Sahajayogyanmadhe Dharma Stapna Aur Sahajayog, Dharma has to be established Within

मुंबई (भारत)

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Dharma Talk

[Translation from Marathi to Hindi]

HINDI TRANSLATION (Marathi Talk) सहजयोग का ये कार्य कितना खास है। मैं आपको पहले ही बता चूकी हूँ कि मैंने श्री गणेशजी की तरह एक नया मॉडल बनाया है तुम्हारा। ये एक नया तरीका है। और इसे विशेष रूप से आपने ग्रहण किया है। इसका कारण ये है कि आपण उसे ग्रहण करने योग्य हो। मैंने अयोग्य दान नहीं दिया है। आपकी योग्यता को मैं हर क्षण, हर पल जानती हूँ। मैं तो सिर्फ इतना कह सकती हूँ कि ये जो कुछ भी हुआ ये सब माँ के प्यार की वजह से, बहुत ही धीरे से, प्रेम से, सम्वेदनापूर्ण ये कार्य हुआ है। पर अगर आप इसके योग्य नहीं होते तो ये सम्भव नहीं होता। आज भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो इधर-उधर भाग रहे हैं । वे पागल हो गये हैं। अनादिकाल से जो भी शास्त्रों ें कहा गया है उस पर विचार तक नहीं करते हैं ये। जो कहा है, बड़े-बड़़े ज्ञानी, श्रीकृष्ण जैसे महान परमेश्वरी अवतरण से सुनकर भी वे सब कुछ छोड़कर वे लोग नयी-नयी योजनाओं से लोगों को अपने जाल में फँसाते है, उसके बारे में कोई भी विचार ये लोग नहीं करते हैं। किसी भी शास्त्र में, चाहे वो मोहम्मद साहब ने लिखा हो या फिर क्राइस्ट ने कहा हो या श्रीकृष्ण की कही गयी ‘गीता’ हो, इन सब में एक ही तत्व है कि आप अपने ‘स्व’ को समझें। अगर आप अपने अन्दर के ‘स्व’ को जानेंगे तो उसकी शक्ति से आपको लाभ होगा। पर ऐसा कहने से लोग इससे दूर भागते हैं क्योंकि सत्य को लोग स्वीकार नहीं करते। कुछ गलत कहते हैं तो वो मान जाते हैं क्योंकि गलत मार्ग पर चलने की उनको आदत हो गयी है इसलिए उस बात को वे जल्दी मान लेते हैं। असत्य के मार्ग से मनुष्य ने आखिर क्या पाया? अगर कुछ पाया है तो सिर्फ तर्क-वितर्क करना। इसका असर कलियूग में दिखायी दे रहा है। पिता का बेटे पर विश्वास नहीं, बेटे का माँ पर विश्वास नहीं। पूरा संसार त्राही-त्राही हो रहा है । ऐसी परिस्थिति में लोगों के सामने सत्य लाने से लोगों की स्थिति ऐसी हो जाती है कि जैसे अँधेरे से एकदम प्रकाश में आने से हो जाती है। उनकी आँखो को रोशनी से तकलीफ होती है और वे अंधेरे की ओर जाना चाहते है। मैं लिखकर देती हूँ कि ऐसे में बहुत से लोग सहजयोग में एकदम से नहीं आएंगे । और जो आएंगे वे फिसल जाएंगे, टूट जाएंगे। उनको मैंने सही जगह पर बिठाया तो भी वे दौडेंगे । ऐसी स्थिति और कुछ समय तक रहेगी। पर अगर सहजयोग को स्थायीत्व देना है या विश्व मैं फैलाना है तो उसका एकमात्र इलाज है, चाहे जो भी हो, पर वो तो है, हम ही हमारी कुछ खासियत या हमने कुछ कमाया नहीं, हम जो भी कुछ है वो जन्मजन्मांतर से है। ऐसे में हमें इससे कुछ लेना-देना नहीं है। लोग कहते हैं कि, ‘माताजी तो हैं ही आदिशक्ति। वे स्वयं आदिशक्ति है तो उनका हमें क्या बताते हो। आपकी तरफ लोगों की दृष्टि रहेगी कि सहजयोग में क्या-क्या परिवर्तन हो रहा है। उनमें धर्म की स्थापना हुई है या नहीं? क्योंकि सबसे पहले धर्म स्थापित होता है। कलियुग में सर्वप्रथम धर्म की स्थापना माताजी ने की है क्या? वो (धर्मस्थापन) कहाँ पर होती ? वो होगी आपकी नाभि चक्र में। आप में वो धर्म है या नहीं, आप धार्मिक 8.

