तरह से उस इन्फीनाइट में उतारा जायें | ये जो आदिकाल से मानव के सामने बहुत बड़ा प्रश्न रहा , उसका आज मैं आपके सामने उत्तर लायी हूँ। वो उत्तर सिर्फ शब्दों में नहीं है, कती में है। ये आपको भी हो सकता है। क्योंकि उसके होने का समय आ गया। उसका मौका आ गया है। कलयुग में ही ये होना है। जब तक पूरी तरह से कलयुग परिपक्व नहीं हुआ था, मानव पूरी तरह उस संतुलन में नहीं पहुँच गया था, जहाँ उसे पहुँचना है। जब तक परमात्मा की कृति मानव मनुष्य पूरी तरह तैय्यार नहीं हो गया था, ये कार्य होने वाला भी नहीं था। जिस प्रकार आप ये देख रहे हैं कि माइक। जब तक पूरी तरह से तैय्यार नहीं हुआ, तब तक मेन्स में लगाया नहीं गया था। कलियुग में ही जो कि दिखने में अत्यंत घोर, दर्दनाक, अत्यंत भीषण और भयंकर सा नजर आ रहा है। इसी कलियुग के आग में तप कर आप वो होने वाले हैं जो आपको होना था। सिर्फ एक ही प्रश्न है। एक ही आपके सामने बिनती है, कि आप स्वीकार्य किसे करते हैं। आप किस का सत्कार्य करते हैं। आप किसे चाहते हैं कि आप सत्य चाहते हैं कि असत्य चाहते हैं। मनुष्य बेअकल है, आप से कहीं अधिक उन देशों में जहाँ लोगों के पास खाने-पीने के लिये बेतहाशा है। लोग पागल हो रहे हैं। आफ़त मच रही है। आपको पता नहीं कि कितने द :खी वे लोग हैं, कि जिनके पास खाने-पीने के लिये आप से कहीं अधिक है। कितने सुसाइड्स वहाँ हो रहे हैं। आप लोगों को तो अभी ये है कि पैसा कमाना है। उनको तो वो कुछ करने का नहीं। तो अब वो आगे क्या करेंगे? वो तो एकदम पागल हा गये हैं। उनको समझ में नहीं आता है कि हम आये किसलिये हैं संसार में ? जैसे कि कोई एक बंद कमरे में अपने को पाते हैं और इधर-उधर टक्कर मार रहे हैं। आप लोग भी प्रगति के मार्ग पे जा रहे हैं, जिसे आप प्रगति कहते हैं, और आप भी उसी रस्ते से गुज़र रहे हैं जिस रस्ते से वो गुज़र गये हैं। अंतर इतना ही है कि जिन चीज़ों का उनको महत्त्व है उसका आपको इतना नहीं। लेकिन क्या आप भी उसी रास्ते से गुज़रना चाहेंगे? या अगर कुछ शॉर्टेकट मिल गया, तो उस शॉर्टकट का अपना लें। आपको पता होना चाहिये, कि ये भारत भूमि एक योगभूमि है। अधिकतर अवतार इसी भूमि पर पैदा हये हैं। एक बड़ी महान भूमि पर आप पैदा हुये हैं। यही आपका चाइस, यही आपका चुनाव बहुत बड़ी चीज़ है। हालांकि खाने-पीने की थोड़ी बहुत तकलीफ़ है। थोड़े बहुत इन्सान जरा जरूरत से ज्यादा धूर्त हैं। तो भी इस देश के चैतन्य के प्रांगण में, आप आये हैं, यही एक बड़ा भारी चुनाव आपने किया है। और आप नहीं जानते कि कितनी बड़ी आपके ऊपर परमात्मा की, कृपा है। आज आपके बच्चे आपके साथ बैठे हैं। आपके माँ-बाप आपके साथ खड़े हैं। इसलिये सहजयोग भी जो पनपा है, वो हिन्दुस्तान में, भारत वर्ष में ही पनपेगा पहले। और इसी वर्ष भारत वर्ष सारे संसार का अगुआ होने वाला है। अब परमात्मा का प्रेम है या नहीं, या परमात्मा है या नहीं ये तर्क-वितर्क की बात है ही नहीं। एक तो इस देश में ऐसे महान लोग हो गये हैं, जैसे आप आदि शंकराचार्य को ही ले लीजिये। जिन्होंने पहले इसे चैतन्य लहरियाँ आदि कितनी ही बातों पर हम लोगों को समझाया रखा है। हमारे पास ऐसे अनेक ग्रंथ हैं, जिसके अन्दर परमात्मा के स्वरूप के बारे में भी अनेक चर्चायें हो चुकी हैं। लेकिन उन पे विश्वास क्यों किया जाये? आखिर इसे क्यों मान लिया जाये? क्योंकि इसे शंकराचार्य कह रहे हैं !
एक साहब बता रहे थे कल मुझे, कि ज्ञानेश्वर जैसे पंडित आदमी को क्या बेवकूफ़ी सुझी, कि श्रीगणेश की स्तुति करते हैं। ज्ञानेश्वर जी को आप पंडित मानते हैं यही बड़ा आश्चर्य है। उनके शब्दचातुर्य के लिये क्या आप उनको पंडित मानते हैं? इन ग्रंथों में जो चीज़ें लिखी गयी हैं, वो उन लोगों ने लिखी है, जो ऊँचे स्तर पे पैदा हुये हैं। उनकी चेतना बड़ी ऊँची थीं। उनके चक्षु कुछ और थे। समझ लीजिये कि कोई बड़े उँचे दसवें मंजिल पे पैदा ह्यी वो व्यक्ति थी और सर्वसाधारण समाज बिल्कुल निम्न स्तर पे, पहले स्तर पे पैदा हुआ था। दोनों के बीच में जोड़ने वाली कोई चीज़ ही नहीं थी, सिवाय इसके कि नीचे का समाज उनको जब तक वो जीवित रहे उनको बहुत सताता रहा, पूरी तरह। और जब वो मर गये तो उनके मंदिर और ये और वो बना कर के और उनके नाम पर पैसा कमाता रहा। ये सीधा हिसाब है। क्योंकि वो भी प्रयत्नशील रहे, बात समझाये, लेकिन कहीं तक पहुँच नहीं पाये । जब तक इस स्तर के लोगों को थोड़ा सा ऊँचा न उठाया जायें, जब तक उनकी सीमित चेतना, जो कि की मनुष्य चेतना है, ऊपर न उठायी जाये, उनका भी कोई दोष नहीं। क्योंकि वो भी कैसे समझ पायेंगे, कि इससे भी ऊपर स्थित कोई चीज़ है। कोई चेतना है। अगर उनका विश्वास नहीं है, तो उसमें उनको भी दोष देने की कोई बात नहीं। अगर उनका परमात्मा पे विश्वास नहीं, उसमें भी मनुष्य को दोष देने की कोई बात नहीं। क्योंकि मानव बनाया ही ऐसा गया है, मानव की रचना ही ऐसे हो गयी है, कि थोड़ी समय के लिये वो परमात्मा के प्रेम से वंचित किया गया है। हटाया गया है। जो सर्वव्यापी प्रेम परमात्मा का है, जिसे वो जान सकता है, जिसमें वो रह सकता है, उससे वो अलग हटाया गया। मानो कि सागर से बूँद अलग किया गया। एक विशेष तरीके से किया गया है। जिसके बारे में मैंने अनेक बार बताया है कि किस तरह से कुण्डलिनी मनुष्य के अन्दर प्रवेश करती है और किस तरह से इगो और सुपर इगो, अहंकार और प्रतिअहंकार सर में इकट्ठे हो कर के और उसके सर में एक तरह का पिंजड़ा बना देती है। जिसके कारण वो इस सर्वव्यापी परमात्मा के प्रकाश से अलग हो कर के अपना व्यक्तित्व बनाता है। हम अलग हैं, आप अलग हैं, आप अलग हैं। एक उसकी एक विशेष तरह की रचना मनुष्य के त्रिकोणाकार सर में होती है। उसके अन्दर तीन शक्तियों का प्रवेश होता है। उन तीन शक्तियों को हम शास्त्र के अनुसार महासरस्वती, महाकाली और महालक्ष्मी के नाम से जानते हैं। लेकिन इन शक्तियों में से एक शक्ति सृजन करती है। जिसे हम महासरस्वती कहते हैं। महाकाली हमारी स्थिति बनाती है, जिससे हम एक्झिस्ट करते हैं और महालक्ष्मी की शक्ति से हम आज पत्थर से मानव हो गये। हमारी