Hindi Translation (Marathi Talk) है या नहीं, ये अगर पहले ही सिद्ध हो जाता है तो , दूसरे लोग आपको देखकर कहेंगे कि, ‘इसमें कितना बदलाव आया है, ये किस तरह से बन गया है, इसमें बहुत तेज़ आ गया है।’ हमारा एक दीप रहेगा तो लोग कहेंगे कि वो बहुत दिनों से आकाश-दीप है। उसका क्या महात्म्य है? कितने आये और गये। जो दीप हमने अभी लगाये हैं वो पहले कभी नहीं लगाये गये थे। सच में हमने दीप जलाकर दीपावली मनाई है ये आपकी प्रकाश से लोगों को समझना चाहिए और इससे बड़ी हो नहीं सकती। कल हमारा फोटो पेपर में आया तो ‘माताजी साक्षात है ही। अवश्य! आगे क्या? बात कुछ ‘कितना भी कहें फिर भी वो आदिशक्ति है, पर हमारा क्या ?’ तो ऐसे पाखण्डी के पास क्यों जाते हो आप ? आप उन पाखण्डी के पास इसलिए जाते हैं कि वो अपना चमत्कार दिखाते हैं। दो पैसे दिये नहीं कि वो खुश हो जाते है। पर माताजी को कहते हैं कि ‘आप दिखाइये अपना कमाल।’ जिनको जो चमत्कार करना है वो करें, पर हमसे चमत्कारों की अपेक्षा करते हो, वो क्या है! पैसे चाहिए तो हम देंगे। बहुत अधिक कष्ट करने के लिए कहेंगे तो कर लेंगे, पर हमारे अन्दर धर्मस्थापन होनी चाहिए । हम सबमें प्रेम दिखायी देना चाहिए। विश्व में लोगों ने कहना चाहिए कि, ‘क्या चमकते हुए लोग हैं ये!’ ये बहुत कठिन कार्य लग रहा है, तो सहजयोग कैसे जमेगा क्योंकि ‘हमको जो धन्धे करने है वो तो हम करते रहेंगे।’ अभी कुछ दिन पहले ही मैंने बताया था कि उधर सिंगापूर में जब मैं गयी थी तो एक अगुरू भाग चुके थे क्योंकि उन्होंने सबसे कहा था कि ‘ तुम लोग स्मगलिंग करो। कुछ भी करो । कितनी भी औरतें रखो, पुरूषों के साथ रहो। पर पैसे इधर दो।’ आखिर लोगों का स्मगलिंग का सामान पकड़ा गया। फिर आये मेरे पास। मैंने कहा, ‘अब उनसे जाकर पूछो। मैनें ऐसे कितने रियलाइज्ड साधू देखे हैं। वो एक अम्बरनाथ में थे। किसी को कुछ नहीं कहते, कुछ नहीं करते। उनसे जब पूछा गया कि, ‘महाराज, आप कुछ कहते क्यों नहीं! तो उन्होंने कहा कि, ‘उन लोगों की योग्यता ही नहीं है। उनसे क्या कहना। पर मेरा ऐसा नहीं है। आप कितने योग्य हैं, ये तो मैंने पहले ही कह दिया है। इसके बारे में आप में से किसी को कोई शक नहीं। अब ये आपके कितने गहराई तक असर हुआ है, कितने साक्षात्कार हुए है इस गहराई से इसकी ओर ध्यान देना चाहिए। अपनी गलतियों को, खामियों को देखना चाहिए। देखा जाये तो हर एक सहजयोगी दीपस्तंभ जैसा है। इतने सारे गणेशों को बिठाने के बाद मुझे इतनी मेहनत करने की क्या आवश्यकता है ये बताईये मुझे। मुझे इतनी मेहनत करने की क्या आवश्यकता है। आप कुण्डलिनी उठा सकते हैं, लोगों को पार करा सकते हैं। एक-एक मठ डालकर बैठे तो लाखो रूपये कमा सकते हैं। मुझे इतनी मेहनत करने की क्या जरूरत? सिर्फ एक चीज़ की कमी है कि अभी भी आपकी समझ में नहीं आया कि आपको क्या मिला है। अरे भाई, जिनकी जागृति नहीं हुई है उन्होंने भी आश्रम बंधवाये हैं। ‘हम सर्वसाधारण मनुष्य हैं, घर-गृहस्थी वाले हैं।’ ये सब बाहर से है पर अन्दर से आप क्या हो? जहाँ पैर पड़ेगा वहाँ से बाधायें दूर भाग जाएंगी। दूध से पानी अलग करने की शक्ति आप में होते हुए भी अगर आप में वो तेज़ नहीं आ रहा है, तो इसकी क्या वजह हो सकती है ये मेरी समझ में नहीं आता। चक्र पकड़ता है इसका मतलब क्या है? इतनी मेहनत करने की आपको जरूरत ही नहीं है। सिर्फ निरपेक्ष भाव से साक्षी स्वरूप में आएंगे तो सब चक्र झट से छूट जाएंगे । क्योंकि वो सब मिथ्या है। मिथ्या में से हम जहाँ हैं वहीं

Hindi Translation (Marathi Talk) खड़े रहने से मात्र सब कुछ टूट कर गिर पड़ते है या नहीं ये देखिये । अपने को सिर्फ वहाँ चिपका कर रखें । जरा सा चित्त को अन्दर की ओर ले जाना है, खड़े तो हम वहीं है, कपड़े भी वही हैं, बत्ताव भी वही है। पती है, पत्नी है, बच्चे हैं, पूरा संसार है, समाज है, पर अगर आप चित्त की गहराई तक उतरें तो पूरे संसार की भक्ति आपके पिछे है इसका ध्यान रखें । ये पृथ्वी माँ आपकी रक्षा के लिए खड़ी है। समस्त तारांगण भी आपकी रक्षा के लिए खड़े हैं। जो कुछ चाहिए वो सब है पर सहजयोग के बारे में बताना हो तो आप नई दुल्हन की तरह शर्माने लग जाते हो। आधे- अधूरे लोगों के लिए सहजयोग नहीं है ये मैंने सौ बार बताया है। अगर आप धैर्यवान और वीर हैं तो ही आयें। सिर्फ दो लोग आयें तो भी चलेगा, पर वीरत्व आना चाहिए । घोड़ा दिया , उस पर बिठाया , घोड़ा चलाना सिखाया फिर भी रोते रहते हैं, तो क्या करें? आप ही बताइये। अब क्या घोड़े से आपको चिपकायें? चक्र तो पकड़ने ही नहीं चाहिए। आपके चक्र सच में नहीं पकड़ते। इसमें माया कैसी है ये अगर आप समझेंगे तो आपकी समझ में आयेगा। चक्र आप पकड़ते नहीं क्योंकि आप इन्स्ट्रमेंट हैं। आप एक कम्प्यूटर जैसे इन्स्ट्रमेंट हो। आपको जो न्यूज मिलती है वो आप कहते हैं। अब समझो इनकी आज्ञा पकड़ गयी तो ‘आपकी आज्ञा पकड़ी है’ ये information वहाँ आती है, पर वो आपका भाई है, तो ‘माताजी, इसकी आज्ञा निकालिये।’ मतलब आप आज्ञाधारी हो गये। ‘ये मेरा भाई, ये मेरा चाचा, ये अलाना, ये फलाना, ये मेरा लड़का।’ क्या करेगे। पकड़ता है तो पकड़े। कौन है वो आपका? आपका कौन है? आप खुद ही अपने, एकाकार, अपने में, अपने आनन्द में, अपने विश्व में खोये है। घूमते रहते हैं और वहाँ जो है वो तुम्हारा होता है और हमेशा रहेगा। इस बाह्यत्व को थोड़ा छोड़ना पड़ेगा तभी आपके चक्रों का पकड़ना रूकेगा । आपको सिर्फ information आती है। किसी को ज़्यादा आयेगी, किसी को कम आयेगी। वो आपके चक्र नहीं पकड़ते । फिर भी उधर ही ध्यान देते हैं, ‘मेरा ये चक्र पकड़ गया है माताजी।’ ‘ऐसा क्या? ये तुम्हारा कैसे पकड़ गया। तुम्हारे पास बैठे आदमी का पकड़ा है इसलिए तुम्हारा भी पकड़ा होगा। मतलब जो बातें मिथ्या है उस पर ही शक करते है। आपको समझना चाहिए कि ये सब मिथ्या है; जैसा कि हम कहते है बागुलबुवा (कोई काल्पनिक चीज़ ) । ये तो बागुलबुवा की तरह से ये आपकी काल्पनिक पकड़ है। असल में आपका कुछ पकड़ता ही नहीं है। लोग कहते हैं कि कोई गुरु थे, उन्होंने किसी को कुछ दिया तो उनको ये बिमारी हो गई। इनको अमूक गुरु ने ठीक किया। इसको ये बीमारी हो गयी। आप में से से लोगों ने बहुत इन लोगों को वाइब्रेशन्स दे कर ठीक किया है। आपको पता है कि यहाँ पर किसे बिमारी हो गयी ? साक्षात गंगा माता सुबह से शाम तक आपके पैर धोती है। और आप यहाँ खड़े हो कर कहते है कि ‘मेरा ये पकड़ा है, मेरा वो पकड़ा है।’ सिंहासन पर बैठे हुए लोगों ने ऐसा बर्ताव नहीं करना चाहिए। जो अन्दर से ड्रते हैं, छोटी मनोवृत्ती के होते हैं उसी वजह से उस तरह का उनका बाह्यबत्ताव भी हो जाता है। राजा के जैसे रहना चाहिए। दिल्ली में एक गृहस्थ मिले थे। वो मुझसे कहने लगे, ‘मैं बहुत सीधा- सादा रहता हूँ। माताजी, आपको इससे कुछ आपत्ती तो नहीं।’ मैंने कहा, ‘आप तो राजा हैं।’ इसलिए पहले अपने व्यक्तित्व के बारे में सोचना चाहिए। खड़े होने के बाद ऐसा लगना चाहिए कि कोई तो मनुष्य खड़ा है। पहले जब मैंने सहजयोगियों को खड़े किये तब ऐसा लगता था कि कौनसी जेल से छुटकर आये हैं ये? ‘माताजी ने कुछ खास, विशेष अपने को दिया है’ ये हमेशा ध्यान में रखें। मैं कहती हूँ ये अति विशेष है। मैंने भी ये सब सीखा है और तब कहीं जाकर मैं इसमें जम गयी हूँ। आपकी कुण्डलिनी 10

Hindi Translation (Marathi Talk) के अटकने से सब गड़बड़ होती है। उसे कैसे छुड़ाना है और आपको इस मार्ग पर कैसे लाना है, आपको यहाँ तक कैसे पहुँचाना है इन सब पर पहले मैंने मेहनत की और बाद में आपको छुड़ाया है। सबसे पहले तो अपने धर्म की स्थापना होनी चाहिए। धर्म का होना बहुत जरुरी है। अगर मनुष्य में धर्म ही | अस्थिर है तो सहजयोग नहीं जमेगा। धर्म का कार्य बहुत आसान है। ‘अति वर्ण्ययेत।’ जो कुछ भी ज़्यादा है, अति है उसे पहले छोड़ दो, मध्यमार्ग पर आना है तो कुछ भी अति में नहीं करना चाहिए। किसी भी चीज़ के लिए हठ नहीं करना है। पागल के जैसे किसी एक चीज़ के पीछे पड़े रहना, ये भी नहीं होना चाहिए । हसते -खेलते, सहजभाव से कार्य करना है। धर्म में एक सीधी-सादी बात है, दारू नहीं पिना है । तम्बाकू नहीं खाना है। ये सब असूरी चीजें हैं। दारू एक तरह से असूरी पेय है। विश्व में राक्षसी चीजें हैं, उसका उपयोग न करें। खाने का भी अतिरेक नहीं करें। खास करके घर-गृहस्थी वाले लोगों को ये तकलीफ है। खाने के बारे में वे ज़्यादा उत्सूक रहते हैं। जो कुछ भी चटपटी चीज़ें आती है वो बना कर, खिला कर उनकी ( पुरुषों की) जीभ खराब कर देते हैं। सुबह से लेकर शाम तक खाना खिलाते है और फिर पुरुषों के सिर पर बैठते हैं। इस तरह के खाने से बच्चों को भी बिगाड़ देते है । फिर लीवर खराब होता है। एक तो ज़्यादा खायेंगे नहीं तो पूरा उपवास करेंगे। कुछ भी नहीं खाएंगे। ये नहीं खाना है, वो नहीं खाना है, पूरे हप्तेभर का उपवास रखेंगे। सिर्फ फलाहार करेंगे। जैसे खाने का अतिरेक नहीं करना है वैसे ही पोशाख के बारे में भी है। एक तो बिना कपड़े के घूमेंगे, या दिन में तीन बार कपड़े बदलेंगे। इसका कुछ मध्य-उपाय निकालते ही नहीं है। साफ-सुथरे, ठीक-ठाक कपड़े पहनने चाहिए। उस ओर भी ज़्यादा ध्यान नहीं देना है। गृहस्थी लोगों को इसकी ज़्यादा जरूरत होती है। उनका एक फायदा है कि बाल-बच्चे होने के कारण वो कुछ ऐसा-वैसा नहीं पहन सकते, नहीं तो बच्चे ही उनकी खबर लेंगे। एखाद ऐसा पागल आदमी घर में रहेगा तो लोग उस पर हसेंगे। अगर उस पर कोई हँसता है तो वो या तो पागल शहाणा है या फिर सब छोड़ देता है। तो अति वज्ज्य करना है। हर चीज़ में जो अति है उसे वर्ण्य करना है और जो चीज़े शैतानी है उस ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देना है। अब मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म क्या है? अगर मुझसे कोई पूछे कि, ‘माताजी, मनुष्य के लिए कौनसा धर्म जरूरी है?’ अब इतने सारे लोगों को देखने के बाद मुझे एक ही सबसे जरूरी लगता है कि आपका ये जो माथा है वो किसीके सामने न झुकायें। अगर आपने अपने सिर को किसी के सामने झुकाया तो रियलाइजेशन लेना बहुत कठिन हो जाएगा। सब अगुरू है, पाखण्डी हैं उनके सामने माथा झुकाना नहीं चाहिए । सहजयोगियों ने तो बिल्कुल भी नहीं झुकाना चाहिए। दूसरे सहजयोगी या योगी मनुष्य के सामने भी झुकने की जरूरत नहीं है। आपमें क्या कुछ कमी है? ऐसे करने से आज्ञा चक्र पकड़ जाता है। और वो ऐसा पकड़ता है कि फिर छूटता ही नहीं। क्योंकि आपके ऊपर कोई नहीं है ये में आपसे कह देती हैूँ। अगर आप गणेश की स्टाइल में हैं तो ब्रह्मा, विष्णू, महेश भी आपके आगे नहीं जा सकते | वाइब्रेशन्स से देख लीजिए कि मैं जो कहती हूैँ वो सच है या नहीं। सिर्फ जैसा मेरा नाम है ‘निर्मल’ वैसे ही स्वयं को रखें तो ब्रह्मा