उत्क्रांति हुयी। हमारा इवोल्यूशन हुआ। एक सोने (गोल्ड) में भी धर्म है। सोने का धर्म है, आप जानते हैं वो कभी भी खराब नहीं होता। उसका पीलापन उसका धर्म नहीं। लेकिन धर्म उसका है, वो कभी भी खराब नहीं होता। इट हॅज नॉट टार्निश। इसी तरह से मानव का भी धर्म है। ये धर्म बदलने का काम महालक्ष्मी जी का है और श्री विष्णु जी का है। जो अंत में विराट स्वरूप में, प्रगटित होते हैं। अब मानव में आपको आश्चर्य होगा, कि इस परमात्मा ने कितनी सुन्दर व्यवस्था की है। आप इससे अज्ञात हैं। कुछ डॉक्टर लोग तो जानते ही हैं। लेकिन वो सिर्फ तो यही कहते हैं, वी कॅनॉट एक्सप्लेन द मूड ऑफ अॅक्शन। मनुष्य के अन्दर परमात्मा ने बड़ी सुन्दर रचना, उसके ब्रेन से ले कर नीचे तक, मज्जातंतु तक एक ऑफिस सा खोल दिया है समझ लीजिये। अब आप कहेंगे कि श्री गणेश कौन होते हैं? श्रीगणेश हैं या नहीं हम कैसे माने! ठीक बात है। आपने श्रीगणेश को देखा नहीं है। आपने उनको जाना नहीं, आपको नहीं मानना चाहिये । लेकिन कुछ ऐसी अजीब सी
चीज़ है, कि जब आप अन्दर आते नहीं, आप उसको नहीं देख सकते। जब तक आप बाहर खड़े हैं, आप उसको मानते नहीं। जैसे कि समझ लीजिये आप बाहर खड़े हैं और आपने हमें देखा नहीं और आप कहें कि, ‘माताजी को हम कैसे मानें कि वे हैं?’ तो हम कहेंगे कि, ‘आप अन्दर आईये। तब आप देखिये ।’ तब आप कहेंगे कि , ‘नहीं, हमें बाहर ही ला के दिखाईये। जब उनकी सत्ता अन्दर ही है। तो आपको ही तो अन्दर आना होगा ना! जब तक आप अन्दर जा कर के देखियेगा नहीं, तब तक आपको ये चीज़ दिखायी नहीं देगी। तो सब से पहले, सारी सृष्टि बनाने से पहले, आदि कुण्डलिनी बनाने से पहले, सारा संसार बनाने से पहले श्रीगणेश जी की स्थापना की है। आज मंगलवार का कितना शुभ दिन है। वे स्वयं साक्षात् पवित्रता के पूर्ण अवतार हैं। वे अपने अन्दर स्थित हैं। उसको देखने के लिये आपके अन्दर चक्षु नहीं हैं। वे अपने अन्दर मूलाधार सेंटर पे जहाँ कि प्रोस्टेट ग्लँड सराऊंड करती है, जिसे हम पेल्विक प्लेक्सस के नाम से जानते हैं। उस के अन्दर हर एक इन्सान में प्रतिबिबित है। जागृत नहीं, चाहे सुप्त ही, लेकिन वे वहाँ पर है। ये देवता ऐसी है कि कभी भी पूर्णतया सुप्त होती ही नहीं है। जब तक मानव राक्षस न हो जाये, बिल्कुल ही राक्षस हो जाये, तब तो वो वहाँ से लुप्त ही हो जाते हैं। नहीं तो हर एक मानव के अन्दर श्रीगणेश विराजते हैं । ये पहला हमारे अन्दर का सेंटर है। जिसे की मूलाधार चक्र कहा जाता है। मूलाधार। आप तो सब संस्कृत के पंडित हैं। मूल माने रूट, आधार माने सपोर्ट। सपोर्ट ऑफ द रुट। रुट ऑफ धीस क्रियेशन। उसके सपोर्ट पे बैठे हैं, श्रीगणेश। उनको इसलिये सब से पहले बनाया गया। क्योंकि सारा संसार पवित्रता से लिपट जायें। पवित्रतता में, इनोसन्स में और भोलेपन में, डूबा रहें। बहुत से लोग ये भी कहते हैं कि, ‘माताजी, इतना भोला होना ठीक नहीं। आपको कोई प्रॅक्टिकल सेन्स नहीं। आपको प्रॅक्टिकल सेन्स होना चाहिये।’ भगवान से बढ़ के कोई और अधिक प्रॅक्टिकल है ही नहीं। आप में जितनी भी अकल आयी है, उसका स्रोत यही है। अन्तर इतना ही है कि वो सुबुद्धि का, विज्डम का स्रोत है। मूर्खता का नहीं। जिसको आप बहुत प्रॅक्टिकल बात कहते हैं, वो महामूर्खता की बात है। अंत में आप महामूर्ख साबित हो जाते हैं। लेकिन वो उस वक्त आप मूर्ख साबित होते हैं, जब कि आप वापस नहीं आते। आप अपने को बहुत अकलमंद समझ कर के संसार में चलते हैं। एक गणेश जी सूंड हिल जाते ही, सारी आपकी चार सौ बीसी ऐसी उल्टी घूमती है कि सीधे आप नर्क में जा के पहुँचते हैं। भगवान से चालाकी नहीं चल सकती। एक बार, अनेक बार आप मुझ से झूठ बोले, मैं तो माँ हँ। मैं माफ़ कर ही देती हूँ। लेकिन श्रीगणेश वो बहुत होशियार आदमी है। है तो बिल्कुल बच्चों जैसे। इटर्नल चाइल्डहूड। इटर्नल चाइल्डहूड के वो प्रतीक है। इसका मतलब ये है कि आप जिस वक्त अपने उत्थान की बात सोचें, परमात्मा की बात सोचें, तब एक छोटे बच्चे जैसे होते हैं। विशेष कर सेक्स के मामले में । गणेशजी का प्रतीक, पेल्विक प्लेक्सस पे आने का मतलब ही ये होता है, सेक्स का और परमात्मा का कोई भी संबंध होता ही नहीं । जो लोग आप लोगों को गलत , उल्टी-सीधी बातें सीखा रहे हैं उनके चक्कर में आने की कोई जरूरत नहीं। ये सब राक्षसों के अवतार है। सोलह राक्षसों ने संसार में जन्म लिया और अपने को महागुरु बना के घूम रहे हैं। सब पैसे कमाने के धंधे हैं। इनके अपने अपने चक्कर हैं। इन चक्करों में खुद फँसेंगे। लेकिन अपना आखरी हाथ, आखरी दाँव लगाना चाहते हैं कि कितने महामूर्ख उनके बातों में फँसने वाले हैं। सेक्स का और परमात्मा का कहीं भी, कहीं भी, कहीं भी संबंध नहीं है । ये जताने के लिये श्रीगणेश वहाँ पर बैठे हये हैं। अपनी माँ की रक्षा करने के लिये, जो अपने घर में हर एक इन्सान के, त्रिकोणाकार
अस्थि, जो की रीढ़ की हड्डी के नीचे में हैं। उस घर के सामने बैठे हये हैं, वो घर आपकी माँ का है । इसका नाम कुण्डलिनी हैं, जो गौरी स्वरूपिणी है। जो इन्सान गणेशजी को वंदना करता है, वो इस बात को समझता है, कि माँ का स्थान कितना ऊँचा है और सेक्स से बिल्कुल संबंधित नहीं है। हिन्दुस्तान का आदमी इस बात को खूब समझता है और जो आदमी इस तरह की हरकत करता है, उसे श्रीगणेश इस तरह से ताड़ना देते हैं, कि ऐसे लोगों की जब कुण्डलिनी उठती है, तो सारे के सारे जल जाते हैं। कुण्डलिनी तो नहीं उठती उनकी। कुण्डलिनी क्या बेवकूफ़ है उठने के लिये ! लेकिन वो गणेश की जो हिट चलती है, वो जो गर्मी चलती है, वो सारे के सारे उन्हें जला देती है। आदमी मेंढ़क जैसे कूदने लगता है। चिल्लाने लगता है। कपड़े उतार देता है, चीखने लगता है। ये सब लक्षण अत्यंत घृणित लोगों से होते हैं। ये लोग स्वयं भूत-पिशाच्च है। संसार में आ कर के पाप फैला रहे हैं। जो पाप है वो पाप ही है और जो धर्म है वो धर्म है। दोनों का मिक्श्चर नहीं हो सकता। धर्म को अधर्म बनाना। पूण्य को पाप बनाना। यही कार्य ये लोग कर रहे हैं। और वो कार्य सफलीभूत इसलिये नहीं हो रहा है कि आप लोग भी अपनी विकनेसेस को अच्छे से सम्भाल सकते हैं। भगवान के नाम पे सेक्स हो तो और क्या चाहिये! बहुत अच्छी बात है। गांजा पी रहे हैं भगवान के नाम पर। क्या कहने ! कन्फ्यूजन, इस तरह का गोलमाल, यही कलयूग का नाम है। थोड़ी सी गलती जरूर हो गयी थी, आदिकाल में। कुछ लोगों ने मूलाधार चक्र में श्रीगणेश के सूँड को ही कुण्डलिनी समझा था। हो गयी थी गलती उनकी। लेकिन उस गलती को लोग कहाँ तक खींच गये, पेल्विक प्लेक्सस का संबंध सेक्स से है। उन्होंने सेक्स का संबंध कुण्डलिनी से लगा दिया। उसी से तांत्रिक बन गये, मांत्रिक बन गये। ये सब राक्षस हैं। मानव के अवतार में ये सारे के सारे राक्षस हैं। इनसे बच के रहिये। अपने बच्चों को बचाईये। दादर में भी ऐसे लोग हैं। मैं जानती हूँ। मैंने दादर में बहुत काम किया है। ये लोग पैसा लेते हैं, दूसरों पे तंत्रविद्या करते हैं और मंत्रविद्या करते हैं। वास्तविकता, जब तक मनुष्य अत्यंत पवित्र न हो, वो श्रीगणेश के चरणों तक नहीं जा सकता। ये लोग गणेश को सामने रखते हैं और गणेश की पूजा करते हैं। आपको आश्चर्य होगा , और | भूतों को बुलाते हैं। ये किस तरह से है। जब अनधिकार चेष्टा होती है, जब कोई अपवित्र मनुष्य परमात्मा को इस तरह से छलना करता है और बार बार उसे याद करता है, तो गणेश स्वयं ही वहाँ सुप्त हो जाते हैं। ये लोग बहुत सेन्सेटिव है, ये देवता वगैरे। वो सुप्त होते ही वहाँ सब राक्षस गण आ जाते हैं। और वो राक्षस गण आ कर के हूं, हूं करते हैं। कुछ चमत्कार भी दिखाते हैं, ऊपर से अंगूठी निकाल ली और कुछ पत्थर निकाल दिया, ये दिखा दिया, वो दिखा दिया। वहाँ गणेश सो गये। गणेश को सुला दिया, पहले उनको पूरी तरह से अपनी नास्तिकता से, अपनी गन्दी चीज़ों से, उनको पहले सुप्तावस्था में डाल दिया। पूर्णतया सुप्तावस्था में डाल कर के और वहाँ पर राक्षसों को बुला लिया। और अपना कार्य वो पूरी तरह से करते हैं। इस तरह के तांत्रिक-मांत्रिकों को भी पता होना चाहिये, कि आप पैसा तो कमा लेंगे इस देश में, लेकिन आप उसके साथ-साथ नर्क का टिकट भी कटा रहे हैं। और पर्मनंटली नर्क में जा कर के आप वहीं रहेंगे। वहाँ से लौटने वाले नहीं आप। इस पैसे से बच के रहिये। इसको साक्षात् आपको चाहिये तो मैं बताती हूँ। इतना मनुष्य अधम भी हो जायें, तो भी परमात्मा कितने कृपालु हैं।
मैं पूना में गयी थीं | वहाँ पर एक बहुत बड़े मांत्रिक थे और वो मेरे पास आये। वहाँ मैं डीआईजी साहब के पास ठहरी थी। डीआईजी साहब ने कहा कि, ‘इस मांत्रिक ने हमारी बड़ी मदद की है। बहुत से चोरों को पकड़वा दिया। और हमारी बड़ी हेल्प की है। आप जरा इसकी थोड़ी मदद करिये।’ तो वो आ कर के मेरे पैर पे बिलबिला के रोने लगा कि, ‘माँ मुझे छुड़ाओ। ये सब मुझे खा डाल रहा है। तुम तो समझ रही हो सब बात को। मैंने कहा, ‘तुमने | क्यों इन भूतों की मदद की? क्यों इन राक्षसों की मदद ले कर के दुष्टता करी?’ कहने लगे, ‘मैंने दुष्टता नहीं की। मैंने अच्छे काम किये। मैंने कहा, ‘अच्छा हो चाहे बुरा काम हो तुमने अनधिकार काम क्यों किया?’ कहने लगा, ‘अच्छा, मुझे माफ़ कर दो। में एक बार तुमसे इतना माँगता हूँ कि मुझे परम दे दो।’ मैेंने कहा कि, ‘तीन बार कहो कि मुझे परम चाहिये।’ जब मैंने परमात्मा से प्रार्थना की, फौरन वो पार हो गये। कितने असीम , उनके प्रेम की कोई व्याख्या नहीं। हालांकि जन्मभर उसने जड़़ वस्तुओं की प्रार्थना की। अंत में सिर्फ मुझ से कहा , परमात्मा उस पे ढर आये। वो पार हो गये। और जब बाहर गया तो डीआईजी साहब से कहने लगा कि, ‘ऐसे कैसे हो सकता है, कि माताजी कहे कि तुम्हारी अब गयी विद्या? पच्चीस साल मैंने तपस्या की, स्मशान में जा के। कैसे जा सकती है? उसने कहा, ‘अच्छा बोलो तुम्हारे मंत्र। देखें, तुम्हारे कोई आते हैं?’ वो मंत्र बोलता गया। आधा घण्टा कुछ नहीं हुआ। आ कर पैर पे लोट गया। ‘माँ, वो सब खत्म हो गया?’ मैंने कहा, ‘जिसके कारण वो शक्ति तुम्हारे अन्दर थी, वे ही चले गये तो अब कहाँ से होगा? अब वो जागृत हो गये जो तुम्हारी शक्ति दिखाये।’ जब उनके जागृत होते हैं, जैसे ही वो मनुष्य में जागृत हो जाते हैं, तो ये सब दुष्ट बुद्धियाँ गिर जाती हैं। ये सारे ही दुष्ट जो तुम्हारे सर में घुसे हुये थे, जो तुमसे काम ले रहे थे, वे सारे ही के सारे नष्ट हो जाते हैं। इन देवताओं को जागृत करते ही आप स्वयं देवता हो जाते हैं। इसलिये कहते हैं कि ‘नर जैसे करनी करे, नर का नारायण होवे।’ करनी का मतलब ये है कि जिस तरह मनुष्य पार हो जाता है, जब उसके अन्दर के देवता जागृत हो जाते हैं, श्रीगणेश हमारे अन्दर हमेशा संतुलन लाते हैं। अब साइकोलॉजी में मैं इसे बताऊँ। क्योंकि साइन्स वाले हमेशा साइकोलॉजी पे जाते हैं। साइन्स में जिसे इड कहते हैं, आईडी, इड, वही श्रीगणेश हैं। वे कहते हैं कि अचेतन ऐसा है, अनकॉन्शस ऐसा है कि उसके अन्दर से स्वप्न में ही कुछ इस तरह से प्रतीक, सिम्बल्स आते हैं, उससे जान पड़ता है कि हमारे अन्दर संतुलन लाने की कोशिश की जा रही है। हमारे अन्दर कुछ करेक्शन लाने की कोशिश की जा रही है। हमें कुछ समझाया जा रहा है। इस तरह के बहुत से, फ्रॉइड ने तक, हालांकि वो भी एक राक्षस ही था, लेकिन फ्रॉइड ने तक इशारा किया लेकिन उसके अनेक शिष्यों ने और आज जहाँ साइन्स पहुँचा है, जो सायकॉलॉजी पहुँची है उन लोगों ने सब ने इस बात का निदान लगाया है और कहा है कि अनकॉन्शस जो है, अचेतन है, वो कोई बड़ी भारी सोच समझने वाली चीज़ है । वो हमें सही रास्ते पे रखती है, वो श्रीगणेश। साइकोलॉजिस्ट अभी श्रीगणेश तक नहीं पहुँच पाये हैं। क्योंकि वे ये नहीं जानते कि श्री गणेश तक पहुँचने के लिये पहले अपने जीवन को पवित्र बनाना चाहिये। रात -दिन शराब पीने वाले आदमी श्रीगणेश के पास कैसे पहुँचेंगे? अपने जीवन को जिसने पवित्र नहीं बनाया है, जिसके जीवन में संतुलन नहीं है, जो अपनी पत्नी छोड़ कर अनेक औरतों में रमता है, ऐसे महापापी लोगों के लिये क्या गणेश जी दर्शन देंगे? जो कि स्वयं साक्षात् पवित्रता के अवतार हैं। लेकिन पवित्रता के चमत्कार इतने हैं, कि अभी मैं एक युनिवर्सिटी में, कृषि युनिवर्सिटी में गये थे, राहुरी में। वहाँ के कुछ प्रोफेसर हमारे शिष्य हैं। उन्होंने मुझ से कहा कि, ‘माँ, हमें कोई ऐसा वाइब्रेटेड पानी दो,