विष्णू, महेश भी आपको हाथ नहीं लगा सकेंगे ये मेरा शब्द है। किसी के सामने जा कर सिर झुकाने की आवश्यकता नहीं है। इतने सारे जो गुरुबाबा हैं वो मेरे सिर तक को भी हाथ नहीं लगा सकते है। गंगा भी मेरे सिर पर नहीं चढ़ सकती है। पर आप लोग मेरे सिर पर हाथ रख सकते हैं। आपकी समझ में आयी बात! आपकी ऐसी स्थिति होते हुए, इतने उच्च पद पर होते हुए अगर आप खुद के बारे में गलत कल्पनायें 11

Hindi Translation (Marathi Talk) धारण करना ये सहज नहीं है। इसका मतलब ये नहीं किइन सब बातों से आप गर्वित हो जाएं। कोई कहेगा कि ‘आप आदिशक्ति हैं तो इसका क्या गर्व करना।’ मतलब हम तो हैं ही आदिशक्ति। इसमें गर्व करने वाली कौनसी बात है। हमारा इसमें कुछ खास हैं ऐसा नहीं । हम जैसे हैं वैसे हैं। वैसे ही आप सहजयोगी हैं तो है ही। इसमें गर्व की कौनसी बात है? पर जो है वैसे रहिए। अगर कोई हीरा होगा तो उसमें तो चमक आएगी ही। इसके उल्टा ही पार्चात्य देशों में हैं। वहाँ के लोग बहुत ही अहंकारी हैं। वे खुद को शैतान समझते हैं। लोगों को एक्सपोर्ट करके भेजा है नं ! छाँट-छाँट कर बदमाश भेजे है । उन सबके अहंकार को ऐसा तोड़ा है वहाँ कि पुछो मत। गधे जैसे हाथ में चिलीम लेकर घूमते हैं। वे इतने मूर्ख है, महामूर्ख है। उनकी मूर्खता का वर्णन भी नहीं कर सकती हूँ मैं। इसके बारे में बाद में फिर कभी बताऊँगी। अभी यहाँ बच्चे बैठे हुए है और ऐसे में बोलने जैसा नहीं है । उनको अपने ही अहंकार के लिए महामूर्ख की पदवी दी गयी है याने कि उनको पदवी दान ही नहीं दिया जा सकता है, इतने मूर्ख हैं वो। मुर्खता के लिए वे कुछ भी करेंगे। अपने यहाँ पागल लोग भी ऐसा नहीं कर सकते। उनकी एक तरह की बात और आपकी दुसरी तरह की! कितना भी कुछ कहो आप वैसे ही रहने वाले हैं वो। उनसे कहेंगे कि, ‘सिर नीचे करो।’ तो उनका सिर और भी ऊपर आएगा। ऐसे दो तरह के लोग हैं। अब इन दो तरह के लोगों में हम कहाँ के? अब सहजयोग के कारण थोड़ी तो जगह मिली है मध्य मार्ग में। थोड़ी सी जगह। अब उस जगह को बढ़ाना है। तो अब सहजयोगियों ने धर्म की स्थापना करनी चाहिए, बाद में काम! और इसमें पावित्र्य आना चाहिए । अपनी पत्नी के सिवाय दूसरी किसी भी स्त्री की ओर माँ के रूप में देखना चाहिए । कठिन नहीं है ये। ये बहुत ही आसान बात है। पर आजकल कलियुग में इतनी गन्दगी फैली हुई है कि वो सीधी नाक में ही जाती है, आँखों को चुभती है। मुझे याद है कि हमारे माता-पिता कहते थे कि, ‘सबने आँखे नीचे कर के चलना चाहिए।’ १ आँखे ऊपर करके चले और किसीने देख लिया तो माँ को जाकर कहते थे कि, ‘आपकी लड़की ऐसी आँख ऊपर करके चल रही थी।’ तो बस हो गया, उस पर माँ बहुत चिल्लाती थी। पिताजी को कोई कहे कि, ‘आपका वो नाना आँखे ऊपर करके चल रहा था।’ तो फिर नाना की आ गयी शामत। उसका खाना-पिना बन्द। ‘तू आँख ऊपर करके क्यों चल रहा था? ध्यान किधर है तुम्हारा ?’ ध्यान कहाँ है ये पहला प्रश्न होता था। ये जो मैं कहती हैँ वो पच्चीस साल पूरानी बात है। अब आपके स्वतंत्र होने के बाद जो दिखावापन आ गया है और उससे जो घटनायें घटी है वो ध्यान में रखते हुए आँखे जमीन पर रखनी चाहिए । वो तुम्हारी दादी है। आँखे हमेशा जमीन पर रखें। स्वयं को विनम्र रखकर हमेशा धरती माता का स्मरण करते रहे। तिसरी बात है ‘अर्थ’, मतलब पैसे-रूपयें। पैसों के बारे में मनुष्य ने कैसा बर्ताव करना चाहिए । बार-बार पैसों के पीछे पड़ कर पैसा नहीं मिलता है या दूसरे के पास जो चीज़़ है उसे लालायित होकर देखने से भी पैसा नहीं मिलता। जिसके पास पैसा है उसका गला काटने से भी पैसा नहीं मिलता। और जिनके पास पैसा होता है उनको भी सुख, आनन्द, शान्ति नहीं मिलती है ये तो आपने देखा ही होगा। अब आप स्वयं ये सोचें कि अगर पैसे से नहीं मिलता तो किससे मिलता होगा। पैसा तो एक भाग है, फिर पैसे का हिस्सा कौनसा है। लक्ष्मी स्वरूप के बारे सुख में इससे पहले मैंने बताया था। वैसा ही स्वरूप रहना चाहिए आपका , समाधानी, समाधानी वृत्ति का। जो मिला है उसको स्वीकार करने से ही मनुष्य राजा बन जाता है। जो समाधानी होता है वही राजा होता है। जो समाधानी नहीं 12

Hindi Translation (Marathi Talk) रहता वो भिखारी है। सीधा-सादा हिसाब है। जो समाधानी नहीं वो कितना भी बड़ा बन जाए, स्वयं को बड़ा मानने लगे फिर भी वो भिखारी ही है। और जो हमेशा समाधानी रहता है वो कितना भी गरीब क्यों न हो फिर भी वो राजा ही होता है। इसलिए हमेशा हर चीज़ में समाधानी होना चाहिए। और ये आपके लिए कठिन कार्य नहीं। सहजयोग में हमने वो दिया है आपको। अब कैसे मानना है और कैसे करना है ये भी मैं बताती हूँ। क्योंकि जो भी प्रश्न आते हैं मनुष्य को, वो सब सोचने से आते है। अगर आप सोचेंगे नहीं तो प्रश्न ही नहीं आएंगे। इसलिए किसी भी चीज़ के बारे में अति सोचने लगेंगे तो उस सोच को उठाकर माताजी के चरणों पर समर्पित कर देना है । जिसे हम अनकॉन्शस माइंड कहते हैं वो उधर है। सब सोच को वहाँ समर्पित करना है। फिर हम उसे उठाते हैं। कल आप का प्रश्न था इन्कमटैक्स के बारे में, तो सोचो मत। उसे लाकर मेरे कदमों पर डाल दो। आपको जैसा चाहिए वैसे तो होगा नहीं, पर जो कुछ भी होगा वो आपके हित के लिए होगा। और वो आपके लिए लाभदायी भी होगा क्योंकि अगर आपने अभी इन्कमटैक्स में थोड़े पैसे बचायें, पर फिर बाद में इससे नुकसान भी हो सकता है। आप सबको अनन्त आशीर्वाद ! 13