जिससे हमारी उपज बढ़ जायें ।’ तो मैंने कहा, ‘लो।’ मैंने ऐसे ही हाथ घुमा के उनको पानी दिया। कल ही वो आये थे। बता रहे थे अपने किस्से। तो कहते हैं कि उस पानी से, उन्होंने कुँअं में ड्राल दिया, और उस कुँओ के पानी से, जितना भी धान्य हुआ, वो सौ गुना ज्यादा हुआ। कहने लगे कि, ‘ये तो हमें मालूम ही था माँ, कि वाइब्रेशन्स से होगा ही।’ क्योंकि वो तो पहले भी हो चुका था। लेकिन सब से आश्चर्य ये हआ, कि बहुत सा अनाज़, ढ़ाई ढ़ाई सौ पोतियों का अनाज़ चूहे खा जाते थे, या सड़ जाता था। विशेष कर चूहे खाते थे। और जिस गोदाम में ये अनाज़ रखा गया, हम को आश्चर्य हुआ कि, उस में छेद भी थे, उन बोरों में, लेकिन चूहों ने उसको दाँत तक नहीं लगाये। और उसी के पास एक पेंड रखा हुआ था, एक और तरह की चीज़़ होती है, उसे पेंड कहते हैं, वो दूसरी जगह का था, वो सारा वो खा गये, जो कभी चूहे नहीं खाते। और गेहूँ उन्होंने छूओे नहीं। जैसे के वैसे रह गये। अब आप कहेंगे कि ये कैसे हो सकता है। साइंटिस्ट इसको मानने को तैय्यार नहीं। कहे, हो ही नहीं सकता! ऐसे कैसे हो सकता है? लेकिन साक्षात् सामने है, देखिये ये बात। अब ये एक साइंटिस्ट ही है वहाँ के, उन्होंने ही मुझे बताया। राहुरी के प्रोफेसर हैं चव्हाण। उन्होंने मुझे बताया कि माँ, हम लोग दंग हो गये थे। अब हम युनिवर्सिटी में इस बात को कहते हैं तो हमारे साइंटिस्ट कहते हैं कि इत्तेफाक होगा। इत्तेफाक ऐसे कैसे हो सकता है, कि किसी चूहे ने छुआ ही नहीं । और साइन्स की बात हयी तो शुअरशॉट हुआ। क्योंकि जब परमात्मा की बात हुयी तो इत्तेफाक हुआ परमात्मा को मानना मनुष्य के अहंकार को बड़ी कठिन बात है। अहंकार ने इस तरह से सर ढ़क दिया है, थोड़ा सा अहंकार जरा इधर खींच लीजिये, तो बराबर बीचोबीच जगह हो जाती है मेरे सहजयोग के लिये। इस अहंकार के मारे वो ये नहीं सोचना चाहते कि कैसे हो सकता है ? कैन्सर की बीमारी , हमारे सहजयोग से आप जानते हैं, कि बहुत लोगों की ठीक हो गयी। दिल्ली में भी बहुत से लोगों की कैन्सर की बीमारी ठीक हो गयी। यहाँ तक की वहाँ के गवन्म्मेंट ने ये कहा कि, ‘हम जानना चाहते हैं, कि कैन्सर की बीमारी सहजयोग से किस तरह से ठीक हो गयी ? तो मैंने एक डॉक्टर साहब, हमारे शिष्य हैं, उनको भेजा कि, ‘भाई , आप जा कर वहाँ बताईये ।’ वहाँ के सेक्रेटरी ने हमें चिट्ठी दी, कि ये हमारी समझ में नहीं आ रहा है! एक आदमी का तो कलर ब्लाइंडनेस, मैं लंडन में थी। उस की मेरे पास चिठ्ठी आयी और दूसरे दिन में ध्यान में गयी। उस दिन उसका कलर ब्लाइंडनेस ठीक हो गया। वो गवरमेंट सर्वंट था। डायरेक्टर था। उसकी नौकरी भी चली गयी थी। लेकिन उसके कलर ब्लाइंडनेस पर किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था | अंत में बड़ी मुश्किल से वहाँ मैंने सेक्रेटरी साहब को एक चिट्ठी लिखी कि उसका एक्झामिनेशन तो करवा लो। जब एक्झामिनेशन हुआ। तो वो लोग आश्चर्य में पड़ गये कि इसका कलर ब्लाइंडनेस कैसे ठीक हो गया? यहाँ भी ऐसे लोग बैठे हैं। इनका पुनर्जन्म हुआ है। बहुत से लोग हैं। दवाई देंगे आप सब को। ले लीजिये उन लोगों से। तब उन्होंने खबर की आप किसी डॉक्टर को भेजिये। हम चाहते हैं कि मेडिकल कॉलेज में इसका पता करायें। उन डॉक्टर साहब ने मुझे चिठ्ठी लिखी। कि पहले तो इन साइंटिस्ट से लड़ते लड़ते मेरी हालत खराब हो गयी। उसमें फिर इमर्जन्सी हो गयी। इस वजह से अभी वो बात स्थगित है। पर वो कहते हैं कि यहाँ होने वाला नहीं। मैंने सब से कहा कि, सहजयोग एक हिन्दुस्तान की देन है। कैन्सर का मैंने खोज लगा लिया है। क्यों नहीं इसे देखते हो? कोई डॉक्टर देखने के लिये तैय्यार ही नहीं । अब देखिये आप। अमेरिका में डॉ.लांजेवार कर के एक बड़े डॉक्टर है। वो मेरे शिष्य है। और एक दिन उन्होंने ০
मुझे कहा था, कि माँ, मुझे कोई एक विशेष ऐसा आशीर्वाद दो कि मैं सहजयोग को ही संसार में फैला सकूं। अभी लंदन से आने से कुछ दिन पहले ही, उनका मेरे पास टेलिफोन आया कि, ‘मैं सारे न्यूयॉर्क के जितने भी डॉक्टर्स हैं, उनका एक असोसिएशन है। उसका मैं चेअरमन हो गया हूँ।’ और कह रहे हैं कि आप वहाँ आईये और सब की एक कॉन्फरन्स करा के हम ये कैन्सर का और सब चीज़ का उनके सामने रखेंगे, कि हमने पॅरासिम्परथॅटिक नर्वस सिस्टीम को कंट्रोल में कर लिया। अब आपके सामने मैं कह रही हूँ। यहाँ के डॉक्टर्स हैं ये अॅक्सेप्ट नहीं करना चाहते हैं तो ये आने दीजिये अमेरिका से और क्या! जब हम सभी चीज़ अमेरिका से ही लेना चाहते हैं, तो मैं इसे क्या कर सकती हैँ। इस प्रकार अनेक बीमारियाँ सहजयोग से ठीक हुई। सहजयोग से आपके अन्दर जो सात सेंटर्स हैं, आपके अन्दर जो सुन्दर व्यवस्था परमात्मा ने की हुई है, वो कुण्डलिनी के प्रकाश से जागृत हो जाती है। और ये देवता जागृत हा कर के उसका पूरा संतुलन करते हैं। और शरीर का पूरा संचालन करते हैं । और सारे शरीर में वो शक्ति प्रदान करते हैं, जो ऊपर से हमारी ओर पूरी बहती है। ऐसे ही समझ लीजिये की अगर हम मोटर का पेट्रोल खर्च कर रहे हो और वो खत्म हो रहा हो, तो हमें एक तरह का टेन्शन आ जाता है। पर अगर आप के पास ऐसी कोई व्यवस्था हो, कि पूरी समय आपके अन्दर पेट्रोल भरता रहे तो थकने की कोई बात ही नहीं। खर्च होने की कोई बात ही नहीं। इसी तरह की व्यवस्था हो जाती है। इसी को पॅरासिम्पथॅटिक नर्वस सिस्टीम कहते हैं। अब आपको ये भी सुन कर आश्चर्य होगा, कि ये सब कह रहे हैं डॉक्टर लोग, कि पॅरासिम्परथॅटिक का पकड़ना बहुत कठिन है। उसको हम नहीं कंट्रोल कर सकते। दूसरा ये भी कहते हैं, कि अगर साइको सिंथेसिस करना है, मतलब शरीर की जितनी भी ग्रंथियाँ हैं, और मन, बुद्धि, अहंकार आदि सब को अगर एकत्रित करना है, तो उसके लिये पॅरासिम्परथॅटिक से ही चलना होगा । ये सब उन्होंने स्टेज पूरा बना लिया है हमारे लिये। वो वही बता रहे हैं जो हम कर रहे हैं। लेकिन हम अगर कहें कि तुम कूद कर के स्टेज पे आ जाओ तो उसके लिये कोई भी बुद्धिमान तैय्यार नहीं।